इस साल थोड़ा बहुत जो नया सा सीखने, समझने को मिला, वो रौचक रहा। ये नया, पिछले साल इलेक्शन के दौरान, राहुल कवँल के एक इलेक्शन रिजल्ट वाले दिन के एक खास प्रोग्राम के बाद शुरु हुआ। जब मोदी की सीट, BJP की बोलना चाहिए, 240 पर अटक गई? उसके बाद राहुल कवँल को किसी और चैनल में भी देखा और उस चैनल की कुछ खास टीम को भी। और मैं जाने क्यों VY Travelogue के अपने किसी फोल्डर में पहुँच गई, जिसमें यहाँ वहाँ के ट्रेवल की फोटो या विडियो हैं। और ऐसा लगा, ये तो सच में Time Machine जैसा सा नहीं है? और यहीं से शुरु हुआ, ढेर सारे प्रशनों के साथ, VY-Travelogue? A Time Machine?
कहीं ऐसा सा कुछ भी पढ़ने को मिला, की उलझ रहे हो, घर से निकल जैसे दुश्मनों के बाड़े में। दुश्मनों के बाड़े में? ये क्या है? ये शायद एक खास तरह का zoo है। जैसे वनतारा? या जैसे एक्सपेरिमेंटल कोई भी animal house? वैसे Green House भी हो सकता है? या शायद कोई माइक्रोब्स लैब भी? और शायद किसी तरह की एक्सपेरीमैन्टल जेल भी? खैर। मीडिया वालों ने मीडिया में थोड़ा और रुची को बढ़ा दिया। उसमें तड़के लगे कुछ नेताओं के खास प्रोग्रामों से।
जैसे?
Earlier education minister, Delhi
मनीष जी अच्छा काम कर रहे हैं शायद?
Mic? Voice? Teacher?
Arunachal Pradesh and Manish Sisodia on education?
वैसे हरियाना का या फ़िलहाल दिल्ली का शिक्षा मंत्री कौन है?
ढूंढो, शायद गूगल से पता चल जाए?
वैसे ये समझ नहीं आया, की मनीष सिसोदिआ को अरुणाचल में ही ऐसा क्या खास नज़र आया? ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे नज़ारे तो आसपास के ही कई राज्यों से भी मिल जाएँगे शायद? जो नेता लोग शिक्षा की बात करते हैं, क्या वो सच में ही शिक्षा की बात करते हैं या इलेक्शन के घपलों की तरह, उनमें भी घपले ही होते हैं या कहें की सिर्फ और सिर्फ राजनीती ही होती है?
ऐसे ही, प्रशांत किशोर के बिहार के वादों के बारे में हो सकता है? उनका बिहार के लिए शिक्षा और खासकर, स्कूलों के लिए नजरिया? अजीबोगरीब सिस्टम में, अजीबोगरीब तरीकों से राजनीती? मुझे समझ नहीं आता, की ये राजनीती इतनी कोढ़ी ना होकर, सीधे-सीधे क्यों नहीं हो सकती? जैसा की सीधा-सीधा किसी भी संविधान में लिखा होता है। इसके जवाब में कोई पोडकास्ट, कोई विडियो, कोई इंटरव्यू या कोई खास तरह का प्रोग्राम मिलेगा कहीं? हो सकता है, की आगे की पोस्ट वही हो।
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