आप एक ऐसे सिस्टम का हिस्सा है या उसे झेल रहे हैं, जिसके पास लाखों, करोड़ों रूपए कृत्रिम बारिश, बाढ़ या गर्मी बरसाने के लिए जैसे फालतू पड़े हुए हैं? क्यूँकि, उस सिस्टम को या वहाँ की जुआरी राजनीती को, कुर्सियाँ पाने के लिए hype घड़ने हैं? या फिर छल कपट (manipulation), कहीं कहीं तो हद से ज्यादा छल कपट वाले तथ्य पेश करने हैं? छल कपट में हकीकत को जानना पहचाना कितना आसान या मुश्किल होगा, ये इस पर निर्भर करता है, की आपको कितना ऐसे लोगों के छल कपट वाले तरीकों का पता है?
Interactions और किस्से कहानियों से ये बड़े सही से समझ आता है। जैसे अगर दो गाड़ियों और किसी खास वक़्त या तारीख को उनकी पोजीशन की ही बात करें? उस नौटँकी को घड़ने वालों के अनुसार, वहाँ भविष्य क्या है? जीरो या ख़त्म? या इससे आगे भी कुछ बचता है? रायगढ़ दरबार में आपका स्वागत है? या रायसीना हिल्स? या? अब इस या का जवाब आपको पता होना चाहिए, जिन्हें अपना या अपने आसपास का भविष्य घड़ना है? या उसे कोई रास्ता दिखाना है? या जीरो या ख़त्म कहने वालों या घड़ने की कोशिश करने वालों पर छोड़ देना है?
मैंने यहाँ दो तरह के लोग देखे हैं। एक जिनके बच्चे नालायक, महानालायक। वो जिन्हें कहते हैं, की मेरा बेटा तै पानी का गिलास भी खुद लेके ना पीवै, जैसे ये उनकी तारीफ हो? बुरे से बुरे जुर्मों के रचयिता और भुक्त भोगी भी, जिन्होंने हत्या जैसे केसों तक में जेल भुक्ति हो या भुगत रहे हों। मगर फिर भी उनके तारीफ़ के पूल बाँधते मिलेंगे। ऐसे गा रहे होंगे जैसे उनका भविष्य तो बहुत उज्जवल है।
दूसरे, ऐसे आसपास को देखते हुए जिनके बच्चे हज़ार गुना अच्छे हों, मगर उन बेचारों को कभी उनमें कोई अच्छाई नज़र ही नहीं आती? ऐसे रो रहे होंगे जैसे इनका तो भविष्य ही ख़त्म।
ये narratives कहीं न कहीं दिशा निर्धारित करने का काम करते हैं। खासकर, जब ऐसा सुनने के आदि बच्चे, ये सब मानना शुरू कर दें। किसी भी तथ्य या छल कपट तक की घड़ाई को मान लेना या लगातार सुनते रहना दिमाग पर असर छोड़ता है। अब वो असर कितना नगण्य या ठोस है, ये उसको मानने या न मानने वाले पर निर्भर करता है।
तो अगर आप अपने बच्चों या आसपास को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं तो उन्हें वही बोलें, जो उनके आगे बढ़ने या बढ़ाने में सहायक हो। नहीं तो जाने अंजाने आप खुद उनके जीवन का एक रोड़ा हैं। कोई भी माहौल यही काम करता है। वो या तो आगे बढ़ाता है या पीछे धकेलता है। माहौल या संगत को ऐसे ही नहीं गाते समझदार लोग। आपके ना चाहते हुए भी अगर आपके आसपास काँटे ही काँटे हों या काँटों भरे पथ पर चल रहे हैं और उनसे सुरक्षा का कोई इंतजाम आपने नहीं किया हुआ, तो काँटों का काम है चुभना और वो चुभेंगे। जैसे फूलों के पथ पर अगर नंगे पाँव भी चल दोगे, तो वो कोई दर्द नहीं देने वाले। मगर ऐसा काँटों वाले पथ पर करोगे, तो लहू लुहान हो जाओगे। हर तरह के माहौल का अपना असर होता है, जिसे वो अपने आसपास परोसे बिना नहीं रहता। जुबाँ भी उसी में से एक है। वो कुछ नैरेटिव कहती है। और उन नैरेटिव के अपनी ही तरह के असर होते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ माहौल भी घड़ती हैं और नैरेटिव भी। उनके नंबरों के जितने ज्यादा दाँव आपके आसपास हों, वो उतना ही ज्यादा बुरा या भला घड़ती हैं। उनके बूरे प्रभावों से बचने के तरीकों में अहम है, उनको ज्यादा से ज्यादा जानना और बुरे से बचने के रस्ते निकलना।
Climate change, Environment changes या manipulations? किनके पैसों से होता है? आपकी जानकारी या इज्जाजत के बिना, ऐसा करने वालों के खिलाफ कौन से कोर्ट हैं? हैं क्या कहीं? खासकर, किसी भी देश की सरकार या राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ? शायद अभी तक तो नहीं? होने नहीं चाहिएँ? ये आगे किसी पोस्ट में।
ऐसे ही शायद सिंथेटिक बिमारियाँ और मौतें तक परोसने वालों के खिलाफ। नहीं?
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