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क्या है ये सब? Reflection? या शायद उससे आगे बहुत कुछ?
भाभी गए तो उनके साथ उनका स्कूल का सपना भी? क्यूँकि, उनके जाने के बाद, कुछ उनके ऐसे खास आए की लगा, ये उनके अपने हैं या दुश्मन? एक तरफ आप उनके आखिरी सपनों को हवा दे रहे थे, शायद याद भर? और ये अपने, जैसे उन्हें भी उनके साथ ही दफनाना चाह रहे थे? इन अपनों का हर कदम ऐसा क्यों लग रहा था मुझे? इन घरों में उनके जाने के बाद जो कहानियाँ चली, वो और भी हैरान करने वाली जैसी? इनमें से कोई भी नहीं चाहता था या है, की अब मैं किसी स्कूल की बात करूँ। ऐसा क्यों?
और बच्चे के स्कूल के प्रोग्राम?
खैर। वो मेरा सपना नहीं था। मुझे इतनी बड़ी बहन जी नहीं बनना था। "अब ये बड़ी बहन जी बनेगी"। और भी पता ही नहीं, क्या-क्या। अपना सपना, लिखाई पढ़ाई और रिसर्च ही था और है। और वो जारी है। मगर उस वक़्त वो थोड़ा-सा, स्कूल बनाने के बारे में जो कुछ सुना, पढ़ा या रिसर्च किया, उसी ने शायद, दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की ऑनलाइन सैर का भी प्रोग्राम बनवाया। इसी दौरान, इधर-उधर से कई तरह की सलहाएँ भी आई। जैसे ये कर सकते हो, वो कर सकते हो। या यही क्यों? कुछ और क्यों नहीं? हर एक का धन्यवाद। खासकर उनका, जहाँ मुझे ऐसा लगा, शायद कहीं खर्चे-पानी या कम से कम इतना-सा तो यहाँ भी कमा सकते हो या सीख सकते हो, वाली सलाहें या सुझाव मिले। खासकर, मेरे हाल जब सच में बहुत ही बेहाल थे। बहुत ज्यादा सही अब भी नहीं हैं। मगर, शायद थोड़े और वक़्त बाद, ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत तो सही हो ही जाएँगे। कुछ भी झेलना या किसी भी परिस्तिथि के अनुसार खुद को ढाल पाना, शायद तब ज्यादा मुश्किल होता है, जब आप ऐसा कुछ सपने में भी नहीं सोच पाते, की ये भी हो सकता है। इस दौरान बुरा-भला जो कुछ देखा, सुना या सहा, वो शायद कुछ-कुछ ऐसा ही था। ये किसी भी तरह के वित्तीय नुकसान से कहीं ज्यादा था या कहो की है। वित्तीय भरपाई फिर से संभव होती है। मगर गए हुए लोगों को वापस लाना? और इतने सारे लोगों को ऐसे जाते देखना? उससे भी बड़ा, खासकर मेरे जैसे लोगों के लिए, जो चुप नहीं रह सकते। जैसे, ये तो संभव ही नहीं।
बुरे वक़्त में गए लोग और गया वक़्त तो वापस नहीं आता। मगर शायद, कोई सबक या सीख जरुर दे जाता है।
उस स्कूल का एक नाम भी रखा था या कहो सोचा था, जो रितु से ही शुरु हो रहा था। खैर! जाने किस, किस को उससे दिक्कत महसूस हुई और क्यों? तो अपने ही नाम का पहला और आखिरी अकसर लगा कर, एक अलग ही तरह का Reflection, जिसपे Action भी संभव है, शुरु हो गया। दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर ने उसे अलग-अलग तरह के पँख दिए। वो किसी भी तितली के भी हो सकते हैं और बड़ी से बड़ी इंसान द्वारा बनाई मशीन के भी। हाँ ! ये तितली या मशीन, शायद उनकी घड़ी किसी भी तितली या मशीन से मेल नहीं खाती।
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