इन्हीं interactions को अगर हम हिसाब-किताब, कम्प्यूटर, साइकोलॉजी और interdisciplinary ज्ञान-विज्ञान के सन्दर्भ में समझने लगें तो? कोड की भाषा, हर तरफ अपना नज़ारा दिखाती और सुनाती नजर आएगी? कैसे?
आपका नाम क्या है?
आपका जन्मदिन क्या है?
आप कहाँ पैदा हुए हैं?
कहाँ रहते हैं? पता क्या है?
आपके माँ बाप, भाई बहन, चाचा चाची, ताऊ ताई, दादा दादी, बुआ फूफा और ऐसे ही कितने रिश्ते और उनके बच्चों की यही सब डिटेल?
आपके इधर वाले पड़ौसी, उधर वाले पड़ौसी, सामने वाले, पीछे वाले, एक घर, दो घर, तीन घर, एक गली, दूसरी गली? आपका ये घर, वो घर? यहाँ का घर या वहाँ का घर? या शायद आपके माँ बाप भाई बहन का घर या प्लाट या खेत या कोई और जमीन?
उन घरों में बने हुए कमरे, रसोई, बाथरूम या लॉन? आगे वाला या पीछे वाला? इधर वाला या उधर वाला? उनमें रखा सामान? जीव या निर्जीव सब? उन सबके नाम, कंपनी का नाम, नंबर या कोड? ये सब मिलकर आपका सिस्टम बनता है। आपका माहौल। आपकी जिंदगी की खुशियाँ या गम? आपके रिश्तों का मधुर होना या कड़वा? आपकी बढ़ोतरी या नुकसान? आपका स्वास्थ्य या बिमारियाँ? ये interactions, इन सबसे जुडी हैं। क्या आप इन सबका हिसाब-किताब करके अपना फायदा या स्वास्थ्य बढ़ा सकते हैं? और अपना नुकसान या बिमारियों से मुक्ती पा सकते हैं? शायद हाँ और शायद ना?
निर्भर करता है की आपको इन सबकी जानकारी कितनी है? ये वो जानकारी है, जो आपको नहीं है और इसका कुछ न कुछ या बहुत बड़ा हिस्सा, तकरीबन सब राजनितिक पार्टियों, आपके मोबाइल और लैपटॉप की कंपनियों और उनमें छिपी बैठी कितनी ही सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों के पास है। क्यों? ये क्यों जानना बहुत अहम है। ये सब सामाजिक ताने-बाने को घड़ने में काम आता है। सामाजिक ताना-बाना, जिसमें सबकुछ आता है। स्वास्थ्य, बिमारियाँ, जन्म-मर्त्यु, आपके रिश्तों का मिठास या कड़वाहट, आपकी बढ़ोतरी या नुकसान। जितना ज्यादा इसे समझने की कोशिश करोगे, उतना ही ज्यादा आप राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा अपने शोषण को समझ पाओगे। आगे जानने की कोशिश करते हैं, कुछ-कुछ ऐसा ही।
Social Tales of Social Engineering
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