Human Robotics
वो कौन से कारक या कारण हैं, जो आपको रोबॉट बनाते हैं? कैसे पता चले?
Experiential Learning (अनुभव से समझा जाना गया, ज्ञान और विज्ञान)
काफी कुछ Campus Crime Series से समझ आने लगा था। उसपे रोज-रोज के यहाँ-वहाँ के नुक्कड़-नौटंकियाँ देखकर या भुगतकर। गाँव ने तो जैसे आँखें ही नहीं खोली, बल्की, मानो दिमाग ही उधेड़ डाला। कौराना दौर तो ऐसा था जैसे आप फटना चाह रहे हों और बताना चाह रहे हों, जो मौतें हो रही थी, वो मौतें थी ही नहीं। लोगों को गुनहगारों के बारे में बताना चाह रहे हों, मगर खुलकर बोलने, लिखने पर पहरे हों, सत्ता के। So called disaster management वालों ने जैसे मुँह पर सील लगाने का काम किया हो। ऐसा करोगे तो? और खून करेंगे।
आपने एक घर को ही नहीं, बल्की, आसपास को ही ऐसे उथल-पुथल होते देखा था, जैसे वो खुद भी नहीं देख और समझ पा रहे थे। शायद, केस स्टडीज़ करते-करते कुछ मैं एक आम आदमी से ज्यादा समझने लगी थी। और कुछ मुझे ज्यादा बताया और समझाया जा रहा था। कहीं हकीकत के, तो कहीं फेक विडियो या आर्टिकल्स द्वारा। यहाँ वहाँ, जैसे हकीकत पर पर्दा डालने की कोशिशें। तो कहीं और वक़्त लेने की खवाहिशें, गुनाहों को और धुँधलाने के लिए। ये सब करने वालों को बचाने के लिए। बाहर निकलने की कोशिशों पर रुकावटें, धमकियाँ, डरावे, नौटंकियॉँ। सबकुछ छीन झपटकर, कुत्ते के जैसे टुकड़े डालना और उस पर अहसान भी लेने की कोशिशें।
शुक्र है की बिहार, UP, ओडिशा जैसे राज्यों से नहीं हूँ। नहीं तो इतनी बंदिशों और रुकावटों के बाद तो भूख प्यास से ही मर चुके होते। हालाँकि, करने वालों ने ऐसा हाल बनाने की कोशिशें बहुत की। ये मैंने क्यों लिखा की शुक्र है, बिहार, UP, ओडिशा जैसे राज्यों से नहीं हूँ। हूँ क्या? आप हैं? मगर दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, बंगलौर या पटना से भी नहीं हूँ। आप हैं?
Human Robotics में पहला अटैक पहचान भर्मित करने की कोशिशें ही होता है। जैसे, जैसे आप उसके जाल में उलझते जाते हैं, वैसे, वैसे मानव रोबॉट बनते जाते हैं और दूर, बहुत दूर बैठे लोग भी आपको और आपकी ज़िंदगी को रिमोट कंट्रोल करने लग जाते हैं। और ऐसे ही कितने ही प्रश्न, रोज-रोज यहाँ-वहाँ लोगों की ज़िंदगियों में धुँधलाने की कोशिशें करती हैं, ये राजनीतिक पार्टियाँ, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और मीडिया। आप कहाँ से हैं, ये तो बहुत दूर का प्र्शन है।
उससे पहले तो वो आपका नाम क्या है?
उसके शब्द क्या हैं?
आपकी जन्म तिथि क्या है?
आपके माँ बाप कौन हैं?
बहन, भाई कौन हैं?
चाचा, ताऊ, दादा, दादी, बुआ, मामा वैगरह या इनके बच्चे कौन हैं? क्या लगते हैं वो आपके? ये तक धुँधलाने की कोशिशें करती हैं ये राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी बड़ी कंपनियों के गठजोड़ या उनकी पढ़ी लिखी टीमें। और वो सब वो कहीं अद्रश्य रुप से या कहीं कहीं खुद आपसे नौटंकियाँ तक करवाकर करते हैं। इसे बोलते हैं, हकीकत को मिटाने की कोशिशें। और उसपर अपने घड़े किस्से कहानियों के जाले पूरने की कोशिशें। जहाँ जहाँ ये सफल होता है, वहाँ वहाँ रिश्तों के तोड़मरोड़, आपस के झगड़े, बिमारियाँ और मौतें तक होने लगती हैं।
ऑफिस में कहीं शास्त्री सर, और कहीं PK जयवाल, CS पुंडीर, श्याम मिश्रा, विनीता शुक्ला, पुष्पा मैम, मिनाक्षी विनीता हुडा, BK बहरा, विकास हुडा या विकास ढुल, सोनिया, वीरभान, राहुल ऋषि, युद्धवीर या फिर Batchmates या फ्रेंड्स या स्टूडेंट्स के नामों वाले ड्रामों के हेरफेर थे तो
गाँव आते ही ये दादा, वो दादा, ये दादी, वो दादी, ये ताई, वो ताई, ये चाची, वो चाची, ये बुआ, वो बुआ, ये फूफा, वो फूफा, ये बहन, वो बहन, ये भाई, वो भाई, ये भतीजा या भतीजी और वो भतीजा या भतीजी या भांजा या भांजी के नामों वाले ड्रामे शुरु हो गए। तुम्हारे साथ ये हुआ, तो उसके साथ वो हुआ। उसके साथ वो हुआ, तो तुम्हारे साथ ये हुआ, के किस्से कहानी ही जैसे ख़त्म होने का नाम ना ले रहे हों। हद तो ये, की कोई लड़की ऐसे बोले, जैसे, उसकी चाची या ताई या कोई बहन, उसकी चाची, ताई या बहन ना होकर, मानो सास या दुरानी, जेठानी या नन्द हों या कोई सौतन। ऐसे ही पुरुषों के केसों में। जैसे आप किसी पागलखाने में आ टपके हों।
लोगों के दिमागों में इन गुप्त राजनीतिक या ख़ुफ़िया तंत्र की ईधर या उधर की सुरँगों द्वारा, इतना गड़बड़ झाला कर देना ही झगड़ों, विवादों, बिमारियों और मौतों तक को बता रहे हों जैसे। ये सब घड़कर, वो आपसे ना सिर्फ आपकी पहचान धूमिल करते हैं, बल्की, आपके दिमागों पर अपनी ही तरह के जाले फैला कर, उनको दूर बैठे रिमोट कंट्रोल भी करते हैं। ऐसा करके वो आपकी ज़िंदगी का हर पहलू अपने अनुसार चलाते हैं।
इतना सब संभव कैसे है? आम लोगों तक का डाटा इकट्ठा कर, उनपे अपनी ही तरह की एल्गोरिथ्म्स और तरह-तरह के फॉर्मूले लगा कर। सोचो, कंपनियाँ या ख़ुफ़िया तंत्र करोड़ों, अरबों, सिर्फ लोगों को रिकॉर्ड करने या डाटा इक्कठ्ठा करने में क्यों लगाएँगे? वो भी आम लोगों को? इससे उन्हें क्या फायदा? काफी कुछ आपकी अपनी IDs के साथ जोड़कर और उन्हें सिस्टम से लिंक करके ऑटोमेशन पे रख दिया जाता है। ये सब होता तो लोगों की भलाई के नाम पर है। मगर, इससे कितना आम लोगों का भला या बुरा होता है, ये प्र्शन अहम है। उसके साथ-साथ सेमीऑटोमैटिक और enforcement का काम, ये पार्टियों की शाखाएँ और गुप्त सुरँगे करती हैं।
कितना और कैसे-कैसे बचा जा सकता है, इस सबके दुस्प्रभाव से? जितना ज्यादा इस सबके बारे में जानकारी होगी, उतना ही ज्यादा आप सचेत होंगे। और उतना ही ज्यादा इन सबके दुस्प्रभावों से बच पाएँगे। तो कोशिश करते हैं आगे पोस्ट्स में इस गुप्त सिस्टम या तंत्र और सिर्फ रोबॉटिक्स नहीं, बल्की, मानव रोबॉटिक्स के बारे में जानने समझने की।
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