Tuesday, October 21, 2025

Modern Warfare, Pros and Cons 6

संभानाओं का खेल


संभानाओं का खेल है राजनीती 

और जीवन भी। 

इसीलिए, दुनियाँ जहाँ का हिसाब-किताब 

डाटा पर आकर जैसे ठहर-सा जाता है 

इसीलिए,

दुनियाँ जहाँ की कुर्सियों की लड़ाई 

बाजार की ताकतों की लड़ाई

डाटा के इर्द-गिर्द मँडराती नज़र आती है। 

आप और आपके आसपास का सबकुछ 

आपके सिस्टम का डाटा है। 


यही डाटा और सिस्टम 

आपकी ज़िंदगी बनाता या बिगाड़ता है। 

राजनीती और टेक्नोलॉजी (बड़ी-बड़ी कंपनियाँ)

इसी डाटा पे खेलती हैं। 

इसी डाटा में हेरफेर कर 

इसे जहाँ तक हो सके 

अपने अनुसार ढालती हैं।  

AI और डाटा उन संभानाओं की पूर्ति का 

बड़ा ही डैडली गठजोड़ है। 

जिसमें भावनाएँ शून्य हो जाती हैं 

और इंसान, मात्र मशीन जैसे। 


मगर, डाटा से आगे 

हिसाब-किताब से आगे 

एक और जहाँ भी है 

जो इस डाटा को मात देता नजर आता है। 

गूढ़ पहेली-सा 

विश्वास, श्रद्धा पर टिका-सा नजर आता है 

जहाँ, रिश्ते-नाते टिके नजर आते हैं 

जहाँ, हिसाब-किताब फेल होते नजर आते हैं 

जहाँ, एक दूसरे के लिए लोगबाग 

ना जाने क्या कुछ त्याग करते नजर आते हैं। 


उन्हें ना राजनीती, न कुर्सियों या पदों का लालच  

और ना ही बाजार की रौनक डिगा पाती है   

संभानाओं का खेल तो वहाँ भी है 

मगर, बड़ा ही नपा-तुला सा होते हुए भी 

हिसाब-किताब के फॉर्मूलों को जैसे मात देता-सा। 


मानो कहता नज़र आता हो 

ठहर, कुछ देर तो और ठहर 

रुक, ज़रा-सा और रुक

कहीं कुछ भागा नहीं जा रहा 

कोई ट्रेन या प्लेन नहीं निकला जा रहा 

दुर्घटना से? देर भली। 


देख समझ तो भला, 

की आखिर तुझे परोसा क्या जा रहा है? 

कहीं ईधर-उधर करके सबको,

फिरसे, 

पुरे घर की सफाई का अभियान तो नहीं है?

जो बड़ी मुश्किल से जैसे, थोड़ा बहुत थमा-सा है।   


क्यूँकि,

राजनीती और टेक्नोलॉजी के हेरफेर का सँसार 

भावनाओं पर और भी भयँकर तरीके के फॉर्मूले गढ़ता है 

गुप्त तंत्र ही कहीं के भी 

भगवान, भगवानी, देवी, देवता, शुभ, अशुभ 

त्यौहार और मुहूर्त ही नहीं, 

बल्की, श्राद्ध और मर्त लोगों को जलाने 

या दबाने जैसे रीती-रिवाज़ तक घडता है। 

और अपनी-अपनी राजनीती की जरुरतों के 

हिसाब किताब-सा 

वक़्त, वक़्त पर उनमें हेरफेर भी करता रहता है।  

No comments: