बड़े दिनों बाद आज आखिर मुलाकात हुई, अशोक भाई से और साथ में उनके परिवार से, चाची को मिलने आए थे। मेरे जैसे तो सिर हो जाते हैं ऐसे ही? खासकर, जब लोग जमीन हड़पकर या ऐसा कोई काम या काँड कर, दूर दूर भागने लगें? ऐसा ही?
बात तो वो आज भी नहीं करना चाह रहे थे। मगर, किसी की ज़मीन की तरफ गिद्ध निगाह रखकर, भागने से क्या काम चल जाएगा? वो ज़मीन ना आपकी थी, ना है और ना ही होगी। कम से कम मेरे ज़िंदा रहते। तो भाभी की तरह मेरा भी ईलाज कैसे करना है या कहाँ से करवाना है, तो शिक्षा के धंधे वाले लोगों से बेहतर किसे पता होगा?
ये पोस्ट खास उस जनता के लिए, जो ये ब्लॉग रेगुलर पढ़ रहे हैं। कल को अगर मुझे कुछ होता है, तो उसके पीछे ये (आर्य स्कूल मदीना? या खूनी स्कूल मदीना?) और इनकी खास-म-खास पार्टी होगी। वो पार्टी, जो ना सिर्फ इस पीने वाले भाई की ज़मीन के पीछे है, बल्की चाहती ही नहीं, बल्की, पूरी कोशिश में है की येन केन प्रकारेण दूसरे भाई की ज़मीन भी हड़प लें। इन लोगों के शब्द सुनकर तो ऐसे लगता है, जैसे सब दान करने के लिए बैठे हैं इन्हें।
यूनिवर्सिटी उसमें लगता है पूरी सहायता कर रही है, मेरा पैसा रोककर।
You are requested again publically, give me my whole amount without any further delay. As an higher education system, you have already given her so much opportunities to grow personally and professionally that their signs are so avident in her life, body and all around her.
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