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Friday, December 20, 2024

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 14

ताऊ? अल्फा? बीटा? सिग्मा? हन्नू? शिव? राम? लक्षमण? भीम? घटोत्कच? एकलव्या?      

ताई? हिडिम्बा? सुर्पणखां? सीता? मेनका? पार्वती? द्रोपदी? कुंती? केकैयी?   

और भी कितनी ही तरह के अनोखे नाम हो सकते हैं? अलग-अलग जगहों और सभ्यता या समाजों के हिसाब-किताब के? जो जिसको जहाँ फिट लगे, वहीँ लगा दो या बोल दो?     


बावली तरेड़, गडंगबाज़ कितै के। 

बदलाम-बदलाई 

घपलाम-घपलाई 

बदलते चलो, बदलते चलो। 

छीनते, लूटते, कूटते, पीटते चलो। 

आपणी-आपणी किस्म की मोहर ठोकते चलो 

जहाँ भी ठोक सको, ठोकते चलो?

जहाँ भी जैसी भी कहानी, 

जिस किसी विषय पर घड़ सको 

घड़ते चलो?


Psychological Manipulations   

सारा खेल इन किस्से-कहानियों की घड़ाईयों का है? कौन-सी पार्टी, कैसी कहानी घड़ कर, कहाँ अपने अनुसार फिट करना चाहती है? हर पार्टी की अपनी ही तरह की कहानियाँ या किस्से, उसके अपने डिज़ाइन के अनुसार मिलेंगें। और ज्यादातर कहानियों में ऐसा कुछ होगा, जो मानसिक तौर पर आपको उकसाएगा, भड़कायेगा। जैसे, मानसिक भड़क पैदा कर अपना काम निकाल जाना। 

इसमें short term memory cells और long term memory cells के ज्ञान-विज्ञान को भुनाना अहम है। ये सब तभी संभव है जब उन्हें आपके, आपके परिवार और आसपास के बारे में काफी कुछ पता हो। सर्विलांस एब्यूज 24-घंटे ऐसे ही काम आता है इन पार्टियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों के, अपनी तरह का और अपने हिसाब का समाज घड़ने में। सोशल इंजीनियरिंग, सोशल किस्से-कहानियों के जरिए। ऐसे किस्से-कहानी घड़ना की हर इंसान को लगे, जैसे, ये तो उसकी अपनी या उसके अपने परिवार या बहुत ही आसपास की कहानी हो जैसे। फोकस हर इंसान पर, हर इंसान की ज़िंदगी पर। मगर, ज्यादातर उसके भले के लिए नहीं, बल्की अपने फायदे के लिए। 


आओ ऐसे-ऐसे ही आसपास के छोटे-छोटे से किस्से-कहानी सुनते हैं।           

तेजा चूड़ा क्यों ठा लिया यो? इतना सड़ा, गला, कटा-फट्टा, पत्र कहाँ से ढूंढ लाए?

कुछ गड़बड़ घौटाला जैसे?

और शाम को ही पड़ोस वाली दादी को कोई लड़की पूछती है, जब मैं उन दादी के घर के पास से गुजर रही होती हूँ। वो हैं क्या यहाँ? 

अंदर देख लो। आवाज़ लगा लो, शायद यहीं हैं। 

और दादी मेरी आवाज़ सुनकर अंदर से बोलते हैं, कौन है मंजु?

जाओ, वो रहे। 

दादी उसे वहीं से बोलते हैं, तुम बम्बई (मुंबई) से कब आए? 

और दूसरी तरफ से दादा जीत बोलते हैं। पैसे दे दो इसे। 

उन दिनों मुझे काम वाली (House Help) की जरुरत होती है और मुझे लगता है, शायद कोई नई काम करने वाली होगी। और मैं भाई के घर जाने की बजाय (जो कुछ कदम आगे है), वापस मुड़कर वहीँ आ जाती हूँ। और दादी से पूछती हूँ, दादी ये काम करने वाली है?  

उसे शायद पैसे चाहिएँ थे या उसने काम किया था, ऐसा कुछ चल रहा था। और मैं पूछती हूँ, कहाँ से हैं ये। नए हैं कोई? कहाँ से आते हैं?

और बात तेजा चूड़े और मुंबई पर आ रुकती है। 

ऐसा अकसर होता है की मैं कुछ पढ़ रही हों या लिख रही हों और आसपास में कोई ड्रामा या हकीकत उसके आसपास घूमता मिलेगा।            

 फिर कई महीनों बाद आप कोई विडियो देखते हैं यूट्यूब पर। पता नहीं क्या कुछ गा रहा हो जैसे?

जैसे? 

और उन्होंने तेजा चूड़े को मार दिया? या तेजा चूड़े ने फलाना-धमकाना को? इतना सुनने के बाद, अपना दिमाग खराब करने की बजाए, मैं कोई और विडियो (ऑनलाइन न्यूज़) देखने लगती हूँ।  

आगे की कहानी, आगे पोस्ट में।  

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