कोई और किस्सा कहानी बाद में।
मगर उससे पहले, थोड़ा बुजर्गों के हालातों पर बात हो जाए?
कुछ तो मजबूरियाँ होंगी की उम्र के इस पड़ाव पर बच्चे उन माँ बाप को अकेला अपने हाल पर छोड़ देते हैं, जिनकी उँगलियाँ पकड़कर वो चलना सीखते हैं? कुछ केसों में तो कई बार यकीन तक करना मुश्किल होता है की वो? वो तो ऐसा नहीं कर सकते।
बहुतों के पास शायद गाँवों में अपने घर होते हैं और वो शहरों में अपने ही बच्चों के घरों में बेघर से रहने की बजाय, शायद अपने ही घर में वापस आना पसंद करते हैं? वजह जो कोई भी हों, इस उम्र में तो कम से कम, कोई न कोई सुप्पोर्ट सिस्टम तो चाहिए। इस उम्र में एक तो शरीर साथ नहीं देता, तो छोटी मोटी सी बिमारियाँ तो जैसे लगी ही रहती हैं। उसपे अक्सर हमारे यहाँ बुजर्गों के पास कोई व्हीकल भी नहीं होता। तो बहुत मुश्किल है क्या की सिविल हॉस्पिटल से कोई डॉक्टर ऐसे लोगों के घरों पर विजिट कर जाएँ? हफ्ते में, दो हफ्ते में या महीने में ही सही? जिन्हें ज्यादा दिक़्क़त हो, उनके लिए कोई फ्री एम्बुलेंस सर्विस? हरियाणा जैसा राज्य तो फिर इतना गरीब भी नहीं की सरकार के लिए इतना सा करना बहुत मुश्किल हो? हाँ, कुछ बुजुर्ग गाँवों में खासकर, इतने गरीब हो सकते हैं की उन्हें अगर इतनी सी भी सुविधाएँ मिल जाएँ, तो उनकी ज़िंदगी का ये सफ़र थोड़ा कम मुश्किल हो सकता है।
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