Rhythms of Life
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- VY Dangi
- Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.
Monday, November 18, 2024
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 91
Saturday, November 16, 2024
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 90
टमाटर हटा दो।
हटा दिए। सब गए डस्टबिन।
फिर कोई आवाज़ आई जैसे, अरे रुको। क्या पता ?????? बचा लो कुछ एक।
और आपने कुछ एक छोड़ दिए। बाकी चलते कर दिए, डस्टबिन की राह। कहीं एक ही गमले में कई-कई थे। तो कहीं एक ही गमले में कई तरह के पौधे एक साथ। जैसे हरे वाली तुलसी, जामुन और एक टमाटर का पौधा। तो कहीं मरवा, तुलसी और टमाटर। मिक्स वाले टमाटर के पौधे चलते कर दिए। मगर जिन गमलों में सिर्फ टमाटर थे, वहाँ कुछ और भी बीज बो दिए। जैसे मेथी, पालक, बड़े गमलों में खासकर । मगर एक अभी भी सिर्फ टमाटर वाला गमला भी है। नहीं, इसमें भी कुछ और भी उग आया है? जिस दिन हरी तुलसी वाले गमले वाला टमाटर का पौधा चलता किया, उस दिन?
सच में? हरी (?) तुलसी आ गई, अमेरिका में?
कुछ-कुछ ऐसे? जैसे हरियाणा में Vidhanshabha ( या Vidhan Sauda?) की ये कुर्सी है?
Thursday, November 14, 2024
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 89
टमाटर और तुलसी ( अदला-बदली?)
टमाटर 6 में खरीद के, 2.50 में बेचोगे?
?????
क्यों खरीदना और क्यों बेचना? टमाटर हटाओ, तुलसी के लिए जगह बनाओ।
और लो जी, तुलसी हाज़िर हैं?
तुलसी या Basil या ?
अगर भारत में तुलसी का जन्मदिन 25 दिसंबर (?) को हुआ?
तो अमेरिका में कब हुआ होगा?
बोले तो कुछ भी फेंकम फेंक? ये राजनीती में ईधर से उधर कितना होता है ना?
:)
टेस्ला या संतरो?
तसला कहाँ गया?
गया? या गई? टेस्ला तो आपने ही नहीं बेच दी? और फिर ध्यान आया, टेस्ला या संतरो? भारत की संतरो को ही तो अमेरिका वाले टेस्ला नहीं कहते?
बोले तो कुछ भी फेंकम फेंक? :)
अर एक लाइट बाहर जले सै
ये लाइट नहीं है क्या? बाहर की लाइट गुल है।
लाइट तो है। इस बल्ब के साथ दिक्कत है।
मास्को ते ब्लिंकिंग सीख ग्या लागे सै यो भी।
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 88
Tuesday, November 12, 2024
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 87
Monday, November 11, 2024
जो चाहते हो ज़िंदगी सरल और आसान
नंबरों से, स्टीकरों से,
राजनीती से दूर भी एक जहाँ है
और वो जहाँ खुबसुरत है।
वो इंसान को इंसान के रुप में पहचानता है
उसे उसके नाम से जानता है
ना की उसके पिछे छिपे किसी कोड से
किसी राजनीतिक नंबर से।
शायद यहाँ आप लोगों को तब से जानते हैं
जब ना किसी ऐसी राजनीती की खबर थी
और ना ही ऐसे किन्हीं राजनीतिक नंबरों की
या कोड़ों में बटे सिस्टम के कोढ़ की।
यहाँ मतभेद भी हो सकते हैं
संवाद ही नहीं, बल्की, वाद-विवाद भी
मगर एक दूसरे का बूरा चाहने वाले नहीं।
जो चाहते हो ज़िंदगी सरल और आसान
तो ऐसे से कुछ लोगों को साथ रखिए
पढ़िये, देखिए, सुनिये या याद रखिए
ज़िंदगी कैसी भी मुसीबत से पार निकल
सजती-संवरती और आगे बढ़ती जाएगी।
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 86
तुझे ये भंडोला कैसे पसंद आया? तेरे आसपास तो और बेहतर से ऑफर हुआ करते थे, सुना है।
ये सालों बाद, सिर्फ कहीं ऑनलाइन सुनने या पढ़ने को नहीं मिला, बल्की, तभी से चला आ रहा है। अब किसको क्या पसंद आता है और क्या नहीं और क्यों? इसका सिर्फ किसी के शरीर की बनावट से या रंग-रुप से या हाव-भाव से, या पढ़ाई-लिखाई से या परिवेश से या शायद इनसे आगे भी बहुत से फैक्टर्स से लेना-देना हो सकता है?
हाँ, जहाँ एक्सपेरिमेंट्स हों, वहाँ तो एक्सपेरिमेंट्स करने वालों के, अपने ही किस्म के, कितनी ही तरह के तथ्य हो सकते हैं? ऐसे लोगों बीच और स्टीकरों वालों के बीच फँसना, जैसे ज़िंदगी बर्बाद करना। बस, शायद ऐसा ही कुछ हुआ यहाँ? सुना है दो तरह के इंसान और दो ही तरह के खाने हैं दुनियाँ में?
Food for Thought
Sunday, November 10, 2024
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 85
Thorns and Fools or Flowers?
Blacks and Whites?
Confusion and Realities?
Love and Hate?
If you cannot convince then confuse?
इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी एमर्जेन्सी?
आपकी नशबंदी कर दी। लो ये हरियाली ओढ़ लो या पहन लो? और जनसँख्या कंट्रोल के नाम पर गरीब लोगों का या परिवार के परिवारों का खात्मा? उनके अपनों या आसपास वालों को ही साथ में लेकर?
नशबंदी से खात्मा हो जाता है क्या?
हाँ। अगर आपको बच्चा गोद लेना या और कोई तरीके पता ना हों तो परिवार के मतलब के नाम पर या कोई ठीक-ठाक ज़िंदगी के नाम पर? या शायद ये राजदरबारी साम्राज्यवादी समझ से आगे, इंसान की ज़िंदगी के और कोई मायने ही ना हों?
सुना है की आज भी साम्राज्यवाद मधुमख्खी के छत्ते वाले कॉन्सेप्ट पर आगे बढ़ता है? इंसानी मधुमख्खियोँ के छत्ते? जहाँ एक रानी होती है और बाकी सब उसके सेवक और सेविकाएँ? क्या हो यही सब अगर आम से लोगों के दिमाग में भी घुसेड़ने की कोशिश की जाए? बाकी सब बहन, भाइयों का सफाया कॉन्सेप्ट? सुना है यहाँ-वहाँ सालों, दशकों या सदियों से गुप्त रुप से थोंपा हुआ आज तक चल रहा है? हकीकत तो जानकार ज्यादा जाने।
या अमेरिकन ट्रम्प और कमला हर्रिस लड़ाई (गोरा-काला)?
घने गोरे बणे हॉन्डें सैं। गोरे भगा क आड़े हिडम्बा धर दो। बावली-बूच सैं। सालें क समझ थोड़े-ए आवेगा, अक नाश कितनी ढाला ठाया जा सके सै। उन गौबर पाथन आलें न पकड़ों, वें बढ़िया करवावेंगे यो साँग भी, और वो साँग भी।
सिर्फ संसाधनों पर कब्ज़ा नहीं, बल्की एसिड अटैक से भी आगे बढ़कर तोड़फोड़?
इसका जवाब आपको भी शायद यही मिलेगा की राजनीती में या किसी भी समाज में, जिस किसी विषय, वस्तु का ज्यादा दिखावा हो रहा हो। मान के चलो हकीकत उसके विपरीत ही मिलेगी। जैसे कन्याओं या देवियों को पूजने वाला समाज या राजनीतिक पार्टी? गाएँ बचाओ, अरे नहीं, बेटी बचाओ वाले पोस्टर्स लगाने वाले, या गाने, गाने वाले लोग? या चीनी, गुड़-शक्कर से मीठे लोग? अब सबको तो एक लाठी से नहीं हाँका जा सकता, मगर, ज्यादातर ऐसे समाज के हाल कुछ-कुछ ऐसे ही मिलेंगे? जो वो गाते, सुनाते या दिखाते हैं, उसके विपरीत?
ऐसा भी नहीं है की ये सिर्फ किसी एक के साथ या किसी एक ही परिवार के साथ हो रहा हो। मगर करने के तरीके इतने खतरनाक हैं की आपको खुद से प्रश्न करने पड़ जाएँ, आप कौन हैं? और कब से? और कैसे?
आप कौन हैं? कब से? और कैसे?
ये प्रश्न किसी को खुद से ही क्यों करने पड़ें?
आप शायद उस माहौल में पले-बढ़े हैं, जहाँ दोस्त बनाते वक़्त या खाना खाते वक़्त या किसी से भी कोई काम करवाते वक़्त आपने कभी सोचा ही नहीं की उसकी जाति क्या है? धर्म क्या है? मजहब क्या है? दिखता या दिखती कैसी है? सबसे बड़ी बात, इन्हीं बातों पर कई बार कुछ घर या आसपास के बड़ों तक से बहस तक हुई हैं। फिर अब क्या हुआ? ऐसा क्यों?
लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब से किसी पर या किसी परिवार पर कुछ जबरदस्ती थोंपना या थोंपने की कोशिश करना, उस पर इलज़ाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करना या अपने कीचड़ से भेझे के स्टीकर चिपकाने की कोशिश करना? तो अंजाम क्या होगा? या वापस किस तरह के प्रसाद की उम्मीद करते हैं आप?
लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब में ये जाति, धर्म, काला या गोरा कहाँ से आ गया? या कैसे वाद-विवाद का विषय हो गया?
ये शायद कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे कहना, की किसी को लाइट या गहरे रंग ही पसंद क्यों है? तड़क-भड़क क्यों नहीं? बच्चों से रंग पसंद क्यों हैं? बुजर्गों वाले क्यों नहीं? और भी कितने ही ऐसे से विषय, या पसंद ना पसंद हो सकती हैं। हालाँकि, इन सबको भी बदला जा सकता है। या कहना चाहिए की बदला जा रहा है, यहाँ-वहाँ। कैसे? सर्विलांस एब्यूज और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी के दुरुपयोग से। वो भी ऐसे, की सामने वाले को समझ ही ना आए की हो क्या रहा है और कैसे। बाजारवाद की बहुत बड़ी वजह है ये। कम्पनियाँ अपने गंदे से गंदे उत्पाद तक बेचने के लिए इस सबका प्रयोग कहो या दुरुपयोग करती हैं। एक छोटा-सा उदहारण लें?
चलो अगली पोस्ट में।
Saturday, November 9, 2024
संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 84
मान लो कहीं कोई आत्महत्या हुई हो और कहीं किसी आर्टिकल में कुछ-कुछ ऐसा पढ़ने को मिले, 70% कृत्रिम (synthetic) और 30% मारा-मारी (enforced)।
भला ऐसे पर्सेंटेज कैसे निकाली जा सकती है? वो भी किसी आत्महत्या या मौत के केस में? शायद ठीक ऐसे ही, जैसे, बिमारियों के कारणों या कारकों की? जब बिमारियों की बात होती है तो पहला प्र्शन होता है की समस्या क्या है? उसके बाद आता है समस्या आँखों से दिखाई दे रही है, जैसे चोट या सिर्फ अनुभव हो रही है, जैसे कोई भी दर्द? दिखाई दे रही है तो समाधान थोड़ा आसान हो जाता है? और दिखाई नहीं दे रही तो उसके पीछे कारण क्या हो सकते हैं? वैसे तो जो दिखाई दे रहा हो, कारण या कारक उसके पीछे भी अक्सर छुपे हुए ही होते हैं और जानने जरुरी होते हैं। बहुत-सी बिमारियों के पीछे एक जैसे से ही कारण होते हैं। बहुत बार तो सिर्फ आपके आसपास के वातावरण या माहौल को जानकार ही बताया जा सकता है की क्या हो सकता है।
माहौल क्या है? के बारे में जानना और आपके बारे में जानना या किसी भी तरह की बीमारी के बारे में जानना ही, ईलाज को काफी आसान बना देता है। आप किसी भी समस्या के बारे में जितना जानते हैं, उसका समाधान भी उतना ही आसान हो जाता है। ऐसे ही, अगर किसी गलत मंशा वाले इंसान को आपके बारे में जितना पता होता है, उतना ही आसान आपको नुकसान पहुँचाना या ख़त्म करना हो जाता है। राजनीती अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है। जितनी ज्यादा मारकाट राजनैतिक कुर्सियों को लेकर होगी, उतना ही ज्यादा उसका असर वहाँ के समाज पर होगा। राजनीती में अगर पैसे से कुर्सियों की खरीद-परोख्त होगी, तो ऐसी राजनीती इंसानों तक को खरीद-परोख्त करने योग्य वस्तु बनाकर छोड़ देगी।
खरीद-परोख्त से भी आगे क्या है?
मान लो दो सेनाएँ हैं। और दोनों के पास सँसाधन हैं। ऐसे ससांधन, जिनके दम पर वो मनचाहा माहौल घड़ सकते हैं। मनचाहा माहौल घड़ना? और मनचाहे रोबॉट बनाना? क्या सच में इतना आसान है? लैब में तो है?
मगर लैब का साइज अगर 7-करोड़ के पार हो तो? 7-करोड़ तो इंसान हैं सिर्फ। उनसे कहीं ज्यादा जनसंख्याँ दूसरे जीवों की है। और फिर निर्जीव भी तो चाहिएँ, माहौल घड़ने के लिए। क्यूँकि, कोई भी लैब सिर्फ experimental material से नहीं बनती। जिस पर अनुसंधान करना है, या जिनको अपने अनुसार चलाना है, उनके लिए सिस्टम तो थ्योरी के अनुसार घड़ना पड़ेगा। Stackable and Movable Units? बड़े साइज या नंबर को छोटे-छोटे सिस्टम में बाँट कर, ऐसा संभव हो पा रहा है। चलते-फिरते इंसान, या चलते-फिरते मानव रोबॉट? छोटी-छोटी सी कोलोनियाँ या गाँव या मौहल्ले, ये सब जानने, समझने और सच में आँखों के सामने होते देखने के लिए सही हैं।
तो 70% पर जो हुआ वो आत्महत्या थी क्या? ठीक ऐसे ही जैसे, और कितनी ही मौतें ?