जाने क्यों ये विडियो बार-बार मेरे यूट्यूब पर आ रहे हैं? कह रहे हों जैसे, सुनो हमें?
जाने क्यों लगा, की ये तो रौचक हैं
प्रशांत चौधरी Vs अशोक चौधरी
बिहार की राजनीती और इलेक्शंस?
और?
आरोप, प्रत्यारोप और हकीकत?
कोई जाना पहचाना सा नाम, और लगे किस्सा कहानी भी जैसे एक जैसा सा है? अब है या नहीं, ये वाद विवाद का विषय हो सकता है। क्यूँकि, अब तक जो ऐसे-ऐसे केसों से समझ आया, वो ये, की हर केस अलग है। लोगबाग, उनके हालात और औकात का भी अक्सर काफी फर्क मिलता है और कभी-कभी तो केस बहुत ही hyped, manipulated और twisted भी लगते है। शायद इसीलिए, वो सामान्तर घड़ाई जैसे हैं। पता नहीं इस तरह के विडियो टार्गेटेड आपके यूट्यूब पर मिलते हैं या लोगों को लगता है की वो शायद कोई सहायता कर सकते हैं? और शायद ऐसे मैं उनका अपना भी कोई हित निहित हो? और हो सकता है, ये सिर्फ एल्गोरिथ्म्स का धमाल हो? क्यूँकि, ऐसा सा कुछ मेरे ब्लॉग पर एक अलग सीरीज करके पोस्ट हुआ है।
"जमीनखोरों का जमीनी धँधा, राजनीती और शिक्षा के नाम पर"
https://zameenkhoronkezameenidhandhe.blogspot.com/
इससे सम्बंधित अब तक कई विडियो देख चुकी। उसका निचोड़ जो मुझे समझ आया
अशोक चौधरी ने 2021 से 2023 या 24 (?) तक कुछ प्रॉपर्टी खरीदी। ज्यादातर किसी ट्रस्ट के नाम पर। वो ट्रस्ट जिसने इतने सालों में कोई खास प्रॉपर्टी नहीं खरीदी हुई, अचानक से इतनी प्रॉपर्टी 2-3 सालों में ही खरीद ली? कैसे? इतना पैसा कहाँ से आया?
ट्रस्ट का ज्यादातर पैसा हर साल कहीं न कहीं लगाना होता है। आप उसे इकठ्ठा करके नहीं बैठ सकते। अगर ऐसा करोगे, तो टैक्स रिटर्न्स में दिखाना होगा। अगर टैक्स रिटर्न्स में नहीं दिखा रहे, इसका साफ़ मतलब छुपा रहे हो। अब ट्रस्ट क्यूँकि कई लोगों के नाम होता है, तो ऐसे घपले की संभावना ज्यादा रहती है?
ऐसे घपलों को रोकने का एकमात्र उपाय कोई भी या किसी भी तरह का ट्रस्ट हो, वो अपनी प्रॉपर्टी की सारी जानकारी अपने पोर्टल पर उपलभ्ध कराए। अगर किसी को वहाँ जानकारी न मिले, तो कोई भी ऐसी जानकारी उस ट्रस्ट से माँग सकता है। और RTI के तहत उन्हें उपलब्ध करानी पड़ेगी। तो बहुत से घपले तो यहीं ख़त्म हो जाते हैं।
ऐसे घपले विवाद कब बनते हैं? जब मेरे जैसा कोई ऐसे किसी घपले को जनता के सामने रखता है और ऐसा कोई हिसाब-किताब माँगने लगता है। और जिसे ये हिसाब-किताब बिना माँगे देना चाहिए, वो या तो दादागिरी दिखाने लगता है या बचकर भागने लगता है। स्कूल जैसे ट्रस्टों के हाल ये हैं की वो जिनकी कमाई का खाते हैं (अध्यापक), उन्हीं को निचोड़ देते हैं और खुद धन्ना सेठ बन जाते हैं। अध्यापक, एक घर बनाने को तरस जाता है और ये धन्ना सेठ? करोड़ों अरबों के मालिक? यही नहीं, ऐसे जानकारी माँगने वाले लोगों को, ये धन्ना सेठ हद दर्जे के गिरे हुए स्तर तक टारगेट भी करते हैं। कहीं-कहीं तो लोग अपनी जान तक गवाँ देते हैं। जैसे भाभी के केस में हुआ। हाँ। आज के दौर में रिसोर्सेज वाले लोगबाग मार ऐसे करते हैं की मारता कोई है और नाम कहीं और अपनों पे ही गढ़ने की कोशिशें होती हैं।
मगर कैसे? सरकारों या राजनितिक पार्टियों की मिलीभगत के बगैर ये संभव है क्या? जानते हैं आगे
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