About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Friday, July 25, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 19

ब्लाह जी इतने शहर या यूनिवर्सिटी के धक्के खाकर आपको समझ क्या आया? कोई फायदा भी हुआ या इन पत्रकारों ने सिर्फ और सिर्फ धक्के ही खिलाए?

पहली बात तो वो किसी पत्रकार ने नहीं  खिलाए। मैं उनके लेख या प्रोग्राम देखती थी और मुझे लगा की जानना चाहिए, ये जो कह रहे हैं वो बला क्या है? इसी दौरान डिपार्टमेंट में भी इसी तरह की पढ़ाई चल रही थी। ज्यादातर स्टूडेंट्स लैब और क्लॉस में जैसे आ ही ड्रामे करने रहे थे। यही नहीं समझ आ रहा था, की कहाँ-कहाँ और किस-किस से और कैसे निपटा जाए? डिपार्टमेंटल मीटिंग के यही हाल थे। कुछ वक़्त बाद इतना समझ आने लगा था, की ये खुद नहीं कर रहे। इनसे राजनीतिक पार्टियाँ करवा रही हैं। 

डिपार्टमेंट और यूनिवर्सिटी के ड्रामों ने एक तरफ जहाँ फाइल्स, सिलेबस, कोर्स और डॉक्युमेंट्स को पढ़ना समझना सिखाया, तो दूसरी तरफ इंस्ट्रूमेंट्स, कैमिकल्स और कुछ हद तक बिल्डिंग्स के आर्किटेक्चर और इंफ्रास्ट्रक्चर को भी। कुछ वक़्त परेशान होने और झक मारने के बाद, जब लगा की कोई नहीं सुन रहा, मैंने ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स इक्क्ठे करने शुरु कर दिए। और उन्होंने भी कहा जैसे, ले फाइल बना कितनी बना सकती है। हर कदम पर जैसे, एक नई फाइल सामने थी। उसपे सेहत भी गड़बड़ाने लगी थी। इनमें से कुछ एक फाइल्स ने कोर्ट का रुख भी किया। अब ये लोग मुझ पर उल्टे-सीधे केस लगाने लगे थे। आखिर उन्हें भी अपने प्रोटेक्शन के लिए कुछ चाहिए था। ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स को भला कब तक और कैसे झूठलायेंगे? वो भी जब वो पब्लिक के बीच रखे जाने लगे हों? ये अलग दुनियाँ थी मेरे लिए। यहाँ यूँ लग रहा था की वकील वो जीतेगा, जो जितनी ज्यादा झूठ बोलेगा। आपके प्रूफ या तो दरकिनार कर दिए जाएँगे या आपके प्रूफ के ऊप्पर और प्रूफ घड कर रख दिए जाएँगे। जो कोर्ट के चक्कर काटेंगे वो हार जाएँगे, उनसे, जिनके वकील ऐसे लोगों के लिए काम कर रहे होंगे, जिन्होंने कभी कोर्ट ही ना देखें हों।       

यहाँ पर नई दुनियाँ के कोर्ट भी सामने आए, जिन्होंने कहा हम ऑनलाइन हैं। US और भारत के कुछ कोर्ट्स को ऑनलाइन भी देखना समझना शुरु किया। अब ये मामला कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टिंग होता जा रहा था। इस इंटरेस्टिंग को आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करते हैं। 

अब राजनीतिक पार्टियाँ भी कह रही थी जैसे, की हम भी ऑनलाइन हैं। हमारी पँचायत भी ऑनलाइन है और कुछ समस्याओँ के समाधान भी। चारों तरफ वक़्त के साथ ताल पर ताल मिल रही हो जैसे? राजनीतिक पार्टियों के ड्रामें, थोड़े ज्यादा ही लग रहे थे। मेरा इंट्रेस्ट पढ़ाई-लिखाई के आसपास ही रहा और मैंने ऑनलाइन दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर करनी शुरु कर दी, किसी खास उद्देश्य से। ये ज्यादा सही रहा। यहाँ पे ना सिर्फ आप पढ़ाई लिखाई से जुड़े रह पा रहे हैं, बल्की, वक़्त भी ऐसी जगह लगा रहे हैं, जहाँ कुछ न कुछ अपनी रुची के अनुसार है। यहाँ तक पहुँच गए, तो कहीं न कहीं रस्ता भी मिल ही जाएगा। राह के रोड़े कब तक राह रोके खड़े रहेँगे? अनचाहे केसों और ड्रामों की फाइल्स कम होने लगी हैं। ऐसी पुरानी फाइलों की छटनी कर उन्हें बुकलेट्स की फॉर्म दे दी है या दी जा रही है। बायो फिर से फ़ोकस है, एक ऐसे interdesciplinary topic के साथ, की कहो किधर फेंकोगे? या घपले कर रस्ते मोड़ने-तोड़ने की कोशिश करोगे? ये विषय दुनियाँ के हर कोने में और हर जगह है। इसको ना तुम छीन कर इसका क्रेडिट अपने नाम कर सकते, और ना ही इसका रास्ता रोक कर खड़े हो सकते।  

जहाँ कहीं ज़िंदगी है, वहीँ ये है, Impact of system (political) on life. My focus is especially on human life. 

तो A से Z तक का सफर? 26 शब्द मात्र? जैसे ABCD of Views and Counterviews? बोले तो इतने सारे शब्द और उनके उससे भी कहीं ज्यादा जोड़तोड़, ज्यादा ही कॉम्प्लेक्स है ना? किसी ने कहा, तो simple कर लो and be silenced?     

Interesting?    

Wednesday, July 23, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 18

 Release my saving to this day happenings

वो कौन से इलेक्शन थे, जब MDU Finnace Officer ने बोला था की अभी इलेक्शंस चल रहे हैं, वहाँ व्यस्त हैं? रितु की मौत के आसपास कौन से इलेक्शंस चल रहे थे? 

उसके बाद से क्या चल रहा है? इलेक्शन ही चल रहे हैं। कभी ये राज्य और कभी वो राज्य और कभी लोकसभा? क्या बकवास है ये? 

बिहार इलेक्शंस?

बिहार के इलेक्शंस की preparation में बिहारी लोग हरि याना (?) के खेतों में धान उगाने आते हैं शायद? बारिश बहुत अच्छी होती है? और ये बिहार डूबता कब-कब है? बिहार या हरियाना या पंजाब? या दिल्ली? या असम? ये साँग अपनी तो समझ से बाहर है। कुछ ज्यादा ही काम्प्लेक्स नहीं है? पॉलिटिकल पंडित क्या-क्या पढ़ते होंगे? जबसे रितु गई है, तबसे ही कहीं न कहीं इलेक्शंस चल रहे हैं। क्यों, पहले नहीं होते थे वो? होते होंगे, मगर मेरे forms के साथ शायद तब इतना घपला नहीं होता था। या शायद होता भी होगा, तो मुझे इतनी खबर नहीं थी। थोड़ी बहुत ही थी। एक बायो का इंसान कहाँ-कहाँ निपटे? पहले spelling mistakes इधर उधर, फिर शब्दों की हेरा फेरी। फिर कलाकारों ने emails के attachment ही बदल डाले। आपको पता ही ना चले की क्या का क्या हो रहा है? एक ऐसी ही हेराफेरी के बाद ही कोई plane crash हुआ था। जैसे कह रहे हों, की अब भी पकड़ना चाहोगे कोई फ्लाइट? थोड़ा रुककर आपने कहीं और भर दिया form । पता नहीं कैसी-कैसी चिड़िया दिखा रहे हैं और कैसे-कैसे एक्टिव, इनएक्टिव :( 

उससे भी बड़ी हद तो जब हो गई, जब कहीं और अप्लाई करने की सोची। सिर्फ सोची? हाँ, मैं कई पोस्ट्स पर टिक मार्क लगाकर एक फ़ोल्डर बना देती हूँ कहीं। और इन कलाकारों को पता होता है की इनमें से ही किसी पे अप्लाई करेगी। किसी पोस्ट पर मुझे लगा की मैंने अप्लाई ही नहीं किया। और ये क्या? इन कलाकारों ने अप्लाई दिखा दिया? ये तो जब न्यूज़ चली की फॉर्म अपने आप भरे जा रहे हैं और उनमें ऐसा-ऐसा हो रहा है सुना, तब दिमाग की बत्ती ने काम किया। अच्छा? डाउनलोड तो कर इन्होने वहाँ CV या Cover लैटर के नाम पर भरा क्या है? उफ़। किसी स्कूल में चपड़ासी की भी पोस्ट ना मिले। 

फिर सोचा चल तब तक आसपास ही कहीं प्रोजेक्ट ले ले। वो तो मिल ही जाएगा। लो जी। लेकर तो दिखाओ। वो वेबसाइट ही नहीं खुलने दे रहे। या उलटी पुलटी तारीख दिखा रहे हैं। कौन-सी दुनियाँ है ये? जो नौकरी थी, ना वो करने दी। ना कहीं सेलेक्ट होने देंगे। और ना ही खुद का कोई काम करने देंगे। ऐसे तो कब तक जियेगा कोई? गुंडागर्दी की सब हदें, सब सीमाएँ पार। 

इन्हीं को इलेक्शंस कहते हैं क्या? अगर हाँ, तो खुल के बात करो। क्यों कोढ़ म कोढ़ लगे हुए हो और जनता का भी फद्दू काट रहे हो? अरे नितीश बाबू, प्रशांत जी ये आपके राज्य में चल क्या रहा है?   

इस सबसे कोई बीमारी भी निकलती है क्या? कुछ भी? ये 2020 में फिजियोलॉजी में नोबल प्राइज किसे मिला था? कौन सी यूनिवर्सिटी? कहाँ?    

कौन सी बीमारी?

Hepatitus C और Liver का आपस में कोई लेना-देना है? और जिसको उस दिन कोई बीमारी बताई, उसका? उफ़। कौन-सी दुनियाँ है?

कहाँ का कहाँ, क्या कुछ मिलता जुलता सा है? पहले भी यहाँ-वहाँ के इलेक्शंस में ऐसा-सा ही कुछ चलता बताया? हमारी भोली-भाली जनता को इस सबको समझने की जरुरत है। 

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 17

 A visit to my village hospital after years rather must say few decades.  

गाँव का ये छोटा-सा हॉस्पिटल, इससे कुछ ख़ास किस्म का नाता रहा है शायद? बचपन की कुछ यादें जुड़ी हैं इससे। यहाँ मेरी एक दोस्त रहती थी। गाँव का हॉस्पिटल, उन दिनों कितना छोटा होता होगा ना? नहीं, शायद उस वक़्त के हिसाब से भी ठीक-ठाक ही था। मगर वो तब इस जगह नहीं था। हाँ डॉक्टर का घर जरुर यहीं कहीं होता था। 

तब रोहतक या PGI की कोई खबर नहीं थी। पता ही नहीं था, की वो बला क्या हैं। 1987-88 शायद? यही कोई 10-11 साल की रही होंगी। आपमें से बहुत से ये ब्लॉग पढ़ने वाले तो पैदा ही नहीं हुए होंगे? मैं खुद पाँचवी क्लॉस में थी। नया-नया सरकारी स्कूल जाना शुरु किया था। शर्ट और निक्कर में, वो भी गाँव के सरकारी स्कूल? बच्ची कितनी ही छोटी हो, उसे तो कमीज और सलवार ही पहनने चाहिएँ, ये वो दौर था। बाल बड़े होने चाहिएँ। छोटे बालों वाली को उस वक़्त परकटी बोलते थे, कुछ ताई, दादी। खैर, अभी इतनी बड़ी नहीं हुई थी, उसपे पहला ही साल था सरकारी स्कूल का। प्राइवेट स्कूल के नाम पर उन दिनों मदीना में शायद एक ही स्कूल होता था, उसे टुण्डे का स्कूल बोलते थे। उन दादा का नाम आज तक नहीं पता मुझे। मतलब, स्कूल का कोई नाम ही नहीं था? आज तक नहीं पता। अंग्रेजी पढ़ाई के नाम पर, 4th या 5th में abcd सीखा देते थे :) बहुत था शायद?  

खैर, 5th में जब सरकारी स्कूल जाना शुरु किया, तो जाते ही क्लास मॉनिटर बन गई थी। अंधों में काना राजा जैसे? मगर मेरे उस स्कूल के जाने के साथ-साथ ही, एक और लड़की आ गई थी, प्रतीक्षा, गाँव के हॉस्पिटल के डॉक्टर की लड़की। पहले दिन से ही हमारी पटनी शुरु हो गई थी। एक-आध बार, मैं उसे अपने घर ले आती थी। और एक आध बार वो मुझे अपने घर। उसका घर बहुत बड़ा था। घर तो मेरा भी बड़ा था। उन दिनो शायद ज्यादातर घर बड़े ही होते थे। मगर उसका कुछ ज्यादा बड़ा था। खासकर, उनके घर के बाहर का खेलने का एरिया। जहाँ हम हो-हल्ला करते हुए अक्सर छुपम-छुपाई खेलते थे। आज जहाँ गाँव का नया हॉस्पिटल है, उसका घर वहीँ कहीं था शायद। उस ईमारत को अंग्रेजों के दिनों में बनी कोई ईमारत बोलते थे, जहाँ अक्सर अंग्रेज ऑफिसर रहते थे। अब गाँव की ये जगह पहचान ही नहीं आती। बहुत बार इसके बाहर से जरुर निकली, मगर इतने सालों में कभी इसके अंदर जाना नहीं हुआ। वो लोग कम ही वक़्त यहाँ गाँव में रुके थे। उसके पापा की ट्रांस्फर फिर कहीं और हो गई थी। और उसके बाद उसके बारे में कोई खबर नहीं रही। हाँ। प्रतीक्षा नाम से आगे भी दो दोस्त या क्लासमेट जरुर रही। जो जाने क्यों कभी कभार ये याद दिला देती थी, की गाँव में भी इस नाम से, बचपन में एक लड़की मेरी दोस्त होती थी। एक अपने परिवार के साथ USA में  रहती है और एक दिल्ली। दिल्ली वाली तो है ही, घर-कुनबे से भांजी। यमुनानगर वाली pen friend बनी थी, एक दोस्त की दोस्त होती थी। कुछ वक़्त वो दिल्ली रही और वहीँ से फिर USA गई। और दिल्ली वाली MSc. क्लासमेट और hostelmate भी। गाँव का वो पुराना पोस्ट ऑफिस, दो तीन ऐसी दोस्तों के पत्र लाता था। हाँ, scribbling काफी पहले शुरु कर दी थी। शायद दादा जी के पत्र पढ़ते-पढ़ते ही। कॉलेज सर्कल यूँ लगता है, कहीं न कहीं, उसी एक्सटेंशन जैसा-सा था। अब इतने सारे किस्से कहानी सुनकर ऐसा ही लगता है।    

अब के गाँव के इस हॉस्पिटल में और तब के हॉस्पिटल में फर्क क्या है? पहले वाला शायद इससे सुंदर था। उस वक़्त के हिसाब से बड़ा भी था। आज के वक़्त के हिसाब से, ये बहुत छोटा है। ये शायद ये भी बताता है, की वक़्त और जनसँख्या के हिसाब से गाँवों में सुविधाएँ उतनी नहीं बढ़ी हैं, जितनी बढ़नी चाहिएँ थी। जितना ये है, इतने से हॉस्पिटल तो हर गाँव में होने चाहिएँ। बड़े गाँवों में, थोड़े बड़े हॉस्पिटल होने चाहिएँ। अगर गाँवों की बेसिक सुविधाएँ इतनी भी हों जाएँ, तो शहरों के हॉस्पिटल्स में या PGI जैसे हॉस्पिटल में जो भीड़ रहती है, उसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। ये पोस्ट पड़ोस वाली दादी की सौगात है। अगर वो अपने साथ चलने को ना कहते, तो ये पोस्ट भी कहाँ होती?    

ऐसी सी ही एक पोस्ट, किसी दिन गाँव के स्कूल पर, फिर कभी। बचपन का वो स्कूल? वैसे सरकारी स्कूलों में alumni meet क्यों नहीं होती? शायद उससे इन स्कूलों के कुछ हालात थोड़े बेहतर हो जाएँ? वैसे, आसपास से ही किसी ने लड़कियों के सरकारी स्कूल जाने का कोई खास तरह का विजिट ऑफर दिया था। मगर जाने क्यों मुझे लगा, की वो किसी खास पार्टी की तरफ से था। और मैं राजनीती से कुछ कदम दूर ही रहना चाहती हूँ। कम से कम इतनी दूरी तो होनी ही चाहिए, की आप बिना किसी भेदभाव या हिचक के किसी भी पार्टी के गलत या सही पर लिख सकें। जो कोई अपने आपको लिखाई पढ़ाई के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहता है, उसके लिए जरुरी भी है। मेरा मानना है की बचपन के स्कूल का किसी भी तरह का विजिट, ऑफिशियली स्कूल की तरफ से ही हो, तो ही अच्छा लगता है। उसके बाद स्कूल के वक़्त की कुछ और दोस्तों से मिलना भी हुआ। फिर से सालों, दशकों बाद, उनकी ज़िंदगी के उतार-चढाव जानकर लगा, जैसे, सबकुछ कहीं न कहीं पुराने से, जाने क्यों, किसी न किसी रुप में मिलता जुलता-सा है? जो किसी भी क्षेत्र की राजनीती और सिस्टम के बारे में काफी कुछ बताता है। शायद अभी इन जोड़तोड़ के किस्से कहानियों के बारे में काफी कुछ जानने की जरुरत है?  

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 16

EC से पिंक स्लिप आपको ईनाम के रुप में मिल गई? और आपको उसका मतलब तक पता नहीं चला? कितने भोले हैं आप? कोढों वालों की बेहुदगियों को और कहाँ-कहाँ झेलेंगे? EC से resignation एक्सेप्ट होने के बाद क्या होना चाहिए था? आपको अपना पैसा मिल जाना चाहिए था? यही ?

अरे नहीं खेल अभी बाकी है। 

अभी वो अपने कालिख से जुए के धंधे के आगे वाले स्वरुप से नहीं अवगत कराएँगे? तो वो आगे का खेल शुरु होता है। वो कहते हैं की हमने ऐसे सिस्टम बनाए हैं, जिनमें पैसा अपने आप आगे बढ़ता है। हमें कुछ नहीं करना पड़ता। ज़मीनी धंधा उनमें से एक है। धंधे के इस बेहूदा लोगों ने औरतों को ही प्रॉपर्टी घोषित कर दिया है। औरतें ही क्यों? पुरुष भी शायद? वेश्याव्रती के इस धंधे में, क्या अनपढ़ और क्या पढ़ी लिखी औरतें, सबको एक लाठी से हाँकने का चलन है। क्यूँकि, इनके धंधे के अनुसार आप एक इंसान नहीं है, प्रॉपर्टी हैं। और प्रॉपर्टी पर तो मारकाट मचती है? 2018 में जब कुछ पत्रकार खुलमखुला ऐसा लिख रहे थे, तो सबकुछ जैसे दिमाग के ऊप्पर से जा रहा था, की ये दुनियाँ कौन-सी है? और कहाँ है, जिसकी ये बात कर रहे हैं? उन्हीं में से कुछ एक ने बताया था की ये कोढ की दुनियाँ है और इसके जाले सारी दुनियाँ में फ़ैले हुए हैं। खासकर, उस so called साइकोलॉजी वाले ड्रामे के बाद, किसी सैर सपाटे से, जब चिड़ियाँ कहीं से फुर्र हो गई थी। कुछ लोगों के इशारों के बाद ही हुआ था ऐसा। 

EC के बाद ED आता है? ED कहाँ-कहाँ आता है? ED और शिक्षा का धंधा? इनका आपस में क्या लेना-देना है? आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करेंगे। 
       

इसी दौरान उन्हीं कोढों को जानने के लिए, मैंने कुछ बंद लैबों, साथ वाले बँध घर (29), रोड़ों, उनपे लिखे शब्दों या नम्बरों और ऑफिसों की खाख छाननी शुरु कर दी थी। इस खाख में रोहतक के कुछ ऐसे कोने भी थे, जहाँ मैं पहले कभी नहीं गई। या जिनके बारे में पता तक नहीं था, की ऐसा कुछ भी रोहतक में है। कुछ ऐसे पूल, जिनका मुझे पहले कोई अत्ता पता ही नहीं था। जैसे रोहतक इंडस्ट्रियल टाउन, जिसके पास से कितनी ही बार निकली होंगी, मगर कभी ध्यान ही नहीं दिया, की ये बला क्या है? सैक्टर 22, रोहतक में ऐसा कोई सैक्टर भी है? शिव कॉलोनी और आसपास का गन्दा-सा एरिया। ये भगवानों के नाम पर बनी इमारतों या जगहों पे इतना गंद क्यों होता है? और भी कुछ ऐसी-सी ही जगहें। जैसे SUPVA, आखिर ये बला क्या है? खुद अपनी यूनिवर्सिटी में शायद ही ऐसी कोई जगह छोड़ी हो, जहाँ मैं ना गई हों। जिस किसी बहाने या बस ऐसे ही घूमने। बस ऐसे ही? नहीं। शायद उन जगहों के बारे में कहीं न कहीं आर्टिकल्स में कुछ आ रहा था। 

इस सबको बताने समझाने में शायद कुछ एक लोगों का अहम रोल था, खासकर पत्रकारिता के क्षेत्र से। ऐसा भी नहीं है की मैं उन्हें कोई खास पसंद करती थी। मगर, उनके लेखों या प्रोग्रामों में कुछ तो खास होता था, जो अपनी तरफ खिंचता था? शायद कुछ ऐसी जानकारी, जो आपको और कहीं नहीं मिलती थी। थी क्यों? अब कहाँ गए वो लोग? सुना या पढ़ा था, की उन्हें कोरोना काल खा गया। कोरोना काल या उनके घोर विरोधी? जिन्हें उनकी वजह से कहीं न कहीं शायद नीचा देखना पड़ रहा था? इन कुछ खास लोगों को हार्ट अटैक हुआ था? मगर कैसे? वो भी शायद कुछ एक पत्रकारों को ही ज्यादा पता हो? लोगबाग क्यों नहीं खुलकर बात करना चाहते इन सबके बारे में? मरने से किसे डर नहीं लगता, वो भी सच उगलने पर बिन आई मौत जैसे?  

Toxicology, Bio-Chemical Terror और ऐसे-ऐसे विषय जाने कहाँ से आ गए थे? जिनके बारे में पहले बहुत कम या ना के बराबर जानकारी थी। आप जानते हैं, इन विषयों पर कहाँ-कहाँ काम हो रहा है? या ऐसे-ऐसे सँस्थान कहाँ-कहाँ हैं? और वहाँ का फोकस एरिया क्या है? जानने की कोशिश करें, शायद बहुत कुछ समझ आएगा। 

Monday, July 21, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 15

आप एक ऐसे सिस्टम का हिस्सा है या उसे झेल रहे हैं, जिसके पास लाखों, करोड़ों रूपए कृत्रिम बारिश, बाढ़ या गर्मी बरसाने के लिए जैसे फालतू पड़े हुए हैं? क्यूँकि, उस सिस्टम को या वहाँ की जुआरी राजनीती को, कुर्सियाँ पाने के लिए hype घड़ने हैं? या फिर छल कपट (manipulation), कहीं कहीं तो हद से ज्यादा छल कपट वाले तथ्य पेश करने हैं? छल कपट में हकीकत को जानना पहचाना कितना आसान या मुश्किल होगा, ये इस पर निर्भर करता है, की आपको कितना ऐसे लोगों के छल कपट वाले तरीकों का पता है? 

Interactions और किस्से कहानियों से ये बड़े सही से समझ आता है। जैसे अगर दो गाड़ियों और किसी खास वक़्त या तारीख को उनकी पोजीशन की ही बात करें? उस नौटँकी को घड़ने वालों के अनुसार, वहाँ भविष्य क्या है? जीरो या ख़त्म? या इससे आगे भी कुछ बचता है? रायगढ़ दरबार में आपका स्वागत है? या रायसीना हिल्स? या? अब इस या का जवाब आपको पता होना चाहिए, जिन्हें अपना या अपने आसपास का भविष्य घड़ना है? या उसे कोई रास्ता दिखाना है? या जीरो या ख़त्म कहने वालों या घड़ने की कोशिश करने वालों पर छोड़ देना है?  

मैंने यहाँ दो तरह के लोग देखे हैं। एक जिनके बच्चे नालायक, महानालायक। वो जिन्हें कहते हैं, की मेरा बेटा तै पानी का गिलास भी खुद लेके ना पीवै, जैसे ये उनकी तारीफ हो?  बुरे से बुरे जुर्मों के रचयिता और भुक्त भोगी भी, जिन्होंने हत्या जैसे केसों तक में जेल भुक्ति हो या भुगत रहे हों। मगर फिर भी उनके तारीफ़ के पूल बाँधते मिलेंगे। ऐसे गा रहे होंगे जैसे उनका भविष्य तो बहुत उज्जवल है। 

दूसरे, ऐसे आसपास को देखते हुए जिनके बच्चे हज़ार गुना अच्छे हों, मगर उन बेचारों को कभी उनमें कोई अच्छाई नज़र ही नहीं आती? ऐसे रो रहे होंगे जैसे इनका तो भविष्य ही ख़त्म। 

ये narratives कहीं न कहीं दिशा निर्धारित करने का काम करते हैं। खासकर, जब ऐसा सुनने के आदि बच्चे, ये सब मानना शुरू कर दें। किसी भी तथ्य या छल कपट तक की घड़ाई को मान लेना या लगातार सुनते रहना दिमाग पर असर छोड़ता है। अब वो असर कितना नगण्य या ठोस है, ये उसको मानने या न मानने वाले पर निर्भर करता है। 

तो अगर आप अपने बच्चों या आसपास को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं तो उन्हें वही बोलें, जो उनके आगे बढ़ने या बढ़ाने में सहायक हो। नहीं तो जाने अंजाने आप खुद उनके जीवन का एक रोड़ा हैं। कोई भी माहौल यही काम करता है। वो या तो आगे बढ़ाता है या पीछे धकेलता है। माहौल या संगत को ऐसे ही नहीं गाते समझदार लोग। आपके ना चाहते हुए भी अगर आपके आसपास काँटे ही काँटे हों या काँटों भरे पथ पर चल रहे हैं और उनसे सुरक्षा का कोई इंतजाम आपने नहीं किया हुआ, तो काँटों का काम है चुभना और वो चुभेंगे। जैसे फूलों के पथ पर अगर नंगे पाँव भी चल दोगे, तो वो कोई दर्द नहीं देने वाले। मगर ऐसा काँटों वाले पथ पर करोगे, तो लहू लुहान हो जाओगे। हर तरह के माहौल का अपना असर होता है, जिसे वो अपने आसपास परोसे बिना नहीं रहता।  जुबाँ भी उसी में से एक है। वो कुछ नैरेटिव कहती है। और उन नैरेटिव के अपनी ही तरह के असर होते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ माहौल भी घड़ती हैं और नैरेटिव भी। उनके नंबरों के जितने ज्यादा दाँव आपके आसपास हों, वो उतना ही ज्यादा बुरा या भला घड़ती हैं। उनके बूरे प्रभावों से बचने के तरीकों में अहम है, उनको ज्यादा से ज्यादा जानना और बुरे से बचने के रस्ते निकलना।              

Climate change, Environment changes या manipulations? किनके पैसों से होता है? आपकी जानकारी या इज्जाजत के बिना, ऐसा करने वालों के खिलाफ कौन से कोर्ट हैं? हैं क्या कहीं? खासकर, किसी भी देश की सरकार या राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ? शायद अभी तक तो नहीं? होने नहीं चाहिएँ? ये आगे किसी पोस्ट में।  

ऐसे ही शायद सिंथेटिक बिमारियाँ और मौतें तक परोसने वालों के खिलाफ। नहीं?          

Sunday, July 20, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 14

 ज्यादा 5, 7 मत कर, 9, 2, 11 कर दूँगी। पढ़ा था कहीं?

और फिर ये मूवी जाने कहाँ से यूट्यूब पर आ टपकी। 

देखी थी मैंने?



पता नहीं कहाँ कैसे और किन लोगों के झगड़े, आपकी ज़िंदगी को भी लपेटते जाते हैं? होता है ऐसे, आम लोगों के साथ भी? शायद? जैसे साँड़ों के बीच में झाड़। और जाने कौन लोग या कौन, कौन आपकी ज़िंदगी की ठेकेदारी लेने लगते हैं? जिम्मेदारी और ठेकेदारी में इतना ही अंतर होता है, जितना दिन और रात में? इस लड़ाई में लगे लोगों का अहम टारगेट लड़कियाँ होती हैं? इधर भी और उधर भी? जाने कौन, किसको अपने भाई या दोस्त के लिए पसंद है और कौन, किसको कहाँ फिट करना चाहते हैं या कहीं और धकेलना चाहते हैं? कुछ लड़कियाँ वक़्त रहते इन भद्दे जालों से निकल पाती हैं। और कुछ? वक़्त के साथ, ज्यादा और ज्यादा शिकार। ऐसा क्यों? पढ़ी, लिखे और समझदार आसपास का और कम पढ़े लिखे, ज्यादातर गाँव तक सिमित आसपास का बहुत फर्क होता है? पढ़े लिखे लोग, उन लड़कियों को साथ लेकर चलते हैं। लड़कियों के निर्णयों का सम्मान करते हैं और हर कदम पर उनके साथ खड़े होते हैं। कम पढ़े लिखे, ज्यादातर गाँव तक सिमित लोगों के यहाँ इसका उल्टा होता है। वहाँ इन so called अपनों को बीच में इसलिए लिया जाता है, ताकी अपने टारगेट का सफाया आसानी से किया जा सके। तरीके जिसके हज़ारों हैं। छुपम छुपाई खेलना उसका अहम हिस्सा है। उसपे कहीं इन लोगों को कुत्तों के टुकड़ों की तरह लालच के छोटे-मोटे टुकड़े डाले जाते हैं, तो कहीं, किन्हीं तरह के दबाव या डर दिए जाते हैं। सबसे बड़ी बात, इन आसपास वालों को बीच में कब लिया जाता है? सालों, दशकों बाद, जब कोई लड़की इन कांड़ों को पब्लिक करने लगती है।            

2010 में कोई काँड होता है, जिसे ऑफिसियल भागीदारी का काँड बोलते हैं? ऑफिसियल भागीदारी? उस जगह भी, जहाँ कोई लड़की पढ़ाती है? और किन्हीं कोर्ट्स या सुप्रीम कोर्ट की भी? ये सब खुद उस लड़की को तब पता चलने लगता है, जब राजनितिक पार्टियाँ एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हुए, एक दूसरे के काँड बाहर निकालती हैं। वो लड़की जब प्रश्न करने लगती है, तो कहीं से ठोस डॉक्युमेंट्स मिलते हैं और कहीं लोग भगौडे होने लगने हैं। कुछ उन डॉक्युमेंट्स को किसी भी कीमत पर बाहर नहीं आने देना चाहते। कुछ उन डॉक्युमेंट्स को, जो पब्लिक होने चाहिए, पब्लिक करने वालों की जान के दुश्मन हो जाते हैं। 

ऐसा क्या है, उन डॉक्युमेंट्स में? हमारे समाज का, उसकी भद्दी राजनीती का और उनके बनाए सिस्टम की पोलखोल का काम हैं वो डॉक्युमेंट्स। जो कहीं न कहीं इसका ठोस सबूत हैं, की जन्म से लेकर मर्त्यु तक, कैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को जुए में धकेला हुआ है। जिसमें गोटी के जैसे, हर इंसान पर दाँव है, वो आम इंसान तक, चाहे जिसके पास ज़िंदगी को जीने के लिए आम सी सुविधाएँ तक ना हों। यही सिस्टम और राजनितिक पार्टियाँ उस आम इंसान तक को बिमारियों और मौतों तक धकेल रहा है। आपके भगवानों के जैसे कह रहा हो जैसे, चलो अगला नंबर तुम्हारा। क्यूँकि, तरह तरह के भगवान भी यही राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी बड़ी कम्पनियाँ घड रही है।  

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 13

कोई और किस्सा कहानी बाद में। 

मगर उससे पहले, थोड़ा बुजर्गों के हालातों पर बात हो जाए?

कुछ तो मजबूरियाँ होंगी की उम्र के इस पड़ाव पर बच्चे उन माँ बाप को अकेला अपने हाल पर छोड़ देते हैं, जिनकी उँगलियाँ पकड़कर वो चलना सीखते हैं? कुछ केसों में तो कई बार यकीन तक करना मुश्किल होता है की वो? वो तो ऐसा नहीं कर सकते। 

बहुतों के पास शायद गाँवों में अपने घर होते हैं और वो शहरों में अपने ही बच्चों के घरों में बेघर से रहने की बजाय, शायद अपने ही घर में वापस आना पसंद करते हैं? वजह जो कोई भी हों, इस उम्र में तो कम से कम, कोई न कोई सुप्पोर्ट सिस्टम तो चाहिए। इस उम्र में एक तो शरीर साथ नहीं देता, तो छोटी मोटी सी बिमारियाँ तो जैसे लगी ही रहती हैं। उसपे अक्सर हमारे यहाँ बुजर्गों के पास कोई व्हीकल भी नहीं होता। तो बहुत मुश्किल है क्या की सिविल हॉस्पिटल से कोई डॉक्टर ऐसे लोगों के घरों पर विजिट कर जाएँ? हफ्ते में, दो हफ्ते में या महीने में ही सही? जिन्हें ज्यादा दिक़्क़त हो, उनके लिए कोई फ्री एम्बुलेंस सर्विस? हरियाणा जैसा राज्य तो फिर इतना गरीब भी नहीं की सरकार के लिए इतना सा करना बहुत मुश्किल हो? हाँ, कुछ बुजुर्ग गाँवों में खासकर, इतने गरीब हो सकते हैं की उन्हें अगर इतनी सी भी सुविधाएँ मिल जाएँ, तो उनकी ज़िंदगी का ये सफ़र थोड़ा कम मुश्किल हो सकता है।               

Saturday, July 19, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 12

 18-07-2025

चलो कोई सीन घड़ते हैं 

नहीं 

उससे पहले थोड़ा ऑनलाइन इंटरेक्शन्स की तरफ देखते हैं 

आपको कोई हकीकत की ज़िंदगी का सीन देखकर, जाने क्यों किसी गाने के कोई बोल याद आते हैं, खम्बे जैसी खड़ी है, लड़की है या छड़ी है? कौन-सा गाना है ये? अजीब-सा है शायद कोई काफी पुराना, यही सोचते-सोचते आप youtube खोलते हैं। और जाने क्यों किसी और ही विडियो पर आपकी निगाह टिक जाती हैं। पहले ये देखते हैं, क्या बला है?     



The Odyssey 2026

Release date 17 July, 2026

मुझे ढिशूम-ढिशूम या ज्यादा हिंसा वाली मूवी पसंद नहीं आती। तो क्या बकवास है ये? पानी, आग, पथ्थर, अजीबोगरीब हथियार और मारकाट? छोड़ो। 

चलो कोई सीन घड़ते हैं 

एक तरफ काली थार HR 000 और 4 नंबर पे? चलो रख लो कोई खास नंबर। एक बुजुर्ग औरत के घर के बाहर खड़ी है। और उसमें कोई नौजवान बैठा है। शायद किसी का इंतजार कर रहा है। गाडी के आगे कोई बिजली का खम्बा है और साथ वाले घर की खिड़कियाँ एक साइड। 

दूसरी तरफ एक और गाडी खड़ी है। डिफेंस का या शायद हरा सा रंग DL 9C? फिर से एक बुजुर्ग के घर के बाहर। हालाँकि उतनी बुजुर्ग नहीं, जितनी दूसरी बुजुर्ग औरत। इसमें कोई नहीं है। मगर, इसके आगे भी एक बिजली का खम्बा है।  

दोनों औरतें अपने-अपने घरों पे अकेली रहती हैं। क्यों?

जो थोड़े ज्यादा बुजुर्ग हैं, उनके 5 बच्चे हैं। एक लड़की, सबसे छोटी शायद। और चार लड़के। सब आसपास के शहरों में ही रहते हैं। मगर कभी-कभार सिर्फ लड़की ही आती है शायद, उनसे मिलने। एक आध बार शायद उनका एक लड़का भी।    

दूसरी बुजुर्ग औरत का एक ही लड़का था। वो शायद से बुखार बिगड़ने की वजह से नहीं रहा, काफी साल पहले। इन दोनों गाड़ियों के बीच में दो घर हैं। एक रोड पर ही। और दूसरे घर की गली जाती है अंदर की तरफ। इसी रोड वाले घर के पीछे है वो घर। एक लड़की इन गाड़ियों को बड़े ध्यान से निहारते हुए घर के अन्दर जाती है। थोड़ी-थोड़ी बारिश आ रही है, जो जल्दी ही तेज हो जाती है। और ऐसे लग रहा है, जैसे, किसी हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा हो रही हो। जैसे पिछे दुबई की आर्टिफीसियल बारिश। एक आध मिनट बाद ही अंदर से बाहर कुछ लोग आते हैं। एक, काली थार में बैठ कर चले जाते हैं। और एक उस हरी-सी गाडी में। बाकी वापस घर के अंदर। 

ऐसे लग रहा था, जैसे, एक तरफ उन बुजुर्गों ने गाड़ियों को बाहर कर दिया हो? और दूसरी तरफ? गाड़ियों वालों ने या राजनितिक सिस्टम ने उन बुजुर्गों को अकेला? एक के तो कोई बच्चा नहीं है। मगर, जिनके चार-चार लड़के हों, वहाँ क्या कहा जाए?    

हर किसी की ज़िंदगी में शायद अपनी ही किस्म के झमेले हैं। तो अपने ही माँ या बाप के लिए वक़्त कहाँ होगा? या हो भी तो शायद, पीढ़ियों की दूरी होगी? Generation Gap? या शायद हर घर की अपनी ही कहानी है। मगर ये कहानियाँ जाने क्यों, ऊपर से तो किसी सिस्टम के कोढ़ में रची बसी सी लगती हैं? या सब Random है?

ओह ! भूल ही गई। सालों बाद किसी को उस घर पर देखा। या शायद उस घर के 2 हिस्से होने के बाद, पहली बार? ऐसे कैसे? जिससे मिलने आना था, उसके तो आते ही चल दिए? क्यूँकि, जवाब नहीं हैं, उसके सवालों के? पिछले कुछ सालों के हादसे कह रहे हैं, की जहाँ कहीं मुझसे छुपम-छुपाई या मुझे बाहर रख उस घर में कोई अहम फैसला हुआ है, तभी काँड हुए हैं। 

तुम्हे क्या लगता है, तुम मेरे बैगर उस ज़मीन का फैसला कर सकते हो? ये कोर्ट्स के लिए। ऐसे कोर्ट्स, जिन्होंने लड़कियों को महज़ प्रॉपर्टी बना कर मरने के लिए छोड़ है। पढ़ी लिखी यूनिवर्सिटी में नौकरी करने वाली वयस्क लड़कियों के एकाउंट्स तक कोई और ही, उनकी मर्जी के बिना, नही, विरोध के बावजूद कहना चाहिए, अपने ही हिसाब-किताब की सुविधा अनुसार ईधर-उधर कर रहे हैं ? अरे, सिर्फ लड़कियों के ही नहीं। लड़कों के भी, अगर वो किसी भी तरह से कमजोर पड़ रहे हैं। लूटो, खसूटो और चलता कर दो दुनियाँ से? बहाने तुम्हारे जैसे आदमखोरों के पास हज़ारों हैं। अब ये भी आप में से ही कुछ बताते हैं, वो भी अजीबोगरीब साक्ष्यों के साथ?

चलो, थोड़ा और समझने के लिए कोई और, हकीकत की दुनियाँ की कहानी सुनते हैं।  

Tuesday, July 15, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 11

 तेरा )13) के बाद ग्यारा (11)? 

आता है क्या?

बिल्ली मौसी कन्फू सिया गए हैं क्या?

बिहार इलेक्शन के पर्चे तै ना पढण बिठा दी यो?  
Enemy's State?
Or confused State?   

या शायद AI State?

ये क्या है? 
आप सोचो, जानने की कोशिश करेँगे आगे। 

Images have been taken from internet.

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 13

White and Grey warfare?

Or White and Black warfare?

Both one and same thing or different?

जानने की कोशिश करेंगे इसे आगे। तब तक आप सोचो की ये क्या है? और आप इसे कहाँ कहाँ और किस या कैसे कैसे रुप में देख, सुन या समझ पा रहे हैं?