About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, March 6, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 50

जब online NSDL Protean पे कुछ updates की जा रही थी तो संदीप गुप्ता कई ऑफिसियल IDs का प्रयोग कर रहा था। और OTP लेने के लिए, Finance Officer को कॉल भी। NSDL, Protean कब और क्यों हो गया? NSDL की दो अलग-अलग वेबसाइट क्यों हैं? CRA और NSDL? इसका ऑफिस मुंबई ही क्यों है? उसके कस्टमर नंबर में क्या खास है? मुंबई और सिविल लाइन्स, दिल्ली का आपस में क्या लेना देना है? दिल्ली CM का ऑफिस हमेशा सिविल लाइन्स दिल्ली ही होता है? या निर्भर करता है की CM कौन है? और कोई CM वहीँ अपना ऑफिसियल घर क्यों लेता है? और ये मनीष सिसोदिया और मनीष ब्लाह, ब्लाह एक ही हैं क्या? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी की किसी नौटंकी में भी कोई मनीष था? खैर। इस सबका IGIB, Delhi वाले संदीप शर्मा से क्या लेना-देना है? या किसी गाडी के पिछे ये Dad's gift, Airforce में क्या खास था? ये भारती-उजाला केस से भी कोई-लेना देना है? 

खैर। संदीप शर्मा वहाँ से Ram Jas College और वहाँ से Switzerland पहुँचते हैं। Ram Jas? J S और मुंबई? A K और मुंबई? या शायद Na ra और मुंबई?

और ये मोदी जी, 15 लाख हर किसी के खाते में पहुँचाने की बात करते हैं? खैर। संदीप को तो इसका ईनाम मिलता है, PhD स्मृति के रुप में? मगर, इन सबका IIT Delhi और दिल्ली की फिलहाल CM रेखा गुप्ता से क्या लेना-देना? बोले तो कुछ नहीं। आप आगे बढ़ो और जानने की कोशिश करो, की ये NSDL का आज तक Address Update क्यों नहीं हुआ? बोले तो कोई 15 नंबर और कोई पहुँचा 16 नंबर? जहाँ से पानी में जहर आना शुरु हुआ? Slow Poision? यूनिवर्सिटी की वाटर सप्लाई में किचड़? या JNU के जबरदस्ती वाले काले TANK? और किसी ने बोला, ये जहर 15 से आता है? कोई जगत जननी पहुँचा रही है? आज तक ये जगत जननी साँग समझ नहीं आया। 

CRA में तो पता वही है, जो आपने लिखवाया है। मगर NSDL Update नहीं कर रहा? ये कब तक 16 में बैठा रहेगा? नाम मेरा और पता? किसी Sajjan Dahiya का? घपला है जी ये तो। ऐसे जैसे, कोई बिहार के छठ वाला बिहारी कहे, मैं ही Shiv, मैं ही Shankar और मैं ही Khatu? पता नहीं, अब इससे बीमारी कौन-कौन सी ईजाद होती हैं? AI DS? H IV? या So? NIA? या Son? IA?

जैसे US के नाम पे या पहुँचते ही Yahoo .com की बजाय co.in हो जाए? और कोई गौरव सैनी Co m pass में अकाउंट खुलवा दे? बजाय की बैंक ऑफ़ अमेरिका के? ऐसे ही जैसे, किसी के भाई की चौधरी से शादी हो और सालों बाद पता चले, ये कादयान हैं? ऐसे ही शायद, किसी की बहन की राठी से? कैसे-कैसे नाथुला पास हैं ये? 

Strange world of political gambling.   

जिसका कब्ज़ा आपके रिश्ते बनवाने पर, तुड़वाने पर। बच्चों को इस जहाँ में लाने पर, तो कहीं पैदाइश से पहले ही  अबो्र्ट करवाने पर। ना हुई बिमारियाँ पैदा करने पर, ना होने वाले ऑपरेशन या एक्सीडेंट करने पर। और? आप कब कहाँ रहेंगे और कहाँ नहीं, ऐसे-ऐसे एनफोर्समेंट पर भी। और जानने वाले कहते हैं, की इस सिस्टम को जानने-समझने के लिए Astrology को समझो। Astrology? इसका, इन सबसे क्या लेना-देना? अब ये कैसा कोड है? Astrology और कहीं का भी सिस्टम, जानने की कोशिश करें इसे आगे? जैसे Social Programming?    

ABCDs of Views and Counterviews? 49

 क्या NSDL Protean एक गौरख-धंधा है?

मुझे ऐसा लगा। क्यों?  
जानने की कोशिश करें? 

ये पोस्ट उन सबके लिए, जो अपने आप को समाज का हितैषी मानते हैं। 
मुझे Resignation के तक़रीबन साढ़े तीन साल बाद, एक खास काम के लिए यूनिवर्सिटी जाने का मौका मिला। मैं Resignation 29, June या July, 2021 को दे चुकी? मैंने अपनी मर्जी से दिया या माहौल ने दिलाया, अलग ही मामला है। 

4, March 2025 

खैर। गाडी 2024 से ही है नहीं, तो मदीना बस स्टॉप से, सफेद रंग की एक वैन ली और ड्राइवर को चलने को बोला। ड्राइवर के नाम से लेकर, उस विकल्प में जो कुछ होगा, वो भी वहाँ का राजनितिक कोड होगा। आपके पास कहाँ, कौन-से ट्रांसपोर्ट के साधन उपलभ्ध होंगे, ये काफी हद तक सिस्टम ऑटोमेशन पे होता है। और बाकी मैन्युअल राजनितिक पार्टियों का धकाया हुआ। ड्राइवर ने बोला, मैडम भरने के बाद ही चलेगी। मैंने कहा, बाकी सवारियों के पैसे भी आप मेरे से ले लेना। कुछ सवारी उसमें पहले से ही बैठी थी, वो चल पड़ा। मदीना से वैन? अजीब-सा ऑप्शन है ना? एक ऐसा गाँव, जहाँ से इतनी सारी बसें, ऑटो और जीप वगरैह भी जाती हैं। ऐसा कुछ था ही नहीं या ठसा-ठस भरा आ रहा था। खैर। ये मुद्दा किसी और पोस्ट के लिए। किसी भी जगह हमारे पास जो विकल्प होते हैं, वही क्यों होते हैं? ये वहाँ का राजनितिक कोड बताता है। ये खाने-पीने, पहनने, रहने के स्थानों से लेकर, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन के संसाधन और मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिद, गिरजाघर या लाइब्रेरी, इन सब पर लागू होता है। जैसे, जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी जनता होगी, वहाँ उतने ही ज्यादा भगवानों को मानने या ऐसे स्थानों पर जाने वाले कम और पढ़ने-लिखने या प्र्शन या वाद-विवाद करने वाले या लाइब्रेरी जाने वाले ज्यादा होंगे। ऐसा कहाँ होता है? जिन देशों की जनता ज्यादा पढ़ी लिखी है या तो वहाँ? या स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी या रिसर्च इंस्टीटूट्स में? 

चलो, पुराने बस स्टॉप से एक ऑटो लेकर यूनिवर्सिटी पहुँच गई। यहाँ पे मेरी फाइल को डील करने वाला बंदा संदीप गुप्ता मिला। उसने मुझसे कुछ एक डॉक्युमेंट्स माँगे, जो मैं पहले ही मेल कर चुकी थी। मेल Finance Officer की थी और वो किसी मीटिंग में। तो गुप्ता जी ने बोला, मैडम तब तक बाकी फॉर्म भर लेते हैं। मैंने कहा ठीक है। फॉर्म ऑनलाइन ही था और उसमें कुछ खास था नहीं। एक आध updates करनी थी, जैसे मेरा address । जो शायद अपडेट हुआ ही नहीं। क्यों? पता नहीं। मुझे लगा की किया ही नहीं गया। मुझे ऐसा लगा, यहाँ अहम है। क्यूँकि, आप किसी बच्चे को तो अपने पास बिठाय नहीं हुए, की उसे समझ ना आए की ये चल क्या रहा है? अब इसमें वहाँ बैठे इंसान की गलती कितनी है या नहीं है, ये तो कहना मुश्किल है। क्यूँकि, अकसर ऊप्पर के फैसलों को यहाँ बैठे लोगों को सिर्फ या जैसे-तैसे मानना होता है। आखिर उन्हें भी नौकरी करनी है। ऐसा पहले भी कई फाइल्स के साथ हो चुका, इसलिए अनुभव से बता रही हूँ। जैसे नाम बदलना और उसे ठीक करवाने के लिए 8-9 महीने अपनी ही यूनिवर्सिटी के धक्के। जब सामने वाला पीछा ना छोड़े, तो उस कुर्सी पर बैठे इंसान की ही बदली। जबकि वो सब वहाँ भी ऊप्पर के आदेशों से ही हो रहा था। 

खैर। फाइनेंस अफसर भी आ गए और मेल किए गए डॉक्यूमेंट भी गुप्ता जी को मिल गए? प्र्शन क्यों? सुना है, 2004 या 2005 में (?) एक Illegal Human Experiment हुआ था और किसी संदीप को कोई किताब तक नहीं मिली, फिर आधार मिलना तो बहुत दूर की बात हो गई? खैर। यहाँ कौन-सा कोई IGIB, Delhi का संदीप शर्मा बैठा था। यहाँ तो, MDU के कर्मचारी कोई संदीप गुप्ता जी थे। और उन्हें वहाँ जिस काम के लिए बिठाया गया था, वो ऑफिस का वो काम कर रहे थे। तो दुनियाँ के किसी भी हिस्से में, किसी भी जगह, कोई भी इंसान या कोई भी जीव या निर्जीव ऐसे ही नहीं है। वो वहाँ, उस वक़्त वहाँ की राजनीती का कोढ़ है।

ऐसे ही जैसे किसी भी मीडिया पर कोई आर्टिकल या बहस या मुद्दा या खबर। 

जैसे ये  

ये क्या है? 
ऐसा कुछ चल रहा था क्या?
 जब online NSDL Protean पे कुछ updates की जा रही थी?
और Address Update क्यों नहीं हुआ? 
और ये कब से Update नहीं हो रहा?  

और ये MDU Finance Department को पता है क्या?


चलो इस सबको थोड़ा और आगे जानने की कोशिश करें? 

ABCDs of Views and Counterviews? 48

 Fraud? गौरख धंधा, किसे कहते हैं?


क्या NSDL Protean एक गौरख धंधा है?
मुझे ऐसा लगा। क्यों?  
जानने की कोशिश करें, आगे पोस्ट में ? 

Sunday, March 2, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 30

कई बै नोटिस बोर्ड भी नरे-ए होवैं सैं, जुकर  

मूत्र युद्ध विभाग नोटिस बोर्ड

मल युद्ध विभाग नोटिस बोर्ड

विचार कन्ट्रोल सैंटर नोटिस बोर्ड 

खगोल शास्त्र और ज्योतिष विभाग नोटिस बोर्ड 

अजीब से विभाग और सैंटर जैसे? 

Thought pollicing and making of robots? ब्लाह भाई यो के बला? 

बालको sci-fi देखा अर पढ़ा करो। यो वो दुनियाँ हो सै, जहाँ रोबॉट्स ने आदमियों को खत्म किया या दूसरे ग्रह पर कॉलोनी बसाई। रोबॉट्स की जेल में पृथ्वी या आपके दिमाग को कंट्रोल करते दूसरे ग्रह के प्राणी। अलग-अलग ग्रहों की नभीय प्रजातियों के युद्ध और भी बहुत कुछ जानने और समझने को। सोचण नै, के जा सै, किमे सोच लो?

इसी सोच के पँख लगाकै, कुछ ये सब लिखैं सैं। अर कुछ, उस पै सीरियल अर मूवी बणावें सैं। और कुछ उससे थोड़ा और आग्य नै चाल कै हकीकत घड़ै सैं। वो हकीकत कुछ लैब मैं घड़ै सैं, अर कुछ समाज मैं। ईब थाम कोणसे समाज का हिस्सा सो, वो थामनै बेरा? या शायद ना भी बेरा?

चलो एक छोटे-से हकीकत के आईने से देखने की कोशिश करें?

 रिफ्फल री थी, कर थी ठायैं-ठायैं 

ABCDs of Views and Counterviews? 47

कुछ छोटे-छोटे शैतान बच्चे, कई बार हमारे घर के बाहर खेलते हैं। और कई बार इधर-उधर के पड़ोसियों के। 
एक दिन एक पड़ौसी के घर के बाहर दो छोटी-छोटी लड़कियों को चेतावनी देते हुए कह रहे, "घर के अंदर क्यों घुस गए? डरपोक कहीं के। दम है तो निकलो बाहर।" वो लड़कियाँ तो घर के अंदर जा चुकी थी। मगर, जैसे ही मैंने इन शैतान बच्चों की तरफ देखा, देखते-देखते ही पता नहीं किधर छुप गए? 
आजकल ऐसा ही कुछ सुना है, दिल्ली के बड़े बच्चे खेल रहे हैं और उस खेल का नाम है, "पार्लियामेंट-पार्लियामेंट"। झगड़ालू कहीं के। क्या मचा रखा है ये?

Parliament is what you make it? 
Oh, Life is .. पता ही नहीं था, जैसे IS Elements?
   

Go your home now?
Hannah Montana?
Miley Cyrus home is in Montana?  
US kids and their songs?

       

ABCDs of Views and Counterviews? 46

 स्वस्थ जिंदगी (Healthy Life)

स्वस्थ ज़िंदगी के लिए आपको बहुत कुछ नहीं चाहिए। मगर बहुत कुछ जो हमारे वातावरण से या आसपास से हमें जाने-अंजाने मिलता है, उससे बचने की जरुरत जरुर होती है। उससे आगे काफी कुछ हमारी अपनी दिनचर्या या खान पान को सही करने की जरुरत होती है। जैसे की कहा गया है की "Precaution or prevention is better than cure", सावधानी या ऐतिहात, ईलाज से बेहतर है।  

आप अपने स्वास्थ्य का चाहे कितना ही ऐतिहात बरतने वाले हों, फिर भी कभी न कभी तो जरुर, किसी न किसी बीमारी से सामना करना ही पड़ा होगा? वो फिर कोई छोटी-मोटी ज़ुकाम या सिर दर्द जैसी समस्या हो या कोई आते जाते मौसम-सा बुखार, जिसमें आपको कुछ खास नहीं करना पड़ता, अपने आप ही ठीक हो जाता है। मगर कभी-कभी शायद बहुत कुछ अपने आप ठीक नहीं होता, उसके लिए थोड़ी सी मेहनत चाहिए होती है। कभी-कभी शायद थोड़ी ज्यादा? जैसे किसी एक्सीडेंट के बाद? या किसी थोड़ी बड़ी बीमारी या ऑपरेशन के बाद?         

चलो पहले थोड़ा ऐतिहात या सावधानी की बात करें?

Attitute is Everything

मन के माने हार है और मन के माने जीत? आपने मान लिया की आप जीत रहे हैं, तो जीत रहे हैं। आपने मान लिया की आप हार रहे हैं, तो हार रहे हैं? आपने मान लिया की आप बीमार हैं, तो बिमार हैं। आपने मान लिया की ठीक हैं, तो ठीक हैं? संभव है क्या? ज़िंदगी संभानाओं का ही नाम है? आपके मानने या ना मानने से ही बहुत कुछ छू-मंत्र हो जाता है और बहुत कुछ पनप भी जाता है। बिमारियों का या स्वास्थ्य का भी काफी हद तक ऐसे ही है। काफी हद तक, बिलकुल नहीं। इसलिए     

Own Your Mind and Own Your Life 

Own Your Body 

ये Own Your Body पे क्या आ गया?


Own your body का ज्यादा तो नहीं पता, पर इतना-सा जरुर पता है, की वजन कम करना या बढ़ाना कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। जिनके लिए है, उनको लग रहा होगा की ये क्या फेंक रही है? सच में। एक बार ये सोच लो, की खाना आपके लिए जहर है। खाना एक ऐसी जेल की सैर है, जिसके खाते ही आपके मरने की पूरी-पूरी सम्भावनाएँ हैं। उसके बाद खाना तो क्या खाओगे? बेचैन होकर पागलों की तरह घूमने (walk) जरुर लग जाओगे। जैसे कह रहे हो, निकालो मुझे इस जेल से। खैर। ये थोड़ा ज्यादा हो गया ? वैसे, मेरे साथ ऐसा हो चूका, जब साढ़े तीन दिन की खास सैर पर ही आप 3-4 किलो वजन घटा आएँ।  

वैसे, खुद को खाने का परहेज कर अरेस्ट करना और जितना हो सके उतने घंटे घूमना, वजन घटाने का अचूक तरीका है। अब क्यूँकि, आप खुद ही खुद को अरेस्ट कर रहे हैं, अपने लिए कुछ अच्छा करने के लिए, तो ये वो अरेस्ट तो है नहीं, की जहाँ पानी या जूस तक पर भी पाबंदी लगे। जहाँ तक हो सके जूस या तरल पदार्थों पर रह कर भी ऐसा संभव है। कुछ एक उदाहरण ऐसे मैंने देखे हैं। जैसे किसी बहुत ही मोटी लड़की की शादी हो और वो 2-महीने में ही slim-trim हो जाए? सिर्फ जूस पर रहकर और थोड़ा बहुत एक्सरसाइज कर? ऐसा किसी गाँधी ने M.Sc के दौरान या उसके बाद शायद बताया था, जब उसे देख कर यकीन करना मुश्किल हो रहा था। और भी कई इस तरह के उदाहरण देखे-सुने हैं। वजन पे फोकस इसलिए, क्यूँकि वजन अपने आप सिर्फ एक बीमारी नहीं है, बल्की, और भी कितनी ही बिमारियों को न्यौता देने जैसा है।

ज्यादातर जो लोग मोटे होते हैं, वो घूमते-फिरते बहुत कम हैं। वजह चाहे जो भी हों। क्यूँकि मैंने देखा है, की जो रैगुलर सिर्फ घूमने का भी रूटीन रखते हैं, मोटे वो भी नहीं होते। यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर, जहाँ घूमने के लिए अच्छी खासी जगहें होती हैं, ऐसे कितने ही उदाहरण मिल जाएँगे। 

इस किताब में writing पर भी कुछ है। तो मुझे तो लगता है की writing ज्यादातर ऐसे लोग करते हैं, जो शायद थोड़ा-सा ज्यादा महसूस करते हैं, किसी भी विषय पर। जिस किसी विषय पर आप जितना ज्यादा महसूस करते हैं, वो उतना ही ज्यादा आपको लिखने की तरफ खिंचता है। और अगर आपको रात को उठकर लिखने के दौरे पड़ रहे हैं, तो एक लेखक के तौर पर आप किन्हीं बेचैनी वाले विषयों पर पहुँच चुके हैं, जो आपको सोने तक नहीं देते। कई बार शायद ऐसे विषय, जिनके बारे में आपने शायद ही कभी सोचा होता है। जैसे कोरोना? और उस दौरान घटी घटनाएँ या दुर्घटनाएँ। 
Social Tales of Social Engineering जब आपको लोगों के साधारण से ज़िंदगी के रोज-रोज के घटनाक्रम कुछ और ही नज़र आने लगें। जैसे मानव रोबॉट कैसे बनते हैं या उनकी ट्रैनिंग गुप्त रुप से दुनियाँ भर में कैसे चल रही है? 
या शायद Bio Chem Physio Psycho and Electronic Warfare: Pros and Cons और आपको लगे, इंसान टेक्नोलॉजी के साथ-साथ किस हद तक निर्दयी और लालची हो रहा है।         

Saturday, March 1, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 45

 How ecosystem of any place develops with politics of that place? 

किसी भी जगह का इकोसिस्टम राजनीती के घटनाक्रमों या बदलावों के साथ कैसे बदलता है? आप जहाँ कहीं हैं, वहीँ से समझने की कोशिश करें, खासकर अगर उस जगह को थोड़ा बहुत समझते या जानते हैं तो। जैसे मैं अगर अपने गाँव की बात करूँ तो ये M प्रधान Madina दो पंचायतों का गाँव है। Madina A, Kaursan, K प्रधान है। और Madina-B, Gindhran, G प्रधान है। मगर M, K और G सिर्फ पहले अकसर हैं। इनके आगे जटिल कोड है। Madina हाईवे पर है और चारों तरफ अप्प्रोच रोड़ या कहो की गाँवों से घिरा है। ये अप्रोच रोड़ या गाँव उस तरफ की अलग सी कहानी या कोड हैं। जैसे हाईवे पर एक तरफ Kharkara और दूसरी तरफ Bahu Akbarpur. 

ऐसे ही जैसे अप्प्रोच रोड़, हाईवे के एक तरफ Bharan, Ajaib, तो दूसरी तरफ Mokhra. और भी अलग अलग दिशा में अलग अलग अप्रोच रोड़ या गाँव। किस गाँव की Proximity किस गाँव के किस हिस्से के करीब है? वो वहाँ का जटिल कोड है। उसी कोड में वहाँ की समस्याएँ या समाधान भी हैं। जैसे, आपके गाँव में हॉस्पिटल कहाँ-कहाँ हैं? प्राइवेट या सरकारी? किस तरफ हैं? किन गाँवों की तरफ या आसपास? आदमियों के या जानवरों के? वहाँ डॉक्टरों के नाम क्या हैं? या बाकी स्टाफ के? वहाँ आसपास दवाईयों की दुकानों के क्या नाम हैं और उन्हें चलाने वालों के? प्राइवेट डॉक्टर, डॉक्टर हैं या झोला छाप? ये जाते ही इंजेक्शन ठोकने वाले कौन हैं? और दवाई देने वाले कौन? या नाम मात्र दवाई दे काम चलाने वाले?

किसी खास बीमारी के डॉक्टर भी बैठते हैं आपके गाँव के किसी हिस्से में? या खास स्पेशलिटी के हॉस्पिटल? उस बीमारी के या स्पेसलिटी के डॉक्टर या हॉस्पिटल जहाँ वो हैं, वहीँ क्यों हैं? क्या खास है, उस जगह में? या कहो की वहाँ के कोड में? ये डॉक्टर या हॉस्पिटल कोई खास सर्टिफिकेट भी रखते हैं या कहाँ से सर्टिफाइड हैं? ये सब कोड है। ऐसे ही दवाईयों का कोड होता है। अलग-अलग जगह और अलग-अलग हॉस्पिटल या डॉक्टर का अलग-अलग कोड। ये कोड उनके किसी भी बीमारी के ईलाज के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं। 

जैसे मान लो आपने कहीं कोई ईलाज करवाया और उस हॉस्पिटल का सरकारी सर्टिफिकेशन नंबर है 1234abcd और जिस जगह वो है, उस जगह का नंबर जाट प्लॉट या राज प्लॉट या बनिया प्लॉट। उस हॉस्पिटल को घुम कर और कोड पढ़ने की कोशिश करो। पता चलेगा, पानी के गिलास पे ही चेन बंधी है। मतलब, पानी तक पर भारी भरकम टैक्स जैसे? ऐसे ही और भी कितनी ही मजेदार चीज़ें दिख सकती हैं। जैसे किसी मूवी में किन्हीं नर्स ने मरीज के साथ वालों को कॉउंटर से ढेर सारी दवाईयाँ या इंजेक्शन वगरैह लाने को बोला। और फिर उनमें से कुछ एक वो मरीज को देकर, बाकी आपकी जानकारी के बिना वहीँ कॉउंटर पर पहुँचा दें। सोचो, और कहीं कोई मीडिया आपको दिखा रहा हो, ऐसे होते हुए? फिर कहीं कोई खास कंपनी और नंबर वाली एम्बुलैंस, किसी खास डायग्नोस्टिक सेंटर तक पहुँचाए, क्यूँकि, उन टेस्टों की सुविधा उस अस्पताल में नहीं है। फिर वहाँ देखो छत पे चमकते चाँद सितारे, कह रहे हों जैसे, यहाँ सब मंगल-मंगल है? यही नहीं, और भी अनोखे किस्से-कहानी उस हॉस्पिटल की ईमारत में ही पढ़ या समझ सकते हैं। और वहाँ मरीजों का जो इलाज होगा, वो? वो भी किन्हीं खास कोड वाला ही होगा। और जरुरी नहीं, वहाँ के सब डॉक्टरों या स्टाफ को ऐसी कोई जानकारी तक हो। ये सिस्टम का ऑटोमेशन (automation) बताया। 

ऐसे ही दवाई बनाने वाली कंपनियों का होता है। और उनकी दवाई, उनसे मिलते जुलते कोड पर ही पहुँचती हैं। ये सब स्वास्थ्य बाजार है। जहाँ स्वास्थ्य मिलता कम है। मगर उससे खिलवाड़ या छेड़छाड़ ज्यादा होती है। 

ऐसे ही स्कूलों का है। कोई भी स्कूल किस जगह है? उसका नाम क्या है? उसको चलाने वाले कौन हैं? वो स्कूल किस सँस्थान से सर्टिफाइड है? उस का सर्टिफिकेशन नंबर या तारीख क्या है? उसमें कितने बच्चे और किस क्लास तक पढ़ते हैं? पढ़ाने वाले या स्टाफ कौन है? वो कौन सी कंपनी या लेखकों की किताबें पढ़ाते हैं? वो किताबें कितना सही या गलत पढ़ाती हैं? किताबें गलत भी पढ़ाती हैं? हाँ। क्यूँकि, उन्हें लिखने वाले इंसान हैं और उनके अपने मत हैं और बहुत से केसों में अलग अलग राजनितिक पार्टियों से संबंधित भी। अब जो खुद कम पढ़े लिखे हैं, उन्हें तो ये सब समझ ही नहीं आएगा। उन किताबों की कंपनियों या खुद किताबों के भी कोड हैं और जो सिलेबस बच्चे पढ़ते हैं, उसके भी। ये सब ऊप्पर से चलता है और स्कूलों तक के स्तर पर ऐसे ही इन राजनितिक पार्टियों का और बड़ी-बड़ी कंपनियों का बड़ा ही गुप्त सा कंट्रोल होता है। जो पढ़ाया जा रहा है, वो एक तरह की ट्रेनिंग है, किसी खास पार्टी या मत की। 

ऐसे ही जो आप खाते-पीते हैं, वो आपके शरीर की ट्रैनिंग है, जहाँ का खा-पी रहे हैं, वहाँ के स्तर के स्वास्थ्य या बिमारियों की। खाद पदार्थ या पानी, कहीं भी किस कोड के मिलते हैं, वो उस कोड के अनुसार, वहाँ की बिमारियों की अधिकता या कम होना बताते हैं। जैसे कहीं खाने-पीने के प्रदूषण की अधिकता की वजह से बिमारियाँ हैं। तो कहीं ज्यादा खाने-पीने और कम घूमने-फिरने की वजह से। खाने-पीने के प्रदूषण की वजह से ज्यादातर गरीबी का संकेत है। और ऐसी ही जगहों पे होती हैं। तो खाने-पीने की अधिकता या कम घूमना-फिरना, फलते-फूलते लोगों या घरों की? ऐसा ही कहते हैं ना? काफी हद तक सही भी? क्यूँकि, खाने पीने में प्रदूषण वाली जगहों पर मोटापा या इससे जुडी बीमारियाँ कम ही मिलेंगी। ऐसे ही मोटापा या इससे जुड़ी बीमारियाँ, ज्यादातर शहरों की तरफ ज्यादा। ज्यादातर, क्यूँकि, और भी बहुत से कारण होते हैं इसके साथ-साथ।  

इन्हीं कोडों के आसपास कहीं भी बाकी सब जीव-जंतु मिलते हैं। क्यूँकि, हर जीव किसी खास इकोसिस्टम में ही पनपता है या फलता-फूलता है। या ख़त्म हो जाता है। या संघर्ष करता नज़र आता है। जितना ज्यादा आपको कोई भी इकोसिस्टम समझ आना शुरु हो जाएगा, उतना ही ज्यादा उसकी खामियों का ईलाज भी। या बहुत जगह ईलाज आपके वश से बाहर के कारणों पर निर्भर करता है। तो ऐसे इकोसिस्टम से निकलना ही बेहतर होता है, बजाय की उससे झुझते रहने के। 

जैसे कई बार खास तरह के जीव जंतुओं को पालने वाले या पनपाने वाले कुछ खास घर या इंसान भी हो सकते हैं। जैसे कबूतर या मछली। जैसे चिड़ियों के लिए गर्मी में पानी रखने वाले खास विज्ञापन? या पुरानी चिड़ियों की जगह नई किस्म की चिड़ियों या पक्षियों या जानवरों का दिखना या किसी खास जगह से आना या कहीं जाना। ये अपने आप नहीं होता। किसी भी जगह के राजनितिक कोड के साथ ये भी जुड़ा है। एक ही जगह पर, एक घर से दूसरे घर की छतों पर अलग-अलग किस्म की चिड़ियों या पक्षियों का आना। ये इस पर निर्भर करता है, की उनके खाने के लिए वहाँ क्या खास है, जो साथ वाले घर या पड़ोस में ही नहीं है। या पक्षी कितना बड़ा या छोटा है? और किस तरह के वातावरण को ज्यादा सुरक्षित समझता है? जैसे छोटी चिड़ियाँ कहाँ आती हैं या कहाँ घोसले बनाती है? कौवे या नीलकंठ या मोर या बत्तख या गिद्ध कहाँ? हर जीव के लिए खाना, सुरक्षा और फलने-फूलने की जगहें महत्त्व रखती हैं। ये यहाँ से वहाँ जीवों को लाने या ले जाने वालों को अच्छे से पता होता है। कहीं का भी सिस्टम या इकोसिस्टम, ऐसी जानकारी रखने वाली ताकतें बनाती या बिगाड़ती हैं। और ये ज्यादातर आम जनता की जानकारी के बिना होता है। जितना ज्यादा इस जानकारी का दायरा बढ़ता जाता है, उतना ही ज्यादा वहाँ के जीवों पर कंट्रोल। इंसान उन्हीं जीवों में से एक है।    

कुछ-कुछ जैसे election और  delimitation? 

Friday, February 28, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 44

स्वस्थ जिंदगी (Healthy Life)

काफी वक़्त हो गया हैल्थ, एक्सरसाइज़ या डाइट पे कुछ नहीं लिखा? कोरोना खा गया ये सब? Resignation के बाद जब घर आई, तो बस इतना-सा ही ख्वाब था, एक Writing Hub, एक छोटी-सी किचन, मेरे छोटे-मोटे dietry experiments के लिए और घुमने या एक्सरसाइज़ के लिए हरा-भरा-सा लॉन? और उसपे एक छोटी-सी पोस्ट भी लिखी थी। मगर कहाँ पता था, की इधर खिसकाने वालों के इरादे कितने खतरनाक होंगे? वो तुम्हे एक जेल की सैर के बाद, दूसरी किसी और ही तरह की जेल की सैर पे भेज रहे हैं? वो हॉउस अरेस्ट टाइप, जो उस साढ़े तीन दिन के खास-म-खास जेल ट्रिप के दौरान ड्रामे के रुप में बताई थी? और तुम घर आ रहे थे, बचपन के स्वर्ग से सपने लेकर? 

मगर कोरोना ने सिर्फ ये सब नहीं खाया। उसने कुछ एक ब्लॉग्स, कुछ एक पत्रकार या सरकार के आलोचक भी खाए, जिन्हें आप पसंद करो या ना करो, मगर सिखने और जानने-समझने को काफी कुछ था, उनके सोशल प्रोफाइल्स पर या ब्लॉग्स पर। कुछ का समझ नहीं आया, की इन्होंने अपने ब्लॉग्स या सोशल प्रोफाइल्स पर ताले क्यों लगा लिए? और कुछ को कौन-से heart attack या हैल्थ प्रॉब्लम्स खा गई? वो सब सीधा-सीधा डराने के लिए भी था, की Campus Crime Series या Case Studies बंद। लिखना ही है तो और बहुत कुछ है तुम्हारे पास। नहीं तो अंजाम तुम्हारा भी ऐसा ही कुछ होगा। Campus Crime Series को बीच में ही रोकने की एक वजह, ये चेतावनियाँ भी रही। जब सिर्फ खुद की ज़िंदगी ही नहीं, बल्की, आसपास भी जैसे घुटता-सा या उठता नज़र आया । मगर ऐसा कुछ छोड़ा भी नहीं, जो बाहर आना चाहिए था और जैसे किसी कैद में था। क्या था वो? 

भारती-उजला केस?

Exams Fraud December 2019? और माँ का ऑपरेशन? 

और फिर? March 2020 कोरोना की शुरुआत?  

खैर। मेरे पास सच में उससे आगे भी काफी कुछ था, जो हर रोज आँखों के सामने घट रहा था या है। 

Social Tales of Social Engineering (Making of Human Robots) 

Bio Chem Physio Psycho and Electronic Warfare: Pros and Cons    

मगर ये सब जानना-समझना इतना भी आसान कहाँ था? अगर सच में कुछ बड़ी-बड़ी ताकतें, उन्हें यूँ मुझ तक किसी न किसी रुप में ना पहुँचाती तो? और शायद खुद राजनितिक पार्टियाँ भी? जैसे, एक-दूसरे के कारनामों को बताने या दिखाने की हौड़? जैसे सबकुछ सामने हो, और हम समझ ना पाएँ की सबकुछ कोड है। उन कोडों को समझने की कोशिश करो और परतें अपने आप खुलती जाएँगी? 

आज ये अचानक, फिर से कहाँ से आ गया? जानते हैं अगली पोस्ट में। 

Wednesday, February 26, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 43

कहानी और प्लॉट? 


At Par V IT amin या M U L TI VI T?

Vit या Vit A? या Multi V IT?  

छोटी-मोटी रोजमर्रा की दवाईयों या multivit जैसे, गोलियों या कैप्सूलों की कहानी और उनसे जुड़े अजीबोगरीब कारनामे किसी और पोस्ट में। अभी कहानी और प्लॉट के फर्क या हेदभेद को समझने की कोशिश करते हैं। 


आजु-बाजू? जैसे ईधर, उधर या किधर? 

इसे अपनी दोनों बाजुओं से समझें। आपके घर के दोनों तरफ मकान हैं। आजू भी और बाजू भी। या कहो की दाएँ भी और बाएँ भी। ये मकान जैसे आपकी बाजुएँ हैं। 

आमने-सामने? 

ऐसे जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान? या आगे जो भविष्य है? 

और पीछे?

जो पीछे रह गया? या आपका भूत जैसे? 

या कुछ लेना-देना है? किस तरह का सम्बन्ध है आपका, आपके आजू-बाजू से? आमने-सामने से? या पीछे वाले मकान या मकानों से? दुकान या दुकानों से? प्लॉट या प्लॉटों से? खेत या खलिहानों से? खाली पड़े प्लॉटों से या उनमें बनते हुए मकानों, बैठकों या जानवरों के रहने के घेरों से? सरकारी या प्राइवेट से? या किसी कोऑपरेटिव से?          

ऐसे ही जैसे, सारा समाज सिर्फ कुछ कोढ़ों की गिर्फत में। 

जिनमें सरकारी क्या और प्राइवेट क्या? 

शिक्षा क्या और स्वास्थ्य क्या? 

खेती क्या और व्यापारी क्या? 

बीमार क्या और बीमारी क्या? 

इलाज क्या और दवाई क्या?

हॉस्पिटल कौन-सा या ऑपरेशन क्या? 

ज़िंदगी क्या और मौत क्या?  

रिश्ते-नाते क्या?

शादी क्या और बच्चे क्या?

अड़ोस-पड़ोस क्या और गली मोहल्ला क्या?

सब समाया है।   

अपने इस आसपास या अड़ोस-पड़ोस को आप कितना जानते हैं? अड़ोस-पड़ोस छोड़िए। अपने घर में रह रहे सदस्यों को ही आप कितना जानते हैं? किसके साथ कितना वक़्त गुजारते हैं? आपकी ज़िंदगी भी उन्हीं के अनुसार होती जाएगी। अगर आप अपने घर से ज्यादा, बाहर वक़्त गुजारते हैं तो घर बिखरता जाएगा। या सम्बन्ध उतने मधुर नहीं होंगे। रिश्तों में खटास ज्यादा होगी। जिसका फायदा बाहर वालों को होगा। आपका घर बाहर वालों में बँटता जाएगा। और घर वाले अलग-थलग या ज्यादा खतरनाक केसों में ख़त्म होते जाएँगे।  

सचेत होने की जरुरत होती है, जब बाहर वाले अपनों के ही खिलाफ कुछ कहने लगें या भड़काने लगें। बाहर वालों की बजाय, हकीकत अपने घर वाले इंसान से ही जानने की कोशिश करो। कहीं हकीकत कुछ और ही ना मिले। और बाहर वाले तुम्हारा नुकसान कर अपना ही कोई स्वार्थ साधने में लगे हुए हों। आपको किसी अपने के ही खिलाफ भड़काकर और उस अपने को शायद आपके खिलाफ?   

यही आसपास या अड़ोस-पड़ोस या गली-मौहल्ले पर भी लागू होता है। 

ABCDs of Views and Counterviews? 42

हमारे सिस्टम में इंसान एक प्रॉपर्टी है? 

और सारा खेल बड़ी-बड़ी कंपनियों और दुनियाँ भर की सरकारों वाली कुर्सियों की मार धाड़ का है? या इससे ज्यादा भी कुछ है? जानने की कोशिश करें?

2010 मनमोहन सिंह PM, कांग्रेस आई थी, किसी काँड के बाद?

2013? अरविन्द केजरीवाल? दिल्ली CM?

2014 मोदी PM? और फिर से अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली CM?   

 

 2014? कोई मीटिंग शायद? 

At Par? ये क्या बला है? 

SFS Self Financing Scheme, Government Service के equal, बराबर, जब तक वो डिपार्टमेंट है। उस वक़्त आप उससे आगे कुछ नहीं जानते। क्यूँकि, ऑफिसियल, मतलब ऑफिसियल। वो सब भला पर्सनल ज़िंदगी को कैसे प्रभावित कर सकता है?

20 18 और कोढों की भरमार जैसे। 

20 19, पर्सनल कुछ नहीं। सब में राजनीती और सब राजनीती के बनाए सिस्टम का। क्या जीव, क्या निर्जीव। आदमी भी, उसी सिस्टम की प्रॉपर्टी। 

प्रॉपर्टी? इंसान किसी की प्रॉपर्टी?

2020 Election Bonds और अलग-अलग पार्टियों की अलग-अलग फंडिंग। 

मतलब? अब ये क्या बला है? 

जैसे "Service Bonds" किसी सर्विस के बदले, सर्व कर रहे हैं आप किसी को। 

जब ज्वाइन किया तो क्या था?

बाद में भी उसे बदला जा सकता है? 

क्या? सच में इतना आसान है? 

सीधे नहीं, थोड़े टेड़े रस्तों से। 

क्रोनोलॉजी (Chronology) 

2008, ढेरों सर्विस या जॉइनिंग 

2010, फिर थोड़ी कम 

 2012, और कम 

2014? और?   

सरकारों के बदलावों को समझो। 

क्या है जो Trading या Optional है? और क्या है जो दूरगामी और sustainable? जैसे एक ही शब्द के अनेक अर्थ या शायद अनर्थ भी? 

 जैसे Ben बेन? 

Sister बहन?

मतलब एक ही? बराबर? 

या शायद कुछ-कुछ ऐसे?

जैसे बाई B AI और BH AI Y? 

गूगल से इस बारे में AI ज्ञान लें?

किसी और सर्च इंजन की AI का ज्ञान, शायद किन्ही और शब्दों में या अर्थों में मिलेगा?
आप Co Pilot या कोई और प्रयोग कर देख सकते हैं। 

सुना है, सर्विस और सर्व करने का सिलसिला, किसी न किसी रुप में, सदियों से ऐसे ही चलता आ रहा है? जहाँ मध्यम वर्ग या समाज का नीचे का तबका, हमेशा बड़े लोगों का सेवक बनकर रहा है। और बड़े लोग हमेशा शोषक। और जब तक ये मध्यम या समाज का नीचला तबका, वक़्त के साथ, वक़्त के बदलते रंग-रुपों को पढ़ेगा या समझेगा नहीं, तब तक ऐसे ही इन कुर्सियों को सलाम ठोकता रहेगा और शोषित होता रहेगा। 

Saturday, February 22, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 41

आप कोई पेपर, डॉक्यूमेंट या शायद ऐसा-सा ही कुछ कॉपी कर रहे हैं। शायद ईमेल सेव करने के लिए या एक-आध पोस्ट करने के लिए? मगर कलाकार फ़ोन ही नॉन फंक्शनल कर देते हैं। आप फिर से कॉपी करते हैं और फिर से ऐसा कुछ। क्यों? ऐसा तो कुछ खास भी नहीं उनमें। ये कुछ एक महीनों पहले की बात है। एक-आध, इधर-उधर के पत्र या ग्रीटिंग या ऐसा-सा ही कोई किसी मैगज़ीन का हिस्सा? ये भी किसी के लिए अड़चन हो सकता है? या इतना अहम, की वो उन्हें सॉफ्ट कॉपी ही ना बनाने दें? ऐसा क्या है उनमें?  

इलेक्शन जाने दे, फिर कर लियो। कहीं हिंट जैसे कोई। क्यों? इनका किसी इलेक्शन से क्या लेना-देना? समझ से बाहर? खैर। उसके बाद उनकी कुछ कॉपियाँ यहाँ मिलती हैं और कुछ वहाँ। जाने कहाँ-कहाँ? अब रोकने वाले तैयार बैठे हैं, तो रुकावट है, रुकावट है, को बताने वाले भी। और उस रुकावट वाले जोन में घुसपैठ कर, उन्हें रुकावट से बाहर रखने वाले भी? मज़ेदार दुनियाँ है ये, अजीबोगरीब मारधाड़ वाली? खैर। आप आराम से बैठते हैं की चलो इतनी भी रुकावट नहीं है। हो जाने दो इलेक्शन। और उसके बाद कोई एक पत्र किसी पोस्ट का हिस्सा बनता है। 

उन्हीं में कुछ और भी है, जो बाहर निकलता है। वो भोले-भाले, नए-नए कॉलेज के दिनों के उस ज़माने के बच्चों का है। कॉलेज स्तर पे बच्चे? हाँ। कुछ-कुछ ऐसा ही। यूँ लगता है, टेक्नोलॉजी ने बहुत कुछ बदल दिया है। यही जनरेशन गैप है। मंदिर-मस्जिद से परे, रंगभेद या जातपात से परे, कब और कैसे, ये इतने धर्मान्दी या उमादि हो गए लोग? राजनीती और टेक्नोलॉजी? हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा, वाले लोग? या इंसान से शैतान? मगर कैसे? राजनीती? पता नहीं। मगर दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के बारे में कुछ एक विडियो देखे तो लगा, ये रिप्रजेंटेशन उन लोगों की तो नहीं शायद, जिन्हे ये दिखाना या बताना चाह रहे हैं? राजनीती की कुर्सियों के ये मालिक, कोई और ही हैं। वैसे ही जैसे, हर इंसान अनौखा है और हर इंसान की अपनी अलग पहचान और अलग ही कहानी। उन्हें किसी और में देखना ही, उस इंसान का अपना अस्तित्व या पहचान दाँव पर लगाने जैसा है। आपको क्या लगता है?  

Views और Counterviews का फायदा ही ये है की आप सिर्फ अपने विचार नहीं रख रहे, बल्की, इधर-उधर के विडियो, या विचारों या किस्से कहानियों को भी रख रहे हैं। जरुरी नहीं ये पोस्ट लिखने वाला या आप उनसे सहमत हों। क्यूँकि, किसी को भी एक साँचे में नहीं रखा जा सकता। हर किसी का अपना मत है और अपने विचार। बस, उन्हें किसी और पे जबरदस्ती थोंपने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। रौचक तथ्य ये, की जहाँ कहीं जबरदस्ती थोंपने की कोशिशें होती हैं, तो वो बिमारियों और हादसों के कारण होते हैं। उसकी सामान्तर घड़ाईयाँ जाने फिर कहाँ-कहाँ चलती हैं। जिस किसी समाज में ये जबरदस्ती थोंपने का चलन ज्यादा है, वहीँ लोगों को बिमारियाँ भी ज्यादा हैं और दूसरी तरह की समस्याएँ भी। आगे किसी पोस्ट में इन्हें कोड से जानने की कोशिश करेंगे। आपका कोड क्या है और आपपे क्या थोंपने की कोशिश है? वो थोंपने की कोशिश या थोंपना ही जहाँ कहीं आप हैं, वहाँ उस सिस्टम के अनुसार बीमारी का कोड है? बाकी जानकार ज्यादा बता सकते हैं। 

ABCDs of Views and Counterviews? 40

The art and craft or graft (?) of making parallel cases in society

समाज में सामान्तर घड़ाईयोँ की कला 

22 02 2025 (सुबह)

DL 1C .. W .... सफ़ेद रंग ब्लाह ब्लाह कंपनी 

एक दिन पीछे चलते हैं 

21 02 2025 

ये डॉक्युमेंट्स चैक करो और ये ये करो 

ये क्या है? भेझा फ्राई जैसे? ये तो मैं कर चुकी, एक्सपेरिमेंटल।  Scale up वालों ने विज्ञापन दे दे के जैसे भेझा ख़राब कर रखा था। सोचा, ऐसा है तो try ही कर ले। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? ऑनलाइन क्या हो सकता है? हाँ! ऑफलाइन तो बहुत कुछ हो सकता है। 

ऑनलाइन क्या हो सकता है? 

ऑनलाइन बहुत कुछ हो सकता है। आप हकीकत की दुनियाँ के मंदिर को मस्जिद और फिर डालमियाँ विभाग तक पहुँचा सकते हैं। सिर्फ आप? या?

या बहुत बड़ा प्र्शन है।  

चलो पहुँच गए मंदिर से डालमियाँ विभाग। रिवर्स इंजीनियरिंग फिर से करने में कितना वक़्त लगेगा? करके देखें?

हो तो जाएगी, मगर वक़्त और संसाधनों का कितना प्रयोग या दुरुपयोग होगा? खासकर, एक ऐसे जहाँ में जहाँ कितनी ही ज़िंदगियाँ आसपास ही नहीं, बल्की दुनियाँ के दूसरे कोने में भी लटके-झटके खाती हैं। दुनियाँ के दूसरे कोने पे किसी और पोस्ट में, आसपास क्या चला इस दौरान? या चल रहा है?

कहीं एक नन्हा-मुन्ना सा आया दुनियाँ में। इतने कम वक़्त में सिस्टम ने अगर उस घर से वक़्त से पहले दो लोगों को खाकर, एक दे दिया, तो क्या अहसान है? अगर सिस्टम की जानकारी होती तो वो दो भी ना जाते? जैसे बाकी और घरों में। कहीं-कहीं थोड़ी बहुत भरपाई होती है, मगर कहीं-कहीं? ये भी सिस्टम बताता है? वैसे हम इसे भरपाई कह सकते हैं क्या? No offence to female brigade. क्यूँकि, हमारे यहाँ उनकी गिनती ही नहीं होती शायद? मगर इस सबसे दूर क्या चला, वो शायद यहाँ लोगो को मालूम नहीं होता। कौन-सी पीढ़ी के, कौन से रोबॉट वाली, किस कँपनी की मोहर ठोक चुका ये सिस्टम? क्या खास है, दुनियाँ की हर पैदाइश ऐसे ही है। ऐसे ही और भी सामान्तर किस्से-कहानियाँ हैं, जहाँ पता ही नहीं, क्या-क्या खा गया ये सिस्टम। इसलिए बार-बार कहा जा रहा है, की सिस्टम को जानना और समझना जरुरी है।  

ऐसे ही आसपास कुछ और हेरफेर या बदलाव हुए। सिस्टम के धकाए बिना जो संभव ही नहीं। उनपे आएँगे किसी और पोस्ट में। 

एक तरफ कुछ और भी चल रहा है। ये क्या है? P. S.  ब्लाह ब्लाह इनफोर्स्मेंट? एक तरफ कहीं कोई नई सरकार, उनकी कैबिनेट मीटींग, कुछ फैसले और कहीं कोई ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स। और दूसरी तरफ? कहीं कोई खास-म-खास फ़ोन? Court और Divorce? इससे पहले भी आसपास जितने रिश्तों की सिलाई, बुनाई, या तोड़फोड़ चली, उनकी भी कहानी यही है। उसके साथ-साथ, रोज-रोज के छोटे-मोटे ड्रामे तो चलते ही रहते हैं।

इन सबकी खबर ज्यादातर पत्रकारों को रहती है। राजनितिक पार्टियों को नहीं? वो तो ये सब दाँव खेलते हैं, डाटा कलेक्टर्स और डाटा और सर्विलांस अबूसेर्स के साथ मिलकर। बीच की सुरँगे छोटी-मोटी नौटंकियोँ का हिस्सा होती हैं, बिना ये जाने की इसमें तुम्हारा कितना नुकसान या फायदा है। राजनितिक पार्टियों को पता होता है, की ये सामान्तर घड़ाई वाले पीसेंगे बीच में। जैसे दो पाटों के बीच गेहूँ या दो सांड़ों के बीच झाड़। मगर, उन्हें इससे क्या फर्क पड़ता है? और वो इसकी जानकारी इन लोगों को क्यों होने देंगे? ऐसा हो गया तो उनका ये भद्दा, बेहुदा और खूँखार खेल ख़त्म। इस खेल का बहुत बड़ा हिस्सा आपके दिमाग से जुड़ा है। आप अपने दिमाग को कितना चला रहे हैं या सुला रहे हैं? और बाहर से वो कितना और कैसे-कैसे कंट्रोल हो रहा है? राजनीती और इन बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा? आज के समाज का सारा खेल यही है। 

रिवर्स इंजीनियरिंग बड़ा ही रौचक विषय है। जानने की कोशिश करें, थोड़ा इसके बारे में? 

Thursday, February 20, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 39

Series Across Generations?

 कौन-सी जनरेशन से हैं आप?

रोबोट्स की या मशीन की, कौन-सी सीरीज या कंपनी (राजनितिक पार्टी) की?

अब मशीनों या रोबोट्स की तो जनरेशन होती हैं और सीरीज भी। आदमियों की? 

आज ही कहीं सुना की मैं Line वाली सीरीज से हूँ। 

Line? क्यों deadline से अभी भी पीछा नहीं छूटा? घर पे बैठके भी deadline, deadline चल रहा है? तो कोई ऑफिस ही ज्वाइन करले। 

अबे ऑफिसियल ही तो Daedline, Deadline चलता है। वहॉँ कौन-सा KBC चल रहा होता है, जो Lifeline चलेगी?

वैसे ये KBC कब शुरु हुआ था? Yours Lifeline के वक़्त?

ये दिल्ली में कौन-सी Line आ गई आज? 

Wednesday, February 19, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 29

ब्लाह भाई यो किसा खेल, "दिखाणा सै, बताना नहीं"? यो तो भुण्डा, अर फूहड़ सॉंग लाग्या। कोए बात होई, या गोली ले, अर बारिश सुरु? या ले, अर पीरियड शुरु? या ले, अर दर्द शुरु? दर्द होए पाछैय, आदमी कित जागा? जै डॉक्टर धोरै ना जागा तै? अर वें कसाई फेर कमई करो उह आदमी गेल? यो तो भोत भुँडी दुनियाँ। पहलयॉँ नूं कहा करते, अक साच वो हो सै, जो आपणी आँख्या देखा अर आपणे काना सुना। यूँ तै जो दिखअ सै, अर सुनै सै, वो भी के बेरा कितणा साच सै? 

महारे बावली बुचो, अक भोले आदमियों? ये तै ABCD सैं, इस खेल की, थारे जीसां नै समझाण खातर। घणे शयाणे, घणे पढ़े-लिखे, अर कढ़े आदमियाँ धौरे तै, आदमियाँ नै मानव रोबॉट क्यूकर बणाया करै, वा भी कला है। अर रोज दुनियाँ का कितना बड़ा हिस्सा बन रया सै। जिसमैं जरुरी ना कम पढ़े लिखे ए हों। आच्छे खासे पढ़े-लिखे भी रोज बणअ सैं। म्हारे सिस्टम का या समाज का कितना बड़ा हिस्सा ऑटोमेशन पे है। मतलब, एक बार जो मशीन में फीड कर दिया, उड़ै तहि का काम आपणै आप होवैगा। बस वो सेटिंग करणी सैं। अर वो भी दूर बैठे रिमोट कण्ट्रोल सी दुनिया के किसी हिस्से से कर दो। समाज को कण्ट्रोल करने का जो मैन्युअल हिस्सा है, उस खातर इन राजनितिक पार्टियों की सुरँगे हैं। 

जुकर कोए कह विजय मोदी का साला लाग्य सै। विजय भी भड़क जागी, अक बतमीज़ां नै बोलण की तमीज ना सै। उसने के बेरा इसा भी कोय मोदी उसके आसपास अ हो सकै सै। फेर बेरा पाट्य यो विजय तो लड़का था, ना की लड़की। और वो विजय काफी धार्मिक इंसान भी बताया। यूँ अ और भी विजय नाम गिणां जांगे, वो भी लड़के। या शायद एक आध लड़की भी। और उनकी अजीबोगरीब कहाणी भी सुणा देंगे। यहाँ तक कुछ नहीं समझ आता, की लोगबाग इतना क्यूँ खामखाँ फेंकम-फेंक लाग रे सैं? 

थोड़ा बहुत समझ आएगा, जब उन कहानियों को थोड़ा और जानने की कोशिश करोगे। ऐसे ही जैसे, किसी भी और नाम की कहानी। जैसे ये मंजू यहाँ, वो मंजू वहाँ और वो मंजू वहाँ। देस के इस कोने से दुनियाँ के उस कोने तक। कुछ भी नहीं मिलता और जैसे मिलता भी है? कोढों के अनुसार? और ऐसे ही उनकी ज़िंदगी की कहानियों के उतार-चढाव। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे किसी भी बीमारी के उतार-चढाव? अलग-अलग रंग की गोटियाँ जैसे? मगर, जिनके रंग और उनको चलाने के तरीके सिर्फ इन राजनितिक पार्टियों या डाटा इक्क्ठ्ठा करने वाली कंपनियों को पता हैं। मतलब, ये आपका डाटा आपकी जानकारी के बिना पैदाइशी ही इक्क्ठ्ठा करना शुरु कर देते हैं। और फिर उस डाटा को अपने बनाए प्रोग्राम्स के अनुसार चलाते हैं। वो सब भी आपकी जानकारी के बिना। इस सबमें आपकी IDs बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। 

यूँ तै कब कोण पैदा कराणा सै अर कब बीमार, अर कब मारणा सै, वो भी इनके कब्जे मैं?

वही तो मैंने कहा। यही नहीं। कब किसी की शादी करवानी सै और किससे? और कब तुडवाणी सै? किसके, कितने बच्चे पैदा होने देने सैं और किसके किस तरह की बीमारी या एक्सीडेंट कहाँ-कहाँ करने सैं। फेर उनके सामान्तर भी घडणे सैं। अब ये सामान्तर अच्छे हैं, तो, तो सही। मगर अगर ये सामान्तर घढ़ाईयाँ बूरे वाली घडणी सैं तो? जिनके घड़ी जाएँगी, उनका नाश। और इससे इन राजनितिक पार्टियों को धेला फर्क नहीं पड़ता। इसलिए दुनियाँ के इस साँग या अजीबोगरीब रंगमंच और इसे चलाने वालों के बारे में थोड़ा बहुत तो जानना जरुरी सै। 

Tuesday, February 18, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 38

Weather manipulation and human behaviour or physiological or psychological manipulations, one and same thing?

आज के वक़्त में कृत्रिम बारिश, ओले, बर्फ गिरना या आँधी, तुफान, छोटे-मोटे भूकंप, चक्रवात, या बाढ़ लाना, कितना मुश्किल या आसान है?    

और इंसान या अन्य जीवों की फिजियोलॉजी को बदलना?

सिर्फ बारिश चाहिए? ये गोली?

पीरियड्स चाहिएँ? ये गोली?

कम या ज्यादा चाहिएँ? सँख्या बढ़ा दो?

बच्चे के पैदा होने से पहले का सीन या दर्द दिखाना है? ये गोली?

उसे पथ्थरी बता दो? किसे पता चलेगा? 

जब खेल ही दिखाना है, बताना नहीं? 


ऐसे ही कोई भी बीमारी दिखा सकते हैं? सिर्फ दिखा सकते हैं? या कर भी सकते हैं? सिर्फ कर सकते हैं या ना होते हुए भी ऐसी रिपोर्ट दे सकते हैं? किसे पता चलना हैं? ऐसे में ऑपरेशन करना कितनी बड़ी बात है? और दुनियाँ से ही चलता करना? कहीं न कहीं हर रोज हो रहा है?   

और आपको ये सब कोरोना के वक़्त कुछ-कुछ समझ आए, की ये लोगों के साथ हो क्या रहा है? और कैसे? उसके बाद जब घर आकर रहना शुरु किया, तो जैसे रोज ही पागलपन के दौरे तो नहीं पड़े हुए, ये सब करने वालों को? आदमियों को बक्श रहे थे ना जानवरों को। पक्षियोँ के कारनामे तो अभी तक जैसे, यकीं करने लायक नहीं। हाँ, पौधों के जरिए जरुर थोड़ा बेहतर समझा जा सकता है। जैसे poppy यूनिवर्सिटी में कब और कहाँ-कहाँ दिखने लगा? उसे पहली बार यहाँ गाँव में कहाँ देखा? ऐसे ही जैसे धतुरा और कितने ही पौधे, ईधर आते हुए और फिर जाने किधर जाते हुए या बिखरते हुए?    

मानव रोबॉट लिखना मैंने कोरोना के बाद ही शुरु किया था। आसपास लोगों का थोड़ा अजीब-सा व्यवहार जानकार या समझकर। या शायद उनकी ज़िंदगियों के अजीबोगरीब किस्से-कहानी जानकार। जिसमें आपको समझ तो आता है, मगर, इतने सारे प्रूफ कहाँ से और कैसे लाओगे? और जैसे वो ऑनलाइन हिंट्स वाले प्रूफ भी देने लगे? जैसे कह रहे हों, ले प्रूफ, रख ऑनलाइन? या शायद, क्या कर लोगे ऑनलाइन रखकर भी? अगर ये सब ब्लॉक नहीं हो रहा होगा, तो कुछ न कुछ तो आम लोगों तक भी पहुँचेगा ही। यही बहुत है शायद, एक इंसान के लिए तो।    

ABCDs of Views and Counterviews? 37

Political infection in Science?

Or Research Politically infected?

वैसे तो इस इन्फेक्शन का रुप 2018 में ही दिखना शुरु हो गया था। उसके बाद जब भारती-उजला के केस की फाइल शुरु हुई, तो जैसे सबकुछ जबरदस्ती छीना-झपटी। तुम्हारा क्रेडिट गुंडागर्दी से किसी और के नाम कर देना। लेकिन क्रेडिट किसी और के नाम कर देना पहली बार नहीं था। उसकी तो जैसे आदत हो चली थी मुझे। मेहनत करो या करवाओ और दान कर दो? आदत भी ऐसे, की जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। नफरत हो गई थी ऐसे चोरी करने वालों से या झूठ पे झूठ फेंकने वालों से। मगर उसमें भारती-उजला अकेला केस नहीं था। ये उससे भी ज्यादा विचलित करने वाला था।  

वीरभान का केस कुछ-कुछ, ऐसा-सा ही था। या कहना चाहिए एक कदम और आगे? जैसे कोई सरकारी सामान, जो सबके प्रयोग के लिए हो, उसे अपने यहाँ रखके और फिर शिकायत भी आपकी ही करे। अमेरिकन butterfly या fly? या drosophilla? कौन से वाली? आप शिकायत करें, चाहे वो कितने ही तथ्यों सहित हो, फर्क नहीं पड़ता। और वो भी सिर्फ आपने नहीं, बल्की, बाकी फैकल्टी ने भी की हुई हो, आपसे भी पहले? मगर, उसके बावजूद कोई committee उसकी झूठ-सच फेंकी हुई फाइल आगे चलता कर देगी। और आपकी? या शायद साथ में किसी और की भी?

और? वो खास वाला tea invitation? कमल, कमल?
और आपको कई और ऐसे-ऐसे केसों की फाइल झेलने के बाद समझ आता है, की ये सब चल क्या रहा था?

आप कोई भी dissertation, कोई भी thesis या कोई भी research पेपर उठाओ और पॉलिटिकल इंफेक्शन नज़र आएगा। हम क्या पढ़ते हैं? क्या सुनते हैं? या क्या देखते हैं? Review या literature भी वहीँ से आयेगा और रीसर्च प्रश्न भी। कैसे और क्या लिख रहे हैं, कहीं न कहीं वो सीरीज या पॉइंट्स भी वहीँ से निकल कर आते हैं। जरुरी नहीं, हर किसी को पॉलिटिकल इंफेक्शन का इस स्तर पर पता हो। मगर रिजल्ट तो उसी के आसपास मिलेंगे? वहाँ के सोशल मीडिया कल्चर के आसपास? और वो सोशल मीडिया कल्चर या सिस्टम, वहाँ की राजनीती बनाती है। अजीब लग रहा होगा बहुतों को सुनकर शायद? यहाँ भी राजनीती की पहुँच या पैठ इस कदर? फिर किसी layman को क्या बोला जाए? 

किस वक़्त किसने क्या रिसर्च की है या किसी डिपार्टमेंट या प्रोफेसर या साइंटिस्ट के रिसर्च का टॉपिक या प्रोजेक्ट क्या रहा? और क्यों? और रिजल्ट?   

उससे भी हैरान करने वाली बात, मान लो आपकी रिसर्च का या लैब का टॉपिक ही stones हैं। वो फिर चाहे kidney stone हो या gall bladder और आपको या आपके यहाँ किसी को ये समस्या या so called बीमारी हुई है या थी। मगर शायद वो बीमारी थी ही नहीं?

अब ऐसे ही आप किसी भी रिसर्च टॉपिक या बीमारी पर जा सकते हैं। किसी भी मतलब, मतलब किसी भी। वो फिर क्या कैंसर, क्या पैरालिसिस, क्या कोई भी बुखार या इन्फेक्शन। आपका कोड या आपकी जगह का कोड और उस वक़्त वहाँ की राजनीती का कोड, बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है इस सबमें।   

मगर कुछ है शायद, जो बहुत लोगों को पहले नहीं पता था? या शायद अब तक नहीं पता की उस कोड का पता कैसे लगे? और किस कोड वाली जगह जाने पर आप उस बीमारी से बच जाएँगे ? या संसाधन सम्पन हैं या जानकार हैं, तो जहाँ रह रहे हैं, वहाँ रहकर  भी निपट लेंगे या ठीक हो जाएँगे? कुछ केस लेते हैं आगे। 

और हमें ये राजनीती कहाँ, कैसे केसों में या फालतू की बकवास में उलझा रही है, अनपढ़ गँवारों की तरह? ये सब जानने या बताने पर पहरे हैं? अगर हाँ तो क्यों?                                   

ABCDs of Views and Counterviews? 36

Immersive practical training to people via their life experiences? Dynamic dance between science, arts, society and technology? 

Source Link-e din? Or? 

जैसे Cold Harbour?

या 

Cold Spring Harbour? अगर अमेरिका की बात हो तो?  

और Skovde? अगर यूरोप की बात हो तो? 

अगर उस पर Laboratory भी जोड़ दें तो?

Cold Spring Harbour Laboratory? New York? 

यहाँ का मीडिया कल्चर कैसा है?

ये इतने गर्म प्रदेश वाले निवासियों को कहाँ और कैसे कोल्ड में पँहुचा रहे हैं आप? वैसे ये रिसर्च इंस्टिट्यूट भी रौचक जगह होती हैं। इनमें भी राजनीती ऐसे ही चलती होगी, जैसे किसी भी यूनिवर्सिटी में? कहीं तो शायद उससे भी ज्यादा? जितने खुरापाती दिमाग, उतनी ही ज्यादा खुरापात? 

चलो, थोड़ी-सी Cold Spring की सैर पे चलें? 

Rob के साथ? 

थोड़ा संगीतमय तरीके से Genetics या थोड़ी Molecular?

या शायद थोड़ा बहुत इस इंस्टिट्यूट का मीडिया कल्चर भी पढ़ें?   

जल्दी ही वापस आ जायेँगे। 


Musical Cold?
या Molecular Cold?
  
Selfish DNA?
Or 
Inheritence? 
Or 
जैसे कोई गाना याद आ रहा है मुझे तो? 
It's set in my DNA?  
इसे आगे और पढ़ेंगे Political infection in Science?
Or Research Politically infected?
And targetting whom?    

तो वापस, आसपास की ही बात करें?     

जैसे आपके घर की दीवारें और फर्श बोलते हैं? राज देखो वो कैसे-कैसे खोलते हैं? जैसे कोई पथ्थरों को तोड़ रहे हैं या रहा है? और कोई पथ्थरों को पूज रहे हैं? कोई उन्हें दिवार में सजा रहे हैं? और कोई, पानी की टंकी के पास? या पथ्थर के ऊप्पर हीटर? कोई FLY कर रहा है या करवा रहा है? और कोई FLY को दिवार पर पेपर-सा टाँग रहा है? 

या शायद तार पर फोटो-सा? 



कोई राजदरबार के महल सजाए हुए है या हैं? और कोई? उन राजदरबारों को पेपर बना दिवार पर टाँग रहा है? कोई मैट्रेस पर सोने को बोल रहा है, जैसे Deep sleep? 

तो कोई साँड़ सोवेंगे ईब इह पै? और कोई चारपाई को खाटू से जोड़ रहा है? Khatu? और उस चारपाई के पावे 3-1 या 4? 

क़ोई C rypto, तो कोई?   

तो कोई D emocracy या ictatorship? 

ऐसे ही जैसे, कोई leptocracy प्रधान है?

कोई M onarchy प्रधान है?   

तो कोई O ligocracy? और भी पता नहीं क्या क्या? 

वैसे ही जैसे कोई Co ld  प्रधान भी हैं? अब वो positively cold हैं या negatively? वो भी शायद अलग-अलग मामला हो सकता है? 

leptocracy प्रधान?

ABCDs of Views and Counterviews? 35

मीडिया कल्चर किसी भी समाज का कैसा है? कैसे जाने?

आपके यहाँ धर्म बहुत अहम है? समाज में छुआछात है? और धर्म के ठेकेदार भी हैं? ठेकेदार जो ये निर्णय करते हैं की कौन धर्मी हैं और कौन अधर्मी? भगवान भी एक नहीं, बल्की, शायद उतने ही हैं जितनी जनसँख्या? और हर कोई, किसी न किसी तरह अलग मत रखने वाला? ये तो बहुत ही खतरनाक किस्म का धर्म नहीं है? ये भगवान अपनी खास तरह की  स्वार्थ सिद्धि के लिए बने हैं? शायद, अपने अवगुण छिपाने के लिए? और अपनी भक्त जनता को, अपने किस्म के अवगुणों का चोला उढ़ाने के लिए?

आपके यहाँ कितने मंदिर हैं? किन-किन देवताओं के? कभी उनके भजन सुने ध्यान से? अगर नहीं, तो सुनके देखना। अगर दिमाग से सुनोगे, तो पता चलेगा की वो एक दूसरे से भिन्न कैसे हैं? क्या खास हैं उनमें? या क्या खतरनाक है, जो वो समाज को परोस रहे हैं? भगवान या भगवान के मंदिर और खतरनाक? पाप लगेगा? हैं ना? लगा हुआ है मुझे तो। तब से, जब से इनके और इन जैसों के खिलाफ बोलना शुरु किया। कब? जब पता चला कोई 3 बच्चों का बाप एक बच्ची को बहला-फुसला कर कहीं लेकर जा रहा था। और लड़की के घर वालों ने या कुछ अपने कहे जाने वालों ने उस बच्ची को मार दिया। अरे। ये तो बहुत पुरानी बात है। है ना कौशिक? कब की? क्यों मना किया था तुमने की ऐसी खबरें कहाँ से रिपोर्ट नहीं करते? कोई विजय साथ नहीं था शायद उसमें? मगर अपनी बहन को बचा भी कहाँ पाया? हाँ। उसके बाद पुलिस में जरुर लग गया?   

उसके ढाई-तीन दशक बाद आपने ऐसा-सा कुछ ना सिर्फ खुद भुगता या आसपास कुछ लोगों को भुगतते हुए पाया, बल्की इन भागवानों से और ज्यादा नफरत हो गई। 
उसपे जब ये पता चला, की तुम कैसे हायर एजुकेशन के इंस्टिट्यूट में हैं जो आपको पढ़ने-लिखने की या ऐसा माहौल देने की बजाए धकेल रहा है, कहाँ? और कैसे-कैसे स्टीकर चिपकाने वाले महान IAS, IPS, Scientist, Professors या  Defence Officers हैं? फिर न्यायपालिका? वो तो लंजू-पंजू है? बेचारी है न्यायपालिका? उस बेचारी न्यायपालिका के पास कोई अधिकार ही नहीं है?  

दीदी आपको पता है, उन शंकर क्यां न अपनी छोरी मार दी? शंकर? अरे ये कौन-से शंकर हैं जो आज तक ऐसा इतने खुले आम करने की हिम्मत रखते हैं? 
और कहीं से जैसे आवाज़ आती है, की ये कहीं न कहीं आपके अपने हैं। 
अपने?  
शंकर भगवान वाले। शिव वाले। खाटू श्याम वाले। 
क्या? 
एक ना होकर भी एक जैसे ही हैं। 
मतलब?
साथ में महाबली, हनुमान और गणेश को भी जोड़ लो। 
क्या बक रहे हो तुम?

जबरदस्त खिचड़ी है, अपनी-अपनी तरह के स्वार्थों की या कहो की कुर्सियाँ पाने की। आम आदमी का फद्दू बनाकर। सब राजनितिक घढ़ाईयाँ हैं। वक़्त के अनुसार, राजनीती इन घड़ाईयोँ में हेरफेर करती रहती है। कहीं के भी जनमानष को मानसिक रुप से भेदने का अचूक साधन हैं ये भगवान, गुरु वगरैह। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। 

एक तरफ, वो बिमारियाँ और मौतें घड़ रहे हैं, वो भी ऐसे की कैसे हुआ है ये आम लोगों को खबर तक ना हो। और दूसरी तरफ, खेल, जुआ, जिसमें खास तरह के स्टीकर चिपकाने हैं, सामने वाले पर, दिखाना है, बताना नहीं के तहत?
एक ऐसा जुआ जिसमें बच्चा पैदा करने की राजनितिक प्रकिया, अपने ड्रामे की गोटी की पैदाइश के पहले के किर्याकल्पों से लेकर, पैदा होने के बाद तक की कहानी को, कितने ही लोगों की मौतों तक को बताकर रचना है? नहीं, बताकर नहीं, दिखाकर। देखो, इतने मर गए? जहाँ बच्चे क्या, औरतें क्या, बुजुर्ग क्या, सब गोटी हैं? वो बच्चा भी गोटी, वो भी वो, जो अभी पैदा तक नहीं हुआ? कहाँ ड्रामे या जुए के नंबर और कहाँ हकीकत की ज़िंदगानियाँ? जैसे इंसान, इंसान नहीं गाजर-मूली हो?   

कैसी आदमखोर राजनीती है? और अपने आपको सबसे शिक्षित, सभ्य और ऊँचें दर्जे का कहने वाला ये वर्ग भी इसमें पार्टी है? शायद? किसी न किसी रुप में?
जानने की कोशिश करें आगे?                      
                         

Monday, February 17, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 34

LA? या LX?

या एलेक्स? Alex


ऐसे ही जैसे 

Rat?

Or

Rabbit?

Or

Mouse?


Buffalo या Cow?

बेन? Ben 

या बहन? Bahan  


ऐसे ही जैसे 

माइक्रोसॉफ्ट? Microsoft  

या 

गुगल? Google  

Hi5? 

या 

Orkut? 

या 

Facebook?


Friend?

या  

Fan?

या  

AC?  

या 

AD? 

या 

Co?

Coin?

Cold?


ऐसे ही जैसे 

Maize?

Or 

Corn?


Hydra?

Or

Hybrid?

Popcorn?


तो बच्चों वाली abcd पर हैं हम अभी? 

यहाँ से आप हायर एजुकेशन या रिसर्च वाली जुबान या भाषा या बोली(?) पर भी शायद ऐसे ही जा सकते हैं, जैसे आपके फ़ोन में किसी गेम के पहले, दूसरे या किसी और स्तर पर। 

मगर किताबों, पेपरों या मोबाइल या लैपटॉप पर वीडियो गेम्स से आगे, एक और जहाँ है। हमारा समाज, जहाँ हम रहते हैं और अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी जीते हैं। आपके आसपास की उस ज़िंदगी में क्या हो रहा है? कैसे और क्यों हो रहा है? आप खुद कर रहे हैं या कोई और? या कितना आपकी ज़िंदगी आपके अपने कंट्रोल में है और कितनी आपके सिस्टम के? मीडिया कल्चर आपके यहाँ का कैसे आपको या आपकी ज़िंदगी के हर पहलू को कंट्रोल कर रहा है?   

3 Idiots देखी है? अगर हाँ तो कैसी मूवी है? उसमें एक बड़ा ही अजीबोगरीब-सा सीन है। पेपर हो रहे हैं और पपेरों की चोरी भी? बारिश हो रही है और किसी स्कूल के ऑफिस से पेपर चुराए जा रहे हैं? या फिर बच्चा पैदा करवाया जा रहा है? ऐसे भी कभी होता है? आजकल दिल्ली में कहीं कुछ ऐसा ही तो नहीं चल रहा? अरे नहीं, वहाँ तो कुछ और ही किस्म की मारकाट-सी चल रही है शायद? पीछे कुम्भ के मेले में भी ऐसा कुछ ही तो नहीं हुआ?

ये सब राजनीती के या मूवी के स्तर पे कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा दिया शायद? तोड़मोड़, जोड़, घटा, भाग या गुना करके? कुछ का कुछ और ही बना दिया शायद? मगर, क्या हमारी अगली पीढ़ी सच में ऐसे ड्रामों के साए में पैदा हो रही है? उसकी पैदाइश पे भी मोहर ठुक कर आती है? और जन्म सर्टिफिकेट से लेकर, आगे की हर ID, ऐसे से ही कोढों के साथ मिलेगी? मिलेगी? नहीं, ऐसा तो कब से हो रहा है?   

मगर क्यों?

अच्छा कौन-सी जनरेशन के मानव रोबॉट हैं आप? और कौन सी कंपनी के?   

क्या हम मशीन हैं? जिन पर ये मशीनी युग, यूँ मोहरें ठोक रहा है? और फिर इन इंसान रुपी मशीनों की ज़िंदगियाँ, ऐसे ही उत्पादों की तरह चलेंगीं? चलेंगी? नहीं आपकी भी ऐसे ही चल रही हैं। जैसे पैदाइश वाली कंपनी का रिमोट, जुए के खेल-सा गोटियों को चलाता है? क्यूँकि, खेल के हर अगले स्तर पर वो अपनी मोहर ठोक रहा है, ID के कोढ़ के रुप में। पैदाइशी ही बच्चे को किसी खास तरह की कैटेगरी में रख देना जैसे। 

ABCDs of Views and Counterviews? 33

आदमी और मशीन आमने-सामने? Human Beings and Human Being?

आदमी संवेदनशील जीव है। हालाँकि, उसका शरीर भी, एक तरह की मशीन ही है। और आदमी द्वारा बनाई गई मशीनें? वो अभी उतनी सवेंदनशील नहीं हुई। वो आदमी की ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए बनाई गई हैं? मगर लालची इंसानों ने आदमी को मशीनों की तरह, और मशीनों को या प्रयोग करने के निर्जीव संसाधनों को आदमी की तरह या जगह प्रयोग करना शुरु कर दिया।   

ये मशीन कौन है? या हैं? ये मशीने कैसे बनती हैं? इन्हें कौन बनाता है? या बनाते हैं? कैसे बनाते हैं? ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी मशीने बनाने के लिए क्या-क्या और कैसी-कैसी जानकारी चाहिए?   

सब जीव अपने आपमें किसी ना किसी तरह की मशीन हैं। इन जीवों से प्रेरणा लेकर, कितनी सारी मशीने इंसान ने बनाई हैं? जीवों जैसी मशीने बनाने से पहले, उन जीवों के बारे में कितना कुछ पढ़ा या जाना गया होगा? उनपे कितनी ही तरह के प्रयोग किए गए होंगे? उस सबके बावजूद, आज तक हूबहू वैसी ही मशीन फिर भी नहीं बना पाया है इंसान। खासकर, जटिल जीवों के केस में। मगर कोशिशें जारी हैं। कुछ केसों में शायद कुछ जीवों से बेहतर भी बनी हैं? कई जीवों के जरुरत के गुणों को एक ही मशीन में घड़ कर। Genetic Engineering कुछ-कुछ, ऐसा-सा ही विषय है। Robotics भी? Computer Science या AI भी? और इन जैसे कितने ही विषयों की खिचड़ी से बना Social Engineering भी? जिसमें राजनीती और टेक्नोलॉजी या बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजिकल कम्पनियाँ अहम भूमिका निभाती हैं?   

इन सबका भला संविधान से क्या लेना-देना? मगर पीछे थोड़ा शंशय हो गया संविधान पे? आखिर, ये संविधान है क्या? कितनी तरह का है? और उन कितनी तरह के संविधानों के कोढ़ क्या हैं? बोले तो हमें तो इन कोढ़ वाले संविधानों का abcd भी नहीं पता? फिर ये कैसे पता होगा, की वो हमारी ज़िंदगी को प्रभावित कैसे कर रहे हैं?

एक कहीं किसी ने लिखा K प्रधान। K प्रधान? Klepto cracy? मतलब? चोरतंत्र? ये उन्हीं लोगों की ज़मीन, जायदाद या प्रॉपर्टी या ऐसी कोई सुविधा खा जाता है, जो इनपे विश्वास रखते हैं? Shah BJP जैसे? या कांग्रेस भी? या?   

B प्रधान Bluechip? Brew? Black?          

C प्रधान? Crypto? Coin भवसागर? Trump जैसे?  

D प्रधान?  Demo? Dictato? Kamla Harris जैसे?  

E प्रधान? Electro? Electric?  केजरू?  

S प्रधान? State? डॉलर सिंबल status? S के बीच डंडा जैसे?  

O प्रधान? Oligo? ooooooo? 

M प्रधान? Monarch राजे-महाराजे? 

N प्रधान? Nation? 

R प्रधान? Rastra? 

ऐसे तो A से Z तक कितने भी शब्द और मतलब हो सकते हैं? थोड़ा और पढ़ने और समझने की जरुरत है शायद? कितने ही देश और कितनी ही तरह की राजनितिक पार्टियाँ? 

हाँ। इन सबसे जो समझ आया वो ये की आपका अपना नाम और जन्मदिन अच्छा खासा प्रभाव रखता है, आपकी ज़िंदगी में। या कहो की ज्यादातर IDs? आपके नाम के अक्सर या शब्द आपके लिए प्रधान होने चाहिएँ। न की किसी और के। वो फिर कोई भी abcd क्यों ना हो। नहीं तो आपको कोई न कोई पार्टी गलत तरीके से प्रयोग या दुरुपयोग कर रही है। नहीं, शायद इतना भी सीधा साधा नहीं ये अंको का जुआ या चालें या कोढ़ भवसागर? मगर सीधा सा समझने के लिए तो आपके नाम का हर अकसर अहम है। और किस नंबर पर कौन सा अकसर है ये भी?   

ऐसे ही आपका घर का पता अहमियत रखता है। वो आपके नाम है तो आपके लिए सही है। किसी बाप, दादा, चाचा, ताऊ, बहन, भाई, पति, पत्नी या बेटा या बेटी के नाम है, तो आपके लिए शायद बहुत सही नहीं है। और झगड़ों की या अशांति की बहुत बड़ी वजह हो सकती है। और अगर आप इससे भी पीछे कहीं बैठ गए या रह रहें हैं तो? या तो उसे अपने नाम करवाएँ और अपनी सहुलियत के अनुसार उसमें बदलाव करें। नहीं तो? ज़िंदगी ही बेकार है या ख़त्म है समझो। वैसे आप इतनी पीछे जाकर कर क्या रहे हैं? किसने धकाया आपको वहाँ और क्यों? राजनीती के गुंडों ने शायद? वैसे भी दूसरों के बनाए या खरीदे घर में कौन रहता है? बेचारे गरीब लोग? सच में? या शायद बहुत से केसों में ज़मीन खोरों के धकाए हुए? चाहे वो फिर सीधा-सीधा दिख रहा हो या गुप्त तरीकों से धकाया गया हो?  

अपना घर होने के साथ काफी कुछ और भी है जो अपने आप आपकी ज़िंदगी को प्रभावित करता है। जैसे घर का नंबर? वो तो है ही। जैसे मीटर? बिजली का वो छोटा-सा मीटर क्या सच में इतनी अहमियत रखता है? यकीं नहीं हो रहा, मगर मुझे तो ऐसे ही लगा। मीटर जो इलेक्शन तक का अहम मुद्दा हो? कब लगा? किसके नाम है? या बिल कौन भर रहा है? या बिल कितना आ रहा है? ये सब भी किसी की ज़िंदगी को प्रभावित कर सकता है क्या? मीटर आपके नाम है या किन्हीं पुरखों के नाम? बिल आप भर रहे हैं या पुरखे? या शायद पुरखों के नाम भी नहीं? वहाँ भी नाम बदल दिया? अरे भई अगर बिल आप भर रहे हैं तो मीटर भी अपने नाम ही क्यों नहीं करवा लेते? किस राम का या कुमार का मंदिर या मस्जिद बनवा रहे हैं आप? जो पुरखे अब दुनियाँ में नहीं हैं, उनका भी बिल आप भर रहे हैं? क्यों? वो अपना तो अपने ज़िंदा रहते ही नहीं भर गए? कहीं आपका शिकार तो नहीं हो रहा है? कोई गुप्त-गुप्त पार्टी, अपने कांडों को आपके पुरखों जैसे से लगने वाले नाम पर आपको बहलाकर या किसी भी ID में रखकर, आपका फद्दू तो नहीं काट रही? इसीलिए वहाँ अनिल कपूर की deep sleep advertisement वाला मैट्रेस्स और ऐसे ही किसी वक़्त बना बैड भी पहुँच गया? और माँ को किनकी खाटू-लीला वाले तिपहिये पे टाँग रखा है? तिपहिया? लगता है गाड़ियों के पहिए पंचर या बदलने का काम भी तो नहीं दे दिया किसी ने किसी को? चौथा पहिया कुछ अलग है क्या? खाट का या गाडी का? क्यों? गाडी कैसे चलेगी? इसे बीमारी बाँटना या प्रोशना भी तो नहीं बोलते?        

अपना नाम हर जगह एक ही रखें। ऐसे ही अपने बच्चों का। कहीं ऐसा तो नहीं, की इस ID में ये है और उस ID में कुछ और? आज के वक़्त में कोई खास प्रिंट गलती नहीं होती। ज्यादातर ऐसी-ऐसी गलतियाँ, राजनितिक पार्टियाँ अपने फायदे के लिए करती हैं। 

जैसे दमयंती की जगह दयावंती?

जैसे पूनम की जगह रवीना?

जैसे विजय की जगह? विजया? 

जैसे दांगी की जगह सिंह? 

या सिंह की जगह कुमार या कुमारी?

चौधरी की बजाय चो या चो.? 

कहीं गुप्त-गुप्त गालियाँ? और कहीं? और भी कितने ही उदाहरण भरे पड़े हैं आसपास। अब इतना भी कौन ध्यान देता है? 

सुना है, जहाँ-जहाँ इन्होंने बहनों को घर बिठाया, वहाँ-वहाँ भाईयों के बिगड़े सँवारने थे या हैं? ऐसे भी होता है क्या?  चलो वो तो सही। मगर कुछ केसों में उल्टा भी हुआ। मतलब, राजनितिक पार्टी के फायदे पर निर्भर करता है की उसका फायदा किसमें है? ऐसे ही भाइयों को या बुआ वगैरह को? और ऐसे ही उनकी ज़मीन वगरैह के साथ किया? जिनको फायदा होने वाला था, वहाँ बीवी ही उड़ा दी। और जिसका बसने वाला था, उसकी ज़मीन ही छीन ली, जो भी छोटा मोटा ज़मीन का टुकड़ा उसके नाम था? ये एक और दो प्रधान नंबर हैं और ये सब किया है 3 प्रधान वालों ने? कहीं कुछ उल्टा तो नहीं कर दिया? या शायद कहना चाहिए R और A प्रधान वालों ने? थोड़ा उलझ-पुलझ हो गया ये तो? शायद A U R? इसे कैसे समझें? या शायद थोड़ा जटिल है, इतना सीधा नहीं?           

कुछ एक केसों में ऐसा कुछ भी हुआ क्या, की किसी बहन को कहा गया हो की तू वो जमीन अपने नाम करवा ले। चाहे उसे वहाँ दो दिन रहना हो? जबरदस्ती जैसे? और अगर वो ऐसा करने से मना कर दे तो? काँड रचो? आपसी फूट रचो? या उस जमीन के जितने हिस्से को हड़प सको, हड़प लो?

या फिर बोलो, बाहर भाग? बाहर? घर से बाहर? देश से भी बाहर? आईडिया तो अच्छा है?

सुना है, यूनिवर्सिटी में वापसी हो रही है? Interesting? बुलडोज़र जी, वो साइको वाले किधर हैं? बुलाओ उन्हें? वापसी? जैसे रेखा गुप्ता, दिल्ली CM? कुछ सही बोल लो?       

बोले तो ये लड़की पागल है, पागल है? या? 

फेंकम फेंक? या तर्कसंगत?                 

ABCDs of Views and Counterviews? 32

मान लो, Ajit, Modi की बहु (Wife) है। कुछ और नाम भी हो सकता है। जैसे शँकरा? और Vijay, अजीत या शँकरा का भाई। मतलब, मोदी का साला (Brother in law)?

अब एक मोदी भारत (Bharat का, India का नहीं) का PM भी है। PM है, AM नहीं। जैसे वक़्त होता है, सुबह है या श्याम? मोदी की पत्नी का नाम Jasodaben है। अगर गाली देनी हो तो आप अपनी बहन को बेन भी बोल सकते हैं। सुना है, मोदी ने अपनी पत्नी को जैसे गाली दी हुई है। नाम मात्र का या दिखाया मात्र-सा रिस्ता जैसे? सुना है, पहले के जमाने में ऐसे होता था? घर वाले किसी को ले आए अपने बेटे या भाई की दुल्हन और मौका मिलते ही दूल्हा भाग गया? या शायद कुछ केसों में ऐसी कोई दुल्हन भाग गई? लापता लेडीज जैसे? लोगों ने कितना ही बुलाने की कोशिश की, आया ही नहीं या आई ही नहीं? कोई आपको कहे, की फलाना-धमकाना को बेन (बहन?) बोल के आना है? आप शायद दीदी, बेबे वगरैह कुछ बोलते हों? बहन का मतलब भी वही होता है। मगर, बेन? लगता है अंग्रेज कोई गाली दे रहे हैं? या भारत वाले किसी अंग्रेज को? थोड़े और खड़ुस हों तो वो बेन से आगे भी पहुँच सकते हैं? जैसे बेन चो. .. जैसा कुछ? और फिर गोविंदा-गोविंदा (Go v in da?) जैसा-सा कोई भजन भी गा सकते हैं? या बाई (B AI?) भी बोल सकते हैं? बाई भी गाली? अब ये अंग्रेज किसी को दे रहे हैं? या कोई अंग्रेजो को या किसी और को? तो ये अजीबोगरीब दुनिया है और इसकी गालियॉँ भी कितनी ही अजीबोगरीब हो सकती हैं। खैर, कोई गाली दे रहा है या दे रही है तो आपको थोड़े ही लगती हैं। गाली देने वाला अपनी जुबान ख़राब कर रहा है? या शायद कुछ और भी बता रहा है? कहीं वो अपने आप को ही तो नहीं दे रहा?             

आप किसको क्या सम्बोधन करते हैं या कैसे या क्या कहकर आशीर्वाद देते हैं या कोई भी आम बोलचाल की भाषा भी आपकी नहीं है? तो किसकी है? उस वक़्त के वहाँ के सिस्टम की? राजनीती की? जो आपकी जानकारी के बिना गुप्त तरीके से उसमें बदलाव लाते रहते हैं?

जैसे एक दिन यूनिवर्सिटी में कोई मीटिंग थी और लस्सी आ रही है, पानी की बजाय? अरे। बड़ी गर्मी है, ये तो अच्छा बदलाव है? वो भी हमारे यहाँ की गर्मी को देखते हुए। लस्सी ठंडी होती है ना। खैर। आपको गुस्सा आया हुआ है, तो लस्सी थोड़े ही वो गुस्सा ठंडा कर पाएगी? यूँ लगेगा फैला रहे हों रायता जैसे, कैसी-कैसी कुर्सियों पर बैठकर? शिकायत क्या की हुई है, और बकवास क्या चल रही है? कोई ड्रामा शायद? 

फिर कहीं आप साइको डिपार्टमेंट पहुँचे हुए हों और बड़ी ही शालीन-सी, कूल-सी दिखने वाली स्मार्ट-सी डॉक्टर, गुलाबी से रंग का कुछ पी रही हैं। रूह अफ्जा सा? अब ये क्या आ गया? गर्मी है तो? तरीके हैं सबके, अपने-अपने गर्मी से राहत पाने के? या ये राजनितिक साँग चल रहे हैं? गुलाबी गैंग जैसे? वो भी इतना स्मार्ट और सोफिस्टिकेटेड? या P in k जैसे?   

या कोई किसी मीटिंग में बोले उपासना (Up aasna?) करते हो? 

जी उपासना? आपने शायद शब्द ही पहली बार सुना हो? 

व्ययाम (Vyayam) या योगा (Yoga) सुना है?

जी। 

ऐसा ही कुछ होता है। 

उसके बाद आपको ध्यान आएगा, उपासना कौन बोलते हैं या करते हैं और व्यायाम या योगा कौन? या शायद Stadium कौन जाते हैं और Gym कौन? कोई इस शहर, कोई उस शहर? कोई इस गाँव या कोई उस गाँव? कोई इस देश और कोई उस देश? कहाँ किसका प्रचलन है या ज्यादा है? दुनियाँ भर में एक शब्द, किसी एक ही कोड की तरफ इशारा जैसे? या जगह के अनुसार राजनीती और सिस्टम बदलता रहता है? मगर फिर भी वो वहाँ के सिस्टम या राजनीती के बारे में बहुत कुछ बताता है। 

अब आप कौन से व्यायाम या योगा या उपासना करते हैं? कैसे करते हैं? कितनी देर करते हैं? कब करते हैं या नहीं करते हैं? किसके या किनके साथ करते हैं? ये भी वहाँ की राजनीती या सिस्टम के कोड का हिस्सा हैं। 

आप कहाँ या किस जगह या घर में रहते हैं, क्या वो आपके पतले, फिट या मोटे होने के बारे में भी कुछ बताते हैं? वैसे ही जैसे बिमारियों के बारे में?    

आपके बोलचाल से लेकर, खाना पीना, पहनना या किसी खास तरह का व्यवहार भी आपके यहाँ के Media Culture के बारे में काफी कुछ बताता है। उसी में आपकी समृद्धि या रुकावटें, स्वास्थ्य या बीमारियाँ और उनके ईलाज तक छुपे होते हैं। 

वैसे शब्दों की हेराफेरी थोड़ी बहुत तो समझ आ गई? सुना है, ऐसे ही कहीं का भी देश या सविंधान है। जैसे?  

Saturday, February 15, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 31

दुनियाँ में सिर्फ उतनी ही किस्म की बिमारियाँ हैं, जितनी कहीं की भी राजनीती या सिस्टम ने पैदा की हैं। न उससे कम और न ही ज्यादा। अगर कहीं की राजनीती कहती है की ये बिमारी है तो इसका मतलब? वो बिमारी हो या ना हो, मगर वो उसे पनपाने की कोशिश जरुर करते हैं।   

ऐसे ही जैसे दुनियाँ में कितनी तरह की छीनाझपटी या गुंडागर्दी है?

एक तो पीछे देखा-सुना बुलडोज़र राज? किनको उजाड़ के किनको बसा रहा है ये बुलडोज़र राज? या किसे बसाया? घरों को उजाड़ के मंदिर? घर ही मंदिर नहीं तो मंदिर के रोड़ों, पथ्थरों या ईंटों में क्या होगा? ऐसे-ऐसे मंदिर या मस्जिद या कोई भी so called उजाड़ु धर्मात्मा मुझे तो? राक्षस से कम नहीं नज़र आते। ये कैसा धर्म और किसका धर्म? अच्छा, उन्होंने किसी को उजाड़ के वहाँ अपना बनाया? धर्म परिवर्तन? या सिर्फ राजनीती और लूटखसौट? 20-25 साल से जिनके साथ ये हो रहा था, तुमने तो सुना है उन्हें भी उखाड़ फेंका? मारकाट? हिंसा? किस धर्म में जायज़ है? तरीके तो और भी बहुत हो सकते हैं? मतलब धर्म-वर्म कुछ नहीं, घटिया राजनीती। या महज़ कुर्सियों के लिए मारकाट?

बीजेपी मंगलसूत्र अहम बताया? भला ऐसे काँड धरे मंगल के यहाँ, तो मंगल होना ही चाहिए? या? ये किसी और मंगल सुत्र की बात है? अरे वो संविधान? जिसमें लड़कियों को मारा-पीटा जाता है? धोखाधड़ी से यहाँ से वहाँ फेंका जाता है? और सुनो पढ़ाई-लिखाई कुछ नहीं होती। शिक्षा-विक्षा क्या बला है? शिक्षा संस्थानों में पढ़ने-पढ़ाने कौन जाता है? धर्म के नाम पर अधर्म, छुआछात और मारपिटाई या धोखाधड़ी करने जाते हैं? झुठे-सच्चे नंबरों की दौड़ में, हमारे बड़े-बड़े संस्थान? सब जायज़ है? मंगल सूत्र संविधान का हिस्सा है, मगर अगर आप शादी शुदा नहीं हैं तो? या बच्चे नहीं हैं तो? कौन से अधिकार? कैसे अधिकार? किसके अधिकार? जिसकी लाठी उसकी भैंस का नाम ही संविधान है। 

वैसे कितनी तरह के संविधान हैं दुनियाँ में? शायद आपने भी कभी नहीं पढ़ा हो? जानने की कोशिश करें? वैसे ज्यादातर सुना है Transectional हैं? बड़े ही अजीबोगरीब तरीके के? बड़े ही अजीबोगरीब कोढ़ो वाले? जानते हैं आगे।     

Blog address for महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?

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महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 

Layman and Clever?

https://laymanandclever.blogspot.com/

Tried to organize some other series also but? Seems some blockage? 

E-state?

एक ज़माना था जब  

इलेक्शंस मारपिट , गुंडागर्दी का खेल होता था 

पैसा-दारु जमकर चलता था

कोई हिसाब-किताब ही नहीं होता था 

की ये गवाँरपठ्ठे बनने के बाद करेंगे क्या?

बदला है क्या कुछ? 

कैसे उठते हैं उम्मीदवार?

 कैसे काम करती है ये EVM?

E-state? 

कौन और कैसे जीतता है?

दे दारु, दे पैसा, मारपीट, लूटमार?

साम, दाम, दंड, भेद 

मुद्दा कोई कहाँ है?

वो जहाँ कहाँ है?

अब ये जो देश है तेरा, कुछ यूँ समझ आता है 

कौन-सा देश बावले, कौन-सी सीमायें?

ये झन्डुओं जैसी बातें तुम कहाँ से लाये?" 

जितने ज्यादा गवाँरपठ्ठे होंगे

उतने ज्यादा राजे-महाराजे और गुन्डे राज करेंगे 

बस यही दशा और दिशा है भारत जैसे देशों की?

या गुंजाइश है अभी भी कुछ बदलाव की?


Immersive practical training to living organisms via their life experiences?

Dynamic dance between science, arts, society and technology? 

Source Linkedin

Thursday, February 13, 2025

Decluttre?

Rhythms of Life needs some triming? Decluttre or organize a bit better, a regular process underway. Multipost series better to have their own separate address.

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 28

 शब्दों की महिमा 

हर शब्द कुछ कहता है। हर शब्द के पीछे कोई कोड है। जैसे?  

Late या Early या on time ? 

आपने अपने किसी घर के इंसान की फोटो लगाई हुई है, जो अब इस दुनियाँ में ही नहीं है? क्या लिखा है उस पर? कौन लेके आया था उसे? सोचो, वो "दिखाना है, बताना नहीं" के अनुसार क्या है? Late? और तारीख के नंबर? फोटो कौन-सी और किस वक़्त की है? कोई सुन्दर-सी है या? क्या पहना हुआ है? फोटो पे कोई माला या कुछ और भी पहनाया हुआ है? जानने की कोशिश करें?  

जाने वाला late था क्या? या आपकी ज़िंदगी में तो सही वक़्त पर आया था या थी? या शायद वक़्त से पहले ही? फिर ये late क्या है? ये जो अब उस घर में बच गए, उनको late बताना या बनाना तो नहीं? या उस घर में होने वाले किसी खास या अच्छे काम को या लाभ या शुभ को? जो नंबर उस पर लिखे हैं, उनके अनुसार? मगर कौन बता रहा है? जाने वाला तो है ही नहीं। उस फोटो को लेकर कौन आया था? वो फोटो, कहाँ और किसने बनाई? वो उसे लेट कर गया? या घर के बाकी सदस्यों को? या किसी अच्छे या शुभ या लाभ वाले काम को? क्या पता खुद लाने वाले को या बनाने वाले को भी कुछ नहीं पता? 

वो तो खुद जाने वाले के जाने से दुखी हो? और सोच रहे हों, की इतने जल्दी कैसे चले गए? मगर लाने वाले का मतलब ये है, की उसने उसे लेट बना दिया? किसी तरह की अड़चन खड़ी कर दी, उसके रस्ते में? या उस घर के रस्ते में? कैसे संभव है? कोई अपने ही इंसान को कैसे लेट बना सकता है? या दुनियाँ से ही ख़त्म कर सकता है? सोच भी नहीं सकता शायद?    

आपने उस फोटो को कहाँ रखा या किसी ने आपसे कहकर रखवाया? अभी तक वो फोटो उसी जगह रखी है या उसकी जगह यहाँ से वहाँ या कहाँ बदली हो गई? खुद की या किसी ने कहा? माला वाला भी चढ़ा दी उस पर या ऐसे ही है? माला है? तो किस रंग की या कैसी या क्या कुछ है उस माला में?

इसे Show, Don't Tell बोलते हैं। दिखाना है, बताना नहीं। और इसके पीछे कोई न कोई राजनितिक पार्टी होती है, गुप्त तरीके से, उसकी सुरंगें। काफी हद तक सिस्टम ऑटोमेशन (System Automation) काम करता है। जैसे कोई भी ट्रेंड चला देना या रीती रिवाज़ या प्रथा। और उसे सुविधानुसार वक़्त-वक़्त पर बदलते रहना। सुविधानुसार वक़्त-वक़्त पर बदलते रहना राजनितिक सुरँगो या तरह तरह के कितने ही तरीकों से manually होता है।       

बदल दो इन लेट वाली फोटो को। इनकी जगह उस इंसान की कोई अच्छी सी फोटो लगा लो। उसपे जाने वाले को लेट नहीं लिखना और ना ही उसका दुनियाँ छोड़ने का दिन। वो सिर्फ उसका दुनियाँ छोड़ने का दिन नहीं था, बल्की, शायद आपकी या आपके घर की राह में रोड़े या अवरोध खड़ा करने का दिन था। खासकर, जब वो इंसान दुनियाँ से बहुत जल्दी गया हो। बहुत होंगी शायद आपके पास, उससे बेहतर फोटो। अगर कहीं कोई अजीबोगरीब माला वाला पहनाई हुई है, तो उसे भी हटा दो। शायद कुछ बेहतर हो। 

ऐसी ही कितनी ही रोज होने वाली छोटी मोटी-सी बातें या चीज़ें राजनितिक Show, Don't Tell या दिखाना है, बताना नहीं, होती हैं। और दिखाना है बताना नहीं, सिर्फ दिखाना या बताना नहीं होता, वैसा सा कुछ करना भी होता है। उन्हें समझने की कोशिश करें। वो चाहे आपका किसी के पास आना या जाना हो या कोई भी, किसी भी तरह का काम करना। चाहे आपका कहीं किसी से बोलना हो या बोलना बंध करना। या झगड़ा करना या कहीं किसी के पास बैठना। या बीमारी या मौत ही क्यों ना हो। सारा संसार छुपे तरीके से इन राजनितिक पार्टियों ने रंगमच बनाया हुआ है। और आपको लगता है की आप खुद कर रहे हैं? धीरे-धीरे समझोगे की आप खुद कर रहे हैं या आपसे कोई छुपे तरीके से करवा रहे हैं।  

बुरे को भुलाकर अच्छे को याद रखना, मतलब, अच्छी ज़िंदगी की तरफ बढ़ना। किसी भी इंसान का जन्मदिन अच्छा होता है। मरण दिन? उसे याद रखो की उस दिन वो इंसान हमें छोड़ गया। यूँ नहीं की वो लेट हो गया। और यूँ किसी फोटो पर तो बिलकुल नहीं लिखना। ऐसी फोटो को किसी ऐसी जगह बिल्कुल नहीं लगाना, की आते जाते या दिन में कितनी ही बार आप उसे देखते हों। कभी जन्मदिन या शादी वगैरह की फोटो भी लगाई है ऐसे? 

किन घरों में जन्मदिन, शादी या खुशियों वाली फोटो मिलेंगी? और किन घरों में बिलकुल सामने ऐसे, गए हुए लोगों की? वो भी लेट और वो तारीख लिखकर? ये मुझे पहले कहीं हिंट मिला था और फिर आसपास के घरों में देखा तो? छोटे-छोटे से घर और सब सामने "लेट" कैसे सजाए हुए हैं? कई-कई घरों में तो कई-कई लेट? जैसे कोई शुभ-मुहरत लेट? या जाने वाला कहीं किसी और को भी लेट कर गया? वो भी खुद अपने किसी इंसान को? और आपने वो फोटो भी सजा दी? वही लेट और तारीख या शायद किसी खास माला के साथ?   

कुछ अजीबोगरीब से किस्से जानते हैं आगे। 

जैसे 

मोदी? बहु? साला?

बहु? अकबर? पुर?

क्या कोड है ये? 

या वीर? 

या AV? 

या नीलकंठ?

या F मिरर इमेज?  

या ??????????? कितने ही या ???????????

Tuesday, February 11, 2025

बच्चे जब आपको पहुँचा दें, अपने बचपन में?

वक़्त और अगली पीढ़ी के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता है। काफी कुछ अच्छा और शायद कुछ ऐसा भी की लगे, अच्छा नहीं है। सूचनाओं का संसार, उनमें से एक है। 24 घंटे इंटरनेट की पहुँच और टीवी भी शायद। जब बच्चों को मजाक लगे, अच्छा आप जब छोटे थे, तो टीवी पे हर वक़्त प्रोग्राम नहीं आते थे? या इंटरनेट नहीं था? ये सीरियल्स भी नहीं थे? तो क्या था? 

जो भी हो, गुजरा वक़्त और बचपन हमेशा अच्छा होता है?




बड़े होकर जब आप अपने बच्चों को जाने क्यों वो खँडहर दिखाने आते हैं? और बताते हैं, ये रसोई थी। मैं यहाँ पढता था या यहाँ सोता था। और आप पूछें, भैया ये स्टूडेंट कौन है, आपके साथ? क्यूँकि, वो शायद स्कूल यूनिफार्म में ही है। अरे। ये नहीं पहचाना? यक्षशांश। क्या नाम बताया? यक्षसांश? ओह। ये इतना बड़ा हो गया? और ये अंदर कौन है भैयी?


 
या फिर आपके यहाँ कोई पूछे, बुआ ये आज दादी की छत पर कौन घुम रहे थे? कोई आया हुआ था, इनके यहाँ (साथ वाले खँडहर में)? क्यूँकि, आजकल यहाँ नाम मात्र-सी, मजेदार-सी मरम्त चल रही है।           

Wednesday, January 1, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 1

आप यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं? या पढ़ा रहे हैं?

या यूनिवर्सिटी को पढ़ रहे हैं?

How to look at universities around the world? Across the continents? From different perspectives, different languages and different cultures? 


ABCDs of Views and Counterviews?

They have some name and then some numbers. And they belong to or represent those codes?


A For 
Alabama?
Arizona?
Allahabad?
Adelaide?
Auckland?

B for 
Banglore?
Berkeley?
British Columbia?
Bonn?

 C for 
Calcutta?
California?
Curtin?
Cambridge?

D for
Delhi?
Dublin?
Deakin?
Dubai?

E for 
Emory?
Edinburgh?
European?

F for 
Florida?
Findlay?
France?

G for 
GJU?
Georgia?
Glasgow?
Griffith?

H for 
Himachal Pradesh?
Harvard?
Houston?

I for 
Indiana?
Illinois?
Idaho?
Iceland?

J for 
Jerusalem?
JNU?
Jammu?
Johannesburg?
Jordan?

K for 
Kashmir
Kurukshetra?
Kingston?
Kansas?

L for 
Louisiana?
Laval?
London?
Lausanne?
Ladakh?

M for 
Mumbai?
Moscow? 
Melbourne?
Michigan?

N for 
Nainital?
North Carolina?
Newyork?
New South Wales?

O for 
Odisha?
Oxford?
Ottawa?
Oregon?
Oslo?

P for 
Pondicherry
Pensilvinia?
Pitssburgh?
Paris?

Q for 
Quebec?
Queensland?
Queenmary?
Qatar?
 
R for 
Rajasthan?
Richmond?
Regina?
Rutgers?

S for 
Seatle?
Strasbourg?
Stockholm? 
Shimla?
Sydney?

T for 
Tasmania?
Takshashila?
Texas?
Toronto?
Tokyo?
 
U for 
Utah?
Uppsala?
Urbana Champaign? 

V for 
Vishva Bharti?
Victoria?
Virginia?
Vienna?
Vermont?

W for 
Western Australia?
Washington?
Wyoming?
Warwick?
Waterloo?

X for
Xavier?
Xiamen?
Xalapa?

Y for 
Yale?
York?
Yorkshire?
Yaounde?

Z for 
Zuric?
Zakho?
Zadar?
Zanjan?

जो ऊप्पर लिखा है, वो ऐसे ही random हैं, क्यूँकि सबको एक पोस्ट में लिखने पर ये पोस्ट बहुत लंबी हो जाती। इनके अलावा भी कितनी ही यूनिवर्सिटी हैं दुनियाँ भर में।  

तो ABCD के आखिरी शब्द से ही शुरु करें?
 Z for Zuric?


इसमें आपको क्या कुछ समझ आ रहा है? 

आते हैं आगे ऐसे ही अलग-अलग तरह के विचारों और सन्दर्भों पर। 
ABCD के अलग-अलग कलाकारों के साथ, 
दुनियाँ के अलग-अलग हिस्सों से, अलग-अलग रंगरुपों में, 
अपनी ही तरह की पहचान लिए हुए?
या सबकुछ जैसे, इंदरधनुष-सा सजाए हुए?
कोई इस विज्ञान में महान है, तो कोई उसमें? 
कोई इस कला में, तो कोई उस कला में?  
कोई इस टेक्नोलॉजी में, तो कोई उस टेक्नोलॉजी?
और कोई? और भी कितने सारे कोई हो सकते हैं?
जैसे? जानते हैं आगे की पोस्ट में।  

किसी भी जगह, गाँव या शहर, राज्य या देश को जानना है, तो उसके शिक्षा के स्तर, तौर-तरीकों, संस्थानों, संसाधनों और उनसे उपजे उत्पादों  को जानिए, वही उस समाज की झलक है। वहाँ जो कुछ अच्छा है, वैसा-सा ही कुछ उसके समाज में। वहाँ जो कुछ बुरा है, उसी की झलक उसके समाज में मिलेगी। सिस्टम की और वहाँ की राजनीती के कोड्स की झलक भी बड़े अच्छे से मिलती है शायद, इन संस्थानों से।      

Happy New Year 01 - 01 - 2025