मनीष सिंह?
नहीं, मनीष सिसोदिआ, MLA, आम आदमी पार्टी
इंटरव्यू और
ये TV9 पे 5 Editors कौन हैं?
वैसे, ये इंटरव्यू इंटरेस्टिंग है।
शायद ये ED iting है?
क्या केजरीवाल .. ?
What kind of techniques editors apply while editing?
Anything and Everything under the sun?
सारा खेल और शायद सारी राजनीती यही है?
मेरा इस वाली एडिटिंग से खास परिचय कब हुआ? जाने क्यों मैंने अपनी केस स्टडी बुक, Kidnapped by Police, कहीं editing के लिए दे दी। किसी Micheal ने वो edit की। जब edited version पढ़ा तो लगा, बिना edited वाली ही सही है। क्या खास था edited version में? कहीं-कहीं आपने जो लिखा, उसका मतलब ही बदल देना। जैसे आप कहें police did so and so और edited version कहे, "police helped me"। यूँ लगा ये तो किसी पुलिस वाले के पास ही पहुँच गई लगता है :)
धीरे-धीरे editing के इतने प्रकार समझ आते हैं, की बस पूछो ही मत। और इस editing में सिर्फ पुलिस शामिल नहीं है। नेता, अभिनेता से लेकर, सिविल, डिफ़ेन्स में दुनियाँ जहाँ के पास ये महारत हासिल है। जितनी तरह के narratives और जितनी भी तरह की प्रेजेंटेशन संभव हैं, समझो, उतनी ही तरह की editing संभव है, इंसान की और सब जीवों की। जैसे police helped me वाला narrative पढ़ने वाले ने मान लिया, तो समझो इंसान के सॉफ्टवेयर (दिमाग) की कोई editing हो गई। ऐसी-ऐसी तो कितनी ही editing हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में होती हैं। कितना कुछ हम ऐसा सुनते या पढ़ते हैं, जिसकी हकीकत का अता-पता तक नहीं होता। और वो हमारे दिमाग में कहीं ना कहीं सैट भी हो जाता है। पढ़े लिखे फिर भी शायद खुद पर थोड़ा विश्वास ज्यादा रखते हैं और सुने सुनाए या देखे तक पर प्रश्नचिन्ह ज्यादा। कम पढ़े-लिखे या बच्चे या पढ़े-लिखे मगर, किसी खास विषय पे अंजान-अज्ञान लोग, जल्दी एडिट होते हैं शायद। इसीलिए जानकारी वो भी सही जानकारी, ज्यादा जरुरी होती है। जहाँ कही जितनी ज्यादा छुपम-छुपाई होती है, मार भी वहाँ उतनी ही ज्यादा होती है।
जैसे not की जगह now, except की जगह accept, एक शब्द की जगह, कई-कई repeated sentences या words या spelling errors तक हमारी जानकारी के बिना भी बदल जाते हैं। डिपेंड करता है, ऐसे-ऐसे एडिटर्स आपको क्या और क्यों प्रेजेंट करना चाहते हैं? ऑनलाइन जहाँ में तो जैसे इसकी भरमार है। वैसे ही, ऑफलाइन लैपटॉप्स या PCs के डाक्यूमेंट्स भी कहाँ सेफ होते हैं। Mutations में जैसे होता है। Cut, copy, paste, remove, delete, replace वैगरह। ऑनलाइन या सिर्फ डाक्यूमेंट्स तक होता है, तो सिर्फ प्रोफ़ेशनल जोन पे असर पड़ता है। मगर ऐसा ही कुछ, जब हकीकत की जिंदगियों के साथ होता है तो? बच्चे exams से भागने लगते हैं, डरने लगते हैं या खामखाँ के प्रेशर लेने लगते हैं। और कहीं ना कहीं पिछड़ने लगते हैं। चिड़चिड़े होने लगते हैं, चीखने-चिल्लाने या झगड़ने लगते हैं। ऐसा करने वाले, ऐसी स्टेज पर इन बच्चों को पढ़ाई से दूसरी तरफ डाइवर्ट करने लगते हैं। और ऐसे घड़ते हैं, वो समाज में parallel घढ़ाईयाँ अपने मुताबिक। उन ज़िंदगियों से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। ये है राजनीती और सिस्टम की सोशल मीडिया कल्चर लैब। जितना इसे पढोगे, देखोगे या समझोगे, उतना ही यूँ लगेगा, हम कबसे इस मानव रोबोट्स की घड़ाईयों वाले जहाँ में हैं? जो बच्चों तक को नहीं बक्स रहा?
तो इस Editing वाले जहाँ को समझना बहुत जरुरी है। इससे भी आगे ये जहाँ, जीवों के हुलिए भी बदलता है। अपने राजनीतिक किरदारों की घड़ी हुई हूबहू कॉपियाँ बनाने के लिए। राजनीतीक सिस्टम और बिमारियों की समझ के लिए बहुत अहम है वो। ये सब मुझे शुरू-शुरू में कुछ मीडिया से या पढ़े-लिखे कुछ राजनेताओं के प्रोफाइल से समझने को मिला। तो बाद में सामाजिक केस स्टडीज़ से।
एडिटिंग वाले या कहो मानव रोबॉट्स फैक्टरी वाले इस जहाँ को जानने-समझने के लिए पढ़े-लिखे नेताओं को खासकर सुनना चाहिए और जानने समझने की कोशिश करनी चाहिए। इसी कड़ी में एक ये इंटरव्यू। आगे हो सकता है, ऐसी-ऐसी और भी पोस्ट हों।
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