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Sunday, October 27, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 75

वो आपको या आपके किसी भी बच्चे को क्या सिखा रहे हैं? सामने वाले का सब तुम्हारा है? मगर, तुम पर उसका या उनका कोई अधिकार नहीं है? वो मात्र तुम्हारे लिए काम करने वाले अवतार हैं?

अब ऐसा कौन सिखाता है? या कौन करता है? जिन्हें फायदा होगा? कौन हैं ये लोग? और इनका आपके घर के किसी इंसान या बच्चे से क्या लेना-देना हो सकता है? आप या आपके बच्चे भी उनकी प्राइवेट लिमिटेड या पब्लिक लिमिटेड के उत्पाद मात्र हैं? जिनपे वो अपना कंट्रोल, उसके जन्म के साथ ही शुरू कर देते हैं? या शायद उससे भी पहले? क्यूँकि आपके यहाँ कौन पैदा होगा और कौन नहीं, ये निर्णय भी यही लोग लेते हैं? क्या सारे समाज के यही हाल हैं? क्या आप उस दुनियाँ में हैं, जहाँ पर कुछ इंसान, बाकी सब इंसानो को, उनके बच्चों को और उनकी ज़िंदगियों को own करते हैं? या मालिक बने बैठे हैं? Owner जैसे कोई? कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, किसी भी कंपनी के उत्पाद होते हैं? घर, मोबाइल, फ़ोन, मीटर, बस, कार, हवाईजहाज,या कुछ भी और बनाने वाली, कोई भी कंपनी जैसे? या किसी भी और कंपनियों के उत्पाद मात्र? तो क्या मानव रोबोट्स बनाने वाली कम्पनियाँ भी हैं दुनियाँ में? राजनीती, सिस्टम और MNCs यही सब तो कर रहे हैं?              

Mistaken identity cases? या Crisis? या Enforcement Politics? हर चीज़ को तोड़-मरोड़, जोड़ कर अपना निहित स्वार्थ साधने वाली राजनीती? सबके घरों, ज़िंदगियों और रिश्तों की ठेकेदारी इन्होने ही ली हुई है? या खुद वो घर, आसपास और लोगबाग भी ज़िम्मेदार हैं, कुछ हद तक?

इन्हें रोजरोज के ड्रामों से आसानी से समझा जा सकता है शायद?  

जैसे फाइल-फाइल, ये प्रोजेक्ट या वो प्रोजेक्ट, ये सिलेबस या वो सिलेबस, ये पेपर या वो पेपर, इस टाइप के पेपर या उस टाइप के पेपर, इस टाइप की डिग्री या उस टाइप की डिग्री, इस टाइप की नौकरी या उस टाइप की नौकरी, इस टाइप का कोई काम या उस टाइप का कोई काम, खेलने वाले लोग या जगहें या घर या ऑफिस? 

एक आजकल कुछ ज्यादा ही ट्रेंड में है शायद, डिजिटल मीडिया और उसका जहाँ? ये भी कितनी ही प्रकार का है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर रिसर्च या एंटरटेनमेंट तक। लोगों को जानकारी उपलब्ध कराने से, भ्रामक या अपने ही तरह का एजेंडा फैलाने तक।  

फिर खेती, डेरी या और ऐसे ही काम करने वाले ज्यादातर गाँव के लोग, खासकर भारत जैसे देशों में?   

दूसरी तरफ, लाठी या डंडा? चाकू या मार-पिटाई? गंडासी, दराती और पता नहीं और भी कैसे-कैसे औज़ार या हथियार? या ड्रामे करवाने वाली राजनीतिक पार्टीयों के हथियार? सबसे ज्यादा ठाली या शायद सबसे ज्यादा आसानी से भड़कने या भड़काया जाने वाला समाज का हिस्सा? ज्यादातर, सबसे ज्यादा शोषित भी?  

अब जितना किसी भी समाज का स्तर होगा, उसी के हिसाब से तो कारनामे होंगे? लोग प्रयोग या दुरुपयोग भी उसी हिसाब से होंगे? तो ऐसे समाज की राजनीतिक पार्टियों का स्तर भी यही होगा? आप अगर ऐसी किसी राजनीती का शिकार हो जाएँ या हो रहे हों तो? आम इंसान को इन सबमें देखना ये है की खुद भी सुरक्षित रह जाएँ और सामने वाला भी। खुद भी आगे बढ़ें, समृद्ध हों और आसपास भी। कोई भी समर्द्ध और आगे बढ़ता हुआ समाज ही ऐसी राजनीती से पार पा सकता है। 

ऐसी जगह की राजनीती ज्यादातर इसके विपरीत खेलती है? तो जहाँ कहीं आपको ऐसा कुछ समझ आए की आपको भड़काया जा रहा है, वो भी किसी दूर के इंसान के खिलाफ नहीं, बल्की, आपके अपने या आसपास के इंसान के खिलाफ ही। तो सावधान हो जाएँ। अपना कोई पक्ष रखने की बजाय, सामने वाले को ध्यान से सुने। मगर, जो कुछ सुनाया या दिखाया या समझाया गया है या करने या कहने को बोला गया है। वो ना करें। पहले अपने दिमाग को उस भड़कावे से साफ़ कर शाँत करें। 

उसके बाद जिस किसी के खिलाफ कहा, सुनाया, दिखाया या समझाया गया है, उससे जरुर बात करें। शायद वहाँ आपको कोई और ही तथ्य सामने मिलें। हो सकता है जो कुछ बताया, समझाया या दिखाया गया है, वो सिर्फ चाल (trick) मात्र हो। जैसे जादू में होता है। उसके पीछे का अगर आपको दिख या समझ आ गया तो राजनीती का फूट डालो और राज करो खेल खत्म। 

जैसे बहुत-सी, आम-सी बातें आसपास ही मिल जाएँगी आपको। जैसे 

ये इंसान यहाँ से खिसकेगा तो वो इंसान यहाँ आएगा?

यहाँ से ये रस्ते बंद होंगे तो वहाँ रस्ते खुलेंगे?

इनका ये घर छुटेगा तो उन्हें वो घर मिलेगा? 

ये यहाँ से निकलेंगे तो वो यहाँ आएँगे? 

या अभी पीछे के अजीबोगरीब राजनीतिक बोल? इनकी नौकरी जाएगी तो इन्हें मिलेगी? अरे आपके पास खुद का कुछ नया नहीं है क्या देने या बनाने को? बसे हुओं को उखाड़ के, वंचितों को उनका हिस्सा मिलेगा? जिनके पास कई-कई घर, नौकरी या बेहिसाब जमीन-जायदाद हैं, उनसे क्यों नहीं ले लेते? उनके सहारे तो लगता है, आपका साम्राज्य चलता है? या ये कुर्सियाँ मिलती हैं?       

क्या किसी इंसान की जगह कोई और ले सकता है? इस घर से गया हुआ इंसान, उस घर में आ सकता है? गया हुआ मतलब, दुनियाँ से ही गया हुआ? पुनर्जन्म जैसा कुछ होता है क्या? वो भी बच्चे के रुप में नहीं, बल्की, साक्षात बड़े के रुप में? तलाक जैसे रिश्तों में तो शायद होता है। मगर, दुनियाँ से ही गए हुए लोगों के केसों में? शायद Cult Politics यही है? Cult Politics चलती ही ऐसी गुप्त मारधाड़, धोखाधड़ी और यहाँ-वहाँ फूट या भडकावोँ के सहारे है।   

जैसे, वो युवा यहाँ से गया और बुजुर्ग वहाँ पैदा हो गया?

जादू कोई? 

ऐसे जैसे, यहाँ से नौकरी छोड़ कर कहीं और चले जाएँ और फिर वापस आ जाएँ?

इंसान में और भौतिक साधनों में कोई तो फर्क होगा? या घर, नौकरी, पैसा, और इंसान एक ही बात हैं? यहाँ से खत्म और वहाँ पे पैदा हो गए? या इतने सालों कहीं स्टोर या तालों में बंद और फिर इतने सालों या दशकों बाद वो स्टोर और ताले खुले और वापस आ गए? 

फिक्स्ड डिपोसिट या सेविंग अकॉउंट जैसे? सबकुछ बैंकिंग, जमीनों-जायदाद से सम्बंधित जैसे? ये स्टोरों और घरों या ऑफिसों के डिज़ाइन की कहानियाँ कुछ ज्यादा ही हैरान-सी करने वाली नहीं हैं? इनपे और पोस्ट लिखने की जरुरत है शायद?                       

भला किसी को, किसी आम से इंसान की नौकरी से क्या लेना-देना? और उसका यहाँ या वहाँ नौकरी करने से, किसपे और कैसा फर्क पड़ जाएगा? या शायद ना करने से? या इस घर या उस घर में रहने से? या इस गली, मौहल्ले, गाँव, शहर या देश में रहने से? इतना कुछ बदलने पे तो पड़ जाएगा शायद? 

You know perspective change with the surrounding?          

थोड़ा और आगे जाने? शायद आपके साथ-साथ, मुझे भी थोड़ा-बहुत समझ आ जाए? क्यूँकि, बहुत-सी गुथियाँ लिखने भर से भी हल हो जाती हैं शायद?  

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