दुनियाँ की एक अलग ही तरह की classification, जैसे?
Gaming Cities? Universities? Or University Towns or Cities?
Gambling Cities? Universities? Or University Towns or Cities?
Political Power Houses? Universities? Or University Towns or Cities?
Tech Towns? Universities? Or University Towns or Cities?
Defence Towns? Universities? Or University Towns or Cities?
Film cities or Fin (Financial) Cities?
And Countryside? Villages and not so developed areas?
कुछ नए, कुछ पुराने और कुछ धरोहर जैसे? हर देश में या ज्यादातर बड़े देशों में तो मिलेंगें ही मिलेंगें।
जैसे पीछे पोस्ट में लिखा "Go Gators", क्या है ये? किसी यूनिवर्सिटी का खेल का मैदान? और उसका अपना स्लोगन? या किसी यूनिवर्सिटी या उस यूनिवर्सिटी और उस यूनिवर्सिटी टाउन का अभिन्न-सा हिस्सा? Aligators (Short gators?)?
सालों पहले जब ऐसा कोई विडियो देखा था, तो उसका असर दिमाग पर क्या था? और फिर से उस यूनिवर्सिटी या उसके साथ-साथ दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटीज को पढ़ना, समझना शुरु किया, तो क्या समझ आया? समय और राजनीती के हिसाब-किताब सा बदलता सबकुछ? हमारी सोच भी? क्यूँकि, उसने इस दौरान काफी कुछ ऐसा देखा, जाना या समझा है, जिसका पहले कहीं कोई अंदाजा ही नहीं था, की ऐसे भी हो सकता है?
जैसे यूनिवर्सिटी के खँडहर से गाँव के खँडहर तक? हैं दोनों खँडहर, मगर फर्क? दिन और रात जैसे? तो खँडहर में ही रहना है तो किसी ऐसे खँडहर में तो रह लो, जो आपको सदियों पीछे ना धकेले? या फिर खँडहर में रहना ही क्यों है? जो पीछे गलत हुआ है, उसे आगे दोहराने का मौका ही क्यों? कहना आसान है, मगर इस तरह के युद्धों में बच पाना? जैसे पिछे हुआ, की आप कहीं कुछ जानने निकलते हैं और कहीं मकड़ी के जाले-से लपेट दिए जाते हैं?
तो Media या Journalism में रुची, इसी कुछ जानने निकलने का परिणाम था। क्यूँकि, इस अजीबोगरीब कैद के दौरान, जितना मीडिया ने दिखाया या समझाया, ऐसे माहौल में उसके आसपास भी जान पाना तकरीबन असंभव था। सबसे बड़ी बात खुद मीडिया का रोल भी, बुरा या भला, खुद मीडिया को पढ़कर या देख, सुनकर समझ आया। तो इस दौरान मैंने Life Sciences के साथ-साथ Media, Journalism और Communication के इंस्टिट्यूट को भी खँगालना शुरू कर दिया था। यहीं से निकल कर आया Media Culture Concept, जिसे हकीकत में गाँव आने के बाद हर रोज Social Engineering के रुप में अपनी आँखों के सामने होता देख रही थी या कहो हूँ। जैसे की Elephant in the room? असली मुद्दों की बात मत करो। ज्यादा प्रश्न नहीं, खोजबीन दिमाग को टाटा, बाय-बाय बोलो और जो कहो मिलेगा। जैसे कहा जा रहा हो, ज़िंदगी क्यों नहीं जीते, कहाँ उलझ रहे हो ये? इस खोजबीन में मौत के इलावा, कोई और प्रसाद नहीं है।
Social Engineering वो interdesciplinary subject है, जो आने वाले समय में अपने आप में खुद की यूनिवर्सिटी या इंस्टिट्यूट बनाने वाला है। संस्थान तो आज भी बहुत हैं, जो इस विषय पर अलग-अलग रंग-रुपों में काम कर रहे हैं, अलग-अलग तरह की खिचड़ी पकाकर।
जैसे पीछे दो यूनिवर्सिटी के विडियो आपने देखे। दोनों, दो अलग-अलग महाद्वीपों से। एक पे तो कहीं कमेंट भी कुछ ज्यादा ही अजीबोगरीब से पढ़ने को मिले। बस यही रह गया था, दुबई? US, Europe को छोड़ के?
नहीं। उन्हें छोड़ के नहीं, बल्की उनके साथ-साथ, एक दुनियाँ ये भी है। जिसका अलग तरह की परिस्थितियोँ के संदर्भ में, अलग तरह का अंदाज है शायद, आगे बढ़ने का?
जैसे मुझे CJC पे किसने पहुँचाया? JCB ने? या CC ने? गाँव आकर JCB के इतनी तरह के ड्रामे और आकार-प्रकार देखे, की लगा ये C-SPAN से इनका कोई सम्बन्ध है क्या?
तो फिर कहीं VAN ने Vancouver, तो कहीं दीदी (DD O DD) जैसे गाने वालों ने, किसी और ही JD तक भी पहुँचाया। Reflection लिखना शुरु किया, तो JD Vance और उसकी किताब। वहाँ से आप Ohio भी पहुँचते हैं। और अलग-अलग यूनिवर्सिटी या शहर के राजनीती के हिसाब-किताब के अलग-अलग तरह के जाले भी देखते हैं। इंटरनेट और टार्गेटेड एल्गोरिथ्म्स को समझे बिना अलग-अलग समाजों की एक जैसी-सी कहानियों की घड़ाईयोँ या ज़िंदगियों को समझना कहाँ संभव है? जैसे East Coast Vs West Coast? 80 Vs 20?
और हद तो तब हो गई, जब दादा जी के उस छोटे से खजाने को सॉफ्ट कॉपी बनाना शुरु किया। पता ही नहीं क्या, क्या गड़बड़ घौटाला जैसे? यही ना समझ आए, की इन गड़बड़ करने वालों ने बिना उल्ट-फेर किए, कुछ बक्सा भी है? ये सब जान समझकर, JA से JD के सफर पर आसानी से जा सकते हैं आप या शायद रिवर्स भी? यहाँ टारगेट सिर्फ आप नहीं हैं। हर इंसान, हर जीव, हर निर्जीव है। बस उन्हें गलत या बुरे से बचने और बचाने की जरुरत है।