About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, March 16, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 62

व्यवहारिक दाता मंदिर: आपकी समस्याओं का समाधान केंद्र और संस्थान 

खाना-पानी समाधान विभाग 

स्वास्थ्य लाभ विभाग

आवास विभाग 

रोजगार विभाग 

साफ़-सफाई विभाग 

बस इतनी-सी समस्याएँ हैं, दुनियाँ में? और हमारे पास इनके समाधान नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है? सर्च करो, किसी भी तरह के समाधान की प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए, और ढेरों समाधान मिलेंगे। मतलब, विकल्प तो हैं। अब इतने सारे विक्लप हैं, तो समाधान भी होंगे? इसका मतलब, हमने और हमारे नेताओं ने सारा ध्यान समस्या पर केंद्रित किया हुआ है? समाधान पर नहीं? समाधान पर ध्यान केंद्रित करो और समाधान मिलता जाएगा। समस्या पर ध्यान दो और समस्या बढ़ती जाएगी? बस, इतनी-सी बात?  

व्यवहारिक दाता मंदिर, क्या नाम है ना? आपका डाटा ही आपका दाता है। इसी दाता पर दुनियाँ भर में सबसे ज्यादा खर्च हो रहा है। क्यों? क्यूँकि, यही दाता राजनीतिक गुप्ताओं के काम आता है, आपको कंट्रोल करने के लिए। मानव रोबॉट बनाने के लिए। 

और ये कोई आज के युग की बात नहीं है। आज और कल में, बस इतना-सा फर्क आ गया है, की आज ज्यादातर लोगों को पता चल रहा है, की दुनियाँ कैसे चल रही है। इंटरनेट और कनेक्टिविटी का उसमें अहम स्थान है। आस्था कभी से अचूक माध्यम रहा है, इंसान को अपने वश में करने का। जितना किसी को भी आपके दाता के बारे में पता है, उतना ही आप पर कंट्रोल बढ़ता जाता है। तो क्या हिन्दू, इस तरह के कंट्रोल में ज्यादा माहिर हैं? या ज्यादा तिकड़मबाज? ज्यादा जुगाड़ू? क्यूँकि, हिन्दुओं के उतने ही भगवान होते हैं, जितनी जनसंख्याँ? मतलब, कंट्रोल व्यक्तिगत स्तर पर करने की कोशिशें? ना की जनसंख्याँ के स्तर पर? मतलब, जितनी तरह के इंसान, उतनी ही तरह के भगवान? मतलब, उतना ही गोटियों की तरह ईधर-उधर करना आसान? जैसे shuffle, reshuffle.   

या शायद भगवान तो एक ही है, ये प्रकृति? बाकी भगवानों को इंसानों ने घड़ दिया है? जरुरत और सुविधानुसार?  बताओ समस्या क्या है? और उसी अनुरुप, भगवान आपके सामने प्रस्तुत होंगे? भगवान आपके सामने प्रस्तुत होंगे? सच में? होते तो हैं? कैसे?

जैसे, Prayers go up, and, blessing come down? आपका दिमाग ही वो ब्रम्हांड है, जिसमें जो कुछ आता है, या प्रोग्रामिंग होती है या की जाती है, उसी अनुसार काम होते जाते हैं? अगर ऐसा हो, तो आसपास और संगत के असर को क्यों रोते रहते हैं लोग? क्यूँकि, दिमाग में बहुत कुछ आसपास से ही जाता है। जैसे जैसा हवा, पानी, खाना, और वैसा ही स्वास्थ्य। तभी तो कहते हैं शायद, की खाना औषधि की तरह लो और स्वस्थ वातावरण में रहो, तो डॉक्टर के पास जाने की या दवाई लेने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।                                 

व्यवहारिक दाता मंदिर, दुनियाँ का सबसे बड़ा मंदिर? जिसमें व्यक्तिगत स्तर पर समाधान संभव है?

No comments: