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मुझे जाने क्यों ऐसा लगा, पता नहीं ये सिर्फ मेरा भर्म है या हकीकत? ये पढ़ने वालों पे छोड़ देते हैं।
मैं कोर्ट में, अभी 20 जुलाई को, उस J. D. J. C. वाले कमरे के बाहर, जब EARTHQUAKE आए, तो क्या करें और EXIT के संकेत समेत, उस जगह को समझने की कोशिश कर रही थी।
तो कहीं J IN D में दीपेंदर हूडा कोई सभा संबोधित कर रहे थे, शायद?
ठीक ऐसे ही जैसे
चुनाव से पहले दुष्यंत चौटाला ने कोई खास इंटरव्यू दिया था, किसी पत्रकार रुबिका लियाकत को? गाड़ियों का काफ़िला और इंटरव्यू? और पत्रकार महोदया, खुद गाडी भी ड्राइव कर रही थी। आखिर में उन्होंने कहा, इलैक्शन के बाद मिलना होगा? पत्रकार महोदया, उसके बाद जाने क्यों भूल गई शायद? एक और इंटरव्यू लेना था, क्या मैडम?
क्या हमारी राजनीती ऐसे चलती है?
वैसे तो मैं stand up commedies कम ही देखती सुनती हूँ।
क्यूँकि बहुत कुछ too much होता है और abusive भी।
पर कभी-कभी, कहीं न कहीं, यूँ लगता है की यही तो चल रहा शायद?
भारत के इलेक्शन्स ऐसे होते हैं?
ये कहीं इसी को तो ED नहीं बोलते?
ये EC कोई इलेक्शन कमीशन है या Executive Committee, University?
EC से फाइल पास होने पे, यूनिवर्सिटी के पास कोई ED भी होती है क्या?
जो फाइल पे कुंडली मार के बैठ जाए?
और भगवान हमारे?
अयोध्या-फ़ैजाबाद पे 2-BHK तक के ही भगवान हैं?
कौन से वाले भगवान हैं ये? शिव? राम? कृष्ण? या?
ठीक ऐसे जैसे हम बोलें, ऐसी-तैसी डेमोक्रैसी?
भगवानों को भी रहने को जगह चाहिए और जो इंसान इनकी धोक मारते हैं उन्हें?
अरे, वही तो इनके मंदिरों का चंदा देते हैं? फिर ये कैसे भगवान?
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