Weather manipulation and human behaviour or physiological or psychological manipulations, one and same thing?
आज के वक़्त में कृत्रिम बारिश, ओले, बर्फ गिरना या आँधी, तुफान, छोटे-मोटे भूकंप, चक्रवात, या बाढ़ लाना, कितना मुश्किल या आसान है?
और इंसान या अन्य जीवों की फिजियोलॉजी को बदलना?
सिर्फ बारिश चाहिए? ये गोली?
पीरियड्स चाहिएँ? ये गोली?
कम या ज्यादा चाहिएँ? सँख्या बढ़ा दो?
बच्चे के पैदा होने से पहले का सीन या दर्द दिखाना है? ये गोली?
उसे पथ्थरी बता दो? किसे पता चलेगा?
जब खेल ही दिखाना है, बताना नहीं?
ऐसे ही कोई भी बीमारी दिखा सकते हैं? सिर्फ दिखा सकते हैं? या कर भी सकते हैं? सिर्फ कर सकते हैं या ना होते हुए भी ऐसी रिपोर्ट दे सकते हैं? किसे पता चलना हैं? ऐसे में ऑपरेशन करना कितनी बड़ी बात है? और दुनियाँ से ही चलता करना? कहीं न कहीं हर रोज हो रहा है?
और आपको ये सब कोरोना के वक़्त कुछ-कुछ समझ आए, की ये लोगों के साथ हो क्या रहा है? और कैसे? उसके बाद जब घर आकर रहना शुरु किया, तो जैसे रोज ही पागलपन के दौरे तो नहीं पड़े हुए, ये सब करने वालों को? आदमियों को बक्श रहे थे ना जानवरों को। पक्षियोँ के कारनामे तो अभी तक जैसे, यकीं करने लायक नहीं। हाँ, पौधों के जरिए जरुर थोड़ा बेहतर समझा जा सकता है। जैसे poppy यूनिवर्सिटी में कब और कहाँ-कहाँ दिखने लगा? उसे पहली बार यहाँ गाँव में कहाँ देखा? ऐसे ही जैसे धतुरा और कितने ही पौधे, ईधर आते हुए और फिर जाने किधर जाते हुए या बिखरते हुए?
मानव रोबॉट लिखना मैंने कोरोना के बाद ही शुरु किया था। आसपास लोगों का थोड़ा अजीब-सा व्यवहार जानकार या समझकर। या शायद उनकी ज़िंदगियों के अजीबोगरीब किस्से-कहानी जानकार। जिसमें आपको समझ तो आता है, मगर, इतने सारे प्रूफ कहाँ से और कैसे लाओगे? और जैसे वो ऑनलाइन हिंट्स वाले प्रूफ भी देने लगे? जैसे कह रहे हों, ले प्रूफ, रख ऑनलाइन? या शायद, क्या कर लोगे ऑनलाइन रखकर भी? अगर ये सब ब्लॉक नहीं हो रहा होगा, तो कुछ न कुछ तो आम लोगों तक भी पहुँचेगा ही। यही बहुत है शायद, एक इंसान के लिए तो।
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