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Monday, November 18, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 91

तो? स्वास्थय टमाटर तक सिमित है? फूल आए, नहीं आए? फल आएँगे या नहीं आएँगे?

या स्वास्थ्य का मतलब, इससे आगे भी बहुत कुछ है? ऐसे-ऐसे पेड़-पौधे, तो सिर्फ आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं, की आपका वातावरण या माहौल या इकोसिस्टम कितना सही है, एक स्वस्थ ज़िंदगी के लिए? और कितना नहीं? और भी बहुत से पेड़-पौधे होंगे आपके आसपास, जो बहुत कुछ बता रहे हैं, बिमारियों के बारे में? रिश्तों की खटास या मिठास के बारे में? और खुशहाल या बदहाल ज़िंदगी या मौतों तक के बारे में? संभव है क्या? पेड़-पौधे इतना कुछ बता पाएँ? या आसपास के पशु और पक्षी या दूसरे जीव-जंतु भी?  

जो मुझे समझ आया, अगर आपके यहाँ राजनीती आपके लिए सही नहीं है तो? वैसे राजनीती सही किसके लिए होती है?

चलो इसे यूँ भी समझ सकते हैं, आप जितना अपने घर पर रहते हैं या उस पर ध्यान देते हैं, उतना ही आपका घर सही रहेगा। जितना वहाँ नहीं रहते, उतना ही कबाड़? शायद नहीं। फिर तो कितनी ही दुनियाँ घर से दूर नौकरी करती है, उनका क्या? शायद ये कह सकते हैं की जितना अपने घर को सँभालते हैं या उसकी देखभाल करते हैं, उतना ही सही वो घर रहेगा। जैसे कोई भी माली कितना देखभाल कर रहा है या कितना जानकार है, ये उसके देखभाल वाले बगीचे को देखकर ही बताया जा सकता है। वो कहते हैं ना, की जिस बगीचे का या खेत का कोई माली नहीं होता, वही सबसे पहले उजड़ते हैं। जिनकी जितनी ज्यादा सुरक्षा और देखभाल रहती है, वो उतने ही ज्यादा फलते-फूलते हैं। बहुत बार आपात परिस्थितियों में भी? देखभाल पर बाद में आएँगे, पहले सुरक्षा को समझें?

आपके घर की सुरक्षा कितनी है? ऐसे ही जैसे किसी भी खेत या बगीचे की? खुरापाती, नुकसान पहुँचाने वाले तत्वों से? जीव हैं, तो बिमारियों से? प्रदूषण वाले वातावरण से? भीड़-भाड़ से? एक खास दूरी या हर किसी का अपना सुरक्षित दायरा बहुत जरुरी होता है, किसी भी तरह के विकास या वृद्धि के लिए। 

पीछे जैसे घरों के डिज़ाइन और किसी भी वक़्त की पॉलिटिक्स के डिज़ाइन की बात हुई। वैसे ही पेड़-पौधों के डिज़ाइन की या खाने-पीने से सम्बंधित खाद्य पदार्थों की? या शायद खाने-पीने से भी थोड़ा आगे, किसी भी तरह के पेड़-पौधों या पशु-पक्षियों की? पेड़-पौधों से ही शुरु करते हैं। मुझे थोड़ी बहुत बागवानी का शौक है। तो यूनिवर्सिटी के घर या आसपास के पेड़-पौधों से आते-जाते एक तरह का संवाद होता ही रहता था। पेड़-पौधों से संवाद? हाँ। इंसानों की आपसी बातचीत के द्वारा। कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे घर या गली से आते-जाते कुत्तों या गायों से? यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर यूँ लगता है, जैसे सभी को बागवानी का शौक होता है, थोड़ा-बहुत ही सही या दिखावे मात्र के लिए। आप कहेंगे की यहाँ तो फुर्सत ही नहीं होती। ऐसा नहीं है, शायद आसपास भी प्रभावित करता है। गाँवों में भी देखा है की जिन घरों में छोटा-मोटा बगीचा होता है, वो अकेले उस घर में नहीं होता, आसपास और भी मिलेंगे। ऐसे जैसे कहीं-कहीं सिर्फ गमलों के पौधों के शौक? या कहीं-कहीं सिर्फ सीमेंट, ईंटो-पथ्थरों के शौक, जैसे पेड़-पौधे तो आसपास दिखने भी नहीं चाहिएँ? मगर ऐसे घरों के आसपास किन्हीं खाली जगहों पे झाँको। कहीं जहरीला कुछ तो नहीं उग रहा? या एलर्जी वाला? या खामखाँ की बीमारी देने वाला? या शायद सिर्फ ऐसे से जानवरों या जीव जंतुओं के घर? ये सीधे-सीधे या उल्टे-सीधे, आपके घर की सुरक्षा का दायरा है। अब वो दायरा कितना पास है और कितना दूर, ये तो आप खुद देखें। एक जैसे खिड़की या दरवाजे के एकदम बाहर? या घर से बाहर निकल इधर या उधर, जहाँ से आप शायद सुबह-श्याम गुजरते हों? या शायद और थोड़ा दूर? गाँव या शहरों से बाहर के मौहल्ले जैसे? या ऐसे मौहल्लों या कॉलोनियों में कभी-कभी घरों के पीछे वाली जगहें या आजु-बाजू वाली जगहें?  

आसान भाषा और कुछ शब्दों में कहें, तो सब आर्थिक स्तर पर निर्भर करता है? 
आर्थिक स्तर बढ़ता जाता है तो लोगबाग सिर्फ अपने घर का ही नहीं, बल्की आसपास का भी ख्याल रखने लग जाते हैं? और उसी के साथ-साथ सुरक्षा का दायरा भी बढ़ता जाता है और आपात परिस्तिथियोँ से निपटने के सँसाधन भी। उस बढे हुए दायरे में राजे-महाराजे मध्य में होते हैं? और उनसे आगे जितना दूर जाते, जाते हैं, उतने ही असुरक्षित दायरे? क्यूँकि, बाकी सब उन्हें ही बचाने के लिए तो काम करते हैं और जीते-मरते हैं? कहने मात्र के लोकतंत्रों में ये सब आसानी से दिखता नहीं, गुप्त रुप से चलता है। जिन समाजों में जितना ज्यादा अमीर और गरीब में फर्क है, उतना ही ज्यादा वहाँ पर ये वाला नियम काम करता है। और उतने ही ज्यादा भेद-भाव और क्रूरता से। 

अँधेरे और रौशनी से ही समझें? 
सोचो आप, कैसे? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट से।      

Saturday, November 16, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 90

टमाटर हटा दो। 

हटा दिए। सब गए डस्टबिन। 

फिर कोई आवाज़ आई जैसे, अरे रुको। क्या पता ?????? बचा लो कुछ एक। 

और आपने कुछ एक छोड़ दिए। बाकी चलते कर दिए, डस्टबिन की राह। कहीं एक ही गमले में कई-कई थे। तो कहीं एक ही गमले में कई तरह के पौधे एक साथ। जैसे हरे वाली तुलसी, जामुन और एक टमाटर का पौधा। तो कहीं मरवा, तुलसी और टमाटर। मिक्स वाले टमाटर के पौधे चलते कर दिए। मगर जिन गमलों में सिर्फ टमाटर थे, वहाँ कुछ और भी बीज बो दिए। जैसे मेथी, पालक, बड़े गमलों में खासकर । मगर एक अभी भी सिर्फ टमाटर वाला गमला भी है। नहीं, इसमें भी कुछ और भी उग आया है? जिस दिन हरी तुलसी वाले गमले वाला टमाटर का पौधा चलता किया, उस दिन?

सच में? हरी (?) तुलसी आ गई, अमेरिका में?

कुछ-कुछ ऐसे? जैसे हरियाणा में Vidhanshabha ( या Vidhan Sauda?) की ये कुर्सी है?   


कुर्सी ओ कुर्सी?
कितनी ही तरह की कुर्सियाँ होती हैं ना दुनियाँ में?
एक ये भी?
क्या डिज़ाइन है ना?
बीच में हरा है और उस हरे पे भी कोई खास डिज़ाइन है। उसके ऊप्पर अशोका, पीतल (Cooper?)? और साइड में? और भी बहुत कुछ है? 
और ईधर? 
80% (या 20?) अमेरिका का संविधान?
 
कह रहा हो जैसे?

(above images are taken from internet)

ये अमेरिकन ग्रीन कार्ड पे सच में इतनी मारा-मारी है क्या? 

वापस अपने टमाटर पर आएँ?


लोगों को मारा-मारी से बचा लो तो?
स्वास्थय बस इतना-सा विषय है दुनियाँ में? या इससे आगे भी बहुत कुछ है? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

Thursday, November 14, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 89

टमाटर और तुलसी ( अदला-बदली?)


टमाटर 6 में खरीद के, 2.50 में बेचोगे? 

?????

क्यों खरीदना और क्यों बेचना?  टमाटर हटाओ, तुलसी के लिए जगह बनाओ। 

और लो जी, तुलसी हाज़िर हैं?

तुलसी या Basil या ?

अगर भारत में तुलसी का जन्मदिन 25 दिसंबर (?) को हुआ?

तो अमेरिका में कब हुआ होगा?

बोले तो कुछ भी फेंकम फेंक? ये राजनीती में ईधर से उधर कितना होता है ना? 

:)


टेस्ला या संतरो?

तसला कहाँ गया?

गया? या गई? टेस्ला तो आपने ही नहीं बेच दी? और फिर ध्यान आया, टेस्ला या संतरो? भारत की संतरो को ही तो अमेरिका वाले टेस्ला नहीं कहते?   

बोले तो कुछ भी फेंकम फेंक? :)  


अर एक लाइट बाहर जले सै 

ये लाइट नहीं है क्या? बाहर की लाइट गुल है। 

लाइट तो है। इस बल्ब के साथ दिक्कत है। 

मास्को ते ब्लिंकिंग सीख ग्या लागे सै यो भी।  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 88

Watching or reading anything online is like, is this true or fake? Then be it official or government websites or media pages. At times difficult to judge like, I mean seriously? It's like the same google doc, office word or PDF pages seemed a bit different yesterday and something missing or have been manipulated today? 

Earlier this impression was about search engines like google results or youtube videos or social sites like twitter, where following and followers results were like some match fixing. Difficult to identify or judge and differentiate what's fake and what's real?

उनके लिए जो कहते हैं की हिंदी में लिखो 
जो भी आप देख रहे हैं या सुन रहे हैं या पढ़ रहे हैं या समझ रहे हैं, वो कितना सच है? या कैसे पढ़ेंगे या समझेंगे उसे? 

चलो थोड़ा आसान से शुरू करते हैं  
पढ़ो, क्या समझ आया? 













रौचक? 

ऐसे ही बाकी सोशल मीडिया बताया। आप इसे पढ़ो और समझो। मुझे थोड़ा-बहुत जो समझ आया, वो आगे पोस्ट में। जानकार अपना ज्ञान पेलते रहें। 

Food for thought

 


महाराष्ट्र चुनाव? 

हरियाणा में क्या था?

या शायद कहीं का भी इलेक्शन उठा लो?  

Tuesday, November 12, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 87

अगर किसी बच्चे के पास पैसे ना हों, तो वो 12वीं से आगे की पढ़ाई कैसे करेगा?
क्या? 
अगर किसी बच्चे के पास पैसे ना हों, तो वो 12वीं से आगे की पढ़ाई कैसे करेगा?
अगर बच्चा पढ़ना चाहता है तो उसे कहीं न कहीं से तो पैसे मिल ही जाएँगे। 
कहाँ से?
उसके घर वाले देंगे। 
अगर घर वाले ना हों तो या उनके पास पैसे ना हों तो?
कोई न कोई तो देगा ही। नहीं तो स्कॉलरशिप होती हैं। Crowd Funding होती है। और बहुत तरीके होते हैं। 
तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो?
ऐसे ही। 
आपके पैसे बुआ देंगे। 
नहीं, मैं तो किसी और के बारे में सोच रही थी। क्या पता किसी के घर वाले 12 वीं के बाद पढ़ाना ही ना चाहें।
ये तो बड़ी समस्या हो सकती है। 
 
वैसे तो कितने ही बच्चे हैं ऐसे, जिनके बारे में हमें सोचने की जरुरत है। किसी भी सभ्य समाज को सोचने की जरुरत है। भला बच्चों तक के दिमाग में ऐसे ख्याल ही क्यों आएँ? वो फिर किसी का भी बच्चा हो।    

जबकि आपको समझ आ रहा है की क्यों पूछ रहा है ये सब, ये बच्चा। 
Insecurity पैदा करना, बातों ही बातों में, यहाँ-वहाँ से। ये सब स्कूल में भी हो सकता है और उसके बाहर भी। घर में भी हो सकता है, उन प्रोग्राम्स के द्वारा, जो वो टीवी पर देख रहा है। या शायद आसपास कहीं से सुनकर भी। अमेरिकन ट्रम्प-हर्रिस यही राजनीती है। भारतीय कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी भी यही कर रही है। या यूँ भी कह सकते हैं की किसी भी देश की राजनीती आम लोगों को ऐसे ही अपने कब्ज़े में करके, उन्हें अपने गुलाम बना रहे हैं। 

तो क्या राजनीती लोगों को गुलाम बनाने का खेल है?      
गुमराह करके गुलाम बनाने का खेल, बेहतर होगा कहना? 

जब राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, हर सँसाधन पर अपना कंट्रोल करना चाहें तो क्या कहेंगे उसे? फिर इंसान तो सबसे बड़ा सँसाधन है। राजनीती को नहीं आता, संसाधनों का सदुपयोग करना? राजनीती को आता है, संसाधनों का दुरुपयोग करना? तो जो भी राजनीतिक पार्टी जीत रही है, मान के चलो की कहीं न कहीं उसने लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा कैसे पैदा की जाए का मंत्र ढूँढ लिया है? इसी असुरक्षा की भावना को अपना हथियार बना वो राजनीती कर रहे हैं? तुम्हारे पास ये नहीं है, हम देंगे? शायद आपका ही आपसे छिनकर? और बन्दर बाँट की तरह सिर्फ रुंगा देंगे? बाकी सब खुद खा जाएँगे?  
    
और वो करेंगे ऐसे जैसे, आपको असुरक्षा की भावना नहीं दे रहे, बल्की सुरक्षा की भावना या कवच दे रहे हैं? अब उन्होंने आपको असुरक्षित कैसे बनाया है, ये थोड़े ही आपको दिखाया या बताया है? वो तो गुप्त-गुप्त तरीके से करते हैं। बाँटो, फूट डालो और काटो?     

या शायद कहीं किन्हीं देशों में इसके अपवाद भी हैं? क्यूँकि, असुरक्षा की भावना पैदा करके आप बहुत वक़्त कुर्सियों पर नहीं टिक सकते। एक न एक दिन लोगों को समझ आना ही है की आप क्या कर रहे हैं।   

Monday, November 11, 2024

जो चाहते हो ज़िंदगी सरल और आसान

नंबरों से, स्टीकरों से, 

राजनीती से दूर भी एक जहाँ है 

और वो जहाँ खुबसुरत है। 

वो इंसान को इंसान के रुप में पहचानता है 

उसे उसके नाम से जानता है 

ना की उसके पिछे छिपे किसी कोड से  

किसी राजनीतिक नंबर से। 


शायद यहाँ आप लोगों को तब से जानते हैं 

जब ना किसी ऐसी राजनीती की खबर थी 

और ना ही ऐसे किन्हीं राजनीतिक नंबरों की 

या कोड़ों में बटे सिस्टम के कोढ़ की। 

यहाँ मतभेद भी हो सकते हैं 

संवाद ही नहीं, बल्की, वाद-विवाद भी 

मगर एक दूसरे का बूरा चाहने वाले नहीं। 


जो चाहते हो ज़िंदगी सरल और आसान 

तो ऐसे से कुछ लोगों को साथ रखिए 

पढ़िये, देखिए, सुनिये  या याद रखिए 

ज़िंदगी कैसी भी मुसीबत से पार निकल 

सजती-संवरती और आगे बढ़ती जाएगी।  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 86

तुझे ये भंडोला कैसे पसंद आया? तेरे आसपास तो और बेहतर से ऑफर हुआ करते थे, सुना है। 

ये सालों बाद, सिर्फ कहीं ऑनलाइन सुनने या पढ़ने को नहीं मिला, बल्की, तभी से चला आ रहा है। अब किसको क्या पसंद आता है और क्या नहीं और क्यों? इसका सिर्फ किसी के शरीर की बनावट से या रंग-रुप से या हाव-भाव से, या पढ़ाई-लिखाई से या परिवेश से या शायद इनसे आगे भी बहुत से फैक्टर्स से लेना-देना हो सकता है? 

हाँ, जहाँ एक्सपेरिमेंट्स हों, वहाँ तो एक्सपेरिमेंट्स करने वालों के, अपने ही किस्म के, कितनी ही तरह के तथ्य हो सकते हैं? ऐसे लोगों बीच और स्टीकरों वालों के बीच फँसना, जैसे ज़िंदगी बर्बाद करना। बस, शायद ऐसा ही कुछ हुआ यहाँ? सुना है दो तरह के इंसान और दो ही तरह के खाने हैं दुनियाँ में?

Food for Thought 




और?
 Food for Hydra या केकड़ा? 


किसका परिणाम है ये? 

Jealousy?
Ugly Fights?
Dirty Politics?
Whatever?
और पता नहीं क्या-क्या और कैसे-कैसे ऑपरेशन्स? जो आज तक पीछा कर रहे हैं?  
 
Reflections   
वैसे ज्यादा पर्सनल चीजें ऑनलाइन नहीं रखनी चाहिएँ। क्यूँकि, ऑनलाइन कुछ पर्सनल नहीं होता। फिर आज की दुनियाँ में तो ऑनलाइन क्या, ऑफलाइन भी नहीं होता। जाने किधर का रुख हो, तो चेप दे इन्हें भी मेल्स में? अब मेल्स में ही जो आ गया, तो Reflections में क्यों नहीं?  
बोतड़ू, ईमेल दिखावें सैं? "Males do need reply.." type?  
अब बेचारों के पास पत्र तो हैं नहीं, और क्या दिखाएँगे? इंटरनेट की दुनियाँ के डिजिटल? वैसे डिजिटल आजकल एक फैशन स्टेटमेंट भी है शायद? जहाँ, जिधर देखो, उधर ही ये शब्द मिलेगा। शायद आज की दुनियाँ की जरुरत भी? क्यूँकि, आप किसी भी क्षेत्र में हों, इसके बिना तो गुजारा है नहीं।         

Sunday, November 10, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 85

Thorns and Fools or Flowers?

Blacks and Whites?

Confusion and Realities?

Love and Hate?

If you cannot convince then confuse?


इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी एमर्जेन्सी? 

आपकी नशबंदी कर दी। लो ये हरियाली ओढ़ लो या पहन लो? और जनसँख्या कंट्रोल के नाम पर गरीब लोगों का या परिवार के परिवारों का खात्मा? उनके अपनों या आसपास वालों को ही साथ में लेकर? 

नशबंदी से खात्मा हो जाता है क्या?

हाँ। अगर आपको बच्चा गोद लेना या और कोई तरीके पता ना हों तो परिवार के मतलब के नाम पर या कोई ठीक-ठाक ज़िंदगी के नाम पर? या शायद ये राजदरबारी साम्राज्यवादी समझ से आगे, इंसान की ज़िंदगी के और कोई मायने ही ना हों?

सुना है की आज भी साम्राज्यवाद मधुमख्खी के छत्ते वाले कॉन्सेप्ट पर आगे बढ़ता है? इंसानी मधुमख्खियोँ के छत्ते? जहाँ एक रानी होती है और बाकी सब उसके सेवक और सेविकाएँ? क्या हो यही सब अगर आम से लोगों के दिमाग में भी घुसेड़ने की कोशिश की जाए? बाकी सब बहन, भाइयों का सफाया कॉन्सेप्ट? सुना है यहाँ-वहाँ सालों, दशकों या सदियों से गुप्त रुप से थोंपा हुआ आज तक चल रहा है? हकीकत तो जानकार ज्यादा जाने।           

या अमेरिकन ट्रम्प और कमला हर्रिस लड़ाई  (गोरा-काला)? 

घने गोरे बणे हॉन्डें सैं। गोरे भगा क आड़े हिडम्बा धर दो। बावली-बूच सैं। सालें क समझ थोड़े-ए आवेगा, अक नाश कितनी ढाला ठाया जा सके सै। उन गौबर पाथन आलें न पकड़ों, वें बढ़िया करवावेंगे यो साँग भी, और वो साँग भी।

सिर्फ संसाधनों पर कब्ज़ा नहीं, बल्की एसिड अटैक से भी आगे बढ़कर तोड़फोड़?

इसका जवाब आपको भी शायद यही मिलेगा की राजनीती में या किसी भी समाज में, जिस किसी विषय, वस्तु का ज्यादा दिखावा हो रहा हो। मान के चलो हकीकत उसके विपरीत ही मिलेगी। जैसे कन्याओं या देवियों को पूजने वाला समाज या राजनीतिक पार्टी? गाएँ बचाओ, अरे नहीं, बेटी बचाओ वाले पोस्टर्स लगाने वाले, या गाने, गाने वाले लोग? या चीनी, गुड़-शक्कर से मीठे लोग? अब सबको तो एक लाठी से नहीं हाँका जा सकता, मगर, ज्यादातर ऐसे समाज के हाल कुछ-कुछ ऐसे ही मिलेंगे? जो वो गाते, सुनाते या दिखाते हैं, उसके विपरीत? 

ऐसा भी नहीं है की ये सिर्फ किसी एक के साथ या किसी एक ही परिवार के साथ हो रहा हो। मगर करने के तरीके इतने खतरनाक हैं की आपको खुद से प्रश्न करने पड़ जाएँ, आप कौन हैं? और कब से? और कैसे?

आप कौन हैं? कब से? और कैसे?

ये प्रश्न किसी को खुद से ही क्यों करने पड़ें?

आप शायद उस माहौल में पले-बढ़े हैं, जहाँ दोस्त बनाते वक़्त या खाना खाते वक़्त या किसी से भी कोई काम करवाते वक़्त आपने कभी सोचा ही नहीं की उसकी जाति क्या है? धर्म क्या है? मजहब क्या है? दिखता या दिखती कैसी है? सबसे बड़ी बात, इन्हीं बातों पर कई बार कुछ घर या आसपास के बड़ों तक से बहस तक हुई हैं। फिर अब क्या हुआ? ऐसा क्यों?  

लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब से किसी पर या किसी परिवार पर कुछ जबरदस्ती थोंपना या थोंपने की कोशिश करना, उस पर इलज़ाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करना या अपने कीचड़ से भेझे के स्टीकर चिपकाने की कोशिश करना? तो अंजाम क्या होगा? या वापस किस तरह के प्रसाद की उम्मीद करते हैं आप?

लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब में ये जाति, धर्म, काला या गोरा कहाँ से आ गया? या कैसे वाद-विवाद का विषय हो गया?     

ये शायद कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे कहना, की किसी को लाइट या गहरे रंग ही पसंद क्यों है? तड़क-भड़क क्यों नहीं? बच्चों से रंग पसंद क्यों हैं? बुजर्गों वाले क्यों नहीं? और भी कितने ही ऐसे से विषय, या पसंद ना पसंद हो सकती हैं। हालाँकि, इन सबको भी बदला जा सकता है। या कहना चाहिए की बदला जा रहा है, यहाँ-वहाँ। कैसे? सर्विलांस एब्यूज और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी के दुरुपयोग से। वो भी ऐसे, की सामने वाले को समझ ही ना आए की हो क्या रहा है और कैसे। बाजारवाद की बहुत बड़ी वजह है ये। कम्पनियाँ अपने गंदे से गंदे उत्पाद तक बेचने के लिए इस सबका प्रयोग कहो या दुरुपयोग करती हैं। एक छोटा-सा उदहारण लें?

चलो अगली पोस्ट में।      

Saturday, November 9, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 84

मान लो कहीं कोई आत्महत्या हुई हो और कहीं किसी आर्टिकल में कुछ-कुछ ऐसा पढ़ने को मिले, 70% कृत्रिम (synthetic) और 30% मारा-मारी (enforced)

भला ऐसे पर्सेंटेज कैसे निकाली जा सकती है? वो भी किसी आत्महत्या या मौत के केस में? शायद ठीक ऐसे ही, जैसे, बिमारियों के कारणों या कारकों की? जब बिमारियों की बात होती है तो पहला प्र्शन होता है की समस्या क्या है? उसके बाद आता है समस्या आँखों से दिखाई दे रही है, जैसे चोट या सिर्फ अनुभव हो रही है, जैसे कोई भी दर्द? दिखाई दे रही है तो समाधान थोड़ा आसान हो जाता है? और दिखाई नहीं दे रही तो उसके पीछे कारण क्या हो सकते हैं? वैसे तो जो दिखाई दे रहा हो, कारण या कारक उसके पीछे भी अक्सर छुपे हुए ही होते हैं और जानने जरुरी होते हैं। बहुत-सी बिमारियों के पीछे एक जैसे से ही कारण होते हैं। बहुत बार तो सिर्फ आपके आसपास के वातावरण या माहौल को जानकार ही बताया जा सकता है की क्या हो सकता है। 

माहौल क्या है? के बारे में जानना और आपके बारे में जानना या किसी भी तरह की बीमारी के बारे में जानना ही, ईलाज को काफी आसान बना देता है। आप किसी भी समस्या के बारे में जितना जानते हैं, उसका समाधान भी उतना ही आसान हो जाता है। ऐसे ही, अगर किसी गलत मंशा वाले इंसान को आपके बारे में जितना पता होता है, उतना ही आसान आपको नुकसान पहुँचाना या ख़त्म करना हो जाता है। राजनीती अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है। जितनी ज्यादा मारकाट राजनैतिक कुर्सियों को लेकर होगी, उतना ही ज्यादा उसका असर वहाँ के समाज पर होगा। राजनीती में अगर पैसे से कुर्सियों की खरीद-परोख्त होगी, तो ऐसी राजनीती इंसानों तक को खरीद-परोख्त करने योग्य वस्तु बनाकर छोड़ देगी।   

खरीद-परोख्त से भी आगे क्या है? 

मान लो दो सेनाएँ हैं। और दोनों के पास सँसाधन हैं। ऐसे ससांधन, जिनके दम पर वो मनचाहा माहौल घड़ सकते हैं। मनचाहा माहौल घड़ना? और मनचाहे रोबॉट बनाना? क्या सच में इतना आसान है? लैब में तो है?

मगर लैब का साइज अगर 7-करोड़ के पार हो तो? 7-करोड़ तो इंसान हैं सिर्फ। उनसे कहीं ज्यादा जनसंख्याँ दूसरे जीवों की है। और फिर निर्जीव भी तो चाहिएँ, माहौल घड़ने के लिए। क्यूँकि, कोई भी लैब सिर्फ experimental material से नहीं बनती। जिस पर अनुसंधान करना है, या जिनको अपने अनुसार चलाना है, उनके लिए सिस्टम तो थ्योरी के अनुसार घड़ना पड़ेगा।  Stackable and Movable Units? बड़े साइज या नंबर को छोटे-छोटे सिस्टम में बाँट कर, ऐसा संभव हो पा रहा है। चलते-फिरते इंसान, या चलते-फिरते मानव रोबॉट? छोटी-छोटी सी कोलोनियाँ या गाँव या मौहल्ले, ये सब जानने, समझने और सच में आँखों के सामने होते देखने के लिए सही हैं।   


तो 70% पर जो हुआ वो आत्महत्या थी क्या? ठीक ऐसे ही जैसे, और कितनी ही मौतें ?