बच्चे और हथियार? लोगों को कंट्रोल करने का?
बच्चों का किसी भी तरह का सन्दर्भ देकर, किसी भी माँ-बाप या परिवार या हितैषी को भावनात्मक तरीके से बड़ी आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है? और कितना भी संकिर्ण या सही में हो सकने वाला तथ्य, चोरी-छुपे या सीधे-सीधे किसी के भी दिमाग में घुसेड़ा जा सकता है?
जैसे आपका कोई खंडहर खाली पड़ा है सालों से। और किसी आपके अपने को ही घर की सख्त जरुरत आ पड़ी। आपके दिमाग में परिस्थितियाँ और हालात देखकर आए, अभी के लिए ये जगह सही है। वक़्त के साथ कोई ढंग का समाधान निकल आएगा। आपके घर में कितने ही तरीकों से घुसी हुई, इस या उस पार्टी को ये खल गया। क्यूँकि, उन्होंने तो उसका ऐसा हाल करने की सोची थी की सड़क पर भी जगह ना मिले। कहाँ घर घुसाने की बातें चल पड़ी। उन्हें तो उसका राम नाम सत्य है, आसपास दिख रहा था। फिर ये क्या हो रहा है? पहले ज़माने में ऐसे-ऐसे सन्देश गुप्तचरों के माध्यम से जाते थे। आज सर्विलांस टेक्नोलॉजी ने सब आसान कर दिया है। अब सुन, देख और समझ तो वो दूर बैठे लेते हैं। और गुप्तचर? वो आज भी हैं। मगर उसका काम वो आपके अपनों से लेते हैं। ऐसे, जैसे उन्हें अपनी सेना का हिस्सा बना लिया हो। ये ना आपको पता और ना उस गुप्तचर को, जो उनका सन्देश आपके दिमाग में घुसेड़ेगा। एक होता है, पहुँचाना और एक होता है, घुसेड़ना। मतलब जबरदस्ती और बिना आपके या उस इंसान के पता चले, जिसे उन्होंने गुप्त रुप से अपना गुप्तचर बना लिया है। इसे टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान का धमाल कहते हैं। दुरुपयोग, जिसका सदुपयोग भी किया जा सकता है।
आप कोई विडियो देख रहे हैं यूट्यूब पे और वहाँ ज्ञान मिलता है, जिसे कोई ऋषि-महृषि दे रहा है। "अपना पुस्तैनी घर ना बेंचें, ना ही किसी को दें, इससे आपके बच्चों के विवाह में दिक्कत हो सकती है।" चाहे दशकों से वो बिना देखभाल खंडहर हो चुका हो। सोचो, ज्ञानियों को इस ज्ञान की याद अभी आई? पहले क्यों नहीं?
कुछ दिन बाद आप किसी के यहाँ गए हुए हैं और उनके घर कोई शादी-ब्याह की बात चल रही है, किसी के बच्चे की। वो बातों-बातों में कहते हैं, "छोरा देखण आए थे, सबकुछ पसंद आ गया। हाँ भी हो गई। फिर किसी ने लड़की वालों को बोला, अरे कहाँ के खाते-पीते घर, वो तो अपना पुस्तैनी मकान तक बेचें हांड्य-स। और वहाँ के गाँव के लोगों के खेतों की ज़मीन तो पता नहीं कितने सालों पहले सरकार ले चुकी। "
ईधर-उधर और भी ऐसे ही कई गुप्त-गुप्त प्रोग्राम चलते हैं। इसे बोलते हैं, साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। Enforcement ways, गुप्त तरीकों से दिमाग के सॉफ्टवेयर को बदलना (alter, manipulate) । कितने ही ऐसे तरीके इंसान को दूर बैठे कंट्रोल करने के काम आते हैं। आप किसी का भला चाहते हैं। आपने अपनी तरफ से हर कोशिश और संसाधन उस तरफ लगा दिए। मगर परिणाम? आज की टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान में माहिर लोग ले निकले? चालें और घातें भी ऐसी, की आपस में ही मनमुटाव या फूट तक डालने का काम भी कर जाएँ? और आप सोचते रहें, की आपने तो किसी का भला ही चाहा था? फिर ये क्या हुआ या हो रहा है?
कुछ वक़्त बाद, आप बातों-बातों में ये सब बता भी जाते हैं शायद? क्यूँकि, आपके दिमाग में काला नहीं है। मगर ऐसा करवाने वालों के दिमाग में तो था और है।
इसी दौरान वो सामने वाले को धमकी भी दे जाते हैं, वो भी गुप्त, ऑनलाइन। तेरा ऐसा हाल करेंगे की तेरे ये, तुझ पे मरने वाले ही तेरे ना बचेंगे। और यही तुझे शमशान घाट विदा करेंगे। अब शमशान घाट तो विदा अपने ही करते हैं, तुम क्या किसी और के कंधो पे जाओगे, जाहिलो?
और कितनी ही तो कोशिशें हुई। परिणाम? कितनों को खा गए ये आदमखोर? और कितनों को और खाएँगे? उनमें से कुछ एक को कैसे खा गए, उसके पिछे यही गुप्त ज्ञान भंडारण है। सबसे बड़ी बात, जिन्हें खा गए, वो कौन थे? आम आदमी, इधर भी और उधर भी। क्यूँकि, ऐसे कुर्सियों की मारा-मारी वाले ज्ञानी-लोग जिनके दिखते हैं, वो उनके भी नहीं होते। इंसान तक इनके इस खेल में एक गोटी मात्र है।
ये तो एक छोटा-सा उदाहरण है, गुप्त तरीकों से इंसान के दिमाग में हेरफेर करने का। ऐसे कितने ही छोटे-छोटे से जाले, इन बड़े लोगों ने यहाँ-वहाँ फैलाए हुए हैं। रोज कहीं न कहीं, वही गुप्त तरीके से Mind Alteration या Control हो रहा है, ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर। इसे और ज्यादा अच्छे से समझाया, यहाँ के वाद-विवादों, हादसों, बेवजह के रोज-रोज के ड्रामों ने। कुछ आसपास की ना हुई सी बिमारियों ने, मौतों ने, आत्महत्याओं या जमीनी झगड़ों ने। कभी-कभी यूँ लगता है, की अगर मैंने गाँव की तरफ रुख ना किया होता, तो ऐसे-ऐसे राज कहाँ पता चलते? और इसीलिए शायद ये सब दिखाने, बताने या समझाने वालों का भी धन्यवाद करना चाहिए।
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