ब्लाह जी इतने शहर या यूनिवर्सिटी के धक्के खाकर आपको समझ क्या आया? कोई फायदा भी हुआ या इन पत्रकारों ने सिर्फ और सिर्फ धक्के ही खिलाए?
पहली बात तो वो किसी पत्रकार ने नहीं खिलाए। मैं उनके लेख या प्रोग्राम देखती थी और मुझे लगा की जानना चाहिए, ये जो कह रहे हैं वो बला क्या है? इसी दौरान डिपार्टमेंट में भी इसी तरह की पढ़ाई चल रही थी। ज्यादातर स्टूडेंट्स लैब और क्लॉस में जैसे आ ही ड्रामे करने रहे थे। यही नहीं समझ आ रहा था, की कहाँ-कहाँ और किस-किस से और कैसे निपटा जाए? डिपार्टमेंटल मीटिंग के यही हाल थे। कुछ वक़्त बाद इतना समझ आने लगा था, की ये खुद नहीं कर रहे। इनसे राजनीतिक पार्टियाँ करवा रही हैं।
डिपार्टमेंट और यूनिवर्सिटी के ड्रामों ने एक तरफ जहाँ फाइल्स, सिलेबस, कोर्स और डॉक्युमेंट्स को पढ़ना समझना सिखाया, तो दूसरी तरफ इंस्ट्रूमेंट्स, कैमिकल्स और कुछ हद तक बिल्डिंग्स के आर्किटेक्चर और इंफ्रास्ट्रक्चर को भी। कुछ वक़्त परेशान होने और झक मारने के बाद, जब लगा की कोई नहीं सुन रहा, मैंने ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स इक्क्ठे करने शुरु कर दिए। और उन्होंने भी कहा जैसे, ले फाइल बना कितनी बना सकती है। हर कदम पर जैसे, एक नई फाइल सामने थी। उसपे सेहत भी गड़बड़ाने लगी थी। इनमें से कुछ एक फाइल्स ने कोर्ट का रुख भी किया। अब ये लोग मुझ पर उल्टे-सीधे केस लगाने लगे थे। आखिर उन्हें भी अपने प्रोटेक्शन के लिए कुछ चाहिए था। ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स को भला कब तक और कैसे झूठलायेंगे? वो भी जब वो पब्लिक के बीच रखे जाने लगे हों? ये अलग दुनियाँ थी मेरे लिए। यहाँ यूँ लग रहा था की वकील वो जीतेगा, जो जितनी ज्यादा झूठ बोलेगा। आपके प्रूफ या तो दरकिनार कर दिए जाएँगे या आपके प्रूफ के ऊप्पर और प्रूफ घड कर रख दिए जाएँगे। जो कोर्ट के चक्कर काटेंगे वो हार जाएँगे, उनसे, जिनके वकील ऐसे लोगों के लिए काम कर रहे होंगे, जिन्होंने कभी कोर्ट ही ना देखें हों।
यहाँ पर नई दुनियाँ के कोर्ट भी सामने आए, जिन्होंने कहा हम ऑनलाइन हैं। US और भारत के कुछ कोर्ट्स को ऑनलाइन भी देखना समझना शुरु किया। अब ये मामला कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टिंग होता जा रहा था। इस इंटरेस्टिंग को आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करते हैं।
अब राजनीतिक पार्टियाँ भी कह रही थी जैसे, की हम भी ऑनलाइन हैं। हमारी पँचायत भी ऑनलाइन है और कुछ समस्याओँ के समाधान भी। चारों तरफ वक़्त के साथ ताल पर ताल मिल रही हो जैसे? राजनीतिक पार्टियों के ड्रामें, थोड़े ज्यादा ही लग रहे थे। मेरा इंट्रेस्ट पढ़ाई-लिखाई के आसपास ही रहा और मैंने ऑनलाइन दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर करनी शुरु कर दी, किसी खास उद्देश्य से। ये ज्यादा सही रहा। यहाँ पे ना सिर्फ आप पढ़ाई लिखाई से जुड़े रह पा रहे हैं, बल्की, वक़्त भी ऐसी जगह लगा रहे हैं, जहाँ कुछ न कुछ अपनी रुची के अनुसार है। यहाँ तक पहुँच गए, तो कहीं न कहीं रस्ता भी मिल ही जाएगा। राह के रोड़े कब तक राह रोके खड़े रहेँगे? अनचाहे केसों और ड्रामों की फाइल्स कम होने लगी हैं। ऐसी पुरानी फाइलों की छटनी कर उन्हें बुकलेट्स की फॉर्म दे दी है या दी जा रही है। बायो फिर से फ़ोकस है, एक ऐसे interdesciplinary topic के साथ, की कहो किधर फेंकोगे? या घपले कर रस्ते मोड़ने-तोड़ने की कोशिश करोगे? ये विषय दुनियाँ के हर कोने में और हर जगह है। इसको ना तुम छीन कर इसका क्रेडिट अपने नाम कर सकते, और ना ही इसका रास्ता रोक कर खड़े हो सकते।
जहाँ कहीं ज़िंदगी है, वहीँ ये है, Impact of system (political) on life. My focus is especially on human life.
तो A से Z तक का सफर? 26 शब्द मात्र? जैसे ABCD of Views and Counterviews? बोले तो इतने सारे शब्द और उनके उससे भी कहीं ज्यादा जोड़तोड़, ज्यादा ही कॉम्प्लेक्स है ना? किसी ने कहा, तो simple कर लो and be silenced?
Interesting?