गुंडे जो जबरदस्ती दूसरों के घरों में घुसें?
औकात है?
गुंडे जो जबरदस्ती या धोखाधड़ी से अर्थियों के ढेर लगाएँ?
औकात है?
गुंडे जो जबरदस्ती या धोखाधड़ी से,
दूसरों की जमीनों को हड़पने की कोशिश करें?
औकात है?
बड़ी औकात कांता भाभी तेरी?
या तेरे गुंडे की? ओह ! भतीजे।
2-कनाल के लिए कितनी और अर्थियाँ उठाओगे?
भाभी को तो खा गए।
जबरदस्ती या धोखाधड़ी से?
सुना है, स्कूल खोलने वाली थी वो अपना?
उसी ज़मीन पर?
जिस पर तुम्हारी गिद्ध-सी निगाहें,
कब से टिकी हैं?
सुना है,
उसके बाद ये बहन
वहीँ अपनी कोई छोटी-मोटी, पढ़ने-लिखने लायक
झोपड़-पट्टी बनाने वाली थी?
क्या हुआ उसका?
भतीजे को बेचारे को, शायद नहीं पता
की उस झोपड़-पट्टी की ऑफिसियल ईमेल तो
और भी पहले चल चुकी।
बहन, बेटियों को और कैसे-कैसे खंडहरों वाली
जेलों में रखोगे?
जहाँ-जहाँ चलेगी तुम्हारी?
और तुम?
कब तक उनके अपनी कमाई के पैसे रोककर,
कोशिश में रहोगे, की वो तुम्हारी गुलामी में नौकरी करें?
चाहे वो तुम्हें धेला पसंद ना करती हों।
कैसे भाई-बंध, भतीजे या चाचे-ताऊ या दादे हो तुम?
किन कंसों, शकुनियों या रावणों के प्रतिनिधि?
या और कैसे-कैसे राक्षसराजों की कर्तियाँ?
जबरदस्ती की औकात और भगोड़ा होना?
एक ही होता है क्या?
इतना सुनने के बाद तो, कोई भी इज्जत वाला पीछे हट जाए?
पर शिक्षा का धंधा करने वाले?
2 कनाल के लिए?
नहीं, नहीं, इरादा तो सबकुछ हड़पने का था।
वो हो नहीं पाया?
तो चालें और धोखाधड़ी का धंधा जारी है।
बेटा, आज फिर सुना है, तेरा फोन बंध है?
क्या कर रहा है, उस ज़मीन पर तू?
उस ज़मीन से पीछे हटने के सिवा, तेरे पास रस्ता है क्या?
बहुत होंगे शायद?
1 साल हो गया या 2?
वो दो बोतल देके फोटो करवाने का?
इस घर के हर इंसान के विरोध के बावजूद।
बुआ के मैसेज कब-सी गए थे?
चाचे, भतीजे के पास?
आजकल में?
या उसी के आसपास?
तब से भगोड़े ही हो शायद?
कैसे-कैसे काम करते हो?
की भगोड़ा होना पड़े?
कितना और गिरोगे?
शिक्षा के धंधे में?
2 कनाल के लिए?
सिर्फ 2 कनाल का लालच?
इतने अमीर लोगों के लिए?
कौन जगह है वो, जहाँ मिलती है ऐसी जमीन?
5-6 लाख में?
या 30-35 लाख में?
कैसे-कैसे लालच देकर
कैसा-कैसा रुंगा बाँटते हो?
वो भी अपनों को ही?
ऐसे गंदे धंधे करने की बजाय,
बेहतर ना हो, की दिमाग कहीं ढंग की जगह लगाओ।
सुना है, किसी का यूनिवर्सिटी का पैसा आज तक रोकने की भी, बस इतनी-सी ही कहानी है? ये तार आपस में मिले हुए हैं? सुना है। हालाँकि, अपनी समझ से आज तक परे है।
लोगों को और उनके संसाधनों पर काबू और कब्जे करने की कोशिशें और कहानियाँ। जो मिलती, जुलती-सी लगेंगी, यहाँ भी, वहाँ भी और वहाँ भी। मगर ध्यान से देखने, पढ़ने लगोगे, तो कुछ नहीं मिलता, मकड़ी-से जालों के सिवाय।
हमारे जैसे सोचते हैं, घर-कुन्बे की बात है, ऐसे ही निपट जाए। मगर, कुछ लोगों को शायद, मजा नहीं आता ऐसे?
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