India's Meera, Radha and types? And so many excuses of exploitation by society, especially, Indian type society?
बेचारी महिलाएँ?
खसमों या so called मर्दों को रोती महिलाएँ? या so called मर्दों को सहती महिलाएँ? और इनमें so called ख़सम ही नहीं, बल्की, औरतोँ की ठेकदारी लिए हर वो शख़्स है, जिनसे ये औरतेँ डरती हैं। तब भी, जब गुनहगार ये so called मर्द होते हैं।
दादी, दादा से डरती थी। क्यों? मुझे कभी समझ नहीं आया। हालाँकि, दादा मेरे फेवरेट पर्सन रहे हैं, इस घर में। दादी ज्यादा ज़िंदा नहीं रही। जब मैं स्कूल में थी, तभी चल बसी। माँ, बाप से डरती थी। फिर देखा, अपने बेटों से डरते हुए। बेटी से कभी नहीं। बेटी को तो डराती है वो, आज भी :)। है ना अजब-गज़ब दुनियाँ? ऐसे ही जैसे, छोटे भाई तक डराने की कोशिश करते हैं। और मुझे तरस आता है उनपे। मेरे से छोटे हैं, शायद इसलिए? बाप को जैसे कभी देखा ही नहीं। बचपन में ही रहस्य हो गए। और रहस्य जैसे से ही रहे। बस, पत्रों से या लोगों से सुना उनके बारे में। कुछ लोगों के अनुसार, पियक्कड़ था और बीवी को पीटता था। किसी चुड़ी के चक्कर में पड़ा और मुम्बई ले डूबी उसे। किसी के अनुसार या शायद ज्यादतर के अनुसार, शरीफ़ लड़का था। नीची नज़र करके चलता था। सबको नमस्ते करता था। किसी का काम ना नहीं कहता था। बस, पीता था, कभी-कभी :) हाँ। वो कहते हैं ना, लड़का तो शरीफ़ है, बस ..
और किसी और औरत के चक्कर में भी पड़ गया था, ये कम ही बताते हैं। बचपन में सुना था, गाँव के ही चूड़े ने मार दिया, जिसकी औरत के साथ उसका चक्कर था, मुंबई। उस वक़्त का बॉम्बे। माँ के अनुसार, गले में काले डोरे पहनने लगा था, चुड़ैल के दिए। चुड़ैल ने जादू कर दिया था। कुछ दादी, ताईयों या नानी के अनुसार, माँ बाप ने बहु को साथ नहीं ले जाने दिया, इसलिए ऐसा हुआ। अपने घर रहता, तो क्यों किसी के घर के चक्कर लगाता। दादी, बेटे के गम में ही जल्दी चल बसी। यही सब सुना था बचपन में तो। हाँ, जब पीता था, तो छोटे भाई से भी पीटता था। कुछ कुछ ऐसे, जैसे, इन कुछ सालों में खासकर, उसकी कॉपी को देखा, सुनील। और बुआ की तरह, बहन तो फिर बहन ही होती है, तो तरस खा जाती है, पियक्कड़ भाई पर भी। खैर। मेरे अनुसार तो अल्कोहल एडिक्शन एक बीमारी है, बाकी एडिक्शन्स की तरह और इसका ईलाज भी है। मगर, हमारे समाज में खासकर, ईलाज के विपरीत तरीक़े अपनाए जाते हैं। उस पर राजनीती के तड़के लग जाएँ, तो समझो सोने पे सुहागा जैसे। जो इंसान ऐसी एडिक्शन को खुद ही छोड़ना चाहे या कितनी ही बार छोड़ भी चुका हो, उसे भी ना छोड़ने दें। आसपास के ही लोगों के निहित स्वार्थ। फिर मुफ़्त में ऐसी-ऐसी जगहों पर ज़मीन कहाँ मिलेगी? और कैसे राजनीतिक दुश्मन बर्बाद होंगे?
2017 में फिर से जॉब जॉइनिंग के बाद जो सुना, खासकर, H #16, Type-3 वाली मरम्मत्त के बाद। वो कोई और ही दुनियाँ का गान था जैसे। एक भद्दी, गन्दी औरत, वहाँ बाप की बजाय, माँ को गाली दे रही थी जैसे। समझ ही नहीं आया, की दुनियाँ में कैसे-कैसे और कितनी तरह के ओछे पीस हो सकते हैं? उसके बाद तो और भी बहुत कुछ सुना, बाप के बारे में और उसकी मौत के आसपास। तेजा चूड़ा और तेजा खेड़ा (चौटाला फार्म कहानी)। समझ ही नहीं आए जैसे, की दुनियाँ कितना कुछ और कितनी तरह से पेल सकती है? खैर। चौटाले कभी ना पहले पसंद थे और ना अब। राजनीती ही जैसे Out of syllabus टॉपिक। मगर, धीरे धीरे पता चला, की सब राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे ही कहानियाँ गढ़ती हैं, वक़्त और उनकी जरुरतों के अनुसार। हक़ीक़त से इनका कोई लेना देना नहीं होता और ना ही आम लोगों से। कांग्रेस उनकी बाप और बीजेपी जैसे सबकी बाप। जो राजनितिक पार्टी, जितनी तरह से कहानियों या कहो की नरेटिवेस को घुमा फिरा सकती है और लोगों के दिमागों में बिठा सकती है, वो उतनी ही महान। फिर चाहे हज़ारों, लाखों काँड करो। इसे Human Robotics और Social Tales of Social Engineering ज्यादा अच्छे से समझा सकते हैं।
वैसे, आज ये बाप कहाँ से याद आ गया?
4th December, Indian Navy day? बाप, ओह पापा। सुना की Indian Navy में था। मगर पता आज ही चला की Indian Navy day भी होता है। स्कूलों को कभी नेवी दिवस मनाते सुना है क्या?
और लो। Indian Air Force Day याद था और Indian Navy day, आज पहली बार सुना। अब जो मनाओगे, वही तो याद रहेगा। The way stories and narratives change with time?