आप कोई पेपर, डॉक्यूमेंट या शायद ऐसा-सा ही कुछ कॉपी कर रहे हैं। शायद ईमेल सेव करने के लिए या एक-आध पोस्ट करने के लिए? मगर कलाकार फ़ोन ही नॉन फंक्शनल कर देते हैं। आप फिर से कॉपी करते हैं और फिर से ऐसा कुछ। क्यों? ऐसा तो कुछ खास भी नहीं उनमें। ये कुछ एक महीनों पहले की बात है। एक-आध, इधर-उधर के पत्र या ग्रीटिंग या ऐसा-सा ही कोई किसी मैगज़ीन का हिस्सा? ये भी किसी के लिए अड़चन हो सकता है? या इतना अहम, की वो उन्हें सॉफ्ट कॉपी ही ना बनाने दें? ऐसा क्या है उनमें?
इलेक्शन जाने दे, फिर कर लियो। कहीं हिंट जैसे कोई। क्यों? इनका किसी इलेक्शन से क्या लेना-देना? समझ से बाहर? खैर। उसके बाद उनकी कुछ कॉपियाँ यहाँ मिलती हैं और कुछ वहाँ। जाने कहाँ-कहाँ? अब रोकने वाले तैयार बैठे हैं, तो रुकावट है, रुकावट है, को बताने वाले भी। और उस रुकावट वाले जोन में घुसपैठ कर, उन्हें रुकावट से बाहर रखने वाले भी? मज़ेदार दुनियाँ है ये, अजीबोगरीब मारधाड़ वाली? खैर। आप आराम से बैठते हैं की चलो इतनी भी रुकावट नहीं है। हो जाने दो इलेक्शन। और उसके बाद कोई एक पत्र किसी पोस्ट का हिस्सा बनता है।
उन्हीं में कुछ और भी है, जो बाहर निकलता है। वो भोले-भाले, नए-नए कॉलेज के दिनों के उस ज़माने के बच्चों का है। कॉलेज स्तर पे बच्चे? हाँ। कुछ-कुछ ऐसा ही। यूँ लगता है, टेक्नोलॉजी ने बहुत कुछ बदल दिया है। यही जनरेशन गैप है। मंदिर-मस्जिद से परे, रंगभेद या जातपात से परे, कब और कैसे, ये इतने धर्मान्दी या उमादि हो गए लोग? राजनीती और टेक्नोलॉजी? हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा, वाले लोग? या इंसान से शैतान? मगर कैसे? राजनीती? पता नहीं। मगर दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के बारे में कुछ एक विडियो देखे तो लगा, ये रिप्रजेंटेशन उन लोगों की तो नहीं शायद, जिन्हे ये दिखाना या बताना चाह रहे हैं? राजनीती की कुर्सियों के ये मालिक, कोई और ही हैं। वैसे ही जैसे, हर इंसान अनौखा है और हर इंसान की अपनी अलग पहचान और अलग ही कहानी। उन्हें किसी और में देखना ही, उस इंसान का अपना अस्तित्व या पहचान दाँव पर लगाने जैसा है। आपको क्या लगता है?
Views और Counterviews का फायदा ही ये है की आप सिर्फ अपने विचार नहीं रख रहे, बल्की, इधर-उधर के विडियो, या विचारों या किस्से कहानियों को भी रख रहे हैं। जरुरी नहीं ये पोस्ट लिखने वाला या आप उनसे सहमत हों। क्यूँकि, किसी को भी एक साँचे में नहीं रखा जा सकता। हर किसी का अपना मत है और अपने विचार। बस, उन्हें किसी और पे जबरदस्ती थोंपने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। रौचक तथ्य ये, की जहाँ कहीं जबरदस्ती थोंपने की कोशिशें होती हैं, तो वो बिमारियों और हादसों के कारण होते हैं। उसकी सामान्तर घड़ाईयाँ जाने फिर कहाँ-कहाँ चलती हैं। जिस किसी समाज में ये जबरदस्ती थोंपने का चलन ज्यादा है, वहीँ लोगों को बिमारियाँ भी ज्यादा हैं और दूसरी तरह की समस्याएँ भी। आगे किसी पोस्ट में इन्हें कोड से जानने की कोशिश करेंगे। आपका कोड क्या है और आपपे क्या थोंपने की कोशिश है? वो थोंपने की कोशिश या थोंपना ही जहाँ कहीं आप हैं, वहाँ उस सिस्टम के अनुसार बीमारी का कोड है? बाकी जानकार ज्यादा बता सकते हैं।
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