Happy go Lucky kinda stuff. Lilbit curious, lilbit adventurous, lilbit rebel, nature lover. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct. Sometimes feel like to read and travel. Profession revolves around academics, science communication, media culture and education technology. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.
कुछ-कुछ
ऐसे ही, जैसे पड़ोसियों ने आपके घर में सुरँग बना रखी हो, और आपके घर का
कीमती सामान साफ? या उसे हटाकर उसकी जगह कुछ और रख दें? अब ये पड़ोसी आपका
साथ वाला घर भी हो सकता है और दुनिया के किसी और ही कोने में बैठा हुआ कोई
इंसान भी।
पीछे वाली पोस्ट में पढ़ा सिर्फ एक शब्द का अंतर क्या कुछ बदल देता है।
अब मान लो, दो शब्द और बदल दिए
एक आगे पीछे कर दिया
Interest you
से
you interest
और दूसरा?
Attached with this email
से हो गया
Denied with this email
रौचक है ना?
मगर वेबसाइट रिफ्रेश करो तो ईमेल वही है, जो मैंने भेझी हुई है।
इस ईमेल के बाद आगे और भी रौचक है।
आगे पोस्ट में
बिहार इलेक्शन चल रहे हैं? ऐसे?
और अब तक ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे कितने एलेक्शंस भुगत चुकी मैं?
और आसपास?
रिश्तों के, बिमारियों या केसों के, नौकरियों के, घरों-जमीनों के और जन्म-मरण तक के हेरफेर?
कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे पड़ोसियों ने आपके घर में सुरँग बना रखी हो, और आपके घर का कीमती सामान साफ? या उसे हटाकर उसकी जगह कुछ और रख दें? अब ये पड़ोसी आपका साथ वाला घर भी हो सकता है और दुनिया के किसी और ही कोने में बैठा हुआ कोई इंसान भी।
या शायद कुछ ऐसा बिलकुल आपके सामने की अभी आपको राम की फोटो दिख रही है और अभी रावण की? या अभी कंस की और पलक भी नहीं झपकी की मोदी की या? किसी और की भी दिख सकती है? लेकिन असलियत में उस फोटो में है क्या? ये कैसे पता चले? या सच में कोई फोटो भी ऐसे छलकपट कर सकती है? रावण जैसे इंसानो का तो सुना था की कुछ भी भेष धारण करने की योग्यता थी उसमें। सिर्फ इंसान का ही भेष नहीं बल्की कोई भी जानवर, पक्षी वगरैह भी? सच है क्या? पता नहीं। कहानी ही होंगी सिर्फ? अब लेखकों का क्या है, कुछ भी घड़ दें? इंसानों के पँख लगा दें और वो उड़ने लग जाएँ? या घड़ियाली से अंग और वो जमीं और पानी दोनों में रहने लग जाएँ? या शायद पौधों के जैसा-सा chlorophyll पिग्मेंट सा रंग घड़ दें और सुरज की रौशनी से खाना बनाने की कला? अगर ऐसा होने लगे, तो नौकरी तो फिर कितने करेंगे? शायद करेँगे? घर और सुरक्षित माहौल तो फिर भी चाहिए?
मगर क्या हो की आप जिस किसी वेबसाइट पर अप्लाई करें, उस पर आपको सिर्फ आखिर तिथि ही नहीं बल्की नौकरी का नाम और कंडिशन्स तक कुछ और ही नजर आने लगें? एक दो बार तो लगेगा की शायद मुझसे ही धोखा हुआ होगा? मैंने ही ढंग से चैक नहीं किया होगा? मगर कितनी बार? और कौन कौन सी वेबसाइट पर?
मान लो आपने कहीं कोई ईमेल भेझी, जिसपे पहले से ही ऐसा कुछ लिखा हो, की यहाँ कर लो जॉइन। आपको लगे ये तो मस्त है। मगर फिर कहीं ईधर-उधर से कुछ और भी पढ़ने सुनने को मिले? और आपको लगे शायद कुछ गड़बड़ है? अभी आप सोच ही रहे हों और कुछ ऐसा सा दिखने लगे जैसे?
मान लोमैंने ऐसा कुछ लिखा
और कई दिन बाद उसी ईमेल पर ऐसा कुछ पढ़ा
ये क्या है?
ये तो मैंने नहीं लिखा?
साईट को रिफ्रेश कर
और फिर से जो मैंने लिखा, वही पढ़ने को मिला।
आपके साथ भी होता है क्या, ऐसा कुछ?
मेरे साथ तो जबसे मैंने अप्लाई करना शुरु किया है, तभी से? नहीं, नहीं, उससे भी पहले से हो रहा है। जब मैंने MDU को लिखित में शिकायत की थी, की मेरी yahoo email पर बहुत कुछ घपला चल रहा है। कभी कोई ईमेल मिलती ही नहीं और फिर वही ईमेल कहीं किसी और ही फ़ोल्डर में मिलती है। मैंने जो लिखा नहीं, ऐसा कुछ पढ़ने को मिल रहा है। वगैरह, वगैरह।
Social Tales of Social Engineering
और
Social Speech of Social Engineering
सिर्फ एक शब्द का अंतर है, मगर? एक ही शब्द ने जैसे सबकुछ बदल दिया ?
ऐसा भी बहुत बार लिखा है शायद मैंने? खासकर, ब्लॉग्स के बारे में?
मगर उसी वक़्त, यूँ खेलते कैप्चर पहली बार हुआ है?
ऐसा ही?
कुछ-कुछ ऐसे जैसे?
यहाँ अमर जवान सिंधु ज्योति प्रजव्लित है?
तो हम यहाँ?
नर वाली शिल्प कारी घङेंगे?
वो क्या कहते हैं?
AI?
Social Engineering?
Tales?
या
Speech?
आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करके कहानी घड़ना? या समाज की घड़ाई?
एक घड़ाई पीछे वाले घर में हो चुकी
और दूसरे वाली?
अभी चल रही है।
मगर, जिनपर चल रही है, उनको इसका abc नहीं पता।
ये है आज की दुनियाँ, जिसमें हम आज रह रहे हैं।
तो कमिश्नर साहब, मुझे अरेस्ट की स्पैम वाली धमकी की बजाय, आप खुद को और अपने जैसे तमाम अफसरों को आम लोगों के सामने अरेस्ट कराएँगे क्या? बताईये उन्हें की आप लोग, कैसा समाज और कैसे-कैसे घड़ रहे हैं? आम लोग तो आप लोगों के अद्रश्य जालों में, वैसे ही कैद हैं। झूठ तो नहीं लिख दिया कुछ?
यहाँ आप लोग शब्द हर उस पार्टी के लिए है, जो ऐसे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का प्रयोग या दुरुपयोग करके, आज का समाज घड़ रहे हैं। अपनी-अपनी कुर्सियों और बाजार की जरुरतों के हिसाब-किताब से।
A close friend father had the symptoms of paralysis. They took some treatment from nearby village Girawar. You might think why Girawar when PGI is nearer them? They always used to go to PGI, Rohtak or AIIMS, Delhi earlier, as these both were comparatively near to their home. Even I heard this first time from her.
But Girawar name was not the first time for this disease. One day, I was coming back to my village Madina from Rohtak and a lady in the same vehicle told me that she was going to Girawar for paralysis treatment. I asked her why not PGI, that's better and not that far away. She said, that's of no use, we had already tried. This one is famous for the treatment of paralysis. Those days, I myself had some such symptoms left side. The way codes revolved around, what I remember about Girawar? A friend's husband village, though they don't live there. That friend and her husband name, sir name and this village name. Icing on the cake, disease name, paralysis?
Can disease be treated like that?
Maybe, may not be? But if diseases can be created like that then may be?
I have heard and seen suchcreations in the surrounding in many other diseases cases also in last few years. Name any disease and you will hear such disease and treatment. Still, fact is most educated people prefer allopathy.
In these creations most interesting is how diseases diagnosis turn one disease into another, with the political shifts? Or even little happenings or mishappenings? Like fisrt diagnosed kidney stone. Then gall bladder? In some cases, there was none but packet milk contamination? But what if that person (me) had gone for the treatment?
In another case, almost same kind of diagnosis and mom had been treated for the gall bladder stone. But? What kind of happenings were those in the department and in that hospital? And even more important, specific types of cuts at specific places? 3-1? One near naval. Then look at the address and hospital name and doctors name there? Same way many other details.
Then cancer cases? Then other stone cases or paralytics cases in the surrounding.
And this one? Parkinson? With D side move? Or sun and moon references?
For people who still could not understand. Check this one
For people who wanna read whole article, check the link
हमें लगता है की अब तो इलेक्शन बड़े शांत तरीके से हो जाते हैं? पहले की तरह लठ, गोली, बूथ लूटना नहीं होता? ऐसा ही? कुछ सालों पहले शायद ऐसी सी कोई पोस्ट भी लिखी थी मैंने? पर जब पता चला की इलेक्शन वो हैं ही नहीं, जो हम सोचते हैं। ये तो कुछ और ही तरह का जुआ है। पहले इंटरनेट या फ़ोन की इतनी सुविधा नहीं थी, तो लठ, गोली वैगरह ज्यादा दिखते थे। अब? अब राजनीती का ज्यादातर जुआ ऑनलाइन चलता है? तब दुनियाँ यूँ ग्लोबल नहीं थी, जैसे अब? की अभी यहाँ कुछ हुआ और सिर्फ खबर ही नहीं, बल्की, action, reaction या response भी उसी वक़्त, दुनियाँ के किसी और हिस्से में भी।
Bio Chem Physio Psycho या Electrical युद्ध उस वक़्त भी होते थे। मगर, कहाँ क्या चल रहा है, उसकी उसी वक़्त खबर कम से कम आम आदमी को, कोडों के जरिए ऐसे नहीं होती थी जैसे अब? अब तो अभी कहाँ क्या पक रहा है या इनका या उनका अगला कदम क्या हो सकता है, उसकी खबर तक ऑनलाइन मिल जाती है। बढे चढ़े या बिगड़े रुप में शायद? हाँ, इस खबर के नुकसान भी काफी हैं। बहुत बार अगर खबर का माध्यम ही संदिग्ध हो, तो बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा भी समझ आ सकता है।
सोचो राजनीतिक पार्टियाँ आपको बिमारियों के बारे में बता रही हों?
ऐसे?
इससे सीधी-सीधी शायद कोई पोस्ट नहीं हो सकती?
BJP का दिल्ली में DENGUE से क्या लेना देना है?
ऐसे ही जैसे, AAP का FOGGING से?
कैसे कोड हैं ये?
राजनीतिक पार्टियाँ बिमार हैं क्या, जो वो ऐसे बिमारी फैलाती हैं?
शायद?
या शायद बहुत कुछ ऐसा सा, सीधा-सीधा या उल्टा-सीधा भी उसी वक़्त जाने कहाँ-कहाँ और किस किस रुप में देखने सुनने को मिलता है?
आपको Heavy Vehicle नहीं चलाना है। कोई भी Heavy Machinery Operate नहीं करनी है।
डॉक्टर पिंक ड्रिंक के साथ जाने क्या कुछ पूछ रही थी या इंस्ट्रक्शन दे रही थी।
तो आपको बहुत गुस्सा आता है आजकल?
जी?
आपने मोबाइल फेंक दिया?
क्या? थोड़ा हैरानी से। मुझे इस कदर सर्विलांस पे क्यूँ रखा हुआ है?
आपको ऐसा लगता है?
लगता है नहीं, सच है। मन में सोचते हुए, कल ही तो फ़ोन पटका था। कुछ एक को उड़ाना है, यूनिवर्सिटी में। सिर्फ फ़ोन से कहाँ काम चलना है। कुछ लोगों को देखकर ही जाने क्यों दिमाग फटता था उन दिनों।
आप यूनिवर्सिटी से बाहर कहीं घुमने जा सकते हैं। आपके पास छुट्टी हैं।
जी
तब तक गुस्सा शायद थोड़ा शाँत हो जाएगा।
थैंक यू कहकर मैं उठकर चल दी। खास मलिक शॉप से खरीदा हुआ एक 9000 का इंजैक्शन लगा हुआ था। वहीँ से लाने को बोला गया था, ये कहकर की हमारे पास है नहीं और उस शॉप के इलावा कहीं और मिलेगा नहीं।
प्रोग्राम बना चाय ल। चायल क्यों? पता नहीं। बनाया तो मैंने ही था? पता नहीं। यूँ लगता है, की उन दिनों की यादास्त थोड़ा कम थी। किसी घाट पे उतरी थी। मगर किस घाट पर? याद नहीं? शायद, अजीब सा नाम था? वहाँ किसी स्कूल के एक छोटे से क्वाटर? पर कौन थी ये लड़की? मैं तो इसे नहीं जानती थी। हाँ। नाम जरुर जाना-पहचाना था। और उसके पति का नाम, विजय। दिमाग थोड़ा कम जरुर चल रहा था, पर इतना तो चल गया था की कुछ गड़बड़ घौटाला है। और शायद एक ही दिन बाद मैंने कोई होटल बुक कर लिया था। मीडिया पर काफी कुछ चल रहा था। थोड़ा बहुत शायद समझ भी आ रहा था। कहीं कुछ था शायद, "बच गए"।बच गए? मगर किससे? षड्यंत्र से? किसी Hydra (2010) जैसी सी सामान्तर घड़ाई से?
आते वक़्त टैक्सी वाला काफी लेट हो गया था आने में और काफी कुछ बोल रहा था, क्यों और कहाँ लेट हो गया? फिर कहीं किसी FB वाल पर पढ़ा शायद, की मैं भी वहीँ था? हैं? तुम वहाँ क्या कर रहे थे? डिफ़ेंस ने पकड़ा हुआ था? या नेताओं ने?
उसके बाद घर आई तो रितु ने बताया की वहाँ का तो मुझे ऑफर दिया गया था, जॉब का। मगर मुझे सही नहीं लगा, अपना घर छोड़कर इतनी दूर जाना।
रितु के जाने के बाद गुड़िया को जब उसके स्कूल से निकलवाकर, किसी और स्कूल में करवाने का षड्यंत्र चला, तो जाने क्यों मुझे हज़म नहीं हो रहा था। यूनिवर्सिटी तो थी जो थी। यहाँ आकर स्कूल ही जैसे कोई पहेली बन गए। Emulative Software का प्रयोग चल रहा हो जैसे कोई, आसपास के समाज पर?
2018 की कहानी है ये। यूनिवर्सिटी द्वारा एक कोशिश, कांडों के कंट्रोल की, साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की मदद से? और किसी अपनी ही तरह की सामान्तर घड़ाई की कोशिश थी शायद, जो सफल नहीं हुई? जाने क्यों या कहो की क्या कुछ देख सुनकर मैंने अपनी जगह बदल ली थी, शायद इसलिए?
Sometimes we confuse similar looking or sounding words?
Like?
Solan and?
Solna?
एक HP में है और एक Stockholm।
स्टॉकहॉम से जाने क्यों स्टॉकहॉम सिंड्रोम याद आता है?
क्या खास है?
जब कोई कहे ख़तरा, तो हमारा दिमाग ऐसे से शब्दों या जगहों को ज्यादा याद रखता है?
कुछ-कुछ ऐसे जैसे PK?
अरे PK तो मूवी थी शायद कोई?
या सच में तू पीके है क्या? पी रखी है क्या?
ऐसे ही जैसे Pub या Bar?
पिछे Bar and Bench को पढ़के जाने क्यों ऐसा सा लगता था।
ऐसे ही जैसे Public या Publica या Republic भी?
कुछ भी जैसे?
पीछे जाने कौन से Neural Networks पढ़कर लगा, की matrix फिर से देखनी है। उसमें Simulation जैसा कुछ है क्या? अभी एक ही फिर से देखी, उसमें तो कुछ खास लगा नहीं। Kids वाली मूवी है जैसे? इससे घातक तो पीछे सुना NDTV (?), नहीं, नहीं, Youtube घड़ रहा था?
श्याम जी?
मगर ये पीछे सुप्रीम कोर्ट ने कुछ एक यूटुबेरस से अपने घड़े फ्रॉड विडियो हटाने को क्यों बोला? ऐसा क्या हुआ था उस दिन? कोई हिस्ट्री गुल हुई थी? लैपटॉप की :)
वापस श्याम जी पर आते हैं।
सुना है, हमारे यहाँ दिया-बात लगती है उसकी। वो क्या बोलते हैं? भगवान हैं हमारे यहाँ? अब स्कूल वाले हैं या घर वाले? ये Next Gen Ducks से पूछकर बताना पड़ेगा :)
Image taken only for science communication purpose
Or maybe political science, religious culture and mixed khichdi?
ये इमेज तो फ्यूज़न लग रहा है? अलग-अलग वक़्त का?
सोचो, इस सबका बिहार के इलेक्शन, duck या Sir List या किसी भी PK या Kismebar से क्या लेना-देना?
ऐसे ही जैसे Sting या Appy fizz या Sprite जैसी सोडा ड्रिंक का?
या शायद चाय का भी? तो अगली पोस्ट में आपको खास चाय की सैर करवाते हैं?
सुना है, एक महीना ही होता है RTI जवाब के लिए? वो आज खत्म हो रहा है। तो उस ज़मीन का धोखाधड़ी वाला लेन-देन भी ख़त्म हो चुका। वो जिनकी थी, उन्हीं की है और रहेगी। हाँ। अब लड़की और आ गई है, उस लिस्ट में। देखते हैं की जवाब और कारवाही अभी होगी या इस धंधे में संलिप्त कोर्ट और जज अपने चेहतों को और वक़्त देंगे? ये सब पूछने वाले का पत्ता साफ़ होने तक और इंतजार करेंगे?
इरादे नेक भी हों, मगर तरीके गलत, तो परिणाम भी सही कहाँ होते हैं?
एक trust या society, जो शिक्षा के नाम पर बनाए गए, मगर, स्कूली और शिक्षा के धँधे वालों के पास जवाब नहीं है की
उनके पास कुल कितनी प्रॉपर्टी है?
कब, कहाँ-कहाँ, कितने में और किन-किन लोगों के नाम पर खरीदी गई?
खासकर, पिछले कुछ सालों में उन्होंने कितनी प्रॉपर्टी, कहाँ, कहाँ और किस, किसके नाम पर खरीदी है?
और इतना पैसा उनके पास कहाँ से आया?
अजय दांगी का इस सबमें क्या लेना-देना है? उसकी ज़मीन और सुनील की ज़मीन का कैसा हिसाब-किताब है यहाँ?ये अपने आप में सारी पोल पट्टी खोल रहा है। एक की ज़मीन करोड़ों की और उसी किले की दूसरे भाई की ज़मीन कौड़ी की? हकीकत ये है, की वो अनमोल है और बिकाउ ही नहीं है।
सबसे बड़ी बात, अजय की ज़मीन का लेन-देन कब हुआ? ऐसा क्या विवाद उठ खड़ा हुआ, की उसे मेरे द्वारा सुनील की ज़मीन की 2 बोतल के बदले धोखाधड़ी का मुद्दा उठाने के बाद ही ज़मीन बेचनी पड़ी?
अपनी बहन-बेटियों को गोडो, चोदो के लीचड़ जुए बंद करो गुंडों। और ये कुर्सियाँ? कोठे के धँधे के एजेंटों की कुर्सियाँ हैं या शिक्षा के संस्थानों की? या शायद खास किस्म के राइटर और डायरेक्टर की हैं। कोई एक्सपेरिमेंट के नाम पर इम्प्लांट रखते हैं और कोई मूवी बनाते हैं। और खास इफेक्ट्स के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं।
और सुनो, जब कोई ज़मीन अगली पीढ़ी के नाम उतरती है, तो लड़की के नाम भी उतरती है या नहीं? अगर नहीं, तो लड़की से हस्ताक्षर तो लिए जाते होंगे? या वो भी कोई और ही उसके नाम पर कर देता है? ये तो एक और धोखाधड़ी हो गई। या मान लो, जिसने नाम करवाई, उस वक़्त ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं था। बाद में वो मुद्दा आ गया, और लड़की ने अपनी ज़मीन देने से मना कर दिया। खरीदने वालों को साफ़-साफ़ बता दिया, की आप नहीं खरीद सकते। मगर, वो फिर भी कहें की खरीद ली? तो कैसे देंगे बेचारे, ऐसी RTI का जवाब? धोखाधड़ी के सिवाय उनके पास कुछ है ही नहीं बताने को?
थोड़ा रिवर्स गियर करें? तुम मेरे बैगर उस ज़मीन का फैसला कर सकते हो?
18-07-2025 (Interactions और किस्से-कहानियाँ? 12)
काली थार HR 000 और 4 नंबर पे
दूसरी
तरफ, डिफेंस का या शायद हरा सा रंग DL 9C?
चलो कोई सीन घड़ते हैं
नहीं
उससे पहले थोड़ा ऑनलाइन इंटरेक्शन्स की तरफ देखते हैं
आपको कोई हकीकत की ज़िंदगी का सीन देखकर, जाने क्यों किसी गाने के कोई बोल याद आते हैं, खम्बे जैसी खड़ी है, लड़की है या छड़ी है? कौन-सा
गाना है ये? अजीब-सा है शायद कोई काफी पुराना, यही सोचते-सोचते आप YouTube
खोलते हैं। और जाने क्यों किसी और ही विडियो पर आपकी निगाह टिक जाती हैं।
पहले ये देखते हैं, क्या बला है?
The Odyssey 2026
Release date 17 July, 2026
मुझे ढिशूम-ढिशूम या ज्यादा हिंसा वाली मूवी पसंद नहीं आती।तो क्या बकवास है ये? पानी, आग, पथ्थर, अजीबोगरीब हथियार और मारकाट? छोड़ो।
चलो कोई सीन घड़ते हैं
एक
तरफ काली थार HR 000 और 4 नंबर पे? चलो रख लो कोई खास नंबर। एक बुजुर्ग
औरत के घर के बाहर खड़ी है। और उसमें कोई नौजवान बैठा है। शायद किसी का
इंतजार कर रहा है। गाडी के आगे कोई बिजली का खम्बा है और साथ वाले घर की
खिड़कियाँ एक साइड।
दूसरी
तरफ एक और गाडी खड़ी है। डिफेंस का या शायद हरा सा रंग DL 9C? फिर से एक
बुजुर्ग के घर के बाहर। हालाँकि उतनी बुजुर्ग नहीं, जितनी दूसरी बुजुर्ग
औरत। इसमें कोई नहीं है। मगर, इसके आगे भी एक बिजली का खम्बा है।
दोनों औरतें अपने-अपने घरों पे अकेली रहती हैं। क्यों?
जो
थोड़े ज्यादा बुजुर्ग हैं, उनके 5 बच्चे हैं। एक लड़की, सबसे छोटी शायद। और
चार लड़के। सब आसपास के शहरों में ही रहते हैं। मगर कभी-कभार सिर्फ लड़की ही
आती है शायद, उनसे मिलने। एक आध बार शायद उनका एक लड़का भी।
दूसरी
बुजुर्ग औरत का एक ही लड़का था। वो शायद से बुखार बिगड़ने की वजह से नहीं
रहा, काफी साल पहले। इन दोनों गाड़ियों के बीच में दो घर हैं। एक रोड पर ही।
और दूसरे घर की गली जाती है अंदर की तरफ। इसी रोड वाले घर के पीछे है वो
घर। एक लड़की इन गाड़ियों को बड़े ध्यान से निहारते हुए घर के अन्दर जाती है।
थोड़ी-थोड़ी बारिश आ रही है, जो जल्दी ही तेज हो जाती है। और ऐसे लग रहा है,
जैसे, किसी हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा हो रही हो। जैसे पिछे दुबई की
आर्टिफीसियल बारिश। एक आध मिनट बाद ही अंदर से बाहर कुछ लोग आते हैं। एक,
काली थार में बैठ कर चले जाते हैं। और एक उस हरी-सी गाडी में। बाकी वापस घर
के अंदर।
ऐसे
लग रहा था, जैसे, एक तरफ उन बुजुर्गों ने गाड़ियों को बाहर कर दिया हो? और
दूसरी तरफ? गाड़ियों वालों ने या राजनितिक सिस्टम ने उन बुजुर्गों को अकेला?
एक के तो कोई बच्चा नहीं है। मगर, जिनके चार-चार लड़के हों, वहाँ क्या कहा
जाए?
हर
किसी की ज़िंदगी में शायद अपनी ही किस्म के झमेले हैं। तो अपने ही माँ या
बाप के लिए वक़्त कहाँ होगा? या हो भी तो शायद, पीढ़ियों की दूरी होगी?
Generation Gap? या शायद हर घर की अपनी ही कहानी है। मगर ये कहानियाँ जाने
क्यों, ऊपर से तो किसी सिस्टम के कोढ़ में रची बसी सी लगती हैं? या सब
Random है?
ओह
! भूल ही गई। सालों बाद किसी को उस घर पर देखा। या शायद उस घर के 2 हिस्से
होने के बाद, पहली बार? ऐसे कैसे? जिससे मिलने आना था, उसके तो आते ही चल
दिए? क्यूँकि, जवाब नहीं हैं, उसके सवालों के? पिछले कुछ सालों के हादसे कह
रहे हैं, की जहाँ कहीं मुझसे छुपम-छुपाई या मुझे बाहर रख उस घर में कोई
अहम फैसला हुआ है, तभी काँड हुए हैं।
तुम्हे
क्या लगता है, तुम मेरे बैगर उस ज़मीन का फैसला कर सकते हो?
ये कोर्ट्स के
लिए। ऐसे कोर्ट्स, जिन्होंने लड़कियों को महज़ प्रॉपर्टी बना कर मरने के लिए
छोड़ दिया है। पढ़ी लिखी यूनिवर्सिटी में नौकरी करने वाली वयस्क लड़कियों के
एकाउंट्स तक कोई और ही, उनकी मर्जी के बिना, नही, विरोध के बावजूद कहना
चाहिए, अपने ही हिसाब-किताब की सुविधा अनुसार ईधर-उधर कर रहे हैं ? अरे,
सिर्फ लड़कियों के ही नहीं। लड़कों के भी, अगर वो किसी भी तरह से कमजोर पड़
रहे हैं। लूटो, खसूटो और चलता कर दो दुनियाँ से? बहाने तुम्हारे जैसे
आदमखोरों के पास हज़ारों हैं। अब ये भी आप में से ही कुछ बताते हैं, वो भी
अजीबोगरीब साक्ष्यों के साथ?
चलो, थोड़ा और समझने के लिए कोई और, हकीकत की दुनियाँ की कहानी सुनते हैं।
Fight on Your Ancestral Property by Political Parties? Why?
क्या
आपकी दादालाही ज़मीन पर राजनीतिक पार्टियों का कोई अधिकार है? क्या वो आपकी
जानकारी के बिना आपको ऐसे किसी युद्ध में धकेले हुए हैं? कब से और क्यों?
क्या उस अद्श्य युद्ध की वजह से आपके लोगों को भी खा रहे हैं? या आप लोगों
की ज़िंदगियाँ हराम कर रहे हैं? मगर कैसे? क्या आपकी अपनी ज़िंदगी भी राजनीतिक पार्टियों की गुलाम है? आपके ना चाहते हुए या विरोध के बावजूद?
अगर साल, डेढ़ साल के अंदर ही, किसी संदिघ्ध मौत के बाद, जहाँ वो खुद एक स्कूल बनाने वाली थी, अगर कोई
पहले से वहाँ स्कूल उस ज़मीन को हड़पता है, बचे-खुचे लोगों से, बहला फुसलाकर
या लालच या किसी भी तरह का डर दिखाकर या तरह-तरह के प्रेशर बनाकर, तो
उसे क्या समझा जाए? वो भी उस बहन के विरोध के बावजूद। उसपर अपने स्कूल का
हिसाब-किताब तक देने से आना-कानी करता है, क्यों? ऐसा क्या छिपाया जा रहा
है?
इन प्रेशर में और इस सबको यहाँ तक पहुँचाने में एक बहुत बड़ा प्रेशर पॉइंट MDU है, जो चार साल Resignation के बावजूद, मेरी सेविंग पर बैठे हुए हैं। अगर सही में देखा जाए, तो ये सब किया धरा ही उनका है।
लड़कियों के अधिकार दादालाही सम्पति (Ancestral Land) पर? ऐसे
हाल में तो और ज्यादा जरुरी हो गया है, इस फाइल को उठाना। आप क्या कहते
हैं? वैसे भी जब से घर आई हूँ, मेरे पास ना रहने लायक घर है। जिस खंडहर में
मुझे धकेल दिया गया है, वहाँ ना पानी, ना बाथरुम और ना ही बिजली। बस ऐसे
ही कोई तार लटक रहा है जैसे। मुझे समझ नहीं आता, की माँ यहाँ कैसे रहती थी?
तो जिस इंसान ने अपनी सारी ज़िंदगी ऐसे हालातों में गुजार दी हो, वो कहाँ
से सोचेँगे की पानी, बाथरुम या बिजली जैसी जरुरतें अहम होती हैं? ऐसा नहीं
है, की भाई के पास बहुत है। हालाँकि, कहने वालों ने ऐसा कहकर बहुत भड़काने
की कोशिशें की। इतना कम होते हुए भी उसने जो कुछ इकठ्ठा किया है, हाँ वो
जरुर अहमियत रखता है। कैसे? हालाँकि, भाई का जो घर है, दिक्कत उसमें भी
बहुत हैं, उस पर कोई और पोस्ट की राजनीतिक पार्टियाँ आपके घरों में
बिमारियाँ कैसे परोसती हैं। और आपको खबर तक नहीं चलती की वो ऐसा कर रहे
हैं? यही गुप्त तंत्र का कमाल है, की वो अदृश्य होते हुए आपके तकरीबन सब
फसैले खुद लेता है। मगर, वो सब करते हुए तो आप दिखते हैं। मतलब, गोटियाँ भर उनकी।
कहीं
किसी विडियो में Ancestral प्रॉपर्टी पर जानकारी हो, तो जरुर बताएँ प्लीज।
और किसी वकील की बजाय ऐसा कोई केस, अगर किसी को खुद ही लड़ना पड़े, तो क्या
कुछ करना पड़ता है? Procedure Please? जाने क्यों लग रहा है, की वो
ऑनलाइन वाले कोर्ट तो सो चुके हैं? हे कोर्ट्स, आप सो चुके हैं? जाग रहे
हों तो, ईधर भी देख-सुन लो। अब जरुरी नहीं की आपके हर फैसले को मैं या
मेरे जैसा कोई आम इंसान सही ही कहे। आखिर उसमें भी थोड़ी बहुत सोचने समझने
की क्षमता तो होगी? अब बोलना भी शायद आप लोगों से ही सीखा है, तो इतना तो
भुगतना पड़ेगा?
एक
छोटा सा किसान, जो 2-4 किले में खेती करके अपना गुजारा कर रहा हो, वो भी
ऐसी परिस्तिथियों में, जहाँ बीवी किसी बिमारी की भेंट चढ़ चुकी हो। वो जो
खुद एक टीचर थी, किसी प्राइवेट स्कूल में और घर को चलाने में सहायक भी। अब
ये भेंट वैसे ही है, जैसे कोरोना के दौरान कितनी ही और बिमारियों से लोगों
का दुनिया को अलविदा कह जाना। जो बहुत से प्रश्न छोड़ता है, ऐसे-ऐसे खुँखार
हॉस्पिटल्स पर भी और कुछ हद तक उनके डॉक्टरों पर भी। ये स्कूल के साथ वाली
ज़मीन सिर्फ आधा किला नहीं था, दो भाइयों के नाम, बल्की, इस घर की लाइफलाइन
थी। सबसे बड़ी बात इसकी लोकेशन, गाँव के बिलकुल पास होना। दूसरी, मीठा
पानी, जो इस गाँव में कहीं-कहीं है। जहाँ कहीं यहाँ ये कॉम्बिनेशन है, वहाँ
जमीने बिकाऊ नहीं होती। भूल जाओ की उनके दाम क्या हैं। उस पर राजनीतिक
पार्टियों का इस पर युद्ध। क्यों? ऐसा क्या ख़ास है इसमें? राजनीतिक
पार्टियों के लिए ज़मीन ही क्या, हर इंसान, हर जीव जैसे उनके जुए की गोटी भर
हैं। फिर क्या सरकारी और क्या प्राइवेट? जिसकी जितनी ज्यादा चल जाए, वही
अपने नाम कर लेते हैं, कोढ़ ही कोढों में। और भोले आम लोग सोचते हैं, की ये सब वो खुद कर रहे हैं? उन्हें नहीं मालूम मानव रोबॉटिक्स कहाँ तक पहुँच चुकी है। वो रिमोट कंट्रोल की तरह दूर, बहुत दूर बैठे आपको, आपके परिवार को और ज़िंदगी के हर पहलू को कंट्रोल कर रहे हैं।
तो ऐसे स्कूलों, हॉस्पिटलों या संस्थाओँ पर लगामी पर भी कुछ बात कर ली जाए?क्या
कहते हैं मीडिया वाले विद्वान? तो आगे किसी पोस्ट का हिस्सा आप ही होने
वाले हैं, जो इस विषय पर ज्यादा सही जानकारी या खबर चलाएँगे?