How ecosystem of any place develops with politics of that place?
किसी भी जगह का इकोसिस्टम राजनीती के घटनाक्रमों या बदलावों के साथ कैसे बदलता है? आप जहाँ कहीं हैं, वहीँ से समझने की कोशिश करें, खासकर अगर उस जगह को थोड़ा बहुत समझते या जानते हैं तो। जैसे मैं अगर अपने गाँव की बात करूँ तो ये M प्रधान Madina दो पंचायतों का गाँव है। Madina A, Kaursan, K प्रधान है। और Madina-B, Gindhran, G प्रधान है। मगर M, K और G सिर्फ पहले अकसर हैं। इनके आगे जटिल कोड है। Madina हाईवे पर है और चारों तरफ अप्प्रोच रोड़ या कहो की गाँवों से घिरा है। ये अप्रोच रोड़ या गाँव उस तरफ की अलग सी कहानी या कोड हैं। जैसे हाईवे पर एक तरफ Kharkara और दूसरी तरफ Bahu Akbarpur.
ऐसे ही जैसे अप्प्रोच रोड़, हाईवे के एक तरफ Bharan, Ajaib, तो दूसरी तरफ Mokhra. और भी अलग अलग दिशा में अलग अलग अप्रोच रोड़ या गाँव। किस गाँव की Proximity किस गाँव के किस हिस्से के करीब है? वो वहाँ का जटिल कोड है। उसी कोड में वहाँ की समस्याएँ या समाधान भी हैं। जैसे, आपके गाँव में हॉस्पिटल कहाँ-कहाँ हैं? प्राइवेट या सरकारी? किस तरफ हैं? किन गाँवों की तरफ या आसपास? आदमियों के या जानवरों के? वहाँ डॉक्टरों के नाम क्या हैं? या बाकी स्टाफ के? वहाँ आसपास दवाईयों की दुकानों के क्या नाम हैं और उन्हें चलाने वालों के? प्राइवेट डॉक्टर, डॉक्टर हैं या झोला छाप? ये जाते ही इंजेक्शन ठोकने वाले कौन हैं? और दवाई देने वाले कौन? या नाम मात्र दवाई दे काम चलाने वाले?
किसी खास बीमारी के डॉक्टर भी बैठते हैं आपके गाँव के किसी हिस्से में? या खास स्पेशलिटी के हॉस्पिटल? उस बीमारी के या स्पेसलिटी के डॉक्टर या हॉस्पिटल जहाँ वो हैं, वहीँ क्यों हैं? क्या खास है, उस जगह में? या कहो की वहाँ के कोड में? ये डॉक्टर या हॉस्पिटल कोई खास सर्टिफिकेट भी रखते हैं या कहाँ से सर्टिफाइड हैं? ये सब कोड है। ऐसे ही दवाईयों का कोड होता है। अलग-अलग जगह और अलग-अलग हॉस्पिटल या डॉक्टर का अलग-अलग कोड। ये कोड उनके किसी भी बीमारी के ईलाज के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं।
जैसे मान लो आपने कहीं कोई ईलाज करवाया और उस हॉस्पिटल का सरकारी सर्टिफिकेशन नंबर है 1234abcd और जिस जगह वो है, उस जगह का नंबर जाट प्लॉट या राज प्लॉट या बनिया प्लॉट। उस हॉस्पिटल को घुम कर और कोड पढ़ने की कोशिश करो। पता चलेगा, पानी के गिलास पे ही चेन बंधी है। मतलब, पानी तक पर भारी भरकम टैक्स जैसे? ऐसे ही और भी कितनी ही मजेदार चीज़ें दिख सकती हैं। जैसे किसी मूवी में किन्हीं नर्स ने मरीज के साथ वालों को कॉउंटर से ढेर सारी दवाईयाँ या इंजेक्शन वगरैह लाने को बोला। और फिर उनमें से कुछ एक वो मरीज को देकर, बाकी आपकी जानकारी के बिना वहीँ कॉउंटर पर पहुँचा दें। सोचो, और कहीं कोई मीडिया आपको दिखा रहा हो, ऐसे होते हुए? फिर कहीं कोई खास कंपनी और नंबर वाली एम्बुलैंस, किसी खास डायग्नोस्टिक सेंटर तक पहुँचाए, क्यूँकि, उन टेस्टों की सुविधा उस अस्पताल में नहीं है। फिर वहाँ देखो छत पे चमकते चाँद सितारे, कह रहे हों जैसे, यहाँ सब मंगल-मंगल है? यही नहीं, और भी अनोखे किस्से-कहानी उस हॉस्पिटल की ईमारत में ही पढ़ या समझ सकते हैं। और वहाँ मरीजों का जो इलाज होगा, वो? वो भी किन्हीं खास कोड वाला ही होगा। और जरुरी नहीं, वहाँ के सब डॉक्टरों या स्टाफ को ऐसी कोई जानकारी तक हो। ये सिस्टम का ऑटोमेशन (automation) बताया।
ऐसे ही दवाई बनाने वाली कंपनियों का होता है। और उनकी दवाई, उनसे मिलते जुलते कोड पर ही पहुँचती हैं। ये सब स्वास्थ्य बाजार है। जहाँ स्वास्थ्य मिलता कम है। मगर उससे खिलवाड़ या छेड़छाड़ ज्यादा होती है।
ऐसे ही स्कूलों का है। कोई भी स्कूल किस जगह है? उसका नाम क्या है? उसको चलाने वाले कौन हैं? वो स्कूल किस सँस्थान से सर्टिफाइड है? उस का सर्टिफिकेशन नंबर या तारीख क्या है? उसमें कितने बच्चे और किस क्लास तक पढ़ते हैं? पढ़ाने वाले या स्टाफ कौन है? वो कौन सी कंपनी या लेखकों की किताबें पढ़ाते हैं? वो किताबें कितना सही या गलत पढ़ाती हैं? किताबें गलत भी पढ़ाती हैं? हाँ। क्यूँकि, उन्हें लिखने वाले इंसान हैं और उनके अपने मत हैं और बहुत से केसों में अलग अलग राजनितिक पार्टियों से संबंधित भी। अब जो खुद कम पढ़े लिखे हैं, उन्हें तो ये सब समझ ही नहीं आएगा। उन किताबों की कंपनियों या खुद किताबों के भी कोड हैं और जो सिलेबस बच्चे पढ़ते हैं, उसके भी। ये सब ऊप्पर से चलता है और स्कूलों तक के स्तर पर ऐसे ही इन राजनितिक पार्टियों का और बड़ी-बड़ी कंपनियों का बड़ा ही गुप्त सा कंट्रोल होता है। जो पढ़ाया जा रहा है, वो एक तरह की ट्रेनिंग है, किसी खास पार्टी या मत की।
ऐसे ही जो आप खाते-पीते हैं, वो आपके शरीर की ट्रैनिंग है, जहाँ का खा-पी रहे हैं, वहाँ के स्तर के स्वास्थ्य या बिमारियों की। खाद पदार्थ या पानी, कहीं भी किस कोड के मिलते हैं, वो उस कोड के अनुसार, वहाँ की बिमारियों की अधिकता या कम होना बताते हैं। जैसे कहीं खाने-पीने के प्रदूषण की अधिकता की वजह से बिमारियाँ हैं। तो कहीं ज्यादा खाने-पीने और कम घूमने-फिरने की वजह से। खाने-पीने के प्रदूषण की वजह से ज्यादातर गरीबी का संकेत है। और ऐसी ही जगहों पे होती हैं। तो खाने-पीने की अधिकता या कम घूमना-फिरना, फलते-फूलते लोगों या घरों की? ऐसा ही कहते हैं ना? काफी हद तक सही भी? क्यूँकि, खाने पीने में प्रदूषण वाली जगहों पर मोटापा या इससे जुडी बीमारियाँ कम ही मिलेंगी। ऐसे ही मोटापा या इससे जुड़ी बीमारियाँ, ज्यादातर शहरों की तरफ ज्यादा। ज्यादातर, क्यूँकि, और भी बहुत से कारण होते हैं इसके साथ-साथ।
इन्हीं कोडों के आसपास कहीं भी बाकी सब जीव-जंतु मिलते हैं। क्यूँकि, हर जीव किसी खास इकोसिस्टम में ही पनपता है या फलता-फूलता है। या ख़त्म हो जाता है। या संघर्ष करता नज़र आता है। जितना ज्यादा आपको कोई भी इकोसिस्टम समझ आना शुरु हो जाएगा, उतना ही ज्यादा उसकी खामियों का ईलाज भी। या बहुत जगह ईलाज आपके वश से बाहर के कारणों पर निर्भर करता है। तो ऐसे इकोसिस्टम से निकलना ही बेहतर होता है, बजाय की उससे झुझते रहने के।
जैसे कई बार खास तरह के जीव जंतुओं को पालने वाले या पनपाने वाले कुछ खास घर या इंसान भी हो सकते हैं। जैसे कबूतर या मछली। जैसे चिड़ियों के लिए गर्मी में पानी रखने वाले खास विज्ञापन? या पुरानी चिड़ियों की जगह नई किस्म की चिड़ियों या पक्षियों या जानवरों का दिखना या किसी खास जगह से आना या कहीं जाना। ये अपने आप नहीं होता। किसी भी जगह के राजनितिक कोड के साथ ये भी जुड़ा है। एक ही जगह पर, एक घर से दूसरे घर की छतों पर अलग-अलग किस्म की चिड़ियों या पक्षियों का आना। ये इस पर निर्भर करता है, की उनके खाने के लिए वहाँ क्या खास है, जो साथ वाले घर या पड़ोस में ही नहीं है। या पक्षी कितना बड़ा या छोटा है? और किस तरह के वातावरण को ज्यादा सुरक्षित समझता है? जैसे छोटी चिड़ियाँ कहाँ आती हैं या कहाँ घोसले बनाती है? कौवे या नीलकंठ या मोर या बत्तख या गिद्ध कहाँ? हर जीव के लिए खाना, सुरक्षा और फलने-फूलने की जगहें महत्त्व रखती हैं। ये यहाँ से वहाँ जीवों को लाने या ले जाने वालों को अच्छे से पता होता है। कहीं का भी सिस्टम या इकोसिस्टम, ऐसी जानकारी रखने वाली ताकतें बनाती या बिगाड़ती हैं। और ये ज्यादातर आम जनता की जानकारी के बिना होता है। जितना ज्यादा इस जानकारी का दायरा बढ़ता जाता है, उतना ही ज्यादा वहाँ के जीवों पर कंट्रोल। इंसान उन्हीं जीवों में से एक है।
कुछ-कुछ जैसे election और delimitation?
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