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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Saturday, June 28, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 6

सामांतर घड़ाईयाँ (Social Tales of Social Engineering) क्या हैं? 

ये राजनीतिक पार्टियाँ क्यों घड़ती हैं ये सामांतर घड़ाईयाँ? क्या फायदा है, इन्हें ऐसा करके?  

ये समाज को कंट्रोल करने का बहुत बड़ा हथियार है। कोई भी सामांतर घड़ाई तब तक नहीं घड़ी जा सकती है, जब तक उन लोगों या उस समाज या सिस्टम के बारे में अच्छी खासी जानकारी ना हो। जानकारी जितनी ज्यादा सही होगी, उतना ही किसी भी सामांतर घड़ाई को घड़ना आसान होगा। और उतना ही रोकना भी। निर्भर करता है, की आप घड़ने वालों में हैं या रोकने वालों में? 

सामांतर घड़ाई का मतलब जरुरी नहीं सच घड़ना ही हो। सच जैसा या हूबहू जैसा लगे, दिखाना या समझाना है। राजनीतिक पार्टियों की अपनी जरुरतों के अनुसार, घटा बढ़ा कर। अब वो कितना सच या झूठ है? या बिलकुल ही नया घड़ा (सिंथेसिस) गया है, ये कैसे पता चले? जैसे किसी आईने में अगर आप देखें, तो आपका प्रतिबिम्ब दिखाई दे। अब वो प्रतिबिम्ब बिलकुल वैसा दिखा रहा है, जैसे आप हैं या उसमें हेरफेर कर रहा है, ये कैसे पता चला? बहुत मुश्किल भी नहीं है शायद? अगर आप वो इंसान हैं, जिन्हें आईनों के प्रकार नहीं पता, तो भी ज्यादा हेरफेर होने पर तो ये फर्क पहचान ही सकते हैं। लेकिन, थोड़ा बेहतर जानने के लिए, ये पता होना चाहिए की आप किस प्रकार के आईने के सामने खड़े होकर अपना प्रतिबिम्ब देख रहे हैं। ऐसा-सा ही हमारे आज के सिंथेटिक जहाँ पे लागू होता है। जिसको समझना आम इंसान के लिए उतना आसान नहीं होगा, जितना उस synthesis के तौर-तरीकों को समझने वाले के लिए होगा। ऐसे ही जैसे, कोई भी हूबहू-सी दिखने वाली बीमारी या मौत कौन पैदा कर सकता है? वही, जिन्हें उस तरह की बीमारी या मौत के बारे में जितनी ज्यादा जानकारी होगी? कोरोना काल की बिमारियों और मौतों को और उनके तरीकों को अगर हम जानना, समझना शुरु कर दें, तो शायद बहुत कुछ समझ आएगा। और आपने खुद या आपके आसपास ने ऐसा कुछ झेला हो तो? ये सब समझना थोड़ा और आसान हो जाएगा। 

जानने की कोशिश करें थोड़ा, विटिलिगो (vitiligo) के उदहारण से ही? 

या शायद लकवा, हार्ट अटैक, बुखार, Diabetes, Multi organ failure, cancer, stone problem आदि से? क्यूँकि, इस दौरान ऐसा-सा कुछ मैंने या तो खुद कहीं न कहीं भुगता है या आसपास में किसी न किसी को भुगतते देखा है। क्या सच में ये बिमारियाँ थी या हैं इन लोगों को? या इन बिमारियों का या किसी भी बीमारी का सच क्या है? ये सिंथेसिस वाले बेहतर बता पाएँगे या डॉक्टर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर आदि? या शायद खुद वो इंसान, जिसने ऐसा कुछ भुगता हो और थोड़ी-बहुत इन सबकी जानकारी भी हो?         

Stone Problem? नहीं थी मगर फिर भी so-called डॉक्टर की मानती तो? March 2020 

Blood Pressure Problem? ना थी, ना है। फिर वो swelling, headache, vomitting वाले symptoms क्या थे? Ram Rahim saga time और घर? H# 30, Type-4? कौन से वाले सिंथेटिक एक्सपेरिमेंट्स चल रहे थे वहाँ? 

Drugs M.Tech स्टूडेंट प्रॉब्लम या H#29 लेबर ड्रामे? 

या 5G या 6G Steroid problem? 

या शायद शिव-धतूरा? यूनिवर्सिटी के H#29 से H# 31 और फिर अंकल के घर गाँव में कैसे पहुँचा ये पौधा? कहाँ से आता है ये वाला माली? रोहतक? यूनिवर्सिटी? या? 

Office tea? या सोडा मिल्क? ये क्या होता है? है ना दुनिया अजब-गजब?  

Boss water pump? Cooler? 

या AC LG और vitiligo? 

पागल कुत्तों या गुंडों या हत्यारों की कौन-सी दुनियाँ है ये? 

चलो, ज्यादा बिमारियों पे नहीं जाते। क्यूँकि, हर एक बीमारी पे जाने कितनी सारी कहानियाँ हैं, यहाँ-वहाँ। और वो सब कहानियाँ या सामांतर घड़ाईयाँ मिलकर, कोई और ही तरह के कांडों की सैर करवाती हैं। अभी सिर्फ विटिलिगो (vitiligo) की सामांतर घड़ाई की सैर पर चलेंगे। 

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 5

 Border Issues or Neighbourly issues?

Or interactions or wars or hypes or underrated issues?

युद्ध और बीमारी ? एक ही बात हैं?

या किसी पर अचानक हमला या धीरे-धीरे छुपे रुस्तम से, बिना दिखे या समझ आए, खोखला करना?

या और भी कितने ही तरीके हो सकते हैं?    

Burn?

out?

Burnout? 

Acid Attacks?

Acidify?

Acidified?

और भी कितनी ही तरह के नाम हो सकते हैं, मिलते-जुलते से, किसी बीमारी को या उसके लक्षणों को पहचानने के? बताने के? और बचने के या बचाने के?  ये हर बीमारी पर, हर तरह के लड़ाई झगड़े पर और हर तरह के हमले पर लागू होता है। 

जब इस बीमारी से पहली बार आमना सामना हुआ या पता चला की ऐसा कुछ शुरु हो चुका है तो मैं यूनिवर्सिटी रही थी (2018?)। H#30, Type-4   शायद इसके इंगलिश version से हम थोड़ा बेहतर समझ पाएँ? 

H# 3 0     

T Y P E - 4 

रौचक लग रहा है?

M D U 

R O H  T A K 

124001 

at place 1?

1 =1 

2 =2 

3 =4 

4 =0 

5 =0 

6 =1 

शायद किसी पार्टी का कोढ़?

इस घर के एक तरफ H # 29, TYPE- 4 

और दूसरी तरफ? H # 31, TYPE- 4 

आगे? T - POINT  (one side small portion part only)

पीछे? Rose Garden

Type 29 खाली था, Professor Gulshan Taneja, Math ने किया था, मेरे जाने के कुछ महीनों बाद ही। जो बाद में यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार भी बने और अब शायद रिटायर हो चुके। 

H # 31, TYPE- 4 Professor Renu, Geography. उन्होंने भी मेरे Resignation के एक या 2 साल बाद खाली कर दिया था? शायद अपना खुद का घर कहीं आसपास ही बना लिया था। 

T - POINT के दोनों तरफ के मकानों में कौन-कौन थे? और T - POINT जहाँ खत्म हो रहा था, वहाँ 9 J- TYPE में? 

चलो इतना दूर नहीं जाते। सिर्फ, आजू, बाजू या आगे, पीछे को जाने? या शायद पीछे या आगे, आजू या बाजू के सिर्फ पेड़-पौधों को ?     

पेड़-पौधों को ही क्यों?

अगर आप MDU के उस खास पते पर हैं, तो पेड़-पौधे? खासकर, H #29 की आगे की दिवार के साथ उगाया हुआ ये पौधा?  

ये तो जैसे कोई केमिकल छिड़का हुआ है किसी ने? 

और मदीना आ गए, अपने पड़ दादा के खँडहर में तो?  

इंसानों, कुत्तों और बाकी जानवरों को भी?

इंसान, कुत्ते, गाएँ, गधे, साँड़ अभी आसपास दिखाई नहीं दे रहे। आएँगे तो फोटो लगेंगी उनकी।     


और इसके बाद जो पता बदलने वाला है, वहाँ गए तो? वैसे कौन सा पता होगा? अभी पता नहीं :) मगर इतना पता है अब और ज्यादा वक़्त इस खंडहर में तो नहीं रहना।  

एक पता बदलने से ही किसी भी बीमारी का क्या कुछ बदल जाता है?

वो कम हो जाती है? या बढ़ जाती है?

जहाँ है, वहीँ रुक जाती है या खत्म ही हो जाती है?

निर्भर करता है, की पता बदलने से उस बीमारी को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक या कारण बदल जाते हैं?

Break down the process or methodology in steps to that last point you can. And check the contributing factors or factors which act as hurdles or stoppers in those contributing factors. 

बस इतनी-सी बात? माहौल या सिस्टम बहुत कुछ बदलता है? तो शायद किसी भी बीमारी के ईलाज के लिए या रोकथाम के लिए, इस माहौल या सिस्टम और इनके राजनीतिक कोढों को जानना बहुत जरुरी है। और ये ना सिर्फ हर बीमारी पर लागू होता है, बल्की, आपके घर की खुशहाली या बदहाली पर भी। आपके रिश्तों में मिठास या कड़वाहट पर भी। आपके आगे बढ़ने या पीछे खदेड़े जाने की कोशिशों पर भी। 

Vitiligo पर आगे भी आपको काफी कुछ पढ़ने को मिलेगा। शायद कुछ लोगों को उसका थोड़ा बहुत फायदा भी हो।  

इसके साथ-साथ कुछ और बीमारियाँ हैं आसपास, जिन्होंने, इस कोढ़ सिस्टम के बारे में कहीं ज्यादा समझाया या बताया है शायद।  आएँगे आगे कहीं पोस्ट्स में, उनपर भी।   

Thursday, June 26, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 4

Types

हे बेबे 

आजकाल के बालक 

Hey 

Hey Babe 

तू भी के बोल्य सै 

These nonsense don't know their own fluidic or hard numbers. Can someone ask them to check their own IDs?  And can tell them their own तू भी के बोल्य सै टाइप?  

These holy cows don't know, when they come to their parents home, how long they stay and on which numbers these political gamblers let them go back with special effects. 

At place of cows, you can put any other species name or gender also. Interesting?

कितनी तरह की interactions और कितने तरह के आदमी आ गए ना? तो आप कहाँ फिट बैठते हैं, इन सबमें? और आपका आसपास या कहो आपकी interactions? ऑनलाइन या ऑफलाइन या इनकी खिचड़ी के बीच? ये तो सिर्फ कुछ-एक बताई हैं। और भी कितने प्रकार हो सकते हैं। आदम जमाने के लोगों से लेकर, आजकल के बच्चों तक? या बिलकुल अनपढ़, अनजान लोगों से लेकर, जिनके पास इस सबकी अच्छी खासी जानकारी है, उन तक? जितने ज्यादा ये प्रकार, शायद उतना ही मुश्किल होता होगा, ज़िंदगी का सामजस्य बिठाना? 

या शायद काफी हद तक आपने सीख लिया है, किससे कैसे बात करनी है या सामजस्य बिठाना है या निपटना है? या किसको, कितना पास या दूरी पे रखना है? किसके कहे या करे का आपके लिए कोई मतलब है या नहीं है? और किसको आप तवज्जो देते हैं? जैसे-जैसे बड़े होते हैं, ये तो हर कोई सीखता है, थोड़ा या ज्यादा। और इसमें जितनी ज्यादा बड़ी रेंज से आपकी interactions होती हैं, उतना ही ज्यादा आपको इनसे सामजस्य या दूरी बिठाना भी आ जाता है। निर्भर करता है की अपना कितना वक़्त कहाँ देना चाहता हैं?        

 "these political gamblers let them go back with special effects."     

ये बड़ा रौचक है। कैसे भला? वैसे तो ऐसा कुछ 2018 या 2019 में कहीं पढ़ने को मिला था, किसी आर्टिकल में। मगर तब इस कोढ़ वाली दुनियाँदारी की कोई खबर नहीं थी।   

उसके बाद कहीं पढ़ने को मिला, किसी आईपीएस की पोस्ट में, की दुनियाँ का ये कोढ़ वाला सिस्टम ऑफिसर्स की देन है और वही चला रहे हैं, दुनियाँ भर में। फिर वो चाहे सिविल ऑफिसर्स हों या डिफ़ेन्स। कोढ़ वाले इस सिस्टम की खबर तब भी कुछ खास नहीं थी। इसलिए, ज्यादा कुछ समझ नहीं आया। मगर कोरोना और उसके बाद के वक़्त ने जो दिखाया या समझाया, वो कोई और ही रोबॉटिक फाइट हैं। जिसमें जो कुछ आप देख, सुन रहे होते हैं, उसका रिमोट कंट्रोल जाने दुनियाँ के किस कोने से चल रहा होता है। ये सब आम लोगों की समझ से थोड़ा परे है। मगर, आपकी अपनी या आसपास की कहानियों से ही, इसे आसानी से समझाया जा सकता है।    

Social Tales of Social Engineering  या Interactions और किस्से कहानियाँ?  एक, अगर सामाजिक ताने-बाने की रुपरेखा है, तो दूसरा पॉइंट? उसे करने, बताने या समझाने का तरीका, Methodology, Process? इन Methodology के पॉइंट्स को जितना बारीकी से समझ पाएँगे, उतना ही कहीं से भी आफत-सी आई या फिट की गई, या छुपम-छुपाई सी जाने कब से चल रही interactions के बुरे प्रभावों से खुद भी बच पाएँगे और अपने आसपास को भी बचा पाएँगे।  

Wednesday, June 25, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 3

इन्हीं interactions को अगर हम हिसाब-किताब, कम्प्यूटर, साइकोलॉजी और interdisciplinary ज्ञान-विज्ञान के सन्दर्भ में समझने लगें तो? कोड की भाषा, हर तरफ अपना नज़ारा दिखाती और सुनाती नजर आएगी? कैसे? 

आपका नाम क्या है?

आपका जन्मदिन क्या है? 

आप कहाँ पैदा हुए हैं?

कहाँ रहते हैं? पता क्या है?

आपके माँ बाप, भाई बहन, चाचा चाची, ताऊ ताई, दादा दादी, बुआ फूफा और ऐसे ही कितने रिश्ते और उनके बच्चों की यही सब डिटेल?

आपके इधर वाले पड़ौसी, उधर वाले पड़ौसी, सामने वाले, पीछे वाले, एक घर, दो घर, तीन घर, एक गली, दूसरी गली? आपका ये घर, वो घर? यहाँ का घर या वहाँ का घर? या शायद आपके माँ बाप भाई बहन का घर या प्लाट या खेत या कोई और जमीन?

उन घरों में बने हुए कमरे, रसोई, बाथरूम या लॉन? आगे वाला या पीछे वाला? इधर वाला या उधर वाला? उनमें रखा सामान? जीव या निर्जीव सब? उन सबके नाम, कंपनी का नाम, नंबर या कोड? ये सब मिलकर आपका सिस्टम बनता है। आपका माहौल। आपकी जिंदगी की खुशियाँ या गम? आपके रिश्तों का मधुर होना या कड़वा? आपकी बढ़ोतरी या नुकसान? आपका स्वास्थ्य या बिमारियाँ? ये interactions, इन सबसे जुडी हैं। क्या आप इन सबका हिसाब-किताब करके अपना फायदा या स्वास्थ्य बढ़ा सकते हैं? और अपना नुकसान या बिमारियों से मुक्ती पा सकते हैं? शायद हाँ और शायद ना?

निर्भर करता है की आपको इन सबकी जानकारी कितनी है? ये वो जानकारी है, जो आपको नहीं है और इसका कुछ न कुछ या बहुत बड़ा हिस्सा, तकरीबन सब राजनितिक पार्टियों, आपके मोबाइल और लैपटॉप की कंपनियों और उनमें छिपी बैठी कितनी ही सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों के पास है। क्यों? ये क्यों जानना बहुत अहम है। ये सब सामाजिक ताने-बाने को घड़ने में काम आता है। सामाजिक ताना-बाना, जिसमें सबकुछ आता है।  स्वास्थ्य, बिमारियाँ, जन्म-मर्त्यु, आपके रिश्तों का मिठास या कड़वाहट, आपकी बढ़ोतरी या नुकसान। जितना ज्यादा इसे समझने की कोशिश करोगे, उतना ही ज्यादा आप राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा अपने शोषण को समझ पाओगे। आगे जानने की कोशिश करते हैं, कुछ-कुछ ऐसा ही।       

Social Tales of Social Engineering                                    

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 2

पिछले कुछ वक़्त से कुछ खास नोटिस हो रहा था। कहीं न कहीं कुछ चल रहा है और वो आपके आसपास किसी न किसी रुप में आ रहा है। वो फिर बच्चे हों, बड़े या बुजुर्ग और उनके किस्से-कहानी। कहीं न कहीं वो सब पहले से चल रहा होता है और हम नोटिस नहीं करते। और कहीं न कहीं, अचानक जैसे कहीं से भी, किसी किस्से या कहानी का अवतार जैसे, उतार दिया हो सामने आपके?   

आप जैसे-जैसे लोगों के संपर्क में आते हो या रहते हो, चाहे आसपास ही, आपकी ज़िंदगी भी कुछ न कुछ, वैसे से ही किस्से-कहानी सुनाती नज़र आती है।  शायद इसीलिए जरुरी है, अपना माहौल अपने अनुसार चुनना? मगर, आम लोग कितना उसे चुन पाते हैं? बहुत से तो पूरी ज़िंदगी, किसी एक खास माहौल के हवाले होकर, उससे निकल ही नहीं पाते? 

निकलो उन माहौलों से और मौहल्लों से, जिन्हें आप पसंद तक नहीं करते। मगर इतना आसान होता है क्या? कहीं से भी निकल लेना? शायद ज्यादातर के लिए नहीं। कहीं न कहीं, कुछ न कुछ आ अड़ता है? और फिर जदोजहद होती है, उस माहौल को कुछ-कुछ अपने अनुसार ढालने की? और कुछ उस माहौल के अनुसार ढल जाने की? ऐसा ही होता है? आपका सामना कैसी कैसी Interactions से होता है? निर्भर करता है की आप कैसे माहौल और लोगों से घिरे हो? कुछ आपके विचारों से मिलते जुलते हो सकते हैं और कुछ उसके एकदम विपरीत भी? और कहीं कहीं या ज्यादातर शायद इन दोनों के बीच की खिचड़ी? एकदम विपरीत माहौल में सामजस्य बिठाना मुश्किल होता है? मिलते जुलते में आसान? और बीच वाले में सामजस्य बिठाने से काम चल जाता है? ऐसा ही?

इन्हीं interactions को अगर हम हिसाब-किताब, कम्प्यूटर, साइकोलॉजी और interdisciplinary ज्ञान-विज्ञान के सन्दर्भ में समझने लगें तो? कोड की भाषा, हर तरफ अपना नज़ारा दिखाती और सुनाती नजर आएगी? कैसे? जानते की कोशिश करते हैं आगे पोस्ट में।     

Friday, June 20, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 1

गुंडे माहौल में आप खिसकते जाते हैं। थोड़े इधर, थोड़े उधर और थोड़े उधर? किसने सिखाया, ये सब आपको? माहौल ने? संस्कारों ने? यही हैं हमारे समाज के सँस्कार? गुंडों से थोड़ा बचके रहो, बचके चलो। गुंडों को कोई और मिलेगा, उनका भी कोई बाप? तुम क्यों ऐसे लोगों के साथ अपना दिमाग और भेझा खराब करते हो? ज्यादा होता है, तो अड़ भी जाते हैं? भला कब तक सहन करे कोई? और कभी-कभी, कहीं न कहीं धरे भी जाते हैं? ऐसी-सी ही और कैसी, कैसी-सी कहानियाँ, यहाँ-वहाँ, न जाने कहाँ-कहाँ मिल जाती हैं? 

बच्चे हों, बड़े या बुजुर्ग, ऐसा कहीं न कहीं हर किसी के साथ होता है? अब उस हर किसी में, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ मिलता-जुलता भी है, शायद? कहीं थोड़ा कम, तो कहीं थोड़ा ज्यादा? जहाँ कहीं ज्यादा मिलता है, वहीं कुछ न कुछ भिड़ाने और बढ़ाने-चढाने की गुंजाईश होती है। जिन्हें सामान्तर घड़ाईयाँ बोलते हैं। शायद ये इस पर निर्भर करता है, की उस सामान्तर घड़ाई में आपकी पोजीशन क्या है? और शायद इसीलिए हिसाब-किताब, कंप्यूटर, साइकोलॉजी और आज का interdesciplinary ज्ञान, विज्ञान इस सबमें इतनी अहमियत रखता है? 

इस बीमारी का शक हुआ, तो ये बिमार इंसान आपके सामने? उस बिमारी का शक हुआ, तो वो? यहाँ जीने, मरने की बात हुई, तो ये इंसान सामने और वहाँ मरने जीने की बात हुई, तो वो इंसान सामने? यहाँ कोई फायदा हुआ, तो इनके फायदे के किस्से-कहानी? वहाँ कोई नुकसान हुआ, तो उसके नुकसान के किस्से-कहानी सामने। आप कोई भी विषय उठा लो, उसके तार कहीं न कहीं 

ऐसे मिलते-जुलते नजर आते हैं?


या ऐसे?   


या शायद ऐसे?

कौन-सी और कैसे वाली interactions में रहना पसंद करते हैं आप? 

और कभी-कभी, कैसे-कैसे लोगों से पाला पड़ जाता है? 
कहीं-कहीं तो ऐसे भी लगता होगा, की कैसे गुंडों के आसपास रहते हो तुम? क्या होगा ऐसे माहौल में ज़िंदगी का?
दोगले और हद दर्जे के हेराफेरी? अब जुबाँ इधर फिसली और अब जुबाँ उधर फिसली? और फिर गुल या ये हुए भगोड़े? जिनकी कोई ज़ुबाँ और स्टैंड ना हो। या शायद मुँह में राम-राम और बगल में छुरी?  

और कहीं-कहीं ऐसे भी लगता होगा शायद, हाँ, यहाँ सही है? दुनियाँ तो ऐसी भी है।   

कहीं सुलझे से और व्यवस्थित?
और कहीं? इतने मैस्सी, यूँ ही ना समझ आए, की ये तार किधर से आ रहा है और ये किधर जा रहा है? ये क्या बोल रहा है और ये क्या? ये अपनी जुबाँ बारबार क्यों बदल रहा है या रही है? गिरगिट के जैसे? 
दुनियाँ अजूबों का मेला?     

आप जैसे-जैसे लोगों के संपर्क में आते हो या रहते हो, चाहे आसपास ही, आपकी ज़िंदगी भी कुछ न कुछ, वैसे से ही किस्से-कहानी सुनाती नज़र आती है।  शायद इसीलिए जरुरी है, अपना माहौल अपने अनुसार चुनना? मगर, आम लोग कितना उसे चुन पाते हैं? बहुत से तो पूरी ज़िंदगी, किसी एक खास माहौल के हवाले होकर, उससे निकल ही नहीं पाते? निकलो उन माहौलों से और मौहल्लों से, जिन्हें आप पसंद तक नहीं करते।       

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 12

 गुंडे जो जबरदस्ती दूसरों के घरों में घुसें?

औकात है?

गुंडे जो जबरदस्ती या धोखाधड़ी से अर्थियों के ढेर लगाएँ?

औकात है?

गुंडे जो जबरदस्ती या धोखाधड़ी से,

दूसरों की जमीनों को हड़पने की कोशिश करें?   

औकात है?  

बड़ी औकात कांता भाभी तेरी?

या तेरे गुंडे की? ओह ! भतीजे। 

2-कनाल के लिए कितनी और अर्थियाँ उठाओगे?

भाभी को तो खा गए। 

जबरदस्ती या धोखाधड़ी से?

सुना है, स्कूल खोलने वाली थी वो अपना?

उसी ज़मीन पर?

जिस पर तुम्हारी गिद्ध-सी निगाहें,

कब से टिकी हैं? 

   

सुना है,

उसके बाद ये बहन 

वहीँ अपनी कोई छोटी-मोटी, पढ़ने-लिखने लायक 

झोपड़-पट्टी बनाने वाली थी?

क्या हुआ उसका?

भतीजे को बेचारे को, शायद नहीं पता 

की उस झोपड़-पट्टी की ऑफिसियल ईमेल तो 

और भी पहले चल चुकी। 


बहन, बेटियों को और कैसे-कैसे खंडहरों वाली 

जेलों में रखोगे?

जहाँ-जहाँ चलेगी तुम्हारी?

और तुम?

कब तक उनके अपनी कमाई के पैसे रोककर,

कोशिश में रहोगे, की वो तुम्हारी गुलामी में नौकरी करें?

चाहे वो तुम्हें धेला पसंद ना करती हों। 

कैसे भाई-बंध, भतीजे या चाचे-ताऊ या दादे हो तुम? 

किन कंसों, शकुनियों या रावणों के प्रतिनिधि?

या और कैसे-कैसे राक्षसराजों की कर्तियाँ?     

  

जबरदस्ती की औकात और भगोड़ा होना?

एक ही होता है क्या?

इतना सुनने के बाद तो, कोई भी इज्जत वाला पीछे हट जाए?

पर शिक्षा का धंधा करने वाले?

2 कनाल के लिए?

नहीं, नहीं, इरादा तो सबकुछ हड़पने का था। 

वो हो नहीं पाया?    

तो चालें और धोखाधड़ी का धंधा जारी है। 

बेटा, आज फिर सुना है, तेरा फोन बंध है?  

क्या कर रहा है, उस ज़मीन पर तू?  

उस ज़मीन से पीछे हटने के सिवा, तेरे पास रस्ता है क्या?

बहुत होंगे शायद? 


1 साल हो गया या 2?

वो दो बोतल देके फोटो करवाने का?

इस घर के हर इंसान के विरोध के बावजूद। 

बुआ के मैसेज कब-सी गए थे?

चाचे, भतीजे के पास?

आजकल में?

या उसी के आसपास? 

तब से भगोड़े ही हो शायद? 

कैसे-कैसे काम करते हो?

की भगोड़ा होना पड़े?   


कितना और गिरोगे?

शिक्षा के धंधे में?

2 कनाल के लिए?

सिर्फ 2 कनाल का लालच?

इतने अमीर लोगों के लिए?

कौन जगह है वो, जहाँ मिलती है ऐसी जमीन?

5-6 लाख में?  

या 30-35 लाख में?

कैसे-कैसे लालच देकर 

कैसा-कैसा रुंगा बाँटते हो?

वो भी अपनों को ही?   

ऐसे गंदे धंधे करने की बजाय, 

बेहतर ना हो, की दिमाग कहीं ढंग की जगह लगाओ। 


सुना है, किसी का यूनिवर्सिटी का पैसा आज तक रोकने की भी, बस इतनी-सी ही कहानी है? ये तार आपस में मिले हुए हैं? सुना है। हालाँकि, अपनी समझ से आज तक परे है। 

लोगों को और उनके संसाधनों पर काबू और कब्जे  करने की कोशिशें और कहानियाँ। जो मिलती, जुलती-सी लगेंगी, यहाँ भी, वहाँ भी और वहाँ भी। मगर ध्यान से देखने, पढ़ने लगोगे, तो कुछ नहीं मिलता, मकड़ी-से जालों के सिवाय। 

हमारे जैसे सोचते हैं, घर-कुन्बे की बात है, ऐसे ही निपट जाए। मगर, कुछ लोगों को शायद, मजा नहीं आता ऐसे?        

Monday, June 2, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 11

आम इंसान बुरा नहीं है। जुआ खेलने वाली पार्टियाँ शिकारी हैं? जो आम इंसान की जानकारी के बिना उसका शिकार करती हैं? सर्विलांस एब्यूज इसमें बहुत बड़ी भूमिका में है। जितनी ज्यादा किसी के पास आपकी जानकारी, उतना ही आसान है, आपको रिमोट कण्ट्रोल करना। जितनी ज्यादा किसी भी परिवार या समाज की जानकारी, उतना ही आसान है, उस परिवार या समाज को कण्ट्रोल करना। 

इन पिछले कुछ सालों में ये सब इतना पास से होते हुए देखा है की यूँ लगता है, ये टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग, कुर्सियों की और बाजार की मारकाट, इंसान को और उसके इस समाज को कहाँ लेकर जाएँगे?  

Ghosting?

क्या बला है ये? शब्द सबसे पहले कहाँ पढ़ा था? 

कोई वेबसाइट बनाने का इरादा था शायद तब? नहीं, उससे भी पहले Ghost Writer या Ghost Writing क्या होती है? डेढ़ एक दशक पहले कहीं पढ़ा था शायद? ये शब्द Connecting Links Inbetween पर भी प्रयोग हो सकता है। और Political Tunnels पर भी। ये किसी या कुछ लोगों के आपकी ज़िंदगी या आसपास से एकदम से गुल हो जाना भी हो सकता है (Ghosting)। और? जो आप पर Surveillance कर रहे हैं और उसका किसी भी तरह का प्रयोग या दुरुपयोग उन पर भी। ऐसे लोग जो आपकी जानकारी के बिना साए से आपके आसपास मँडराते हैं? 

अब ये शायद थोड़ा और आगे हैं? अपने राजस्थानी (?) Cyber Dost?


कैसे? सुना है, वैसे तो ये पुलिस हैं और प्रहरी हैं, हम सबके। और ऐसे?   
जैसे बूझो तो जाने। आगे पोस्ट में। क्यूँकि, कुछ गड़बड़ घौटाला यहाँ भी है। भला क्या? थोड़ा बहुत भी अगर आप Cyber Crime के बारे में जानते हैं, तो इस वेबसाइट को ध्यान से पढ़ो और समझने की कोशिश करो। कुछ नहीं, बल्की, बहुत-कुछ समझ आएगा। और ये बहुत-कुछ हर सरकारी या गैर-सरकारी कांडों या निहित स्वार्थों या शायद मजबूरियों पे लागू होता है। और रौचक ये, की ये सब भी आपको यही पढ़ा या समझा देते हैं, कहीं न कहीं। है ना मजेदार :)

ये कुछ-कुछ ऐसे है जैसे, कोई नया-नया पुलिस अधिकारी आपकी फाइल लिए बैठा हो। नहीं, शायद उसके ऊपर बैठा हो। 8-9 महीने आपके खूब चक्कर कटवाए। क्यूँकि, उसके उप्पर भी कोई बैठा हो और उसके उप्पर भी कोई। और?
उनसे उप्पर भी कोई, जो कह रहा हो शायद आपसे या कह रहे हों, "ऐसे पिंड मत छोड़ो इनका, फँसे हुए हैं ये। मान के चलो, की हर बाप का और हर बॉस का एक बॉस होता है।" और आपको लगे, अरे यहाँ तो सुनने वाले भी हैं?  

और? कोई 8-9 महीने बाद आपको उसी अधिकारी का कोई जवाब मिले (RTI के बाद), की ये केस मैं नहीं देख सकता। ये तो मेरे सीनियर ऑफिसर के खिलाफ है। अरे? तो इतना-सा बोलने में इतने महीने क्यों खा गए? कोई तो मजबूरी रही ही होंगी? क्यूँकि, ये सब उस जूनियर अधिकारी ने अपने तबादले के बाद या आसपास लिखा। 2015 की बात है शायद ये। ऐसे ही कई और वाक्या हुए। 

जैसे कोई दोस्त (कमीना) बोले, हाँ। पता चल गया, तो क्या कर लिया? और आप हक़्क़े-बक्के से जैसे, देखते ही रह जाएँ, की इसे कोई गिल्ट या मलाल तक नहीं है, की इसने कुछ बुरा किया है या शायद बहुत बुरा किया है? और फिर कहीं पढ़ने को मिले। अभी आप जानते क्या हो? इससे आगे बहुत कुछ है। हाँ। उससे आगे भी बहुत कुछ देखा, सुना या समझने को मिला। कोरोना काल मौतें या हत्याएं? आम लोगों द्वारा आत्महत्याएँ या हत्याएँ? भेझे के बहुत से पूर्जे, बहुत तरह से हिल गए जैसे। ये दुनियाँ वो कहाँ है, जिसे मैं जानती थी? ये तो कोई और ही मशीनी युग है? या शायद इंसान और मशीनों के बीच कोई युद्ध है? 
  
कहाँ इस युद्ध के मारा-मारी के सैनिक और कहाँ बेचारे पानी की छोटी-मोटी बिमारियों से झुझते आम लोग? "गूँधनी हो गई। इक्क्ठ्ठी सात होती हैं ये।" ऐसे में बच्चों को पढ़ाना आसान होगा शायद, की Water या Bacterial या Microbial Infections कैसे होते हैं और कैसे उनसे बचा जा सकता है या होने पर उनका ईलाज घर पर ही किया जा सकता है। दादियों, चाची-ताइयों या शायद ऐसे कम पढ़े लिखे और कई पीढ़ियाँ जैसे पीछे रहने वाले दादों या चाचे-ताऊओं या बहनों की सुनने की बजाय, किसी गूगल बाबा या सर्च इंजन से पूछ लो, तो आपके झोला-छाप डॉक्टरों से बेहतर बताएँगे और समझायेंगे शायद।    


गूगल AI ज्ञान 

Human Computer interactions and ?

Human Computer interactions and ? Much cooking in between? 

Though, I don't know much about ........... It can be any institute or research lab or university or maybe even some other defence or civil organization.

Though, I don't know much about......... but human computer interaction and connecting points inbetween somewhere impact much around the world. These conncting points somewhere try to influence people in strange ways

In case, they are surveillance abusers then they have the capacity to make human robots. In creating these human robots, politics, system and big companies around the world use rather must say abuse, so much knowledge and technology. Wonder, at times, how higher education around the world is playing a part in that? By marking people? Like some guinea pigs? By testing people? Even without consent and knowledge? By abusing psychological manipulations and chemicals and drugs testing? Or even in synthesizing or creating some cases for forensic use or maybe abuse? Synthesis cannot necessarily be fact or some wrong or right. It depends, how it has been used or abused? For whom or what purpose? Who has the advantage or disadvantage to synthesize? And who even does not know if any such thing exists in world or can happen?

One side, there are people whose day by day lives are struggling for basic necessities of life. The other side, there are people who are fighting for empires or chairs or market control? And these the other side, hardly some percent of the world are remote controllers.

Connecting points inbetween

Political tunnels

Or there maybe some other such name or resources use and abuse?

Human Computer interactions and ? Much cooking in between? But how?

Maybe some other posts.

Monday, May 26, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 80

Are you a veteran? 

No

अरे सिर्फ हाँ या ना का तो विकल्प ही नहीं है। 

ये क्या दिया हुआ है? 

लँगड़े, लूले, बहरे, कम दिखाई देता हो, कैंसर, डायबिटीज, दिमागी बिमारी, बौने, मोटे, ज्यादा लम्बे (gingantism) । ना, ये क्या लिख दिया? मोटे, ज्यादा लम्बे (gingantism)? ये तो विकल्प नहीं है। मतलब, ऐसे लोग veteran नहीं हो सकते? ये फर्क क्यों? हेराफेरी है ये तो। ऐसे नहीं लग रहा, जैसे विश्वास कुमार के बौने या बोना ताना शाह या Games of Throne की बात चल रही हो या किसी हिटलर की बात चल रही हो?                  



और Veteran ऐसे होते हैं?  
(सब फोटो इंटरनेट से ली गई हैं)
 
कौन हैं आप?
Civilian या Veteran?

आपको लग रहा है की आप Civilian हैं? और ये खास-म-खास फॉर्म भरवाने वाले, जबरदस्ती जैसे, Veteran पे हाँ करवा रहे हैं?
कौन से युद्ध में हिस्सा लिया था आपने? 
वर्ल्ड वॉर 1, 2?
भारत या पाकिस्तान या किसी चीन की लड़ाई?
या पानीपत की कोई लड़ाई?

और आपको पता भी नहीं? इन वेबसाइट वालों के सपनों में गए होंगे?

ना जी प्रॉक्सी खेला करते हाम। बेरा ना किस कै बदलए किस न धर देते।  
     
कहाँ होता है ऐसे? किसी भी वेबसाइट पे हो सकता है? खास वाली। ED की वेबसाइट पे भी और किसी और यूनिवर्सिटी या इंस्टिट्यूट की वेबसाइट पर भी? ऐसे लग रहा हो जैसे, फ्रॉड वेबसाइट क्रिएट कर दी हों? भर दो, क्या जाता है?
ऐसी किसी जॉब के कोढ़ फिर कहीं देके मारेंगे। नहीं? 
वैसे ये सिर्फ वेबसाइट पे होता है या हकीकत की दुनियाँ में भी? पता नहीं क्या का क्या बनता है यहाँ? कोढ़-म-कोढ़ जैसे?   
 Feeling grrr 

Saturday, May 24, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 10

डोमेश्वर (D   -omeshwar?) 

Shows and Theatrics? Even Defence Theatre and Theatrics? 

डूम आ रहे हैं? 

Veterans?

और भी कितनी ही तरह के नाम दिए जा सकते हैं? रोमा, यूरोप? गड्डे लुहार, उत्तर भारत? ज्यादातर, समाज के आज के युग से दूर रहने वाले कबीले या लोग?       

और भी कितनी ही तरह के ईश्वर या भगवान या देवी-देवता? जितने इंसान, उतनी ही तरह के भगवान या देवी-देवता? जैसे भगवान और देवी-देवता घड़ना एक कला है, Art and Craft है। 

वैसे ही, और शायद उतनी ही तरह के भूत और भय पैदा करने के तरीके? किसी भी आम इंसान, परिवार या समाज के किसी हिस्से को विचलित करने के लिए? कुछ ना होने देने के लिए या कुछ खास करने या करवाने के लिए? या शायद राक्षस, डायन, विच जैसी wichhunting के लिए?  

Witchhunting? क्या बला है ये?

जिस इंसान को राजनीती, तथ्यों से काबू नहीं कर पाती, वहाँ Character Assassination और Witchhunting का प्रयोग होता है। यहाँ लिंगभेद भी नहीं होता। ये किसी भी लिंग के खिलाफ हो सकता है। या कहो की होता आया है। जितना बड़ा दॉँव लगा होता है, उतने ही ज्यादा घिनौने और बेहुदा तौर-तरीकों का प्रयोग होता है।

और ये सब करने के लिए राजनीती, कैसे और किस तरह के लोगों का प्रयोग या दुरुपयोग करते हैं?

शायद खुद आपका? आपके अपनों का या आसपास वालों का भी? ऐसे लोगों का जिनके अपने कोई निहित स्वार्थ हों? या शायद जो आपसे किसी भी तरह की चिढ़ या जलन रखते हों? या शायद जो किसी भी तरह की असुरक्षा की भावना से ग्रषित हों? जिन्हें खुद अपना महत्व या वैल्यू ना पता हो? ऐसे ही लोग, दुसरों को गिराने का काम करते हैं? क्यूँकि, उनके पास कुछ अच्छा देने के लिए होता ही नहीं? या शायद, उन्हें ऐसा लगता है? इसीलिए, असुरक्षा की भावना लिखा है। ऐसे लोग, जिन्हे खुद का महत्व न पता हो। ऐसे लोगों की असली दिक्कत आप नहीं हैं। खुद उनकी अपनी कोई समस्या, या कमी है शायद?  

जब यूनिवर्सिटी थी, तो लगता था की कुर्सियों की लड़ाई है, जिसमें ऐसे लोग भी झाड़ की तरह पिस रहे हैं, जिन्हे ऐसी-ऐसी कुर्सियों से कोई लगाव नहीं है। गाँव में आसपास के रोज-रोज के भद्दे और बेहूदा ड्रामे देखे, तो समझ आया, की ये कौन-सी कुर्सियों की लड़ाई है? यहाँ तो लोगों के पास, आम-सी सुविधाएँ तक नहीं? ऐसे-ऐसे ड्रामे, जो आदमियों को खा जाएँ? जिस किसी से ये राजनीतिक पार्टियाँ, ये सब ड्रामे करवाएँ, उन्हीं को या उनके अपनों को खा जाएँ? 

कोरोना काल, एक ऐसा दौर था, जहाँ मौतें नहीं, हत्याएँ थी। सिर्फ सत्ता द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों के सिर्फ कुछ लोगों की मिलीभगत द्वारा? दुनियाँ भर के मीडिया ने, या कहो की मीडिया कल्चर ने उसमें बहुत जबरदस्त तड़का लगाया। 

उसके बाद भाभी की मौत के बाद के ड्रामे? कई लोग तो आसपास चलते-फिरते शैतान या डायन जैसे नज़र आ रहे थे। उन बेचारों को शायद यही नहीं समझ आया, की वो बक क्या रहे थे? किसी इंसान के दुनियाँ से ही जाने के बाद, उसकी witchhunting? ऐसे क्या स्वार्थ थे, इन लोगों के? अब पूरे हो गए क्या वो स्वार्थ? Psychological manipulations at extreme जैसे? और कहीं पढ़ने-सुनने को मिला, की इसी को Psychological Warfare कहते हैं। यहाँ कोई असुरक्षा की भावना से ग्रषित इंसान, सामने वाले का किसी भी हद तक नुकसान कर सकता है। आम लोगों की छोटी-छोटी सी असुरक्षा की भावनाओं का दुहन करती, राजनीतिक पार्टियों की बड़ी-बड़ी कुर्सियों की लड़ाईयाँ? क्या का क्या बना देती है?

ये सब यहीं नहीं रुका। आसपड़ोस में भी फैला। वो भी ऐसे की बड़े-बड़े लोग, आत्महत्याएँ कैसे होती हैं या की जाती हैं, ये बता रहे हों? वो भी डॉक्युमेंटेड जैसे? कौन-सी दुनियाँ है ये? जो स्कूल के बच्चे या बच्चियों तक को ना बक्से? सिर्फ राजनीतिक पार्टियों की कुर्सियों की महत्वकाँक्षाओं की वजह से, या शायद बड़ी-बड़ी कंपनियों के बाज़ारवाद की मारकाट की वजह से?  

ऐसे अंजान अज्ञान लोगों को कौन बचा सकता है? क्यूँकि, सारी दुनियाँ तो कुर्सियों या बाजारवाद की दौड़ में नहीं है? संसार का सिर्फ कुछ परसेंट हिस्सा है। और वही मानव रोबॉट घड़ रहा है, कहीं किसी नाम पर, तो कहीं किसी नाम पर। 

Friday, May 23, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 9

तुम अपने घर का स्टोर क्यों नहीं साफ़ कर लेते? उनमें सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों द्वारा बिठाए नुक्सान पहुँचाने वाले भूतों से मुक्ती क्यों नहीं ले लेते?

और स्टोर ही क्यों? बाकी घर में भी साफ-सफाई करते रहने में क्या बुराई है? दिवाली या त्योहारों पे जो खास-सफाई का चलन है, उसके पीछे शायद ये एक अहम पॉइंट है। दिवाली या त्योहारों के इंतजार की बजाय, उसे हफ़्ते या महीने भर में होने वाली सफाई क्यों नहीं बना लेते? सफाई, जो सिर्फ आपके घर तक सिमित ना रहकर, आसपास का भी ध्यान रखती हो? सफाई ना सिर्फ़ आँखों और मन को शुकुन देती है, बल्की, समृद्धि का भी प्रतीक है। ये सेहत, पैसा और सुख-शांती को आकर्षित करती है। या कहो की सफाई और सेहत, पैसा और सुख-शांती एक दूसरे के प्रतीक हैं? 

सफाई के साथ-साथ, खुले-खुले घर और खुली-खुली जगहें स्वास्थ्य का परिचायक हैं। ऐसी जगहें या घर ना सिर्फ गर्मी-सर्दी को संतुलित रखती है, बल्की, प्रदूषण को भी कम करने का काम करती हैं। कैसे?

एक हज़ार गज में 10 घर और कितने आदमी? कितना पानी, हवा या ज़मीन का प्रयोग या दुरुपयोग? जहाँ पानी नहीं आता या ज़मीन का पानी कड़वा है, वहाँ ये समस्या और भी ज्यादा है। हर घर में तकरीबन वहीँ पे बाथरुम, लैट्रिन और वहीँ पर हैंडपंप या समर्सिबल? गोबर और केमिकल्स भी वहीँ जा रहे हैं और प्रयोग करने के लिए पानी भी वहीँ से लिया जा रहा है?  

दूसरी तरफ 1000 गज में एक या दो घर और कितने आदमी? बाथरुम, लैट्रिन, हैंडपंप या समर्सिबल कितने आसपास या दूर? या शायद पानी की सप्लाई भी बाहर से ठीक ठाक आ रही हो? हैंडपंप या समर्सिबल जैसी कोई बला ही ना हो? 

एक तरफ, अंदर-बाहर दोनों खुले-खुले आँगन और बना हुआ घर। और दूसरी तरफ, खुले घर आँगन को जैसे छोटे-छोटे खामखाँ से कैबिन में बाँट दिया हो? हवा बेचारी कहाँ, कितनी आर-पार होगी? तो गर्मी या सर्दी के क्या हाल होंगे वहाँ?

खुले आँगन में ज़मीन में पेड़ लगाना? या आँगन को भी कैबिन-सा बना, पेड़ों को हटा, छोटे-मोटे एक आध गमलों को जगह? लाभदायक पेड़ों की बजाय खामखाँ से या एलर्जी वाले पेड़ों को जगह? कहीं ठीक-ठाक जगहों के होते हुए भी, तुम्हारे घरों के हुलिए तो नहीं बिगाड़ दिए सिस्टम के इन घड़ने वालों ने? और तुम्हें लग रहा है, की सब खुद तुमने किया है?     

सुना है, की घर में टूटे-फूटे सामान को रखना अशुभ माना जाता था? या तो उसे चलता कर नया ले लिया जाता था या काम का हो, तो ठीक कर लिया जाता था? या देने लायक हो, तो किसी को दान? फिर वो चाहे घर के बर्तन-भाँड़े हों या पहनने या घर में प्रयोग होने वाले किसी भी तरह के कपड़े? ऐसे ही शायद घर की टूट-फूट या रख-रखाव का होता होगा? दिवाली जैसे त्यौहार पर साफ़-सफाई, शायद, इसीलिए ईजाद की गई होगी की ऐसे-ऐसे सामान से भी मुक्ती पाई जा सके? रंग रोगन या थोड़ी बहुत रौनक लाई जा सके? ऐसे सामान से मुक्ती। आप इंसानो से ना समझ बैठना। नहीं तो कहीं कोई बुजुर्ग या बिमार इंसान ये भी कह सकता है, "हाँ, हम भी काम-धाम के नहीं रहे, कर दो चलते" :)    

Psychological warfare, know the facts about narratives 8

हर रोज यहाँ पे कुछ न कुछ घटता ही रहता है। कुछ नौटँकी, कुछ ड्रामे, कल्टेशवर (cult-eshwar?) टाइप? क्या है ये कल्टेशवर? या इस तरह के ड्रामे या नौटंकियाँ? आम लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी के अहम हिस्से जैसे? रोज-रोज उनकी ज़िंदगियों में जो होता है, वो सब। 

मैंने नौकरी से रिजाइन किया ही था, और घर आना-जाना थोड़ा बढ़ गया था। यूनिवर्सिटी में रेगुलर हाउस हेल्प्स को मैं हटा चुकी थी। और ज्यादातर वीकेंड्स पर ही लेबर को बाहर से लेकर आती थी। तो ज्यादातर वीकेंड्स पर, अलग-अलग लेबर होता था। किसी को भी घर में एंट्री से पहले ही, उसके बारे में थोड़ा-बहुत जानकारी लेना पहला काम होता था। ये जानकारी लेना, सिस्टम के कण्ट्रोल चैक पॉइंट्स को समझने में बड़ा मददगार रहा। कौन, कहाँ से है? क्या नाम है? घर में कौन-कौन हैं? रोहतक में कहाँ रहते हैं और कब से रहते हैं? किस तारीख को कौन लेबर आपको मिलेगा और कहाँ से मिलेगा? कहाँ का होगा? उसका नाम, पता क्या होगा? उसके घर पर कौन-कौन होगा? वो कितने पैसे माँगेगा और कैसा काम करेगा; तक जैसे कहीं तय हो रहा हो? और हाँ, किस दिन या तारीख को आपको लेबर नहीं मिलेगा? इतना कुछ कैसे कोई तय कर सकता है? शुरु-शुरु के कुछ महीने तो जैसे, बड़े ही अजीब लगे। और जाने कितने ही प्रश्न दे गए। 

ज्यादा घर आने-जाने ने, यूँ लगा, जैसे इस समस्या को थोड़ा कम दिया। यहाँ पे जो काम करने वाली आती थी, उनसे बात की और उन्होंने हफ़्ते, दो हफ़्ते में एक दो, बार करने के लिए हाँ कर दिया। ये लोग मेरे लिए नए थे। जो बचपन में इन घरों में काम करने आते थे, ये वो नहीं थे। खैर। मेरा काम हो रहा था। और मुझे क्या चाहिए? मगर कुछ ही वक़्त बाद, यहाँ भी आना-कानी शुरु हो गई। काम करने वालों की अपने-अपने घरों की समस्याएँ। थोड़ा बहुत जब उनके बारे में जाना तो लगा, ये तो कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा? गाँव के लोगों की समस्याएँ, अक्सर ज्यादा ही होती है? और थोड़ी अटपटी भी? मगर वो किसी सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों से भी अवगत करा सकती हैं क्या? तब तक ये cult वाली टर्मिनोलॉजी या ये सब होता क्या है, यही नहीं पता था। 

शिव सोलाह? 

या हनुमान चालीसा? 

संतोषी माँ? 

या शेरा वाली माँ? 

माता धोकन जाऊँ सूँ? 

या झाड़ियाँ की धोक?   

साधारण से लोगों की साधारण-सी ज़िंदगियाँ? या ऐसे-ऐसे सिस्टम की चपेट में ज़िंदगियाँ? ऐसे-ऐसे सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों की देन?

बीमारियाँ?

भूत कहानियाँ?

मौतें? 

अनाथ बच्चे? 

एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेड की हुई औरतें?

सिमित ज्ञान और सिमित संसाधन?

और इस सबके बीच या कहो की इस सबको बनाने वाले सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों का ऐसे-ऐसे अंजान, अज्ञान लोगों का शोषण?      

और जाने क्यों, इस सबने मुझे फिर से यूनिवर्सिटी के H #16, Type-3 वाले स्टोर की याद दिला दी। "मैडम, ये स्टोर मैं साफ़ नहीं करुँगी।"

मगर क्यों? पीछे पढ़ा होगा आपने कहीं, पोस्ट में?                                     

Psychological warfare, know the facts about narratives 7

They have seasons. Season 1, season 2, season 3 and so on. 

In which season are you right now?

Evergrowing?

Everlearning?

Evergoing ahead?

Or ever losing?

Depends?


Who has asked this question and for what purpose? There is no one answer or fit for all?

Boss?

Boss? Word is bad enough and better to leave behind? Interesting? 


Is it the purpose or situation at particular time that demans your attention?

Pupose long term. Situation, temporary, but at times, demands attention as well as time.


Since some time, I am hooked to ED. 

ED?

What kind of ED is that? Kinda ED in or ED out? I got many prompts from there for my posts. At times,interesting and helping. At times, as usual like random online stuff.

Balance. Personal and professional space. Home and office duties and responsibilities as well as rights.

Here I did not find jobs, but sermons. Interesting? Job skills? Life skills? Or what's wrong and right at these two places? And how they are so interconnected? People who instead of protecting you, put you through fire? Instead of warning you, put you through trials? Are they family or calling self your people? Maybe extended family?

But then, is not that true for the surrounding also, I am living right now? Remote controlled lives via surveillance abuse? 

Be it so-called extended family or sermon givers themselves, are not they exploiting less priviledged people this way?

Saturday, May 17, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 6

 Factteller, Fictionteller or Storyteller?


Setting the narrative is art and craft? 

--to gain advantage by applying psycological measures and surveillance abuse?

Or maybe for correctional measures?

Depends?

नरेटिव घड़ना अगर कला है, तो नरेटिव के सच को जानना? 

कहानियाँ सुनाना, पुरानी कला है। पहले दादा-दादी या नाना-नानी सुनाते थे, तो बच्चे अपने बड़ों से जुड़ाव महसूस करते थे। फिर TV, मोबाइल और इंटरनेट का जमाना आया और लोगों ने अपना वक़्त बच्चों को देने की बजाय, मोबाइल, टीवी या टेबलेट्स, लैपटॉप वैगरह पकड़ाना शुरु कर दिया। इसे ये सब चलाने वालों ने समझा और एक अलग तरह का शोषण शुरु हो गया?

टीवी, मोबाइल, इंटरनेट अच्छा भी दिखाता है और बुरा भी। वक़्त इसके कारण कहाँ जाता है, पता ही नहीं चलता? माँ, बाप भी अपना काम ऐसे में आसानी से कर पाते हैं। क्यूँकि, बच्चे ये सब मिलने के बाद तो माँ, बाप को जैसे भूल ही जाते हैं? और माँ-बाप बच्चों को? दोनों का काम आसान हो गया? या मुश्किल? ये वक़्त बताता है? 

ये सिर्फ बच्चों पर लागू नहीं होता। बड़ों पर भी होता है। मतलब, लोग मोबाइल, टीवी, इंटरनेट की दुनियाँ में इतने वयस्त हो गए, की एक दूसरे को ही भूल गए? पहले मुझे लगता था की ये ज्यादातर शहरों की समस्या है। मगर, गाँव आकर समझ आया, की शहरों से ज्यादा, गाँवों या कम पढ़े लिखे लोगों की ज्यादा है? इसलिए उन्हें अपने बच्चों के बारे में ही नहीं पता होता की वो क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं या क्या कर रहे हैं? और घर के लोगों में दूरियाँ बढ़ती जाती हैं। एक दूसरे के बारे में ही नहीं पता, तो वो कैसे घर? कैसा घर-कुनबा? इसका फायदा सर्विलांस एब्यूज करने वाली पार्टियाँ और कम्पनियाँ बड़ी आसानी से भुनाती हैं। ऐसे लोगों को रोबॉट बनाना बहुत ही आसान होता है। एक दूसरे के ही खिलाफ प्रयोग करने में, ये अहम भूमिका निभाता है। 

पहले मुझे लगता था की मैं 10th के बाद ही घर और गाँव से दूर हो गई, तो शायद मेरा घर पर विचारों में मतभेद का ये अहम कारण है। क्यूँकि, मैं यहाँ रही ही कहाँ? 

यहाँ आकर पता चला, की मैं थोड़ा दूर रहते हुए भी पास थी। कम से कम फ़ोन पर तो, सबसे बात हो जाती थी। यहाँ तो पास होते हुए लोगों के पास वक़्त नहीं, एक दूसरे के लिए। लोगबाग यहाँ आसपास रहते हुए, एक-दूसरे के बारे में कहीं और से ही ज्ञान लेते हैं। और वहीं मार खाते हैं। जो बच्चे स्कूल के बाद ही पढ़ाई छोड़ देते हैं, या स्कूल के वक़्त ही उल्टे-सीधे केसों में फँस जाते हैं, उनके लिए ये दूरी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे बच्चों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ती।      

सामान्तर घड़ाईयाँ, इसका जीता जागता उदाहरण हैं। लेकिन ये सामान्तर घड़ाईयाँ हैं बड़ी अज़ीब। जैसे कुछ एक केसों में पीछे बताया, की कितना बढ़ा-चढ़ाकर या तोड़-मरोड़ कर घड़ी जाती हैं, ये सामान्तर घड़ाईयाँ। थोड़ा पता होगा तो लगेगा, यहाँ और वहाँ जैसे एक जैसा-सा हो रहा है। मगर, जब पास से हर रोज ऐसी सामान्तर घड़ायीयों को होते देखोगे, तब समझ आएगा की बढ़ाना-चढ़ाना, तोड़ना-मरोड़ना या कुछ नया मिर्च-मसाला जोड़ना, ऐसे में कितना आसान है। 

जैसे?

कहाँ फेसबुक पर झंडा गाडना और कहाँ किसी लेट को रेत से भरकर, उसपर झंडा गाडना? दोनों एक ही बात हैं क्या?

ऐसे ही जैसे, कहाँ टाँग तुड़वाकर बैड पे पड़ा होना या ऑफिस से छुट्टी लेकर फिजियो और एक्सेरसाइज़ पर सारा दिन बिताना और कहाँ वो तो live-in रह रहे थे का, किसी और स्कूल बच्चे का केस? स्कूल बच्चे का केस?

ऐसे ही जैसे, कहाँ किन्हीं रिश्तों पर जुए के नंबरों की मार और कहाँ किसी को दुनियाँ से ही उठा देना? एक ही बात हैं क्या?

ऐसे ही जैसे, एक कोई छेड़छाड़ या रेप का केस और कहाँ उन्होंने कट्टे से फलाना-धमकाना को उड़ा दिया। एक ही बात है? 

ऐसे ही जैसे, कहाँ किताबों का पढ़ना, लाब्रेरी या किताबों का लेन-देन और कहाँ CHAT-GPT, AI और उनके प्रयोग और दुरुपयोग?

ऐसे ही जैसे, कहाँ बन्दूक या पिस्तौल की गोली और कहाँ चोरी-छिपे, खाने-पानी में किन्हीं गोलियों की सप्लाई? 

ऐसे ही जैसे, कहाँ किसी चैट में या ऑनलाइन गुनाह के फूटप्रिंट्स का होना और कहाँ मकानों, दुकानों या ऑफिसों की ईमारतों और सामान में?

ऐसे ही जैसे, कहाँ राजनीति के जुए की बिमारियों की घढ़ाईयाँ और कहाँ खाना-पानी और हवा को प्रदूषित कर, लोगों की सेहत या ज़िंदगियों से ही खेलना?  

ऐसे ही जैसे?

कितने ही, ऐसे ही जैसे, आपके अपने आसपास भरे पड़े हैं। इन्हें और इनके भेदों या फर्क को समझना बहुत जरुरी है, किसी भी स्वस्थ समाज के लिए या आगे बढ़ने के लिए।   

पीछे कुछ अजीबोगरीब से ड्रामे चले। या कहो की रोज चलते ही रहते हैं। मगर, जिनसे वो करवाते हैं, उन्हें उनके दुष्परिणाम कहाँ पता होते हैं? आगे यही ड्रामे करवाने वाले, क्या करेंगे इन लोगों के साथ?  

Friday, May 16, 2025

मैं कहाँ हूँ?

सुना है, 

एक कदम US में है 

और एक यूरोप में। 

ऑनलाइन। 

बाकी, बैठी अभी तक अपने घर ही हूँ। 

है ना मजेदार दुनियाँ?


वो रस्ते (ऑफर?) भी दिखा रहे हैं 

यहाँ भी, यहाँ भी, और यहाँ भी। 

और खतरे भी बता रहे हैं (खतरे?) 

खतरे? भर्मित करने को?

यहीं पे बाँधे रखने को?   

यहाँ भी, यहाँ भी, और यहाँ भी? 


मगर ये ऑफर ऑनलाइन नहीं दे रहे 

जबकि, ऐसे हालात में, 

वो ऑनलाइन कहीं बेहतर कर सकती है।

और कहीं भी रह सकती है। 

शायद, उन्हें ऐसा रास नहीं आ रहा?

कह रहे हों जैसे -- 

निकलो, घर से निकलो। 

और कब तक पड़े रहोगे वहाँ? 

 है ना अजीब (ऑनलाइन) दुनियाँ?


एक बुआ सिर पर मेरे, 

जाने मैं उसकी बुआ हूँ, 

या वो मेरी? 

जितनी बड़ी हो रही है,

उतनी ही बड़ी तानाशाह।

इस घर का छोटा-सा हिटलर जैसे।   

गाने ज़िंदगी का ज्ञान भी देते हैं?

गाने ज़िंदगी का ज्ञान भी देते हैं? एक ही गाना कितना कुछ कह जाता है? कई बार तो, दशकों को एक छोटे-से गाने में पिरो जाता है? एक दशक पहले या दो दशक पहले या उससे भी पहले, वो आपका पसंदीदा गाना हुआ करता था? और आज भी है? गज़ब है? जैसे कुछ, बदलता ही नहीं? वही ढाक के तीन पात-सा? इस दौरान, वैसे से ही शब्द लिए या वैसा-सा ही ज्ञान लिए, कितने ही नए गाने आ जाते हैं? नए वक़्त से कदम-ताल मिलाते से जैसे? मगर, फिर भी आपकी पसंद आज भी वहीँ ठहरी-सी है जैसे?       

बुल्ला की जाना मैं कौन -- रब्बी शेरगिल 

Psychological warfare, Setting the narratives 5

सुना, कुछ लोग, कुछ पोस्ट से बुरा महसुश कर रहे हैं? 

क्यों?

किसी ने आपपे जैसे देशद्रोही सी मोहर लगा दी? पाकिस्तानी कह रहे हैं? चीनी? नेपाली? या किसी भी तरह का अंग्रेज? या अफ्रीकन? जबकि, आप तो ऐसा कहने वालों से कहीं ज्यादा पक्के भारतीय हैं? तो बुरा तो लगना ही है? कौन हैं ये लोग, जो ऐसी कोई मोहर ठोक रहे हैं आपपे?  

आपका जन्म भारत का है? 

आपके माँ, बाप, दादा, नाना सब भारत में ही पैदा हुए? 

आपकी पढ़ाई और परवरिश भी भारत में ही हुई या हो रही है?

आपके सब पहचान पत्र भी भारत के ही हैं?

फिर आपको ऐसा कहने वाले या ऐसी मोहर ठोकने की कोशिश करने वाले लोग कौन हैं? और वो ऐसा, क्यों और कैसे कर पा रहे हैं?  

ये चालाक, ध्रुत और शातिर लोग हैं। 

इनको कहानियाँ घड़नी आती हैं। 

सिर्फ कहानियाँ? अरे नहीं, वो तो कितने ही घड़ लेते हैं। 

इनको ज़िंदगियाँ तोड़नी और मरोड़नी आती हैं। 

ये काफी पढ़े-लिखे और दुनियादारी से कढ़े लोग हैं। 

अरे ! अरे ! आप वाली दुनियाँदारी नहीं। इन्होने सच की दुनियाँ देखी हुई है या शायद दुनियाँ भर में घुमते हैं या दुनियाँ जहाँ का ज्ञान है। 

ये किसी क्षेत्र या भाषा में नहीं बंधे हुए। मगर, आप जैसों को बाँधने के औजार (टूल्स) रखते हैं। 

ये आपसे ज्यादा, आप पर और आपके बच्चों पर वक़्त लगाते हैं। ये बहुत अहम है। 

इन्हें इंसानों को ही नहीं, दूसरे जीव-जंतुओं और निर्जीवों तक को अपने अनुसार घड़ना (चलाना) आता है।   

ये आपकी अपनी राजनीतिक पार्टियाँ और ज्यादातर अन्तर्देशीय कम्पनियाँ और उनके पढ़े-लिखे और कढ़े लोग हैं। 

ये समाज को अपने अनुसार घड़ने का काम करते हैं।  

तभी इन्हें पैसा और कुर्सियाँ मिलती हैं। 

ये रोज-रोज के छोटे-मोटे जीने के संसाधनों को इक्कठ्ठा करने के चक्कर में नहीं। बल्की, वर्चस्व की लड़ाई लड़ते हैं। जिनसे इन्हें और ज्यादा पैसा और ताकत मिलती है। 

कैसे?

नैरेटिव सेट करके। आपके आसपास का माहौल घड़ कर। Media Culture Lab 

आपमें भी है क्या ऐसी ताकत? या आप इन्हीं लोगों की एक छोटी-सी कड़ी का काम करते हैं? अपने रोज-रोज के छोटे-मोटे जीने के संसाधनों को इक्कठ्ठा करने के चक्कर में? जानते हैं आगे, की आप क्या कर रहे हैं और ये क्या?  

Tuesday, May 13, 2025

Eurovision Song Contest, Nearby?

When you forget something integral to you, you forget life somewhere? Or there is no time for music or walk or excercize? It's a place where you can do better, only writing? As everything in the surrounding is like some prompt?

Or better have a break from writing? Oh! Forgot even that Eurovision song contest is also nearby? Is it May?

And like last year, no song is as appealing, as it used to be earlier. Why it's so?  

Freedom is not even on their selected chart? Or even freedom song was not that appealing? Euro colours seems out? It's too dark, sad kinda melancholic? Kinda saying?

Write, sing or search elsewhere your own haapy and joyful songs? Where you can find them in beautiful dresses, beautiful background or surrounding and singing beautiful happy songs?

What they have selected this year or singing on that world stage?

Georgian Freedom?


Naa! Seems a bit strange?

Then?
Shadows and Show?
C?
Y?
P?
R?
U?
S?

Too Dark?
That's where news are doing the round?

बला जी छोटी बेबे न्यूँ कह सै, 
या फ़ूं फ़ूं पाकिस्तान पै अ, चाल्य सै के?
नरे क्रिकेट खेलणीय बालक 
के होग्या, जै छोटी-मोटी बाल फैंक दे सैं तो?  

यो फूफा चीन थारा, ज़मीन हड़पें बैठा
आड़े के आँख मीच री सैं थारी?

हैं बेबे कहवै थी के किमैं?

पेपर टाइगर किते के?
Which song will fit on this?

बाजण दो भाई DJ?
इसपे  Eurovision Song Contest, 2025 का कोई गाना फिट होगा क्या?   
बोले तो कुछ भी :)

Monday, May 12, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर (New Blog)?

ये लो 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 

https://zameenkhoronkezameenidhandhe.blogspot.com/

आगे से इससे सम्बंधित सब पोस्ट इसके नए पते पर मिलेंगी। 

Rhythms of Life को वापस उसकी Rhythms दें? 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 11

 शिक्षा और राजनीती का क्या लेना-देना है, इस केस में?

राजनीती का तो सारा ही है। समाज की सब समस्याओं की जड़ है राजनीती। हालाँकि, समाधान भी वहीं हैं। मगर राजनीतिक रस्तों से अगर समाधान निकालने की कोशिश करोगे, तो शायद आपकी ज़िन्दगी ही नहीं, आपकी कई पीढ़ियों की ज़िंदगियाँ खप जाएँ। 

कोर्ट्स का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। कई केसों में तो कोर्ट्स भी लल्लू-पंजू से नजर आते हैं। ऐसा क्यों? ये शायद खुद कोर्ट्स बता पाएँ? कोर्ट्स इस सिस्टम में खुद एक कोढ़ (कोड) हैं।

इंसान, अच्छे-बुरे हर जगह और हर प्रॉफेशन में हैं। कितनी, कब, कहाँ और किसकी चलती है, ये  अहमियत रखता है, शायद। नहीं तो कितना कुछ कोर्ट्स तक, अपने सामने होते हुए भी, बेचारे से, लाचार से देखते हैं? जैसे उनके पास कोई रस्ता ही ना हो? खैर। शिक्षा का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। ये ज़मीनखोरी का एक छोटा-सा, तकरीबन-तकरीबन उसी वक़्त दिखाया-बताया जा रहा उदहारण है। जहाँ गाँव का कोई छोटा-सा स्कूल, कैसे किसी सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन, अपने ही चाचा, ताऊओं के बच्चों पर मार कर रहा है? 

यूनिवर्सिटी की फाइल्स या इमेल्स और गाँव के स्कूल वालों की घड़ाई? है ना मजेदार? 

वैसे मेरी यूनिवर्सिटी की बचत का अभी क्या चल रहा है?

भाभी की मौत के बाद, मैंने अपने नॉमिनी बदलवाने के ईमेल की। मगर हुआ कुछ नहीं। बल्की, इधर-उधर से चेतावनियाँ आनी लगी, की ऐसा मत करो। ऐसा हुआ तो, तीनों बहन-भाईयों को साफ़ करने की साज़िश है। और ऐसे लोगों के लिए, फिर गुड़िया को औना-पौना करना कितना मुश्किल होगा? समझ ही नहीं आ रहा था की क्या, कहाँ और कितना सच था। मगर मुझे भी लगा, वैसे भी जब इस घर में बच्चा ही एक है, तो अभी तो सब उसी का है। अगर तीनों बहन-भाईयों को ख़त्म करने जैसी कोई साज़िश चल रही है, तो भी उसी का है। मगर ऐसे में, वो भी कितना सुरक्षित होगी? और मैंने कुछ नहीं किया, जो पहले से नॉमिनी थे, वही रहे। ना ही यूनिवर्सिटी ने ईमेल के बावजूद बदले। बचत दो पर ईमेल होती रही। 

एक दिन यूनिवर्सिटी ने उसके लिए भी बुलाया। उसकी पोस्ट मैं पहले लिख चुकी शायद, की कुछ अजीब-सा चल रहा था। मेरे कहने के बावजूद, मेरे घर का पता नहीं बदला गया। मैंने सारे पैसे एक साथ देने को बोला, तो उन्होंने कहा की ऑप्शन ही नहीं है। 

जबकी कहीं और, ये ऑप्शन, मैंने पढ़ी और सुनी थी। 

कहने को मैं sign कर आई, मगर साथ में concerned official को ईमेल भी कर दी, जो कुछ वहाँ हुआ या मुझे समझ आया, उसके बारे में। तो अगर वो पता तक अपडेट नहीं कर रहे, तो उन sign के भी क्या मायने हैं?

आप कूट, पीट, लूटकर निकाल चुके हैं। तो छोटी-मोटी बचत तो शायद सारी दे ही देनी चाहिए। 

अब NSDL या Protean के नाम पर फ्रॉड इमेल्स के ड्रामे शुरु हो चुके थे। समझ ही ना आए, की कौन-सी ईमेल कहाँ-से है? या NSDL की कितनी ऑफिसियल वेबसाइट या ईमेल Id हैं? 

वहाँ भी ईमेल में जवाब यही था, की मुझे मेरा सारा पैसा दे दो। ताकी यहाँ अपना कुछ बंदोबस्त कर, आगे कुछ किया जाय। इस बीच जमीनखोर लोग, अगर फिर से कुछ खुरापात कर रहे हैं, तो इसका मतलब क्या है? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी और गाँव में आसपास काफी कुछ कोआर्डिनेशन में चलता है।   

और ये लड़कियों के हकों पर राजनीती करने वालों के लिए भी। किसी की ज़मीन को यूँ, इतनी टिक्कड़बाज़ियों से, किसी प्राइवेट स्कूल की तरफ खिसकाना, क्या कहलाता है? सिर्फ माँ गई है बच्ची की। बुआ, बेटी दोनों घर बैठी हैं। और हाँ। एक और बुजुर्ग औरत भी है इस घर में, दादी। तो यहाँ शायद, कोर्ट्स भी बेचारे और लाचार ना हों? 

Sunday, May 11, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 10

 स्कूल और दो कनाल ज़मीन (Protection?)

(ये पोस्ट दिसंबर 2024 की है, जब ये सब चल रहा था तभी की) 

सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से?

जिन्हें राजनीतिक जुए की मार आम लोगों पे कैसे-कैसे होती है, को जानना हो, वो इस शराब लत वाले इंसान पे फोकस कर सकते हैं। बहुत-सी मौतों के राज समझ आएंगे और तारीखों के भी। वो शराबी नहीं है, उसे शराबी सिस्टम की जरुरतों या कहो पार्टीयों की जरुरतों ने बनाया है। थोड़ा ज्यादा हो रहा है ना? और उसपे मैं ये कहूं की ये ज्यादातर आम-आदमियों पे लागू होता है। सिस्टम। 

बड़े लोग सिस्टम को बनाते हैं, अपनी जरुरतों के अनुसार। और आम-आदमी बनता है, उनकी जरुरतों का मोहरा, गोटी। इनमें वो भी हो सकते हैं, जो आज इस सिस्टम की या किसी एक पार्टी की जरुरत के अनुसार, इस सामाजिक सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन चुके हैं। जिस किसी वजह से। अगर आप गाँव के किसी स्कूल से सम्बंधित है, तो थोड़ा बहुत पैसा और ठीक-ठाक ज़िंदगी होते हुए भी, सामाजिक सँरचना के पिरामिड में आखिर वाले पायदान पे ही हैं। गाँव आज भी पिरामिड का वही हिस्सा हैं। हाँ। उस गाँव वाले पिरामिड में हो सकता है, स्तिथि थोड़ी-सी सही हो।        

सिस्टम एक पिरामिड है। इस पिरामिड के तीन अहम हिस्से हैं।  

उत्पादक (Producers) : पैदा करने वाला, जैसे खाना, कपड़ा और मकान। और भी कितनी ही तरह के उत्पाद, जो इंसान प्रयोग करता है।           

उपभोगता (Consumers) : प्रयोग करने वाला  

सफाई कर्मी (Decomposers) : साफ़-सफाई करने वाले, किसी भी तरह की 

जहाँ इन तीन हिस्सों में संतुलन है, वो घर, परिवार या समाज संतुलित है। वो इंसान संतुलित है। जहाँ इनमें से किसी एक में भी कहीं कुछ गड़बड़ है या असंतुलन है, वो समाज असंतुलित है। वो सिस्टम असंतुलित है। वो घर, परिवार,  इंसान असंतुलित है।   

स्कूल और दो कनाल ज़मीन का इस सबसे क्या लेना-देना? 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई 

चलो एक दारु-लत वाले इंसान की कहानी सुनते हैं । सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से? 

शायद इसीलिए, भतीजे ने (दूसरे दादा के बच्चे, रोशनी बुआ वाला घर), वो ज़मीन खरीद ली? क्यूँकि, उसने खुद ऐसा बोला की बुआ Protection के लिए ली है। हम नहीं लेते, तो कोई और लेता। किसके और कैसे Protection के लिए? ये समझ नहीं आया बुआ को। ये शराब दो और ज़मीन लो के गाँवों में ही इतने किस्से क्यों मिलते हैं?    

सबसे बड़ी बात, क्या वो ज़मीन बिकाऊ थी? सुना, कुछ वक़्त पहले तो वहाँ स्कूल बनने वाला था। भाभी के जाने के बाद, शायद कोई छोटी-मोटी रहने लायक जगह या कुछ ऐसा-सा ही। बुआ को हमेशा के लिए गाँव रहना नहीं, तो किसके काम आता वो? अरे वो तो पैसा यूनिवर्सिटी ने रोक रखा है ना? वैसे यूनिवर्सिटी की उस छोटी-मोटी बचत में, मैं अपने नॉमिनी बदलने की रिक्वेस्ट भी दे चुकी, काफी पहले। मगर, जाने क्यों आज तक यूनिवर्सिटी ने ना वो नॉमिनी बदले और ना ही मुझे अभी तक वो पैसा दिया। जाने क्या-क्या होता है दुनियाँ में? और क्यों होता है? क्या इसीलिए, की ये थोड़ी-सी किसी भाई की, खास जगह वाली ज़मीन बिकवाई जा सके? क्यूँकि, अब जो नॉमिनी में नाम हैं, उनमें एक ये है, जिसकी ज़मीन बिकवाई गई है। और दूसरा नाम भतीजी। माँ और छोटे भाई का हटा दिया, क्यूँकि उन्होंने कहा की उन्हें जरुरत नहीं है। इस भाई का जैसे अपहरण किया हुआ है और बोतल सप्लाई हो रही हैं। उस हिसाब से तो जल्दी ही खा जाएँगे इसे। या इसीलिए कुछ अपने कहे जाने वाले लोग, किसी गरीब का फायदा उठा रहे हैं? बहन तो कोई सहायता कर नहीं सकती, इस हाल में? बचा कौन? माँ तो वैसे ही आई-गई के बराबर है? भाई क्यों और कब तक भुगतेगा, ऐसे इंसान को?          

वैसे घर पे माँ-बहन को तो जरुर बताया होगा, ये जमीन खरीदने वाले अपनों ने? क्यूँकि, वो माँ के पास घर आता-जाता था और खाना भी वहीं खाता था। कुछ होता तो हॉस्पिटल बहन लेके जाती थी। दो बार तो शराब के नशे की वजह से एडमिट भी हो चुका और deaddiction सेंटर भी जा चुका। ये अजीबोगरीब किस्से-कहानियाँ कैसे और कहाँ-कहाँ जुड़े हैं, ये किन्हीं और पोस्ट में। अगर नहीं संभाला गया होता, तो कितने ही उसके आसपास वालों की तरह, राम-नाम-सत्य हो चुका होता।  

मगर जबसे ये ज़मीन के चर्चे शुरू हुए, खासकर भाभी के जाने के बाद, तबसे कुछ और भी खास चल रहा है। बंदा जैसे अपहरण हो रखा हो। कई-कई दिन फ़ोन बंद। उठाए तो टूल। बहन तो अब तक deaddiction centre भेझ चुकी होती, ऐसे हाल में। मगर, अबकी बार कुछ गड़बड़ है शायद? उसे शराब से दूर और पोस्टिक खाने की खास जरुरत है। मगर कहाँ का खाना, जब शराब देके सब निपट जाए?   

लगता है Protection के लिए काफी पैसे दे दिए? शराब पीने वाले को पैसा? उसे बचाने के लिए या उसका राम-नाम सत्य करने के लिए? अरे नहीं, पैसे उसे नहीं दिए। सिर्फ कोर्ट के जमीन वाले पेपर्स पे ऐसा लिखा है। 1 लाख सामने ही एक पड़ौसी हैं, उन्हें दिए हुए हैं। इन्हीं पडोसी ने बताया, की उन्हीं में से थोड़े-बहुत ले लेता है। 1.5 लाख और कहीं बताए, उस पड़ोस वाले भाई चारे ने। घर वालों से क्या खतरा था, उन्हें क्यों नहीं? अगर ये भी मान लें, की माँ या भाई ने बोलना ही छोड़ दिया है उससे, तो बहन के बारे में क्या कहेंगे? सबसे बड़ी बात, बहन जमीन खरीदने वालों के घर तक गई, जब सामने आया की ऐसा कुछ चल रहा है, या हो चुका। अपना समझ के, की ये मामला क्या है? और खरीदने वाले की माँ बोले, हमें तो खबर ही नहीं? लगता है स्कूल प्रधान चाचा को भी, अब तक भी खबर नहीं हुई? बाकी फोन उठाना या मेसेजेस का जवाब देना, शायद उसके संस्कारों में नहीं। कितने संस्कारी लोग हैं?         

विपरीत परिस्तिथियों का फायदा उठाओ और हालात के मारे को और जल्दी ऊपर पहुंचाओं? बहुत-सी बातों और हादसों पर यकीन नहीं होता। ऐसे, जैसे ज़मीन के पेपर आपके पास आ चुके हों। बेचने, खरीदने वाले और गवाहों के फोटो और अजीबोगरीब-सा, पैसे का हिसाब-किताब भी। ज़मीन, वो भी उस जगह, सच में इतनी सस्ती है? कोड़ी के भाव जैसे। कुछ वक़्त पहले, मैं खुद ज़मीन ढूढ़ रही थी, यहीं आसपास। मुझे तो इतनी सस्ती ज़मीन, कहीं सुनने को भी नहीं मिली। ये स्कूल वाले देंगे इतने में? खुद इन्होंने अभी पीछे काफी किले खरीदे हैं, कितने में? वो भी पानी भरने वाली बेकार-सी ज़मीन। इस ज़मीन के साथ वाली ज़मीन नहीं। शायद इसीलिए, माँ-बहन से बात तक नहीं करना चाहते?      

उसपे ये गवाह कौन हैं? क्या खास है उनमें? घर या आसपास से ही कोई इंसान क्यों नहीं? घर वालों के क्या आपस में जूत बजे हुए हैं? या वो देने नहीं देते? जिसकी बहन कल तक खुद ज़मीन देख रही थी, वहीं आसपास, वो वहीं की ज़मीन क्यों बेंचेंगे? मतलब, धोखाधड़ी का मामला है?

कोर्ट्स को शायद इतना-सा तो कर ही देना चाहिए की किसी को कोई आपत्ति है या नहीं, जैसा एक नोटिस, कम से कम पुस्तैनी ज़मीनो के केसों में घर तक पहुँचवा दें, अगर ज़मीन किसी के नाम हो तो भी। अगर ऐसा हो जाए, तो कितनी ही औरतें या परिवार वाले, बेवजह के कोर्ट्स के धक्कों से बच जाएँ। हमारे इन रूढ़िवादी इलाकों में हक़ होते हुए भी, पुस्तैनी जमीनों को ज्यादातर आज भी, माँ, बहनें नहीं लेती। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं होता, की कोई भी ऐरा-गैरा, नथू-खैरा या जालसाज़ उन्हें धोखे से अपने नाम कर ले। कोई इंसान पिछले कई सालों से दारु की लत से झूझ रहा हो, तो उसका मानसिक संतुलन सही है या नहीं, ये सर्टिफिकेट कौन देगा? वो जो सालों से उसे झेल रहें हैं, और बचाने की कोशिश कर रहे हैं? या वो, जिनकी निगाह, उसकी ज़मीन पे हैं? और ऐसे लोगों को ये ज़मीनों के खरीददार, पैसे भी देते होंगे? कुछ बोतल ही काफी नहीं होंगी? उसकी कहानी किसी और पोस्ट में। क्यूँकि, ऐसी कई कहानियाँ आसपास से सामने आई।      

अपने ही आदमी हैं? घर कुनबा है? इसीलिए, पब्लिक नोटिस लगाना पड़ रहा है, की किसी सुनील की कोई ज़मीन ना बिकाऊ थी, ना है। शराब लत वाले इंसान को बोतल देके, ज़मीन लेने की कोशिश ना करें। और अगर ये पेपर सच हैं, जो मेरे पास थोड़ा लेट पहुँचे हैं शायद, तो इसका साफ़-साफ़ मतलब ये है, की खरीदने वाला भगोड़ा इसीलिए हो रखा है की धोखाधड़ी है। वरना, मैसेज करो तो जवाब नहीं और घर जाओ तो गुल हो जाता है, भतीजा। 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई मुबारक हो। आखिर इस पीढ़ी का नंबर भी तो, कहीं न कहीं से तो शुरू होना ही था? कितना बढ़िया हुआ है ना? अच्छा लग रहा है? बेहतर होता, अपने आसपास की सामाजिक सामान्तर घड़ाइयों से सीख लेके, ऐसे ओछे गुनाह से बचते। अगर शराबी चाचा की सच में कोई फ़िक्र होती, तो उसके वो हाल ना होते, जो हो रखे हैं। वो आजकल है कहाँ और रहता कहाँ है, या खाना वगैरह कहाँ खाता है, ये तो अता-पता जरूर होगा? भगोड़ा होने की बजाय, बेहतर होगा की बुआ से संपर्क करें।      

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 9

कोई अपना शायद ऐसा ही सोचेगा? और ऐसा ही कुछ करने की कोशिश करेगा?

थोड़े कम पढ़े लिखे और बेरोजगार लोग, अगर अपना कुछ पढ़ाई-लिखाई से सम्बंधित शुरु करेंगे, तो ना सिर्फ साफ़-सुथरे, बने-ठने, साफ़-सुथरी जगह रहेंगे। बल्की, अच्छा बोलेंगे और कुछ न कुछ रोज नया सीखेंगे। राजनीती के दुरुपयोग करने वालों से या जालों से थोड़ा-बहुत बचेंगे। और क्या पता, चल ही निकलें। क्यूँकि, ज़िंदगी में इतना कुछ झेलने के बाद, शायद, थोड़ी-बहुत तो कुछ करने की इच्छा जाग ही जाती होगी? बशर्ते, ऐसा भला चाहने वालों के बीच रहें? 

और नाश उठाने वाले? 

ऐसे लोगों की कोई सहायता करनी तो दूर, जो थोड़ा-बहुत भी उनके पास होगा, उसे भी छीनने या ख़त्म करने की कोशिश करेंगे?

क्या चाचे-ताऊ भी ऐसा कुछ करते हैं?

दिसंबर 2024, 15 या 16?  

अजय आता है और बताता है, की लक्ष्य ने कल सुनील की ज़मीन ले ली। 

ले ली? या तेरा भी बीच में कोई लेना-देना है? ऐसे कैसे ले ली?

अशोक दांगी को फ़ोन जाता है, मगर उठाया ही नहीं जाता। कई कॉल जाती हैं, पर कोई उत्तर नहीं। चलो, व्यस्त होंगे। 

उसके बाद लक्ष्य दांगी की माँ कान्ता को फ़ोन जाता है और बोलते हैं, की मुझे तो ऐसा कुछ पता ही नहीं। पुछूंगी, लक्ष्य से। 

अगले दिन उनके घर जाकर मैं भी मिलती हूँ। मगर, कान्ता भाभी की जुबाँ कभी कुछ बोलती है, तो कभी कुछ। मतलब, सब पता है, और शायद साथ में शय भी दी हुई है।         

खैर। जब लोगों के असली रंग समझ आने लगते हैं, तो उन्हें साफ़-साफ़ बता भी दिया जाता है, की इसे धोखाधड़ी बोलते हैं। 

ऐसा ही कुछ अशोक दांगी और लक्ष्य दांगी के FB पर मैसेज भी होता है। 

उसी की कॉपी 

उन दिनों सुनील महाराज तो घर ही नहीं आ रहे थे। 
मैं प्लॉट गई देखने, तो बेचारे के ये हाल थे। 

बेचारे को ना चाल आ रही थी और पड़े-पड़े जो बक रहा था, वो तो क्या कहने?
ऐसे लोगों से, घर वालों की नाराजगी के बावज़ूद, कैसे अपने ज़मीन लेते होंगे?  
और वो ऐसे हाल में उसे पैसे भी देते होंगे?
मारने के लिए?
चल, जल्दी ख़िसक? 
या ऐसे लोगों की कॉपी भी कोई और ही सँभालते हैं?  





Saturday, May 10, 2025

संदेशवाहक, गुप्तचर, गुप्तदूत? (Social Tales of Social Engineering)

 Diversity of Messaging? 

ये पोस्ट तो? पिछले साल पढ़ी होगी आपने कहीं इसी या Social Tales of Social Engineering (40) में?

फिर आज कहाँ से आ गई?

कुछ चीज़ें एक बार में समझ नहीं आती? बार-बार पढ़ने पर या आसपास घटने पर, कहीं बेहतर समझ आती हैं? इसमें ऐसा क्या खास लगा मुझे?      

संदेशवाहक, गुप्तचर, भेदिया, विभिषण, गुप्तदूत? और भी कितने ही नाम हो सकते हैं ना? वो जो सब्ज़ी देने आते हैं। वो जो गुड़-शक्कर बेचने आते हैं। वो जो कटड़ा, भैंस बेच लो वाले आते हैं। वो जो बैडशीट बेचने आते हैं? वो जो शर्फ़ बेचने आते हैं? वो जो रद्दी लेने आते हैं। वो जो सूट बेचने आते हैं। वो जो झाड़ू, वाइपर बेचने आते हैं। वो जो चुन्नी बेचने आते हैं। वो जो शाल बेचने आते हैं। वो जो टीशर्ट, पायजामा बेचने आते हैं। 

उसपे वो जो मंदिर में सुबह-शाम भजन सुनाते हैं। या कोई खास मैसेज बताते हैं। वो जो ट्रैक्टर-ट्राली, गाड़ी, झोटा-बग्गी या कोई और व्हीकल्स आते हैं। वो जो पेड़-पौधे बेचने आते हैं। वो जो किसी के घर या दुकान के बनाने का सामान लेकर ईधर या उधर जा रहे होते हैं। वो जो साफ़-सफाई वाले आते हैं। या कब-कब आना बंद हो जाते हैं। वो जो फलाना-फलाना जाती से कुछ बुजुर्ग महिलाएँ, जो अब काम-धाम करने की हालत में नहीं हैं, सिर्फ़ खाना या कपड़े वगरैह के लिए कभी-कभार आते हैं। वो जो चप्पल-जूते बेचने वाले या ठीक करने वाले आते हैं। वो जो कुकर, गैस चूल्हा ठीक करने वाले आते हैं। 

वो जो, और भी कितनी ही तरह के पशु-पक्षी, कीट-पतंग, कीड़े-मकोड़े, सबके सब जैसे, संदेशवाहक कोई। आप जहाँ रहते हैं, उस सिस्टम की गवाही के गुप्तचर या कोढ़ कोई, ठीक आपके सामने होते हैं। कुछ ऐसा बता रहे होते हैं, जिनका अर्थ या अनर्थ उन्हें खुद नहीं पता होता। 

ये आपके आसपास के जीवन के बारे में और उनसे जुड़ी बिमारियों या रिश्तों की दरारों या कड़वाहटों, उनसे उपजे उत्पादों, कारकों के बारे में कितना कुछ बता रहे होते हैं? उनकी उत्पत्ति या प्रकिर्या के बारे में? और शायद उनके समाधानों के बारे में भी? कौन-सा जहाँ है ये? मुझे ये सब किसने और कैसे बताया? दुनियाँ के हर कोने में है, ये जहाँ। एक दुनियाँ के स्तर की बड़ी-सी लैब। जिसे जितने चाहो, उतने छोटे या बड़े स्तर पे अध्ययन के दायरे में रख सकते हैं। इससे भी मज़ेदार बात, ये लैब किसी भी विषय के लिए बंद नहीं है। जो चाहे, जिस विषय से चाहे या जिन विषयों की चाहे, मिश्रित खिचड़ी (Interdeciplinery) पका सकता है। और अध्ययन कर सकता है। आप आर्ट्स से हैं, तो आपको अपने लायक बहुत कुछ मिल जायेगा। विज्ञान से हैं, तो भी। और अर्थशास्त्र से हैं, तो भी। मर्जी आपकी, की कैसे और क्या जानना चाह रहे हैं।                          

OSLO UiO 

सोफ़े के कवर लो 

गद्दे के कवर लो 

मेज के कवर लो 

मुझे बालकनी में देख ठहर गई वो। मेरी तरफ देखा, सोफ़े के कवर ले लो। 

कहाँ से हो?

सुनारियाँ चौक से 

अरे आप कहाँ से आए हो? 

रोहतक, सुनारिया चौक 

अच्छा रहते हो वहाँ? 

हाँ! झोपड़ी है। 

वहाँ कहाँ से आए हो?

UP 

सोफे के कवर ले लो 

अरे, मैं तो मेहमान हूँ यहाँ। ऐसे ही पूछ रही थी। 

माँ आसपास होती तो सुनाती। पागल हो गई शुरू। किसी भी, कुछ भी बेचने वाले को रुकवाकर, पूछने लग जाती है। क्या मतलब हुआ, खामखाँ में? और फिर कोई भी कहानी घड़ देगी उसकी।   

जैसे हरी-भरी टोकरी और गई भैंस पानी में? या  "Don't Cross, Police Zone GAI Inspection"?

मतलब कुछ भी :)    

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 8

फोटुओं की कहानी, बड़ी अजीब होती हैं वैसे?

ये भी यहीं आकर पता चला। आसपास सुने, किस्से-कहानी। 

बला, फलाना-धमकाना मोबाइल में फलाना-धमकाना की फोटू लिए हांड्य सै। सुथरी, पढ़ी-लिखी छोरी की फोटू लागय सै, अर न्यूं कह सै अंडी, या तेरी होण आली भाभी। 

अर छोरी किहअ और की अ लेहें बताई। भाई यो साँग के सै? 

बला जी इसे-इसे तो नरे साँग सैं।  

किसे का कितय इंटरेस्ट, अर किसे का कितय। 

अब ये इंटरेस्ट, घर बनाने के लिए माँगे गए लोन पर है?

या लोन ले लो, लोन ले लो, पर्सनल लोन ले लो। अरे मैडम, लोन ले लो। कह कहकर, दिए गए one click पर्सनल लोन पर है? 

घर के लिए लोन के लिए अप्लाई करना? और उसकी मोटी-सी फाइल बनवाकर, कई दिन धक्के खिलाकर, लोन ना देना? SBI, MDU  

मगर, उसी बैंक द्वारा, कोई खामखाँ-सी app बनाकर, one click लोन, जबरदस्ती पीछे पड़कर देना? मैसेज पे मैसेज भेझकर। SBI, YONO App 

क्या कहलाता है ये?   

ये सब कहीं और मिलता-जुलता है क्या? 

Conflict of Interest की राजनीती? बला जी, इनकी चाल जा तै भाई, भतीजां नै खसम बना दें। अर बाहण, बेटियाँ नै लुगाई। लिचड़ान की, बेहुदा सुरँग बताई ये तो। और इन सुरँगों के तरीके? ऐसी जोर आजमाईश के?

भाई इस ज़मीन प किमैं ना बनाइये, बाहण नै तै कती नहीं बणाण दिए। कैंसर हो ज्या गा भाई। बयाह ना होवै फेर। या किसे का होरा हो तो? बालक ना होवैं। 

चाचे, ताउवां नै दे दो वाह ए ज़मीन? अर थाम उनके जाड़े पाड़ते हांडो फेर? ना कोय बीमारी हॉवे अर घर भी बढ़िया बसैंगे?  

कैसे-कैसे फद्दू खिंच सकते हैं ये, भोले लोगों का? और कैसे-कैसे तरीकों से एक दूसरे से भिड़ाने की कोशिश कर सकते हैं? सिर्फ ज़मीन का कोई टुकड़ा हड़पने के लिए? Conflict of Interest की राजनीती, ऐसे ही खेलती है, आम लोगों से? और कब से खेलती आई है? यहाँ पे जितना देखो, समझोगे, उतना भेझा खराब होगा। की फद्दू बनाने की कोई सीमा है?

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 7

मैं जब घर आई तो मेरे पास ढंग की रहने या पढ़ने-लिखने की जगह नहीं थी। इतने सालों खुले और ठीक-ठाक से (युनिवेर्सिटी) घरों में रहकर, एक कमरे या एक छोटे-से मकान में सिमट जाना, घुटन जैसा-सा था। अब अपना घर है और बचपन वहाँ बिता है, तो आदत तो वक़्त के साथ पड़ जाएगी। मगर, अब आप वहाँ रहोगे क्यों? किसलिए? होना तो ये चाहिए की माँ को भी वहाँ से अपने साथ कहीं ढंग की जगह ले जाओ। भाईयों को भी किसी ढंग के काम लगाओ। मगर आप जो सोचते हैं, जरुरी नहीं वो किसी आसपास को या वहाँ की राजनीती को भी सूट कर रहा हो। हुआ भी वही। जो कुछ करने की सोचो, उसी में आगे से आगे रोड़े। वो भी अपनों या आसपास द्वारा ही? या ये सब भी कहीं और से ही रिमोट कण्ट्रोल हो रहे हैं? मानव रोबॉटिकरण, यही सब देख, सुन और समझकर, पता चलने लगा था। आम लोगों में खोट नहीं है। गाँव का या कम पढ़ालिखा या आज की टेक्नोलॉजी के प्रयोग और दुरुपयोग से अंजान इंसान, आज भी पढ़े लिखे और कढ़े शिकारियों से कहीं ज्यादा भोला है। ये तो Conflict of Interest की राजनीती की पैदा की, चारों तरफ चोट हैं। ऐसे भी और वैसे भी। 

मुझे कम जगह में या भीड़-भाड़ वाली जगह रहना पसंद ही नहीं। तो सबसे पहले गाँव से थोड़ा दूर जो ज़मीन है, वहाँ एक रुम सैट बनाने का इरादा था। मगर, वो सबने घर पर ये कहकर मना कर दिया, की रहने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है। ये स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर बनाने का प्लॉन भी, यहीं घर से निकल कर आया था। क्यूँकि, मुझे किसी स्कूल जैसी जगह के इतने पास रहना भी पसंद नहीं। शोर और कुछ भीड़ तो वहाँ भी होगी। खैर। कई और सहुलियत हैं, जो उस ज़मीन को ज्यादा सही बता रही थी। वहाँ पानी मीठा है, जो यहाँ के गाँवों की खास दिक्कत है। और इसीलिए ऐसी ज़मीनो के रेट भी ज्यादा हैं। गाँव के बिल्कुल साथ लगती है। आसपास घर बन चुके हैं। स्कूल तो है ही। हाईवे पर नहीं है। तो रहने के हिसाब से ज्यादा सही है। आसपास चारों तरफ खेत हैं, जिन्हें खुला पसंद है। लो जी, वहाँ की हाँ क्या की, आदमखोरों के जाले फ़ैल गए। उसके बाद तो जो कुछ हुआ, पीछे पोस्ट्स में लिखा ही जा चुका। 

स्कूल वालों को क्या दिक्कत थी की वहाँ कुछ ऐसा ना बनने दें? भाभी स्कूल का प्लान बना चुके थे। अब जो स्कूल को बिज़नेस बोलते हैं और बिज़नेस की ही तरह चलाते हैं, उनके धंधे पर असर नहीं पड़ेगा? और वो तो पिछले 20-22 सालों में कितनी ही बार वो ज़मीन माँग चुके थे। और हर बार उन्हें मना किया जा चुका था। अब कोई उस ज़मीन पर अपना कुछ बनाने की भी सोचे, इतना बर्दास्त कैसे हो? नहीं तो चाचा, ताऊओं का होना तो ये चाहिए, की तुम भी बसो और आगे बढ़ो? आजकल ऐसे चाचे-ताऊ कहाँ हैं? होंगे कहीं, मगर यहाँ? यहाँ तो कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। वो भी बड़ी ही बेशर्मी से। एक दिन जुबाँ ऐसे चलेगी और अगले दिन कुछ और ही रचते नज़र आएँगे? कर दो साफ़ तीनों को और सिर्फ यही ज़मीन क्यों, बाकी सब भी तुम्हारा। लड़की का क्या है, वो तो वैसे भी किसी और घर जाती हैं। उनके अपने घर कहाँ होते हैं? कहीं भी नहीं। 

अब मुझे तो वहीँ बनाना है, चाहे रहना कहीं भी हो। देखते हैं आगे-आगे, की ये लालची और हरामी भतीजा और इसके पीछे वाली सुरँगे और क्या-क्या रचती हैं? सुन बेटे, सबके बीच सुन, तूने धोखाधड़ी से उस ज़मीन पर अपना नाम भी लिखा लिया हो (खास वाली फोटो खिंचा ली हो), तो भी वो तेरी नहीं। 

Clickbait Business? हाँ, यही हाल रहे तो जेल तेरी और तेरे साथ-साथ, ये सब रचने वालों की जरुर होगी। कोर्ट क्या कहते हैं, वैसे इसमें? उनके पास तो आजकल सब सबूत होते हैं।     

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 6

घरों से प्लॉट की तरफ, वहाँ पे लेट (तालाब) की ज़मीन, आसपास लगते लोगों द्वारा हड़पने की कहानी और यूक्रेन युद्ध? अज़ीब किस्से-कहानी हैं ना? और उससे भी ज्यादा अज़ीब, संसार के किसी और कौने में, ऐसे-ऐसे युद्धों की सामान्तर घढ़ाईयाँ?   

यहाँ चाचा के लड़के का अहम रोल रहा? या जो राजनीतिक सुरँगे, उससे वो सब करवा रही थी, उनका? शायद दोनों का ही? ये मोहरा? और वो अहम खिलाड़ी? जो दूर, बहुत दूर बैठे, किसी रिमोट-सा सब संभाल लेते हैं? और ये सब करने के लिए उसे पैसे देने वाले का?   

अगर कोई इंसान ये कहे, की मैं कुछ भी करुँ, मुझे मेरे घर वाले बचा लेंगे या फिर भी हमेशा साथ रहेंगे, तो गड़बड़ उस घर में या उन अपनों में भी है? या शायद, वो ऐसी हेकड़ी, सिर्फ खुद को बचाने के लिए कर रहा है? या शायद उस जगह का या ऐसी-ऐसी जगहों के माहौल ही ऐसे होते हैं? उन्हें ना खुद अपनी काबिलियत पता होती और ना उन्हें बताने वाले? उन्हें ऐसे रस्ते ही नहीं दिखाए जाते, जहाँ जितनी मेहनत ऐसे-ऐसे तिकड़म कर कुछ हड़पने की बजाय, शांति और ईमानदारी से कमाने में मिलता है? सिर्फ राजनीतिक पार्टियाँ या उनकी सुरँगे ही नहीं, बल्की, खुद अपने, कहीं न कहीं, गलत करने की तरफ धकेलने में सहायक-सी भुमिका निभा रहे होते हैं? अब वो छोटा-मोटा कुछ गलत करने से नहीं रोक रहे या उसमें सहायक बन रहे हैं, तो आगे जब वो बड़ा कुछ गलत करेगा, तब रोकेंगे क्या? या चाहकर भी रोक पाएँगे?

अब प्लॉट की ज़मीन आगे बढ़ाई है, रेत डाल-डाल कर। उसमें कुछ तो पैसे लगे ही होंगे? और थोड़ा-बहुत रिस्क और उलझन भी उठाई है? तो वो पैसे निकलेँगे कैसे और कहाँ से? ये बताने का काम भी राजनीतिक पार्टीयों की सुरँगे ही करेंगी? वो आपको आगे से आगे, छोटे-मोटे लालच देते चलते हैं? और आप लेते चलते हैं? बिना दूरगामी परिणाम जाने या समझे? खेल तो सब वही राजनीतिक पार्टियाँ और उनकी सुरँगे रच रही हैं ना? फाइल यूनिवर्सिटी में चलती हैं और ज्यादा बड़ी मार के लिए, सामान्तर घढ़ाईयाँ बढे-चढ़े रुप में, गाँवों में या ऐसी सी जगहों पर घड़ी जाती हैं? कुछ गलत तो नहीं कहा? या सब मैच कर रहा है? कब यूनिवर्सिटी में क्या हुआ या कैसी फाइल चली या ऑफिसियल ईमेल और कब गाँव में क्या कुछ घड़ा गया? इन कम पढ़े-लिखे बेरोजगारों को तो ऐसा कुछ अंदाजा तक नहीं होगा? खुद मुझे ही नहीं पता था। जब तक ये सब गाँव आकर आसपास देखना, समझना और झेलना शुरु नहीं किया।  

पहले यहाँ बच्चों के या युवाओं के ख़िलाफ़ जितने भी केस हुए, वो भी ऐसे ही हैं? अब ज्यादा पहले की फाइल्स का रिकॉर्ड तो मेरे पास नहीं, क्यूँकि, तब तक खुद मुझे नहीं मालूम था की ये सिस्टम और राजनीती काम कैसे कर रहे हैं? या आम लोगों की ज़िंदगियों को कैसे-कैसे प्रभावित कर रहे है? हाँ। जो कुछ चल रहा था, उसके किसी न किसी रुप में ऑफिसियल रिकॉर्ड हैं। और वो बड़ी आसानी-से मैच किए जा सकते हैं? 

अब पैसे उघाने हैं और उसी में थोड़े-बहुत कमाने को भी मिल जाएँगे? तो उन्हीं राजनितिक सुरँगों का अगला दाँव? स्कूल पे पास वाली खेत की ज़मीन? उसके लिए फिर से उनके काम कौन आएगा? सोचो? 

Friday, May 9, 2025

आओ बच्चो (लड़ाको?) दुनियाँ की सैर पर चलें? 2

एक हॉल है, बड़ा-सा? या शायद, ठीक-ठाक सा? उसमें एक स्क्रीन लगी है, और सब सामने स्क्रीन पर देख रहे हैं? क्या देख रहे हैं? उसके बाद, नहीं, साथ-साथ कुछ बातचीत भी कर रहे हैं? स्क्रीन पे कोई है, उससे बात कर रहे हैं? और आपस में भी कुछ विचार विमर्श हो रहा है? बच्चों की बैठक चल रही है। और दूसरे स्कूल के या शायद कॉलेज या यूनिवर्सिटी के किसी टीचर से, गेस्ट लेक्चर ले रहे हैं शायद? वो भी इतनी रुची के साथ? देखो उसमें कोई सो तो नहीं रहा? या आपस में कोई बात तो नहीं कर रहा? या शायद तो कोई अपने ही लैपटॉप पर खेल भी रहा है?

ये कैसे स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी हैं?

और ये क्या? एक ही गेस्ट लेक्चर में कितनी क्लासेज या कोर्स के बच्चे बैठे हुए हैं?

देखो तो?

जी। 

यो आपणा मोदी बैठा भाई। साथ मैं नरेंदर। अर, जय (भगवान) नै भी पकड़ कै ला रे हैं। 

ये भूत भी पकड़ लावैं सैं? 

यो रवि (इन्दर, जडेजा), अर सुनील (गावस्कर), अस्वनी अर? अर बाकियाँ के नाम अस्वनी ने बेरा। 

न्यून-सी कोए परले हेर (गिंधराण) का MLA बताया भाई। राकेश नाम है शायद? तरुण, कप्तान अर अंजू, संतोष, मंजू। और भी घणे अ सैं। 

ये कोई भी और कैसी भी भाषा चलती है क्या ऐसी क्लॉस में?

हाँ जी। सब चलता है। 

ये तो अलग-अलग क्षेत्र, अर अलग-अलग विषय के बालक बिठा रे सो भाई। हाँ। अर दादी नै बता दिए, अक अश्वनी भी मस्त पढ़अ  है, इन क्लास में। कदे आप शिकायत करो और वो गुरुकुल में भेझण की बात। 

सही। कौन-कौन से विषय के बच्चे हैं ये? और कौन-कौन से विषय पढ़ाते हैं, आपको? अब रुची तो होनी ही चाहिए, जब सिखाने वाले इस स्तर के शिक्षक हों तो?

जी। कोई होम अफेयर्स। कोई फॉरेन अफेयर्स। कोई डिफ़ेंस मिनिस्ट्री। कोई शिक्षा विभाग। कोई राजनीती और कोई कॉमर्स। और भी घणे ए सैं जी। 

खिलाड़ी भी हैं जी। वो भी, अलग-अलग विषय के। 

और अलग-अलग बैठक में, अलग-अलग देश और इलाके से होते हैं।  

सही। ये कौन से दिन, किस वक़्त, कौन-से रंग की बॉल, कितने बजे फेंकनी होती है, ये बताने वाले कोच कौन हैं?

जी। वो चैनल आले बतान लाग रे। आप कती अ वो चैनल ना देखते? कौन-से इलाके की लाइट गई या आई? कब गई या कब आई? किसके घर का बाहर का या अंदर का बल्ब कब जलता है और कब बंद होता है। कौन से इलाके को कब ये पाकिस्तान बोल दें और कब अमेरिका या इजराइल। कहाँ अफ़ग़ानिस्तान, कहाँ UK और कहाँ फ्रांस। ये क्रिकेटर की तरह कमेंट्री करना और कहानियाँ घड़ना तो न्यूज़ चैनल्स ही सीखा रहे हैं।  

काफी हो गया। आज की क्लास यहीं ख़त्म करते हैं। बाकी आप पढ़ते रहिए। अगर बाहर की यूनिवर्सिटी की सैर कराने का बोला है, तो आगे-आगे पोस्ट में वो भी कराएँगे।