Sunday, October 19, 2025

Modern Warfare, Pros and Cons 4

Human Robotics 

वो कौन से कारक या कारण हैं, जो आपको रोबॉट बनाते हैं? कैसे पता चले? 

Experiential Learning  (अनुभव से समझा जाना गया, ज्ञान और विज्ञान) 

काफी कुछ Campus Crime Series से समझ आने लगा था। उसपे रोज-रोज के यहाँ-वहाँ के नुक्कड़-नौटंकियाँ देखकर या भुगतकर। गाँव ने तो जैसे आँखें ही नहीं खोली, बल्की, मानो दिमाग ही उधेड़ डाला। कौराना दौर तो ऐसा था जैसे आप फटना चाह रहे हों और बताना चाह रहे हों, जो मौतें हो रही थी, वो मौतें थी ही नहीं। लोगों को गुनहगारों के बारे में बताना चाह रहे हों, मगर खुलकर बोलने, लिखने पर पहरे हों, सत्ता के। So called disaster management वालों ने जैसे मुँह पर सील लगाने का काम किया हो। ऐसा करोगे तो? और खून करेंगे।   

आपने एक घर को ही नहीं, बल्की, आसपास को ही ऐसे उथल-पुथल होते देखा था, जैसे वो खुद भी नहीं देख और समझ पा रहे थे। शायद, केस स्टडीज़ करते-करते कुछ मैं एक आम आदमी से ज्यादा समझने लगी थी। और कुछ मुझे ज्यादा बताया और समझाया जा रहा था। कहीं हकीकत के, तो कहीं फेक विडियो या आर्टिकल्स द्वारा। यहाँ वहाँ, जैसे हकीकत पर पर्दा डालने की कोशिशें। तो कहीं और वक़्त लेने की खवाहिशें, गुनाहों को और धुँधलाने के लिए। ये सब करने वालों को बचाने के लिए। बाहर निकलने की  कोशिशों पर रुकावटें, धमकियाँ, डरावे, नौटंकियॉँ। सबकुछ छीन झपटकर, कुत्ते के जैसे टुकड़े डालना और उस पर अहसान भी लेने की कोशिशें। 

शुक्र है की बिहार, UP, ओडिशा जैसे राज्यों से नहीं हूँ। नहीं तो इतनी बंदिशों और रुकावटों के बाद तो भूख प्यास से ही मर चुके होते। हालाँकि, करने वालों ने ऐसा हाल बनाने की कोशिशें बहुत की। ये मैंने क्यों लिखा की शुक्र है, बिहार, UP, ओडिशा जैसे राज्यों से नहीं हूँ। हूँ क्या? आप हैं? मगर दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, बंगलौर या पटना से भी नहीं हूँ। आप हैं? 

Human Robotics  में पहला अटैक पहचान भर्मित करने की कोशिशें ही होता है। जैसे, जैसे आप उसके जाल में उलझते जाते हैं, वैसे, वैसे मानव रोबॉट बनते जाते हैं और दूर, बहुत दूर बैठे लोग भी आपको और आपकी ज़िंदगी को रिमोट कंट्रोल करने लग जाते हैं। और ऐसे ही कितने ही प्रश्न, रोज-रोज यहाँ-वहाँ लोगों की ज़िंदगियों में धुँधलाने की कोशिशें करती हैं, ये राजनीतिक पार्टियाँ, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और मीडिया। आप कहाँ से हैं, ये तो बहुत दूर का प्र्शन है। 

उससे पहले तो वो आपका नाम क्या है? 

उसके शब्द क्या हैं? 

आपकी जन्म तिथि क्या है?

आपके माँ बाप कौन हैं?

बहन, भाई कौन हैं?

चाचा, ताऊ, दादा, दादी, बुआ, मामा वैगरह या इनके बच्चे कौन हैं? क्या लगते हैं वो आपके? ये तक धुँधलाने की कोशिशें करती हैं ये राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी बड़ी कंपनियों के गठजोड़ या उनकी पढ़ी लिखी टीमें। और वो सब वो कहीं अद्रश्य रुप से या कहीं कहीं खुद आपसे नौटंकियाँ तक करवाकर करते हैं। इसे बोलते हैं, हकीकत को मिटाने की कोशिशें। और उसपर अपने घड़े किस्से कहानियों के जाले पूरने की कोशिशें। जहाँ जहाँ ये सफल होता है, वहाँ वहाँ रिश्तों के तोड़मरोड़, आपस के झगड़े, बिमारियाँ और मौतें तक होने लगती हैं। 

ऑफिस में कहीं शास्त्री सर, और कहीं PK जयवाल, CS पुंडीर,  श्याम मिश्रा, विनीता शुक्ला, पुष्पा मैम, मिनाक्षी विनीता हुडा, BK बहरा, विकास हुडा या विकास ढुल, सोनिया, वीरभान, राहुल ऋषि, युद्धवीर या फिर Batchmates या फ्रेंड्स या स्टूडेंट्स के नामों वाले ड्रामों के हेरफेर थे तो 

गाँव आते ही ये दादा, वो दादा, ये दादी, वो दादी, ये ताई, वो ताई, ये चाची, वो चाची, ये बुआ, वो बुआ, ये फूफा, वो फूफा, ये बहन, वो बहन, ये भाई, वो भाई, ये भतीजा या भतीजी और वो भतीजा या भतीजी या भांजा या भांजी के नामों वाले ड्रामे शुरु हो गए। तुम्हारे साथ ये हुआ, तो उसके साथ वो हुआ। उसके साथ वो हुआ, तो तुम्हारे साथ ये हुआ, के किस्से कहानी ही जैसे ख़त्म होने का नाम ना ले रहे हों। हद तो ये, की कोई लड़की ऐसे बोले, जैसे, उसकी चाची या ताई या कोई बहन, उसकी चाची, ताई या बहन ना होकर, मानो सास या दुरानी, जेठानी या नन्द हों या कोई सौतन। ऐसे ही पुरुषों के केसों में। जैसे आप किसी पागलखाने में आ टपके हों। 

लोगों के दिमागों में इन गुप्त राजनीतिक या ख़ुफ़िया तंत्र की ईधर या उधर की सुरँगों द्वारा, इतना गड़बड़ झाला कर देना ही झगड़ों, विवादों, बिमारियों और मौतों तक को बता रहे हों जैसे। ये सब घड़कर, वो आपसे ना सिर्फ आपकी पहचान धूमिल करते हैं, बल्की, आपके दिमागों पर अपनी ही तरह के जाले फैला कर, उनको दूर बैठे रिमोट कंट्रोल भी करते हैं। ऐसा करके वो आपकी ज़िंदगी का हर पहलू अपने अनुसार चलाते हैं। 

इतना सब संभव कैसे है? आम लोगों तक का डाटा इकट्ठा कर, उनपे अपनी ही तरह की एल्गोरिथ्म्स और तरह-तरह के फॉर्मूले लगा कर। सोचो, कंपनियाँ या ख़ुफ़िया तंत्र करोड़ों, अरबों, सिर्फ लोगों को रिकॉर्ड करने या डाटा इक्कठ्ठा करने में क्यों लगाएँगे? वो भी आम लोगों को? इससे उन्हें क्या फायदा? काफी कुछ आपकी अपनी IDs के साथ जोड़कर और उन्हें सिस्टम से लिंक करके ऑटोमेशन पे रख दिया जाता है। ये सब होता तो लोगों की भलाई के नाम पर है। मगर, इससे कितना आम लोगों का भला या बुरा होता है, ये प्र्शन अहम है। उसके साथ-साथ सेमीऑटोमैटिक और enforcement का काम, ये पार्टियों की शाखाएँ और गुप्त सुरँगे करती हैं।   

कितना और कैसे-कैसे बचा जा सकता है, इस सबके दुस्प्रभाव से? जितना ज्यादा इस सबके बारे में जानकारी होगी, उतना ही ज्यादा आप सचेत होंगे। और उतना ही ज्यादा इन सबके दुस्प्रभावों से बच पाएँगे। तो कोशिश करते हैं आगे पोस्ट्स में इस गुप्त सिस्टम या तंत्र और सिर्फ रोबॉटिक्स नहीं, बल्की, मानव रोबॉटिक्स के बारे में जानने समझने की।                  

Modern Warfare, Pros and Cons 3

षड्यंत्र पे षड्यंत्र (Plot after plot)


Handover to Google Takeover?

DD O DD to Fix it?

They tried hard as hard as they could, but did that happen especially the way they wanted?

Plot after plot

कितने षड्यंत्र? और कितने किस्से और कितनी कहानियाँ?

इन्होने एक प्लॉट यहाँ धरा, तो उन्होंने एक प्लॉट वहाँ। मतलब, सबका एक ही, सामने वाले को ख़त्म करना।   


कहानी हैंडओवर से ही शुरु करें? 

उन दिनों ऑफिस की तरफ से हैंडओवर की इमेल्स का दौर चल रहा था। मगर, वो आजतक नहीं हुआ। जैसे वो चाहते थे, कम से कम वैसे तो नहीं हुआ। मेरी तरफ से तो बिलकुल ही नहीं हुआ। मेरा सामान आजतक उसी ऑफिस में पड़ा है। हैंडओवर का किस्सा शुरु होने के बाद, मैं उस ऑफिस ही नहीं गई। हालाँकि, सुनने पढ़ने में आया, की वीर "भान"  जैसे उपद्रवी तत्वोँ ने वो ऑफिस और उसका ज्यादातर सामान अपने नाम कर लिया। इंसान अपना कमाने की बजाय, दूसरों का हड़पने के लिए क्या कुछ तो नहीं करता? मगर ऑफिस तो छोड़िए, क्या उसका अपना घर तक उसके साथ जाता है? बस, इंसान इतना भर समझ ले, तो दूसरों का हड़पने और हडपाने के युद्ध ही ख़त्म हो जाएँ।   

घर आने के बाद, मेरे लिए उस ऑफिस का जैसे कोई महत्व ही नहीं रह गया था। मैं एक अलग ही दुनियाँ में जी रही थी। वो ढेर सारी फाइल्स जो पिछले कुछ सालों में इक्कठी करली थी, उन्हें पढ़ने, समझने और उनकी केस स्टडीज़ लिखने में। ये वो दिन थे, जब भाभी का स्कूल का प्रोग्राम बन रहा था। उन दिनों पड़ोस वाले वो दादी ज़िंदा थे, जो बाद में कैंसर (?) की भेंट चढ़े। और आसपास घरों में कुछ लड़कियाँ भी ससुराल से आकर घर बैठी हुई थी। दादी की कुछ बातें वक़्त के उतार-चढ़ाओं के साथ-साथ थोड़ी और रहस्यमयी सी हो गई जैसे। उनको समझने में कहीं यहाँ वहाँ मीडिया से सहायता मिली, तो कहीं उसके बाद चले घटनाक्रमों से। उनमें से एक रहा ज़मीनों के हेरफेर। घर, प्लॉट और खेत या स्कूल के साथ वाली ज़मीन का मतलब। या कहीं की भी ज़मीन, चाहे वो फिर घर हो या प्लॉट या कोई सँस्थान या खेत खलिहान, उसके मालिक और उसके आसपास से घिरे पड़ोस के सिस्टम और इकोसिस्टम से बनी है। और वो इकोसिस्टम, उस जगह पर तरक़्क़ी या नुकसान को बनाता और बताता है। जहाँ आप रह रहे हैं या काम कर रहे हैं, वही आपका आज है और जो कुछ काम कर रहे हैं, उसी से आपका कल निर्धारित होना है। 

दादी की कही कुछ बातें जिन्हें शायद अद्रश्य तरीके से कुछ राजनीतिक पार्टियाँ ही पहुंचा रही थी। या कुछ उनके अपने साथ हुए या आसपास के घटनाक्रम थे। जैसे भिवानी और 35 लाख का लेनदेन या हेराफेरी? ये सबका खा गया? और ऐसी सी ही कुछ बातें। हालाँकि, इनमें काफी कुछ से मैं आजतक सहमत नहीं हूँ। जैसा पहले भी लिखती आई हूँ, की हर केस अलग है और हर केस के पात्र और कहानियाँ ऊपरी सतह से आगे कुछ और ही दिखाते या बताते हैं।   

35 लाख से 40 

40 से 50 

50 से 60 

60 से 70 

70 से करोड़, डेढ़ करोड़, 2 करोड़ और जैसे कोई हिसाब किताब ही नहीं। 

अलग-अलग राजनीतिक पार्टियाँ और अलग-अलग हिसाब-किताब। कुछ पीछे की तरफ भी जाती हैं, जैसे 10 या 20 या 12 । सबके अपने-अपने कोढ़ और अपनी ही तरह की गोटियाँ। निर्भर करता है, की किसको क्या फायदेमंद है। 

ये सबका खा गया, की अलग ही किस्म की कहानी है। कुछ लोगों ने इसे 2005 के लड़कियों के ज़मीनी अधिकार से जोड़ा और मुझे पढ़ाना शुरु किया, की अपना हिस्सा ले ले। तेरे पास और कोई रस्ता नहीं है। या भारत छोड़ दे। ये लोग कौन थे? या कहना चाहिए की हैं? नहीं, शायद अब अपनी उस जुबान के साथ नहीं हैं? क्यूँकि, तब से अब तक, प्लॉट पे प्लॉट और प्लॉट पे प्लॉट कई तरह के धरे जा चुके। इधर वालों द्वारा भी और उधर वालों द्वारा भी। क्यूँकि, मैंने ऐसा करने से मना कर दिया। और हर प्लॉट ने कुछ आदमी खाए हैं, उनके अपने घर में? ऐसा ही? या कहीं कुछ गलत समझ आया मुझे? जहाँ खाए नहीं हैं, वहाँ बिमारियाँ तो जरुर दे दी हैं। और उन प्लॉटिंग के साथ-साथ, वो अलग-अलग स्टेज पर चल रही हैं?

सबका खा गया, की कहानी में वो बता रहे थे की जबसे इसने शादी की है (2005), ये दोनों बहन भाई को लूट रहा है। वहीं से तुम लोगों की ज़िंदगी में रुकावट के लिए खेद है, घड दिया गया है। मुझे लगा, की कितना भड़का सकते हैं ये लोग? एक बहन को अपने ही छोटे भाई के खिलाफ? और अभी तक वो भडकाव चल ही रहा है। एक तरफ इधर भाई के खिलाफ, तो दूसरी तरफ उधर इन दो बहन भाई के खिलाफ। ईधर-उधर की प्लॉटिंग ने इसे थोड़ा और संगीन कर दिया है। 

जब मैं घर आई, तो सुनील दादा जी के कमरे में रहता था और उन्हीं वाला बाथरुम प्रयोग करता था। ढेर सारा पीता था और इसके साथ उसके पियक्कड़ दोस्तों का जमावड़ा रहता था। तो बहन बेटियों या भाभी को दिक्कत तो होगी। यही सब देखकर मैंने कहना शुरु कर दिया, इसका कमरा खेत में बना दो या प्लॉट में। बिमारी थोड़ा दूर रहेगा तो रोज रोज का सिर दर्द भी कम होगा। और रितु के रहते ही, उसका वहाँ आना जाना बँध हो गया। अब उसकी अपनी सिर छुपाने लायक अलग जगह थी। मगर यहाँ दिक्कत और बढ़ गई। अब आलतू-फालतू लोगों के आने जाने पर कोई अँकुश ही ना रहा। माँ या बहन बेटी को उसने वहाँ घुसने पर ही पाबंदी लगा दी। उसने? ये जानना अहम रहा, की किसने? यहीं से शुरु हुआ, अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की अद्रश्य सुरँगों को जानना।

कुछ एक ऐसे तत्वों को बोला गया की आप यहाँ ना आया करें। मगर, उन्होंने जैसे ठान लिया लो, की ऐसा तो खुद आपके साथ होने वाला है।  मैं वहाँ घूमने जाती थी, अब इन लोगों ने मेरा यहाँ घूमना ही बँध करवा दिया। पहले खेत जाती थी घुमने, मगर मेरी गाडी हुंडई द्वारा शातिर तरीके से छीनने के बाद, अब गाडी जिन भले लोगों ने दिलवाई थी, पता चला उन्होंने ही छिनवा भी दी। हालाँकि, ये सब करते तो माँ और भाई ही दिख रहे थे। फिर ऐसे कैसे? 

जब माँ बाप या भाई बहन या कोई भी रिस्तेदार, अपने बच्चों या भाई बहन या अपनों से बात करने की बजाय, इन सुरँगों वालों से बात करते हैं, तो वहाँ कहानियाँ ऐसी ही बनती हैं। वैसे नहीं बनती, जैसे आप चाहते हैं। ऐसे लोग अपने लिए या अपनों के लिए काम करने की बजाय, इन राजनीतिक पार्टी वालों के काम बनाते हैं। उनके अद्रश्य चक्रव्यूहों में फंस जाते हैं। खुद और अपनों तक को लुटा बैठते हैं।  

फोनी ताकतें और in-silico कंट्रोल (राजनीतिक पार्टियों की ऑनलाइन सुरँगे) 

अपनों के साथ बातचीत ही ख़त्म और बाहर वालों से ज्यादा बातचीत (राजनीतिक पार्टियों का सीधा-सीधा कंट्रोल) 

यहाँ से मैं आपको मानव रोबॉटिक्स की सैर पर लेकर चलूँगी। एक ऐसा जहाँ, जहाँ हममें से बहुतों को लगता है की हमारी ज़िंदगी में जो कुछ हो रहा है, वो हम ही कर रहे हैं। हक़ीक़त, इसके बिलकुल विपरीत भी हो सकती है। आपका और हमारा ये जहाँ, हमारी ज़िंदगियों का हर पहलू तक, गुप्त तंत्र की जकड़ में है। जिसके आका राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ हैं। आप जितने ज्यादा अंजान और गरीब हैं, उतना ही ज्यादा इस तंत्र की जकड़ में भी। जितना ज्यादा आपके पास इस सबकी जानकारी और सँसाधन होंगे, उतना ही इनसे मुक्ती के रस्ते भी। 

मानव रोबॉटिक्स पर आगे पोस्ट्स में आपको काफी कुछ पढ़ने को मिलेगा।  

Friday, October 17, 2025

Online Frauds

 yahoo!?

and spams?

और spam में कभी IG मिलेंगे और कभी?

Commissioner?


कमिशनर साहब, spam के हवाले से हवाला माँग रहे हैं?
गलत बात। 

वैसे ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी इमेल्स आती ही रहती हैं, जाने कब-कब खास मौकों पर? कभी लोकल सी लगने वाली और कभी इंटरनेशनल। ऐसे-ऐसे लोगों के पास कितना खाली-पिली वक़्त होता होगा? कुछ भी बनकर बैठ जाते हैं? डर गई साहब मैं तो :( या :)

Fight on Your Ancestral Property by Political Parties? Why?

क्या आपकी दादालाही ज़मीन पर राजनीतिक पार्टियों का कोई अधिकार है? क्या वो आपकी जानकारी के बिना आपको ऐसे किसी युद्ध में धकेले हुए हैं? कब से और क्यों? क्या उस अद्श्य युद्ध की वजह से आपके लोगों को भी खा रहे हैं? या आप लोगों की ज़िंदगियाँ हराम कर रहे हैं? मगर कैसे? क्या आपकी अपनी ज़िंदगी भी राजनीतिक पार्टियों की गुलाम है? आपके ना चाहते हुए या विरोध के बावजूद?        

अगर साल, डेढ़ साल के अंदर ही, किसी संदिघ्ध मौत के बाद, जहाँ वो खुद एक स्कूल बनाने वाली थी, अगर कोई पहले से वहाँ स्कूल उस ज़मीन को हड़पता है, बचे-खुचे लोगों से, बहला फुसलाकर या लालच या किसी भी तरह का डर दिखाकर या तरह-तरह के प्रेशर बनाकर, तो उसे क्या समझा जाए? वो भी उस बहन के विरोध के बावजूद। उसपर अपने स्कूल का हिसाब-किताब तक देने से आना-कानी करता है, क्यों? ऐसा क्या छिपाया जा रहा है? 

इन प्रेशर में और इस सबको यहाँ तक पहुँचाने में एक बहुत बड़ा प्रेशर पॉइंट MDU है, जो चार साल Resignation के बावजूद, मेरी सेविंग पर बैठे हुए हैं। अगर सही में देखा जाए, तो ये सब किया धरा ही उनका है।    

लड़कियों के अधिकार दादालाही सम्पति (Ancestral Land) पर? ऐसे हाल में तो और ज्यादा जरुरी हो गया है, इस फाइल को उठाना। आप क्या कहते हैं? वैसे भी जब से घर आई हूँ, मेरे पास ना रहने लायक घर है। जिस खंडहर में मुझे धकेल दिया गया है, वहाँ ना पानी, ना बाथरुम और ना ही बिजली। बस ऐसे ही कोई तार लटक रहा है जैसे। मुझे समझ नहीं आता, की माँ यहाँ कैसे रहती थी? तो जिस इंसान ने अपनी सारी ज़िंदगी ऐसे हालातों में गुजार दी हो, वो कहाँ से सोचेँगे की पानी, बाथरुम या बिजली जैसी जरुरतें अहम होती हैं? ऐसा नहीं है, की भाई के पास बहुत है। हालाँकि, कहने वालों ने ऐसा कहकर बहुत भड़काने की कोशिशें की। इतना कम होते हुए भी उसने जो कुछ इकठ्ठा किया है, हाँ वो जरुर अहमियत रखता है। कैसे? हालाँकि, भाई का जो घर है, दिक्कत उसमें भी बहुत हैं, उस पर कोई और पोस्ट की राजनीतिक पार्टियाँ आपके घरों में बिमारियाँ कैसे परोसती हैं। और आपको खबर तक नहीं चलती की वो ऐसा कर रहे हैं? यही गुप्त तंत्र का कमाल है, की वो अदृश्य होते हुए आपके तकरीबन सब फसैले खुद लेता है। मगर, वो सब करते हुए तो आप दिखते हैं। मतलब, गोटियाँ भर उनकी।             

कहीं किसी विडियो में Ancestral प्रॉपर्टी पर जानकारी हो, तो जरुर बताएँ प्लीज। और किसी वकील की बजाय ऐसा कोई केस, अगर किसी को खुद ही लड़ना पड़े, तो क्या कुछ करना पड़ता है? Procedure Please? जाने क्यों लग रहा है, की वो ऑनलाइन वाले कोर्ट तो सो चुके हैं? हे कोर्ट्स, आप सो चुके हैं? जाग रहे हों तो, ईधर भी देख-सुन लो। अब जरुरी नहीं की आपके हर फैसले को मैं या मेरे जैसा कोई आम इंसान सही ही कहे। आखिर उसमें भी थोड़ी बहुत सोचने समझने की क्षमता तो होगी? अब बोलना भी शायद आप लोगों से ही सीखा है, तो इतना तो भुगतना पड़ेगा?       

एक छोटा सा किसान, जो 2-4 किले में खेती करके अपना गुजारा कर रहा हो, वो भी ऐसी परिस्तिथियों में, जहाँ बीवी किसी बिमारी की भेंट चढ़ चुकी हो। वो जो खुद एक टीचर थी, किसी प्राइवेट स्कूल में और घर को चलाने में सहायक भी। अब ये भेंट वैसे ही है, जैसे कोरोना के दौरान कितनी ही और बिमारियों से लोगों का दुनिया को अलविदा कह जाना। जो बहुत से प्रश्न छोड़ता है, ऐसे-ऐसे खुँखार हॉस्पिटल्स पर भी और कुछ हद तक उनके डॉक्टरों पर भी। ये स्कूल के साथ वाली ज़मीन सिर्फ आधा किला नहीं था, दो  भाइयों के नाम, बल्की, इस घर की लाइफलाइन थी। सबसे बड़ी बात इसकी लोकेशन, गाँव के बिलकुल पास होना। दूसरी, मीठा पानी, जो इस गाँव में कहीं-कहीं है। जहाँ कहीं यहाँ ये कॉम्बिनेशन है, वहाँ जमीने बिकाऊ नहीं होती। भूल जाओ की उनके दाम क्या हैं। उस पर राजनीतिक पार्टियों का इस पर युद्ध। क्यों? ऐसा क्या ख़ास है इसमें? राजनीतिक पार्टियों के लिए ज़मीन ही क्या, हर इंसान, हर जीव जैसे उनके जुए की गोटी भर हैं। फिर क्या सरकारी और क्या प्राइवेट? जिसकी जितनी ज्यादा चल जाए, वही अपने नाम कर लेते हैं, कोढ़ ही कोढों में। और भोले आम लोग सोचते हैं, की ये सब वो खुद कर रहे हैं? उन्हें नहीं मालूम मानव रोबॉटिक्स कहाँ तक पहुँच चुकी है। वो रिमोट कंट्रोल की तरह दूर, बहुत दूर बैठे आपको, आपके परिवार को और ज़िंदगी के हर पहलू को कंट्रोल कर रहे हैं।                  

तो ऐसे स्कूलों, हॉस्पिटलों या संस्थाओँ पर लगामी पर भी कुछ बात कर ली जाए? क्या कहते हैं मीडिया वाले विद्वान? तो आगे किसी पोस्ट का हिस्सा आप ही होने वाले हैं, जो इस विषय पर ज्यादा सही जानकारी या खबर चलाएँगे?  

RTI Or Mandatory Information Disclosure for any Trust or Society 2

सोचा याद दिलवा दूँ, कहीं खूनी स्कूल वाले भूल तो नहीं गए?  

RTI Or Mandatory Information Disclosure for any Trust or Society 1

 Dear Concerned authority,

Director, Principal, Manager or Whoever

Arya Senior Secondary School, Madina, Rohtak


You are requested to provide the following details as per RTI 


What is the name and registration number of the trust or society of Arya Sr. Secondary School?

In which year, it was founded?

Who are the members of this trust or society?

What are the rules and regulations governing this trust? Please provide a copy of all above.

How much property this trust has till now on different members' names?  Give a chronology of the assets obtained over the years. It can be in the form of land purchase or building construction or lab or library formation or any vehicle purchased or any other such item.

Give a list of all sources of income of this trust.

How many students or teachers or other supportive staff, schools belonging to this trust or society have?

What is the fee structure or any other income resources of this trust?

What is the salary of teachers and other supportive staff on paper and in reality in your school/s?

What percentage or bonus, dearness allowances etc. teachers and other staff members get from the additional income?

What kind of updation or refresher courses, your school provide to teachers and other staff? 

What is the time line, for teachers or staff updation or refresher courses?

How frequently have your teachers or staff members changed your school? What was the duration or reasons for their leaving your school?

Did any teacher, staff or student have any complaints against your school?

What is the criteria of conflict resolution in your school?

Do you listen to the concerned person, if there is any genuine problem or get rid off, because your management feels that person has no power or resources or even knowledge to challenge your school's wrongdoings?

Do you have any complaints regarding encroachment or wrongly taken over any land or property? If yes, what kind of resolution mechanism does your trust provide for that? 

In the first place, why such a complaint is there if any, as you are registered a trust or society for the benefit of society, not to exploit vulnerable people. And why should not your registration be cancelled by the concerned authority? 

One such verbal complaint was done by me, your younger cousin, Vijay Dangi and you said that you will provide the details of the bank account of that purchase. It did not happen till today. I had to take this route after much wait. You are requested again not just to provide the details of Sunil’s property along with your school but Ajay property also and any such property purchased by any member of this school’s trust or society.


You are requested to provide the following information in the form of print and soft copy via the same email from which you got it about Arya Senior Secondary School, Madina and related trust or society under Right to Information Act (RTI). 


In case of print, please stamp and sign it properly on each and every page, along with date and page number. Whatever charges will be for print copies will be given in cash (bill mandatory). In case, you feel there would be charges even for soft copy via email, then please add them also.


Dr. Vijay Dangi

Mobile 9 ......... 

Wednesday, October 15, 2025

Modren Warfare, Pros and Cons 2

Enforced Version

जो आप बोलना चाह रहे हैं, आपको वो ना बोलने दिया जाए। जो आप लिखना चाह रहे हों, आपको वो ना लिखने दिया जाए। जो आप करना चाह रहे हों, आपको वो सब ना करने दिया, संवैधानिक हदों में होते हुए। संविधान जिसका आपको अधिकार देता है। 

रोकता कौन है?

तरह तरह के जुर्म करने वाले। 

कौन हैं ये जुर्म करने वाले? 

हमारी अपनी सरकार? राजनीतिक पार्टियाँ? या उनके गुंडे?   

जैसे पीछे वाली पोस्ट ही। क्या दिख रहा है आपको उसमें?

मुझे जो दिख रहा है, वो ये है 

पता नहीं ये तीन डॉट क्या हैं यहाँ? 
ये सब करने वाले कलाकारों को ज्यादा पता होगा? मैंने तो कुछ और ही लिखा था।  

ऐसे ही जैसे, जो काँड इन गुंडों ने किए हुए हैं, उनको यहाँ वहाँ मिटाने की कोशिशें। जैसे Campus Crime Series की कुछ एक पोस्ट मैंने काफी वक़्त बाद पढ़ी और पता चला, अरे, ये गुंडों ने क्या का क्या बना दिया? मैंने ऐसा तो नहीं लिखा।  
सोचो जहाँ ऑनलाइन जहाँ के ये हाल हैं, वहाँ ऑफलाइन क्या कुछ होता होगा? और ये सब ऐसा भी नहीं है की सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा हो। जहाँ कहीं इन लोगों की पार पड़ती है, वहीं ये ऐसा ही करते हैं। जैसे दूसरों के मुँह में अपने शब्द डालने की कोशिश करना। जैसे दूसरे इंसान का खाना, पीना, पढ़ना, सुनना, देखना, पहनना, किसी के साथ होना या किसी से अलग, सब इस अनोखी दुनियाँ के अधीन है। ज्यादातर को ये सब होता संभव ही नहीं लग रहा होगा। क्यूँकि, ज्यादातर को इस दुनियाँ की खबर ही नहीं। फिर ये वाली गुप्त दुनियाँ काम कैसे करती है, उसके बारे में जानना तो बहुत आगे की कहानी है। जिस दिन वो सब समझ आना शुरु हो जाएगा, उस दिन आप खुद किए गए या कहे गए, खुद की पसंद या नापसंद, और अपने आसपास के बारे में भी काफी कुछ ऐसे सोचना शुरु कर दोगे, की आप कौन सी दुनियाँ में है। ये वो दुनियाँ तो नहीं, जिसे आप बचपन से जानते हैं या जिसके बारे में बचपन से पढ़ते या सुनते आए हैं। और ये दुनिया आपको अपनी आज की दुनिया से उतनी ही दूर लगेगी, जितना कम आपको इसके बारे में जानकारी है। 

जैसे पीछे एक केस स्टडी का छोटा सा हिस्सा लिखा। सिर्फ, उस सामान्तर घड़ाई के कुछ एक कोड। जैसे कट्टा, गाजियाबाद, किन्हीं बहन भाई की स्कूल में शादी और कट्टे का अलमीरा या ज़मीन में गाड़ने से भला क्या लेना देना? ये तो ऐसे नहीं हो गया जैसे कुछ भी कहीं से भी उठाकर जोड़ने की कोशिश? हाँ। अगर आपको हकीकत और सामान्तर घड़ाई वाली कहानी के abc तक ना पता हों तो। थोड़ा बहुत भी पता चलते ही आप दोनों कहानियों में सामंता देखने और समझने लगोगे। मगर जैसे ही उसको थोड़ा और आगे खँगालने लगोगे तो पता चलेगा की यहाँ तो काफी कुछ अलग है। जैसे कोई दो तस्वीरें देकर बोले, इनमें समानता और फर्क बताओ। फिर ये कोड क्या हैं यहाँ? ये कैसे मिलते जुलते से हैं? ये कोड गुप्त सुरँग वालों की देन हैं। जो इन कहानियों को या कहना चाहिए की इन लोगों को पता नहीं कबसे गुप्त तरीके से अपने अनुसार घड रहे होते हैं। ठीक ऐसे, जैसे, कोई कुम्हार घड़ा घडता है। मतलब, घड़ने वाले को पता है की उसे घड़ा कैसा चाहिए? और घड़ा ही चाहिए या फिर कुछ और। इसीलिए पीछे लिखा की कहाँ शांति होगी और कहाँ दंगे, इस सबका निर्णय वहाँ का गुप्त सिस्टम लेता है। 

अब प्र्शन तो ये भी हो सकता है की जब इतना कुछ गुप्त सिस्टम करता है, तो जुर्म करने वाले का कितना दोष? तभी तो कहते हैं, सब माहौल पर निर्भर करता है। आपके आसपास के सिस्टम पर निर्भर करता है। आपके अपने घर परिवार पर निर्भर करता है, की आपकी ज़िंदगी कैसी होगी। मुजरिम या गुनाहगार पैदा कौन होता है? किसके माथे पर कोई भी स्टीकर लगा आता है? उसे उसका परिवेश या माहौल बनाता या बिगाड़ता है। उस माहौल में किसी भी बच्चे के घर से बाहर के कितने तड़के लगते हैं, और किस तरह के तड़के लगते हैं, वो माहौल उसे वैसा ही बना देते हैं। जितना कम कोई भी घर अपने बच्चों पर वक़्त लगाता है, उतना ही ज्यादा बाहर का प्रभाव या दुष्प्रभाव रहता है। जितने ज्यादा पिछड़े इलाके होते हैं, दुष्प्रभाव भी उतना ही ज्यादा बुरा या ख़तरनाक होता है। ये गुप्त तंत्र और राजनीती अपने सबसे ज्यादा प्यादे या गुलाम यहीं से ढूँढ़ते हैं। क्यूँकि, वो इनके लिए कोई भी और किसी भी तरह का काम बड़ी आसानी से कर देते हैं। 

ऐसा नहीं है की अच्छे इलाकों में या देशों में गुनाह नहीं होते। वहाँ भी होते हैं। वहाँ और ऐसे इलाकों में फर्क इतना भर होता है की वहाँ अपनी ज़िंदगी चलाने या मात्र गुजारे के लिए गुनाह नहीं होते। वहाँ ज्यादातर गुनाह कंट्रोल के लिए होते है। पद और प्रतिष्ठा के लिए होते हैं। यहाँ तो लोगबाग ऐसे लगे होते हैं, जैसे कॉकरोच कुछ और ना मिलने पर, कॉकरोचों को ही खाने लग जाएँ। 

कहीं से आवाज़ आ रही हैं शायद? ओ फालतू दुनियादारी के किस्से कहानीयों पर इतना फेंकने वाले, फॉर्म क्यों नहीं भर रहे। फॉर्म? बताओ मुझे क्या किसी इलेक्शन में उठना है? यहाँ तो हर 6 महीने में इलेक्शन होते हैं। हर छह महीने में कोई न कोई फॉर्म भरो और फिर रिजल्ट के नाम पर तमासे देखो। तमासे? हाँ। जानते हैं आगे किसी पोस्ट में।       

Modren Warfare, Pros and Cons 1

इंसान को रोबॉट बनाने में तीन तरह के तरीके अहम हैं

एक, लालच 
दूसरा, डर 
और तीसरा? 
भ्रम , उलझन, आशँका, शक की स्तिथि पैदा करना। 
जैसे, किसी वस्तु की आपको जरुरत नहीं। मगर, उसकी जरुरत दिखाना या समझाना। जो काम आप खुद करने में सक्षम हों, मगर, आपको इतना लाचार या बेचारा कर देना की भ्रम या शक पैदा हो जाए, की क्या आप उसे कर सकते हैं?
जो आपका भला चाहते हों, उनके खिलाफ आपके दिमाग में शक या भ्रम पैदा करना। 
किसी भी तरह से कमजोर करना। वो मानसिक भी हो सकता है। शारारिक भी। और आर्थिक भी। और इन सबका मिला-जुला रुप भी।  
जहाँ काम आराम से किया जा सकता हो, वहाँ जल्दी-जल्दी करवाना। जैसे कुछ छूटा जा रहा हो। जहाँ काम सबको साथ लेकर या मिलकर करने से अच्छा बने, वहाँ छुपम-छुपाई खेलवाना, जिसकी कोई जरुरत ही ना हो। खासकर, किसी ऐसे इंसान को दूर रखकर, जो उस बारे में थोड़ा बहुत जानता हो और आपका हितकारी भी हो। मानकर चलो, की ज्यादातर छुपम-छुपाई वाले काम नुकसान करते हैं और वहाँ कुछ न कुछ छुपा हुआ गलत हो रहा होता है।      

साइकोलॉजी, आज के युग के युद्धों का बड़ा हिस्सा है।  
उसके साथ-साथ फिजियोलॉजी भी। शरीर के अंदर या बाहर के कैमिकल्स, द्रव्यों या तापमान वैगरह से छेड़छाड़। जो शरीर की क्रियाओं या प्रक्रियाओं पर प्रहार होता है। ये सब ना सिर्फ गुस्सा या शाँति लाने के साधन हैं। बल्की, बिमारियों के भी। ये सब सिर्फ आपके आसपास का वातावरण बदलने से भी किया जा सकता है और कुछ तरह के खाने-पीने, दवाई या कैमिकल्स से भी। और दोनों तरह के तरीके अपनाकर भी।  
आप क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, क्या खाते या पीते हैं, क्या पहनते हैं और कैसे लोगों के बीच रहते हैं, ये सब आपके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। वो जो आप एक तरह के वातावरण और लोगों के बीच रहकर देखते, सुनते, खाते पीते या पहनते हैं, हो सकता है सही हो। मगर वही दूसरी जगह, वातावरण या लोगों के बीच नुकसान कर सकता है। इसलिए आप कैसे माहौल या लोगों के बीच रहते हैं, बहुत महत्व रखता है।      

कोई भी सिस्टम तीन तरह से काम करता है 

Autonomous System जैसे, ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन 

Semiautonomous System जैसे, सेमिऑटोमैटिक मशीन 

Enforced System जैसे, बिना वॉशिंग के कपड़े धोना   

इंसान को रोबॉट बनाने में ये तीनों सिस्टम अपनी-अपनी तरह की भूमिका निभाते हैं। तीनों सिस्टम अलग-अलग तरह से इंसान पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। 
सिस्टम की सबसे छोटी कड़ी आप खुद हैं क्यूँकि इंसान भी एक सिस्टम है, जो अपने को जीवित रखने और चलाते रहने के लिए अपने अंदर ढेर सारे और छोटे-छोटे सिस्टम लिए हुए है। ऐसे ही इंसान के बाद, उसके घर या आसपास का सिस्टम और फिर उससे बड़ा और बड़ा सिस्टम। जानने की कोशिश करें की ये तीन तरह के सिस्टम काम कैसे करते हैं?  

Autonomous, semiautonomous और enforced System  और कैसे वो आपको रोबॉट बनाते हैं? वो भी ऐसे की आपको पता तक नहीं चलता की आप जो कर रहे हैं, वो आप खुद नहीं कर रहे। बल्की, आपसे कोई करवा रहा 

है। या रहे हैं? मगर कौन? या कौन-कौन? और कैसे-कैसे? 

हमारे जैसे देश में जहाँ 24 घंटे, 365 दिन इलेक्शन चलते रहते हैं। वहाँ तो लगता है जैसे सब वही राजनीतिक पार्टियाँ करवा रही हैं। उन्हें इलेक्शन से पहले अपने जुए के कोढ़ों के कुछ नंबर चाहिएँ। और जैसे भी हो, वो 

उनके लिए कुछ भी करेंगे। और आपको उन्हीं नंबरों वालों से बचना है। संभव है क्या?

Monday, October 13, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 20

 1 Feb 2023 को रितु की मौत के बाद 

पहला जो प्रोग्राम चला, वो था किसी औरत को उस घर में घुसेड़ना। और जल्दी ही उसका घर से बाहर होना। 

दूसरा? 

वो स्कूल जिससे निकल कर रितु आई थी इस घर में बहु बनकर, उस स्कूल के साथ वाली एक भाई की ज़मीन निगलने का काम। सुनील (भाई) की ज़मीन, लक्ष्य (भतीजा) नाम के गुंडे द्वारा धोखे से, 2 बोतल से अपने नाम करना। और एक दूसरे गुंडे अजय दांगी द्वारा ये सब करवाना। December 14 2023?  

बहन विजय दांगी के विरोध के बावजूद। 

एक भाई, चाचा का लड़का और दूसरा भतीजा दूसरे दादा के यहाँ से। वो दूर बैठ जिन्हें आप बच्चा समझते रहे? गाँव आकर पता चलता है, की वो बड़े उस्ताद हो चुके हैं। 

एक खुद को किसी खास पार्टी या कहो की खुफिया एजेंसी का लोकल ठेकेदार बता रहा था। फेँकने में यहाँ ज्यादातर अपने फ़ेंकू के जैसे ही हैं। तो दूसरे को, दिल्ली गैंग का छोटा-सा कोई प्यादा बताते हैं। बच्चे ने वहाँ से पढ़ाई की है थोड़ी। और बच्चे को अब बच्चा बोलना बँध करो।   

अगर कोई ज़मीन दो भाइयों के नाम है और उसका एक हिस्सा, कोई किसी पीने वाले को 2 बोतल देकर लेने की कोशिश करे, तो क्या वो ले सकता है? या बड़ी बहन के विरोध का कोई अर्थ है वहाँ? क्या उसकी सहमती के बिना वो ज़मीन बेची जा सकती है?  

और बेची भी कितने में? 5-6 लाख? वो ज़मीन जिसपे इन स्कूल वालों की निगाह तभी से थी, जब उन्होंने ये स्कूल बनाया (2000 या 2001?)। मगर मिली नहीं। वो ज़मीन जिसकी आज वहाँ कीमत करोड़ों में है। 2 कनाल, 5-6 लाख? सही सौदा है?

बहन ने ज़मीन के वो धोखाधड़ी वाले पेपर मिलने के बाद विरोध और तेज कर दिया। मगर साहबों के राजनीती वाले इस इलाके में औरतों की भला कौन सुनता है? यहाँ बहन बेटियों के नाम ज़मीन नहीं होती? अरे? ये क्या बोल गए ये? मेरे घर में तो मेरी अपनी बुआ के नाम है आजतक। एक ही बुआ है मेरी, दो भाईयों के बीच। ठीक वैसे जैसे मैं एक बहन, और दो भाई। तो उस घर में भी ऐसे कैसे हो सकता है की बहन की कोई सुने ही ना? या उसके विरोध करते-करते बड़े भाई लोग गुंडों की तरह व्यवहार करने लगें? अब वो लें या ना, वो उनकी अपनी मर्जी। मगर बहन की सहमती के बिना खाने का रिवाज़ कम से कम, इस घर में तो नहीं था। 

किस्सा यहीं नहीं थमा। 

उसके बाद अजय दांगी से बात हुई। उसने पहले तो मना कर दिया की उसका इस सबसे कोई लेना देना नहीं है। उसके बाद जब उसे बताया गया की सबूत हैं तेरे खिलाफ। ज़मीन बचेगी तेरी भी नहीं और ना ही तू। तो महानुभव बोलता है, उसे मैं खुद ही बेच दूँगा। और कुछ वक़्त बाद सुनने में आया की उसने भी अपनी स्कूल के साथ वाली ज़मीन इन्हें दे दी, किसी दुकान के बदले। बढ़िया। ये काम तो वो पहले भी कर सकता था। हमारे यहाँ ये कबाड़ रचना ज़रुरी था? उनके ढाई किले वैसे ही हो जाते। 

बात इतने पर भी नहीं रुकी। पीछे किसी पोस्ट में कोई खास नौटंकी पढ़ी होगी आपने। एक तरफ आर्मी कलर की गाडी और दूसरी तरफ काली थार। और इनके बीच वाले घर में काफी सालों बाद एक खास इंसान दिखा। यही स्कूल का मालिक। चल क्या रहा था वहाँ? बलदेव सिंह के एक किले से 2 कनाल और रह गई थी। वही रितु वाली, जहाँ वो स्कूल बनाने वाली थी, उसका सौदा चल रहा था? ना इसमें भी गड़बड़ हो गई थी। जिसने दी ही नहीं थी, उसकी ज़मीन गलती से अपने नाम करवा गए। बहन ने वो पकड़ लिया। तो अब दूसरे की भी ले लो, यही बढ़िया तरीका था? मगर, बहन के आते ही सब तीतर बितर हो गए। सोचो, ख़ुफ़िया तंत्र कितना ख़ुफ़िया है? या कितना खौफनाक? वो ख़ुफ़िया तंत्र आदमी खाता है, खास तारीख, खास महीना और खास साल को। और खास बीमारी और खास जगह (PGI) , एक खास रात और? वो इंसान वापस घर नहीं आता। आती है तो उसकी लाश। उसी खास ज़मीन का ये खास सौदा, खास आदमियों वाले कोडों के बीच। और? आजतक वो उस बहन से भाग रहे हैं? खुद भाग रहे हैं या वही ख़ुफ़िया तंत्र भगा रहा है उन्हें, अपने गुप्त गुप्त तरीकों से? 

क्यूँकि, उस ख़ुफ़िया तंत्र को इस सामान्तर घड़ाई में आगे भी कुछ रचना है। उसकी नीँव बड़े अच्छे से वो रच चुके हैं। मगर, इन गोटियों को अब तक भी खबर नहीं।   

जिसके ये सामान्तर घड़ाई समझ आ रही है, उससे भगाया जा रहा है? या छोटी बहन से? जैसे पहले भी कई बार लिखा, हर केस अलग होता है और सामान्तर घड़ाई बनाने के चक्कर में उनमें बहुत सी कमियाँ भी रह जाती है। उन्हीं कमियों के देखकर आप बता सकते हैं की ये सब अपने आप नहीं हुआ, बल्की, घड़ा गया है। अब एक किले के तीन अलग-अलग हिसाब-किताब और उन्हें लेने के तौर तरीकों पर ही नजर दौड़ा लो। अपने आप समझ आ जाएगा, क्या कुछ और कैसे-कैसे हुआ है। उसपर आगे कोई और पोस्ट।                    

यहाँ पर दो पार्टियाँ अहम बताई। बल्की, कहना चाहिए की ख़ुफ़िया एजेंसियाँ। ख़ुफ़िया एजेंसियाँ? भला ख़ुफ़िया एजेंसियों का ऐसे छोटे-मोटे ज़मीन के ईधर उधर होने से क्या लेना देना? एक में एक दूर का कजिन है और अकसर उसके नाम के बाद गट्टे लगाकर उसका नाम उछाला जाता है। और दूसरी ख़ुफ़िया एजेंसी में कोई दोस्त या किन्हीं दोस्तों के घर से कहना चाहिए। जिनसे बात हुए ही काफी वक़्त हो चुका। ऐसे तो कोई भी कहीं नौकरी कर सकता है। और कोई भी किसी का भी नाम उछाल सकता है। लेकिन उसके बाद जब कुछ इस पर यहाँ-वहाँ पढ़ा, तो पता चला की सारा तंत्र ही गुप्त है, जो दुनियाँ को चला रहा है। और गुप्त एजेंसियों का उसमें बहुत अहम रोल है। ये जहाँ चाहें दंगे करवा दें और जहाँ चाहें वहाँ शांति। जिन्हें चाहें बसा दें और जिन्हें चाहें उजाड़ दें। 

क्या सच में इतना आसान है ये सब? लगता है, अगर आप सामान्तर घड़ाईयोँ को समझने की कोशिश करोगे तो। जैसे? 2012 या 2013 में यहाँ कोई चमारों या चूड़ों के बच्चों का खून, so called ऊँची जाती वालों द्वारा। और फिर? उस केस की कहानियाँ और कोड। जैसे उस केस में शामिल लोगों के नाम और कट्टे (illegal pistols from UP, Ghaziabad?) के पीछे के संवाद और कहानियाँ। कट्टा अलमारी पे छिपा दिया या वहाँ की ज़मीन में गाड़ दिया। दो बहन-भाहियों की शादी और उनकी शादी की एल्बम को पुलिस द्वारा खँगालना। इसी शादी के दौरान ये काँड हुआ था और इसी ख़ूनी स्कूल में वो शादी हुई थी। सुना है की जिस किसी की शादी इस स्कूल में हुई, वहाँ आगे चलकर कबाड़े ही कबाड़े हुए? और कबाड़े भी कैसे? ये उन लोगों की शादी के बाद के लफड़ों, झगड़ों, मार पिटाईयों या कोर्ट कचहरी के केसों, तलाकों और बच्चों के अनाथ होने से समझा जा सकता है। 

2005 में रितु की शादी, शायद इस स्कूल से ऐसी कोई पहली शादी थी। मगर वो उस स्कूल में नहीं हुई। वो उस स्कूल में पढ़ाती थी। शादी के चक्कर में स्कूल छोड़ना पड़ा या कहो की लताड़ कर निकाला गया था, बड़े ही बेहुदा तरीके से। उस वक़्त के उस स्कूल के डायरेक्टर के वक़्त ये सब हुआ था और उसके बेटे के आते ही मौत और ज़मीन की धोखाधड़ी या येन केन प्रकारेण छीना झपटी।   

इन सब कहानियों, लोगों की ज़िंदगियों की हकीकत से ये समझ आता है की लोगों की ज़िंदगियाँ किस कदर इस गुप्त सिस्टम के कंट्रोल में है। लोगों को इस गुप्त सिस्टम ने ऐसा रोबॉट बनाया हुआ है जिसमें सबकुछ किन्हीं और के अनुसार ही होता है। कौन हैं वो कंट्रोलर्स? जो पुरे समाज को अपने कब्ज़े में रखते हैं? उसी का नाम गुप्त तंत्र है, जो आपको 24 घंटे ना सिर्फ रिकॉर्ड करता है किसी लैब एनिमल की तरह, बल्की, अपने ज्ञान विज्ञान का दुरुपयोग कर आपकी ज़िंदगी भी अपनी स्वार्थ सीधी के हिसाब किताब से चलाता है।  

आज के वक़्त में किसी भी देश का खुफिया विभाग या एजेंसी इस गुप्त तंत्र की एकमात्र कड़ी नहीं है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, सैमसंग जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियाँ, मीडिया, डिफेन्स, पुलिस के कुछ विभाग भी उसका एक हिस्सा हैं।  तो सोचो दुनियाँ में कितने विभाग या एजेंसियाँ आम लोगों तक को रिकॉर्ड करती हैं? सबके कारण अलग-अलग हो सकते हैं। मगर, ईरादा? ज्यादातर एक ही, अपना-अपना निहित स्वार्थ या बाजार। 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 19

गट्टरवादी सोच?

गोडम-गुडाई सोच?

चोदम-चुदाई सोच?

गाँडव विवाह?      

या मच्छीबाज़ार?

या दो बोतल के बदले ज़मीन?

या भद्दे स्टीकर्स बहन-बेटियों तक पर?

1234? ABCD?

मुत्तो-हगो टेस्टिंग्स?

और भी पता ही नहीं 

कितनी तरह की संस्कारी सोच, विचार और कारनामे? 


ये सब करती हैं, हमारी राजनीतिक पार्टियाँ? 

और इन सबमें भागीदार होती हैं, बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ? 

बात 21वीं सदी की और काम?        

और काम कबीलाई दादागिरी वाले समुहों जैसे? 

कौन हैं आप?

वो जो लड़कियों को क्या, 

बल्की, जहाँ कहीं बस चले उस इंसान को 

कभी बड़ा नहीं होने देते?

उसको उसकी ज़िंदगी अपने हिसाब से नहीं जीने देते?


ये है अल्टरनेटिव राजनीती भाँड़ पार्टी, 

इसे बोलते हैं आप?

शराब के ठेकों की प्रधानता है इनकी?

और ये एक और अल्टरनेटिव राजनीती के उभरते सितारे?

अरविन्द केजरीवाल के 2. 0 बताए?

इनकी भी कुछ ऐसी-सी ही हैं प्राथमिकताएँ?

दो बोतल के बदले ज़मीन की मुफ़्तख़ोरी?

और बहन बेटियों की कोई नहीं हिस्सेदारी?

है। मगर सिर्फ बड़े लोगों की बेटियों की?

उनकी तो माओं तक की हिस्सेदारी है?

गरीबों की बेटियों को गोड दो हर तरह से। 

ऐसे भी, और वैसे भी। 


हर केस में सबूत इन so called बड़े लोगों के खिलाफ 

मगर?

मगर हार जाओगे तुम?

क्यूँकि, वकील और जज भी हैं उसी सिस्टम का हिस्सा?

जो ऊँगली और अँगूठे दिखाता है लड़कियों को?

नंबरो या बेहुदा कोढ़ों के स्टीकर दिखाता है, लोगों को?

गुडम-गुडाई या चुदम-चुदाई है, उनके संवैधानिक नीति का आधार?

ओब्जेक्शन्स के बावजूद की बँध करो ये धँधा, 

अपना बुचड़खाना और जुआरी बाज़ार। 

बँध करो,

अपनी बहन बेटियों तक के बैडरूम और बाथरुम में घुसना। 

उनके प्राइवेट पार्ट्स और अंदरुनी द्रव्यों तक पर ताक झाँक

और चौराहों के गुंडों जैसी टिक्का टिपणियाँ करना।  

बँध करो ये लिचड़खाना। 


बात हो,

मगर  उस कोढ़स्तान की 

जिसमें झोँक रखा है ये दुनियाँ भर का सिस्टम ऐसे 

की कौन, कब पैदा होगा (होगी) या नहीं होगा 

वो भी ये राजनीती बताएगी?

जो पैदा हो भी गया तो कब तक जिएगा?

और 

कब और कहाँ और कैसे मरेगा? 

ये भी, ये राजनीती बताएगी?

कब बच्चे बड़े होंगे 

किस तारीख, महीने या साल 

उनके पीरियड्स शुरु होंगे? 

ये भी, ये राजनीती बताएगी?

कब तक किसी के मेंसिज़ चलेंगे  

और किस-किस तारीख को शुरु होंगे, 

ये भी, ये राजनीती बताएगी?

कब किसके बँध होंगे? 

या ऑपरेट कर किस तारीख, महीने या साल 

ओवरी ही निकाल दी जाएगी?

ये भी, ये राजनीती बताएगी?


राजनीतिक बिमारियों पे बात करने से कतराने की बजाय 

PIL को बच्चों की तरह, IPL कह टालने की बजाय 

ये हैं किसी भी समाज के लिए गँभीर मुद्दे। 

ना की लोगों की ज़िंदगियों में इस कदर तांक झाँक करना 

की वो,

ऐसे ऐसे कोर्ट्स को भद्दा मज़ाक समझने लग जाएँ।     

    

बात हो, 

मगर ये, 

की दुनियाँ जहाँ की नज़रों के बावजूद 

कोई स्तान कैसे किसी औरत को 

उसके ऑफिस वाली जगह पर घेरकर पीट सकते हैं?

रिकॉर्डिंग्स के बावजूद,

ऐसे ऐसे गुंडे 

आज भी वहीँ काम करते हैं?

और वो महिला इस कदर परेशान की जाती है 

की नौकरी ही छोड़कर चली जाती है?

उसपर ऐसे ऐसे भी हैं वकील और जज 

जो कहें सही हुआ?

ऐसे ऐसे वकील और जज 

और क्या कुछ सही कहते होंगे?

सोचकर भी घिन्न आती है।  

खलल ना पड़े, बस उनके ऐशो आराम में। 

उन्हें घेला फर्क नहीं पड़ता 

फिर समाज जाए किसी भाड़ में।


जो लड़कियों को ज़मीन कह गुडवा, लुटवा या बिकवा दें? 

बड़े बड़े (कितने बड़े!) लोगों को या कंपनियों को ?

और ऐसे बाज़ारू धँधे के मालिक,

ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी मौतों पर 

गिद्ध जैसे निगलने को बैठ जाएँ?

अपने लोग?

या हद दर्जे के घिनौने लोग?      

कोर्ट्स?

यही सब देखने और शायद खुद भी करने के लिए बने हैं?