About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, March 13, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 57

 ये पोस्ट खास हमारे बेरोजगार नेता या नेताओं के लिए 

क्या आप वो नेता हैं, जो कहते हैं की नौकरियाँ नहीं हैं?

क्या वो आप हैं जो युवाओं को ही नहीं, बल्की, आमजन को ऐसे गुमराह करते हैं, की इसकी नौकरी जाएगी, तो उसे या उन्हें मिलेगी? क्या आपके पास, ऐसी हेराफेरियों और लोगों को आपस में ही भड़काने के सिवाय, कोई और समाधान नहीं है? 

क्या आप वो नेता हैं, जिन्हें लगता है, की नई टेक्नोलॉजी या एप्लायंसेज का प्रयोग करने से नौकरियाँ कम हो जाएँगी? आपको क्यों नहीं लगता, या क्यों नहीं सोच पाते, की इससे ना सिर्फ लोगों की ज़िंदगियाँ आसान होंगी, बल्की, ज्यादा लोगों को नौकरियाँ मिलेंगी? वैसे, ये ज्यादा या कम क्या है? सबको क्यों नहीं? इसका मतलब, हमारी शिक्षा व्यवस्था में कमी है, जिसे सुधारने की जरुरत है?

कॉलेज से ही हर विद्यार्थी के लिए Learn and Earn जैसे प्रोग्राम शुरु होने चाहिएँ। और स्कूल के स्तर पर बच्चों को इतना-सा तो आना चाहिए, की वो अपनी ज़िंदगी इंडिपेंडेंट जीना सीख पाएँ। जरुरत पड़ने पर, कम से कम अपने लायक तो कमाने लायक हो पाएँ। कमाने लायक ना सही, कम से कम अपने काम तो कर पाएँ। ज्यादातर लड़कियाँ तो हमारे यहाँ सीख जाती हैं, मगर लड़के? लड़के होने के फलस्वरूप, हमारा समाज उन्हें जैसे अपाहिज बना देता है? या शायद, लड़का होने की जैसे सजा देता है या इनाम? ये काम लड़कियों के हैं, और ये काम लड़कों के हैं सीखाकर। स्कूल इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, की अगर आपको भी लड़कियों की तरह भूख लगती है, और खाना खाते हैं, तो खाना बनाना सीखना जरुरी है। उसे किसी तरह के अहम से ना जोड़ें। अगर लड़कियों की तरह, आपको भी कपड़े पहनने की जरुरत होती है, या साफ़-सफाई अच्छी लगती है, तो कपड़े धोने, बर्तन साफ़ करने या आम साफ़-सफाई करनी आनी चाहिए। या ऐसे अप्लायंस को प्रयोग करना। फिर चाहे इन सब कामों के लिए, आपके यहाँ माँ, बहन, बीवी, बुआ, बेटी, भतीजी, या ये सब काम करने वाली आया, जैसी सुविधाएँ ही उपलब्ध क्यों ना हों। जरुरत पड़ने पर, ये सब कर पाना और बिना जरुरत पड़े, अपने घर के ऐसे कामों में सहायता करना, आपका गुण है, अवगुण नहीं। ऐसे-ऐसे कामों को करने वालों को, औरत या औरतों के गुलाम बताने वालों से, जितनी जल्दी दूरी बना लें, आपकी अपनी और आसपास की ज़िंदगी उतनी ही बेहतर होगी। ये सब करना विकसित होने की निशानी है, ना की गुलामी की, विकसित समाजों में। शायद गुलाम या अविकसित समाजों में नहीं?              

यूनिवर्सिटी के स्तर पर, सीधा प्रॉजेक्ट या कंपनियों के सहयोग से Collaborative Research या सिर्फ उस कोर्स की अनुमति हो, जिसमें यूनिवर्सिटी के स्तर पर नौकरी के लिए ट्रैनिंग शुरु हो और यूनिवर्सिटी से निकलते ही नौकरी।  कुछ-कुछ ऐसे, जैसे बस या किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के व्हीकल में, सिर्फ उतने ही आदमी चढ़ पाएँ, जितनी सीट हों। उसके बाद वो व्हीकल, किसी स्टॉप पे नहीं रुकेगा। या उसका दरवाज़ा ही नहीं खुलेगा। जैसे, ज्यादातर विकसित जगहों पर होता है। सीट ना होने के बावजूद, किसी भी व्हीकल पर जितनी ज्यादा भीड़, मतलब उतना ही ज्यादा अविकसित होने की निशानी? डिग्री देने की काबिलियत होने के बावजूद, उन डिग्री धारकों को नौकरी देने की काबिलियत नहीं होना, मतलब? अच्छे संस्थानों से सीखें, की वहाँ क्या अलग है? जो सिर्फ डिग्री बाँटने वाले संस्थानो में है या नहीं है?

इस सबको सही करने के लिए क्या कदम हो सकते हैं? कुछ शायद मैं सुझा पाऊँ? क्यूँकि, मैं खुद नौकरी लेने की दौड़ में नहीं, शायद देने वालों की कैटेगरी में आने की कोशिश में हूँ।    

No comments: