सुना है खेलों का बहुत शौक है आपको?
अखाड़ों और दंगलों का?
शूटिंग और बुलेट्स का?
वो तो पढ़ने-लिखने वालों को भी होता है
बस, तरीके थोड़े अलग होते हैं
आप सिर्फ शारीरिक अखाड़ों वाले दंगल पर ध्यान देते हैं
और वो?
शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी पॉलिस करते रहते हैं
या शायद सारा फोकस ही दिमागी दंगल पर रखते हैं।
दिमाग से ही Chemical, Physio, Psycho, Electric और Bio
और भी पता नहीं क्या-क्या घुमाते रहते हैं
Real Twins, असली के जुड़वाँ
Parallel Twins, सामान्तर घड़ाई वाले जुड़वाँ, Proxy जैसे
Parallel Twins can be
Real World Twins असली दुनियाँ के सामान्तर घड़ाई वाले जुड़वाँ
Digital Twins, ऑनलाइन दुनियाँ के सामान्तर घड़ाई वाले जुड़वाँ। जिनसे आप शायद ही कभी मिलते हैं। मगर सामान्तर घड़ाई से वो ऑनलाइन दुनियाँ में चलते रहते हैं।
Digital और Real World Parallel Twins की घड़ाई राजनीती और टेक्नोलॉजी के संगम का परिणाम होता है। कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे अलग-अलग तरह के प्रतिबिम्बों की घड़ाई। Proxy या सामान्तर घड़ाई भी कह सकते हैं।
Real World Parallel Twins के जुड़वाँ कैसे घड़ती हैं ये राजनीतिक पार्टियाँ? एक-आध रोजमर्रा के ही उदाहरण लें?
One Character
We are preparing you to send to God.
Nooooooo, I wanna live.
No, no. Not that God. You got it wrong.
Staring to that voice with a queationmark?
You do too many questions and don't listen to understand.
?
Let her go to at her aunt's place.
?
If you will keep on clinging to her, then how will you take care of your life?
Who will marry you? She is none of your burden. People are there to take care of her. You better take care of your life. You are not their maid. You are destroying your life in their service. Those sickholes got that you are too emotional fool and they are exploiting you for that. They know how to fool people.
They, who?
The other side, the other party.
Other party?
OK. First you get for yourself some safe place and start job again. Wherever you will go, we will send her with you.
It goes on and on
Some case is going on here. 2023-2024 story
Other Character
भाइरोइ, छोड़ दे इहने। के इसका ठेका ले राख्या है, तैने? आपने गुहे न आप सम्भालेंगे। तेरी अ घणी छोरी है यो। उनकी किमै ना लागती। प्यारी तै हमनै भी भतेरी, पर आपणी छोरी की ज़िंदगी ना देखणी हामनै। इनके घर मैं भतेरे इह नै सम्भालणीय। उनकी छोरी, क्युकरै राखयें आपणी नै। भूखी राख्येन या तैसायी, प्यार तै राख्येन या मार कै।
ना दूँ। ना करना और ब्याह मैने। उनकी के लाग्य? जब मैं ए उनकी किमैं ना।
रोना-धोना, गाली-गलौच, प्यार-भावनात्मक अत्याचार, और भी पता ही नहीं कैसे कैसे हथियार प्रयोग होते हैं।
यहाँ भी कोई केस चल रहा है।
दोनों केस बिलकुल अलग। दोनों लड़कियाँ अलग। नहीं, शायद थोड़ी बहुत मिलती जुलती सी हैं। जिन बच्चियों की दोनों केसों में बात हो रही है, वो भी अलग। परिवार अलग। और भी बहुत कुछ अलग है। मगर, यूँ लगा जैसे कोई प्रतिबिम्ब घड़ने की कोशिश हो रही थी। एक को मना लिया गया, दूसरी शादी के लिए। और बच्ची को ससुराल वालों के यहाँ छोड़ दिया गया।
मगर एक की तो शादी ही नहीं हुई है। बच्ची यहाँ भतीजी है, जिसे गोद लिया हुआ है, unofficially। मगर बाप कभी ऐसे बोलता है और कभी वैसे। उसपे भी ढेरों तरह के भावनात्मक अत्याचार और दबाव चल रहे हैं। या शायद कहना चाहिए, "Heights of Manipulations"। ऐसे केसों में भुगतता कौन है? बच्चा। वैसे तो एक ही परिवार में क्या गोद लेना और क्या ना लेना। शायद हर किसी की कोशिश यही रहती है की बच्चे को ऐसा फील ना हो की माँ नहीं है। पर इस तरह के माहौल में वो शायद संभव ही नहीं है। इधर-उधर की राजनीती कोशिश में रहती है, सबको अलग-थलग करने में। एक दूसरे के ही खिलाफ भड़काने में।
पिलिये के पैसे
कई दिन से शॉपिंग पर बैन लगा रखा था, खुद ही। अब पैसे ना हों तो अपने आप भी लग जाता है शायद। कुछ पैसे मिले और थोड़ी सी ऑनलाइन शॉपिंग शुरु हो गई। आसपास में पिलिये का सामान आना शुरु हो गया, लड़की के लिए। जिस दिन आपका ऑर्डर आए, उसी दिन वहाँ शॉपिंग।
पीलिया देने इतने जाएँगे की बस पूछो मत। कुछ किस्से कहानी लिखने मुश्किल से हैं। उन्हें आप सिर्फ देख, सुन, समझ और महसूस कर सकते हैं। ये चल क्या रहा है? राजनीतिक रैली निकल रही है। जिनकी निकाली जा रही होती है, उन्हें अंदाजा तक होता है क्या? नहीं, वो अलग दुनियाँ में होते हैं। क्यूँकि, उनके दिमाग में ऐसा कुछ नहीं होता, जैसा गुप्त तरीके से ऐसे-ऐसे कारनामे रचने वाली इन राजनितिक पार्टियों के दिमागों में। इनके और उनके दिमागों की दुनियाँ ही अलग है।
कहाँ-कहाँ निकलती हैं ये राजनितिक रैलियाँ? किसी के जन्म पर। किसी की मौत पर। और जन्म और मौत के बीच जो कुछ होता है, हर उस इवेंट या फँक्शन पर। वो जॉब के लिए अप्लाई करना भी हो सकता है और नौकरी छोड़ना भी। अपने लिए या घर के लिए कोई सामान लाना भी हो सकता है। वो कुछ भी हो सकता है, अगर राजनीती को उससे किसी तरह के पॉइंट मिल रहे हों। या सिर्फ अपनी औकात या ताकत का अंदाजा ही करवाना हो? औकात? मतलब, यही सब रह गया अब करने धरने को? कुछ ढंग का नहीं बचा?
पता ही नहीं कैसे-कैसे प्रतिबिम्ब घड़ने में रहती हैं, ये राजनीतिक पार्टियाँ? आसपास ऐसे से कितनी ही तरह के प्रतिबिम्ब होंगे? कोई अंदाजा? कोई लिमिट ही नहीं है। वो आपके घर परिवार में, आसपास मौहल्ले में, ऑफिस में या दुनियाँ के किसी भी कोने में हो सकते हैं। अच्छे भी और अजीबोगरीब से भी।
और ऑनलाइन? Digital Twins? ये अपने आपमें टेक्नोलॉजी की अनोखी दुनियाँ है। मैं भी अभी इसे पढ़ने और समझने की कोशिश ही कर रही हूँ। तो अपने साथ-साथ आपको भी ले चलती हूँ इसकी सैर पर?