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Sunday, July 28, 2024

उकसावे? माहौल? और राजनीती? 2

सिर्फ उकसावे ऐसा करवाते हैं? या राजनीती भी माहौल बनाती है, लोगों के आसपास का? राजनीती की सुरँगों के राज यही हैं? 

जिन्हें हुक्का थमा रहे हो, उन्हें उनके लायक किताबें थमाने की कोशिश की क्या? या ऐसा कोई उनके लिए विकल्प, आपके जहन में ही नहीं आया? ऐसे-ऐसे विकल्प, तो सिर्फ अपनों के लिए हैं? या उनके लिए सिर्फ, जिनमें आप का फायदा हो?  

और ये खास-उकसावों वाले, उस पर ये भी बोलते हैं, की पसंद-नापसंद तो सामने वाले की है, खेल या राजनीती हमारी सही । मतलब, ऐसे खिलाड़ियों के पास या ऐसे बेचारे भोले-भाले राजनीती वालों के पास, अपनी जनता के लिए ढंग के विकल्प ही नहीं हैं? बोतलें थमाने के, ड्रग्स सप्लाई के या हथियारों तक पहुँचाने के और हादसे करवाने के? उससे भी बड़ी बात, law and enforcement ऐसे केसों में क्या करता है, जिसको सिर्फ भनक ही नहीं, बल्की खबर तक पहले से होती है, की ऐसा होने वाला है या हो सकता है? या करवाया जा रहा है? 

राजनीती ऐसे जैसे, 

आप टाँग तुड़वाए पड़े हों। और कहीं, आपके आसपास कुनबे तक के बच्चों को पढ़ाया गया हो, वो तो Live-in थी? और आपको वो सब पता चले, उस हादसे के सालों बाद। क्यूँकि, आपने उस आसपास को जानना अभी शुरू किया है, जब वहाँ रहना पड़ा। नहीं तो ऐसी-ऐसी पढाईयों की खबर भी ना होती। और क्या हो अगर कोई सच में live-in रह रहा हो? हाय-तौबा मच जाएगी? इतने सालों बाद भी, यहाँ बदला बहुत कुछ नहीं। या शायद जो कुछ बदल जाता है, वो वापस गाँवों की तरफ आता ही नहीं। इसीलिए, इतने घर खाली होते जा रहे हैं?      

ऐसे जैसे, कहीं बोला गया हो किसी को, Run for cover और वो आपके बारे में इसके या उसके बहाने जैसे, बोलते नज़र आएं, "हे शंकर क्यां क छोरी भाज गी"। वो दादी-ताई, जो छोटे बालों वाली बच्ची को परकटी बोल सकते हैं, ऐसे-ऐसे स्मार्ट बच्चों की ऐसी-ऐसी स्मार्ट गपशप को कैसे लेते होंगे? यही मौहल्ला क्लिनिक चला रखे थे क्या, कुछ बड़े लोगों ने? कुछ इधर की पार्टी वालों ने, और कुछ उधर की पार्टी वालों ने?

ऐसे जैसे, स्कूल बनाने की बात हुई तो, "यो तो थारी ज़मीन खा जागी"। और भड़काने वाले जिन बेचारों को ये तक नहीं मालूम, की उसने तो उनकी बच्ची को पैदाइश से पहले ही unofficially गोद लिया हुआ है। और भड़कने वालों को ये तक ना समझ आए, ये ज़मीन लेके जाएगी कहाँ? ना शादी की हुई, ना बच्चा। जो है वो भी तुम्हारा। और मान भी लिया जाए, तो क्या वो तुम्हारी ज़मीन खाना कहलाएगा? या उसका अपना हिस्सा लेना, जो आज तक इन इलाकों की लड़कियाँ, भाई-बंधी में छोड़ देती हैं। ऐसे-ऐसे नालायकों के पास तो छोड़ना नहीं चाहिए शायद?     

ऐसी-ऐसी कितनी ही, contradictory-सी कहानियाँ भरी पड़ी हैं यहाँ। कैसे भला? कुछ तो लोगों के पास, कुछ खास करने-धरने को होता नहीं। यहाँ-वहाँ की गॉसिप से अच्छा टाइम पास हो जाता होगा। काफी कुछ राजनीतिक तड़के होते हैं। जैसे जिन बच्चों को live-in जैसी कहानियाँ सुनाई गई होंगी, उन्हें इनके कोढ़ और live-in या out, checked in या chacked out जैसे कोढों के मतलब थोड़े ही बताए होंगे। इन बेचारों के live-in तो शायद, दुनियाँ के आरपार, एक छोर से दूसरे छोर पे हो जाते हैं, बैठे बिठाए। Checked in, checked out, एक एयरपोर्ट से, दूसरे एयरपोर्ट तक के सफर में हो जाते होंगे, उड़ते-उड़ते ही? ऐसे कोड बताते, तो सारी परतें ना खुल जाएँ की ये राजनीतिक पार्टियाँ खेल क्या रही हैं? और तुम क्यों और कैसे उनके हिस्से बने हुए हो? तुम्हारे अपने यहाँ ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे हादसों के बारे में कब, किसने बताया? अगर नहीं तो क्यों नहीं? खासकर, जिनके बारे में आम आदमी को पता होना चाहिए, बिमारियाँ और मौतें। वो भी राजनीती के कोढों की धकेली हुई। कुछ ज्यादा समझदार, पढ़े-लिखे, उसपे कढ़े, कहीं ऐसे-ऐसे केसों में, पूरे घर को ही तो तबाह के चक्कर में नहीं लगे हुए?   

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