ज्यादा 5, 7 मत कर, 9, 2, 11 कर दूँगी। पढ़ा था कहीं?
और फिर ये मूवी जाने कहाँ से यूट्यूब पर आ टपकी।
देखी थी मैंने?
पता नहीं कहाँ कैसे और किन लोगों के झगड़े, आपकी ज़िंदगी को भी लपेटते जाते हैं? होता है ऐसे, आम लोगों के साथ भी? शायद? जैसे साँड़ों के बीच में झाड़। और जाने कौन लोग या कौन, कौन आपकी ज़िंदगी की ठेकेदारी लेने लगते हैं? जिम्मेदारी और ठेकेदारी में इतना ही अंतर होता है, जितना दिन और रात में? इस लड़ाई में लगे लोगों का अहम टारगेट लड़कियाँ होती हैं? इधर भी और उधर भी? जाने कौन, किसको अपने भाई या दोस्त के लिए पसंद है और कौन, किसको कहाँ फिट करना चाहते हैं या कहीं और धकेलना चाहते हैं? कुछ लड़कियाँ वक़्त रहते इन भद्दे जालों से निकल पाती हैं। और कुछ? वक़्त के साथ, ज्यादा और ज्यादा शिकार। ऐसा क्यों? पढ़ी, लिखे और समझदार आसपास का और कम पढ़े लिखे, ज्यादातर गाँव तक सिमित आसपास का बहुत फर्क होता है? पढ़े लिखे लोग, उन लड़कियों को साथ लेकर चलते हैं। लड़कियों के निर्णयों का सम्मान करते हैं और हर कदम पर उनके साथ खड़े होते हैं। कम पढ़े लिखे, ज्यादातर गाँव तक सिमित लोगों के यहाँ इसका उल्टा होता है। वहाँ इन so called अपनों को बीच में इसलिए लिया जाता है, ताकी अपने टारगेट का सफाया आसानी से किया जा सके। तरीके जिसके हज़ारों हैं। छुपम छुपाई खेलना उसका अहम हिस्सा है। उसपे कहीं इन लोगों को कुत्तों के टुकड़ों की तरह लालच के छोटे-मोटे टुकड़े डाले जाते हैं, तो कहीं, किन्हीं तरह के दबाव या डर दिए जाते हैं। सबसे बड़ी बात, इन आसपास वालों को बीच में कब लिया जाता है? सालों, दशकों बाद, जब कोई लड़की इन कांड़ों को पब्लिक करने लगती है।
2010 में कोई काँड होता है, जिसे ऑफिसियल भागीदारी का काँड बोलते हैं? ऑफिसियल भागीदारी? उस जगह भी, जहाँ कोई लड़की पढ़ाती है? और किन्हीं कोर्ट्स या सुप्रीम कोर्ट की भी? ये सब खुद उस लड़की को तब पता चलने लगता है, जब राजनितिक पार्टियाँ एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हुए, एक दूसरे के काँड बाहर निकालती हैं। वो लड़की जब प्रश्न करने लगती है, तो कहीं से ठोस डॉक्युमेंट्स मिलते हैं और कहीं लोग भगौडे होने लगने हैं। कुछ उन डॉक्युमेंट्स को किसी भी कीमत पर बाहर नहीं आने देना चाहते। कुछ उन डॉक्युमेंट्स को, जो पब्लिक होने चाहिए, पब्लिक करने वालों की जान के दुश्मन हो जाते हैं।
ऐसा क्या है, उन डॉक्युमेंट्स में? हमारे समाज का, उसकी भद्दी राजनीती का और उनके बनाए सिस्टम की पोलखोल का काम हैं वो डॉक्युमेंट्स। जो कहीं न कहीं इसका ठोस सबूत हैं, की जन्म से लेकर मर्त्यु तक, कैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को जुए में धकेला हुआ है। जिसमें गोटी के जैसे, हर इंसान पर दाँव है, वो आम इंसान तक, चाहे जिसके पास ज़िंदगी को जीने के लिए आम सी सुविधाएँ तक ना हों। यही सिस्टम और राजनितिक पार्टियाँ उस आम इंसान तक को बिमारियों और मौतों तक धकेल रहा है। आपके भगवानों के जैसे कह रहा हो जैसे, चलो अगला नंबर तुम्हारा। क्यूँकि, तरह तरह के भगवान भी यही राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी बड़ी कम्पनियाँ घड रही है।
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