Thursday, October 23, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 31

 ब्लाह जी फलाने-धमकाने पड़ोस मैं सीढ़ी लाग री सै। 

या तै लागी अ रह सै, भाई इसमैं भी के खास सै?

ब्लाह जी बालक तार दिए थारे घर मैं, अर बालक (?) के चुरा लेगे भला?

दिवाली गिफ़्ट लेगे बताए :)


Out, Out 

भाई यो out होया करै या get out होया करै?

Out, Out from my room 

थोड़ा ज्यादा नहीं हो रहा?

Ouuuuut 

आईयो तू, मैं बताऊँगी Ouuuuuuut क्या होता है। 


कहीं कर्मचारी सौन पापड़ी का गिफ़्ट नहीं लेते और कहीं बच्चे बर्फी, रसगुल्ले की बजाई सौन पापड़ी का डिब्बा ही साफ़ कर देते हैं :)

कैसे और कौन से बच्चे होंगे ये?

ये वो बच्चे हैं जो थोड़े और छोटे थे, तो, कुछ ऐसा-सा बोलने लगे थे, कार से ऑटो अच्छा होता है :)

मुझे तो ऑटो में जाना है :)

हम जो कहते या सोचते हैं, आख़िर हमें वो मिल ही जाता है :)

ऑटो मतलब स्वराज :) MDU का स्वराज सदन या अरविंद केजरीवाल की किताब स्वराज? उन दिनों वैसा कुछ चल रहा था बताया। 


मुझे रैड नहीं चाहिए, मुझे लाल रंग पसंद ही नहीं। 

अच्छा, कब से? मैंने तो सुना है की तुमपे रैड बड़ा अच्छा लगता है। 

नहीं। मुझे कभी पसंद नहीं रहा और ना ही अब पसंद। 

ओह हो। कब से? आपकी पसंद ड्रैस वाले फोटो दिखाऊँ?

अच्छा। हाँ। मुझे तो पसंद था। पर अब नहीं। वो पापा को पसंद नहीं है ना। 

कबसे?

पता नहीं। पर मैंने तो ऐसा ही सुना है। 

मम्मी को भी पसंद नहीं था रैड कलर। 

ये तो हद ही हो गई। 

छोड़ो। होगा। मुझे तो यही पता है। 


ये सब क्या है?  

आपकी कब क्या पसंद होगी और क्या नहीं, ये कौन बताता है? वो आपकी खुद की पसंद है या आपके अपनों की? या आपके आसपास की? या ये सब भी कहीं न कहीं गुप्त सुरँगे ही बताती हैं? कहीं सीधे-सीधे और कहीं गुप्त तरीके से आपके दिमाग में घुसेड़ देती हैं?  

अपनी पसंद या नापसंद की हर एक चीज़ पर गौर फरमाओ, अलग-अलग वक़्त या अलग-अलग स्थान पर और शायद जवाब आपको मिल जाए। आपका खाना, पहनावा, बोलना और काफी हद तक धार्मिक होना या फर्क नहीं पड़ता या किसी भगवान को मानना या ना मानना ये सब कौन घडता है, आपके दिमाग में? ये सब कहाँ से आता है? यही नहीं, आपसी रिश्तों में आप एक दूसरे को कैसे संबोधित करते हैं? ये कौन बताता है? या घडता है आपके दिमाग में? ये भी गुप्त तंत्र?          

Friday, October 17, 2025

Online Frauds

 yahoo!?

and spams?

और spam में कभी IG मिलेंगे और कभी?

Commissioner?


कमिशनर साहब, spam के हवाले से हवाला माँग रहे हैं?
गलत बात। 

वैसे ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी इमेल्स आती ही रहती हैं, जाने कब-कब खास मौकों पर? कभी लोकल सी लगने वाली और कभी इंटरनेशनल। ऐसे-ऐसे लोगों के पास कितना खाली-पिली वक़्त होता होगा? कुछ भी बनकर बैठ जाते हैं? डर गई साहब मैं तो :( या :)

Thursday, October 9, 2025

Social Tales of Social Engineering या राजनीती के तड़के?

या राजनीती के तड़के?

जैसे, ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर? कहाँ रखना चाहेंगे आप इस पोस्ट को? बताना पढ़ कर।  

तो आप सबकुछ बेचकर बाहर जा रहे हैं?

क्या?  

आप सबकुछ बेचकर बाहर जा रहे हैं?

क्या?

और जोर लगाकर, आप सबकुछ बेचकर बाहर जा रहे हैं?  

क्या?

कहीं से आवाज़, तेरअ जिसे फदवाँ की ना सुना करअ यो। तेनअ के लागय सै, यो बहरी सै? अक तू अ घणा स्याना सै आड़अ सी?

सही कह सै दादा। इन्ह जिसे स्याणे तै न्यूंअ चाहवें सै, अक सबकुछ इनकै नाम कर जावाँ। वा एक स्याणी सुणी पहल्यां किसै आशीष तै कहती बताई, "या स्कूल कै साथ आली जमीन म्हारे तै दैवा दे, तने पाँच लाख दे दूँगी" 

कौन सी स्याणी?

वाहये स्याणी और कौन?

हाँ बेबे सुणा तै मैंने भी था, अक दूसरा भी अपणी सारी इन्हें तै बेच कै कितै जा सै। 

दादा, दुनिया जा सै बाहर तै। इसे-इसे ज़लीला तै, वें आपणे घर-किले दे जाँ सैं के?    

ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, किस्से कहानी, ऐसी-ऐसी जगहों पर चलते ही रहते हैं? क्या खास है?

ऐसे-ऐसे स्कूल, हॉस्पिटल या दो धेले के धन्ना सेठ, सिर्फ गरीबों को ही नहीं, अपने आसपास वालों को भी लूटते या लूटने की कोशिश करते ही रहते हैं? खतरे बहुत बार बाहर वालों से कम और शायद अपनों से ज्यादा होते हैं?

राजनीती वालों का या बड़ी-बड़ी कंपनियों का गठजोड़ ऐसे ही नहीं है। ये धेले के धन्ना सेठ, जहाँ 2 कौड़ियों के लिए आसपास को खाते मिलेंगे। वहीँ so called बड़े लोग? जिस पार्टी में और जिधर देखो, उधर लंका लगी पड़ी है। इसलिए ये सामान्तर घड़ाईयाँ घडते हैं और so called बड़े लोग, उन बड़ी कुर्सियों पर बैठकर या तो खुद भी ऐसा कुछ ईनाम में पाते रहते हैं या खुद ही ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे कांडों के रचयिता होते हैं। इसलिए हर सामान्तर घड़ाई को एक और नए केस के रुप में देखना चाहिए। क्यूँकि, वहाँ ऊपरी सतह से आगे बड़े ही रौचक राज छुपे होते हैं, ऊपर वालों की साँठ-गाँठ के। कैसे? कभी जानकार देखिए की असली केस और सामान्तर घड़ाई में फर्क क्या है?

कुछ एक ऐसे केस आगे पोस्ट्स में आ सकते हैं। पीछे तो पोस्ट्स में कहीं न कहीं पढ़े ही होंगे? जैसे Campus Crime Series या Political Diseases. ठीक ऐसे जैसे, राई के पहाड़ कैसे बनते हैं। 

हलाल और झटके का फर्क?

हलाल और झटके का फर्क 

जैसे तिहाड़ी और चौथ का फर्क?

कौथ का फर्क? चौथ का फर्क?   

जब आप लोग यहाँ मर रहे थे तो? भगवान मथुरा रोड़ पर 2 BHK खरीद रहे थे। कलयुग के भगवानों की जय हो?

हलाल होता है, जैसे वृन्दा वन? जिनका अपना कुछ नहीं होता, ज़िंदगी भर लूटने, पीटने और शोषित होने के सिवाय? ना ज़मीन और ना आसमान। वो उस आसमान से गिरे और 9 नंबरी खजूर पे अटके जैसे होते हैं, जिनका शरीर तक अपना नहीं होता। उस बारे में निर्णय भी उन 9 नंबरी खजूर वाले महलो के मालिक लेते हैं? क्या हैं ये 9 नंबरी खजूर मालिक? और कहाँ-कहाँ रहते हैं? ये MDU के VC का मकान के बाहर लगा खास तमगा ही नहीं, बल्की, ऐसे-ऐसे अलॉटेड मकानों में रहने वाला हर वो अधिकारी है, जो उस वक़्त के गवर्मेंट या राजनितिक पार्टी या पार्टियों के बिठाए खास-म-खास कर्ता-धर्ता हैं। वो लोग वो काम नहीं करते, जिनके लिए उन्हें उन कुर्सियों पर जनता की निगाहों में या जानकारी के अनुसार बिठाया गया है। बल्की, वो, वो कर्ता धर्ता हैं जो उससे बहुत परे वाले कोढों के अनुसार चलते हैं। वो सिर्फ किसी यूनिवर्सिटी के VC नहीं हैं, बल्की, Dean, Head, Director और? और भी बहुत कुछ हैं। बहुत बड़ा संसार यूनिवर्सिटी से बाहर भी बसता है। और इनसे बड़े, छोटे अधिकारी भी। और वो सिर्फ सिविल में ही नहीं हैं, डिफेंस में भी हैं। ये हलाल और झटके से कहाँ पहुँच गए हम? कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे वो क्या कहते हैं? ये कहाँ से कहाँ आ गए हम? 

सुना है की सबसे बढ़िया वाला हलाल, वृन्दा वन वाली जगहों पे देखने को मिलता है? और सबसे बढ़िया वाला झटका? Night before fight वाली जगहों पर? ऐसा ही? हरियाणा जैसे प्रदेश अभी तक ज्यादातर हलाल वाले इलाके माने जाते हैं? और मेट्रो, गुज्जु या मुम्बईया? झटके वाले?  

तो फिल्मी वार-2 शुरु हो गया? हमने जाने कहाँ सुना, कहीं वार-3 और कहीं शायद वार-4 भी चल रहा है? सच में ऐसा ही है? वैसे ये वार क्यों होते हैं? कौन और किस तरह की लॉबी ये सब करवाती हैं और इनसे पैसे कमाती हैं? सरकारें भी इन्हीं लॉबी का हिस्सा होती हैं क्या?

ऐसे ही शायद ये भी जानना सही रहेगा की कुछ देशों में हमेशा कलेश क्यों रहता हैं? और कुछ इतने शाँत कैसे रहते हैं?

और ये करवा चौथ खास वालों के लिए 

कभी सोचा की "करवा चौथ" एक अर्थ है या अनर्थ? ये मैं नहीं कहती। ये तो शब्दों में छिपे अर्थ और अनर्थों वाले कहते हैं। वही कोढ़ वाले। बोले तो? Culture वाला ज्ञान और विज्ञान और? सबका तड़का और उसकी राजनीती? तो जब माताएँ, बहने, चाची, ताईयाँ या दादियाँ, जब उस 70, 100, 150 या 200 छेद वाली छलनी से निहारें ? बोले तो कुछ भी :)   

वैसे ही जैसे, सत (7) संग वाला कल्चर (रीती रिवाज़)? और उसके पीछे छिपा ज्ञान, विज्ञान और राजनीतिक तड़के? मतलब, अगर गाँव वाली इस खास जेल की सैर नहीं होती, तो ऐसे-ऐसे तड़कों की ख़बरें कहाँ मिलती? 

वैसे हर ज़िंदगी में अपनी-अपनी तरह के हलाल और झटके होते हैं। आपकी ज़िंदगी कहाँ-कहाँ हलाल हुई है और कहाँ-कहाँ इसने झटके खाए हैं? 

Friday, September 19, 2025

Report card? 1

Report card?

Hustle culture?

Balanced culture?

Or sometimes?


Strange things happen in life?

Wednesday, September 17, 2025

Computer Interactions, Human and Humanoid? 4

 मान लो आपने कहीं लिखा या कहा की इस विषय पर जानकारी चाहिए। 

पैसा तो बहुत कमा लेते हैं, ठीक-ठाक गुजारे लायक, 

मगर, मेरे जैसे निक्क्मों के पास वो टिकता नहीं।  

और आपको कोई विडियो देखकर लगता है, अरे वाह !

ये सलाह तो ठीक-ठाक लग रही है।? 

बिलकुल Personalized Medicine के जैसी सी? 

जैसे?

ये? 


और ये क्या? 

वो, विडियो कहाँ गया?

मैं जब उसे देख रही थी, तभी कुछ गड़बड़ घौटाला-सा लग रहा था। वैसा सा ही कोई मैसेज, जैसा वो "You are not alone. iCall on this number  ..... "

ये मैसेज, अबकी बार आपको किसी वेबसाइट पर ले जाता है, जो ना सिर्फ बहुत ज्यादा biased है, बल्की cybersecurity के नाम पर direct-indirect आपको भी target कर रही है। अब ये जिसका विडियो है, वो इंसान या चैनल और वो मैसेज क्या एक ही हैं? या अलग-अलग? ऑनलाइन दुनियाँ के हेरफेर?

वैसे ये इस तरह के पर्सनलाइज्ड मैडिसन जैसे से ज्ञान, कई चैनल्स पर चलते मिलेंगे। जिनमें कुछ आपको अपने काम का लगेगा और कुछ नहीं नहीं भी। और बहुत कुछ टारगेटेड भी। मगर, ऐसे पहले कोई विडियो दिखाना और फिर उस लिंक को मेरे ही लैपटॉप की हिस्ट्री तक से उड़ा देना, दूर, बहुत दूर बैठे? ये थोड़ा ज्यादा ही हो गया। कम से कम हिस्ट्री को तो हिस्ट्री ही रहने दो। ये जिसका लैपटॉप है उसपे छोड़ दो, की वो कब तक कोई हिस्ट्री रखे और कब डिलीट करे।  

ये तो वही वाला सिंथैटिक जहाँ नहीं हो गया की, "मैं चाहु ये यादास्त लाऊँ और ये यादास्त मिटाऊँ, मेरी मर्जी?" Human Robotics में आपका स्वागत है।    

Computer Interactions, Human and Humanoid? 3

 पर्सनलाइज्ड मैडिसन क्या है? 

ये ऐसे है, जैसे किसी टेलर का आपका सूट सिलना। आपके स्टाइल और सुविधानुसार।  

ठीक ऐसे, जैसे आपका घर डिज़ाइन करना, आपकी जरुरत और सुविधानुसार। 

और आपकी औकात के अनुसार भी? 

जैसे?

आ चलके तुम्हें मैं ले के चलूँ, एक ऐसे जहाँ में, 

जहाँ कोई बेघर ना हो?

इत्ता सा घर तो हर किसी का अधिकार हो?

जैसे टेस्ला का ये गाड़ीनुमा घर  






रौचक है ना?
मगर यहाँ एक लफड़ा तो हो सकता है, इनका एड्रेस क्या होगा?
क्या वो एड्रेस आपकी किसी ऐसी ID से जुड़ा होगा, जो पासपोर्ट के लिए भी मान्य हो?

ये भविष्य के movable home या आपके घर के लॉन का एक अनोखा-सा कोना तो जरूर हो सकते हैं?
जब इधर उधर कहीं घूमने जाना हो, तो गाडी से जोड़ो और चल दो। 
और गरीबों के ठिकाने भी। 

Computer Interactions, Human and Humanoid? 2

Silly Co?

In Silico?

In Silico Analysis?

and Personalized Medicine?









Computer Interactions, Human and Humanoid? 1

 Human Computer Interactions and ? Inbetween connecting links?

आदमी, मशीन और इनके बीच के तत्व (खुरापाती?)

या आदमी-आदमी और इनके बीच के तत्व (मशीनें) 

या?

और भी कई तरह के कॉम्बिनेशन हो सकते हैं?    

चलो कुछ-एक, ईधर-उधर के उदाहरणों से जानने की कोशिश करें? 

मान लो आपको कोई दिक्कत है या आपका कोई जानबूझकर कहीं कोई काम अटका रहा है या अटका रहे हैं? आपके पास उसके या उनके खिलाफ सबूत हैं, खुद उनके दिए हुए? मान लो ऑफिसियल मेल्स या नोटिस? आपको उसको जगजाहिर करना है, अपने ब्लॉग पर रखना है या उसकी किताब निकालनी है। निकाल दो, दिक़्क़त क्या है? जिन्होंने गड़बड़ की हुई है, वो इतनी आसानी से ऐसा करने देंगे क्या? वो आपको रोकने की कोशिश करेंगे, जहाँ तक हो सके। ये रोकने की कोशिश कितनी या कितने तरह की होगी ये इस पर निर्भर करता है की ऐसे लोगों का गुनाह या के गुनाह कितने बड़े या संगीन हैं? और उनके खिलाफ सबूत कितने मजबूत हैं?

मान लो आपने सब सबूत इक्क्ठ्ठे कर लिए और उन्हें कोई किताब की सूरत देने की कोशिश कर रहे हैं। वो आपके लैपटॉप या मोबाइल में छुपे बैठे हैं और डाक्यूमेंट्स को या तो उड़ा रहे हैं या उनमें गड़बड़ कर रहे हैं। आप ऐसे-ऐसे उनके कारनामों को पहले भी काफी भुगत चुके हैं। और ऐसे-ऐसे अवरोधों के बावजूद उनके काले कारनामों की फाइल्स ऑनलाइन रख चुके हैं। या किन्हीं सुरक्षित जगह पहुँचा चुके हैं। तो ये फाइल नहीं गई होगी क्या?

अब ये सब रोकना उनके बस की बात ही नहीं। हर बाप का बाप होता है? और हर बॉस का बॉस? तो ये लोग वो सब रोकेंगे, जो उनके बस की बात है। वहाँ भी कितना वश चल पाता है, वो अलग बात है? ऐसे खतरनाक युद्धों में, ऐसे लोग बड़ी मार, इंसानों या ज़िंदगियों पर करते हैं। और इनका सबसे बड़ा भुगतान समाज का सबसे कमजोर वर्ग करता आया है और करता रहेगा। क्यूँकि, वो सबसे आसानी से खिसकाई जाने वाली कड़ी होते हैं। साइकोलॉजी, inbetween links या बिचौलियों की यहाँ हमेशा से अहम भूमिका रही है। जितना ज्यादा ऐसे लोगों को अपने बीच से हटाया जा सके, उतना ही आसान ऐसे-ऐसे लोगों के जालों से बचना होता है।                   

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 28

"पीलिया बाज़ार 

"ए हैप्पी, हैप्पी 

उह्की गाड़ी कड़े सै? आशीष की? 

उह्की गाड़ी मैं बैठ जाईए।"  

ये किसकी गाडी की बात हो रही है? 

आप तो शायद ऐसी किसी गाडी में कभी नहीं बैठे? 

ये गाड़ियों के रहस्य, आम जनता को जैसे समझाए जाते हैं या समझ आते हैं, अक्सर वो वैसे नहीं होते।  

शायद ऐसा कुछ? 

या शायद कुछ वैसा, जहाँ कोई कम पढ़े लिखे वाले कबाड़ी या जुगाड़ी वाले इंसान से, कोई पार्टी पिस्तौल वाली कोई नौटँकी करवाए? 

या फिर शायद, किसी और ऐसे से ही किसी इंसान के नाम पर, कोई और तरह का ड्रामा? 

राजनीतिक पार्टियाँ आपसे ड्रामे भी आपके और आपके आसपास के स्तर के अनुसार ही करवाती हैं? और फिर उनके परिणाम भी, वैसे से ही होते हैं? क्यूँकि, समाज के हर स्तर पर, राजनीतिक पार्टियों के पास, एक जैसे से नाम और बहुत बार एक जैसी सी सूरत वाले भी कई-कई इंसान (कोड) होते हैं। कोई एक आज यहाँ से जायगा, तो वो किसी दूसरे को, कहीं और से रख देंगे। मगर, क्या दुनियाँ से ही जाने वाला वापस आएगा?

इसलिए किसी भी मंच पर सिर्फ कोई नौटंकी करना और सच के हथियारों से खेलना या मार पिटाई या हिँसा के परिणामों के फर्क, ऐसे ही हैं जैसे, जमीन और आसमान का फर्क।  
     
ऐसे ही जैसे, किसी का सिर्फ खुद ही खाना खाना या किसी को खिलाना। और दूसरी तरफ, किसी का किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक शोषण करना। दोनों में ज़मीन और आसमान सा फर्क है। 

Friday, August 15, 2025

Happy Independence Day? झूठा मुठा ही सही

Quality of life and quality of environment or system, एक ही चीज़ हैं। जितना किसी भी सिस्टम के कोढों को और अलग-अलग पार्टियों के किरदारों को समझा जाएगा, उतना ही ज्यादा वहाँ की खामियों या समस्यायों को। जब तक किसी भी सिस्टम को जानने की कोशिश ही नहीं करोगे, तो समाधान कहाँ से निकलेंगे? जब तक किसी भी समस्या को aknowledge तक नहीं करोगे, उसके हल कैसे निकलेंगे? राजनीतिज्ञ जुआ और उस पर बाज़ारवाद का तड़का, आज की दुनियाँ की सबसे बड़ी समस्या है। समाधान, उसको जानने, समझने और जहाँ तक हो सके उसे उजागर करने में है। उसका ख़ात्मा चाहे इतना आसान ना हो, मगर, उसे उधेड़ आम लोगों की जानकारी में रखना, उस तरफ एक कदम जरुर है। 

धन्यवाद उन सब लोगों का जिन्होंने इस घिनौने कोढ़ वाले जुए के सिस्टम से अवगत कराया। जिसकी कुर्बानी, कुछ ने अपनी जान खोकर दी, तो कुछ ने कहीं सलाखों को भुगत कर और कहीं आर्थिक, सामाजिक पड़ताड़ना के रुप में। तो कितनों को ऐसे क्रूर सिस्टम से बचाव का रास्ता सिर्फ और सिर्फ माइग्रेशन नज़र आया। 


मेरा गाँव,  साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ गाँव?  

मेरा मौहल्ला, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ मौहल्ला? 

मेरा शहर, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ शहर? 

मेरा देश, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ देश? 

मेरा संसार, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ संसार? 

आप एक ऐसे गाँव में हैं, जहाँ की सरपँच भी पढ़ी लिखी है, और जिस गाँव का MLA भी। जी हाँ MLA भी अक्सर इसी गाँव से रहे हैं। अब भी यहीं से हैं। मगर, लगता है या तो वो गाँव रहते ही नहीं या उनका गाँव से लेना देना कम है। खासकर गाँव की कुछ जगहों से। कुछ गलियों में वो सिर्फ मौतों के ऊप्पर कुछ ड्रामों के हिस्सों तक दिखते हैं? उससे ज्यादा नहीं? अब हो सकता है मुझे खबर कम हो, इसलिए प्रश्नचिन्ह है। ये आज आज़ाद दिवस (?) के दिन गाँव की एक गली का सुन्दर स्वस्थ सा द्रश्य है। आप भी देखिए 








ऐसे-ऐसे प्लॉट भी काफी मिल जाएँगे आसपास 

अब जिनके घरों के सामने ये सब है, वो तो यहाँ रहते नहीं, कभी कभार आते हैं।  हमारे सरपंच और MLA की तरह? तो उन्हें इस सबसे क्या लेना देना? फोटो करवाने खास दिनों को आएँगे और सोशल मीडिया के लिए थोड़ी साफ़ सुथरी जगह की फोटो इक्क्ठा कर ले जाएँगे? फिर यहाँ कीड़े, मख्खी, मच्छर, कानखजूरे या साँप कुछ भी पनपो। और ये सब आसपास वाले लोगों के स्वास्थ्य में चार चाँद लगाएँगे? जब तक यहाँ हूँ, तो जो जैसा दिख रहा है वैसा लिख रही हूँ। इससे आगे तो एक लेखक या शिक्षक क्या कर सकता है? लेबर यहाँ मिलेगा नहीं। अजीब बात? माँ वाली बात की कब तक और किस, किस के खाली घरों या प्लॉटों की सफाई करवाती रहोगी? हाँ, अगर कोई लेबर आए या लगाए तो और लगाने वाले सरपँच या MLA के पास, इतने तक पैसे ना हों, तो कम से कम मेरे जैसों से मेरी गली या आसपास ऐसे लोगों से इक्कठा कर लें।  अगर चाहें तो ऐसी सी छोटी मोटी समस्याओं के समाधान बहुत मुश्किल नहीं हैं। 


बुराई नहीं है की आप आजाद दिवस की फोटो चिपकाइये, किसी साफ़ सुथरी जगह से। उसके साथ-साथ अगर ऐसा कहीं भूले भटके ऑनलाइन ही सही नजर आए और ऐसी-ऐसी, छोटी-मोटी समस्याओं के समाधान का मन हो तो गाँव आपका भी है। 
और जरुरी नहीं है की ऐसे से छोटे मोटे काम जो अभी पंच, सरपँच या MLA हैं , वही करवाएँ। अगर आप अपने आपको Socially aware मानते हैं, तो ऐसे से काम तो आप भी कर सकते हैं, जो ये पढ़ रहे हैं और अपना भविष्य कहीं सोशल एक्टिविस्ट या राजनीती में देखते हैं।   
धन्यवाद। 

Tuesday, August 12, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 27

जैसा की पीछे पोस्ट में पढ़ा, माइग्रेशन के कारण अपनी मर्जी से हों या जबरदस्ती, वजहें तक़रीबन वही होती हैं। सुरक्षा, आगे बढ़ने के अवसर और भेदभाव रहित वातावरण या जबरदस्ती कुछ भी थोंपने की कोशिशें। अगर आपमें पोटेंशियल है, तो आप अपने रस्ते खोज ही लेंगे।   

इतने सालों बाद गाँव में वापस आकर रहने के कुछ फायदे भी हुए। उसमें एक चीज़ जो खासकर समझ आई वो ये, की आगे बढ़ते हुए लोग या परिवार, गाँव या उसी शहर में, अपनी अगली पीढ़ी में क्यों नहीं दिखते? आगे बढ़ते हुए लोग या परिवार भला इतना वक़्त एक ही जगह शिथिल कैसे रह सकते हैं? और शायद इसीलिए, इन आगे बढ़ने वाले लोगों में और पीछे रह जाने वाले लोगों में फर्क भी साफ़ नजर आता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे अपने ही घर में भाभी की मौत के बाद नज़र आया। जब माँ और भाई की insecurity का दोहन करते हुए, कुछ लोगों ने उनके दिमाग में भरा की काम वाली चाहिए। काम वाली? या घर वाली? काम वाली वो जो कुछ पैसे के बदले आपके घर के काम करे या घर वाली जो आपके घर और परिवार को आगे बढ़ाए? खैर। वो काम वाली या घर वाली तो आई और आई गई भी हुई। मगर यहाँ के लोगों को आज भी काम वाली ही चाहिए। आसपास कई बुजुर्गों से खासकर जब कुछ विषयों पे बात हुई तो यूँ लगा, ये आज भी किसी और ही सदी में रह रहे हैं। क्यूँकि, ये काम वाली सिर्फ लड़कों को नहीं, बल्की, लड़कियों को भी चाहिए, खासकर नौकरी करने वालों को। भारत में तो खासकर? या शायद काफी कुछ बदल चुका है और तेजी से बदल रहा है?

ये उन बहन, भाइयों, माँ, चाची, ताइयों, दादियों या शायद चाचा, ताऊओं और दादाओं के लिए भी? जिनके लिए एक दो लाख बहुत बड़ी बात नहीं है और काम वाली आपके अनुसार और आपके वक़्त पर काम करने के लिए हाज़िर है। है? नहीं हैं? मशीने, जो झाडू, पोचा, बर्तन, कपड़े तो साफ़ करती ही हैं, वो भी ज्यादातर काम वालियों से बेहतर। खाना बनाने में भी काफी सहायक हैं। आपके बच्चों को पढ़ाने में भी। और भी कितने ही काम, इंसानों से ज्यादा अच्छे से करती हैं। तो मिलते हैं अगली पोस्ट में ऐसी ही कुछ आधुनिक काम वालियों से।                     

Tuesday, August 5, 2025

How was the Year? 2019

ये पोस्ट 28 December 2019 को लिखी हुई है। 

(Journaling helps to know and solve many unknown puzzles.)   

Part of Bio-Physio-Chem Warfare: Pros and Cons 

लिखना शुरु कर चुकी थी। उसके बाद इसमें Psycho और Electric Warfare भी लिखना शुरु किया, खासकर गाँव आने के बाद और यहाँ के किस्से कहानियाँ और सामान्तर घड़ाईयोँ के तरीके जानने के बाद। 

Information is power, strength as well as success. Get as much as you can.

How to Fight an Unavoidable Poison Zone?

In the last few years learned one by one how to get out of the poison zone, in an invisible war zone. Wherever you suspect something or have that gut feeling of unsafe, unhealthy, downgrading or jealous attack directly or indirectly, take care of yourself in that environment. Get out of that zone wherever possible. Fight wherever cannot. Do not fall prey to people's designs and leave campus. I knew that could be the worst nightmare or finish zone. So did not, could not? Whatever!

The worst was taking poisoned tap/supply water over the years infected with urine, faeces, pesticides, lead, dhatura. Only "contaminating agents" knew better what else was there in that supply water. Who was responsible for that? None, but my own neighborhood and some known-unknown people in non-teaching or maybe even teaching. Some, even those people, who talked sweet at the face! When University did not care about such complaints and body started showing worse symptoms, the simple solution was, use everywhere purified water even for clothes washing. 

The impact was not just on skin or hairs bad health but nightmare kinda feeling was when the doctor declared "Vitiligo". Till that time sense had started working, what was happening and I did not care for that doctor or that treatment. Within a few months, self-help or maybe Biology background helped and all those signs were no more. After that few more such things happened in dental, in the surrounding. I started observing every case in the surrounding, as well as at national/news. The world we are living in is so fake that so many so-called deaths were slow murders or so-called accidents or so-called terrorists attacks! And some so-called knowledgeable people say it's nothing new! That's how things are happening since ages?

Kick out all domestic helpers. Machines still better. Though many said, it would be difficult to manage, especially in this environment. But when you decide you can, then you can.

To tackle official space and threats better to keep a record of everything. Make undestroyable record copies. Give them every chance to go offensive and illegal. And one after another, they did every that thing which they should not!

Take care of every case yourself. Connect all of them. Whoever is not giving you correct information, is your enemy err not a friend or well-wisher. Listen to all, trust few. 

The stupidity, when you take care of your home and surrounding, but do not care about outside eating habits. Realized swelling and some kind of symptoms, whenever I ate at some specific places, especially my regular places. No more!

Next in line, felt many times earlier also but was eager to get some information so kept on going, though this year became irregular. No more! 

Watched so many crime-series this year, have not seen that much TV/internet web-series in whole life. But it helped in connecting some clueless dots; the information no-one was ready to give. 

Joining this job means bad stuff had finished research even before the start. They tried to finish teaching as well and kick out from the job. I gave up in 2017, but who knew it would be kinda come back? Still not sure? Started somewhere looking (just dreaming ;) for that independent writing zone? 

Overall, it was not a bad year. Coming year gonna strengthen more, connect more, more informative and hopefully productive. 

How 2019 treated you? Look ahead.

Wish You A Happy & Healthy New Year!

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 25

 Word of the day?

Infantilize 

Interesting?
Fancy word? Or a fact?  
ज़िंदगी के कुछ कड़वे अनुभव ऐसे भी हुए 
जब एक-एक करके आपको committees से निकाल फैंका गया। ये सिलसिला 2014 में शुरु हुआ था। मोदी गवर्न्मेंट आने के बाद। 
जब आपके professional development zone पर जैसे एक full stop लगा दिया था। कुछ खुद मैंने, किन्हीं कड़वे अनुभवों की वजह से। और ज्यादातर किसी या किन्हीं पार्टियों द्वारा या सुरक्षा के नाम पर। 
2015, जैसे कहीं भी निकलना बंध हो गया था। 
2017, जब घुटन ज्यादा महसूस होने लगी तो जैसे उन्होंने कहा, "ये हैं हम"। मेरे resignation के बाद एक पत्र मेरी माँ को भेझा गया, गाँव, की आपकी लड़की ने नौकरी छोड़ दी है और वो डिपार्टमेंट नहीं आ रही। जब की वो यूनिवर्सिटी (?) की नौकरी करने वाली वयस्क लड़की, उन्हें अपना पता, फ़ोन नंबर और मोबाइल नंबर तक देकर गई थी। फिर ये कैसा धंधा कर रहा था वो director, समझ से बाहर था। किसी और ही सदी में 10 पास माँ, उसमें भला क्या करती? उन्होंने मुझे बताया और मैंने कहा, जहाँ से आया है, उसी पते पर वापस भेझ दो इसे या लो ही मत। आपको मालूम क्या है की वहाँ चल क्या रहा है? मेरे जाने के बाद क्यों बुला रहे हैं वो आपको? और उन्होंने वैसा ही किया। वापस बुला कर फिर से ज्वाइन करवाने की शायद एक वजह ये भी रही। उन्हें लगा शायद घर वाले अपने आप निपट लेंगे, दकियानुशी पुराने विचारों के लोग है। पर पता चला की वो तो उनकी सुन ही नहीं रही। और अब कोशिशें हुई, फाइलों के द्वारा कंट्रोल करने की और यूनिवर्सिटी से ही बाहर फेँकने की। जिसका थोड़ा बहुत जिक्र वीरभान लैब केस और साइको ट्रीटमेंट के बाद, बाहर किराए पर मकान लेने का है। और फिर वहाँ कैसे-कैसे ड्रामे हुए जो प्लान सैक्टर 14 की तरफ इशारा थे। और मैंने यूनिवर्सिटी कैंपस छोड़ा ही नहीं। तो क्या होना था? मार-पिटाई (2019), कोविड (2020)? Kidnapped by police drama (2021)। और तंग आकर मेरा फिर से रिजाइन कर देना।  2019, 2020, 2021 फाइल्स, आज तक पब्लिश नहीं हो पाई? क्यों? ऐसा क्या है उन फाइल्स में? हालाँकि, उनकी कॉपियाँ दुनियाँ भर में बट चुकी, खासकर मीडिया के माध्यम से। राजनीती और विज्ञान का एक अलग ही रुप पेश करती हैं वो। Political और Science (Interdisciplinary Science)          

ये सब बहुत देर से समझ आया, की ये किस तरह की सामान्तर घड़ाई थी? ये कौन माँ थी, जो मेरी जानकारी के बैगर, मेरे फैसले ले रही थी? और ये भी, की बहुत कुछ इस जहाँ में ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाईयाँ खा गई। क्यूँकि, वो so called माँ, मेरी माँ से कहीं नहीं मिलती। ना उनके हालात या वातावरण। बहुत कुछ गलत इस जहाँ में, सामान्तर घड़ाइयों की वजह से है। बहुत कुछ गलत इसलिए हो रहा है या हुआ है, की कुर्सियों पर बैठे अधिकारी या कर्मचारी वो नहीं कर रहे, जिसके लिए उन्हें वहाँ बिठाया गया है। बल्की, किसी कोढ़ स्वार्थ राजनीतिक दुनियाँ के इशारों पर चल रहे हैं।           

जैसे सामान्तर घड़ाईयोँ वाली बिमारियों या मौतों की ही बात करें तो ये वो भयावह दुनियाँ है जिसकी हकीकत जानकार कोई भी थोड़ा सा भी दिमाग वाला इंसान यही सोचेगा, की कैसे लोग हैं, जो ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाइयाँ घढ़ रहे हैं?  

विटिलिगो से शुरु किया है, तो चलते हैं विटिलिगो और ऐसी सी ही दिखने वाली और बिमारियों पर। जानने की कोशिश करते हैं, की इसमें कितना ऑटोमैटिक सिस्टम अटैक है और कितना एन्फोर्स्ड? 

Monday, August 4, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 24

Political Landscape, Political Boundaries and Disease of convenience, मतलब? छलकपट? 

राजनीतीक सिस्टम या माहौल या media culture ऐसे है, जैसे, Disease of convenience. मगर कैसे? 

ऐसे, जैसे, रावण के दस मुँह? ऐसे, जैसे संतोषी माँ के चार-चार हाथ? कहीं-कहीं इन देवी देवताओं, या भगवान या भगवानीयों के, पाँच या छह भी दिख जाएँगे? 

ऐसे ही, जैसे, देवी या देवताओं की सवारियाँ? कहीं चीता, कहीं शेर, कहीं हाथी, कहीं चूहा और भी पता नहीं क्या-क्या?

या उनके संदेशवाहक या साथी या आसपास के जीव? कहीं कबूतर, कहीं चील, कहीं चमगादड़ और भी पता ही नहीं, क्या-क्या? 

या उनके बैठने के मैट, चटाई या कुर्सियां ही? जैसे कहीं हिरण की खाल, तो कहीं चीते या शेर की? 

सब कहीं न कहीं, उनके सुरक्षा या सौंदर्य के संसाधन और आम लोगों की, बिमारियाँ जैसे? भला ऐसे कैसे?

ठीक ऐसे, जैसे, एक सिस्टम में या जगह पर आप राजा या रानी, राजकुमार या राजकुमारी हैं? या शायद खुद कोई बड़े जमींदार या बिल्डर? तो दूसरे सिस्टम में, खुद उनका कोई गॉर्ड या प्रहरी? ऐसे ही किसी और सिस्टम में, आप उनके अध्यापक, डॉक्टर, नर्स, बावर्ची, माली, खेत में काम करने वाले मजदूर या साझी? या शायद सफाई कर्मचारी या आया या कुछ भी हो सकते हैं? किसी भी सिस्टम के राजनीती खेलने वालों (राजनीतिक पार्टियों) की चालों, ढालों में आप कहाँ फिट बैठते हैं, सब इस पर निर्भर करता है। वो जहाँ तक हो सकेगा, वहाँ तक कोशिश करेंगे की आप उनके डिज़ाइन में फिट हों। उसका आप पर क्या और कैसा असर पड़ता है, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बिमारियाँ कहीं न कहीं, इसी सिस्टम के (media ingredients) जोड़तोड़ या अटैक की कहानी को बताती हैं।  

तो इसी कड़ी में पहला उदहारण, विटिलिगो (vitiligo) और ऐसी-सी ही दिखने वाली कुछ बिमारियाँ लेते हैं। और जानने की कोशिश करते हैं, उनके राजनीतिक या कहीं के भी सिस्टम के कारणों, कारकों या छलकपटों या हमलों (attacks) को? 

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 23

Disease of convenience, मतलब? छलकपट? 

राजनीती सिस्टम या माहौल या media culture ऐसे है, जैसे, Disease of convenience. मगर कैसे?  

क्या हम कहीं के भी राजनीतिक सिस्टम या माहौल से वहाँ की बिमारियों को जान सकते हैं? आप कहोगे बहुत मुश्किल नहीं है, वहाँ का एक सर्वे कर लो और पता लग जाएगा की वहाँ पर कौन-कौन सी बिमारियाँ हैं या किन बिमारियों की किसी भी वक़्त या राजनीतिक दौर में अधिकता ज्यादा है। 

ऐसे ही, हम Disease of convenience की बीमारी या बिमारियों का भी पता लगा सकते हैं। जैसे कहते हैं, मतलब की राजनीती? मतलब के रिश्ते-नाते? ठीक ऐसे ही, मतलब की बीमारी भी होती है। 

कोई भी बीमारी एक तरह का अटैक होती है आपके स्वास्थ्य पर। वो अटैक किसी भी फॉर्म में हो सकता है। 

आपके वातावरण के हानिकारक सूक्ष्म जीवों की वजह से। जो आपके खाने-पीने या हवा में हो सकते हैं।

आपके मीडिया कल्चर की वजह से। आपका खाना-पीना, घूमना-फिरना या सुस्त होना। ज्यादा मोटापे वाला खाना खाना और एक जगह बैठे रहना (Overweight)। या ज्यादा शारीरिक काम करना और खाना कम खाना (Underweight) 

या किसी भी चीज़ से एडिक्ट होने वाले तत्वों या खाने-पीने की अधिकता। वो स्क्रीन टाइम से लेकर, चाय, कॉफ़ी, हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, अल्कोहल या और कितनी ही तरह के नशों के रुप में हो सकती हैं। 

ऊप्पर लिखी गई ज्यादातर बिमारियों का ईलाज हैं, थोड़े से हेरफेर से। 

मगर, कुछ बिमारियाँ ऐसी हैं जिनका या तो अभी तक कोई ईलाज ही नहीं है। या एक स्टेज तक ही संभव है।  

पीछे दो ऐसी-सी बिमारियों से सामना हुआ, जिनमें एक का ईलाज अभी तक नहीं है। और दूसरी, आती-जाती मौसम सी है। आसपास को थोड़ा जान समझकर, खासकर आसपास के लोगों की बिमारियों और उनके हालातों और वातावरण को समझ कर, इन बिमारियों का कोई और ही रुप सामने आया। क्या है वो रुप? सब बिमारियाँ राजनीतिक हैं। उनके कारण और कारक भी। तो ईलाज, राजनीतिक संभव है क्या? जानने की कोशिश करते हैं, आगे की पोस्ट्स में।  

Sunday, August 3, 2025

Friday, August 1, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 22

 सिन्धा नमक, काला नमक ???

बचपन में हैलीकॉप्टर को धागा बाँध के उड़ाया है? छोटा, थोड़ा बड़ा और थोड़ा बड़ा धागा बाँध, बाँध के? कितना बड़ा धागा बाँधने तक ये हैलीकॉप्टर उड़ जाता था? और कितना बड़ा बाँधने पर बोलते थे, भार ज्यादा हो गया?

खैर। धागे बाँधने के बाद कभी दिवार पे, कभी तारों पे और कभी लोहे के सिरियों पे देखा उसी हैलीकॉप्टर को? और सोचा चल पकड़? शायद?

ऐसे? 


ये कॉर्टून इंटरनेट से लिया गया है। 

या ऐसे? 
इन्हें अंग्रेजों के जमाने वाली सलाखें बोलते हैं शायद?
ये खँडहर उसी वक़्त का है। 

 
या ऐसे?
 
31 की दिवार और 30 का ये तार, टाइप-4, MDU 
और 
Microscopic View 

कभी ऐसा-सा डायलाग भी सुना है?
और हेलीकॉप्टर, कीत उड़ रैहया सै आजकाल? 
 सिन्धा नमक, काला नमक ??? 
बारिश के मौसम में ज्यादा ही उड़ते दिखते हैं शायद ये हेलीकॉप्टर?
ठीक ऐसे जैसे, पड़ोस वाली दादी की बेल। ऐसी सी कोई पोस्ट फिर कभी। 

Tuesday, July 29, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 21

Disease of convenience, मतलब? छलकपट? 

एक तरह के media culture में वो vitiligo लिख कर देंगे और दूसरे media culture में उसी को Fungal infection कहते नज़र आएँगे। एक जिसका अभी तक ईलाज नहीं है और दूसरी जो जुकाम सी मौसमी होती है और कुछ वक़्त के ईलाज और ऐतिहात के बाद चली भी जाती है। रौचक? ज़िंदगी और मौत का फर्क इतना-सा होता है? स्वास्थ्य और बीमार होने का फर्क भी इतना-सा ही होता है? और रिश्तों के बने रहने या इधर उधर खिसका देने का भी? दुनियाँ भर का ये राजनीतिक सिस्टम सच में बड़ा रौचक है। कितनी ही किताबें लिखी जा सकती हैं इसपे तो, और कितनी ही डाक्यूमेंट्री बनाई जा सकती है। 

दाद, खाज और खुजली? 

M onkey? 


ज़ालिम (Z?)

Ring Cutter? 
Ring? अखाड़ा? 


इससे आगे पुलिस और ज़मीन के किस्से कहानियाँ?

जानने की कोशिश करें? 
बड़ी ही चालाकी से, बड़ी ही धूर्तता से गूंथे बुने जाले?
कहीं खाटू सेठों के साथ मिलकर? 
तो कहीं?

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 20

Political System and Genetics, इनका आपस में क्या लेना देना है?

हर विषय के कुछ अपने सिद्धांत होते हैं। जिसकी नीँव पर वो विषय आगे बढ़ता है। ऐसा ही जैनेटिक्स के साथ भी है। आनुवंशिकी (Genetics) के अनुसार, आपको अपने बच्चों की शादी अपने घर, परिवार और जहाँ तक हो सके खून के रिश्तों से कहीं दूर करनी चाहिए। नहीं तो जो आनुवंशिक बिमारियाँ उनमें होंगी, वो आपके आगे की पीढ़ियों में जाने की गुँजाइश ज्यादा ही बढ़ जाती है। कैसी-कैसी बिमारियाँ, कैसे-कैसे आगे की पीढ़ियों में जाती हैं, इनके भी आनुवंशिकी के अनुसार कुछ सिद्धांत हैं। 

राजनितिक पार्टियाँ कुर्सियां पाने के लिए किसी भी तरह का अवरोध नहीं रखती। वहाँ सब जायज़ है, बस कुर्सी मिलनी चाहिए। उसके लिए कोई भी रिस्ता वर्जित नहीं है। क्या बाप, बेटी, क्या भाई, बहन, क्या चाचा, भतीजी या मामा, भांजी या माँ, बेटा या दादी, पोता। कोई भी, मतलब, कोई भी। इनके in out को जब समझना शुरु किया, तो यूँ लगा ये लीचड़ खेल क्या रहे हैं? ये लोगों से आसपास ही ऐसे ड्रामें करवा रहे थे या कहो करवा रहे हैं, की यूँ लगे पता नहीं लोगों ने आसपास ही कितनी लुगाई या लोग बनाए हुए हैं? घर बक्सा ना आसपड़ोस। 

या यूँ कहे, की वो आपसे आपकी जानकारी या अज्ञानता में खुद आपको या आपके घर में ही किसी को कोई बीमारी या मौत तो नहीं परोस रहे थे या हैं, ऐसे-ऐसे ड्रामों का हिस्सा बनाकर? क्या ये ड्रामें, कहीं न कहीं आपको मोटापा या पतला होना भी तो नहीं परोस रहे? और कुछ हद तक आपके बच्चों को उनकी कितनी लम्बाई होगी ये भी? इनमें से बहुत कुछ तो आनुवांशिक होता है ना? फिर राजनीतिक सिस्टम ये सब कैसे परोस सकता है? या परोस रहा है? ऐसा कैसे संभव है? आज के सिंथेटिक जहाँ में ये सब संभव ही नहीं बल्की हो रहा है। 

जैसे नशा एक बीमारी है और राजनीतिक सिस्टम की देन है। कोई भी इंसान किसी एक तरह के सिस्टम में नशे करेगा और दूसरी तरह के सिस्टम में नहीं करेगा। किसी भी सिस्टम में आप अपने आप गालियाँ देने लग जाएँगे और किसी सिस्टम में देना तो दूर, बल्की, उनसे नफरत करना सीख जाएँगे। कोई सिस्टम आपको कर्कश कौवा बना देगा और कोई सिस्टम मीठा जैसे कोयल? सिस्टम? राजनीतिक सिस्टम? या सिर्फ माहौल कहें इसे? या media culture? अगर आपको आपकी interactions की खास तरह की सुरंगों की खबर होगी तो ये सब एक ही नजर आएगा। बड़े लोगों या राजनीतिक घरानों या राजनीतिक पार्टियों के वश में कल भी बहुत कुछ था। मगर आज के टेक्नोलॉजी के युग और सर्विलांस एब्यूज ने इसे Human रोबॉटिक्स या कहो की Human Control तक पहुँचा दिया है।    

किसी भी सिस्टम (media culture) में थोड़े से बदलाव करके ही, इन सिस्टमों को बदला जा सकता है। कहीं ये बदलाव आप आसानी से कर पाएँगे और कहीं आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी। निर्भर करता है, की उस सिस्टम का आसपास या राजनीतिक सिस्टम कैसा है, जिसमें आप ये बदलाव करना चाहते हैं?  

इसे आप अपने आसपास के छोटे-छोटे उदाहरणों से ही समझ सकते हैं। किस घर में छोटे बच्चे ही आसानी से पोटी करना सीख जाते हैं? और कहाँ वो ये सब थोड़ा बड़े होकर सीखते हैं? कहाँ बच्चे जल्दी बोलना या चलना सीखते हैं और कहाँ थोड़े बड़े होकर? कहाँ वो अपने छोटे मोटे से काम अपने आप जल्दी करना सीखते हैं और कहाँ थोड़े बड़े होकर। 

ये सब बड़ों पर भी लागू होता है। एक ही घर में एक बच्चा जल्दी आत्मनिर्भर बनता है। जबकि दूसरा, संघर्ष करता नजर आता है। हमारे समाज में लड़कों के केस में खासकर देख सकते हैं। एक, क्या अपने, क्या घर के और बाहर के सब काम आसानी से करता नज़र आता है। दूसरा, ब्लाह जी यो तै पानी का गिलास भी खुद ना लेकै पिया करे। एक ऑफिस भी जाता मिलेगा और घर बाहर के कामों में हाथ बटाटा भी। दूसरा, ब्लाह जी ये काम तै लुगाई-पताईयाँ के होया करें। सब ट्रेनिंग पर निर्भर करता है। बहुत सी ऐसी ट्रेनिंग, एक अपने घर और आसपास से ही सीख जाता है। उसे किसी खास तरह की ट्रेनिंग की जरुरत नहीं पड़ती। सब सोच की वजह से। 

अपने आसपास के ही उदहारण देती हूँ। उन दिनों मैं हॉस्टल से बाहर ही आई थी, और सैक्टर 14 रहती थी। टाँग टूटने की वजह से हॉस्टल में उस तरह का सुप्पोर्ट सिस्टम संभव नहीं था, की आप किसी को साथ रख सकें। या कोई फिजियो के लिए सुबह-स्याम वहाँ आ सके। लेकिन बाहर रहने की अपनी दिक्क़तें भी थी। हॉस्टल की तरह वहाँ आपको बना बनाया खाना तो मिलेगा नहीं। मगर बाहर उसका इंतजाम किया जा सकता था। ऐसे ही जैसे सफाई या कपड़े वैगरह धोने का। या और ऐसे-ऐसे, छोटे-मोटे कामों का। कुक, मेड, दीदी, भांजे, भांजी, भतीजी या यूनिवर्सिटी का या PGI का सर्कल था इस सबके लिए। यहीं के सिस्टम की अगर बात करूँ तो कई बार वीकेंड्स पर दोस्त इक्कठे होते थे। जिनमें जूनियर, बैचमेट, या लैबमेट वगरैह होते थे, जो आसपास ही यूनिवर्सिटी या सैक्टर में रहते थे। खाना बनाने की जब बात होती, तो अक्सर कुछ जूनियर बनाते थे। जिनमें लड़के और लड़की दोनों थे।  

अब अगर इसी वाक्य को अगर मैं अपने गाँव के आसपड़ोस या सिस्टम पर लागू करूँ तो? लुगाई-पताईयों के काम भला कौन लड़का करेगा? चाहे आपको कोई दिक्कत ही हो। फिर ठीक-ठाक होने पर तो ऐसा सोचना भी जैसे गुनाह हो? घर में अगर कोई बहन या भाई हों, तो कौन बनाएगा? बहन, चाहे कितनी भी छोटी क्यों ना हो? या भाई, चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो? या भाई या भाभी? या दोनों इक्क्ठा मिलकर बना लेंगे? संभव है? शायद ज्यादातर तो यही कहेंगे की बाहर से ले आएँगे या बाहर जाकर खा आएँगे? नहीं तो माँ, चाची, ताई, दादी, बहनें ही करती नजर आएँगी ये काम? या शायद कर भी देंगे तो यो तो लुगाई का गुलाम है कहते बहुत से गँवारुं भी मिल जाएँगे? गाँवों में ना सिर्फ आर्थिक तंगी की बल्की ज्यादातर बिमारियों की, ये सोच भी एक वजह है। कैसे, जानने की कोशिश करेंगे आगे किसी पोस्ट में। 

वैसे कहीं सुना है, की खाना बनाना एक कला है, एक विधा है। इसमें जो जितना निपुण है, वो उतना ही ज्यादा अपने घर को बाँध कर रखता है। फिर क्या पुरुष और क्या औरत। और विधा या कला, लिँग की मोहताज़ नहीं होती। कहीं-कहीं आपको पुरुष, औरतों से ज्यादा अच्छा खाना बनाते मिल जाएँगे। सब ट्रेनिंग पर निर्भर करता है। तो किसी भी काम को लुगाई-पताई या औरत-पुरुष से ना जोड़कर, उसके पीछे छिपी बारिकियों से जोड़कर देखें। उसी काम को अगर रसोई या घर से आगे लैब की घड़ाई तक देखेने समझने लगेँगे, तो आपका और आपके आसपास का स्वास्थ्य या आगे बढ़ना या पीछे रहना ही नहीं, बल्की, वही काम कुछ और ही नज़र आएगा। सत्ता और कुर्सियां उसके आसपास डोलती नज़र आएँगी। बाजार उसके हवाले नज़र आएँगे। बड़ी बड़ी कंपनियाँ तक अपने कर्मचारियों को उस नाम पर जाने कैसी कैसी सुविधाएँ देती नज़र आएँगी। और ये सिर्फ खाने पर ही लागू नहीं होता, बल्की, हर उस काम पर लागू होता है, जिसका आपको abc नहीं पता और जिसे आप छोटा या लुगाई पताई का काम समझते हैं। फिर चाहे वो सफाई या माली का काम ही क्यों न हो।     

माहौल बनाता है, माहौल बिगाड़ता है 

बने हुए कामों को भी 

माहौल आगे बढ़ाता है और माहौल पीछे भी धकेलता है।   

सब निर्भर करता है की आप कैसे माहौल या लोगों के बीच हैं। वो माहौल या सिस्टम आपके अपने घर से शुरू होता है। जहाँ कहीं आप रहते हैं, वहाँ से शुरु होता है। जितना वक़्त आप या आपके बच्चे जहाँ कहीं बिताते हैं, उतना-उतना वो माहौल या सिस्टम या राजनितिक सिस्टम वहीं से बनता है। अब इसमें राजनीती कहाँ से आ गई? पहले मुझे भी नहीं पता था या यहाँ वहाँ जब पढ़ा सुना तो समझ ही नहीं आया, की ये कह क्या रहे हैं? भला राजनीती आपके अपने घर का या आपका अपना माहौल या सिस्टम कैसे बनाती या बिगाड़ती है? जितना आपको ये सब समझ आना शुरु हो जाएगा, उतना ही आपकी और आसपास की ज़िंदगी भी बेहतर होती जाएगी। 

 राजनीती सिस्टम या माहौल या media culture ऐसे है जैसे Disease of convenience. 

Disease of convenience, मतलब? छल कपट। आगे पोस्ट्स में और जानने की कोशिश करेँगे इन सबके बारे में।  

Friday, July 25, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 19

ब्लाह जी इतने शहर या यूनिवर्सिटी के धक्के खाकर आपको समझ क्या आया? कोई फायदा भी हुआ या इन पत्रकारों ने सिर्फ और सिर्फ धक्के ही खिलाए?

पहली बात तो वो किसी पत्रकार ने नहीं  खिलाए। मैं उनके लेख या प्रोग्राम देखती थी और मुझे लगा की जानना चाहिए, ये जो कह रहे हैं वो बला क्या है? इसी दौरान डिपार्टमेंट में भी इसी तरह की पढ़ाई चल रही थी। ज्यादातर स्टूडेंट्स लैब और क्लॉस में जैसे आ ही ड्रामे करने रहे थे। यही नहीं समझ आ रहा था, की कहाँ-कहाँ और किस-किस से और कैसे निपटा जाए? डिपार्टमेंटल मीटिंग के यही हाल थे। कुछ वक़्त बाद इतना समझ आने लगा था, की ये खुद नहीं कर रहे। इनसे राजनीतिक पार्टियाँ करवा रही हैं। 

डिपार्टमेंट और यूनिवर्सिटी के ड्रामों ने एक तरफ जहाँ फाइल्स, सिलेबस, कोर्स और डॉक्युमेंट्स को पढ़ना समझना सिखाया, तो दूसरी तरफ इंस्ट्रूमेंट्स, कैमिकल्स और कुछ हद तक बिल्डिंग्स के आर्किटेक्चर और इंफ्रास्ट्रक्चर को भी। कुछ वक़्त परेशान होने और झक मारने के बाद, जब लगा की कोई नहीं सुन रहा, मैंने ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स इक्क्ठे करने शुरु कर दिए। और उन्होंने भी कहा जैसे, ले फाइल बना कितनी बना सकती है। हर कदम पर जैसे, एक नई फाइल सामने थी। उसपे सेहत भी गड़बड़ाने लगी थी। इनमें से कुछ एक फाइल्स ने कोर्ट का रुख भी किया। अब ये लोग मुझ पर उल्टे-सीधे केस लगाने लगे थे। आखिर उन्हें भी अपने प्रोटेक्शन के लिए कुछ चाहिए था। ऑफिसियल डॉक्युमेंट्स को भला कब तक और कैसे झूठलायेंगे? वो भी जब वो पब्लिक के बीच रखे जाने लगे हों? ये अलग दुनियाँ थी मेरे लिए। यहाँ यूँ लग रहा था की वकील वो जीतेगा, जो जितनी ज्यादा झूठ बोलेगा। आपके प्रूफ या तो दरकिनार कर दिए जाएँगे या आपके प्रूफ के ऊप्पर और प्रूफ घड कर रख दिए जाएँगे। जो कोर्ट के चक्कर काटेंगे वो हार जाएँगे, उनसे, जिनके वकील ऐसे लोगों के लिए काम कर रहे होंगे, जिन्होंने कभी कोर्ट ही ना देखें हों।       

यहाँ पर नई दुनियाँ के कोर्ट भी सामने आए, जिन्होंने कहा हम ऑनलाइन हैं। US और भारत के कुछ कोर्ट्स को ऑनलाइन भी देखना समझना शुरु किया। अब ये मामला कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टिंग होता जा रहा था। इस इंटरेस्टिंग को आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करते हैं। 

अब राजनीतिक पार्टियाँ भी कह रही थी जैसे, की हम भी ऑनलाइन हैं। हमारी पँचायत भी ऑनलाइन है और कुछ समस्याओँ के समाधान भी। चारों तरफ वक़्त के साथ ताल पर ताल मिल रही हो जैसे? राजनीतिक पार्टियों के ड्रामें, थोड़े ज्यादा ही लग रहे थे। मेरा इंट्रेस्ट पढ़ाई-लिखाई के आसपास ही रहा और मैंने ऑनलाइन दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर करनी शुरु कर दी, किसी खास उद्देश्य से। ये ज्यादा सही रहा। यहाँ पे ना सिर्फ आप पढ़ाई लिखाई से जुड़े रह पा रहे हैं, बल्की, वक़्त भी ऐसी जगह लगा रहे हैं, जहाँ कुछ न कुछ अपनी रुची के अनुसार है। यहाँ तक पहुँच गए, तो कहीं न कहीं रस्ता भी मिल ही जाएगा। राह के रोड़े कब तक राह रोके खड़े रहेँगे? अनचाहे केसों और ड्रामों की फाइल्स कम होने लगी हैं। ऐसी पुरानी फाइलों की छटनी कर उन्हें बुकलेट्स की फॉर्म दे दी है या दी जा रही है। बायो फिर से फ़ोकस है, एक ऐसे interdesciplinary topic के साथ, की कहो किधर फेंकोगे? या घपले कर रस्ते मोड़ने-तोड़ने की कोशिश करोगे? ये विषय दुनियाँ के हर कोने में और हर जगह है। इसको ना तुम छीन कर इसका क्रेडिट अपने नाम कर सकते, और ना ही इसका रास्ता रोक कर खड़े हो सकते।  

जहाँ कहीं ज़िंदगी है, वहीँ ये है, Impact of system (political) on life. My focus is especially on human life. 

तो A से Z तक का सफर? 26 शब्द मात्र? जैसे ABCD of Views and Counterviews? बोले तो इतने सारे शब्द और उनके उससे भी कहीं ज्यादा जोड़तोड़, ज्यादा ही कॉम्प्लेक्स है ना? किसी ने कहा, तो simple कर लो and be silenced?     

Interesting?    

Wednesday, July 23, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 18

 Release my saving to this day happenings

वो कौन से इलेक्शन थे, जब MDU Finnace Officer ने बोला था की अभी इलेक्शंस चल रहे हैं, वहाँ व्यस्त हैं? रितु की मौत के आसपास कौन से इलेक्शंस चल रहे थे? 

उसके बाद से क्या चल रहा है? इलेक्शन ही चल रहे हैं। कभी ये राज्य और कभी वो राज्य और कभी लोकसभा? क्या बकवास है ये? 

बिहार इलेक्शंस?

बिहार के इलेक्शंस की preparation में बिहारी लोग हरि याना (?) के खेतों में धान उगाने आते हैं शायद? बारिश बहुत अच्छी होती है? और ये बिहार डूबता कब-कब है? बिहार या हरियाना या पंजाब? या दिल्ली? या असम? ये साँग अपनी तो समझ से बाहर है। कुछ ज्यादा ही काम्प्लेक्स नहीं है? पॉलिटिकल पंडित क्या-क्या पढ़ते होंगे? जबसे रितु गई है, तबसे ही कहीं न कहीं इलेक्शंस चल रहे हैं। क्यों, पहले नहीं होते थे वो? होते होंगे, मगर मेरे forms के साथ शायद तब इतना घपला नहीं होता था। या शायद होता भी होगा, तो मुझे इतनी खबर नहीं थी। थोड़ी बहुत ही थी। एक बायो का इंसान कहाँ-कहाँ निपटे? पहले spelling mistakes इधर उधर, फिर शब्दों की हेरा फेरी। फिर कलाकारों ने emails के attachment ही बदल डाले। आपको पता ही ना चले की क्या का क्या हो रहा है? एक ऐसी ही हेराफेरी के बाद ही कोई plane crash हुआ था। जैसे कह रहे हों, की अब भी पकड़ना चाहोगे कोई फ्लाइट? थोड़ा रुककर आपने कहीं और भर दिया form । पता नहीं कैसी-कैसी चिड़िया दिखा रहे हैं और कैसे-कैसे एक्टिव, इनएक्टिव :( 

उससे भी बड़ी हद तो जब हो गई, जब कहीं और अप्लाई करने की सोची। सिर्फ सोची? हाँ, मैं कई पोस्ट्स पर टिक मार्क लगाकर एक फ़ोल्डर बना देती हूँ कहीं। और इन कलाकारों को पता होता है की इनमें से ही किसी पे अप्लाई करेगी। किसी पोस्ट पर मुझे लगा की मैंने अप्लाई ही नहीं किया। और ये क्या? इन कलाकारों ने अप्लाई दिखा दिया? ये तो जब न्यूज़ चली की फॉर्म अपने आप भरे जा रहे हैं और उनमें ऐसा-ऐसा हो रहा है सुना, तब दिमाग की बत्ती ने काम किया। अच्छा? डाउनलोड तो कर इन्होने वहाँ CV या Cover लैटर के नाम पर भरा क्या है? उफ़। किसी स्कूल में चपड़ासी की भी पोस्ट ना मिले। 

फिर सोचा चल तब तक आसपास ही कहीं प्रोजेक्ट ले ले। वो तो मिल ही जाएगा। लो जी। लेकर तो दिखाओ। वो वेबसाइट ही नहीं खुलने दे रहे। या उलटी पुलटी तारीख दिखा रहे हैं। कौन-सी दुनियाँ है ये? जो नौकरी थी, ना वो करने दी। ना कहीं सेलेक्ट होने देंगे। और ना ही खुद का कोई काम करने देंगे। ऐसे तो कब तक जियेगा कोई? गुंडागर्दी की सब हदें, सब सीमाएँ पार। 

इन्हीं को इलेक्शंस कहते हैं क्या? अगर हाँ, तो खुल के बात करो। क्यों कोढ़ म कोढ़ लगे हुए हो और जनता का भी फद्दू काट रहे हो? अरे नितीश बाबू, प्रशांत जी ये आपके राज्य में चल क्या रहा है?   

इस सबसे कोई बीमारी भी निकलती है क्या? कुछ भी? ये 2020 में फिजियोलॉजी में नोबल प्राइज किसे मिला था? कौन सी यूनिवर्सिटी? कहाँ?    

कौन सी बीमारी?

Hepatitus C और Liver का आपस में कोई लेना-देना है? और जिसको उस दिन कोई बीमारी बताई, उसका? उफ़। कौन-सी दुनियाँ है?

कहाँ का कहाँ, क्या कुछ मिलता जुलता सा है? पहले भी यहाँ-वहाँ के इलेक्शंस में ऐसा-सा ही कुछ चलता बताया? हमारी भोली-भाली जनता को इस सबको समझने की जरुरत है। 

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 17

 A visit to my village hospital after years rather must say few decades.  

गाँव का ये छोटा-सा हॉस्पिटल, इससे कुछ ख़ास किस्म का नाता रहा है शायद? बचपन की कुछ यादें जुड़ी हैं इससे। यहाँ मेरी एक दोस्त रहती थी। गाँव का हॉस्पिटल, उन दिनों कितना छोटा होता होगा ना? नहीं, शायद उस वक़्त के हिसाब से भी ठीक-ठाक ही था। मगर वो तब इस जगह नहीं था। हाँ डॉक्टर का घर जरुर यहीं कहीं होता था। 

तब रोहतक या PGI की कोई खबर नहीं थी। पता ही नहीं था, की वो बला क्या हैं। 1987-88 शायद? यही कोई 10-11 साल की रही होंगी। आपमें से बहुत से ये ब्लॉग पढ़ने वाले तो पैदा ही नहीं हुए होंगे? मैं खुद पाँचवी क्लॉस में थी। नया-नया सरकारी स्कूल जाना शुरु किया था। शर्ट और निक्कर में, वो भी गाँव के सरकारी स्कूल? बच्ची कितनी ही छोटी हो, उसे तो कमीज और सलवार ही पहनने चाहिएँ, ये वो दौर था। बाल बड़े होने चाहिएँ। छोटे बालों वाली को उस वक़्त परकटी बोलते थे, कुछ ताई, दादी। खैर, अभी इतनी बड़ी नहीं हुई थी, उसपे पहला ही साल था सरकारी स्कूल का। प्राइवेट स्कूल के नाम पर उन दिनों मदीना में शायद एक ही स्कूल होता था, उसे टुण्डे का स्कूल बोलते थे। उन दादा का नाम आज तक नहीं पता मुझे। मतलब, स्कूल का कोई नाम ही नहीं था? आज तक नहीं पता। अंग्रेजी पढ़ाई के नाम पर, 4th या 5th में abcd सीखा देते थे :) बहुत था शायद?  

खैर, 5th में जब सरकारी स्कूल जाना शुरु किया, तो जाते ही क्लास मॉनिटर बन गई थी। अंधों में काना राजा जैसे? मगर मेरे उस स्कूल के जाने के साथ-साथ ही, एक और लड़की आ गई थी, प्रतीक्षा, गाँव के हॉस्पिटल के डॉक्टर की लड़की। पहले दिन से ही हमारी पटनी शुरु हो गई थी। एक-आध बार, मैं उसे अपने घर ले आती थी। और एक आध बार वो मुझे अपने घर। उसका घर बहुत बड़ा था। घर तो मेरा भी बड़ा था। उन दिनो शायद ज्यादातर घर बड़े ही होते थे। मगर उसका कुछ ज्यादा बड़ा था। खासकर, उनके घर के बाहर का खेलने का एरिया। जहाँ हम हो-हल्ला करते हुए अक्सर छुपम-छुपाई खेलते थे। आज जहाँ गाँव का नया हॉस्पिटल है, उसका घर वहीँ कहीं था शायद। उस ईमारत को अंग्रेजों के दिनों में बनी कोई ईमारत बोलते थे, जहाँ अक्सर अंग्रेज ऑफिसर रहते थे। अब गाँव की ये जगह पहचान ही नहीं आती। बहुत बार इसके बाहर से जरुर निकली, मगर इतने सालों में कभी इसके अंदर जाना नहीं हुआ। वो लोग कम ही वक़्त यहाँ गाँव में रुके थे। उसके पापा की ट्रांस्फर फिर कहीं और हो गई थी। और उसके बाद उसके बारे में कोई खबर नहीं रही। हाँ। प्रतीक्षा नाम से आगे भी दो दोस्त या क्लासमेट जरुर रही। जो जाने क्यों कभी कभार ये याद दिला देती थी, की गाँव में भी इस नाम से, बचपन में एक लड़की मेरी दोस्त होती थी। एक अपने परिवार के साथ USA में  रहती है और एक दिल्ली। दिल्ली वाली तो है ही, घर-कुनबे से भांजी। यमुनानगर वाली pen friend बनी थी, एक दोस्त की दोस्त होती थी। कुछ वक़्त वो दिल्ली रही और वहीँ से फिर USA गई। और दिल्ली वाली MSc. क्लासमेट और hostelmate भी। गाँव का वो पुराना पोस्ट ऑफिस, दो तीन ऐसी दोस्तों के पत्र लाता था। हाँ, scribbling काफी पहले शुरु कर दी थी। शायद दादा जी के पत्र पढ़ते-पढ़ते ही। कॉलेज सर्कल यूँ लगता है, कहीं न कहीं, उसी एक्सटेंशन जैसा-सा था। अब इतने सारे किस्से कहानी सुनकर ऐसा ही लगता है।    

अब के गाँव के इस हॉस्पिटल में और तब के हॉस्पिटल में फर्क क्या है? पहले वाला शायद इससे सुंदर था। उस वक़्त के हिसाब से बड़ा भी था। आज के वक़्त के हिसाब से, ये बहुत छोटा है। ये शायद ये भी बताता है, की वक़्त और जनसँख्या के हिसाब से गाँवों में सुविधाएँ उतनी नहीं बढ़ी हैं, जितनी बढ़नी चाहिएँ थी। जितना ये है, इतने से हॉस्पिटल तो हर गाँव में होने चाहिएँ। बड़े गाँवों में, थोड़े बड़े हॉस्पिटल होने चाहिएँ। अगर गाँवों की बेसिक सुविधाएँ इतनी भी हों जाएँ, तो शहरों के हॉस्पिटल्स में या PGI जैसे हॉस्पिटल में जो भीड़ रहती है, उसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। ये पोस्ट पड़ोस वाली दादी की सौगात है। अगर वो अपने साथ चलने को ना कहते, तो ये पोस्ट भी कहाँ होती?    

ऐसी सी ही एक पोस्ट, किसी दिन गाँव के स्कूल पर, फिर कभी। बचपन का वो स्कूल? वैसे सरकारी स्कूलों में alumni meet क्यों नहीं होती? शायद उससे इन स्कूलों के कुछ हालात थोड़े बेहतर हो जाएँ? वैसे, आसपास से ही किसी ने लड़कियों के सरकारी स्कूल जाने का कोई खास तरह का विजिट ऑफर दिया था। मगर जाने क्यों मुझे लगा, की वो किसी खास पार्टी की तरफ से था। और मैं राजनीती से कुछ कदम दूर ही रहना चाहती हूँ। कम से कम इतनी दूरी तो होनी ही चाहिए, की आप बिना किसी भेदभाव या हिचक के किसी भी पार्टी के गलत या सही पर लिख सकें। जो कोई अपने आपको लिखाई पढ़ाई के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहता है, उसके लिए जरुरी भी है। मेरा मानना है की बचपन के स्कूल का किसी भी तरह का विजिट, ऑफिशियली स्कूल की तरफ से ही हो, तो ही अच्छा लगता है। उसके बाद स्कूल के वक़्त की कुछ और दोस्तों से मिलना भी हुआ। फिर से सालों, दशकों बाद, उनकी ज़िंदगी के उतार-चढाव जानकर लगा, जैसे, सबकुछ कहीं न कहीं पुराने से, जाने क्यों, किसी न किसी रुप में मिलता जुलता-सा है? जो किसी भी क्षेत्र की राजनीती और सिस्टम के बारे में काफी कुछ बताता है। शायद अभी इन जोड़तोड़ के किस्से कहानियों के बारे में काफी कुछ जानने की जरुरत है?  

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 16

EC से पिंक स्लिप आपको ईनाम के रुप में मिल गई? और आपको उसका मतलब तक पता नहीं चला? कितने भोले हैं आप? कोढों वालों की बेहुदगियों को और कहाँ-कहाँ झेलेंगे? EC से resignation एक्सेप्ट होने के बाद क्या होना चाहिए था? आपको अपना पैसा मिल जाना चाहिए था? यही ?

अरे नहीं खेल अभी बाकी है। 

अभी वो अपने कालिख से जुए के धंधे के आगे वाले स्वरुप से नहीं अवगत कराएँगे? तो वो आगे का खेल शुरु होता है। वो कहते हैं की हमने ऐसे सिस्टम बनाए हैं, जिनमें पैसा अपने आप आगे बढ़ता है। हमें कुछ नहीं करना पड़ता। ज़मीनी धंधा उनमें से एक है। धंधे के इस बेहूदा लोगों ने औरतों को ही प्रॉपर्टी घोषित कर दिया है। औरतें ही क्यों? पुरुष भी शायद? वेश्याव्रती के इस धंधे में, क्या अनपढ़ और क्या पढ़ी लिखी औरतें, सबको एक लाठी से हाँकने का चलन है। क्यूँकि, इनके धंधे के अनुसार आप एक इंसान नहीं है, प्रॉपर्टी हैं। और प्रॉपर्टी पर तो मारकाट मचती है? 2018 में जब कुछ पत्रकार खुलमखुला ऐसा लिख रहे थे, तो सबकुछ जैसे दिमाग के ऊप्पर से जा रहा था, की ये दुनियाँ कौन-सी है? और कहाँ है, जिसकी ये बात कर रहे हैं? उन्हीं में से कुछ एक ने बताया था की ये कोढ की दुनियाँ है और इसके जाले सारी दुनियाँ में फ़ैले हुए हैं। खासकर, उस so called साइकोलॉजी वाले ड्रामे के बाद, किसी सैर सपाटे से, जब चिड़ियाँ कहीं से फुर्र हो गई थी। कुछ लोगों के इशारों के बाद ही हुआ था ऐसा। 

EC के बाद ED आता है? ED कहाँ-कहाँ आता है? ED और शिक्षा का धंधा? इनका आपस में क्या लेना-देना है? आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करेंगे। 
       

इसी दौरान उन्हीं कोढों को जानने के लिए, मैंने कुछ बंद लैबों, साथ वाले बँध घर (29), रोड़ों, उनपे लिखे शब्दों या नम्बरों और ऑफिसों की खाख छाननी शुरु कर दी थी। इस खाख में रोहतक के कुछ ऐसे कोने भी थे, जहाँ मैं पहले कभी नहीं गई। या जिनके बारे में पता तक नहीं था, की ऐसा कुछ भी रोहतक में है। कुछ ऐसे पूल, जिनका मुझे पहले कोई अत्ता पता ही नहीं था। जैसे रोहतक इंडस्ट्रियल टाउन, जिसके पास से कितनी ही बार निकली होंगी, मगर कभी ध्यान ही नहीं दिया, की ये बला क्या है? सैक्टर 22, रोहतक में ऐसा कोई सैक्टर भी है? शिव कॉलोनी और आसपास का गन्दा-सा एरिया। ये भगवानों के नाम पर बनी इमारतों या जगहों पे इतना गंद क्यों होता है? और भी कुछ ऐसी-सी ही जगहें। जैसे SUPVA, आखिर ये बला क्या है? खुद अपनी यूनिवर्सिटी में शायद ही ऐसी कोई जगह छोड़ी हो, जहाँ मैं ना गई हों। जिस किसी बहाने या बस ऐसे ही घूमने। बस ऐसे ही? नहीं। शायद उन जगहों के बारे में कहीं न कहीं आर्टिकल्स में कुछ आ रहा था। 

इस सबको बताने समझाने में शायद कुछ एक लोगों का अहम रोल था, खासकर पत्रकारिता के क्षेत्र से। ऐसा भी नहीं है की मैं उन्हें कोई खास पसंद करती थी। मगर, उनके लेखों या प्रोग्रामों में कुछ तो खास होता था, जो अपनी तरफ खिंचता था? शायद कुछ ऐसी जानकारी, जो आपको और कहीं नहीं मिलती थी। थी क्यों? अब कहाँ गए वो लोग? सुना या पढ़ा था, की उन्हें कोरोना काल खा गया। कोरोना काल या उनके घोर विरोधी? जिन्हें उनकी वजह से कहीं न कहीं शायद नीचा देखना पड़ रहा था? इन कुछ खास लोगों को हार्ट अटैक हुआ था? मगर कैसे? वो भी शायद कुछ एक पत्रकारों को ही ज्यादा पता हो? लोगबाग क्यों नहीं खुलकर बात करना चाहते इन सबके बारे में? मरने से किसे डर नहीं लगता, वो भी सच उगलने पर बिन आई मौत जैसे?  

Toxicology, Bio-Chemical Terror और ऐसे-ऐसे विषय जाने कहाँ से आ गए थे? जिनके बारे में पहले बहुत कम या ना के बराबर जानकारी थी। आप जानते हैं, इन विषयों पर कहाँ-कहाँ काम हो रहा है? या ऐसे-ऐसे सँस्थान कहाँ-कहाँ हैं? और वहाँ का फोकस एरिया क्या है? जानने की कोशिश करें, शायद बहुत कुछ समझ आएगा। 

Monday, July 21, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 15

आप एक ऐसे सिस्टम का हिस्सा है या उसे झेल रहे हैं, जिसके पास लाखों, करोड़ों रूपए कृत्रिम बारिश, बाढ़ या गर्मी बरसाने के लिए जैसे फालतू पड़े हुए हैं? क्यूँकि, उस सिस्टम को या वहाँ की जुआरी राजनीती को, कुर्सियाँ पाने के लिए hype घड़ने हैं? या फिर छल कपट (manipulation), कहीं कहीं तो हद से ज्यादा छल कपट वाले तथ्य पेश करने हैं? छल कपट में हकीकत को जानना पहचाना कितना आसान या मुश्किल होगा, ये इस पर निर्भर करता है, की आपको कितना ऐसे लोगों के छल कपट वाले तरीकों का पता है? 

Interactions और किस्से कहानियों से ये बड़े सही से समझ आता है। जैसे अगर दो गाड़ियों और किसी खास वक़्त या तारीख को उनकी पोजीशन की ही बात करें? उस नौटँकी को घड़ने वालों के अनुसार, वहाँ भविष्य क्या है? जीरो या ख़त्म? या इससे आगे भी कुछ बचता है? रायगढ़ दरबार में आपका स्वागत है? या रायसीना हिल्स? या? अब इस या का जवाब आपको पता होना चाहिए, जिन्हें अपना या अपने आसपास का भविष्य घड़ना है? या उसे कोई रास्ता दिखाना है? या जीरो या ख़त्म कहने वालों या घड़ने की कोशिश करने वालों पर छोड़ देना है?  

मैंने यहाँ दो तरह के लोग देखे हैं। एक जिनके बच्चे नालायक, महानालायक। वो जिन्हें कहते हैं, की मेरा बेटा तै पानी का गिलास भी खुद लेके ना पीवै, जैसे ये उनकी तारीफ हो?  बुरे से बुरे जुर्मों के रचयिता और भुक्त भोगी भी, जिन्होंने हत्या जैसे केसों तक में जेल भुक्ति हो या भुगत रहे हों। मगर फिर भी उनके तारीफ़ के पूल बाँधते मिलेंगे। ऐसे गा रहे होंगे जैसे उनका भविष्य तो बहुत उज्जवल है। 

दूसरे, ऐसे आसपास को देखते हुए जिनके बच्चे हज़ार गुना अच्छे हों, मगर उन बेचारों को कभी उनमें कोई अच्छाई नज़र ही नहीं आती? ऐसे रो रहे होंगे जैसे इनका तो भविष्य ही ख़त्म। 

ये narratives कहीं न कहीं दिशा निर्धारित करने का काम करते हैं। खासकर, जब ऐसा सुनने के आदि बच्चे, ये सब मानना शुरू कर दें। किसी भी तथ्य या छल कपट तक की घड़ाई को मान लेना या लगातार सुनते रहना दिमाग पर असर छोड़ता है। अब वो असर कितना नगण्य या ठोस है, ये उसको मानने या न मानने वाले पर निर्भर करता है। 

तो अगर आप अपने बच्चों या आसपास को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं तो उन्हें वही बोलें, जो उनके आगे बढ़ने या बढ़ाने में सहायक हो। नहीं तो जाने अंजाने आप खुद उनके जीवन का एक रोड़ा हैं। कोई भी माहौल यही काम करता है। वो या तो आगे बढ़ाता है या पीछे धकेलता है। माहौल या संगत को ऐसे ही नहीं गाते समझदार लोग। आपके ना चाहते हुए भी अगर आपके आसपास काँटे ही काँटे हों या काँटों भरे पथ पर चल रहे हैं और उनसे सुरक्षा का कोई इंतजाम आपने नहीं किया हुआ, तो काँटों का काम है चुभना और वो चुभेंगे। जैसे फूलों के पथ पर अगर नंगे पाँव भी चल दोगे, तो वो कोई दर्द नहीं देने वाले। मगर ऐसा काँटों वाले पथ पर करोगे, तो लहू लुहान हो जाओगे। हर तरह के माहौल का अपना असर होता है, जिसे वो अपने आसपास परोसे बिना नहीं रहता।  जुबाँ भी उसी में से एक है। वो कुछ नैरेटिव कहती है। और उन नैरेटिव के अपनी ही तरह के असर होते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ माहौल भी घड़ती हैं और नैरेटिव भी। उनके नंबरों के जितने ज्यादा दाँव आपके आसपास हों, वो उतना ही ज्यादा बुरा या भला घड़ती हैं। उनके बूरे प्रभावों से बचने के तरीकों में अहम है, उनको ज्यादा से ज्यादा जानना और बुरे से बचने के रस्ते निकलना।              

Climate change, Environment changes या manipulations? किनके पैसों से होता है? आपकी जानकारी या इज्जाजत के बिना, ऐसा करने वालों के खिलाफ कौन से कोर्ट हैं? हैं क्या कहीं? खासकर, किसी भी देश की सरकार या राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ? शायद अभी तक तो नहीं? होने नहीं चाहिएँ? ये आगे किसी पोस्ट में।  

ऐसे ही शायद सिंथेटिक बिमारियाँ और मौतें तक परोसने वालों के खिलाफ। नहीं?          

Sunday, July 20, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 14

 ज्यादा 5, 7 मत कर, 9, 2, 11 कर दूँगी। पढ़ा था कहीं?

और फिर ये मूवी जाने कहाँ से यूट्यूब पर आ टपकी। 

देखी थी मैंने?



पता नहीं कहाँ कैसे और किन लोगों के झगड़े, आपकी ज़िंदगी को भी लपेटते जाते हैं? होता है ऐसे, आम लोगों के साथ भी? शायद? जैसे साँड़ों के बीच में झाड़। और जाने कौन लोग या कौन, कौन आपकी ज़िंदगी की ठेकेदारी लेने लगते हैं? जिम्मेदारी और ठेकेदारी में इतना ही अंतर होता है, जितना दिन और रात में? इस लड़ाई में लगे लोगों का अहम टारगेट लड़कियाँ होती हैं? इधर भी और उधर भी? जाने कौन, किसको अपने भाई या दोस्त के लिए पसंद है और कौन, किसको कहाँ फिट करना चाहते हैं या कहीं और धकेलना चाहते हैं? कुछ लड़कियाँ वक़्त रहते इन भद्दे जालों से निकल पाती हैं। और कुछ? वक़्त के साथ, ज्यादा और ज्यादा शिकार। ऐसा क्यों? पढ़ी, लिखे और समझदार आसपास का और कम पढ़े लिखे, ज्यादातर गाँव तक सिमित आसपास का बहुत फर्क होता है? पढ़े लिखे लोग, उन लड़कियों को साथ लेकर चलते हैं। लड़कियों के निर्णयों का सम्मान करते हैं और हर कदम पर उनके साथ खड़े होते हैं। कम पढ़े लिखे, ज्यादातर गाँव तक सिमित लोगों के यहाँ इसका उल्टा होता है। वहाँ इन so called अपनों को बीच में इसलिए लिया जाता है, ताकी अपने टारगेट का सफाया आसानी से किया जा सके। तरीके जिसके हज़ारों हैं। छुपम छुपाई खेलना उसका अहम हिस्सा है। उसपे कहीं इन लोगों को कुत्तों के टुकड़ों की तरह लालच के छोटे-मोटे टुकड़े डाले जाते हैं, तो कहीं, किन्हीं तरह के दबाव या डर दिए जाते हैं। सबसे बड़ी बात, इन आसपास वालों को बीच में कब लिया जाता है? सालों, दशकों बाद, जब कोई लड़की इन कांड़ों को पब्लिक करने लगती है।            

2010 में कोई काँड होता है, जिसे ऑफिसियल भागीदारी का काँड बोलते हैं? ऑफिसियल भागीदारी? उस जगह भी, जहाँ कोई लड़की पढ़ाती है? और किन्हीं कोर्ट्स या सुप्रीम कोर्ट की भी? ये सब खुद उस लड़की को तब पता चलने लगता है, जब राजनितिक पार्टियाँ एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हुए, एक दूसरे के काँड बाहर निकालती हैं। वो लड़की जब प्रश्न करने लगती है, तो कहीं से ठोस डॉक्युमेंट्स मिलते हैं और कहीं लोग भगौडे होने लगने हैं। कुछ उन डॉक्युमेंट्स को किसी भी कीमत पर बाहर नहीं आने देना चाहते। कुछ उन डॉक्युमेंट्स को, जो पब्लिक होने चाहिए, पब्लिक करने वालों की जान के दुश्मन हो जाते हैं। 

ऐसा क्या है, उन डॉक्युमेंट्स में? हमारे समाज का, उसकी भद्दी राजनीती का और उनके बनाए सिस्टम की पोलखोल का काम हैं वो डॉक्युमेंट्स। जो कहीं न कहीं इसका ठोस सबूत हैं, की जन्म से लेकर मर्त्यु तक, कैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को जुए में धकेला हुआ है। जिसमें गोटी के जैसे, हर इंसान पर दाँव है, वो आम इंसान तक, चाहे जिसके पास ज़िंदगी को जीने के लिए आम सी सुविधाएँ तक ना हों। यही सिस्टम और राजनितिक पार्टियाँ उस आम इंसान तक को बिमारियों और मौतों तक धकेल रहा है। आपके भगवानों के जैसे कह रहा हो जैसे, चलो अगला नंबर तुम्हारा। क्यूँकि, तरह तरह के भगवान भी यही राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी बड़ी कम्पनियाँ घड रही है।  

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 13

कोई और किस्सा कहानी बाद में। 

मगर उससे पहले, थोड़ा बुजर्गों के हालातों पर बात हो जाए?

कुछ तो मजबूरियाँ होंगी की उम्र के इस पड़ाव पर बच्चे उन माँ बाप को अकेला अपने हाल पर छोड़ देते हैं, जिनकी उँगलियाँ पकड़कर वो चलना सीखते हैं? कुछ केसों में तो कई बार यकीन तक करना मुश्किल होता है की वो? वो तो ऐसा नहीं कर सकते। 

बहुतों के पास शायद गाँवों में अपने घर होते हैं और वो शहरों में अपने ही बच्चों के घरों में बेघर से रहने की बजाय, शायद अपने ही घर में वापस आना पसंद करते हैं? वजह जो कोई भी हों, इस उम्र में तो कम से कम, कोई न कोई सुप्पोर्ट सिस्टम तो चाहिए। इस उम्र में एक तो शरीर साथ नहीं देता, तो छोटी मोटी सी बिमारियाँ तो जैसे लगी ही रहती हैं। उसपे अक्सर हमारे यहाँ बुजर्गों के पास कोई व्हीकल भी नहीं होता। तो बहुत मुश्किल है क्या की सिविल हॉस्पिटल से कोई डॉक्टर ऐसे लोगों के घरों पर विजिट कर जाएँ? हफ्ते में, दो हफ्ते में या महीने में ही सही? जिन्हें ज्यादा दिक़्क़त हो, उनके लिए कोई फ्री एम्बुलेंस सर्विस? हरियाणा जैसा राज्य तो फिर इतना गरीब भी नहीं की सरकार के लिए इतना सा करना बहुत मुश्किल हो? हाँ, कुछ बुजुर्ग गाँवों में खासकर, इतने गरीब हो सकते हैं की उन्हें अगर इतनी सी भी सुविधाएँ मिल जाएँ, तो उनकी ज़िंदगी का ये सफ़र थोड़ा कम मुश्किल हो सकता है।               

Saturday, July 19, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 12

 18-07-2025

चलो कोई सीन घड़ते हैं 

नहीं 

उससे पहले थोड़ा ऑनलाइन इंटरेक्शन्स की तरफ देखते हैं 

आपको कोई हकीकत की ज़िंदगी का सीन देखकर, जाने क्यों किसी गाने के कोई बोल याद आते हैं, खम्बे जैसी खड़ी है, लड़की है या छड़ी है? कौन-सा गाना है ये? अजीब-सा है शायद कोई काफी पुराना, यही सोचते-सोचते आप youtube खोलते हैं। और जाने क्यों किसी और ही विडियो पर आपकी निगाह टिक जाती हैं। पहले ये देखते हैं, क्या बला है?     



The Odyssey 2026

Release date 17 July, 2026

मुझे ढिशूम-ढिशूम या ज्यादा हिंसा वाली मूवी पसंद नहीं आती। तो क्या बकवास है ये? पानी, आग, पथ्थर, अजीबोगरीब हथियार और मारकाट? छोड़ो। 

चलो कोई सीन घड़ते हैं 

एक तरफ काली थार HR 000 और 4 नंबर पे? चलो रख लो कोई खास नंबर। एक बुजुर्ग औरत के घर के बाहर खड़ी है। और उसमें कोई नौजवान बैठा है। शायद किसी का इंतजार कर रहा है। गाडी के आगे कोई बिजली का खम्बा है और साथ वाले घर की खिड़कियाँ एक साइड। 

दूसरी तरफ एक और गाडी खड़ी है। डिफेंस का या शायद हरा सा रंग DL 9C? फिर से एक बुजुर्ग के घर के बाहर। हालाँकि उतनी बुजुर्ग नहीं, जितनी दूसरी बुजुर्ग औरत। इसमें कोई नहीं है। मगर, इसके आगे भी एक बिजली का खम्बा है।  

दोनों औरतें अपने-अपने घरों पे अकेली रहती हैं। क्यों?

जो थोड़े ज्यादा बुजुर्ग हैं, उनके 5 बच्चे हैं। एक लड़की, सबसे छोटी शायद। और चार लड़के। सब आसपास के शहरों में ही रहते हैं। मगर कभी-कभार सिर्फ लड़की ही आती है शायद, उनसे मिलने। एक आध बार शायद उनका एक लड़का भी।    

दूसरी बुजुर्ग औरत का एक ही लड़का था। वो शायद से बुखार बिगड़ने की वजह से नहीं रहा, काफी साल पहले। इन दोनों गाड़ियों के बीच में दो घर हैं। एक रोड पर ही। और दूसरे घर की गली जाती है अंदर की तरफ। इसी रोड वाले घर के पीछे है वो घर। एक लड़की इन गाड़ियों को बड़े ध्यान से निहारते हुए घर के अन्दर जाती है। थोड़ी-थोड़ी बारिश आ रही है, जो जल्दी ही तेज हो जाती है। और ऐसे लग रहा है, जैसे, किसी हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा हो रही हो। जैसे पिछे दुबई की आर्टिफीसियल बारिश। एक आध मिनट बाद ही अंदर से बाहर कुछ लोग आते हैं। एक, काली थार में बैठ कर चले जाते हैं। और एक उस हरी-सी गाडी में। बाकी वापस घर के अंदर। 

ऐसे लग रहा था, जैसे, एक तरफ उन बुजुर्गों ने गाड़ियों को बाहर कर दिया हो? और दूसरी तरफ? गाड़ियों वालों ने या राजनितिक सिस्टम ने उन बुजुर्गों को अकेला? एक के तो कोई बच्चा नहीं है। मगर, जिनके चार-चार लड़के हों, वहाँ क्या कहा जाए?    

हर किसी की ज़िंदगी में शायद अपनी ही किस्म के झमेले हैं। तो अपने ही माँ या बाप के लिए वक़्त कहाँ होगा? या हो भी तो शायद, पीढ़ियों की दूरी होगी? Generation Gap? या शायद हर घर की अपनी ही कहानी है। मगर ये कहानियाँ जाने क्यों, ऊपर से तो किसी सिस्टम के कोढ़ में रची बसी सी लगती हैं? या सब Random है?

ओह ! भूल ही गई। सालों बाद किसी को उस घर पर देखा। या शायद उस घर के 2 हिस्से होने के बाद, पहली बार? ऐसे कैसे? जिससे मिलने आना था, उसके तो आते ही चल दिए? क्यूँकि, जवाब नहीं हैं, उसके सवालों के? पिछले कुछ सालों के हादसे कह रहे हैं, की जहाँ कहीं मुझसे छुपम-छुपाई या मुझे बाहर रख उस घर में कोई अहम फैसला हुआ है, तभी काँड हुए हैं। 

तुम्हे क्या लगता है, तुम मेरे बैगर उस ज़मीन का फैसला कर सकते हो? ये कोर्ट्स के लिए। ऐसे कोर्ट्स, जिन्होंने लड़कियों को महज़ प्रॉपर्टी बना कर मरने के लिए छोड़ है। पढ़ी लिखी यूनिवर्सिटी में नौकरी करने वाली वयस्क लड़कियों के एकाउंट्स तक कोई और ही, उनकी मर्जी के बिना, नही, विरोध के बावजूद कहना चाहिए, अपने ही हिसाब-किताब की सुविधा अनुसार ईधर-उधर कर रहे हैं ? अरे, सिर्फ लड़कियों के ही नहीं। लड़कों के भी, अगर वो किसी भी तरह से कमजोर पड़ रहे हैं। लूटो, खसूटो और चलता कर दो दुनियाँ से? बहाने तुम्हारे जैसे आदमखोरों के पास हज़ारों हैं। अब ये भी आप में से ही कुछ बताते हैं, वो भी अजीबोगरीब साक्ष्यों के साथ?

चलो, थोड़ा और समझने के लिए कोई और, हकीकत की दुनियाँ की कहानी सुनते हैं।