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Sunday, November 3, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 81

Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Political Enforcements? Cult Politics? 

10-15 दिन में पानी आता है? 

कहाँ से? 

हर रोज पानी आता है? 

कहाँ से?    

साफ आता है या गन्दा आता है?

पीने या प्रयोग करने लायक है?

पीने का पानी आप कहाँ से लाते हैं? 

कहीं से हैंडपंप का लाते हैं या पानी वाला टैंकर आता है? अब पीने के पानी के भी अलग-अलग लोगों के टैंकर हैं और अलग-अलग जगह से आते हैं। वैसे ही जैसे, पानी की बोतलें अलग-अलग ब्रांड की? या घर में ही कोई वाटर प्यूरीफायर लगाया हुआ है? किस कंपनी का? ये सब किसी भी जगह पर लागू होता है। वो गाँव हो या शहर? ये राज्य हो या दूसरा राज्य? ये देश या कोई और देश?     

आपके यहाँ कैसा पानी आता है और कैसा नहीं, भला उसका कहीं की भी सरकार या राजनीती से क्या लेना-देना? या होता है? ये काम तो सरकार की बजाय प्राइवेट कंपनियों का होता होगा ना? या शायद खुद आपका? या अड़ोस-पड़ोस का? पब्लिक या प्राइवेट सुविधा है या नहीं, भला उससे पानी का क्या लेना देना?   

आपके बच्चे पानी कहाँ का पीते हैं? या प्रयोग करने के लिए पानी कहाँ से लाते हैं? पड़ोसिओं के यहाँ से? या शायद अपना इंतजाम खुद करते हैं? इसमें भला राजनीती का क्या लेना-देना? क्या हो अगर पता चले की किसी या किन्हीं घरों में ऐसा कुछ उस घर वाले नहीं, बल्की, बाहर वाले या राजनीती कंट्रोल कर रही है? आप कहेंगे की ऐसा कैसे संभव है? गुप्त-गुप्त जहाँ? उसके गुप्त-गुप्त कोड? राजनीती के एनफोर्समेंट के गुप्त-गुप्त छिपे हुए तरीके? चलो यहाँ तक आपको शायद समझ आ गया की घर की घर में भी जूत या कम से कम फूट डालने के भी कितने ही तरीके हो सकते हैं?    

जिन्हें अभी तक भी समझ नहीं आया। शायद थोड़ा और आगे चलें?

पीछे एक पोस्ट लिखी थी, "शशी थरुर को VALVE Closure पसंद है, System Closure नहीं?" 

अरे नहीं, ऐसे नहीं कहा शशी थरुर ने। ये तो थोड़ा जोड़-तोड़ हो गया?

Closure मतलब किसी चीज़ का अंत? समाधान नहीं? अब Closure भी कितनी ही तरह के हो सकते हैं?

Valve Closure?

Nerve Closure?

Oxygen nonavailability?

या शायद System Closure?

जैसे, आपकी हर बातचीत (जैसे हर पोस्ट, या लेक्चर या कुछ और ऐसा ही), एक अलग ही तरह का कुछ विचार या व्यवहार या ascending या descending आर्डर-सा कुछ देती नजर आ रही हो? तो क्या वो कोई समाधान दे रही है किसी समस्या का? या एक कोड सिस्टम से उपजी हुई बेवजह की आम आदमी की रोज-रोज की समस्यायों को बता रही है? और इन कोड वाले कोढ़-सी समस्याओं में ही समाधान भी छिपा है, ये भी बता रही है? अब ये समाधान कितना आसान या कितना मुश्किल है? ये शायद इस पर निर्भर करता है की आप समाधान चाहते हैं या समस्या को यूँ का यूँ बनाए रखना? तो क्या ऐसे ही खाने-पीने के कोड समझकर भी कुछ बिमारियाँ या मौतें तक रोकी जा सकती हैं?                     

निर्भर करता है आप कौन हैं? और उससे आपको क्या फायदा होगा? किन्हीं का फूट डालो राज करो-सा अभियान और किन्हीं की खामखा-सी समस्याएँ शायद?  

कुछ-कुछ ऐसे जैसे, किसी घर में पानी का एक ही पाइप हो वाटर सप्लाई का और वो भी गन्दा सा 10-15 दिन में आता हो? कोई सालों बाद आया हो और उसे पता ना हो की यहाँ पानी सप्लाई के ये हाल क्यों हैं? पहले तो ऐसे ना थे। बताया जाए, ऐसे ही है यहाँ तो। सब इसी से काम चलाते हैं। काफी वक़्त परेशान होने के बाद कहीं पढ़ने को मिले, पानी तो और भी है जो रोज आता है। मगर, तुमसे छुपाया हुआ है और यहाँ उसका वाल्व क्लोज है। तुम्हारे इस या उस अड़ोस-पड़ोस में भी वही आता है। वो नहीं चाहते वो यहाँ आए।  

और आप कहें किसी और के चाहने या ना चाहने से क्या फर्क पड़ता है? वाल्व ही तो है, तो खुल जाएगा। उसमें क्या लगता है? 

पैसे देने पड़ेंगे। वो प्राइवेट है। 

हाँ, तो इतने से पैसे में क्या जाता है? 

और आपको ऐसे कैसे खुल जाएगा, जैसे कारनामे देखने को मिलें फिर?   

क्या कहेंगे इसे? राजनीती? बेवकूफ लोग? अपनी ही समस्याओँ और जान के दुश्मन खुद? या?    

आगे पोस्ट में और भी ऐसे-से ही बेवकूफ से कारनामे पढ़ने को मिलेंगे। और ऐसी-सी ही छोटी-मोटी समस्याओँ की वजह से बीमारियाँ तक।    

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 80

T-point मतलब डेढ़? One and Half? या? और भी कितना कुछ हो सकता है?  

जहाँ आप खड़े हैं, वहाँ पीछे की तरफ बैक है। आगे की तरफ सीधा रस्ता जाता है। कहाँ? ये आपको देखना है। आजू-बाजू? आधे-से इधर हैं? और आधे-से उधर हैं? मतलब, आपको 50-50 कर दिया गया है? नहीं, ये भी हो सकता है की ये भी दो रस्ते हैं। चाहें तो ईधर का रुख भी कर सकते हैं। और चाहें तो उधर का भी। नहीं तो, बीच से सीधा-सा रस्ता तो है ही। फिर वो आपको कहीं भी ले जाए? वैसे तो ऐसे भी सोच सकते हैं की आप वहाँ हैं ही क्यों? अगर वो दिशाएँ या रस्ते पसंद नहीं, तो कहीं और खिसक लें।  

या मान लो, आपके पास चार दिशाओं में से तीन दिशाओं के रस्ते तो हैं ही? इससे ज्यादा चाहिएँ तो घुमफिर के मिल वो भी जाएँगे। एक शब्द या विषय को कितना भी घसीटा जा सकता है। नहीं?

जिन दिनों मैं H#30, Type-4 रहती थी, उन दिनों इधर-उधर, जाने किधर से 2-3 बार ऐसा सुनने को मिला, की आपका घर T-पॉइंट पर है। T-पॉइंट पर घर अच्छा नहीं होता। मुझे, ऐसे-वैसे फालतू-से, बिन माँगे सलाह जैसे शब्द लगते थे। क्या आ जाते हैं, खामखाँ दिमाग में कुछ भी उल्टा-पुल्टा घुसेड़ने? हालाँकि, उस घर के वक़्त की महाभारत, थोड़ी भयंकर-सी ही थी। मगर, मुझे उसकी लोकेशन बड़ी मस्त लगती थी। उस घर को लेने की वजह ही लोकेशन थी। नहीं तो एक और चॉइस भी थी H#13, टाइप 9J । H#30, Type-4 के पीछे Rose-Garden था। किसी भी सुबह-श्याम घुमने के शौकीन (Walk) इंसान के लिए, इससे बढ़िया जगह क्या होगी भला? उसपे Nature-Lover, और छत से पीछे देखो तो एक दम हरा-भरा, साफ-सुथरा। वैसे तो यूनिवर्सिटी में हर जगह ही हरा-भरा होता है। मगर यहाँ क्यूँकि मकान भी थोड़े बड़े थे, तो हरियाली और स्पेस हर जगह ठीक-ठाक ही था। ज्यादातर मेरी सुबह की चाय उसी तरफ वाले मेरे बैड रुम की तरफ आगे की छत पर बैठ कर होती थी। जब यूनिवर्सिटी छोड़ा, तो गाँव में भी कुछ-कुछ ऐसी-सी ही, छुटियों के लिए लिखाई-पढ़ाई की अपनी जगह बनाने का मन था या कहो अभी तक है। बिमारियों और मौतों की खास जानकारी की वजह से भी, एक तरह का अपना ही छोटा-सा फील्ड ऑफिस और छुटियों में रुकने की जगह बनाने का मन। उसका बनते-बनते क्या हुआ, वो अलग ही खुँखार-सी कहानी है। और चालबाज़ों द्वारा मुझे रोक दिया गया, इस खँडहर तक। इसे बोलते हैं, जमीन, पैसा, आदमी, नौकरी और ठीक-ठाक ज़िंदगी, सब पर अटैक जैसे।   

वो H#13, टाइप- 9J किसे मिला? मेरे अपने ही इंस्टिट्यूट के डॉ राजेश लाठर को। हालाँकि, बाद में उन्होंने भी छोड़ दिया शायद, और कोई और मकान ले लिया? जब इन दो मकानों की चॉइस थी तो मैं दोनों को ही देखने गई थी। वैसे तो वजह लोकेशन खास थी। मगर, H#13, टाइप- 9J की कहानी भी थोड़ी अजीब। मुझे बताया गया की उसमें कैंपस स्कूल में रहने वाली कोई मैडम आत्महत्या कर गई थी और तब से ही वो मकान खाली पड़ा है। हालाँकि, ये मकान भी खाली था पिछले कई साल से। प्रोफेसर KC, केमिस्ट्री के खाली करने के कई सालों बाद, ये रिपेयर किया गया था। कौन, कहाँ, किस जगह या पते पर रहता है, क्या उसका असर सिर्फ आज पर नहीं, बल्की, आने वाले कुछ वक़्त के घटनाक्रमों पर भी पड़ता है? शायद? अगर आपको राजनीतिक घटनाक्रमों या दाँव-पेंचों या कुर्सियों के खास लड़ाई-झगड़ों की खबर तक ना हो? 

अगर जानकारी हो तो शायद उतना नहीं पड़ता? इसलिए जानकारी अहम है, सही जानकारी। एक तो आप आगाह हो जाते हैं। दूसरा, जो कुछ आपके आसपास गुप्त रुप से चल रहा होता है, उसकी खबर होती है। वही आपको बहुत-से अवरोधों और मुसीबतों से पार लगा देता है। इसलिए कोई भी सही जानकारी अहम है। जितना ज्यादा आप सही जानकारी से दूर हैं। उतनी ही सही ज़िंदगी आपसे दूर। 

ये कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे किसी को कुछ सीधे-सीधे या उल्टे-सीधे भड़काऊ-सा कुछ बताया गया हो, किसी नाम का जिक्र करके। या शायद उसने आपकी कोई पोस्ट पढकर वो अपने से जोड़ लिया हो? बिना ये सोचे-समझे, की वो जहाँ रह रही है, वहाँ के आसपास का लिख रही है। जो तुमने अपने से भिड़ा लिया है, वैसे से नाम और जगहें शायद उसके आसपास भी हैं। और उनकी अपनी ही कोई कहानी हो सकती है। नाम से आगे, माँ-बाप का नाम, भाई-बहन, जगह, पढ़ाई-लिखाई, या समाज का स्तर बदलने से, उसके साथ सारा का सारा आसपास का सिस्टम ही बदल जाता है। शायद इसीलिए, एक तरह के गुप्त कोड, आदमी और जगह के बदलने से भी पूरी की पूरी कहानी ही बदल देते हैं?

जैसे कोई पूछे, और क्या चल रहा है आजकल?

या काम हो गया, ऐसे ही आते-जाते रोज-रोज का आम-सा संवाद? 

तो सोचो परिवेश या अलग-अलग इंसानो के पूछने से ही कितना कुछ बदल जाता है ना?  

जैसे यही T? T-पॉइंट बोलें तो रस्ते, दिशाएँ या किसी जगह की लोकेशन जैसे? T-20 बोलें, तो अंग्रेजों का क्रिकेट का खेल, जो बाकी भी कितने ही और देश भी खेलने लगे? अंग्रेजों ने जिसपे लगान भी लगाया? लगान मूवी जैसे? और Tea बोलें तो चाय? अब जगह और बाजार के हिसाब से वो भी कितनी ही तरह की हो सकती है? जहरीली भी जैसे? पीछे जहरीली चाय पे भी कोई पोस्ट पढ़ी होगी आपने? चाय और जहरीली? और केमिकल्स और धरती के उपजाऊ जीवों की मौत? और भी एक ही शब्द से मिलते-जुलते से कितने ही तर्क-वितर्क हो सकते हैं? तो हर शब्द खुद से या किसी से भी खामखाँ जोड़ने की बजाय, खासकर अगर भड़काऊ लगे तो ये सोचें, की वो अगर सीधे-सीधे आप पर या जिसे आप सोच रहे हैं उस पर नहीं लिखा हुआ या बोला गया, तो अलग ही विषय, वस्तु भी हो सकता है।   

Saturday, November 2, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 79

Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Enforcements? 

इंसानों के भी मालिक होते हैं? ठीक ऐसे जैसे, ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? या शायद नौकरी के भी? दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार या लक्ष्यद्वीप ऐसा-सा ही साँग है? और भी ऐसे-ऐसे से कितनी ही तरह के इधर के या उधर के कोड हैं।    

थोड़ा पीछे चलते हैं, या दादर नगर वाली हवेली से थोड़ा आगे लक्ष्य की तरफ?  

या शायद Mistaken Identity Crisis? आप जो हैं, उस पर थोंपी हुई अपनी-अपनी किस्म की मोहरें? अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा? अलग-अलग वक़्त पर, अपने-अपने कोढ़ वाली कुर्सियाँ पाने के लिए? अपनी-अपनी स्वार्थ सीधी के लिए? इससे आगे कुछ भी नहीं?

जैसे अगर आप कोई केस एक नंबर पर शुरु करते हैं तो उसका अंत कितने नंबर पर होगा? अंत? समाधान नहीं? मुझे तो यही नहीं समझ आया की न्याय-न्याय करके, आप किसी भी इंसान पर कितनी तरह के स्टीकर चिपका सकते हैं? अगर न्याय का ये जहाँ सच में इतना न्यायविद होता, तो अंत तो 29 पर ज्यादा भला नहीं था? उससे आगे, उसे ऐसे-वैसे या कैसे भी क्यों घसीटा गया? वो भी जहाँ पर so-called experiments का स्तर गिरता जाए? क्यूँकि, राजनीती में गिरावट की कोई लिमिट नहीं है। और आम इंसान उसे भुगत नहीं पाता। इसीलिए अंत हो जाता है। ऐसे, वैसे या कैसे भी। ऐसे में कोई भी आम इंसान क्या कहेगा? अब और फालतू स्टिकर नहीं। इन फालतू के नंबरों से बेहतर है की अपने सारे स्टीकर इक्क्ठा करो और कहो all । बहुत हो गए इस तरह के और उस तरह के एक्सपेरिमेंट्स और स्टीकर।           

अगर आप इनकी या उनकी मोहरों को मान लेते हैं, तो क्या होगा? वही जो हो रहा है। जहाँ सही हो रहा है, वो तो चलो सही है। मगर जहाँ गलत हो रहा है? अब सही और गलत दोनों को देखना और समझना पड़ेगा? 

घर के नंबरों को ही समझने की कोशिश करो। आपके घर के बाहर जो नंबर प्लेट लगाई हुई हैं, उनपे और क्या लिखा है? नंबर के इलावा? या कुछ भी नहीं लिखा? वो नंबर प्लेट कब लगी आपके घर की चौखट या दरवाजे पर? उससे पहले भी कोई थी क्या? अगर हाँ, तो याद है उसका नंबर? अब वो किसके घर के बाहर लगी है? उनके घर के बाहर पहले क्या थी? ये अदल-बदल क्या है? घर के नंबर भला ऐसे भी बदलते हैं क्या? शहरों का तो पता नहीं गाँवों में शायद? जहाँ लोगों को यही नहीं पता होता, की ये क्या लगा के जा रहे हैं और क्यों? चोरी और लूट बोलते हैं इसे? या शायद धोखाधड़ी भी? या सिर्फ एक्सपेरिमेंट कहना बेहतर रहेगा? और मीटरों के नंबर बाहर दिवारों पे लिखने का मतलब? कहीं-कहीं तो रीडिंग तक? और आजकल ये नए मीटर, क्या कुछ खास है इनमें? किसी के घर के अंदर और किसी के घर के बाहर?  

इनका आपके पिन कोड या गाँव के कोड से कोई खास लेना-देना? जितने ज्यादा IDs, उतना ही ज्यादा अपनी ही तरह का कंट्रोल आम लोगों पर, अलग-अलग पार्टियों का। आपका हर किस्म का पहचान पत्र, एक तरह के जाल-तंत्र का हिस्सा है, जो पैदाइशी आपको इस जाल-तंत्र का रोबॉट बनाने में सहायता करता है। इसलिए ज्यादातर अनचाहे से पहचान पत्र खत्म होने चाहिए। 

किसे और क्यों जरुरत है किसी भी पहचान पत्र की? 

कहाँ-कहाँ और किसलिए जरुरत है, किसी भी पहचान पत्र की? 

क्या उसके बिना काम नहीं चल सकता? अगर चल सकता है तो उसे जारी करना या उसका जरुरी होना बंद होना चाहिए।   

शायद नाम, माँ-बाप का नाम और पता काफी है। उससे आगे जितने भी पहचान पत्र हैं, वो गैर जरुरी हैं। हर घर का पता होना चाहिए। फिर वो गाँव ही क्यों, चाहे झुग्गी-झोपड़ी ही क्यों ना हो। एक घर का पता ना होने से 10-10 या 20-20 साल पहले आए हुए या जबरदस्ती लाए हुए जैसे लोगबाग तक, कितनी ही सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं? 

हरियाणा ही में ही कितनी ही औरतें हैं ऐसी? जो शादी के नाम पर दूसरे राज्यों से लाई गई हैं। ज्यादातर खरीद-परोख्त? जिनके बच्चे तक हैं। मगर वहाँ का अपना ऐसा कोई पहचान पत्र नहीं, जिससे वो वहाँ की छोटी-मोटी सुविधाएँ तक ले सकें? ये इतने सारे पहचान-पत्रों की बजाय, अगर एक सोशल-सिक्योरिटी जैसा कोई पहचान-पत्र पैदाइशी दे दिया जाए, तो कम से कम, एक ही देश में तो इतना भेद-भाव ना हो। भेद-भाव सिर्फ इस बात से की आप पैदा कहाँ हुए हैं? किस तबके या राज्य में हुए हैं? ऐसी औरतों के पास कोई भी प्रमाण पत्र तक कहाँ होंगे? वो खुद अपनी मर्जी से थोड़े ही आई होंगी? बेच दिया गया होगा उन्हें? उनके अपनों द्वारा?

"हैप्पी भाग जाएगी" 

ये फिल्म का टाइटल थोड़ा गड़बड़ नहीं है? कहीं किसी साउथ इंडियन ने तो नहीं रखा ये टाइटल? क्यूँकि, उन्हें गा, गी, ता, ती में भेद करने में थोड़ी मुश्किल होती है शायद? जैसे जाएगी या जाएगा? आएगी या आएगा? आती है या जाती है?     

वैसे हमारे यहाँ हैप्पी लड़की का नाम है। जिसका आसाम से कोई नाता नहीं है? जैसे मोनी का पंजाब से? ये यहाँ से आती है? वो वहाँ जाती है या जाता है? पता नहीं कौन? कहाँ? और कैसे-कैसे? और भी जाने कैसे-कैसे किस्से कहानियाँ? और कितनी ही तरह के कोड?

वैसे हमारे यहाँ हैप्पी काम करने कब आएगी और कब नहीं, ये कौन बताता है? लेबर कंट्रोल सैल? किधर वाली? हैप्पी ही नहीं कोई भी लेबर। 

लेबर कंट्रोल के साथ-साथ और क्या कुछ कंट्रोल करती है राजनीती? 

हाउस हैल्प? 

ऑफिस हैल्प? 

और लाइफ हैल्प तक?  

इन सहायताओं की बंद होने या जबरदस्ती जैसे कर देने की भी अपनी ही तरह की कहानीयां है। सबसे बड़ी बात, इस सबको बंद करने या करवाने में जिस आम इंसान की सहायता ली जाती है, वही या उसका आसपास इसे किसी ना किसी रुप में भुगतता भी है।  

बहुत-सी मौतों के राज ऐसे भी हो सकते हैं क्या? जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है? जैसे पीने या प्रयोग करने लायक पानी तक पर इधर या उधर का कंट्रोल? या कहना चाहिए की राजनीतिक गुंडों का कंट्रोल? 

ऐसा ही कुछ फिर बाकी खाने के सामान पर भी लागू होता है?  

और मौतों के राज कैसे-कैसे? इसे जानते हैं, आगे आने वाली पोस्ट में। 

Friday, November 1, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 78

Cult Politics? धर्म के नाम पर धर्मान्धता?

होलिका दहन (7.3.2023)

क्या हो अगर होली की बजाय दिवाली पर ऐसा कुछ हो? और वो भी शिव के जय-जयकारों के साथ? और तारीख, महीना, साल और वक़्त? इस सबके साथ-साथ ट्रैक्टर, ट्रॉली की टाइप, उनपर लिखा हुआ? उनको चलाने या उनमें बैठे लोगों और कर्म-काँड (हवन ट्रॉली में ?) के नाम वैगरह भी जान लो। कोड-सा चलता है जैसे सब? मगर, अब की बार दूसरी गली? अब की दिवाली ऐसा कुछ हुआ क्या? Cult Politics? धर्म के नाम पर धर्मान्धता?

जिन्हें मालूम ही नहीं की उनके साथ ये हो क्या रहा है? यही नहीं, इन्हें लगता है की ये सब खुद ही कर रहे हैं? ठीक ऐसे, जैसे कैंपस क्राइम सीरीज? मगर वहाँ झूठ, धोखाधड़ी, फाइल्स, प्रोजेक्ट्स या ज्यादा से ज्यादा किसी को यूनिवर्सिटी से ही उखाड़ फेंकने की थी। या शायद था तो उससे आगे भी, एतियातों या आगाह करने वालों ने यहाँ-वहाँ बचा लिया? हाँ। उसके दुर्गामी प्रभाव जरुर रह गए और मोहर रुपी निशान भी। मगर यहाँ गाँव में? ऐसे से ही सामान्तर केस, मगर, आदमी ही निगल लिए जाते हैं? और मरता कौन है? आम आदमी? जनमानस? ईधर भी और उधर भी? वो भी जानकारी और सुविधाओं के अभाव में? कैसे? उसपे भी आएँगे आगे की पोस्ट्स में।   

फिर से पढ़ें, भाभी की मौत के बाद वाली होली के बाद हुआ साँग अब क्या ऐसी-सी ही पोस्ट, दिवाली के नाम पर लिखना?  

बचपन से बहुत बार होलिका दहन देखा या ज्यादातर सुना। बहुत सालों बाद, अबकी बार जो देखा, वो होलिका दहन के नाम पर एक डरावना-सा सांग था। किसी मंदिर के नाम पे कोई राजनीतिक तांडव जैसे। आगे ट्रैक्टर, पीछे ट्रॉली। ट्रॉली में आग की लपटें ऐसे जैसे -- (some assisted murder). 

(I will write with time about that in details, how that happened? Rather must say kinda enforced by creating such conditions? And creations of such conditions are not that difficult by experts of political designs and political fights. Common people must be aware about such things to stop them). Read somewhere some term about that I guess, Cult Politics? Sinister designs, by twisting or altering, manipulative ways to represent something contrary? 

उन लपटों से पहले आसमान में धुएँ का कहर, सामने गली से ऐसे गुजर रहा था, जैसे लीलता जा रहा हो, गली दर गली, धुआँ ही धुआँ। 

कहते हैं, किसी समाज को, वहाँ के जनमानस को, उनकी खुशहाली या समस्याओं को जानना है तो उनके रीति-रिवाज़ों को जानना बहुत जरूरी है। रीति-रिवाज़ बताते हैं वो समाज अपने जनमानस को कैसे जोड़ता है या तोड़ता है। ऐसे ही, शायद जानना जरुरी है उन रीति-रिवाज़ों में आते बदलाओं को -- क्यूँकि वो बदलाव आईना होते हैं उस बदलते समाज का, भले के लिए या बुरे के लिए। बदलाव आगे बढाते हैं या पिछड़ा बनाते हैं? औरतोँ को, बच्चोँ को, समाज के कमज़ोर तबके को शशक्त करते हैं या दबाते हैं?        

Thursday, October 31, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 77

आप कौन हैं?
इंसान? 
या 
कोई ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? फिक्स्ड डिपोसिट या सेविंग अकॉउंट? या नौकरी? या ऐसा ही कुछ और?  

आपका मालिक कौन है? 
आप खुद? 
या 
कोई और? यहाँ बच्चों की बात नहीं हो रही। वयस्क इंसानों की हो रही है। यहाँ लोकतंत्र वाले विचारों वाले समाज की बात हो रही हैं। 

फिर एक और भी समाज है। 
पितृसत्ता वाले समाज में तो शायद, पुरुष ही औरतों के मालिक हैं? पहले बाप, फिर भाई,फिर पति, फिर बेटा? औरतें यहाँ पुरुषों के अधीन रहती हैं, जिंदगी भर। सिर्फ अधीन नहीं, बल्की डर की हद तक अधीन? अकसर वो अपनी बहनों या बेटियों को कहती मिल सकती हैं, ये मत बोल, वो मत बोल, तेरा बाप, भाई या पति या बेटा सुन लेगा? या धीरे बोल वैगरैह? यहाँ औरतों के सब अहम फैसले पुरुष ही लेते हैं। क्यूँकि, वो मालिक हैं उनके? इंसानों के भी मालिक होते हैं? ठीक ऐसे जैसे, ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? या शायद नौकरी के भी? दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार या लक्ष्यद्वीप ऐसा-सा ही साँग है?       

और भी कितनी ही तरह के समाज हो सकते हैं। जैसे ठेकेदारी प्रथा? यहाँ खून के रिश्तों से आगे चलकर भी, समाज के बहुत से ठेकेदार होते हैं। जो औरों की ज़िंदगियों के फैसले लेते हैं। फिर क्या औरत और क्या पुरुष। ये प्रथा खुलम-खुला, सीधे-सीधे भी हो सकती हैं और गुप्त भी। जैसे कंगारु कोर्ट्स और टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान का दुरुपयोग कर मानव-रोबॉट्स घड़ना। मानव-रोबॉट्स घड़ाई सबसे खतरनाक है। जहाँ पर आपको ये तक पता नहीं होता की जो आप कह या कर रहे हैं, वो आपसे कोई कहलवा या करवा रहे हैं। और इसके घेरे में आज पूरा समाज है। कहीं कम, तो कहीं ज्यादा।  

हकीकत में दुनियाँ में कहीं भी लोकतंत्र नहीं है। आप किसी न किसी रुप में किसी न किसी के अधीन हैं। वो अधीनता फिर, सीधे-सीधे हो या गुप्त रुप में। पैसा, ज़मीन-जायदाद या प्रॉपर्टी के इर्द-गिर्द घूमती सत्ताओं या कहो राजनीती ने, बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर एक ऐसा घिनौना जाल गूँथा हुआ है, की दुनियाँ की ज़्यादातर कुर्सियाँ, उन्हें ही अपने कंट्रोल में रखने का खेल खेलती नज़र आती हैं। अगर आपके पास ठीक-ठाक ज़मीन-जायदाद या पैसा है, तो आप कुछ हद तक इस जाल से बाहर हैं। मगर बिल्कुल बाहर तब भी नहीं हैं। हो सकता है, ज्यादा और ज्यादा के चक्करों में लगे हुए हों? इसका या उसका हड़पने के चक्करों में लगे हुए हो? उसके लिए बहाना कुछ भी हो सकता है। कहीं गरीबों की ज़मीने हड़पे बैठे हों? और कहीं, किसी बड़े या छोटे शहर के पास वाले छोटे-मोटे किसानों की उपजाऊ ज़मीनों को कीड़े-मकोड़े से जनसंख्याँ के घनत्व में बदलकर, अपनी किस्मत चमकाने के चक्कर में? या अपना साम्राज्य खड़ा करने के चक्करों में? जालसाजी, धोखाधड़ी या कुर्सियों को अपने साथ लेकर? सब मिलीभगत से चलता है। कहीं सरकारों या ईधर या उधर की राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर, बड़ी-बड़ी कंपनियों के बड़े-बड़े साम्रज्य? तो कहीं, ऐसे-ऐसे लोगों को अपना आदर्श समझने वाले और ज्यादातर ऐसे ही लोगों की छाँव में पलते छोटे-मोटे, चिंटू-पिंटु?        

Monday, October 28, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 76

कई बार यही अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा इंसान भी काफी कुछ ऐसा बोल जाता है की आप भी सोचते ही रह जाएं की कह तो सही ही रहे हैं। 

"कोई भैंस या बैल, किसी के खेत में जुगाली कर जाएँ या गौबर या मूत, तो इससे वो खेत थोड़े ही उसका हो जाएगा? या उसकी जमीन-जायदाद या संसाधन थोड़े ही उनके नाम हो जाएंगे?"  

मगर, राजनीती तो कुछ-कुछ ऐसा ही खेलती नज़र आ रही है। दादर नगर हवेली, अंडमान निकोबार, लक्ष्यद्वीप जैसी कहानियाँ? कहाँ से कहाँ तक? भला कैसे भीड़ा देते हैं लोगबाग, ऐसे-ऐसे कोड?     

ठीक ऐसे ही जैसे, कोई इंसान अगर इस घर से उठा है, दुनियाँ से ही, तो वो कहीं और कैसे आ जाएगा? या उसकी जगह कोई और कैसे ले सकता है? कोढ़-कोढ़ जाले जैसे?  

चलो आसपास के ही कुछ अनोखे से रहस्यों से अवगत होते हैं। जिनकी जानकारी मेरी भी नई ही है। या कहना चाहिए की अभी तक भी सही से समझ से बाहर। और ये अनोखे किस्से, हर घर या जगह के अपने हैं। अगर आप भी उन्हें ऐसे ही पढ़ना चाहें तो। 

तब तक फाइनल नहीं था, की मुझे इस दौरान रहना कहाँ है। मैंने गाँव थोड़ा ज्यादा आना शुरु ही किया था। तो यहाँ-वहाँ मीटरों के नंबर, घरों के बाहर की दिवारों पर जाने क्यों कह रहे हों जैसे, पढ़ो हमें। गली से गुजरते-गुजरते ही, आप उस मकान का मीटर नंबर जान सकते हैं। उसके बाद मीटर कितना पुराना या नया है और उस पर क्या कुछ लिखा है? और रीडिंग क्या दे रहा है? मेरे अपने घर के नंबर ने ही रोक दिया जैसे। एक बार फिर से पढ़ो मुझे। ऐसा क्या खास?

ऐसा-सा ही फिर एक-आध, ईधर-उधर के मीटरों से लगा। पता नहीं क्यों? आपको पता हो, तो थोड़ा और प्रकाश डालना। 

मीटर के बाद दादा का कमरा और भाई के घर के बदलाव। भला इतने से सालों में इतने सारे बदलाव कौन करता है? खामखाँ, पैसा वेस्ट जैसे? मगर ये बदलाव कब हुए और क्या-क्या हुए और क्यों हुए? ये शायद समझने लायक है। मगर ऐसा ही फिर कुछ, आसपास के घरों में नजर आया। 

चलो इस खँडहर के डिज़ाइन से ही शुरू करें?

पीछे स्टोर (हरियान्वी में ओबरा), आधा इधर, आधा उधर। ईधर माँ वाले में क्या कुछ रुका पड़ा है? जाने दो। नहीं तो मेरी खैर नहीं। कुछ खास नहीं है। मेरे हिसाब से तो ज्यादातर कबाड़। मगर फिर भी रखने वाले के लिए खास होता है। और अकसर वही अड़चन या रुकावट या गले का फंदा जैसे? उसी ताला लगाने वाले के लिए? 19 या 20 -कड़ियाँ? 20 वीं बीच वाली दिवार में जैसे? 

उसके आगे एक छोटी-सी रसोई और अंदर की तरफ छोटा-सा आँगन। रसोई की पथ्थरों और दो कड़ियों की छत, जो पुरानी को तोड़कर बनाई गई थी, जब हम इस घर रहने आए। तब मैं शायद स्कूल में ही थी। आँगन में सिरियों वाला जाल। रसोई के साथ निकली हुई सीढ़ियाँ V-Shape, जो ऊप्पर से N जैसा-सा दिखता है। जो पहले रसोई के अंदर से ही जाती थी, जिनकी वजह से अँधेरा रहता था। वो पहले वाली सीढ़ियाँ भी शायद बाद में बनी होंगी। जब कभी दादाओं का बटवारा हुआ होगा। इस सीढ़ी में 14-सीढ़ी ऊप्पर जाने के लिए। जिनमें नीचे से ऊप्पर जाते हुए 7 वें नंबर पर और ऊप्पर से नीचे आते हुए 9-वें नंबर पर बड़ा पैड़ा। इस रसोई के पिछे वाली साइड दादा दलजीत का घर, उनका अपना खरीदा हुआ। जिन्हें ज्यादातर जीत दादा कह कर ही बोलते हैं। मुझे भी अभी कुछ वक़्त पहले ही पता चला उनका पूरा नाम। जो फौज से रिटायर हैं। जो घर कम, आसपड़ोस की कार पार्किंग ज्यादा है। जीत दादा का रहने वाला घर इस पार्किंग वाले घर के सामने ही है। ये हमारे इस खँडहर के साथ वाली जगह दादा जीत ने चार मकानों को खरीद कर बनाई हुई है। हमारे बिल्कुल साथ वाला, जो पहले दयानन्द दादा का था। उससे आगे वाला राजबीर दादा का। उससे आगे वाला प्रताप दादा का। और गली के आखिरी कोने पर उन्हीं के बेटे हरिपाल दादा का। ये चारों, जीत दादा ने अलग-अलग वक़्त पर खरीदे हुए हैं। हरिपाल और प्रताप दादा वाला तो ज्यादातर खाली ही रहता है। दयानन्द दादा वाला हिस्सा और राजबीर दादा वाला हिस्सा, ज्यादातर आसपास की कारों की पार्किंग के काम आता है। 

दयानन्द दादा बहुत पहले हांसी जा चुके। और राजबीर दादा रोहतक। राजबीर दादा, थोड़े अजीबोगरीब हालातों की वजह से। मगर ये सालोँ या दशकों पहले की बातें हैं। उसके आगे वाले भी दोनों काफी सालों पहले बेचकर जा चुके। हरिपाल दादा के बच्चे गॉंव ही रहते हैं, गाँव के बाहर की तरफ।      

चलो वापस माँ के खँडहर पर आते हैं। रसोई से आगे माँ का ठीक ठाक साइज का कमरा (हरियाणवी में साल?) और ड्राइंग रुम भी वही। या कहो Multipupose है। 24-कड़ियाँ सहतीर के एक तरफ और 24 कड़ियाँ सहतीर के दूसरी तरफ। बीच में पथ्थर का पोल सहतीर के सुप्पोर्ट के लिए, और ईंटो से बना पहले वाले घरों जैसा-सा डिज़ाइन। 

इनके ऊप्पर? पिछे वही स्टोर। जिसे छोटा-सा कमरा भी बोल सकते हैं। 19 -कड़ियाँ ? पीछे की तरफ निकला हुआ एक होल जैसा-सा, छोटा-सा जँगला। 10 वीं कड़ी के साथ। 9 कड़ी ईधर और 9 कड़ी उधर। इन छोटे से जंगलो से ऐसा समझ आता है की जब ये हवेली बनी होगी तो शायद इसके चारों तरफ खाली जगह ही रही होगी। वैसे भी इसके आसपास के मकान इसके बहुत बाद के बने हुए हैं।  

रसोई की छत और उसके साथ वाली थोड़ी-सी जगह खाली है। आगे मेरा कमरा। आधे में 24 और आधे में 23-कड़ियाँ। यहाँ लकड़ी का पोल सहतीर के सपोर्ट के लिए। इस घर में मेरी पसंदीदा जगह, मेरे कमरे के साथ बाहर की तरफ का लकड़ी और लोहे के डिज़ाइन से बना बारजा। बाकी, मुझे इस घर में कुछ पसंद नहीं।   

साथ वाला ताऊ का खंडहर भी बिल्कुल ऐसा ही है। थोड़ा-सा बदलाव। उनके पिछे वाला ऊप्पर का कमरा भी गुल है। बहुत पहले ही ताऊ ने तोड़ दिया था या कहो की टूटा ही पड़ा था। बीच में वही एक तरफ रसोई और अन्दर की तरफ छोटा-सा खाली आँगन। उसके आगे वही कमरा (साल और सीढ़ियाँ) यहाँ सीढ़ियों की वजह से कड़ियाँ बच गई, 16 सहतीर के एक तरफ और 16-सहतीर के दूसरी तरफ? सीढ़ियों की 10 पैड़ियाँ और एक 4 या 5 पटियों-सा, चबुतरा जैसा पैड़ा? इन सीढ़ियों के पीछे दादा समँदर का घर। इन सबका ददारी (पड़-दादा) या दादरी (भिवानी) या दादर नगर हवेली कोड से क्या लेना-देना? या शायद अंडमान-निकोबार और लक्ष्यद्वीप से भी? मतलब इस खँडहर के एक तरफ कोंग्रेस है और दूसरी तरफ? बीजेपी? ना। ये हैं शायद जैसे पार्टियों के A, B, C, D? ईधर, उधर, आगे या पीछे? 

और इस खँडहर के पीछे? और भी रौचक बन जाएगा, फिर तो? 

और आगे? क क क वालों का वीटा मिल्क प्लाँट, सॉरी घर। जसदेव अंकल और कविता मौसी का। और उनके पीछे, दादा कमेर का घर और डेरी । और इन आगे या पीछे वालों के आजू-बाजू? ऐसे पढ़ने लगो तो सब रौचक ही रौचक जैसे। 

जीत दादा वाले कार पार्किंग से आगे इससे बड़ी गली। इस हवेली वाली इस छोटी गली के सामने ठीक T पॉइंट पर, दादा बलदेव सिंह का मकान, जो बटवारे के बाद दो भाइयों में बंट गया।  आगे वाले हिस्से पर भाई का मकान और चाचा का पीछे, साइड से उनकी अपनी गली से जाते हुए। इस पढ़ाई के हिसाब से तो, वो आसपास भी बड़ा ही रौचक है। शायद हर जगह ही ऐसे है। खासकर, जब शुरु-शुरु में आपको ऐसा कुछ बताया, पढ़ाया या समझाया जाय? या कुछ हद तक खुद भी समझ आने लगे?   

सुना है, या कहो की कहीं पढ़ा है, की सेनाओं या राजनीती के चैस को ऐसे पढ़ा जाता है। जिसमें वक़्त के साथ या कहो की राजनीती के हिसाब से सबकुछ बदलता रहता है। जमीन-जायदाद, घर और उनमें रहने वाले भी। वैसे, यूँ तो और भी बहुत से तरीके हो सकते हैं, ऐसे पढ़ने के?                          

तो आपके या आपके आसपास वालों के लिए कितनी सही है ये जगह? जितना मुझे समझ आया, उसके हिसाब से तो किसी के लायक भी नहीं। खासकर, अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो। राजनीतिक पार्टियों की चैस के बिमारियों और लड़ाई-झगड़ों और केसों वाले खाने हैं ये? राम सिंह वाली पड़-दादी से चलके, कहाँ-कहाँ निकल के जैसे? या कहना चाहिए की बलदेव सिंह और पार्वती की माँ। क्यूँकि, ये उनकी दूसरी शादी थी। पहली शादी से दादा हरदेव सिंह थे। जिनका स्कूल है और जो गाँव के बाहर की साइड और रोहतक रहते हैं। ददारी, दादरी, दादर नगर हवेली से लक्षयद्वीप तक के जमीन-जायदादों के कोढ़ वहाँ तक भी पहुँचते हैं। जैसे पीछे 2-कैनाल जमीन वाला किस्सा।   

वैसे कोई जगह किसी के कितनी रहने लायक है। उसके लिए वहाँ का पढ़ाई-लिखाई का स्तर या सुविधाओं को जानना बहुत नहीं होगा शायद? घरों या ऑफिसों के डिज़ाइन की कहानियाँ तो ऐसे नहीं लगती, जैसे, कुछ भी फेंकम फेंक? गाँवों में, वो भी खँडहरों में या उसके आसपास की जगहों में कौन रहता है? इतना बहुत नहीं है कहना? रच दी गाथा। मगर शायद फिर भी काफी कुछ सिस्टम के बदलावों के बारे में तो बताते ही हैं। और कहीं का भी सिस्टम, वहाँ की ज़िंदगियों के हालातों से सीधा-सीधा जुड़ा है और उन्हें प्रभावित करता है। घरों के नंबर ही जैसे? गाँवों में घरों के नंबर नहीं होते? मगर यहाँ तो हैं। इस हवेली वाली गली में। बचपन से ही देख रही हूँ वो मैं।  मगर शायद सब घरों पर नहीं हैं। ये नंबर हैं 196, 197, 199, 200. इनमें भी कुछ नंबर लगता है, इधर-उधर बदले हैं?  बाहर वाली गली में नहीं हैं क्या? दिखाई नहीं दे रहे कहीं भी।         

आप भी किसी भी घर को या उसके आसपास के माहौल को ऐसे भी पढ़ सकते हैं शायद? इन घरों में स्टोर में रखे हुए सामान कबाड़ जैसे होते हुए भी खास हैं शायद? कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, ज्यादातर, रखने वालों के खुद ही जी का जंजाल? और हम कैसे-कैसे सामान से कितना लगाव रखते हैं? क्यूँकि, वो हमारे या हमारे पुरखों की यादें हैं? तो सँभाल कर रखना सही भी है शायद? मगर पुराने, सिर्फ यादों या इतिहास तक सिमट कर रह जाना कहाँ सही है? आगे बढ़ने वाले लोगों के पास तो उससे आगे कुछ अपना खुद का कमाया या अर्जित किया हुआ भी होगा ना? इसलिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी या तीसरी पीढ़ी का भी वहीं तक सिमित रह जाना, रुकावट ही है। या शायद पीछे रह जाने जैसा? उससे भी खतनाक है, एक बार बाहर निकल कर फिर से वहीं आकर टिक जाना शायद? या शायद निर्भर करता है की आप क्या कर रहे हैं या आपकी जरुरतें क्या हैं? कहीं जबरदस्ती तो नहीं धकेले हुए? ये जानना भी अहम है शायद?      

Sunday, October 27, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 75

वो आपको या आपके किसी भी बच्चे को क्या सिखा रहे हैं? सामने वाले का सब तुम्हारा है? मगर, तुम पर उसका या उनका कोई अधिकार नहीं है? वो मात्र तुम्हारे लिए काम करने वाले अवतार हैं?

अब ऐसा कौन सिखाता है? या कौन करता है? जिन्हें फायदा होगा? कौन हैं ये लोग? और इनका आपके घर के किसी इंसान या बच्चे से क्या लेना-देना हो सकता है? आप या आपके बच्चे भी उनकी प्राइवेट लिमिटेड या पब्लिक लिमिटेड के उत्पाद मात्र हैं? जिनपे वो अपना कंट्रोल, उसके जन्म के साथ ही शुरू कर देते हैं? या शायद उससे भी पहले? क्यूँकि आपके यहाँ कौन पैदा होगा और कौन नहीं, ये निर्णय भी यही लोग लेते हैं? क्या सारे समाज के यही हाल हैं? क्या आप उस दुनियाँ में हैं, जहाँ पर कुछ इंसान, बाकी सब इंसानो को, उनके बच्चों को और उनकी ज़िंदगियों को own करते हैं? या मालिक बने बैठे हैं? Owner जैसे कोई? कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, किसी भी कंपनी के उत्पाद होते हैं? घर, मोबाइल, फ़ोन, मीटर, बस, कार, हवाईजहाज,या कुछ भी और बनाने वाली, कोई भी कंपनी जैसे? या किसी भी और कंपनियों के उत्पाद मात्र? तो क्या मानव रोबोट्स बनाने वाली कम्पनियाँ भी हैं दुनियाँ में? राजनीती, सिस्टम और MNCs यही सब तो कर रहे हैं?              

Mistaken identity cases? या Crisis? या Enforcement Politics? हर चीज़ को तोड़-मरोड़, जोड़ कर अपना निहित स्वार्थ साधने वाली राजनीती? सबके घरों, ज़िंदगियों और रिश्तों की ठेकेदारी इन्होने ही ली हुई है? या खुद वो घर, आसपास और लोगबाग भी ज़िम्मेदार हैं, कुछ हद तक?

इन्हें रोजरोज के ड्रामों से आसानी से समझा जा सकता है शायद?  

जैसे फाइल-फाइल, ये प्रोजेक्ट या वो प्रोजेक्ट, ये सिलेबस या वो सिलेबस, ये पेपर या वो पेपर, इस टाइप के पेपर या उस टाइप के पेपर, इस टाइप की डिग्री या उस टाइप की डिग्री, इस टाइप की नौकरी या उस टाइप की नौकरी, इस टाइप का कोई काम या उस टाइप का कोई काम, खेलने वाले लोग या जगहें या घर या ऑफिस? 

एक आजकल कुछ ज्यादा ही ट्रेंड में है शायद, डिजिटल मीडिया और उसका जहाँ? ये भी कितनी ही प्रकार का है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर रिसर्च या एंटरटेनमेंट तक। लोगों को जानकारी उपलब्ध कराने से, भ्रामक या अपने ही तरह का एजेंडा फैलाने तक।  

फिर खेती, डेरी या और ऐसे ही काम करने वाले ज्यादातर गाँव के लोग, खासकर भारत जैसे देशों में?   

दूसरी तरफ, लाठी या डंडा? चाकू या मार-पिटाई? गंडासी, दराती और पता नहीं और भी कैसे-कैसे औज़ार या हथियार? या ड्रामे करवाने वाली राजनीतिक पार्टीयों के हथियार? सबसे ज्यादा ठाली या शायद सबसे ज्यादा आसानी से भड़कने या भड़काया जाने वाला समाज का हिस्सा? ज्यादातर, सबसे ज्यादा शोषित भी?  

अब जितना किसी भी समाज का स्तर होगा, उसी के हिसाब से तो कारनामे होंगे? लोग प्रयोग या दुरुपयोग भी उसी हिसाब से होंगे? तो ऐसे समाज की राजनीतिक पार्टियों का स्तर भी यही होगा? आप अगर ऐसी किसी राजनीती का शिकार हो जाएँ या हो रहे हों तो? आम इंसान को इन सबमें देखना ये है की खुद भी सुरक्षित रह जाएँ और सामने वाला भी। खुद भी आगे बढ़ें, समृद्ध हों और आसपास भी। कोई भी समर्द्ध और आगे बढ़ता हुआ समाज ही ऐसी राजनीती से पार पा सकता है। 

ऐसी जगह की राजनीती ज्यादातर इसके विपरीत खेलती है? तो जहाँ कहीं आपको ऐसा कुछ समझ आए की आपको भड़काया जा रहा है, वो भी किसी दूर के इंसान के खिलाफ नहीं, बल्की, आपके अपने या आसपास के इंसान के खिलाफ ही। तो सावधान हो जाएँ। अपना कोई पक्ष रखने की बजाय, सामने वाले को ध्यान से सुने। मगर, जो कुछ सुनाया या दिखाया या समझाया गया है या करने या कहने को बोला गया है। वो ना करें। पहले अपने दिमाग को उस भड़कावे से साफ़ कर शाँत करें। 

उसके बाद जिस किसी के खिलाफ कहा, सुनाया, दिखाया या समझाया गया है, उससे जरुर बात करें। शायद वहाँ आपको कोई और ही तथ्य सामने मिलें। हो सकता है जो कुछ बताया, समझाया या दिखाया गया है, वो सिर्फ चाल (trick) मात्र हो। जैसे जादू में होता है। उसके पीछे का अगर आपको दिख या समझ आ गया तो राजनीती का फूट डालो और राज करो खेल खत्म। 

जैसे बहुत-सी, आम-सी बातें आसपास ही मिल जाएँगी आपको। जैसे 

ये इंसान यहाँ से खिसकेगा तो वो इंसान यहाँ आएगा?

यहाँ से ये रस्ते बंद होंगे तो वहाँ रस्ते खुलेंगे?

इनका ये घर छुटेगा तो उन्हें वो घर मिलेगा? 

ये यहाँ से निकलेंगे तो वो यहाँ आएँगे? 

या अभी पीछे के अजीबोगरीब राजनीतिक बोल? इनकी नौकरी जाएगी तो इन्हें मिलेगी? अरे आपके पास खुद का कुछ नया नहीं है क्या देने या बनाने को? बसे हुओं को उखाड़ के, वंचितों को उनका हिस्सा मिलेगा? जिनके पास कई-कई घर, नौकरी या बेहिसाब जमीन-जायदाद हैं, उनसे क्यों नहीं ले लेते? उनके सहारे तो लगता है, आपका साम्राज्य चलता है? या ये कुर्सियाँ मिलती हैं?       

क्या किसी इंसान की जगह कोई और ले सकता है? इस घर से गया हुआ इंसान, उस घर में आ सकता है? गया हुआ मतलब, दुनियाँ से ही गया हुआ? पुनर्जन्म जैसा कुछ होता है क्या? वो भी बच्चे के रुप में नहीं, बल्की, साक्षात बड़े के रुप में? तलाक जैसे रिश्तों में तो शायद होता है। मगर, दुनियाँ से ही गए हुए लोगों के केसों में? शायद Cult Politics यही है? Cult Politics चलती ही ऐसी गुप्त मारधाड़, धोखाधड़ी और यहाँ-वहाँ फूट या भडकावोँ के सहारे है।   

जैसे, वो युवा यहाँ से गया और बुजुर्ग वहाँ पैदा हो गया?

जादू कोई? 

ऐसे जैसे, यहाँ से नौकरी छोड़ कर कहीं और चले जाएँ और फिर वापस आ जाएँ?

इंसान में और भौतिक साधनों में कोई तो फर्क होगा? या घर, नौकरी, पैसा, और इंसान एक ही बात हैं? यहाँ से खत्म और वहाँ पे पैदा हो गए? या इतने सालों कहीं स्टोर या तालों में बंद और फिर इतने सालों या दशकों बाद वो स्टोर और ताले खुले और वापस आ गए? 

फिक्स्ड डिपोसिट या सेविंग अकॉउंट जैसे? सबकुछ बैंकिंग, जमीनों-जायदाद से सम्बंधित जैसे? ये स्टोरों और घरों या ऑफिसों के डिज़ाइन की कहानियाँ कुछ ज्यादा ही हैरान-सी करने वाली नहीं हैं? इनपे और पोस्ट लिखने की जरुरत है शायद?                       

भला किसी को, किसी आम से इंसान की नौकरी से क्या लेना-देना? और उसका यहाँ या वहाँ नौकरी करने से, किसपे और कैसा फर्क पड़ जाएगा? या शायद ना करने से? या इस घर या उस घर में रहने से? या इस गली, मौहल्ले, गाँव, शहर या देश में रहने से? इतना कुछ बदलने पे तो पड़ जाएगा शायद? 

You know perspective change with the surrounding?          

थोड़ा और आगे जाने? शायद आपके साथ-साथ, मुझे भी थोड़ा-बहुत समझ आ जाए? क्यूँकि, बहुत-सी गुथियाँ लिखने भर से भी हल हो जाती हैं शायद?  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 74

 तुम मर चुके हो। अपनी सम्पति किस के नाम करना चाहते हो?

और सामने वाला सोचे, कौन कुतरु हैं ये? अपने जैसे-से फालतू sms या emails भेझने वाले? 

1-2 महीने बाद फिर से, ऐसा-सा ही sms या email मिलेगा। 

तुम मर चुके हो। चाहो तो अभी भी अपनी सम्पति (saving) किसी के नाम कर सकते हो। तुम्हारे पास सिर्फ ये और ये ऑप्शन हैं। 

और आप फिर से सोचें, ये कौन गैंगस्टर हैं? और इन्हें तुम्हारी सेविंग से क्या लेना-देना? जो ऐसे-ऐसे sms या email कर रहे हैं? ये तो बताओ, की कौन से गैंग के सदस्य हो? और ये छुपम-छुपाई कितने दशकों या सालों से खेल रहे हो? जब मर ही चुकी, तो तुम भी मरे हुए होगे? सुना है, मरे हुए एक-दूसरे से बात करते हैं? सुना है, हकीकत किसे पता है? मरने के बाद भी कुछ बचता है क्या? या तुम जैसे लोगों के पास इतनी टेक्नोलॉजी या चालबाजियाँ आ गई की ज़िंदा को मुर्दा कहकर संबोधित करो और खुद को ज़िंदा समझो? छुपम-छुपाई वाले तो आधे से वैसे ही मुर्दे हैं। क्यूँकि, ये सब खेलने का मतलब ही ये है, की गढ़े-मुर्दे ना बोलने लग जाएँ? और अपने साथ हुई हकीकतें बकने लग जाएँ?       

फिर से कुछ महीने बाद ऐसे से ही sms या emails मिलेंगे। थोड़े और जोड़तोड़ के शब्दों के साथ। 

अब भी वक़्त है, सोच लो। इसके बाद, कोई भी फलाना-धमकाना तारीख, सब अपने आप किसी और के नाम हो जाएगा। अगर अब भी खुद को ज़िंदा समझ रहे हो, तो भूल कर रहे हो। 

जब से मैंने यूनिवर्सिटी से अपनी सेविंग माँगना शुरू किया है, तब से ही ये ड्रामा चालू है। माँगना? ये तो अधिकार नहीं है किसी भी एम्प्लॉई का? कब का अपने आप हो जाना चाहिए था।   


इस ड्रामे के कुछ एक और पहलू भी हैं। कहीं न कहीं के इलेक्शंस के दौरान, ऐसे-ऐसे मैसेज का बढ़ जाना? और साथ में इधर-उधर से कुछ और सलाह, नसीहतें या जानकारी मिलना। 

7 जीरो है। 

6 जीरो है। या फलाना-धमकाना नंबर जीरो है। 

 1 पर 9 है या 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 या 9 पर 9 है। 

अब ये सब क्या है?

मीटर चैक करो। यहाँ का, वहाँ का, वहाँ का etc. समझ आया किस्सा? यूनिवर्सिटी में क्या चल रहा था? वही सब यहाँ भी? मतलब, घर कोई भी हो, जगह कोई भी हो। उससे ज्यादा फर्क टेक्नोलॉजी और कोढ़ से पड़ता है। उसे आप कितना समझ और उससे  कितना निपट पाते हो। और उससे भी ज्यादा, वो आपके दिमाग में क्या कुछ घुसेड़ पाने में समर्थ हो पाते हैं। तुमने मान लिया मर गए, तो मर गए समझो। तुम्हें मालूम है, ज़िंदा हो, तो ज़िंदा हो। रस्ते और भी हैं।         

KYA? या KYC? और भी ऐसे-से ही कोढ़ हैं। 

आप क्या करते हैं, ऐसे-ऐसे मैसेज पाकर? 

कुछ नहीं? या शायद यहाँ-वहाँ कुछ और आर्टिकल्स पढ़ते हैं? या शायद यूनिवर्सिटी को फिर से लिखते हैं? क्या धंधा कर रहे हो? मुझे मेरी सेविंग क्यों नहीं दे रहे?

कहीं से तो और भी महान मैसेज मिलेंगे। सेविंग कहीं नहीं गई। वो बढ़ ही रही है। तुम आराम से तमाशे देखो और आगे के रास्ते तलाशो। 

मतलब? जब किसी इंसान को जरुरत हो, तभी वो सब ना मिले तो उसके बढ़ने या घटने से क्या फर्क पड़ेगा?  

इस दौरान एक-आध बार यूनिवर्सिटी गई, तो कुछ एक और ड्रामे हुए। पीछे कहीं पोस्ट होंगी उनपर। 

ये मैसेज भी शायद कहीं न कहीं, इन्हीं कुर्सियों के इधर या उधर की पार्टियों से आ रहे हैं? राजनीतिक पार्टियाँ और आम आदमी से खेल? 

यहाँ-वहाँ के आर्टिकल्स क्या कह रहे हैं? जाने उन्हें?    

Saturday, October 26, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 73

 Magnetic Show?


Or?

Or?


या?

गुरुत्वाकर्षण? गुरुत्वाकर्षण की वजह से वस्तुएँ हवा में नहीं टिक पाती और पृथ्वी पर गिर जाती हैं? जैसे चुम्बक लोहे को अपनी तरफ आकर्षित करता है? किसी डंडे के सहारे हवा में ऐसे-ऐसे कृत्य दिखाने के लिए कलाकार क्या कुछ करते होंगे? खासकर जहाँ दाँव पे बहुत कुछ लगा हो? ऐसे ही शायद Micheal Jackson डांस मूव्स के बारे में कहीं पढ़ा या सुना होगा? जुत्तों में या स्टेज पर ऐसा कुछ खास होता था?

जादू?

Tricks?

Magic? 

Science?

Knowledge abuse?  

कोरोना के बाद खासकर, घर पे उगाए या बनाए खाने-पीने का ट्रेंड बढ़ा शायद? जब खाना-पीना ज्यादा ही मिलावटी आने लगा? मान लो कोई किसान हैं। गाँव रहते हैं। अपने घर के लिए दूध-दही के स्वाद के लिए एक गाएँ ले आए। उनका गाँव के बाहर की साइड एक प्लाट है। वहाँ उसको रखने का और उसकी देखभाल के लिए एक परिवार (बिहार से शायद) भी आ गया। ये कई महीने पहले की बात है। फिर एक दिन वो हमारे घर आए और माँ को कोई मैगनेट दे गए, की भाई से लेकर गए थे। मैंने ऐसे ही पूछ लिया, ये मैगनेट किस काम का। तो उन्होंने बताया की डॉक्टर ने मँगवाया था, गाएँ के पेट में लोहे के टुकड़े थे, उन्हें निकालने के लिए। हालाँकि ऐसे मैगनेट वापस घर नहीं रखने चाहिएँ। बिमारियों का, खासकर अनचाहे इन्फेक्शंस का खतरा रहता है।   

और मैंने पूछा, अब गाएँ ठीक है? 

नहीं, वो तो 2-महीने बाद ही मर गई थी।   

हैरान?

गाएँ के पेट में लोहे के टुकड़े? पशु ऐसा कुछ अपने आप तो नहीं खाएगा? उसपे जो पशु घर पे रहता हो? जानभुझकर ही दिया गया होगा, शायद किसी जाहिल इंसान द्वारा? ये कैसा देश है? यत्र पूज्यन्ते ब्लाह-ब्लाह वाला? और सबसे ज्यादा दयनीय स्तिथि, शायद वहाँ उन्हीं ब्लाह, ब्लाह की मिलेगी? गाएँ हमारी माता है, वाला देश? और बक्सा उसे भी कहाँ जाता है?

Magnet and Magic?  

Curd and Magic?

Milk and Strong?

और भी बहुत कुछ हो सकता है। 

सोचो ये कैसे क्राइम हो सकते हैं? Food Adulterants? बहुत बड़ी वजह हैं ये बिमारियों और मौतों की। वो फिर चाहे इंसान हो या फिर दूसरे जीव-जंतु या जानवर। 

Kinda, "They are eating the cats?" Donald Trump

Not rats, bats or rabbits?

And creating the dogs or maybe gods?

Interesting world?

त्यौंहारों का मौसम है, तो थोड़ा सोच-समझकर ही खरीदें। 

कंपनियाँ अपने उत्पादों का ख्याल करें और ब्रांड का भी। कई कंपनियों के नाम पर काफी कुछ ऐसा आ रहा है, जो सही नहीं है।  

Wednesday, October 23, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 72

 बच्चे और हथियार? लोगों को कंट्रोल करने का? 

बच्चों का किसी भी तरह का सन्दर्भ देकर, किसी भी माँ-बाप या परिवार या हितैषी को भावनात्मक तरीके से बड़ी आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है? और कितना भी संकिर्ण या सही में हो सकने वाला तथ्य, चोरी-छुपे या सीधे-सीधे किसी के भी दिमाग में घुसेड़ा जा सकता है? 

जैसे आपका कोई खंडहर खाली पड़ा है सालों से। और किसी आपके अपने को ही घर की सख्त जरुरत आ पड़ी। आपके दिमाग में परिस्थितियाँ और हालात देखकर आए, अभी के लिए ये जगह सही है। वक़्त के साथ कोई ढंग का समाधान निकल आएगा। आपके घर में कितने ही तरीकों से घुसी हुई, इस या उस पार्टी को ये खल गया। क्यूँकि, उन्होंने तो उसका ऐसा हाल करने की सोची थी की सड़क पर भी जगह ना मिले। कहाँ घर घुसाने की बातें चल पड़ी। उन्हें तो उसका राम नाम सत्य है, आसपास दिख रहा था। फिर ये क्या हो रहा है? पहले ज़माने में ऐसे-ऐसे सन्देश गुप्तचरों के माध्यम से जाते थे। आज सर्विलांस टेक्नोलॉजी ने सब आसान कर दिया है। अब सुन, देख और समझ तो वो दूर बैठे लेते हैं। और गुप्तचर? वो आज भी हैं। मगर उसका काम वो आपके अपनों से लेते हैं। ऐसे, जैसे उन्हें अपनी सेना का हिस्सा बना लिया हो। ये ना आपको पता और ना उस गुप्तचर को, जो उनका सन्देश आपके दिमाग में घुसेड़ेगा। एक होता है, पहुँचाना और एक होता है, घुसेड़ना। मतलब जबरदस्ती और बिना आपके या उस इंसान के पता चले, जिसे उन्होंने गुप्त रुप से अपना गुप्तचर बना लिया है। इसे टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान का धमाल कहते हैं। दुरुपयोग, जिसका सदुपयोग भी किया जा सकता है। 

आप कोई विडियो देख रहे हैं यूट्यूब पे और वहाँ ज्ञान मिलता है, जिसे कोई ऋषि-महृषि दे रहा है। "अपना पुस्तैनी घर ना बेंचें, ना ही किसी को दें, इससे आपके बच्चों के विवाह में दिक्कत हो सकती है।" चाहे दशकों से वो बिना देखभाल खंडहर हो चुका हो। सोचो, ज्ञानियों को इस ज्ञान की याद अभी आई? पहले क्यों नहीं?    

कुछ दिन बाद आप किसी के यहाँ गए हुए हैं और उनके घर कोई शादी-ब्याह की बात चल रही है, किसी के बच्चे की।  वो बातों-बातों में कहते हैं, "छोरा देखण आए थे, सबकुछ पसंद आ गया। हाँ भी हो गई। फिर किसी ने लड़की वालों को बोला, अरे कहाँ के खाते-पीते घर, वो तो अपना पुस्तैनी मकान तक बेचें हांड्य-स। और वहाँ के गाँव के लोगों के खेतों की ज़मीन तो पता नहीं कितने सालों पहले सरकार ले चुकी। "  

ईधर-उधर और भी ऐसे ही कई गुप्त-गुप्त प्रोग्राम चलते हैं। इसे बोलते हैं, साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। Enforcement ways, गुप्त तरीकों से दिमाग के सॉफ्टवेयर को बदलना (alter, manipulate) । कितने ही ऐसे तरीके इंसान को दूर बैठे कंट्रोल करने के काम आते हैं। आप किसी का भला चाहते हैं। आपने अपनी तरफ से हर कोशिश और संसाधन उस तरफ लगा दिए। मगर परिणाम? आज की टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान में माहिर लोग ले निकले? चालें और घातें भी ऐसी, की आपस में ही मनमुटाव या फूट तक डालने का काम भी कर जाएँ? और आप सोचते रहें, की आपने तो किसी का भला ही चाहा था? फिर ये क्या हुआ या हो रहा है?

कुछ वक़्त बाद, आप बातों-बातों में ये सब बता भी जाते हैं शायद? क्यूँकि, आपके दिमाग में काला नहीं है। मगर ऐसा करवाने वालों के दिमाग में तो था और है। 

इसी दौरान वो सामने वाले को धमकी भी दे जाते हैं, वो भी गुप्त, ऑनलाइन। तेरा ऐसा हाल करेंगे की तेरे ये, तुझ पे मरने वाले ही तेरे ना बचेंगे। और यही तुझे शमशान घाट विदा करेंगे। अब शमशान घाट तो विदा अपने ही करते हैं, तुम क्या किसी और के कंधो पे जाओगे, जाहिलो?   

और कितनी ही तो कोशिशें हुई। परिणाम? कितनों को खा गए ये आदमखोर? और कितनों को और खाएँगे? उनमें से कुछ एक को कैसे खा गए, उसके पिछे यही गुप्त ज्ञान भंडारण है। सबसे बड़ी बात, जिन्हें खा गए, वो कौन थे? आम आदमी, इधर भी और उधर भी। क्यूँकि, ऐसे कुर्सियों की मारा-मारी वाले ज्ञानी-लोग जिनके दिखते हैं, वो उनके भी नहीं होते। इंसान तक इनके इस खेल में एक गोटी मात्र है।            

ये तो एक छोटा-सा उदाहरण है, गुप्त तरीकों से इंसान के दिमाग में हेरफेर करने का। ऐसे कितने ही छोटे-छोटे से जाले, इन बड़े लोगों ने यहाँ-वहाँ फैलाए हुए हैं। रोज कहीं न कहीं, वही गुप्त तरीके से Mind Alteration या Control हो रहा है, ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर। इसे और ज्यादा अच्छे से समझाया, यहाँ के वाद-विवादों, हादसों, बेवजह के रोज-रोज के ड्रामों ने। कुछ आसपास की ना हुई सी बिमारियों ने, मौतों ने, आत्महत्याओं या जमीनी झगड़ों ने। कभी-कभी यूँ लगता है, की अगर मैंने गाँव की तरफ रुख ना किया होता, तो ऐसे-ऐसे राज कहाँ पता चलते? और इसीलिए शायद ये सब दिखाने, बताने या समझाने वालों का भी धन्यवाद करना चाहिए।