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Sunday, July 28, 2024

गुड़ का गोबर, और गोबर का गुड़ जैसे?

मेरे घर से निकल? 

ऐसे शब्द, ज्यादातर गरीब और कम पढ़े-लिखे तबकों में ज्यादा सुनने, देखने को मिलते हैं। पढ़े-लिखे और समर्द्ध इलाकों में नहीं। क्यूँकि, वहाँ सबके पास कम से कम, इतना-सा तो होता ही होगा? वैसे भी, ऐसी-ऐसी, छोटी-मोटी सी लडाईयाँ, छोटे-मोटे लोगों के यहाँ ही ज्यादा होती हैं। बड़े लोगों के यहाँ, ऐसी-ऐसी, आम-सी जरुरतों के लिए नहीं, बल्की किन्हीं खास वर्चस्वों या अहमों की लड़ाईयाँ होती होंगी। जैसे कुर्सियों की, सत्ताओं की। वहाँ तो लोगों के पास घर भी एक नहीं, बल्की कई होते हैं। और घर के हर इंसान के नाम होते हैं। अच्छे-अच्छे शहरों और देशों में होते हैं।  

इनमें से किसका देश ज्यादा विकसित है?

भारत? BHARAT? इंडिया? या INDIA? वैसे आप कौन-से वाले भारत में रहते हैं? जो अपने आपको विकसित कहते हैं, वहाँ वालों को तो ऐसा कुछ, शायद ही कभी देखने-सुनने को मिलता होगा? जैसे, "मेरे घर से निकल"? या मिलता है? शायद, जिन्होंने रेंट पे दिए हों, वहाँ हो सकता है? 

या शायद सरकारी मकान वालों को भी? वहाँ भी कहीं, ऐसा कुछ देखने-सुनने को मिलता है क्या? भारत जैसे देश में शायद? बड़े साहबों के बच्चे, किन्हीं गरीबों द्वारा ऐसा कहलवा सकते हैं? क्यूँकि, so called बड़े लोग, आपको शायद ही कभी ऐसे केसों में आमने-सामने मिलें। हाँ। दूर बहुत दूर बैठे जरुर, वो सब कर रहे होंगे या देखते-सुनते होंगे। वो भी लाइव, उसी वक़्त, अगर चाहें तो। या रिकॉर्डिंग्स बाद में, अपनी सुविधा अनुसार।    

और पुस्तैनी जमीनों पे? यहाँ भाई, बहन को कहते मिल सकते हैं? माँ या बेटी को भी? और शायद बीवी को भी? या शायद, कमजोर भाइयों को भी? सिर्फ कह नहीं सकते, बल्की ऐसी सब जगहों पे मार-पिट भी सकते होंगे? वैसे भी, मेरे महान "यत्र पूज्यन्ते नारी, रमन्ते तत्र देवता" वाले देश में तो? थोड़ा गलत लिख दिया शायद? 

गूगल बाबा से पूछें?    


घणी पेल गया, लाग्या यो तो?
आप क्या कहते हैं? 
  
कोई आपपे पहली बार हाथ उठाए, तो माफ़ कर देना चाहिए। है ना? दूसरी बार उठाए, तो सावधान हो जाना चाहिए और थोड़ी बहुत उसकी भरपाई भी होनी चाहिए। जिसे आदत हो या जल्दी भड़कने वाला इंसान हो? या हमारे यहाँ तो चलता है सब, जैसे? वो आपके सामने ऐसे-ऐसे उदहारण पेश करेंगे, जैसे यहाँ औरतें तो खासकर, रोज ही पीटती हों। और उनके अधिकार वैगरह कुछ नहीं होते। जो होता है, या तो So-called मर्दो का या जिसकी लाठी, उसकी भैंस? फिर बड़ा क्या और छोटा क्या?
  
आप क्या कहते हैं? ऐसे केसों में, अपना हिस्सा अलग करो और अपने-अपने रस्ते खुश रहो? या माफ़ी माँग ले, तो जाने दो? खासकर, जब कुछ हो ही ना? नहीं तो, इनका कुछ नहीं सुधरना?

ये पढ़ाई-लिखाई छोड़कर, कौन से झमेलों में आ गए हम? गुड़ का गोबर, और गोबर का गुड़ जैसे? यही एकेडेमिक्स कहलाता है शायद?  

आजकल तारीख पता है क्या चल रही है? कल क्या थी? और आज? और कल? सामान्तर घड़ाईयाँ या राजनीती के खेलों की लड़ाईयाँ, इन सबके खास आसपास घूमती हैं। खेल के कोढों के हिसाब-किताब से भड़कावे और उकसावे होते हैं और उन्हीं के हिसाब-किताब से सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ी जाती हैं। कैंपस क्राइम सीरीज से लेकर, सामाजिक घड़ाइयों तक के यही हाल हैं। ये सब ये भी बताते हैं, की आम आदमी को खासकर, राजनीती और बड़ी-बड़ी कंपनियों ने कैसे और किस कदर अपना गुलाम (मानव रोबॉट्स) बनाया हुआ है।          

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