खेल ही खेल में?
क्या है ये खेल?
वो, जो हम जीते हैं दिन-प्रतिदिन?
वो, जो हम सुनते हैं, देखते हैं
या अनुभव करते हैं दिन-प्रतिदिन?
जो चमकने लगे सूरज
आग का गोला जैसे,
और बरसाने लगे आग?
खेल ही खेल में?
या देखते ही देखते,
बादल उमड़ने-घुमड़ने लगें
इधर से उधर चलने लगें
रुई के फाए से जैसे उच्छलने लगें
रात के अँधेरे में
पहाड़ों पर नहीं,
बल्की, आपके सिर के ऊप्पर
मैदानी इलाकों में?
21.8.2024
या रजिस्ट्री वाले खास ऑफिस के
24 AC वाले वेटिंग रुम में,
14 नम्बरी वाले, खास फोन चार्ज पर?
बैठे-बिठाए अगर,
सिर्फ उस जगह के आसपास
झमाझम बरसने लग जाए अगर?
कुछ खास वक़्त के लिए?
इन खास ऑफिसों के बीचों-बीच
खास फाइबर वाली?
उस कवरिंग पर पटर-पटर, ऐसे, जैसे
Go Gators के CJC वाला कवर जैसे?
या Go Gators song जैसे?
दिगज्जों की लड़ाईयों बीच,
पिसती कोई नन्हीं-सी जान जैसे?
दुनियाँ भर में हो रहे इन, खास इलेक्शन को
और इस खास सिस्टम को,
जनता को कोई दिखाए या समझाय तो भला कैसे?
की आप किस युग में हैं?
एक ऐसा जहाँ
जहाँ, ज़िंदगी की धूप पे, छाँव पे
बारिश पे, छोटे-मोटे भूकम्पों और आँधियों पे
इंसान के अंदर-बाहर के बदलावों पे
बिमारियों पे, मौतों पे, पैदाइशों पे
और उनके होने के वक़्त पर भी
कब्ज़ा,
ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का है।
खाकी स्लीप पे, वो लूटी-पीटी सफेद शर्ट?
उसपे वो खास पुलिसिया कार्गो?
कोई डेढ़ दशक पुरानी।
बालों पे, हाथों पे, लिए खास स्टीकर
ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी के एब्यूज के
एक पे जैसे छाप दिया हो, मेहरबानियाँ ॐ की?
या दूजे पे, कोई blotting bands जैसे?
और बाल, देखते ही देखते
ढलने लगें हो किसी, विटिलिगो-सी सफेदी में?
या चाँदनी-सी शीतल, चाँदी में जैसे?
Thank You MDU?
या Thank You UF?
या Thank You मीडिया?
या Thank You वो आम आदमी
जिसे इन सबमें घसीटती हैं ये पार्टियाँ?
ज्यादातर उसकी जानकारी के बिना?
कितना कुछ बताने, दिखाने और समझाने के लिए?
या Thank You, सिविल, डिफ़ेन्स?
और खास-म-खास,
इधर-उधर की पार्टियों के सामुहिक जामी-अमले?
दुनियाँ को ये सब दिखाने, बताने या सुनाने के लिए,
और उसका माध्यम, मुझे चुनने के लिए?
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