राजनीती मतलब साम, दाम, दंड, भेद
जैसे मान लो, रितु को 1 FEBRUARY 2023 को PGI रोहतक से उठा दिया।
बीमारी क्या थी? कब से शुरू हुई थी?
कब-कब, कहाँ-कहाँ ईलाज चला? क्या ईलाज किया गया? दवाईयाँ, उनके नाम, कंपनी, बैड नंबर, कमरा नंबर, डॉक्टर, हॉस्पिटल नाम, तारीखें और साल, सब अहम है। और कहाँ से, कैसे और कब उठाया गया? उन सबके नाम, नंबर, तारीख, साल, दवाईयों के नाम या किसी खास दवाई की कमी। कैसे, कब और क्यों हुई? आम आदमी को कुछ नहीं पता होता। बड़े-बड़े डॉक्टरों तक को नहीं होता। फिर किसे होता है? वो अहम है। और कोड के रुप में इतना कुछ, ऐसे कैसे मैच कर सकता है? वो सिस्टम है। जो सुना, पता नहीं कब से कुर्सियों की मारा-मारी वालों ने ऐसे ही धकेला हुआ है।
जैसे, अगर मैं बोलूँ की इस पोस्ट का सीधा-सीधा संबंध, रितु की मौत से है।
कैसा संबंध? जिसके प्रोफाइल से ये पोस्ट ली है, वो तो सिर हो जाएगा मेरे। बात भी सही है। कुछ भी बैगर हाथ-पैर के, कहीं से भी जोड़ देती हूँ ना?
कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे
AC Heating
Cooler Fires
Electricity Control
Internet of Things
God of Small Things
छठ या छठा
सत्ता या सट्टा
सतरहवीं या तेरहवीं हिन्दुओँ में,
या 13 नंबर अंग्रेजों का,
या 10वीं, 12वीं देसियों की,
या खाट आला भगवान खाटू,
भांग आला भगवान शिव,
धतूरे आला लीलू, शिव,
मंगल, हनुमान
या मलंग महाकाल या कृष्ण
पढ़ा-लिखा उसपे कढ़ा, राम या रावण
और भी जाने क्या-क्या
जैसे मैं बोलूँ, इसका संबंध भी इन्हीं सब से है
कैसे?
जैसे
खाटू का झंडा लठ से उतार के, इस रैलिंग पे बीच में
और दोनों तरफ जीरो
और झंडे वाला लठ?
सैटेलाइट के पीछे
सैटेलाइट की फ्रेक्वेंसी को क्या, कौन और कैसे पकड़ रहा है?
वैसे सैटेलाइट क्या-क्या काम आता है?
उससे भी अहम
सैटेलाइट किस कंपनी का है?
और भी अहम, ये झंडा यहाँ, ऐसे किसने और किस तारीख को टांगा?
लाइट जलने पे ये नजारा और भी खास होता है। बाथरुम के खास डिज़ाइन से निकली लाइट, इस ग्रीन शीट पे अपनी ही तरह की जीरो गढ़ती है। और कभी-कभी, खास किस्म की लाइट वाला बल्ब भी जैसे, कमाल का डिज़ाइन बनाता है। और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे नज़ारे, इधर-उधर भरे पड़े हैं। ये इस पार्टी के, तो वो उस पार्टी के।
इतने में ही कितना कुछ आ गया ना? धर्म-अधर्म? रीति-रिवाज़? और राजनीती के हिसाब से, उन धर्मों या रीती-रिवाज़ों की रैली पीटना जैसे? आम आदमी को ना सिर्फ भावनाओं में बहाना, बल्की इन सबके सहारे भड़काना भी। उससे भी आगे, आम आदमी की ज़िंदगियों को इन सबमें गूंथकर, जरुरत के हिसाब के पकवानों और इंसानों के हिसाब से आटा तैयार करना जैसे। और अपनी-अपनी पार्टी के हिसाब-किताब के रोबोट बनाना और उन्हें रिमोट-कंट्रोल सा हाँकना, गोटी चलना जैसे। उससे भी अहम, जिसपे आम आदमी शायद ही कभी ध्यान देता है, ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग या दुरुपयोग, ये सब बनाने के लिए। क्यूँकि, वो भावनाओं और भड़काओं से आगे ही नहीं सोच पाता।
आम आदमी का इन सबसे क्या लेना-देना?
उसे शायद इन सबका ABC भी ना पता हो।
राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, ऐसे ही लोगों पे राज करती हैं। उनकी ज़िंदगियों को तोड़ती-मरोड़ती हैं या अपने अनुसार चलाती हैं। उसमें रीती-रिवाज़ क्या, धर्म-अधर्म क्या, हर तरह का ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी प्रयोग या दुरुपयोग होता है। रोबोटों और इंसानों में इतना-सा ही फर्क है। इंसान, कितनी ही तरह से भावनाओं में बहाकर अपने काबू में किए जा सकते हैं। रोबोटों को सिर्फ कहा या बताया गया काम करना होता है, भावनाओं से परे। जब लोगों को बहुत-सी चीज़ें या तथ्य पता नहीं होते, तो वो भी इन राजनीतिक पार्टियों के लिए रोबोटों-सा ही काम करते हैं।
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