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Wednesday, July 23, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 16

EC से पिंक स्लिप आपको ईनाम के रुप में मिल गई? और आपको उसका मतलब तक पता नहीं चला? कितने भोले हैं आप? कोढों वालों की बेहुदगियों को और कहाँ-कहाँ झेलेंगे? EC से resignation एक्सेप्ट होने के बाद क्या होना चाहिए था? आपको अपना पैसा मिल जाना चाहिए था? यही ?

अरे नहीं खेल अभी बाकी है। 

अभी वो अपने कालिख से जुए के धंधे के आगे वाले स्वरुप से नहीं अवगत कराएँगे? तो वो आगे का खेल शुरु होता है। वो कहते हैं की हमने ऐसे सिस्टम बनाए हैं, जिनमें पैसा अपने आप आगे बढ़ता है। हमें कुछ नहीं करना पड़ता। ज़मीनी धंधा उनमें से एक है। धंधे के इस बेहूदा लोगों ने औरतों को ही प्रॉपर्टी घोषित कर दिया है। औरतें ही क्यों? पुरुष भी शायद? वेश्याव्रती के इस धंधे में, क्या अनपढ़ और क्या पढ़ी लिखी औरतें, सबको एक लाठी से हाँकने का चलन है। क्यूँकि, इनके धंधे के अनुसार आप एक इंसान नहीं है, प्रॉपर्टी हैं। और प्रॉपर्टी पर तो मारकाट मचती है? 2018 में जब कुछ पत्रकार खुलमखुला ऐसा लिख रहे थे, तो सबकुछ जैसे दिमाग के ऊप्पर से जा रहा था, की ये दुनियाँ कौन-सी है? और कहाँ है, जिसकी ये बात कर रहे हैं? उन्हीं में से कुछ एक ने बताया था की ये कोढ की दुनियाँ है और इसके जाले सारी दुनियाँ में फ़ैले हुए हैं। खासकर, उस so called साइकोलॉजी वाले ड्रामे के बाद, किसी सैर सपाटे से, जब चिड़ियाँ कहीं से फुर्र हो गई थी। कुछ लोगों के इशारों के बाद ही हुआ था ऐसा। 

EC के बाद ED आता है? ED कहाँ-कहाँ आता है? ED और शिक्षा का धंधा? इनका आपस में क्या लेना-देना है? आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करेंगे। 
       

इसी दौरान उन्हीं कोढों को जानने के लिए, मैंने कुछ बंद लैबों, साथ वाले बँध घर (29), रोड़ों, उनपे लिखे शब्दों या नम्बरों और ऑफिसों की खाख छाननी शुरु कर दी थी। इस खाख में रोहतक के कुछ ऐसे कोने भी थे, जहाँ मैं पहले कभी नहीं गई। या जिनके बारे में पता तक नहीं था, की ऐसा कुछ भी रोहतक में है। कुछ ऐसे पूल, जिनका मुझे पहले कोई अत्ता पता ही नहीं था। जैसे रोहतक इंडस्ट्रियल टाउन, जिसके पास से कितनी ही बार निकली होंगी, मगर कभी ध्यान ही नहीं दिया, की ये बला क्या है? सैक्टर 22, रोहतक में ऐसा कोई सैक्टर भी है? शिव कॉलोनी और आसपास का गन्दा-सा एरिया। ये भगवानों के नाम पर बनी इमारतों या जगहों पे इतना गंद क्यों होता है? और भी कुछ ऐसी-सी ही जगहें। जैसे SUPVA, आखिर ये बला क्या है? खुद अपनी यूनिवर्सिटी में शायद ही ऐसी कोई जगह छोड़ी हो, जहाँ मैं ना गई हों। जिस किसी बहाने या बस ऐसे ही घूमने। बस ऐसे ही? नहीं। शायद उन जगहों के बारे में कहीं न कहीं आर्टिकल्स में कुछ आ रहा था। 

इस सबको बताने समझाने में शायद कुछ एक लोगों का अहम रोल था, खासकर पत्रकारिता के क्षेत्र से। ऐसा भी नहीं है की मैं उन्हें कोई खास पसंद करती थी। मगर, उनके लेखों या प्रोग्रामों में कुछ तो खास होता था, जो अपनी तरफ खिंचता था? शायद कुछ ऐसी जानकारी, जो आपको और कहीं नहीं मिलती थी। थी क्यों? अब कहाँ गए वो लोग? सुना या पढ़ा था, की उन्हें कोरोना काल खा गया। कोरोना काल या उनके घोर विरोधी? जिन्हें उनकी वजह से कहीं न कहीं शायद नीचा देखना पड़ रहा था? इन कुछ खास लोगों को हार्ट अटैक हुआ था? मगर कैसे? वो भी शायद कुछ एक पत्रकारों को ही ज्यादा पता हो? लोगबाग क्यों नहीं खुलकर बात करना चाहते इन सबके बारे में? मरने से किसे डर नहीं लगता, वो भी सच उगलने पर बिन आई मौत जैसे?  

Toxicology, Bio-Chemical Terror और ऐसे-ऐसे विषय जाने कहाँ से आ गए थे? जिनके बारे में पहले बहुत कम या ना के बराबर जानकारी थी। आप जानते हैं, इन विषयों पर कहाँ-कहाँ काम हो रहा है? या ऐसे-ऐसे सँस्थान कहाँ-कहाँ हैं? और वहाँ का फोकस एरिया क्या है? जानने की कोशिश करें, शायद बहुत कुछ समझ आएगा। 

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