तुम मर चुके हो। अपनी सम्पति किस के नाम करना चाहते हो?
और सामने वाला सोचे, कौन कुतरु हैं ये? अपने जैसे-से फालतू sms या emails भेझने वाले?
1-2 महीने बाद फिर से, ऐसा-सा ही sms या email मिलेगा।
तुम मर चुके हो। चाहो तो अभी भी अपनी सम्पति (saving) किसी के नाम कर सकते हो। तुम्हारे पास सिर्फ ये और ये ऑप्शन हैं।
और आप फिर से सोचें, ये कौन गैंगस्टर हैं? और इन्हें तुम्हारी सेविंग से क्या लेना-देना? जो ऐसे-ऐसे sms या email कर रहे हैं? ये तो बताओ, की कौन से गैंग के सदस्य हो? और ये छुपम-छुपाई कितने दशकों या सालों से खेल रहे हो? जब मर ही चुकी, तो तुम भी मरे हुए होगे? सुना है, मरे हुए एक-दूसरे से बात करते हैं? सुना है, हकीकत किसे पता है? मरने के बाद भी कुछ बचता है क्या? या तुम जैसे लोगों के पास इतनी टेक्नोलॉजी या चालबाजियाँ आ गई की ज़िंदा को मुर्दा कहकर संबोधित करो और खुद को ज़िंदा समझो? छुपम-छुपाई वाले तो आधे से वैसे ही मुर्दे हैं। क्यूँकि, ये सब खेलने का मतलब ही ये है, की गढ़े-मुर्दे ना बोलने लग जाएँ? और अपने साथ हुई हकीकतें बकने लग जाएँ?
फिर से कुछ महीने बाद ऐसे से ही sms या emails मिलेंगे। थोड़े और जोड़तोड़ के शब्दों के साथ।
अब भी वक़्त है, सोच लो। इसके बाद, कोई भी फलाना-धमकाना तारीख, सब अपने आप किसी और के नाम हो जाएगा। अगर अब भी खुद को ज़िंदा समझ रहे हो, तो भूल कर रहे हो।
जब से मैंने यूनिवर्सिटी से अपनी सेविंग माँगना शुरू किया है, तब से ही ये ड्रामा चालू है। माँगना? ये तो अधिकार नहीं है किसी भी एम्प्लॉई का? कब का अपने आप हो जाना चाहिए था।
इस ड्रामे के कुछ एक और पहलू भी हैं। कहीं न कहीं के इलेक्शंस के दौरान, ऐसे-ऐसे मैसेज का बढ़ जाना? और साथ में इधर-उधर से कुछ और सलाह, नसीहतें या जानकारी मिलना।
7 जीरो है।
6 जीरो है। या फलाना-धमकाना नंबर जीरो है।
1 पर 9 है या 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 या 9 पर 9 है।
अब ये सब क्या है?
मीटर चैक करो। यहाँ का, वहाँ का, वहाँ का etc. समझ आया किस्सा? यूनिवर्सिटी में क्या चल रहा था? वही सब यहाँ भी? मतलब, घर कोई भी हो, जगह कोई भी हो। उससे ज्यादा फर्क टेक्नोलॉजी और कोढ़ से पड़ता है। उसे आप कितना समझ और उससे कितना निपट पाते हो। और उससे भी ज्यादा, वो आपके दिमाग में क्या कुछ घुसेड़ पाने में समर्थ हो पाते हैं। तुमने मान लिया मर गए, तो मर गए समझो। तुम्हें मालूम है, ज़िंदा हो, तो ज़िंदा हो। रस्ते और भी हैं।
KYA? या KYC? और भी ऐसे-से ही कोढ़ हैं।
आप क्या करते हैं, ऐसे-ऐसे मैसेज पाकर?
कुछ नहीं? या शायद यहाँ-वहाँ कुछ और आर्टिकल्स पढ़ते हैं? या शायद यूनिवर्सिटी को फिर से लिखते हैं? क्या धंधा कर रहे हो? मुझे मेरी सेविंग क्यों नहीं दे रहे?
कहीं से तो और भी महान मैसेज मिलेंगे। सेविंग कहीं नहीं गई। वो बढ़ ही रही है। तुम आराम से तमाशे देखो और आगे के रास्ते तलाशो।
मतलब? जब किसी इंसान को जरुरत हो, तभी वो सब ना मिले तो उसके बढ़ने या घटने से क्या फर्क पड़ेगा?
इस दौरान एक-आध बार यूनिवर्सिटी गई, तो कुछ एक और ड्रामे हुए। पीछे कहीं पोस्ट होंगी उनपर।
ये मैसेज भी शायद कहीं न कहीं, इन्हीं कुर्सियों के इधर या उधर की पार्टियों से आ रहे हैं? राजनीतिक पार्टियाँ और आम आदमी से खेल?
यहाँ-वहाँ के आर्टिकल्स क्या कह रहे हैं? जाने उन्हें?
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