Tuesday, November 11, 2025

Modren Warfare, Pros and Cons 16

उन दिनों पैनड्राइव बड़ी गुल होती थी। कभी एयरपोर्ट से, तो कभी बैग से और कभी-कभी तो घर की स्टडी टेबल तक से। और मुझे लगता था, की ऐसे ही कहीं गिर गई होगी। फिर एक दिन घर पर (H # 16, Type-3) कुछ हुआ मिला लैपटॉप के साथ। घर को देखकर ऐसा लगा, जैसे कोई घुसा हो। कुछ एक चीज़ें वहाँ नहीं थी, जहाँ वो अकसर होती थी। कुछ एक collegues को साथ लेकर VC को शिकायत की और सुनने को मिला, "भूत आ गए होंगे, हवन करा लो"। "कल को तुम कहोगे मुझे अपने लैपटॉप पर ख़ून के छींटे पड़े मिले"। और ब्लाह, ब्लाह। और आप सोचें, ये इंसान सच में VC है क्या? कहाँ से उठकर आया है? 2012 या 2013, कब की बात है ये? एक अरसा हो गया जैसे। उसके बाद तो पता ही नहीं, और क्या कुछ देखा, सुना या समझ आया। वो दुनियाँ ही कोई और थी। 

जब गाँव आई, तो बहुत सी चीज़ें या कहो की ड्रामे जैसे अपने आपको उस वक़्त के आसपास दोहरा रहे थे। और आपको लगे, ये सच में कितने बच्चे हैं या कहो की अनभिज्ञ हैं। दुनियाँ वहाँ से कहाँ जा चुकी? अब कितना कुछ, कितना खुले आम पढ़ने, देखने और सुनने को मिल रहा है। मगर इनके जैसे आँख, कान और दिमाग आज तक भी सब बँध हैं। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, कहीं कोई पत्रकार लिखे की "बिहार में कुछ खास नहीं बदलता, बस वहाँ की राजनीती बदलती है"। ये बिहार शायद हर वो तबका या समाज है, जो आज भी उतना शिक्षित नहीं है, जितना उसे होना चाहिए। और ऐसी जगहों की राजनीती ऐसा चाहती भी नहीं। नहीं तो फिर वो चोर-उचक्के ना बनाएँ। सुबह-सुबह उठते ही जैसे मुँह हग दौरे (गाली गलौच) ना बने। बिन सोचे समझे दिमाग की बजाय हाथ, पैर उठाने या चलाने वाले ना बनाएँ। फिर लाठी, डंडा, गोली बुल्लेट तो बहुत दूर की बला हैं। कितना आसान होता है ऐसे कमजोर, असुरक्षित और दिमाग से पैदल लोगों को अपने अनुसार घड़ना। Human Robotics के सबसे आसान दाँव-पेंच शायद ऐसी जगहों पर, सबसे आसानी से समझ आते हैं? 

सोचो, बिमारियों की घड़ाई भी इतनी ही आसान हो? और मौतों की भी कहानियाँ ऐसी-सी ही? इसका मतलब?

जिन्हें ये घड़ाईयाँ इतनी आसानी से आती हैं, उनके पास इन बिमारियों के ईलाज भी इतने ही आसान से हैं? शायद हाँ? और शायद ना? निर्भर करता है, की ऐसा जानने वाले उस इंसान के सिस्टम या आसपास के माहौल को कितना बदल पाते हैं। और उस इंसान की बिमारी की स्टेज या उम्र क्या है। भला किसी आम इंसान के लिए इतना कौन करेगा? या करेंगे? हाँ, population level पर जरुर, ऐसा चाहने या करने वाले लोगों का असर हो सकता है। 

Modren Warfare, Pros and Cons 15

Lock and Key Hypothesis and Human Robotics?


Broken locks and missing keys? Including password diary? With time, it became so common, like it doesn't matter. To some extent, I knew who and who did and when and why. I got clues here or there. 

Criminal minds used even kids in such things. Or should say abused? At tims, I willingly left some things open, just to check. With time, it became like, what's there so precious that you cannot get back? Or really these things are so important? But for whom? And why? We store or keep things certain way and most of times such people do not know about that. Even after so much surveillance? Or maybe they don't even care to put back things same way. It was interesting to know.

There are locks and keys in certain behaviour of people?

In creation of certain behaviours in people? 

In peace

In chaos

In directing and editing people's language, mood, what they talk. What they wear. 

In aggression

In normal behavior

In adultaion

In love

Name any behavior and these designers are able to simulate that in their desired coded people? Looking like too scifi? But it's happening in our real world, worldwide.

Depends a lot on what they listen, what they hear. What they watch and how they absorb subtle clues from surrounding. Just like food. Depends what they have been shown or allowed to listen and what had been hidden from them.

Can this lock and key hypothesis work the same way as a blacksmith?

Rather even beyond that? Like enzyme substrate model?

Monday, November 10, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 27

 लड़कियों के ज़मीनी अधिकार 

ज़मीनी ही क्यों? लड़कियों के प्रॉपर्टी के अधिकार लिखना चाहिए। वो फिर चाहे कैसी भी प्रॉपर्टी क्यों ना हो।  

वक़्त आपको काफी कुछ सिखाता है। बुरा वक़्त भी और भला वक़्त भी। कुछ ऐसा, जो सिर्फ वही वक़्त सिखा सकता है। ना कोई इंसान और ना ही कोई शिक्षक। एक ऐसा इंसान, जो अभी कुछ महीने तक भी कह रहा हो की मैं, मैं भला यहाँ ज़मीन का क्या करुँगी? और फिर, इतनी है ही कहाँ, जिसके लिए बँटवारा हो? अचानक से बदल जाता है? नहीं अचानक से नहीं शायद? काफी कुछ देखने, भुगतने और सुनने के बाद? खासकर, जब किसी ख़ूनी स्कूल को उस ज़मीन पर अपने पैर पसारते देखता है? और वो भी कैसे? धोखे से? चालबाज़ी से? कैसे-कैसे घिनौने हथकंडों से? वो ख़ूनी स्कूल जो जाने कहाँ कहाँ रिस्वत देकर आगे बढ़ा है। सिर्फ रिस्वत देकर? या दादागिरी और गुंडागिरी से भी? लिखना चाहिए की हर तरह के हथकंडे अपना कर। 

चलो छुटभैईयों को तो नहीं मालूम की लड़कियों के कोई ज़मीनी अधिकार भी होते हैं? वो तो कम पढ़े लिखे या गँवार हैं? जो पिछले 25 साल से एक स्कूल चला रहे हैं, क्या उन्हें भी नहीं मालूम की लड़कियों के पैदाइशी ही कोई ज़मीनी अधिकार होते हैं? इतने भोले और शरीफ़ हैं वो?

तो कोर्ट उन शरीफ़ों को ये बताने का काम करेंगे क्या?  

efiling services for litigants?

online courts?

या 

Virtual Courts?  

अगर ये ऑनलाइन हैं तो कम से कम ज़मीन का डाटा भी इनके पास ऑनलाइन ही होगा? नहीं होगा तो एक ईमेल से concerned department को ईमेल करने पर वो मिल सकता है। कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। हम जैसों को भी अगर ऐसी कोई ईमेल सुविधा मिल जाए तो अच्छा हो। क्यूँकि जमाबंदी वाली वेबसाइट लेटेस्ट डाटा नहीं निकाल रही। 2021 तक का ऑनलाइन दिखा रही है और उसको भी देने में आना कानी। अब वो आना कानी जो मेरे लैपटॉप को अपने कब्ज़े में रखते हैं, उनकी वज़ह से है या उस वेबसाइट की ही दिक़्क़त है? ये भी ऑनलाइन कोर्ट्स को ज्यादा मालूम होगा। क्यूँकि, उनके पास ऐसा जानने के सँसाधन हैं। 

तो इतने छोटे से काम के लिए किसी भी शिकायत कर्ता को, शायद वकील की जरुरत नहीं होनी चाहिए। जब सारा डाटा ऑनलाइन है, तो ये तो ऑनलाइन ही पता चल जाएगा, की किसी भी परिवार में कितने सदस्य हैं और उनकी कितनी ज़मीन और कहाँ-कहाँ है। और किसके नाम कितनी होनी चाहिए। ऑनलाइन ही वो बाँट दी जाए और ऑनलाइन ही उसके पेपर मिल जाएँ। नहीं तो पटवारी संसाधनों वालों के चककरों में आकर, थोड़ा बहुत खुद खाकर, किसी और की ज़मीन किसी के नाम किए मिलेंगे और फिर उसे ठीक करवाने के चक्कर में, यही संसाधनों वाले बाकी ज़मीन को भी अपने नाम धरे मिलेंगे। उस लड़की तक की जो लिखित तक में कह चुकी हो की नहीं बेच रहे हैं। ये कहकर की तेरे तो नाम ही नहीं है। कल को ऐसे लोगों को कोई ऐसा भी फरहा दिखा सकता है की लड़की को हमने खरीदा हुआ है और बेच रहे हैं। खरीद लेंगे ये उसे, और कह देंगे की तुम तो तुम्हारे नाम ही नहीं हो। बेहुदा और घटिया किस्म के गुंडे जो ठहरे?

और यहाँ तो मसला सिर्फ मेरे नाम की ज़मीन का ही नहीं है। 

बल्की, उस पियक्कड़ की ज़मीन का भी है, जो आजकल सुना है, किसी बिहारी इलेक्शन में कोई खास भूमिका, किसी खास पार्टी की Dal housie  में निभा रहा है? अब ये किसके और कैसे कोड हैं, ये भी इन कोर्ट्स को ही ज्यादा पता होंगे। अब ये गुप्त सुरँगे, उसे सही सलामत वापस घर पहुँचायेंगे या इनके अगले काँड का वक़्त हो गया है? 

और उस लड़की के भी हक़ का सवाल है, जिसकी माँ के दुनियाँ छोड़ते ही ये ज़मीनी हेरफेर वाला काँड रचा गया। अभी वो नाबालिक सही, मगर कोई सेफ्टी तो उसे भी चाहिए, बाप के ज़मीनी अधिकार से। ये गुपचुप छुपे तरीके से वो भी स्टेकहोल्डर्स से, ज़मीनों के धंधे करने वालों को कोई तो मैसेज जाए, की बहुत हो चुका। अब और दादागिरी नहीं।  

Modern Warfare, Pros and Cons 14

Matrix? Your Vs  Their? 

Media is matrix?

Your matrix and their matrix?

Your matrix culture and their matrix culture?

सोचो कोई राजनीतिक पार्टी, कोई मैट्रिक्स तैयार कर रही है "बहनचो मैट्रिक्स"। नाम ही कितना गंदा है ना? किसी भद्दी गाली के जैसा? आपकी नज़र में है क्या ऐसी कोई पार्टी?

सुना है, वो ऐसा कुछ 2000 या शायद उससे भी पहले से कर रहे हैं? सच में? अगर सच में हाँ, तो क्या राजनीतिक पार्टियों के पास कोई ढंग के मुद्दे नहीं हैं क्या? 

सुना है की एक मूवी आई थी 2000 के आसपास, उसमें एक भारतीय दम्पति ने अपनी बच्ची को सती कर दिया। क्या? और ये बच्चियों को सती करने की परम्परा आज तक कायम है? पता नहीं। वो जानने के लिए 2021 की मैट्रिक्स देखनी पड़ेगी। 

आप सच की राजनीती के बारे में ऐसा सोचने लगे थे? नहीं, नहीं, मैं तो मैट्रिक्स मूवी की बात कर रही थी। Hollywood SciFi मूवी की एक सीरीज है। मूवी का सब हकीकत थोड़े ही होता है?

वैसे 2000 के आसपास ऐसा कुछ तो हुआ था, की किसी ने किसी भाई को बोला, I like blah, blah person. और वो so called भाई, थोड़ा उखड़ गया हो? जैसे, यही मिला पसंद करने को? और कुछ नहीं है आसपास? खैर! वो बच्चों के से वक़्त थे। आज की तरह hifi नहीं। हाँ। कोई Hi5 सोशल साइट जरुर आई थी, चिरकुट और फेसबुक से भी पहले? अब 2000 या 2005 की बातों के 2025 में भला क्या मायने हो सकते हैं? 

मगर सुना है, की राजनीतिक पार्टियाँ लोगों पर पैदाइशी ही स्टीकर चिपकाने के काम करती हैं? सच में? अब ये तो खुद राजनीतिक पार्टियाँ ही बता सकती हैं?

राजनीतिक पार्टियों ने so called intelligentia के साथ मिलकर, दुनियाँ भर में एक ऐसा सिस्टम बनाया हुआ है, जो इनके बनाए stickers को आपकी IDs के रुप में हर जगह, हर कदम और हर वक़्त साथ लेकर चलता है। कहाँ पर, कैसी पार्टी सत्ता में है, उसके अनुसार आप इन स्टीकरों की मार को झेलते हैं। वैसे सुना है, सत्ता के इलावा भी दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ और उनका intelligentia, सत्ता से बाहर होने के बावजूद अपना असर रखता है। उसको समझने के लिए किसी भी तरह का मीडिया अहम भुमिका निभाता है। वो फिर चाहे खबरों के चैनल हों या सीरियल्स या मूवी। हाँ। आज के वक़्त में इंटरनेट सबसे शश्क्त माध्यम है। ये वो मीडिया या मैट्रिक्स है, जो आज की दुनियाँ को काफी हद तक अपने कब्ज़े में किए हुए है। वो भी ज्यादातर आपकी जानकारी के बिना।  

सुना है की कहीं, कहीं ये stickers काम नहीं भी करते? या शायद मिट भी जाते हैं? नहीं, नहीं, वो वाले नहीं, की आपने किसको पसंद किया, किसको किश या किसको मिस? वो वाले की, आपने कुछ खून तक किए और किसी ख़ूनी पार्टी का वक़्त आया, जब और ज्यादा खून हुए। आसपास के वक़्त में हुआ था, क्या ऐसा कुछ? कोरोना शायद? जाने कहाँ कहाँ किस किसकी और कैसे कैसे ऑक्सीजन ही ख़त्म हो गई? उसके बाद वो छुटके-मुटके स्टिकेर्स तो कायम रहे और लोगों को पता ही नहीं की ज़िंदगी की कैसी-कैसी सुविधाओं से हाथ तक धोने पड़े। कुछ का तो सुना है वो सब लूट लिया गया, जो उनकी पूरी ज़िंदगी की कमाई था। सच है क्या ये? हाँ। कुछ खूनियों को ऐसा कुछ बैठे-बिठाए इनाम में जरुर मिला? बैठे बिठाये? या उस ख़ूनी पार्टी के कुछ खास तरह के काम करने का ईनाम? वैसे ये खूनी पार्टी कोई एक ही पार्टी है? या हर पार्टी में नहीं तो, ज्यादातर पार्टियों का कुछ हिस्सा तो है ही?      

तो इससे क्या समझ आता है? की स्टिकेर्स भी आम लोगों पर ही काम करते हैं? वो फिर चाहे कैसे भी हों? अगर आपके पास सत्ता और सँसाधन हैं, तो जो जब चाहो, जगह, इंसान और अपने कुकर्मों के स्टिकेर्स तक बदल लो? नहीं, अगर सँसाधन और सत्ता है, तो जगह और इंसान भी बदलने की क्या जरुरत? गंगा ऐसे ही नहा जाओगे? मैट्रिक्स या मीडिया कल्चर बनाना और बिगड़ना तो संसाधनों का खेल है? मैट्रिक्स जैसी SciFi मूवी सीरीज़ तो सिर्फ समाज का कोई छोटा सा आईना भर दिखाती हैं? अब मूवी हैं तो बढ़ा चढ़ा मिर्च मसाला तो होगा ही। और उसपे SciFi हो, वो भी हॉलीवुड की? तो कहने ही क्या? शायद इसीलिए कहते हैं की SciFi देखना हो तो Hollywood और RomCom देखना हो तो Bollywood? 

इनसे आगे किसी की रुची अगर न्यूज़ चैनल्स की तरफ हो तो? उसके लिए भी शायद अमेरका की तरफ ही देखना पड़ेगा?

Saturday, November 8, 2025

Decluttering and Organization

Some files this side, some files that side. Get rid of some unnecessary stuff. And a bit access-easy-storage. Nothing more. Decluttering for me is a regular stuff. It's not something, once a year, before some fest or special occasion thing. 

On that separate links for different topics means, posts related to them will be there after some time. Rhythms of life must be as light weight as could :)

Sunday, August 3, 2025

Friday, May 16, 2025

गाने ज़िंदगी का ज्ञान भी देते हैं?

गाने ज़िंदगी का ज्ञान भी देते हैं? एक ही गाना कितना कुछ कह जाता है? कई बार तो, दशकों को एक छोटे-से गाने में पिरो जाता है? एक दशक पहले या दो दशक पहले या उससे भी पहले, वो आपका पसंदीदा गाना हुआ करता था? और आज भी है? गज़ब है? जैसे कुछ, बदलता ही नहीं? वही ढाक के तीन पात-सा? इस दौरान, वैसे से ही शब्द लिए या वैसा-सा ही ज्ञान लिए, कितने ही नए गाने आ जाते हैं? नए वक़्त से कदम-ताल मिलाते से जैसे? मगर, फिर भी आपकी पसंद आज भी वहीँ ठहरी-सी है जैसे?       

बुल्ला की जाना मैं कौन -- रब्बी शेरगिल 

Tuesday, May 13, 2025

Eurovision Song Contest, Nearby?

When you forget something integral to you, you forget life somewhere? Or there is no time for music or walk or excercize? It's a place where you can do better, only writing? As everything in the surrounding is like some prompt?

Or better have a break from writing? Oh! Forgot even that Eurovision song contest is also nearby? Is it May?

And like last year, no song is as appealing, as it used to be earlier. Why it's so?  

Freedom is not even on their selected chart? Or even freedom song was not that appealing? Euro colours seems out? It's too dark, sad kinda melancholic? Kinda saying?

Write, sing or search elsewhere your own haapy and joyful songs? Where you can find them in beautiful dresses, beautiful background or surrounding and singing beautiful happy songs?

What they have selected this year or singing on that world stage?

Georgian Freedom?


Naa! Seems a bit strange?

Then?
Shadows and Show?
C?
Y?
P?
R?
U?
S?

Too Dark?
That's where news are doing the round?

बला जी छोटी बेबे न्यूँ कह सै, 
या फ़ूं फ़ूं पाकिस्तान पै अ, चाल्य सै के?
नरे क्रिकेट खेलणीय बालक 
के होग्या, जै छोटी-मोटी बाल फैंक दे सैं तो?  

यो फूफा चीन थारा, ज़मीन हड़पें बैठा
आड़े के आँख मीच री सैं थारी?

हैं बेबे कहवै थी के किमैं?

पेपर टाइगर किते के?
Which song will fit on this?

बाजण दो भाई DJ?
इसपे  Eurovision Song Contest, 2025 का कोई गाना फिट होगा क्या?   
बोले तो कुछ भी :)

Friday, May 9, 2025

Travel? By Road, Air or Water?

सुना है, Rhythms of Life को साँस लिए कई दिन हो गए? तो चलो, थोड़ा घूम लें?

कहाँ चलना है? कैसे जाएँगे?

रोड़ से? पानी से? या हवा में उड़कर?  

कितने ही तरीके हैं ना, इन सब तरीकों से कहीं भी जाने के? किसी ने कहा, गाडी नहीं है? तो Air Bike ले लो। मस्त है। ड्रोन जितनी-सी, हल्की-फुल्की सी? ये भी सही है?          

ऐसी-सी?



फिर किसी ने कहा, जब हल्की-फुल्की की ही बात है तो?
सिर्फ एक सूट बहुत नहीं रहेगा?


कितने बावलीबूच हैं ना?

हल्का-फुल्का उड़ना है? उसपे पैसे भी कम लगाने हैं? तो ख्यालों में उड़ना कैसा रहेगा? अगर बिल्कुल फ्री चाहिए तो?

और थोड़ा बहुत इंटरनेट लायक पैसा हो तो, चलो मेरे साथ, चलते हैं घुमने कहीं? मैं तो इतने से में सुना है, रोज ही उड़ती हूँ। आज इस शहर, कल उस शहर? आज इस यूनिवर्सिटी और कल उस यूनिवर्सिटी?

तो किस शहर या यूनिवर्सिटी की सैर पर चलना चाहेंगे आप? इंडिया-पाकिस्तान के चैनलों की भड़ाम-भड़ाम से दूर कहीं, बिल्कुल शाँत-सी, सुन्दर सी जगह? 

Sunday, April 13, 2025

कहाँ गुल हूँ मैं ?

कहाँ गुल हूँ मैं ?

When health becomes most urgent issue, all other issues take a back seat? और ये स्वास्थ्य वो स्वास्थ्य नहीं है, जो राजनीती में छाया रहता है। वहाँ तो शायद कोई अंग-प्रतयन्ग निकालने वाली, संजय एमर्जेन्सी जैसी-सी बात हो रही होती है? उसपे भी आएँगे आगे पोस्ट में। कभी-कभी ये शायद वो स्वास्थ्य बन जाता है, जब आपको लगने लगता है would you survive this or it's really over? जब आप अपने सिर को बजते हुए सुनते हो, कड़क! कड़क! जैसे कुछ टूट रहा हो? मगर फिर भी हॉस्पिटल के नाम पर डरना शुरू कर दिया हो? ऑपरेशन थिएटर की बजाय घर मरना बेहतर है, जैसे दिमाग में बैठ गया हो? मार्च कुछ-कुछ ऐसा ही रहा। 16 के बाद अचानक से पोस्ट बंद हो गई? या शायद हो गया था कुछ? कुछ? इधर उधर लिखा जा रहा था उस पर भी। और किसी खास तारीख के आसपास वो ठीक भी होने लगा? Sometimes, journaling helps in tracking down something strange also? Or maybe, sometimes we overthink?           

क्या ये सिर की कड़क-कड़क सच में चोटों की देन है? या उससे आगे कहीं कुछ और भी? या शायद दोनों ही? System or say ecosystem is the culprit? 

कोरोना के समय जो समझ आया, वो कह रहा था की पानी-खाना और हवा, जीने के लिए, खासकर स्वस्थ जीने के लिए इनपर कंट्रोल बहुत जरुरी है। ये तय करना, की जो कुछ आप खा या पी रहे हैं या जिस हवा में आप साँस ले रहे हैं, उसका जीवनदायी होना बहुत जरुरी है। अगर वही प्रदूषित है, तो क्या तो दवाईयाँ करेंगी और क्या डॉक्टर? और जहाँ तक हो सके, वहाँ तक हॉस्पिटल या डॉक्टर से परहेज़ करना। ये भी अपने आप में स्वस्थ होने का संकेत है। 

कभी-कभी ऐसा होता है ना, की अचानक से आप कोई चीज़ खाना या पीना बंद कर देते हैं? या शायद वो अचानक से आपको अच्छी लगनी बंद हो जाती है? शरीर शायद बहुत-सी चीज़ों को खुद ही रिजेक्ट करने लगता है? ये उसका अपना डिफेंसिव सिस्टम है, जो उसे किसी आभाषी खतरे से बचाता है शायद? वो जो आप कब से खाते-पीते आ रहे हैं और अचानक से उसका टेस्ट थोड़ा अजीब लगने लगे? और आप पीते-पीते ही या खाते-खाते ही छोड़ दें? बहुत बार जरुरी भी नहीं की उसमें कुछ मिला ही हो, सिर्फ मौसम बदलने से भी बहुत बार ऐसा होने लगता है। जैसे सर्दी के शुरु होते ही गर्म खाना-पीना और गर्मी के शुरु होते ही ठंडा खाना-पीना पसंद आने लगता है। टेस्ट और खाने-पीने से परहेज़, और उसका बिमारियों से लेन-देन कहीं और।             

 एक Rude and Crude Joke? 

मेरा तुममें interest बढ़ता जा रहा है। कहीं तुमने मुझसे लॉन तो नहीं लिया हुआ? आगे किसी पोस्ट में आते हैं इस पर भी।   

Tuesday, February 11, 2025

बच्चे जब आपको पहुँचा दें, अपने बचपन में?

वक़्त और अगली पीढ़ी के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता है। काफी कुछ अच्छा और शायद कुछ ऐसा भी की लगे, अच्छा नहीं है। सूचनाओं का संसार, उनमें से एक है। 24 घंटे इंटरनेट की पहुँच और टीवी भी शायद। जब बच्चों को मजाक लगे, अच्छा आप जब छोटे थे, तो टीवी पे हर वक़्त प्रोग्राम नहीं आते थे? या इंटरनेट नहीं था? ये सीरियल्स भी नहीं थे? तो क्या था? 

जो भी हो, गुजरा वक़्त और बचपन हमेशा अच्छा होता है?




बड़े होकर जब आप अपने बच्चों को जाने क्यों वो खँडहर दिखाने आते हैं? और बताते हैं, ये रसोई थी। मैं यहाँ पढता था या यहाँ सोता था। और आप पूछें, भैया ये स्टूडेंट कौन है, आपके साथ? क्यूँकि, वो शायद स्कूल यूनिफार्म में ही है। अरे। ये नहीं पहचाना? यक्षशांश। क्या नाम बताया? यक्षसांश? ओह। ये इतना बड़ा हो गया? और ये अंदर कौन है भैयी?


 
या फिर आपके यहाँ कोई पूछे, बुआ ये आज दादी की छत पर कौन घुम रहे थे? कोई आया हुआ था, इनके यहाँ (साथ वाले खँडहर में)? क्यूँकि, आजकल यहाँ नाम मात्र-सी, मजेदार-सी मरम्त चल रही है।