बाहर से सुरक्षित आ गए, और घर में ही धरे गए। Do you understand the meaning of that?
ये उन दिनों की बात है, जब लोगों ने नई-नई, पहेलियाँ-सी बुझना शुरू किया था। तब तक बहुत कुछ मालूम नहीं था। तब तक ये तक नहीं मालूम था, ये कौन से और कैसे वर्ल्ड वॉर की बातें थी। क्यूँकि, इतना वक़्त मैं बाहर रही ही नहीं। दो महीने से भी कम वक़्त में इंडिया वापस थी। उन दो महीने में मेरी जानकारी के अनुसार, वहाँ कुछ खास नहीं घटा। ये कुछ-कुछ ऐसे था, जैसे कोई नया-नया घर की दहलीज़ से बाहर कदम रखे और homesick feel करने लगे। Homesickness? वो भी वो इंसान, जो उस वक़्त तक ज़िंदगी का ज्यादातर वक़्त हॉस्टल रहा हो। और ऐसे विषय में PhD कर रहा हो, जिन्हें अक्सर ये कहा जाता हो, Life Sciences वालों को तो, 12 में से 13 महीने हॉस्टल चाहिए।
ये तो कोड पढ़ाने वालों ने जब पढ़ाना शुरू किया, तब पता चला, की खतरों के भी संकेत होते हैं, कोड होते हैं। और वो हमारे आसपास ही मँडराते चलते हैं। जैसे अपने ही शहर में, अपनी ही यूनिवर्सिटी में भी हॉस्टल और इंटरनेशनल हॉस्टल, अलग बला है। यूनिवर्सिटी के अंदर और बाहर का मतलब एकदम अलग है। इन्हीं संकेतों ने कहीं बचाया, तो कहीं फुड़वाया भी। वो भी आपकी अपनी यूनिवर्सिटी के अंदर ही। जब आपको लगा, यूनिवर्सिटी में भला ऐसा क्या खतरा। जबकी चेतावनी कई दिन पहले आ चुकी थी, मगर जगह का नाम नहीं था। क्यूँकि, आपने संकेत या कोड, सही से नहीं पढ़े या समझे। ऐसे तो दुनियाँ में कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है। किसी के लिए भी नहीं।
या शायद दुनियाँ की हर सुरक्षित जगह सुरक्षित है, सबके लिए। थोड़ी कम या थोड़ी ज्यादा। और दुनियाँ की हर असुरक्षित जगह खतरनाक है, ज्यादातर आम लोगों के लिए। खुद असुरक्षित लोग ही, दूसरों की सुरक्षा को खतरा होते हैं। वो भी ज्यादातर ऐसे लोगों की सुरक्षा को, जिनसे उन्हें कोई खतरा नहीं होता। जैसे की बीमारियाँ? ज्यादातर बीमारियों से बचने के तरीके होते हैं और ज्यादातर का इलाज भी है। और ज्यादातर बीमारियाँ अज्ञानता की वजह से हैं।
No comments:
Post a Comment