About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Friday, June 20, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 1

गुंडे माहौल में आप खिसकते जाते हैं। थोड़े इधर, थोड़े उधर और थोड़े उधर? किसने सिखाया, ये सब आपको? माहौल ने? संस्कारों ने? यही हैं हमारे समाज के सँस्कार? गुंडों से थोड़ा बचके रहो, बचके चलो। गुंडों को कोई और मिलेगा, उनका भी कोई बाप? तुम क्यों ऐसे लोगों के साथ अपना दिमाग और भेझा खराब करते हो? ज्यादा होता है, तो अड़ भी जाते हैं? भला कब तक सहन करे कोई? और कभी-कभी, कहीं न कहीं धरे भी जाते हैं? ऐसी-सी ही और कैसी, कैसी-सी कहानियाँ, यहाँ-वहाँ, न जाने कहाँ-कहाँ मिल जाती हैं? 

बच्चे हों, बड़े या बुजुर्ग, ऐसा कहीं न कहीं हर किसी के साथ होता है? अब उस हर किसी में, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ मिलता-जुलता भी है, शायद? कहीं थोड़ा कम, तो कहीं थोड़ा ज्यादा? जहाँ कहीं ज्यादा मिलता है, वहीं कुछ न कुछ भिड़ाने और बढ़ाने-चढाने की गुंजाईश होती है। जिन्हें सामान्तर घड़ाईयाँ बोलते हैं। शायद ये इस पर निर्भर करता है, की उस सामान्तर घड़ाई में आपकी पोजीशन क्या है? और शायद इसीलिए हिसाब-किताब, कंप्यूटर, साइकोलॉजी और आज का interdesciplinary ज्ञान, विज्ञान इस सबमें इतनी अहमियत रखता है? 

इस बीमारी का शक हुआ, तो ये बिमार इंसान आपके सामने? उस बिमारी का शक हुआ, तो वो? यहाँ जीने, मरने की बात हुई, तो ये इंसान सामने और वहाँ मरने जीने की बात हुई, तो वो इंसान सामने? यहाँ कोई फायदा हुआ, तो इनके फायदे के किस्से-कहानी? वहाँ कोई नुकसान हुआ, तो उसके नुकसान के किस्से-कहानी सामने। आप कोई भी विषय उठा लो, उसके तार कहीं न कहीं 

ऐसे मिलते-जुलते नजर आते हैं?


या ऐसे?   


या शायद ऐसे?

कौन-सी और कैसे वाली interactions में रहना पसंद करते हैं आप? 

और कभी-कभी, कैसे-कैसे लोगों से पाला पड़ जाता है? 
कहीं-कहीं तो ऐसे भी लगता होगा, की कैसे गुंडों के आसपास रहते हो तुम? क्या होगा ऐसे माहौल में ज़िंदगी का?
दोगले और हद दर्जे के हेराफेरी? अब जुबाँ इधर फिसली और अब जुबाँ उधर फिसली? और फिर गुल या ये हुए भगोड़े? जिनकी कोई ज़ुबाँ और स्टैंड ना हो। या शायद मुँह में राम-राम और बगल में छुरी?  

और कहीं-कहीं ऐसे भी लगता होगा शायद, हाँ, यहाँ सही है? दुनियाँ तो ऐसी भी है।   

कहीं सुलझे से और व्यवस्थित?
और कहीं? इतने मैस्सी, यूँ ही ना समझ आए, की ये तार किधर से आ रहा है और ये किधर जा रहा है? ये क्या बोल रहा है और ये क्या? ये अपनी जुबाँ बारबार क्यों बदल रहा है या रही है? गिरगिट के जैसे? 
दुनियाँ अजूबों का मेला?     

आप जैसे-जैसे लोगों के संपर्क में आते हो या रहते हो, चाहे आसपास ही, आपकी ज़िंदगी भी कुछ न कुछ, वैसे से ही किस्से-कहानी सुनाती नज़र आती है।  शायद इसीलिए जरुरी है, अपना माहौल अपने अनुसार चुनना? मगर, आम लोग कितना उसे चुन पाते हैं? बहुत से तो पूरी ज़िंदगी, किसी एक खास माहौल के हवाले होकर, उससे निकल ही नहीं पाते? निकलो उन माहौलों से और मौहल्लों से, जिन्हें आप पसंद तक नहीं करते।       

No comments: