क्या NSDL Protean एक गौरख-धंधा है?
मुझे ऐसा लगा। क्यों?
जानने की कोशिश करें?
ये पोस्ट उन सबके लिए, जो अपने आप को समाज का हितैषी मानते हैं।
मुझे Resignation के तक़रीबन साढ़े तीन साल बाद, एक खास काम के लिए यूनिवर्सिटी जाने का मौका मिला। मैं Resignation 29, June या July, 2021 को दे चुकी? मैंने अपनी मर्जी से दिया या माहौल ने दिलाया, अलग ही मामला है।
4, March 2025
खैर। गाडी 2024 से ही है नहीं, तो मदीना बस स्टॉप से, सफेद रंग की एक वैन ली और ड्राइवर को चलने को बोला। ड्राइवर के नाम से लेकर, उस विकल्प में जो कुछ होगा, वो भी वहाँ का राजनितिक कोड होगा। आपके पास कहाँ, कौन-से ट्रांसपोर्ट के साधन उपलभ्ध होंगे, ये काफी हद तक सिस्टम ऑटोमेशन पे होता है। और बाकी मैन्युअल राजनितिक पार्टियों का धकाया हुआ। ड्राइवर ने बोला, मैडम भरने के बाद ही चलेगी। मैंने कहा, बाकी सवारियों के पैसे भी आप मेरे से ले लेना। कुछ सवारी उसमें पहले से ही बैठी थी, वो चल पड़ा। मदीना से वैन? अजीब-सा ऑप्शन है ना? एक ऐसा गाँव, जहाँ से इतनी सारी बसें, ऑटो और जीप वगरैह भी जाती हैं। ऐसा कुछ था ही नहीं या ठसा-ठस भरा आ रहा था। खैर। ये मुद्दा किसी और पोस्ट के लिए। किसी भी जगह हमारे पास जो विकल्प होते हैं, वही क्यों होते हैं? ये वहाँ का राजनितिक कोड बताता है। ये खाने-पीने, पहनने, रहने के स्थानों से लेकर, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन के संसाधन और मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिद, गिरजाघर या लाइब्रेरी, इन सब पर लागू होता है। जैसे, जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी जनता होगी, वहाँ उतने ही ज्यादा भगवानों को मानने या ऐसे स्थानों पर जाने वाले कम और पढ़ने-लिखने या प्र्शन या वाद-विवाद करने वाले या लाइब्रेरी जाने वाले ज्यादा होंगे। ऐसा कहाँ होता है? जिन देशों की जनता ज्यादा पढ़ी लिखी है या तो वहाँ? या स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी या रिसर्च इंस्टीटूट्स में?
चलो, पुराने बस स्टॉप से एक ऑटो लेकर यूनिवर्सिटी पहुँच गई। यहाँ पे मेरी फाइल को डील करने वाला बंदा संदीप गुप्ता मिला। उसने मुझसे कुछ एक डॉक्युमेंट्स माँगे, जो मैं पहले ही मेल कर चुकी थी। मेल Finance Officer की थी और वो किसी मीटिंग में। तो गुप्ता जी ने बोला, मैडम तब तक बाकी फॉर्म भर लेते हैं। मैंने कहा ठीक है। फॉर्म ऑनलाइन ही था और उसमें कुछ खास था नहीं। एक आध updates करनी थी, जैसे मेरा address । जो शायद अपडेट हुआ ही नहीं। क्यों? पता नहीं। मुझे लगा की किया ही नहीं गया। मुझे ऐसा लगा, यहाँ अहम है। क्यूँकि, आप किसी बच्चे को तो अपने पास बिठाय नहीं हुए, की उसे समझ ना आए की ये चल क्या रहा है? अब इसमें वहाँ बैठे इंसान की गलती कितनी है या नहीं है, ये तो कहना मुश्किल है। क्यूँकि, अकसर ऊप्पर के फैसलों को यहाँ बैठे लोगों को सिर्फ या जैसे-तैसे मानना होता है। आखिर उन्हें भी नौकरी करनी है। ऐसा पहले भी कई फाइल्स के साथ हो चुका, इसलिए अनुभव से बता रही हूँ। जैसे नाम बदलना और उसे ठीक करवाने के लिए 8-9 महीने अपनी ही यूनिवर्सिटी के धक्के। जब सामने वाला पीछा ना छोड़े, तो उस कुर्सी पर बैठे इंसान की ही बदली। जबकि वो सब वहाँ भी ऊप्पर के आदेशों से ही हो रहा था।
खैर। फाइनेंस अफसर भी आ गए और मेल किए गए डॉक्यूमेंट भी गुप्ता जी को मिल गए? प्र्शन क्यों? सुना है, 2004 या 2005 में (?) एक Illegal Human Experiment हुआ था और किसी संदीप को कोई किताब तक नहीं मिली, फिर आधार मिलना तो बहुत दूर की बात हो गई? खैर। यहाँ कौन-सा कोई IGIB, Delhi का संदीप शर्मा बैठा था। यहाँ तो, MDU के कर्मचारी कोई संदीप गुप्ता जी थे। और उन्हें वहाँ जिस काम के लिए बिठाया गया था, वो ऑफिस का वो काम कर रहे थे। तो दुनियाँ के किसी भी हिस्से में, किसी भी जगह, कोई भी इंसान या कोई भी जीव या निर्जीव ऐसे ही नहीं है। वो वहाँ, उस वक़्त वहाँ की राजनीती का कोढ़ है।
ऐसे ही जैसे किसी भी मीडिया पर कोई आर्टिकल या बहस या मुद्दा या खबर।
जैसे ये
ये क्या है?
ऐसा कुछ चल रहा था क्या?
जब online NSDL Protean पे कुछ updates की जा रही थी?
और Address Update क्यों नहीं हुआ?
और ये कब से Update नहीं हो रहा?
और ये MDU Finance Department को पता है क्या?
चलो इस सबको थोड़ा और आगे जानने की कोशिश करें?
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