About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, April 13, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 65

Tax?

पानी पे टैक्स?

खाने पे टैक्स?

रहने की जगह पर टैक्स?

कपड़ो (या चिथड़ों) पर टैक्स?

संगत पर टैक्स?     

और कहाँ-कहाँ टैक्स देते हैं आप? या ये और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे टैक्स देते हैं? ऐसा कितना कमाते हैं? उस कमाई से बचाते कितना हैं? कितना कहाँ-कहाँ और किस-किस रुप में ख़र्च होता है? या शायद ऐसे किसी सिस्टम का हिस्सा हैं जो अपने आप भी कोई बचत करवाता है? कितने ही बेफ़िजूली क्यों ना हों, वो बचत तो कहीं नहीं जानी?    

सबसे बड़ी बात जिनपे आप टैक्स देते हैं, उसकी गुणवत्ता क्या है? कहीं खाने-पीने के नाम पर जहर पे तो टैक्स नहीं दे रहे? कपड़ों की बजाय चीथड़ों पे? रहने की ठीक-ठाक जगह की बजाय, परेशानी वाली जगह पे? ये सब या ऐसा कुछ शायद तब तक समझ नहीं आता, जब तक आप अच्छा-खासा झटका नहीं खा लेते? उसके बाद अपना ही नहीं, बल्की, आसपास का भी बहुत-कुछ समझ आने लगता है। और अगर इतने सालों बाद मैं वापस गाँव नहीं आती, तो शायद ये सब समझ भी नहीं आता, की आप कहाँ-कहाँ कितनी तरह से लूटपीट रहे हैं? ज्यादा डिटेल में जाने की बजाय, जिसका निचोड़ इतना-सा है।  

जहरीले या ख़राब खाने-पीने पर टैक्स हमें नहीं, बल्की उन्हें देना चाहिए, जो ये सब परोस रहे हैं। और उसमें कहीं की भी राजनीती का बहुत बड़ा योगदान है। नेताओं को या पुलिस वालों को या ऐसी ही किन्हीं व्यवस्था को कंट्रोल में रखने वाली एजेंसी के बन्दों को शायद उसके लाभ का कुछ हिस्सा मिलता है? यही मिली-भगत आम आदमी को हर तरह से और हर स्तर पर खा जाती है।     

इससे मिलता जुलता भी और इससे थोड़ा सा परे भी एक और दायरा है, गाँव का। या शायद ऐसी सी जगहों का? ये आपको बताता है, खासकर, जब आप उस सबको थोड़ा ज्यादा समझना शुरु कर देते हैं?        

 

अमीरी चमकती है, और गरीबी?

अमीरी उम्र बढाती है और स्वस्थ रखती है और गरीबी?

अमीरी दिमागों को भी अपने लिए काम पर रखती है और गरीबी?

अमीरी और गरीबी दोनों ही बढ़ाई-चढ़ाई भी जा सकती हैं और घटाई भी। मगर कैसे?

एक 60, 70 साल की बुढ़िया ऐसे दिखती है और चलती है जैसे 80, 90 साल की हो। 

और एक 80, 90 साल की बुजुर्ग ऐसे, जैसे, अभी 60, 70 की हो। 

बुढ़िया और बुजुर्ग? कितना फर्क है ना अमीरी और गरीबी में? या शायद थोड़ा सभ्य और असभ्य होने में? ये जुबान से ही शुरु होती है शायद? या फिर दिमाग से? या आसपास के माहौल से? कुछ लोग जुबाँ का ही खाते हैं? और कुछ? उसी से गँवा देते हैं? यहाँ चापलूसी की बात नहीं हो रही, क्यूँकि, वो तो अलग ही तरह की जुबान होती है। 

कहाँ गुल हूँ मैं ?

कहाँ गुल हूँ मैं ?

When health becomes most urgent issue, all other issues take a back seat? और ये स्वास्थ्य वो स्वास्थ्य नहीं है, जो राजनीती में छाया रहता है। वहाँ तो शायद कोई अंग-प्रतयन्ग निकालने वाली, संजय एमर्जेन्सी जैसी-सी बात हो रही होती है? उसपे भी आएँगे आगे पोस्ट में। कभी-कभी ये शायद वो स्वास्थ्य बन जाता है, जब आपको लगने लगता है would you survive this or it's really over? जब आप अपने सिर को बजते हुए सुनते हो, कड़क! कड़क! जैसे कुछ टूट रहा हो? मगर फिर भी हॉस्पिटल के नाम पर डरना शुरू कर दिया हो? ऑपरेशन थिएटर की बजाय घर मरना बेहतर है, जैसे दिमाग में बैठ गया हो? मार्च कुछ-कुछ ऐसा ही रहा। 16 के बाद अचानक से पोस्ट बंद हो गई? या शायद हो गया था कुछ? कुछ? इधर उधर लिखा जा रहा था उस पर भी। और किसी खास तारीख के आसपास वो ठीक भी होने लगा? Sometimes, journaling helps in tracking down something strange also? Or maybe, sometimes we overthink?           

क्या ये सिर की कड़क-कड़क सच में चोटों की देन है? या उससे आगे कहीं कुछ और भी? या शायद दोनों ही? System or say ecosystem is the culprit? 

कोरोना के समय जो समझ आया, वो कह रहा था की पानी-खाना और हवा, जीने के लिए, खासकर स्वस्थ जीने के लिए इनपर कंट्रोल बहुत जरुरी है। ये तय करना, की जो कुछ आप खा या पी रहे हैं या जिस हवा में आप साँस ले रहे हैं, उसका जीवनदायी होना बहुत जरुरी है। अगर वही प्रदूषित है, तो क्या तो दवाईयाँ करेंगी और क्या डॉक्टर? और जहाँ तक हो सके, वहाँ तक हॉस्पिटल या डॉक्टर से परहेज़ करना। ये भी अपने आप में स्वस्थ होने का संकेत है। 

कभी-कभी ऐसा होता है ना, की अचानक से आप कोई चीज़ खाना या पीना बंद कर देते हैं? या शायद वो अचानक से आपको अच्छी लगनी बंद हो जाती है? शरीर शायद बहुत-सी चीज़ों को खुद ही रिजेक्ट करने लगता है? ये उसका अपना डिफेंसिव सिस्टम है, जो उसे किसी आभाषी खतरे से बचाता है शायद? वो जो आप कब से खाते-पीते आ रहे हैं और अचानक से उसका टेस्ट थोड़ा अजीब लगने लगे? और आप पीते-पीते ही या खाते-खाते ही छोड़ दें? बहुत बार जरुरी भी नहीं की उसमें कुछ मिला ही हो, सिर्फ मौसम बदलने से भी बहुत बार ऐसा होने लगता है। जैसे सर्दी के शुरु होते ही गर्म खाना-पीना और गर्मी के शुरु होते ही ठंडा खाना-पीना पसंद आने लगता है। टेस्ट और खाने-पीने से परहेज़, और उसका बिमारियों से लेन-देन कहीं और।             

 एक Rude and Crude Joke? 

मेरा तुममें interest बढ़ता जा रहा है। कहीं तुमने मुझसे लॉन तो नहीं लिया हुआ? आगे किसी पोस्ट में आते हैं इस पर भी।   

Friday, March 28, 2025

Media, Culture, Politics and Impact on Life

 कुछ तो गड़बड़ है, मगर क्या? से शुरु हुआ ये सफर जो बन गया suffer? भुगत?

इनके बालों के साथ दिक़्क़त है, मगर क्या?

जब पैदा हुई तो इस गुड़िया के बाल सीधे और सिल्की और उस गुड़िया के बाल घुँघराले थे? फिर 2-4 साल में ही ये क्या हो रहा है?

कुछ तो गड़बड़ है, मगर क्या? इस 16 का, उस 16 से और उस 16 का, उस 16 से क्या लेना-देना है? कहीं मौत है और कहीं शादी?

कुछ तो गड़बड़ है, मगर क्या? ये एलर्जी यहाँ और वो एलर्जी वहाँ, कहीं कुछ कह रहीं हैं जैसे? इनका किसी पिग्मेंट से कोई लेना-देना है? मगर कैसे? क्लिंटन और ओबामा जैसे? या कमला और ट्रम्प जैसे?

कुछ तो गड़बड़ है, मगर क्या? वन्दे मातरम और माता का कुछ तो लेना-देना है? जैसे चिंटियों और मकड़ियों का? मगर कैसे? झाड़ी पे माता धोकना जैसे?

कुछ तो गड़बड़ है, मगर क्या? इस सवाल ने न जाने क्या-क्या तो दिखा दिया। कहीं बिमारियों के जाले, तो कहीं मौतों के अँधेरे? कहीं कहानियाँ शादियों की, तो कहीं रिश्तों की दरारें और फिर कहीं उन रिश्तों के जैसे अजीबोगरीब से फैसले? कहीं पंचायती कहानियों में, तो कहीं कोर्टों के फैसलों में?      

ऐसे ही जैसे घर खीर, तो बाहर खीर? घर रोटी, तो बाहर रोटी? घर सुरक्षा, तो बाहर सुरक्षा? शायद हाँ? शायद ना? क्यूँकि, जहाँ सुरक्षा होती है, वहाँ सबके लिए होती है। और जहाँ नहीं होती, वहाँ कम से कम, आम आदमी के लिए तो नहीं होती? ऐसा ही ज़िंदगी के हर पहलू के साथ है। और इन सबका सीधा-सा सम्बन्ध, जहाँ कहीं आप रह रहे हैं, वहाँ के Media Cultue से है।  किन्हीं भी परिस्तिथियों में, ज़िंदगी या किसी भी समाज को सही दिशा देने के लिए, इस टॉक्सिक या बिमार मीडिया कल्चर को बदलना बहुत जरुरी है। या तो उसे बदलो या अगर आप उसे बदलने में सक्षम नहीं हैं, तो कहीं ऐसी जगह जाकर रहो, जहाँ वो आपके लिए सही हो। 

क्या है ये Media Culture? बायोलॉजी का Media Culture ही ज़िंदगी का या किसी भी सिस्टम या इकोसिस्टम का मीडिया कल्चर है। जैसे पक्षियों को उड़ते देख जहाज बने होंगे, वैसे ही Cell Culture और Media Culture के नियम, कायदे किसी भी समाज के सिस्टम या इकोसिस्टम के लिए अहम हैं।             

ABCDs of Views and Counterviews? 65

 Make America great again?

Or fix it?

Or maybe, "Make America Go Away" 

To Delhi?
Or Mumbai?


फेंकम-फेंक? 

ABCDs of Views and Counterviews? 64

क्या चल रहा है?

थोड़ा सिर दर्द? थोड़ा? खास तारीखों, महीनों और सालों को कुछ खास होता है? या कहो की किया जाता है? और आपको लगता है की कहानी खत्म? नहीं? या फिर से कहीं, किसी को उठाएँगे? या शायद बच गए? बिमारियों और मौतों की कहानियाँ, कहीं और। क्यूँकि, वो सच में किसी पागलपन के दौरे की तरह हैं। खासकर, जब आप उस वक़्त को झेल रहे होते हैं और यहाँ-वहाँ जाने क्या कुछ पढ़, सुन, देख या समझ रहे होते हैं। काफी वक़्त बाद, शायद सालों बाद? राजनीती और मीडिया को कई दिनों तक, थोड़ा कम देखा और सुना? खैर।

Eurovision Music? क्या चल रहा है वहाँ? पता नहीं। मैं तो इस AI के जालों और चालों को समझने की कोशिश में हूँ, शायद? Moon walk? Or Shuffle Dance?                 

या Shuffle-Reshuffle?   

ऐसे?


ऐसे ?


ऐसे?


ऐसे?


नहीं?

खामखाँ। कुछ भी। है ना?   

Sunday, March 16, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 62

व्यवहारिक दाता मंदिर: आपकी समस्याओं का समाधान केंद्र और संस्थान 

खाना-पानी समाधान विभाग 

स्वास्थ्य लाभ विभाग

आवास विभाग 

रोजगार विभाग 

साफ़-सफाई विभाग 

बस इतनी-सी समस्याएँ हैं, दुनियाँ में? और हमारे पास इनके समाधान नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है? सर्च करो, किसी भी तरह के समाधान की प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए, और ढेरों समाधान मिलेंगे। मतलब, विकल्प तो हैं। अब इतने सारे विक्लप हैं, तो समाधान भी होंगे? इसका मतलब, हमने और हमारे नेताओं ने सारा ध्यान समस्या पर केंद्रित किया हुआ है? समाधान पर नहीं? समाधान पर ध्यान केंद्रित करो और समाधान मिलता जाएगा। समस्या पर ध्यान दो और समस्या बढ़ती जाएगी? बस, इतनी-सी बात?  

व्यवहारिक दाता मंदिर, क्या नाम है ना? आपका डाटा ही आपका दाता है। इसी दाता पर दुनियाँ भर में सबसे ज्यादा खर्च हो रहा है। क्यों? क्यूँकि, यही दाता राजनीतिक गुप्ताओं के काम आता है, आपको कंट्रोल करने के लिए। मानव रोबॉट बनाने के लिए। 

और ये कोई आज के युग की बात नहीं है। आज और कल में, बस इतना-सा फर्क आ गया है, की आज ज्यादातर लोगों को पता चल रहा है, की दुनियाँ कैसे चल रही है। इंटरनेट और कनेक्टिविटी का उसमें अहम स्थान है। आस्था कभी से अचूक माध्यम रहा है, इंसान को अपने वश में करने का। जितना किसी को भी आपके दाता के बारे में पता है, उतना ही आप पर कंट्रोल बढ़ता जाता है। तो क्या हिन्दू, इस तरह के कंट्रोल में ज्यादा माहिर हैं? या ज्यादा तिकड़मबाज? ज्यादा जुगाड़ू? क्यूँकि, हिन्दुओं के उतने ही भगवान होते हैं, जितनी जनसंख्याँ? मतलब, कंट्रोल व्यक्तिगत स्तर पर करने की कोशिशें? ना की जनसंख्याँ के स्तर पर? मतलब, जितनी तरह के इंसान, उतनी ही तरह के भगवान? मतलब, उतना ही गोटियों की तरह ईधर-उधर करना आसान? जैसे shuffle, reshuffle.   

या शायद भगवान तो एक ही है, ये प्रकृति? बाकी भगवानों को इंसानों ने घड़ दिया है? जरुरत और सुविधानुसार?  बताओ समस्या क्या है? और उसी अनुरुप, भगवान आपके सामने प्रस्तुत होंगे? भगवान आपके सामने प्रस्तुत होंगे? सच में? होते तो हैं? कैसे?

जैसे, Prayers go up, and, blessing come down? आपका दिमाग ही वो ब्रम्हांड है, जिसमें जो कुछ आता है, या प्रोग्रामिंग होती है या की जाती है, उसी अनुसार काम होते जाते हैं? अगर ऐसा हो, तो आसपास और संगत के असर को क्यों रोते रहते हैं लोग? क्यूँकि, दिमाग में बहुत कुछ आसपास से ही जाता है। जैसे जैसा हवा, पानी, खाना, और वैसा ही स्वास्थ्य। तभी तो कहते हैं शायद, की खाना औषधि की तरह लो और स्वस्थ वातावरण में रहो, तो डॉक्टर के पास जाने की या दवाई लेने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।                                 

व्यवहारिक दाता मंदिर, दुनियाँ का सबसे बड़ा मंदिर? जिसमें व्यक्तिगत स्तर पर समाधान संभव है?

ABCDs of Views and Counterviews? 61

कितना बड़ा काम है नौकरी ईजाद करना?

कौन कर सकता है? सिर्फ सरकार? या हर कोई? शायद हर कोई? हाँ। उसका स्तर अलग-अलग हो सकता है। जैसे, कोई भी अस्थाई-सी नौकरी तो किसी न किसी को दे ही सकता है। अगर हम गाँव से ही शुरु करें, तो घर या खेत के काम के लिए, सहायक या मजदूर तो चाहिए ही होते हैं। किसी को हमेशा, तो किसी को कभी-कभी। वो किसी न किसी को नौकरी देना ही है। मगर अस्थाई।  ऐसी नौकरी देनी के लिए, आपको कोई अलग से संसाधन नहीं लगाने पड़ते। या कोई खास अलग तरह की जानकारी नहीं चाहिए होती। आपको क्या और कैसे करवाना है, आपको पता होता है। मगर, ऐसे अस्थाई काम करने वाले की नौकरी सुरक्षित नहीं होती। और उसी हिसाब से पैसे और बाकी सुविधाएँ भी। 

सुरक्षित और बाकी सुविधाओं वाली नौकरियों पे बाद में आएँगे। आज कुछ ऐसी-सी ही अस्थाई सी नौकरी ईजाद करें? 

साफ़-सफाई 

अगर मैं अपने ही गाँव से शुरु करूँ, तो मेरे यहाँ साफ़-सफाई की बहुत समस्या है। जो शायद ज्यादातर गाँवों की होती है, खासकर हमारे जैसे देशों में। कोई हर रोज साफ़-सफाई के लिए आना तो दूर, ईधर-उधर पड़ा कूड़ा ही उठाने वाला कोई नहीं होता। खासकर, जो घर खाली पड़े होते हैं, उनके सामने। अब इतने सारे आसपास मकान खाली पड़े हों, तो मुश्किल और ज्यादा होती है। और यहाँ-वहाँ खाली पड़े प्लॉट, अलग से समस्या बनते हैं। क्या समाधान है? शायद बहुत बड़ी बात नहीं है, सफाई के लिए किसी को लगा लो? मगर बहुत बार सफाई करने वाले किसी भी कारण से, अगर लम्बे समय तक ना आ पाएँ तो? गाँवों में सरपँच और मेम्बर, शायद इसी लिए बनाए जाते हैं, की गाँव की गाँव में ऐसी छोटी-मोटी समस्याओं का समाधान कर सकें? हमारे यहाँ सरपँच ठीक-ठाक है शायद। और कूड़ा इकठ्ठा करने के लिए गाडी भी लगाई हुई है। मगर वो बड़ी गाडी है, छोटी गलियों में नहीं आ सकती। कोई बड़ी बात नहीं, दो कदम बड़ी गली की साइड जाकर कूड़ा डाल आओ। यहाँ तक तो सही है। मगर, क्या कोई सफाई कर्मी भी, हर रोज बाहर सफाई के लिए नहीं लगाए जा सकते? जिससे जिन घरों में कोई नहीं रहता, वहाँ भी कूड़े के ढेर ना लगें? शायद तो लगाए जा सकते हैं? ये तो कोई बड़ी बात नहीं? हो सकता है, किन्हीं गाँवों के केसों में सरपँच कहे की उनके पास पैसे नहीं हैं, ये सब करवाने के लिए। क्यूँकि, सरकार दूसरी पार्टी वाले सरपंचों को पैसा नहीं देती।         

क्या सच में ऐसा है, की सरपंचों को इतने छोटे-छोटे से काम करवाने तक के लिए पैसा नहीं मिलता? चलो कितना पैसा कहाँ से मिलता है या कहाँ से लिया जा सकता है, इस पर कोई और पोस्ट। ऐसे-ऐसे कामों के लिए पैसा, जिनके यहाँ ये कर्मचारी सफाई के लिए जाएँगे, उन्हीं से लिया जा सकता है। क्यूँकि, शहरों की कई कॉलोनियों में ऐसा होता है। जैसे रोहतक सैक्टर-14 में एक छोटा-सा रिक्से वाला आता था, कूड़ा घर-घर से लेने। और उसे उस वक़्त, सिर्फ 25 या 50 रुपये हर एक घर से मिलते थे। ये 2009 और 2010 की बात है। ऐसे ही कई कॉलोनियों में मैंने देखा था, साफ़-सफाई वाले आते थे और महीने में घर-घर से नाम मात्र पैसे लेते थे। कितना मुश्किल है, गाँवों में ये सब करना? ऐसे कुछ लोगों को तो काम बिना पैसे सरकार से लिए भी दिया जा सकता है। सिर्फ नियत का सवाल है?

ऐसी ही और भी कितनी सारी छोटी-मोटी नौकरियाँ, गाँवों में ही ईजाद की जा सकती हैं, शहरों की तरह। कई बार तो आसपास काम करने वाले ही नहीं मिलते। तो ऐसे लोगों के नंबर, किसी एक जगह से मिल जाएँ, शायद ऐसा कोई हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए। जहाँ से जरुरत पड़ने पर, छोटी-मोटी जानकारी या ऐसी सहायता कोई भी ले सकें। हो सकता है, ऐसा कोई सहायता नंबर हो और मेरे जैसों की जानकारी में ना हो। तो ऐसे नंबर को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए, उसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए।                      

Friday, March 14, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 60

यूनिवर्सिटी के स्तर पर, सीधा प्रॉजेक्ट या कंपनियों के सहयोग से Collaborative Research या सिर्फ उस कोर्स की अनुमति हो, जिसमें यूनिवर्सिटी के स्तर पर नौकरी के लिए ट्रैनिंग शुरु हो और यूनिवर्सिटी से निकलते ही नौकरी।  कुछ-कुछ ऐसे, जैसे बस या किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के व्हीकल में, सिर्फ उतने ही आदमी चढ़ पाएँ, जितनी सीट हों। उसके बाद वो व्हीकल, किसी स्टॉप पे नहीं रुकेगा। या उसका दरवाज़ा ही नहीं खुलेगा। जैसे, ज्यादातर विकसित जगहों पर होता है। सीट ना होने के बावजूद, किसी भी व्हीकल पर जितनी ज्यादा भीड़, मतलब उतना ही ज्यादा अविकसित होने की निशानी? डिग्री देने की काबिलियत होने के बावजूद, उन डिग्री धारकों को नौकरी देने की काबिलियत नहीं होना, मतलब? अच्छे संस्थानों से सीखें, की वहाँ क्या अलग है? जो सिर्फ डिग्री बाँटने वाले संस्थानो में है या नहीं है?

इस सबको सही करने के लिए क्या कदम हो सकते हैं? कुछ शायद मैं सुझा पाऊँ? क्यूँकि, मैं खुद नौकरी लेने की दौड़ में नहीं, शायद देने वालों की कैटेगरी में आने की कोशिश में हूँ।   

नौकरियोँ का भी इन घरों जैसा-सा ही है। कितनी ही पोस्ट तकरीबन हर डिपार्टमेंट में खाली पड़ी रहेंगी, सालों साल, दशकों दशक। मगर?

मगर, उनकी पोस्ट कभी निकलेंगी ही नहीं। कहीं ज्यादा ही सिर फूटने लग जाएगा, तो एडहॉक या कॉन्ट्रैक्ट जैसी शोषण वाली पोस्ट घड़ दी जाएँगी। उससे बेहतर शायद यही मानव संसाधन कहीं और अच्छा कर सकते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ ऐसा करके कई तरह के फायदे ऐंठती हैं। मगर वो फायदे, कहीं न कहीं उसी जनता को इन पार्टियों के खिलाफ भी कर जाते हैं। कोरोना के दौरान और उसके बाद उपजे, आसपास के माहौल ने इसे ज्यादा अच्छे से समझाया। 

डिपार्टमेंट और आसपास, कई बार कुछ ऐसी बातें या किस्से घटित हुए की जिनको समझकर लगे, की जो लोग इतनी शिद्दत से काम करते हैं और इतना वक़्त से उस यूनिवर्सिटी या इंस्टिट्यूट से जुड़े हैं और वहाँ पोस्ट भी खाली हैं, फिर ऐसा क्या है, जो ये सरकारें उन्हें भरती नहीं? कैसी राजनीती है ये?

घर आने के बाद अपना घर ना होने की वज़ह से या ससुराल से परेशान कुछ किस्से-कहानी सुनकर फिर से ऐसे ही? ऐसा क्या है, जो ये लोग अपना खुद का अलग से घर नहीं लेते या बनाते? किन्हीं पे आश्रित ही क्यों रहते हैं? या ऐसी उम्मीद ही क्यों, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे लोगों से? कुछ केसों में, दूसरे पर निर्भरता एक कारण हो सकता है। मगर, कुछ तो ऐसे उदाहरण की सारा ससुराल वालों को पूज देते हैं और खुद ठन-ठन गोपाल जैसे। या अजीबोगरीब सँस्कार या संस्कृति? ये क्या करेंगे, अलग से अपने मकान का? क्या अजीब प्राणी हैं? नहीं? हर जीव अपनी संतानों को इतना-सा तो सीखा ही देते हैं, की वो आत्मनिर्भर हो सकें। खुद का खाना और रहने लायक घर बना सकें। 

इंसान के पास तो दिमाग थोड़ा उससे आगे सोचने-समझने के लिए, पढ़ने-लिखने या कुछ करने के लिए भी है। मगर हमारे समाज का ताना-बाना कुछ ऐसा है, की समाज का कितना बड़ा हिस्सा ऐसी-ऐसी, आम-सी जरुरतों के लिए ही संघर्ष करता नज़र आता है? शायद, अच्छी शिक्षा ही उसका एकमात्र ईलाज है। 

पेपर टाइगर?

चलो, पेपर टाइगर को पढ़ने का भी आपके पास वक़्त तो है? और सुझाव भी? धन्यवाद, इतने अच्छे टाइटल के लिए। ये तो फिर भी थोड़ा बहुत मिलता होगा। कहीं तो कुछ ज्यादा ही फेंक दिया था, Writing Machine. वैसे धन्यवाद उनका भी। 

बड़े-बड़े लोगों को पढ़कर थोड़ा बहुत तो फेंकना आ ही जाता है शायद :)  

ABCDs of Views and Counterviews? 59

 Interesting Saga, of not so interesting stories?

Real?

Unreal?

State?

Estate?

or Fraud?


कहानियाँ? 

इधर-उधर की?

 जाने किधर-किधर की? 

कुछ दूर के?

या शायद कुछ पास के?

रिस्ते जैसे?

या? 

कहानियाँ किन्हीं के घरों के, 

ना मिलने की?

यूँ सालों-साल?

या दशकों शायद?

कैसे गुँथती हैं, ये राजनीतिक पार्टियाँ? 

ऐसे-ऐसे से किस्से-कहानीयाँ?

और ऐसी, ऐसी-सी?

या कैसी कैसी-सी?

यूँ, ज़िंदगियों की बर्बादियां?

World of Illigal Human Experimentation?

Or much more than that?   

हमारी राजनीती एक ऐसा Ecosystem कैसे develop करती है, की जिसमें MLA, MP वगैरह को, ऐसे-ऐसे प्लॉट या ज़मीनें या बने-बनाए घर और फ्लैट तक मुफ़्त में या गिफ़्ट में मिलते हैं?

सच है क्या ये?

और आम आदमी? वो बेचारा पता नहीं, ज़िंदगी भर कहाँ उलझा रहता है?

आपको मालूम है क्या, कुछ ऐसे नेताओं या राजनीती वालों के नाम जिनको ऐसे-ऐसे गिफ़्ट मिले हुए हैं? काफी सालों पहले रोहतक के ही कई ऐसे नेताओं के नाम सामने आए थे। कभी कुछ होता देखा है, उन लोगों के खिलाफ कुछ? और आम लोग अपनी ज़िंदगी भर की पूँजी दाँव पर लगा देता है? बदले में मिलता क्या है?

ये? 


या शायद पिछे कोई बुलडोज़र बाबा का विडियो देख रही थी, जिसमें था "कोई सामने ही नहीं आया माँगने, हमने तो बोला था की जिनका गया है, उन्हें वापस देंगे"? ऐसा ही कुछ?

पता नहीं इन नेताओं या बाबाओं को कितना पता है की कितने ही बने-बनाए घर, छोटे-बड़े, बँगले और बहुमंजिला इमारतें तक सालों खाली पड़ी रहती हैं। सिर्फ कोढों के हेरफेर में? जिनपे थोड़े-से पैसे लगाकर, कितने ही बेघर लोगों को दिया जा सकता है। मगर, शायद ऐसा करने से राजनीती के कोढों का खेल तो नहीं बिगड़ जाएगा? या किसी तरह के अहम या अहँकार की मूछें उतर जाएँगी? शायद?  

Thursday, March 13, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 58

चलो थोड़ा नौकरी और निक्कमों को थोड़ा बहुत लायक बनाने से पहले, अपने नेताओं पर थोड़ा हँस लें? थोड़ा ज्यादा फेंक दिया? कोई ना, जहाँ-जहाँ ऐसा लगे, वहाँ-वहाँ लपेटते रहा करो। कई सारे इधर-उधर के सोशल प्रोफाइल्स हैं, जिन्हें अक्सर मैं पढ़ लेती हूँ। कोई इस पार्टी से सम्बंधित, तो कोई उस पार्टी से सम्बंधित। कुछ ऐसे लोग जिनसे मैं कभी नहीं मिली, मगर, वहाँ पे कई बार जानकारी बड़ी ही रौचक होती है। 

कभी-कभी, कुछ-कुछ ऐसी भी शायद, जैसे बच्चे आपस में बात कर रहे हों 

"Korean Khalse Mere

Korean Queen"

जैसे ये विडियो 


और ऐसे ही कितने ही विडियो आपको ऑनलाइन मिल जाएँगे। 

या फिर, ये Presentation जैसे?


दुनियाँ भर की राजनीती ऐसे ही चल रही है?
और सब राजनितिक ऐसी-सी ही नौटंकियोँ का हिस्सा हैं?

ये कैसी दुनियाँ में हैं हम? सोचो, अगर अच्छे-खासे जर्नल्स में पब्लिश रिसर्च पेपर्स को भी ऐसे ही दिखाना हो तो? मैंने कई देखे थे, कोरोना के वक़्त शायद? वो भी अच्छे-खासे जर्नल्स के। राजनीती में विज्ञान है। इसीलिए, उसका नाम शायद राजनीतिक विज्ञान है। और विज्ञान में राजनीती? मगर, उसके साथ राजनीती तो नहीं लगा हुआ। नहीं तो ऐसे होना चाहिए था 
Biology Politics 
Chemistry Politics 
Physics Politics
Psychology Politics 
Defence Politics 
Civil Engineering Politics वैगरैह?

सौरभ भारद्वाज का विडियो, शायद, ऐसा-सा ही कुछ है?
ऐसा-सा ही एक विडियो, UK Parliament का भी कहीं देखा था शायद? या कहना चाहिए, की कितना कुछ ऐसा हम रोज देखते या सुनते हैं? इसमें भी भला क्या खास है?  

ABCDs of Views and Counterviews? 57

 ये पोस्ट खास हमारे बेरोजगार नेता या नेताओं के लिए 

क्या आप वो नेता हैं, जो कहते हैं की नौकरियाँ नहीं हैं?

क्या वो आप हैं जो युवाओं को ही नहीं, बल्की, आमजन को ऐसे गुमराह करते हैं, की इसकी नौकरी जाएगी, तो उसे या उन्हें मिलेगी? क्या आपके पास, ऐसी हेराफेरियों और लोगों को आपस में ही भड़काने के सिवाय, कोई और समाधान नहीं है? 

क्या आप वो नेता हैं, जिन्हें लगता है, की नई टेक्नोलॉजी या एप्लायंसेज का प्रयोग करने से नौकरियाँ कम हो जाएँगी? आपको क्यों नहीं लगता, या क्यों नहीं सोच पाते, की इससे ना सिर्फ लोगों की ज़िंदगियाँ आसान होंगी, बल्की, ज्यादा लोगों को नौकरियाँ मिलेंगी? वैसे, ये ज्यादा या कम क्या है? सबको क्यों नहीं? इसका मतलब, हमारी शिक्षा व्यवस्था में कमी है, जिसे सुधारने की जरुरत है?

कॉलेज से ही हर विद्यार्थी के लिए Learn and Earn जैसे प्रोग्राम शुरु होने चाहिएँ। और स्कूल के स्तर पर बच्चों को इतना-सा तो आना चाहिए, की वो अपनी ज़िंदगी इंडिपेंडेंट जीना सीख पाएँ। जरुरत पड़ने पर, कम से कम अपने लायक तो कमाने लायक हो पाएँ। कमाने लायक ना सही, कम से कम अपने काम तो कर पाएँ। ज्यादातर लड़कियाँ तो हमारे यहाँ सीख जाती हैं, मगर लड़के? लड़के होने के फलस्वरूप, हमारा समाज उन्हें जैसे अपाहिज बना देता है? या शायद, लड़का होने की जैसे सजा देता है या इनाम? ये काम लड़कियों के हैं, और ये काम लड़कों के हैं सीखाकर। स्कूल इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, की अगर आपको भी लड़कियों की तरह भूख लगती है, और खाना खाते हैं, तो खाना बनाना सीखना जरुरी है। उसे किसी तरह के अहम से ना जोड़ें। अगर लड़कियों की तरह, आपको भी कपड़े पहनने की जरुरत होती है, या साफ़-सफाई अच्छी लगती है, तो कपड़े धोने, बर्तन साफ़ करने या आम साफ़-सफाई करनी आनी चाहिए। या ऐसे अप्लायंस को प्रयोग करना। फिर चाहे इन सब कामों के लिए, आपके यहाँ माँ, बहन, बीवी, बुआ, बेटी, भतीजी, या ये सब काम करने वाली आया, जैसी सुविधाएँ ही उपलब्ध क्यों ना हों। जरुरत पड़ने पर, ये सब कर पाना और बिना जरुरत पड़े, अपने घर के ऐसे कामों में सहायता करना, आपका गुण है, अवगुण नहीं। ऐसे-ऐसे कामों को करने वालों को, औरत या औरतों के गुलाम बताने वालों से, जितनी जल्दी दूरी बना लें, आपकी अपनी और आसपास की ज़िंदगी उतनी ही बेहतर होगी। ये सब करना विकसित होने की निशानी है, ना की गुलामी की, विकसित समाजों में। शायद गुलाम या अविकसित समाजों में नहीं?              

यूनिवर्सिटी के स्तर पर, सीधा प्रॉजेक्ट या कंपनियों के सहयोग से Collaborative Research या सिर्फ उस कोर्स की अनुमति हो, जिसमें यूनिवर्सिटी के स्तर पर नौकरी के लिए ट्रैनिंग शुरु हो और यूनिवर्सिटी से निकलते ही नौकरी।  कुछ-कुछ ऐसे, जैसे बस या किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के व्हीकल में, सिर्फ उतने ही आदमी चढ़ पाएँ, जितनी सीट हों। उसके बाद वो व्हीकल, किसी स्टॉप पे नहीं रुकेगा। या उसका दरवाज़ा ही नहीं खुलेगा। जैसे, ज्यादातर विकसित जगहों पर होता है। सीट ना होने के बावजूद, किसी भी व्हीकल पर जितनी ज्यादा भीड़, मतलब उतना ही ज्यादा अविकसित होने की निशानी? डिग्री देने की काबिलियत होने के बावजूद, उन डिग्री धारकों को नौकरी देने की काबिलियत नहीं होना, मतलब? अच्छे संस्थानों से सीखें, की वहाँ क्या अलग है? जो सिर्फ डिग्री बाँटने वाले संस्थानो में है या नहीं है?

इस सबको सही करने के लिए क्या कदम हो सकते हैं? कुछ शायद मैं सुझा पाऊँ? क्यूँकि, मैं खुद नौकरी लेने की दौड़ में नहीं, शायद देने वालों की कैटेगरी में आने की कोशिश में हूँ।    

ABCDs of Views and Counterviews? 55

दुनियाँ उतनी छोटी या दकियानुशी या दिमागी गरीब नहीं है, जितना आपका दिमाग जानता है। ये खासकर उनके लिए, जो नाली, गली, लेबर बंद करने, पानी बंद करने या खाने या पानी में अपद्रव्य या जहर डालने या हवा को जानबूझकर प्रदूषित करने, लोगों को उनके रहने या काम करने के स्थानों खदेड़ने या ऐसे ही और लोगों की ज़िंदगियों में रोड़े अटकाने या लोगों को जानबूझकर मारने का काम करते हैं या करवाते हैं। दुनियाँ, इस सोच से कहीं ज्यादा बड़ी है। दुनियाँ का बहुत छोटा हिस्सा है, जो ये सब करवाता है। और उससे थोड़ा बड़ा, जो ये सब करता है।  

मगर उससे कहीं ज्यादा बड़ा हिस्सा, अपनी और अपने आसपास की ज़िंदगियों को सँवारने में व्यस्त है। इन लोगों के पास इतना वक़्त ही नहीं है की ये अपना कीमती वक़्त किसी का बुरा सोचने में भी लगाएँ। फिर करने वाले तो यूँ लगता है, ज़िंदगी का कितना बड़ा हिस्सा, इसी में लगा देते हैं?

फिर दुनियाँ का एक हिस्सा वो भी है, जो अपने और अपने आसपास से थोड़ा दूर भी भला करने में लगा है। उसमें सिर्फ कुछ लोग जो अलग-थलग रहकर काम करते हैं, वही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्की, काफी सारी संस्थाएँ भी ऐसा करती हैं। कहीं के भी शिक्षा के संस्थान, उसमें अहम भुमिका निभाते हैं। मगर बहुत बार, उन संस्थानों में कुछ राजनितिक ताकतें, शायद ज्यादा प्रभावी हो जाती हैं। और ऐसे वक़्त में, उन ताकतों पर निर्भर करता है की वो वहाँ के समाज को कहाँ लेकर जाएँगी? 

या शायद, कहीं का भी समाज आज उतना स्थानीय (Local) नहीं है, जितना कभी होता था। और दुनियाँ भर की राजनीती, दुनियाँ के हर कोने को किसी न किसी रुप में प्रभावित करती है। और ऐसा ही कोई समाज का हिस्सा, कहीं न कहीं, किसी भी अति या दुष्प्रभाव वाली ताकत या ताकतों को रोकने का काम भी करता है? कोरोना काल में शायद ऐसा ही कुछ देखने को मिला? आप कहीं भी कुछ कर रहे हैं, तो मान के चलो की आपको देखने, सुनने और फिर उस पर अपने सुझाव या प्रतिकिर्या देने वाले दुनियाँ के हर कोने में हैं। और उस सुझाव या प्रतिकिर्या का असर ना सिर्फ उनके अपने समाज में होता है, बल्की किसी न किसी रुप में दुनियाँ भर में होता है। शायद ऐसे ही बहुत से लोगों ने कोरोना के दौरान, कितने ही लोगों को मरने से बचाने में सहायता की। और उसके बाद, कितने ही लोगों ने ये दिखाने या समझाने में, की दुनियाँ भर का सिस्टम काम कैसे कर रहा है? मैं इसी सब को समझने या लोगों को समझाने में व्यस्त हूँ। शायद, इसलिए मुझे अपने विषय से दूर जाने की जरुरत नहीं पड़ी। बल्की, वो तो इस सब में अहम कड़ी बनकर उभरा है। 

दुनियाँ में कहीं भी, किसी वक़्त क्या चल रहा है, वो दुनियाँ के किसी दूसरे कोने में बैठे लोगों को भी प्रभावित कर रहा है क्या? शायद हाँ, शायद ना? जानने की कोशिश करें, ऐसे ही, कहीं के भी Random से, कुछ लेखों से?

ABCDs of Views and Counterviews? 56

दुनियाँ में कहीं भी, किसी वक़्त क्या चल रहा है, वो दुनियाँ के किसी दूसरे कोने में बैठे लोगों को भी प्रभावित कर रहा है क्या? और किसी न किसी तरह उसका असर हमारे यहाँ भी हो रहा है? शायद हाँ, शायद ना? जानने की कोशिश करें, ऐसे ही, कहीं के भी Random से, कुछ लेखों से? नीचे कुछ ब्लॉग्स से कुछ लेख, जिन्हें मैं पढ़ती हूँ। आप भी कहीं के भी, किसी भी मीडिया को पढ़ रहे हों या देख या सुन रहे हों, मान के चलो की वो कहीं न कहीं, आपको और आपके यहाँ को भी प्रभावित कर रहा है या शायद ऐसा कुछ आपके यहाँ भी हो रहा है। क्या दुनियाँ सच में इस कदर एक दूसरे से जुड़ी है? शायद?   





Tuesday, March 11, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 54

धर्म, विज्ञान और राजनीती की खिचड़ी पक के क्या बनता है? किसी समाज का Ecosystem या Cult? कहाँ-कहाँ की राजनीती, किस-किस तरह की अफीम खिला रही है? और वो भी लोगों की जानकारी के बिना? अपने यहाँ के बारे में, आप जानने की कोशिश करो। मैं अभी जहाँ हूँ, वहाँ के बारे में जितना समझ पाई, उसे बताने की कोशिश करती हूँ।

अपने एक बेरोजगार नेता से जानने की कोशिश करें? 

बेरोजगार नेता? Saurabh Bhardwaj, AAP?    


आपको ये विडियो कितना असली या नकली लग रहा है? 
नकली है?

अगर हाँ? तो सोचो, आप जितने भी विडियो देखते हो या जो कुछ सुनते हो या जो कुछ समझते हो, वो कितना सच या झूठ होगा? उसका पता कैसे चले? मगर, आपकी ज़िंदगी तो, उसी समझ के अनुसार चल रही है। या नहीं?  

जैसे 
हकीकत Reality? 
खिचड़ी या सच झूठ Mixed Reality?
Augmented?
इज्ज़ाद की गई हकीकत, जैसे Artificial Reality? 
  
जब इज्जाद की गई हकीकत में आप पहुँच जाते हो, तो क्या होता है?
जानने की कोशिश करते हैं, आगे पोस्ट में। 

और क्या दुनियाँ भर की राजनीती यही सब कर रही है? उन्हें और कोई ढंग का काम नहीं है? 
अपनी राजनितिक पार्टियों से पूछने की कोशिश करें की आप कर क्या रहे हैं? और क्यों?

ABCDs of Views and Counterviews? 53

जैसे? 
ये अभी मैंने जो लिखा ऐसा-सा ही कुछ है, क्या?

इस फोटो का यहाँ रखने का मतलब, 
किसी  पार्टी विशेष या आदमी विशेष की खिलाफत नहीं है।  
क्यूँकि, मंदिर, डेरे, मस्जिद, या बाबाओं के महल या मंदिर या किसी भी धर्म के स्थान तो पता नहीं कहाँ-कहाँ, कितने ही भव्य मिल जाएँगे। इससे तो कहीं ज्यादा। 

मगर कुछ ऐसा है, जो शायद कह रहा है,
बूझो तो जाने?
    


Presentation?
Perception?

किसी भी आस्था को घड़ने का और उस घड़ी हुई आस्था का तहस-नहस करने का भी साधन है? और आदमियों को रोबोटों की तरह चलाने का भी। आपको क्या, कैसे, और क्यों, दिखाया, बताया या समझाया गया है, उसके अनुसार आप कुछ भी कर सकते हैं? जैसे Echo Chambers?  

अब नेताओं से परे, बाबाओं से परे, या मीडिया से परे, किसी यूनिवर्सिटी का कोई लेख पढ़ें? चलो सिर्फ कोई फोटो देखें? आप चाहें तो, उस वेबसाइट पर जाकर लेख भी पढ़ सकते हैं।  

ये फोटो ऑस्लो यूनिवर्सिटी के रैक्टर के ब्लॉग से ली गई हैं।


ऐसे ही, इसी यूनिवर्सिटी का ब्लॉग ही क्यों? आप किसी और का भी पढ़ सकते हैं? और ब्लॉग ही क्यों? किसी भी संस्थान की वेबसाइट पर बहुत सारी जानकारी होती है। जिसमें काफी कुछ बिना उन विषयों की जानकारी हुए भी समझ आने लगता है। काफी कुछ अच्छा भी और बहुत कुछ ऐसा भी, जो शायद किसी भी कुछ जानने की इच्छा रखने वाले इंसान को, शायद बहुत कुछ बताता है। अब ये शायद हम पर निर्भर करता है, की हम क्या जानना चाहते हैं? 

मेरा ये सब यहाँ रखने का क्या मतलब है? शायद ये जानने की कोशिश करना, की यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान किसी भी धर्म को कैसे देखते हैं? और शायद ये भी, की किसी भी यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान को कैसे प्रभावित करते हैं? और वहाँ की राजनीती उसमें किस तरह की भूमिका निभाती है? फिर चाहे धर्म कोई भी हो। कहाँ के धार्मिक संस्थान या शिक्षण संस्थान पैसे वाले हैं? और कहाँ के कँगाल? 

धर्म, विज्ञान और राजनीती की खिचड़ी पक के क्या बनता है? किसी समाज का Ecosystem या Cult? कहाँ-कहाँ की राजनीती, किस-किस तरह की अफीम खिला रही है? और वो भी लोगों की जानकारी के बिना? अपने यहाँ के बारे में, आप जानने की कोशिश करो। मैं अभी जहाँ हूँ, वहाँ के बारे में जितना समझ पाई, उसे बताने की कोशिश करती हूँ।    
           

ABCDs of Views and Counterviews? 52

जहाँ बाबाओँ के पास महल 

और 

शिक्षा के मंदिरों के कंगालों से हाल हों।  

मान के चलो,

वहाँ आमजन के हाल बहुत सही नहीं होंगे, 

जहाँ गरीब अपने दुख-दर्द मिटाने के चक्कर में, 

अमीर और खाऊ-पिऊ मंदिरों को दान करते हों, 

मान के चलो, 

वहाँ गरीब और गरीब,

और अमीर और अमीर होते जाएँगे। 


जहाँ पढ़ने-लिखने के मंदिरों से ज्यादा, 

धर्म के संस्थान हों। 

(संस्थान और मंदिर एक ही बात है ना?)

मान के चलो, 

वहाँ की जनता अपने नेताओं की गुलामी में होगी।  

क्यूँकि, 

धर्म या कोई भी संस्थान, 

किसी न किसी आस्था पे ही बना है या टिका है।  

और वहीँ से आगे बढ़ा है। 


हमारे शिक्षा के संस्थान, 

जब इन मंदिरों, मस्जिदों, जैसे-से, 

महल दिखने लग जाएँगे।  

मान के चलो, 

उस दिन हमारे यहाँ के पढ़े-लिखे, 

अमेरिका की तरफ नहीं भाग रहे होंगे। 


कांग्रेस या आप जैसी पार्टियों के डूबने की एक वजह, शायद ये भी है?

पता नहीं। 

मगर इस दौरान कुछ एक फोटो, लेख या विडियो बड़े ही रौचक लगे। 

जैसे? जानते हैं आगे पोस्ट में।  

ABCDs of Views and Counterviews? 51

VYLibraries 

VY Stories

VY Studios

VY Projects

VY Health Parks, Herbal Parks, Kitchen Garden

VY Recyclers, Rejuvenators and Growth and Revival Centres

Facilitate, Accelerate, Catalyst, Assist, Promote, Aid, Foster, Stimulate

Nurture, Develop, Encourage, Sustainable, Design, Care, Ease, Growth

क्या है ये सब? Reflection? या शायद उससे आगे बहुत कुछ?  

भाभी गए तो उनके साथ उनका स्कूल का सपना भी? क्यूँकि, उनके जाने के बाद, कुछ उनके ऐसे खास आए की लगा, ये उनके अपने हैं या दुश्मन? एक तरफ आप उनके आखिरी सपनों को हवा दे रहे थे, शायद याद भर? और ये अपने, जैसे उन्हें भी उनके साथ ही दफनाना चाह रहे थे? इन अपनों का हर कदम ऐसा क्यों लग रहा था मुझे? इन घरों में उनके जाने के बाद जो कहानियाँ चली, वो और भी हैरान करने वाली जैसी? इनमें से कोई भी नहीं चाहता था या है, की अब मैं किसी स्कूल की बात करूँ। ऐसा क्यों? 

और बच्चे के स्कूल के प्रोग्राम?  

खैर। वो मेरा सपना नहीं था। मुझे इतनी बड़ी बहन जी नहीं बनना था। "अब ये बड़ी बहन जी बनेगी"। और भी पता ही नहीं, क्या-क्या। अपना सपना, लिखाई पढ़ाई और रिसर्च ही था और है। और वो जारी है। मगर उस वक़्त वो थोड़ा-सा, स्कूल बनाने के बारे में जो कुछ सुना, पढ़ा या रिसर्च किया, उसी ने शायद, दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की ऑनलाइन सैर का भी प्रोग्राम बनवाया। इसी दौरान, इधर-उधर से कई तरह की सलहाएँ भी आई। जैसे ये कर सकते हो, वो कर सकते हो। या यही क्यों? कुछ और क्यों नहीं? हर एक का धन्यवाद। खासकर उनका, जहाँ मुझे ऐसा लगा, शायद कहीं खर्चे-पानी या कम से कम इतना-सा तो यहाँ भी कमा सकते हो या सीख सकते हो, वाली सलाहें या सुझाव मिले। खासकर, मेरे हाल जब सच में बहुत ही बेहाल थे। बहुत ज्यादा सही अब भी नहीं हैं। मगर, शायद थोड़े और वक़्त बाद, ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत तो सही हो ही जाएँगे। कुछ भी झेलना या किसी भी परिस्तिथि के अनुसार खुद को ढाल पाना, शायद तब ज्यादा मुश्किल होता है, जब आप ऐसा कुछ सपने में भी नहीं सोच पाते, की ये भी हो सकता है। इस दौरान बुरा-भला जो कुछ देखा, सुना या सहा, वो शायद कुछ-कुछ ऐसा ही था। ये किसी भी तरह के वित्तीय नुकसान से कहीं ज्यादा था या कहो की है। वित्तीय भरपाई फिर से संभव होती है। मगर गए हुए लोगों को वापस लाना? और इतने सारे लोगों को ऐसे जाते देखना? उससे भी बड़ा, खासकर मेरे जैसे लोगों के लिए, जो चुप नहीं रह सकते। जैसे, ये तो संभव ही नहीं।       

बुरे वक़्त में गए लोग और गया वक़्त तो वापस नहीं आता। मगर शायद, कोई सबक या सीख जरुर दे जाता है। 

उस स्कूल का एक नाम भी रखा था या कहो सोचा था, जो रितु से ही शुरु हो रहा था। खैर! जाने किस, किस को उससे दिक्कत महसूस हुई और क्यों? तो अपने ही नाम का पहला और आखिरी अकसर लगा कर, एक अलग ही तरह का Reflection, जिसपे Action भी संभव है, शुरु हो गया। दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर ने उसे अलग-अलग तरह के पँख दिए। वो किसी भी तितली के भी हो सकते हैं और बड़ी से बड़ी इंसान द्वारा बनाई मशीन के भी। हाँ ! ये तितली या मशीन, शायद उनकी घड़ी किसी भी तितली या मशीन से मेल नहीं खाती।   

Thursday, March 6, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 50

जब online NSDL Protean पे कुछ updates की जा रही थी तो संदीप गुप्ता कई ऑफिसियल IDs का प्रयोग कर रहा था। और OTP लेने के लिए, Finance Officer को कॉल भी। NSDL, Protean कब और क्यों हो गया? NSDL की दो अलग-अलग वेबसाइट क्यों हैं? CRA और NSDL? इसका ऑफिस मुंबई ही क्यों है? उसके कस्टमर नंबर में क्या खास है? मुंबई और सिविल लाइन्स, दिल्ली का आपस में क्या लेना देना है? दिल्ली CM का ऑफिस हमेशा सिविल लाइन्स दिल्ली ही होता है? या निर्भर करता है की CM कौन है? और कोई CM वहीँ अपना ऑफिसियल घर क्यों लेता है? और ये मनीष सिसोदिया और मनीष ब्लाह, ब्लाह एक ही हैं क्या? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी की किसी नौटंकी में भी कोई मनीष था? खैर। इस सबका IGIB, Delhi वाले संदीप शर्मा से क्या लेना-देना है? या किसी गाडी के पिछे ये Dad's gift, Airforce में क्या खास था? ये भारती-उजाला केस से भी कोई-लेना देना है? 

खैर। संदीप शर्मा वहाँ से Ram Jas College और वहाँ से Switzerland पहुँचते हैं। Ram Jas? J S और मुंबई? A K और मुंबई? या शायद Na ra और मुंबई?

और ये मोदी जी, 15 लाख हर किसी के खाते में पहुँचाने की बात करते हैं? खैर। संदीप को तो इसका ईनाम मिलता है, PhD स्मृति के रुप में? मगर, इन सबका IIT Delhi और दिल्ली की फिलहाल CM रेखा गुप्ता से क्या लेना-देना? बोले तो कुछ नहीं। आप आगे बढ़ो और जानने की कोशिश करो, की ये NSDL का आज तक Address Update क्यों नहीं हुआ? बोले तो कोई 15 नंबर और कोई पहुँचा 16 नंबर? जहाँ से पानी में जहर आना शुरु हुआ? Slow Poision? यूनिवर्सिटी की वाटर सप्लाई में किचड़? या JNU के जबरदस्ती वाले काले TANK? और किसी ने बोला, ये जहर 15 से आता है? कोई जगत जननी पहुँचा रही है? आज तक ये जगत जननी साँग समझ नहीं आया। 

CRA में तो पता वही है, जो आपने लिखवाया है। मगर NSDL Update नहीं कर रहा? ये कब तक 16 में बैठा रहेगा? नाम मेरा और पता? किसी Sajjan Dahiya का? घपला है जी ये तो। ऐसे जैसे, कोई बिहार के छठ वाला बिहारी कहे, मैं ही Shiv, मैं ही Shankar और मैं ही Khatu? पता नहीं, अब इससे बीमारी कौन-कौन सी ईजाद होती हैं? AI DS? H IV? या So? NIA? या Son? IA?

जैसे US के नाम पे या पहुँचते ही Yahoo .com की बजाय co.in हो जाए? और कोई गौरव सैनी Co m pass में अकाउंट खुलवा दे? बजाय की बैंक ऑफ़ अमेरिका के? ऐसे ही जैसे, किसी के भाई की चौधरी से शादी हो और सालों बाद पता चले, ये कादयान हैं? ऐसे ही शायद, किसी की बहन की राठी से? कैसे-कैसे नाथुला पास हैं ये? 

Strange world of political gambling.   

जिसका कब्ज़ा आपके रिश्ते बनवाने पर, तुड़वाने पर। बच्चों को इस जहाँ में लाने पर, तो कहीं पैदाइश से पहले ही  अबो्र्ट करवाने पर। ना हुई बिमारियाँ पैदा करने पर, ना होने वाले ऑपरेशन या एक्सीडेंट करने पर। और? आप कब कहाँ रहेंगे और कहाँ नहीं, ऐसे-ऐसे एनफोर्समेंट पर भी। और जानने वाले कहते हैं, की इस सिस्टम को जानने-समझने के लिए Astrology को समझो। Astrology? इसका, इन सबसे क्या लेना-देना? अब ये कैसा कोड है? Astrology और कहीं का भी सिस्टम, जानने की कोशिश करें इसे आगे? जैसे Social Programming?    

ABCDs of Views and Counterviews? 49

 क्या NSDL Protean एक गौरख-धंधा है?

मुझे ऐसा लगा। क्यों?  
जानने की कोशिश करें? 

ये पोस्ट उन सबके लिए, जो अपने आप को समाज का हितैषी मानते हैं। 
मुझे Resignation के तक़रीबन साढ़े तीन साल बाद, एक खास काम के लिए यूनिवर्सिटी जाने का मौका मिला। मैं Resignation 29, June या July, 2021 को दे चुकी? मैंने अपनी मर्जी से दिया या माहौल ने दिलाया, अलग ही मामला है। 

4, March 2025 

खैर। गाडी 2024 से ही है नहीं, तो मदीना बस स्टॉप से, सफेद रंग की एक वैन ली और ड्राइवर को चलने को बोला। ड्राइवर के नाम से लेकर, उस विकल्प में जो कुछ होगा, वो भी वहाँ का राजनितिक कोड होगा। आपके पास कहाँ, कौन-से ट्रांसपोर्ट के साधन उपलभ्ध होंगे, ये काफी हद तक सिस्टम ऑटोमेशन पे होता है। और बाकी मैन्युअल राजनितिक पार्टियों का धकाया हुआ। ड्राइवर ने बोला, मैडम भरने के बाद ही चलेगी। मैंने कहा, बाकी सवारियों के पैसे भी आप मेरे से ले लेना। कुछ सवारी उसमें पहले से ही बैठी थी, वो चल पड़ा। मदीना से वैन? अजीब-सा ऑप्शन है ना? एक ऐसा गाँव, जहाँ से इतनी सारी बसें, ऑटो और जीप वगरैह भी जाती हैं। ऐसा कुछ था ही नहीं या ठसा-ठस भरा आ रहा था। खैर। ये मुद्दा किसी और पोस्ट के लिए। किसी भी जगह हमारे पास जो विकल्प होते हैं, वही क्यों होते हैं? ये वहाँ का राजनितिक कोड बताता है। ये खाने-पीने, पहनने, रहने के स्थानों से लेकर, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन के संसाधन और मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिद, गिरजाघर या लाइब्रेरी, इन सब पर लागू होता है। जैसे, जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी जनता होगी, वहाँ उतने ही ज्यादा भगवानों को मानने या ऐसे स्थानों पर जाने वाले कम और पढ़ने-लिखने या प्र्शन या वाद-विवाद करने वाले या लाइब्रेरी जाने वाले ज्यादा होंगे। ऐसा कहाँ होता है? जिन देशों की जनता ज्यादा पढ़ी लिखी है या तो वहाँ? या स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी या रिसर्च इंस्टीटूट्स में? 

चलो, पुराने बस स्टॉप से एक ऑटो लेकर यूनिवर्सिटी पहुँच गई। यहाँ पे मेरी फाइल को डील करने वाला बंदा संदीप गुप्ता मिला। उसने मुझसे कुछ एक डॉक्युमेंट्स माँगे, जो मैं पहले ही मेल कर चुकी थी। मेल Finance Officer की थी और वो किसी मीटिंग में। तो गुप्ता जी ने बोला, मैडम तब तक बाकी फॉर्म भर लेते हैं। मैंने कहा ठीक है। फॉर्म ऑनलाइन ही था और उसमें कुछ खास था नहीं। एक आध updates करनी थी, जैसे मेरा address । जो शायद अपडेट हुआ ही नहीं। क्यों? पता नहीं। मुझे लगा की किया ही नहीं गया। मुझे ऐसा लगा, यहाँ अहम है। क्यूँकि, आप किसी बच्चे को तो अपने पास बिठाय नहीं हुए, की उसे समझ ना आए की ये चल क्या रहा है? अब इसमें वहाँ बैठे इंसान की गलती कितनी है या नहीं है, ये तो कहना मुश्किल है। क्यूँकि, अकसर ऊप्पर के फैसलों को यहाँ बैठे लोगों को सिर्फ या जैसे-तैसे मानना होता है। आखिर उन्हें भी नौकरी करनी है। ऐसा पहले भी कई फाइल्स के साथ हो चुका, इसलिए अनुभव से बता रही हूँ। जैसे नाम बदलना और उसे ठीक करवाने के लिए 8-9 महीने अपनी ही यूनिवर्सिटी के धक्के। जब सामने वाला पीछा ना छोड़े, तो उस कुर्सी पर बैठे इंसान की ही बदली। जबकि वो सब वहाँ भी ऊप्पर के आदेशों से ही हो रहा था। 

खैर। फाइनेंस अफसर भी आ गए और मेल किए गए डॉक्यूमेंट भी गुप्ता जी को मिल गए? प्र्शन क्यों? सुना है, 2004 या 2005 में (?) एक Illegal Human Experiment हुआ था और किसी संदीप को कोई किताब तक नहीं मिली, फिर आधार मिलना तो बहुत दूर की बात हो गई? खैर। यहाँ कौन-सा कोई IGIB, Delhi का संदीप शर्मा बैठा था। यहाँ तो, MDU के कर्मचारी कोई संदीप गुप्ता जी थे। और उन्हें वहाँ जिस काम के लिए बिठाया गया था, वो ऑफिस का वो काम कर रहे थे। तो दुनियाँ के किसी भी हिस्से में, किसी भी जगह, कोई भी इंसान या कोई भी जीव या निर्जीव ऐसे ही नहीं है। वो वहाँ, उस वक़्त वहाँ की राजनीती का कोढ़ है।

ऐसे ही जैसे किसी भी मीडिया पर कोई आर्टिकल या बहस या मुद्दा या खबर। 

जैसे ये  

ये क्या है? 
ऐसा कुछ चल रहा था क्या?
 जब online NSDL Protean पे कुछ updates की जा रही थी?
और Address Update क्यों नहीं हुआ? 
और ये कब से Update नहीं हो रहा?  

और ये MDU Finance Department को पता है क्या?


चलो इस सबको थोड़ा और आगे जानने की कोशिश करें? 

ABCDs of Views and Counterviews? 48

 Fraud? गौरख धंधा, किसे कहते हैं?


क्या NSDL Protean एक गौरख धंधा है?
मुझे ऐसा लगा। क्यों?  
जानने की कोशिश करें, आगे पोस्ट में ? 

Sunday, March 2, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 30

कई बै नोटिस बोर्ड भी नरे-ए होवैं सैं, जुकर  

मूत्र युद्ध विभाग नोटिस बोर्ड

मल युद्ध विभाग नोटिस बोर्ड

विचार कन्ट्रोल सैंटर नोटिस बोर्ड 

खगोल शास्त्र और ज्योतिष विभाग नोटिस बोर्ड 

अजीब से विभाग और सैंटर जैसे? 

Thought pollicing and making of robots? ब्लाह भाई यो के बला? 

बालको sci-fi देखा अर पढ़ा करो। यो वो दुनियाँ हो सै, जहाँ रोबॉट्स ने आदमियों को खत्म किया या दूसरे ग्रह पर कॉलोनी बसाई। रोबॉट्स की जेल में पृथ्वी या आपके दिमाग को कंट्रोल करते दूसरे ग्रह के प्राणी। अलग-अलग ग्रहों की नभीय प्रजातियों के युद्ध और भी बहुत कुछ जानने और समझने को। सोचण नै, के जा सै, किमे सोच लो?

इसी सोच के पँख लगाकै, कुछ ये सब लिखैं सैं। अर कुछ, उस पै सीरियल अर मूवी बणावें सैं। और कुछ उससे थोड़ा और आग्य नै चाल कै हकीकत घड़ै सैं। वो हकीकत कुछ लैब मैं घड़ै सैं, अर कुछ समाज मैं। ईब थाम कोणसे समाज का हिस्सा सो, वो थामनै बेरा? या शायद ना भी बेरा?

चलो एक छोटे-से हकीकत के आईने से देखने की कोशिश करें?

 रिफ्फल री थी, कर थी ठायैं-ठायैं 

ABCDs of Views and Counterviews? 47

कुछ छोटे-छोटे शैतान बच्चे, कई बार हमारे घर के बाहर खेलते हैं। और कई बार इधर-उधर के पड़ोसियों के। 
एक दिन एक पड़ौसी के घर के बाहर दो छोटी-छोटी लड़कियों को चेतावनी देते हुए कह रहे, "घर के अंदर क्यों घुस गए? डरपोक कहीं के। दम है तो निकलो बाहर।" वो लड़कियाँ तो घर के अंदर जा चुकी थी। मगर, जैसे ही मैंने इन शैतान बच्चों की तरफ देखा, देखते-देखते ही पता नहीं किधर छुप गए? 
आजकल ऐसा ही कुछ सुना है, दिल्ली के बड़े बच्चे खेल रहे हैं और उस खेल का नाम है, "पार्लियामेंट-पार्लियामेंट"। झगड़ालू कहीं के। क्या मचा रखा है ये?

Parliament is what you make it? 
Oh, Life is .. पता ही नहीं था, जैसे IS Elements?
   

Go your home now?
Hannah Montana?
Miley Cyrus home is in Montana?  
US kids and their songs?

       

ABCDs of Views and Counterviews? 46

 स्वस्थ जिंदगी (Healthy Life)

स्वस्थ ज़िंदगी के लिए आपको बहुत कुछ नहीं चाहिए। मगर बहुत कुछ जो हमारे वातावरण से या आसपास से हमें जाने-अंजाने मिलता है, उससे बचने की जरुरत जरुर होती है। उससे आगे काफी कुछ हमारी अपनी दिनचर्या या खान पान को सही करने की जरुरत होती है। जैसे की कहा गया है की "Precaution or prevention is better than cure", सावधानी या ऐतिहात, ईलाज से बेहतर है।  

आप अपने स्वास्थ्य का चाहे कितना ही ऐतिहात बरतने वाले हों, फिर भी कभी न कभी तो जरुर, किसी न किसी बीमारी से सामना करना ही पड़ा होगा? वो फिर कोई छोटी-मोटी ज़ुकाम या सिर दर्द जैसी समस्या हो या कोई आते जाते मौसम-सा बुखार, जिसमें आपको कुछ खास नहीं करना पड़ता, अपने आप ही ठीक हो जाता है। मगर कभी-कभी शायद बहुत कुछ अपने आप ठीक नहीं होता, उसके लिए थोड़ी सी मेहनत चाहिए होती है। कभी-कभी शायद थोड़ी ज्यादा? जैसे किसी एक्सीडेंट के बाद? या किसी थोड़ी बड़ी बीमारी या ऑपरेशन के बाद?         

चलो पहले थोड़ा ऐतिहात या सावधानी की बात करें?

Attitute is Everything

मन के माने हार है और मन के माने जीत? आपने मान लिया की आप जीत रहे हैं, तो जीत रहे हैं। आपने मान लिया की आप हार रहे हैं, तो हार रहे हैं? आपने मान लिया की आप बीमार हैं, तो बिमार हैं। आपने मान लिया की ठीक हैं, तो ठीक हैं? संभव है क्या? ज़िंदगी संभानाओं का ही नाम है? आपके मानने या ना मानने से ही बहुत कुछ छू-मंत्र हो जाता है और बहुत कुछ पनप भी जाता है। बिमारियों का या स्वास्थ्य का भी काफी हद तक ऐसे ही है। काफी हद तक, बिलकुल नहीं। इसलिए     

Own Your Mind and Own Your Life 

Own Your Body 

ये Own Your Body पे क्या आ गया?


Own your body का ज्यादा तो नहीं पता, पर इतना-सा जरुर पता है, की वजन कम करना या बढ़ाना कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। जिनके लिए है, उनको लग रहा होगा की ये क्या फेंक रही है? सच में। एक बार ये सोच लो, की खाना आपके लिए जहर है। खाना एक ऐसी जेल की सैर है, जिसके खाते ही आपके मरने की पूरी-पूरी सम्भावनाएँ हैं। उसके बाद खाना तो क्या खाओगे? बेचैन होकर पागलों की तरह घूमने (walk) जरुर लग जाओगे। जैसे कह रहे हो, निकालो मुझे इस जेल से। खैर। ये थोड़ा ज्यादा हो गया ? वैसे, मेरे साथ ऐसा हो चूका, जब साढ़े तीन दिन की खास सैर पर ही आप 3-4 किलो वजन घटा आएँ।  

वैसे, खुद को खाने का परहेज कर अरेस्ट करना और जितना हो सके उतने घंटे घूमना, वजन घटाने का अचूक तरीका है। अब क्यूँकि, आप खुद ही खुद को अरेस्ट कर रहे हैं, अपने लिए कुछ अच्छा करने के लिए, तो ये वो अरेस्ट तो है नहीं, की जहाँ पानी या जूस तक पर भी पाबंदी लगे। जहाँ तक हो सके जूस या तरल पदार्थों पर रह कर भी ऐसा संभव है। कुछ एक उदाहरण ऐसे मैंने देखे हैं। जैसे किसी बहुत ही मोटी लड़की की शादी हो और वो 2-महीने में ही slim-trim हो जाए? सिर्फ जूस पर रहकर और थोड़ा बहुत एक्सरसाइज कर? ऐसा किसी गाँधी ने M.Sc के दौरान या उसके बाद शायद बताया था, जब उसे देख कर यकीन करना मुश्किल हो रहा था। और भी कई इस तरह के उदाहरण देखे-सुने हैं। वजन पे फोकस इसलिए, क्यूँकि वजन अपने आप सिर्फ एक बीमारी नहीं है, बल्की, और भी कितनी ही बिमारियों को न्यौता देने जैसा है।

ज्यादातर जो लोग मोटे होते हैं, वो घूमते-फिरते बहुत कम हैं। वजह चाहे जो भी हों। क्यूँकि मैंने देखा है, की जो रैगुलर सिर्फ घूमने का भी रूटीन रखते हैं, मोटे वो भी नहीं होते। यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर, जहाँ घूमने के लिए अच्छी खासी जगहें होती हैं, ऐसे कितने ही उदाहरण मिल जाएँगे। 

इस किताब में writing पर भी कुछ है। तो मुझे तो लगता है की writing ज्यादातर ऐसे लोग करते हैं, जो शायद थोड़ा-सा ज्यादा महसूस करते हैं, किसी भी विषय पर। जिस किसी विषय पर आप जितना ज्यादा महसूस करते हैं, वो उतना ही ज्यादा आपको लिखने की तरफ खिंचता है। और अगर आपको रात को उठकर लिखने के दौरे पड़ रहे हैं, तो एक लेखक के तौर पर आप किन्हीं बेचैनी वाले विषयों पर पहुँच चुके हैं, जो आपको सोने तक नहीं देते। कई बार शायद ऐसे विषय, जिनके बारे में आपने शायद ही कभी सोचा होता है। जैसे कोरोना? और उस दौरान घटी घटनाएँ या दुर्घटनाएँ। 
Social Tales of Social Engineering जब आपको लोगों के साधारण से ज़िंदगी के रोज-रोज के घटनाक्रम कुछ और ही नज़र आने लगें। जैसे मानव रोबॉट कैसे बनते हैं या उनकी ट्रैनिंग गुप्त रुप से दुनियाँ भर में कैसे चल रही है? 
या शायद Bio Chem Physio Psycho and Electronic Warfare: Pros and Cons और आपको लगे, इंसान टेक्नोलॉजी के साथ-साथ किस हद तक निर्दयी और लालची हो रहा है।         

Saturday, March 1, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 45

 How ecosystem of any place develops with politics of that place? 

किसी भी जगह का इकोसिस्टम राजनीती के घटनाक्रमों या बदलावों के साथ कैसे बदलता है? आप जहाँ कहीं हैं, वहीँ से समझने की कोशिश करें, खासकर अगर उस जगह को थोड़ा बहुत समझते या जानते हैं तो। जैसे मैं अगर अपने गाँव की बात करूँ तो ये M प्रधान Madina दो पंचायतों का गाँव है। Madina A, Kaursan, K प्रधान है। और Madina-B, Gindhran, G प्रधान है। मगर M, K और G सिर्फ पहले अकसर हैं। इनके आगे जटिल कोड है। Madina हाईवे पर है और चारों तरफ अप्प्रोच रोड़ या कहो की गाँवों से घिरा है। ये अप्रोच रोड़ या गाँव उस तरफ की अलग सी कहानी या कोड हैं। जैसे हाईवे पर एक तरफ Kharkara और दूसरी तरफ Bahu Akbarpur. 

ऐसे ही जैसे अप्प्रोच रोड़, हाईवे के एक तरफ Bharan, Ajaib, तो दूसरी तरफ Mokhra. और भी अलग अलग दिशा में अलग अलग अप्रोच रोड़ या गाँव। किस गाँव की Proximity किस गाँव के किस हिस्से के करीब है? वो वहाँ का जटिल कोड है। उसी कोड में वहाँ की समस्याएँ या समाधान भी हैं। जैसे, आपके गाँव में हॉस्पिटल कहाँ-कहाँ हैं? प्राइवेट या सरकारी? किस तरफ हैं? किन गाँवों की तरफ या आसपास? आदमियों के या जानवरों के? वहाँ डॉक्टरों के नाम क्या हैं? या बाकी स्टाफ के? वहाँ आसपास दवाईयों की दुकानों के क्या नाम हैं और उन्हें चलाने वालों के? प्राइवेट डॉक्टर, डॉक्टर हैं या झोला छाप? ये जाते ही इंजेक्शन ठोकने वाले कौन हैं? और दवाई देने वाले कौन? या नाम मात्र दवाई दे काम चलाने वाले?

किसी खास बीमारी के डॉक्टर भी बैठते हैं आपके गाँव के किसी हिस्से में? या खास स्पेशलिटी के हॉस्पिटल? उस बीमारी के या स्पेसलिटी के डॉक्टर या हॉस्पिटल जहाँ वो हैं, वहीँ क्यों हैं? क्या खास है, उस जगह में? या कहो की वहाँ के कोड में? ये डॉक्टर या हॉस्पिटल कोई खास सर्टिफिकेट भी रखते हैं या कहाँ से सर्टिफाइड हैं? ये सब कोड है। ऐसे ही दवाईयों का कोड होता है। अलग-अलग जगह और अलग-अलग हॉस्पिटल या डॉक्टर का अलग-अलग कोड। ये कोड उनके किसी भी बीमारी के ईलाज के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं। 

जैसे मान लो आपने कहीं कोई ईलाज करवाया और उस हॉस्पिटल का सरकारी सर्टिफिकेशन नंबर है 1234abcd और जिस जगह वो है, उस जगह का नंबर जाट प्लॉट या राज प्लॉट या बनिया प्लॉट। उस हॉस्पिटल को घुम कर और कोड पढ़ने की कोशिश करो। पता चलेगा, पानी के गिलास पे ही चेन बंधी है। मतलब, पानी तक पर भारी भरकम टैक्स जैसे? ऐसे ही और भी कितनी ही मजेदार चीज़ें दिख सकती हैं। जैसे किसी मूवी में किन्हीं नर्स ने मरीज के साथ वालों को कॉउंटर से ढेर सारी दवाईयाँ या इंजेक्शन वगरैह लाने को बोला। और फिर उनमें से कुछ एक वो मरीज को देकर, बाकी आपकी जानकारी के बिना वहीँ कॉउंटर पर पहुँचा दें। सोचो, और कहीं कोई मीडिया आपको दिखा रहा हो, ऐसे होते हुए? फिर कहीं कोई खास कंपनी और नंबर वाली एम्बुलैंस, किसी खास डायग्नोस्टिक सेंटर तक पहुँचाए, क्यूँकि, उन टेस्टों की सुविधा उस अस्पताल में नहीं है। फिर वहाँ देखो छत पे चमकते चाँद सितारे, कह रहे हों जैसे, यहाँ सब मंगल-मंगल है? यही नहीं, और भी अनोखे किस्से-कहानी उस हॉस्पिटल की ईमारत में ही पढ़ या समझ सकते हैं। और वहाँ मरीजों का जो इलाज होगा, वो? वो भी किन्हीं खास कोड वाला ही होगा। और जरुरी नहीं, वहाँ के सब डॉक्टरों या स्टाफ को ऐसी कोई जानकारी तक हो। ये सिस्टम का ऑटोमेशन (automation) बताया। 

ऐसे ही दवाई बनाने वाली कंपनियों का होता है। और उनकी दवाई, उनसे मिलते जुलते कोड पर ही पहुँचती हैं। ये सब स्वास्थ्य बाजार है। जहाँ स्वास्थ्य मिलता कम है। मगर उससे खिलवाड़ या छेड़छाड़ ज्यादा होती है। 

ऐसे ही स्कूलों का है। कोई भी स्कूल किस जगह है? उसका नाम क्या है? उसको चलाने वाले कौन हैं? वो स्कूल किस सँस्थान से सर्टिफाइड है? उस का सर्टिफिकेशन नंबर या तारीख क्या है? उसमें कितने बच्चे और किस क्लास तक पढ़ते हैं? पढ़ाने वाले या स्टाफ कौन है? वो कौन सी कंपनी या लेखकों की किताबें पढ़ाते हैं? वो किताबें कितना सही या गलत पढ़ाती हैं? किताबें गलत भी पढ़ाती हैं? हाँ। क्यूँकि, उन्हें लिखने वाले इंसान हैं और उनके अपने मत हैं और बहुत से केसों में अलग अलग राजनितिक पार्टियों से संबंधित भी। अब जो खुद कम पढ़े लिखे हैं, उन्हें तो ये सब समझ ही नहीं आएगा। उन किताबों की कंपनियों या खुद किताबों के भी कोड हैं और जो सिलेबस बच्चे पढ़ते हैं, उसके भी। ये सब ऊप्पर से चलता है और स्कूलों तक के स्तर पर ऐसे ही इन राजनितिक पार्टियों का और बड़ी-बड़ी कंपनियों का बड़ा ही गुप्त सा कंट्रोल होता है। जो पढ़ाया जा रहा है, वो एक तरह की ट्रेनिंग है, किसी खास पार्टी या मत की। 

ऐसे ही जो आप खाते-पीते हैं, वो आपके शरीर की ट्रैनिंग है, जहाँ का खा-पी रहे हैं, वहाँ के स्तर के स्वास्थ्य या बिमारियों की। खाद पदार्थ या पानी, कहीं भी किस कोड के मिलते हैं, वो उस कोड के अनुसार, वहाँ की बिमारियों की अधिकता या कम होना बताते हैं। जैसे कहीं खाने-पीने के प्रदूषण की अधिकता की वजह से बिमारियाँ हैं। तो कहीं ज्यादा खाने-पीने और कम घूमने-फिरने की वजह से। खाने-पीने के प्रदूषण की वजह से ज्यादातर गरीबी का संकेत है। और ऐसी ही जगहों पे होती हैं। तो खाने-पीने की अधिकता या कम घूमना-फिरना, फलते-फूलते लोगों या घरों की? ऐसा ही कहते हैं ना? काफी हद तक सही भी? क्यूँकि, खाने पीने में प्रदूषण वाली जगहों पर मोटापा या इससे जुडी बीमारियाँ कम ही मिलेंगी। ऐसे ही मोटापा या इससे जुड़ी बीमारियाँ, ज्यादातर शहरों की तरफ ज्यादा। ज्यादातर, क्यूँकि, और भी बहुत से कारण होते हैं इसके साथ-साथ।  

इन्हीं कोडों के आसपास कहीं भी बाकी सब जीव-जंतु मिलते हैं। क्यूँकि, हर जीव किसी खास इकोसिस्टम में ही पनपता है या फलता-फूलता है। या ख़त्म हो जाता है। या संघर्ष करता नज़र आता है। जितना ज्यादा आपको कोई भी इकोसिस्टम समझ आना शुरु हो जाएगा, उतना ही ज्यादा उसकी खामियों का ईलाज भी। या बहुत जगह ईलाज आपके वश से बाहर के कारणों पर निर्भर करता है। तो ऐसे इकोसिस्टम से निकलना ही बेहतर होता है, बजाय की उससे झुझते रहने के। 

जैसे कई बार खास तरह के जीव जंतुओं को पालने वाले या पनपाने वाले कुछ खास घर या इंसान भी हो सकते हैं। जैसे कबूतर या मछली। जैसे चिड़ियों के लिए गर्मी में पानी रखने वाले खास विज्ञापन? या पुरानी चिड़ियों की जगह नई किस्म की चिड़ियों या पक्षियों या जानवरों का दिखना या किसी खास जगह से आना या कहीं जाना। ये अपने आप नहीं होता। किसी भी जगह के राजनितिक कोड के साथ ये भी जुड़ा है। एक ही जगह पर, एक घर से दूसरे घर की छतों पर अलग-अलग किस्म की चिड़ियों या पक्षियों का आना। ये इस पर निर्भर करता है, की उनके खाने के लिए वहाँ क्या खास है, जो साथ वाले घर या पड़ोस में ही नहीं है। या पक्षी कितना बड़ा या छोटा है? और किस तरह के वातावरण को ज्यादा सुरक्षित समझता है? जैसे छोटी चिड़ियाँ कहाँ आती हैं या कहाँ घोसले बनाती है? कौवे या नीलकंठ या मोर या बत्तख या गिद्ध कहाँ? हर जीव के लिए खाना, सुरक्षा और फलने-फूलने की जगहें महत्त्व रखती हैं। ये यहाँ से वहाँ जीवों को लाने या ले जाने वालों को अच्छे से पता होता है। कहीं का भी सिस्टम या इकोसिस्टम, ऐसी जानकारी रखने वाली ताकतें बनाती या बिगाड़ती हैं। और ये ज्यादातर आम जनता की जानकारी के बिना होता है। जितना ज्यादा इस जानकारी का दायरा बढ़ता जाता है, उतना ही ज्यादा वहाँ के जीवों पर कंट्रोल। इंसान उन्हीं जीवों में से एक है।    

कुछ-कुछ जैसे election और  delimitation? 

Friday, February 28, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 44

स्वस्थ जिंदगी (Healthy Life)

काफी वक़्त हो गया हैल्थ, एक्सरसाइज़ या डाइट पे कुछ नहीं लिखा? कोरोना खा गया ये सब? Resignation के बाद जब घर आई, तो बस इतना-सा ही ख्वाब था, एक Writing Hub, एक छोटी-सी किचन, मेरे छोटे-मोटे dietry experiments के लिए और घुमने या एक्सरसाइज़ के लिए हरा-भरा-सा लॉन? और उसपे एक छोटी-सी पोस्ट भी लिखी थी। मगर कहाँ पता था, की इधर खिसकाने वालों के इरादे कितने खतरनाक होंगे? वो तुम्हे एक जेल की सैर के बाद, दूसरी किसी और ही तरह की जेल की सैर पे भेज रहे हैं? वो हॉउस अरेस्ट टाइप, जो उस साढ़े तीन दिन के खास-म-खास जेल ट्रिप के दौरान ड्रामे के रुप में बताई थी? और तुम घर आ रहे थे, बचपन के स्वर्ग से सपने लेकर? 

मगर कोरोना ने सिर्फ ये सब नहीं खाया। उसने कुछ एक ब्लॉग्स, कुछ एक पत्रकार या सरकार के आलोचक भी खाए, जिन्हें आप पसंद करो या ना करो, मगर सिखने और जानने-समझने को काफी कुछ था, उनके सोशल प्रोफाइल्स पर या ब्लॉग्स पर। कुछ का समझ नहीं आया, की इन्होंने अपने ब्लॉग्स या सोशल प्रोफाइल्स पर ताले क्यों लगा लिए? और कुछ को कौन-से heart attack या हैल्थ प्रॉब्लम्स खा गई? वो सब सीधा-सीधा डराने के लिए भी था, की Campus Crime Series या Case Studies बंद। लिखना ही है तो और बहुत कुछ है तुम्हारे पास। नहीं तो अंजाम तुम्हारा भी ऐसा ही कुछ होगा। Campus Crime Series को बीच में ही रोकने की एक वजह, ये चेतावनियाँ भी रही। जब सिर्फ खुद की ज़िंदगी ही नहीं, बल्की, आसपास भी जैसे घुटता-सा या उठता नज़र आया । मगर ऐसा कुछ छोड़ा भी नहीं, जो बाहर आना चाहिए था और जैसे किसी कैद में था। क्या था वो? 

भारती-उजला केस?

Exams Fraud December 2019? और माँ का ऑपरेशन? 

और फिर? March 2020 कोरोना की शुरुआत?  

खैर। मेरे पास सच में उससे आगे भी काफी कुछ था, जो हर रोज आँखों के सामने घट रहा था या है। 

Social Tales of Social Engineering (Making of Human Robots) 

Bio Chem Physio Psycho and Electronic Warfare: Pros and Cons    

मगर ये सब जानना-समझना इतना भी आसान कहाँ था? अगर सच में कुछ बड़ी-बड़ी ताकतें, उन्हें यूँ मुझ तक किसी न किसी रुप में ना पहुँचाती तो? और शायद खुद राजनितिक पार्टियाँ भी? जैसे, एक-दूसरे के कारनामों को बताने या दिखाने की हौड़? जैसे सबकुछ सामने हो, और हम समझ ना पाएँ की सबकुछ कोड है। उन कोडों को समझने की कोशिश करो और परतें अपने आप खुलती जाएँगी? 

आज ये अचानक, फिर से कहाँ से आ गया? जानते हैं अगली पोस्ट में। 

Wednesday, February 26, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 43

कहानी और प्लॉट? 


At Par V IT amin या M U L TI VI T?

Vit या Vit A? या Multi V IT?  

छोटी-मोटी रोजमर्रा की दवाईयों या multivit जैसे, गोलियों या कैप्सूलों की कहानी और उनसे जुड़े अजीबोगरीब कारनामे किसी और पोस्ट में। अभी कहानी और प्लॉट के फर्क या हेदभेद को समझने की कोशिश करते हैं। 


आजु-बाजू? जैसे ईधर, उधर या किधर? 

इसे अपनी दोनों बाजुओं से समझें। आपके घर के दोनों तरफ मकान हैं। आजू भी और बाजू भी। या कहो की दाएँ भी और बाएँ भी। ये मकान जैसे आपकी बाजुएँ हैं। 

आमने-सामने? 

ऐसे जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान? या आगे जो भविष्य है? 

और पीछे?

जो पीछे रह गया? या आपका भूत जैसे? 

या कुछ लेना-देना है? किस तरह का सम्बन्ध है आपका, आपके आजू-बाजू से? आमने-सामने से? या पीछे वाले मकान या मकानों से? दुकान या दुकानों से? प्लॉट या प्लॉटों से? खेत या खलिहानों से? खाली पड़े प्लॉटों से या उनमें बनते हुए मकानों, बैठकों या जानवरों के रहने के घेरों से? सरकारी या प्राइवेट से? या किसी कोऑपरेटिव से?          

ऐसे ही जैसे, सारा समाज सिर्फ कुछ कोढ़ों की गिर्फत में। 

जिनमें सरकारी क्या और प्राइवेट क्या? 

शिक्षा क्या और स्वास्थ्य क्या? 

खेती क्या और व्यापारी क्या? 

बीमार क्या और बीमारी क्या? 

इलाज क्या और दवाई क्या?

हॉस्पिटल कौन-सा या ऑपरेशन क्या? 

ज़िंदगी क्या और मौत क्या?  

रिश्ते-नाते क्या?

शादी क्या और बच्चे क्या?

अड़ोस-पड़ोस क्या और गली मोहल्ला क्या?

सब समाया है।   

अपने इस आसपास या अड़ोस-पड़ोस को आप कितना जानते हैं? अड़ोस-पड़ोस छोड़िए। अपने घर में रह रहे सदस्यों को ही आप कितना जानते हैं? किसके साथ कितना वक़्त गुजारते हैं? आपकी ज़िंदगी भी उन्हीं के अनुसार होती जाएगी। अगर आप अपने घर से ज्यादा, बाहर वक़्त गुजारते हैं तो घर बिखरता जाएगा। या सम्बन्ध उतने मधुर नहीं होंगे। रिश्तों में खटास ज्यादा होगी। जिसका फायदा बाहर वालों को होगा। आपका घर बाहर वालों में बँटता जाएगा। और घर वाले अलग-थलग या ज्यादा खतरनाक केसों में ख़त्म होते जाएँगे।  

सचेत होने की जरुरत होती है, जब बाहर वाले अपनों के ही खिलाफ कुछ कहने लगें या भड़काने लगें। बाहर वालों की बजाय, हकीकत अपने घर वाले इंसान से ही जानने की कोशिश करो। कहीं हकीकत कुछ और ही ना मिले। और बाहर वाले तुम्हारा नुकसान कर अपना ही कोई स्वार्थ साधने में लगे हुए हों। आपको किसी अपने के ही खिलाफ भड़काकर और उस अपने को शायद आपके खिलाफ?   

यही आसपास या अड़ोस-पड़ोस या गली-मौहल्ले पर भी लागू होता है। 

ABCDs of Views and Counterviews? 42

हमारे सिस्टम में इंसान एक प्रॉपर्टी है? 

और सारा खेल बड़ी-बड़ी कंपनियों और दुनियाँ भर की सरकारों वाली कुर्सियों की मार धाड़ का है? या इससे ज्यादा भी कुछ है? जानने की कोशिश करें?

2010 मनमोहन सिंह PM, कांग्रेस आई थी, किसी काँड के बाद?

2013? अरविन्द केजरीवाल? दिल्ली CM?

2014 मोदी PM? और फिर से अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली CM?   

 

 2014? कोई मीटिंग शायद? 

At Par? ये क्या बला है? 

SFS Self Financing Scheme, Government Service के equal, बराबर, जब तक वो डिपार्टमेंट है। उस वक़्त आप उससे आगे कुछ नहीं जानते। क्यूँकि, ऑफिसियल, मतलब ऑफिसियल। वो सब भला पर्सनल ज़िंदगी को कैसे प्रभावित कर सकता है?

20 18 और कोढों की भरमार जैसे। 

20 19, पर्सनल कुछ नहीं। सब में राजनीती और सब राजनीती के बनाए सिस्टम का। क्या जीव, क्या निर्जीव। आदमी भी, उसी सिस्टम की प्रॉपर्टी। 

प्रॉपर्टी? इंसान किसी की प्रॉपर्टी?

2020 Election Bonds और अलग-अलग पार्टियों की अलग-अलग फंडिंग। 

मतलब? अब ये क्या बला है? 

जैसे "Service Bonds" किसी सर्विस के बदले, सर्व कर रहे हैं आप किसी को। 

जब ज्वाइन किया तो क्या था?

बाद में भी उसे बदला जा सकता है? 

क्या? सच में इतना आसान है? 

सीधे नहीं, थोड़े टेड़े रस्तों से। 

क्रोनोलॉजी (Chronology) 

2008, ढेरों सर्विस या जॉइनिंग 

2010, फिर थोड़ी कम 

 2012, और कम 

2014? और?   

सरकारों के बदलावों को समझो। 

क्या है जो Trading या Optional है? और क्या है जो दूरगामी और sustainable? जैसे एक ही शब्द के अनेक अर्थ या शायद अनर्थ भी? 

 जैसे Ben बेन? 

Sister बहन?

मतलब एक ही? बराबर? 

या शायद कुछ-कुछ ऐसे?

जैसे बाई B AI और BH AI Y? 

गूगल से इस बारे में AI ज्ञान लें?

किसी और सर्च इंजन की AI का ज्ञान, शायद किन्ही और शब्दों में या अर्थों में मिलेगा?
आप Co Pilot या कोई और प्रयोग कर देख सकते हैं। 

सुना है, सर्विस और सर्व करने का सिलसिला, किसी न किसी रुप में, सदियों से ऐसे ही चलता आ रहा है? जहाँ मध्यम वर्ग या समाज का नीचे का तबका, हमेशा बड़े लोगों का सेवक बनकर रहा है। और बड़े लोग हमेशा शोषक। और जब तक ये मध्यम या समाज का नीचला तबका, वक़्त के साथ, वक़्त के बदलते रंग-रुपों को पढ़ेगा या समझेगा नहीं, तब तक ऐसे ही इन कुर्सियों को सलाम ठोकता रहेगा और शोषित होता रहेगा। 

Saturday, February 22, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 41

आप कोई पेपर, डॉक्यूमेंट या शायद ऐसा-सा ही कुछ कॉपी कर रहे हैं। शायद ईमेल सेव करने के लिए या एक-आध पोस्ट करने के लिए? मगर कलाकार फ़ोन ही नॉन फंक्शनल कर देते हैं। आप फिर से कॉपी करते हैं और फिर से ऐसा कुछ। क्यों? ऐसा तो कुछ खास भी नहीं उनमें। ये कुछ एक महीनों पहले की बात है। एक-आध, इधर-उधर के पत्र या ग्रीटिंग या ऐसा-सा ही कोई किसी मैगज़ीन का हिस्सा? ये भी किसी के लिए अड़चन हो सकता है? या इतना अहम, की वो उन्हें सॉफ्ट कॉपी ही ना बनाने दें? ऐसा क्या है उनमें?  

इलेक्शन जाने दे, फिर कर लियो। कहीं हिंट जैसे कोई। क्यों? इनका किसी इलेक्शन से क्या लेना-देना? समझ से बाहर? खैर। उसके बाद उनकी कुछ कॉपियाँ यहाँ मिलती हैं और कुछ वहाँ। जाने कहाँ-कहाँ? अब रोकने वाले तैयार बैठे हैं, तो रुकावट है, रुकावट है, को बताने वाले भी। और उस रुकावट वाले जोन में घुसपैठ कर, उन्हें रुकावट से बाहर रखने वाले भी? मज़ेदार दुनियाँ है ये, अजीबोगरीब मारधाड़ वाली? खैर। आप आराम से बैठते हैं की चलो इतनी भी रुकावट नहीं है। हो जाने दो इलेक्शन। और उसके बाद कोई एक पत्र किसी पोस्ट का हिस्सा बनता है। 

उन्हीं में कुछ और भी है, जो बाहर निकलता है। वो भोले-भाले, नए-नए कॉलेज के दिनों के उस ज़माने के बच्चों का है। कॉलेज स्तर पे बच्चे? हाँ। कुछ-कुछ ऐसा ही। यूँ लगता है, टेक्नोलॉजी ने बहुत कुछ बदल दिया है। यही जनरेशन गैप है। मंदिर-मस्जिद से परे, रंगभेद या जातपात से परे, कब और कैसे, ये इतने धर्मान्दी या उमादि हो गए लोग? राजनीती और टेक्नोलॉजी? हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा, वाले लोग? या इंसान से शैतान? मगर कैसे? राजनीती? पता नहीं। मगर दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के बारे में कुछ एक विडियो देखे तो लगा, ये रिप्रजेंटेशन उन लोगों की तो नहीं शायद, जिन्हे ये दिखाना या बताना चाह रहे हैं? राजनीती की कुर्सियों के ये मालिक, कोई और ही हैं। वैसे ही जैसे, हर इंसान अनौखा है और हर इंसान की अपनी अलग पहचान और अलग ही कहानी। उन्हें किसी और में देखना ही, उस इंसान का अपना अस्तित्व या पहचान दाँव पर लगाने जैसा है। आपको क्या लगता है?  

Views और Counterviews का फायदा ही ये है की आप सिर्फ अपने विचार नहीं रख रहे, बल्की, इधर-उधर के विडियो, या विचारों या किस्से कहानियों को भी रख रहे हैं। जरुरी नहीं ये पोस्ट लिखने वाला या आप उनसे सहमत हों। क्यूँकि, किसी को भी एक साँचे में नहीं रखा जा सकता। हर किसी का अपना मत है और अपने विचार। बस, उन्हें किसी और पे जबरदस्ती थोंपने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। रौचक तथ्य ये, की जहाँ कहीं जबरदस्ती थोंपने की कोशिशें होती हैं, तो वो बिमारियों और हादसों के कारण होते हैं। उसकी सामान्तर घड़ाईयाँ जाने फिर कहाँ-कहाँ चलती हैं। जिस किसी समाज में ये जबरदस्ती थोंपने का चलन ज्यादा है, वहीँ लोगों को बिमारियाँ भी ज्यादा हैं और दूसरी तरह की समस्याएँ भी। आगे किसी पोस्ट में इन्हें कोड से जानने की कोशिश करेंगे। आपका कोड क्या है और आपपे क्या थोंपने की कोशिश है? वो थोंपने की कोशिश या थोंपना ही जहाँ कहीं आप हैं, वहाँ उस सिस्टम के अनुसार बीमारी का कोड है? बाकी जानकार ज्यादा बता सकते हैं। 

ABCDs of Views and Counterviews? 40

The art and craft or graft (?) of making parallel cases in society

समाज में सामान्तर घड़ाईयोँ की कला 

22 02 2025 (सुबह)

DL 1C .. W .... सफ़ेद रंग ब्लाह ब्लाह कंपनी 

एक दिन पीछे चलते हैं 

21 02 2025 

ये डॉक्युमेंट्स चैक करो और ये ये करो 

ये क्या है? भेझा फ्राई जैसे? ये तो मैं कर चुकी, एक्सपेरिमेंटल।  Scale up वालों ने विज्ञापन दे दे के जैसे भेझा ख़राब कर रखा था। सोचा, ऐसा है तो try ही कर ले। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? ऑनलाइन क्या हो सकता है? हाँ! ऑफलाइन तो बहुत कुछ हो सकता है। 

ऑनलाइन क्या हो सकता है? 

ऑनलाइन बहुत कुछ हो सकता है। आप हकीकत की दुनियाँ के मंदिर को मस्जिद और फिर डालमियाँ विभाग तक पहुँचा सकते हैं। सिर्फ आप? या?

या बहुत बड़ा प्र्शन है।  

चलो पहुँच गए मंदिर से डालमियाँ विभाग। रिवर्स इंजीनियरिंग फिर से करने में कितना वक़्त लगेगा? करके देखें?

हो तो जाएगी, मगर वक़्त और संसाधनों का कितना प्रयोग या दुरुपयोग होगा? खासकर, एक ऐसे जहाँ में जहाँ कितनी ही ज़िंदगियाँ आसपास ही नहीं, बल्की दुनियाँ के दूसरे कोने में भी लटके-झटके खाती हैं। दुनियाँ के दूसरे कोने पे किसी और पोस्ट में, आसपास क्या चला इस दौरान? या चल रहा है?

कहीं एक नन्हा-मुन्ना सा आया दुनियाँ में। इतने कम वक़्त में सिस्टम ने अगर उस घर से वक़्त से पहले दो लोगों को खाकर, एक दे दिया, तो क्या अहसान है? अगर सिस्टम की जानकारी होती तो वो दो भी ना जाते? जैसे बाकी और घरों में। कहीं-कहीं थोड़ी बहुत भरपाई होती है, मगर कहीं-कहीं? ये भी सिस्टम बताता है? वैसे हम इसे भरपाई कह सकते हैं क्या? No offence to female brigade. क्यूँकि, हमारे यहाँ उनकी गिनती ही नहीं होती शायद? मगर इस सबसे दूर क्या चला, वो शायद यहाँ लोगो को मालूम नहीं होता। कौन-सी पीढ़ी के, कौन से रोबॉट वाली, किस कँपनी की मोहर ठोक चुका ये सिस्टम? क्या खास है, दुनियाँ की हर पैदाइश ऐसे ही है। ऐसे ही और भी सामान्तर किस्से-कहानियाँ हैं, जहाँ पता ही नहीं, क्या-क्या खा गया ये सिस्टम। इसलिए बार-बार कहा जा रहा है, की सिस्टम को जानना और समझना जरुरी है।  

ऐसे ही आसपास कुछ और हेरफेर या बदलाव हुए। सिस्टम के धकाए बिना जो संभव ही नहीं। उनपे आएँगे किसी और पोस्ट में। 

एक तरफ कुछ और भी चल रहा है। ये क्या है? P. S.  ब्लाह ब्लाह इनफोर्स्मेंट? एक तरफ कहीं कोई नई सरकार, उनकी कैबिनेट मीटींग, कुछ फैसले और कहीं कोई ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स। और दूसरी तरफ? कहीं कोई खास-म-खास फ़ोन? Court और Divorce? इससे पहले भी आसपास जितने रिश्तों की सिलाई, बुनाई, या तोड़फोड़ चली, उनकी भी कहानी यही है। उसके साथ-साथ, रोज-रोज के छोटे-मोटे ड्रामे तो चलते ही रहते हैं।

इन सबकी खबर ज्यादातर पत्रकारों को रहती है। राजनितिक पार्टियों को नहीं? वो तो ये सब दाँव खेलते हैं, डाटा कलेक्टर्स और डाटा और सर्विलांस अबूसेर्स के साथ मिलकर। बीच की सुरँगे छोटी-मोटी नौटंकियोँ का हिस्सा होती हैं, बिना ये जाने की इसमें तुम्हारा कितना नुकसान या फायदा है। राजनितिक पार्टियों को पता होता है, की ये सामान्तर घड़ाई वाले पीसेंगे बीच में। जैसे दो पाटों के बीच गेहूँ या दो सांड़ों के बीच झाड़। मगर, उन्हें इससे क्या फर्क पड़ता है? और वो इसकी जानकारी इन लोगों को क्यों होने देंगे? ऐसा हो गया तो उनका ये भद्दा, बेहुदा और खूँखार खेल ख़त्म। इस खेल का बहुत बड़ा हिस्सा आपके दिमाग से जुड़ा है। आप अपने दिमाग को कितना चला रहे हैं या सुला रहे हैं? और बाहर से वो कितना और कैसे-कैसे कंट्रोल हो रहा है? राजनीती और इन बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा? आज के समाज का सारा खेल यही है। 

रिवर्स इंजीनियरिंग बड़ा ही रौचक विषय है। जानने की कोशिश करें, थोड़ा इसके बारे में? 

Thursday, February 20, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 39

Series Across Generations?

 कौन-सी जनरेशन से हैं आप?

रोबोट्स की या मशीन की, कौन-सी सीरीज या कंपनी (राजनितिक पार्टी) की?

अब मशीनों या रोबोट्स की तो जनरेशन होती हैं और सीरीज भी। आदमियों की? 

आज ही कहीं सुना की मैं Line वाली सीरीज से हूँ। 

Line? क्यों deadline से अभी भी पीछा नहीं छूटा? घर पे बैठके भी deadline, deadline चल रहा है? तो कोई ऑफिस ही ज्वाइन करले। 

अबे ऑफिसियल ही तो Daedline, Deadline चलता है। वहॉँ कौन-सा KBC चल रहा होता है, जो Lifeline चलेगी?

वैसे ये KBC कब शुरु हुआ था? Yours Lifeline के वक़्त?

ये दिल्ली में कौन-सी Line आ गई आज? 

Wednesday, February 19, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 29

ब्लाह भाई यो किसा खेल, "दिखाणा सै, बताना नहीं"? यो तो भुण्डा, अर फूहड़ सॉंग लाग्या। कोए बात होई, या गोली ले, अर बारिश सुरु? या ले, अर पीरियड शुरु? या ले, अर दर्द शुरु? दर्द होए पाछैय, आदमी कित जागा? जै डॉक्टर धोरै ना जागा तै? अर वें कसाई फेर कमई करो उह आदमी गेल? यो तो भोत भुँडी दुनियाँ। पहलयॉँ नूं कहा करते, अक साच वो हो सै, जो आपणी आँख्या देखा अर आपणे काना सुना। यूँ तै जो दिखअ सै, अर सुनै सै, वो भी के बेरा कितणा साच सै? 

महारे बावली बुचो, अक भोले आदमियों? ये तै ABCD सैं, इस खेल की, थारे जीसां नै समझाण खातर। घणे शयाणे, घणे पढ़े-लिखे, अर कढ़े आदमियाँ धौरे तै, आदमियाँ नै मानव रोबॉट क्यूकर बणाया करै, वा भी कला है। अर रोज दुनियाँ का कितना बड़ा हिस्सा बन रया सै। जिसमैं जरुरी ना कम पढ़े लिखे ए हों। आच्छे खासे पढ़े-लिखे भी रोज बणअ सैं। म्हारे सिस्टम का या समाज का कितना बड़ा हिस्सा ऑटोमेशन पे है। मतलब, एक बार जो मशीन में फीड कर दिया, उड़ै तहि का काम आपणै आप होवैगा। बस वो सेटिंग करणी सैं। अर वो भी दूर बैठे रिमोट कण्ट्रोल सी दुनिया के किसी हिस्से से कर दो। समाज को कण्ट्रोल करने का जो मैन्युअल हिस्सा है, उस खातर इन राजनितिक पार्टियों की सुरँगे हैं। 

जुकर कोए कह विजय मोदी का साला लाग्य सै। विजय भी भड़क जागी, अक बतमीज़ां नै बोलण की तमीज ना सै। उसने के बेरा इसा भी कोय मोदी उसके आसपास अ हो सकै सै। फेर बेरा पाट्य यो विजय तो लड़का था, ना की लड़की। और वो विजय काफी धार्मिक इंसान भी बताया। यूँ अ और भी विजय नाम गिणां जांगे, वो भी लड़के। या शायद एक आध लड़की भी। और उनकी अजीबोगरीब कहाणी भी सुणा देंगे। यहाँ तक कुछ नहीं समझ आता, की लोगबाग इतना क्यूँ खामखाँ फेंकम-फेंक लाग रे सैं? 

थोड़ा बहुत समझ आएगा, जब उन कहानियों को थोड़ा और जानने की कोशिश करोगे। ऐसे ही जैसे, किसी भी और नाम की कहानी। जैसे ये मंजू यहाँ, वो मंजू वहाँ और वो मंजू वहाँ। देस के इस कोने से दुनियाँ के उस कोने तक। कुछ भी नहीं मिलता और जैसे मिलता भी है? कोढों के अनुसार? और ऐसे ही उनकी ज़िंदगी की कहानियों के उतार-चढाव। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे किसी भी बीमारी के उतार-चढाव? अलग-अलग रंग की गोटियाँ जैसे? मगर, जिनके रंग और उनको चलाने के तरीके सिर्फ इन राजनितिक पार्टियों या डाटा इक्क्ठ्ठा करने वाली कंपनियों को पता हैं। मतलब, ये आपका डाटा आपकी जानकारी के बिना पैदाइशी ही इक्क्ठ्ठा करना शुरु कर देते हैं। और फिर उस डाटा को अपने बनाए प्रोग्राम्स के अनुसार चलाते हैं। वो सब भी आपकी जानकारी के बिना। इस सबमें आपकी IDs बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। 

यूँ तै कब कोण पैदा कराणा सै अर कब बीमार, अर कब मारणा सै, वो भी इनके कब्जे मैं?

वही तो मैंने कहा। यही नहीं। कब किसी की शादी करवानी सै और किससे? और कब तुडवाणी सै? किसके, कितने बच्चे पैदा होने देने सैं और किसके किस तरह की बीमारी या एक्सीडेंट कहाँ-कहाँ करने सैं। फेर उनके सामान्तर भी घडणे सैं। अब ये सामान्तर अच्छे हैं, तो, तो सही। मगर अगर ये सामान्तर घढ़ाईयाँ बूरे वाली घडणी सैं तो? जिनके घड़ी जाएँगी, उनका नाश। और इससे इन राजनितिक पार्टियों को धेला फर्क नहीं पड़ता। इसलिए दुनियाँ के इस साँग या अजीबोगरीब रंगमंच और इसे चलाने वालों के बारे में थोड़ा बहुत तो जानना जरुरी सै। 

Tuesday, February 18, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 38

Weather manipulation and human behaviour or physiological or psychological manipulations, one and same thing?

आज के वक़्त में कृत्रिम बारिश, ओले, बर्फ गिरना या आँधी, तुफान, छोटे-मोटे भूकंप, चक्रवात, या बाढ़ लाना, कितना मुश्किल या आसान है?    

और इंसान या अन्य जीवों की फिजियोलॉजी को बदलना?

सिर्फ बारिश चाहिए? ये गोली?

पीरियड्स चाहिएँ? ये गोली?

कम या ज्यादा चाहिएँ? सँख्या बढ़ा दो?

बच्चे के पैदा होने से पहले का सीन या दर्द दिखाना है? ये गोली?

उसे पथ्थरी बता दो? किसे पता चलेगा? 

जब खेल ही दिखाना है, बताना नहीं? 


ऐसे ही कोई भी बीमारी दिखा सकते हैं? सिर्फ दिखा सकते हैं? या कर भी सकते हैं? सिर्फ कर सकते हैं या ना होते हुए भी ऐसी रिपोर्ट दे सकते हैं? किसे पता चलना हैं? ऐसे में ऑपरेशन करना कितनी बड़ी बात है? और दुनियाँ से ही चलता करना? कहीं न कहीं हर रोज हो रहा है?   

और आपको ये सब कोरोना के वक़्त कुछ-कुछ समझ आए, की ये लोगों के साथ हो क्या रहा है? और कैसे? उसके बाद जब घर आकर रहना शुरु किया, तो जैसे रोज ही पागलपन के दौरे तो नहीं पड़े हुए, ये सब करने वालों को? आदमियों को बक्श रहे थे ना जानवरों को। पक्षियोँ के कारनामे तो अभी तक जैसे, यकीं करने लायक नहीं। हाँ, पौधों के जरिए जरुर थोड़ा बेहतर समझा जा सकता है। जैसे poppy यूनिवर्सिटी में कब और कहाँ-कहाँ दिखने लगा? उसे पहली बार यहाँ गाँव में कहाँ देखा? ऐसे ही जैसे धतुरा और कितने ही पौधे, ईधर आते हुए और फिर जाने किधर जाते हुए या बिखरते हुए?    

मानव रोबॉट लिखना मैंने कोरोना के बाद ही शुरु किया था। आसपास लोगों का थोड़ा अजीब-सा व्यवहार जानकार या समझकर। या शायद उनकी ज़िंदगियों के अजीबोगरीब किस्से-कहानी जानकार। जिसमें आपको समझ तो आता है, मगर, इतने सारे प्रूफ कहाँ से और कैसे लाओगे? और जैसे वो ऑनलाइन हिंट्स वाले प्रूफ भी देने लगे? जैसे कह रहे हों, ले प्रूफ, रख ऑनलाइन? या शायद, क्या कर लोगे ऑनलाइन रखकर भी? अगर ये सब ब्लॉक नहीं हो रहा होगा, तो कुछ न कुछ तो आम लोगों तक भी पहुँचेगा ही। यही बहुत है शायद, एक इंसान के लिए तो।