आदमी, पैसा, संसाधन तुम्हारे हैं।
उनका प्रयोग या दुरुपयोग, वो कर रहे हैं या करवा रहे हैं।
वो कौन और क्यों?
क्यूँकि, तुम भेझे से पैदल हो।
जैसे एक बहुत ही छोटा-सा उदहारण
मेरे पास IFB की छोटे-साइज की ऑटोमैटिक मशीन थी, जब मैं H#16 में रहती थी। मगर वो जब देखो तब, खराब हो जाती। उस वक़्त इतनी समझ नहीं थी की ये सब छोटी-छोटी सी समस्याएँ, आसपास का ही क्रिएशन होती हैं। वहाँ पानी बहुत खराब आता था। तो कई बार तो फ़िल्टर ही रुक जाते थे। एक-आध बार शायद, बिजली की वजह से। कुछ साल बाद, मैंने उसे गाँव वाले घर रखवा दिया। यहाँ भाभी के पास अपनी थी। माँ और दूसरे भाई को चाहिए नहीं थी। या कहना चाहिए की चाहिए तो थी, मगर समस्या क्या थी वो जब यहाँ रहने लगी, तब समझ आई। मेरे गाँव आने के बाद भी वो ऐसे ही पड़ी थी। मैंने ऑटोमैटिक को घर भेजने के बाद सेमीऑटोमैटिक खरीद ली थी। तो यहाँ भी वही प्रयोग हो रही है। ऑटोमैटिक दूसरे भाई को दे दी। उसके पास जाने के बाद, उसमें छोटी-मोटी तोड़फोड़ हुई। कुछ ऐसी तोड़फोड़, जो बिना किए नहीं हो सकती। खैर। वो कुछ दिन चली।
फिर एक दिन भाई ने बोला, की उसका डोर नहीं खुल रहा और छह जींस उसके अंदर ही पड़ी हैं।
और मैंने बोला, पड़ी रहने दे। पता नहीं क्यों मुझे गुस्सा आ रहा था।
एक-दो बार, उसने फिर से बोला।
मुझे लगा इतनी तरह के जुगाड़ू हैं उसके आसपास, फिर एक वॉशिंग मशीन का दरवाज़ा क्या बला है?
काफी दिनों बाद कल मैं घूमने गई उधर। और वॉशिंग के हाल देखकर लगा, लोगबाग इन जैसों का कितना फद्दू काट सकते हैं? कपड़े तो उसमें नहीं थे। मगर पानी भरा था। और उसका दरवाजे का लॉक थोड़ा टूटा हुआ, मगर खुल अब भी नहीं रहा था। मैंने उसे थोड़ा बाहर की तरफ कर पानी निकालने की कोशिश की, तो काफी हद तक निकल तो गया। मगर, देखते ही देखते फिर से भर गया। फिर निकाला, तो फिर निकल गया और फिर भर गया। पाइप की साइड देखा, तो पाइप भी टूटी-सी लग रही थी। मगर, फिर से जुगाड़ कर जोड़ी हुई जैसे। वाटर स्टॉपर ऑफ नहीं था, उसे ऑफ कर दिया। तो पानी तो बंद हो गया। मगर उस वॉशिंग को अब थोड़ी-सी सर्विस चाहिए शायद। छोटी-छोटी सी प्रॉब्लम? होती रहती हैं, क्या खास है? ये सर्विस वो नहीं करवा सकते क्या, जिनके पास उसकी बैंक की कॉपी है? या उस कॉपी में कुछ बचा ही नहीं हुआ? समझ आया आपको?
ये वही भाई है, जो पीता है। उसकी वो थोड़ी-सी ज़मीन लेने वालों ने रुंगा जैसे कुछ दिया हुआ है उसे, उस ज़मीन के बदले। ज़मीन हड़पने के तरीके? और उसकी बैंक कॉपी कहीं पढ़ा, कभी यहाँ, तो कभी वहाँ होती है। जिनके पास होती है, वही उसमें से थोड़ा-बहुत, कभी-कभार दे देते हैं। मानो बैंक कॉपी ना होकर, कोई ऑफिस फाइल हो जैसे?
कुछ-कुछ ऐसे जैसे, मेरी यूनिवर्सिटी सेविंग पे अभी तक ताला जैसे? 3-साल Resignation acceptance के बावजूद। देने से मना किसी ने नहीं किया। मगर दे भी नहीं रहे। यही नहीं, उसमें कितने पैसे हैं। उनका हिसाब-किताब, राजनीती और बाजार के हिसाब से कैसे बदल रहा है, वो सब भी खबर मिल जाती हैं। मगर ताला है। यहाँ कुछ जुगाड़ किए बिना, बाहर कहीं आपको जाने की जल्दी नहीं। क्यूँकि यहाँ वाले, कुछ अपने-परायों के लालच के जबड़े में हैं जैसे। सबको हज़म करने के चक्कर में जैसे। और जब जरुरत के वक़्त ही आपके पैसे ना मिलें, तो उनके होने या ना होने का या वक़्त के साथ बढ़ने का भी क्या फायदा?
खास है ड्रामा। राजनीतिक पार्टियाँ लोगों से ऐसे-ऐसे ड्रामे करवाती हैं, जिनमें सामान ही नहीं टूटता-फूटता। ज़मीन ही नहीं ईधर-उधर होती, या हड़पने की कोशिशें होती। कुछ-कुछ वैसा ही, आदमियों के साथ भी होता है। जो कहीं ज्यादा खतरनाक है। क्यूँकि, इन ड्रामों के रुप में ही, ना सिर्फ आदमी टूटते-फूटते हैं। बिमार होते हैं। बल्की, दुनियाँ से ही उठा तक दिए जाते हैं। उससे भी अहम, ज्यादातर जिनसे ये ड्रामे करवाए जाते हैं, उनकी जानकारी के होते हुए या बिना जानकारी के। ऐसा कुछ या तो वो खुद ही भुगतते हैं। या उनके खास अपने। या खुद भी और आसपास भी। चोट जब लगती है, तो सिर्फ आपको नहीं लगती, कहीं और भी लगती है। बीमार अगर होते हैं, तो सिर्फ आप नहीं होते, कोई और भी होता है। या कहना चाहिए की होते हैं। किसी जॉब या घर से निकलते हैं, तो सिर्फ आप नहीं निकलते, और भी भुगतते हैं। लड़ाई-झगड़े अगर होते हैं, तो सिर्फ आपके साथ नहीं होते, औरों के साथ भी होते हैं। सब जैसे मोहरे हैं। और सबपे जैसे कोई ना कोई, किसी ना किसी किस्म की मोहर ठुकती है। टैग या स्टीकर्स लगते हैं। और भी खास, उसमें सिर्फ आदमी नहीं होते, बाकी सब जीव और निर्जीव भी होते हैं। और अगर आप इतना सब जानने-समझने के बावजूद नहीं संभलते, तो नुक्सान बहुत जगह होते हैं।
ये मशीन कौन है? किस आदमी का स्वरुप घड़ दिया गया है ये? खुद जिसके पास है वो? या उसके आसपास कोई? निर्भर करता है, की कौन पार्टी करवा रही है ये? और उस पार्टी की राजनीतिक नौटंकी का वो किरदार कौन है? आदमी है? पुरुष है? LGBT या ट्रांसजेंडर घड़ दिया गया है? या कुछ और ही तरह का मिक्सचर? तो जब भी आप कहीं कोई तोड़फोड़ कर रहे हैं या गड़बड़ घौटाला कर रहे हैं। ऐसा-सा ही कुछ या शायद उससे भी बुरा, कहीं दूसरी पार्टी, आपके किसी अपने के साथ तो नहीं घड़ रही? ये जंग आमने-सामने तोड़फोड़ या मार-पिटाई की कम, छुपे हुए गुर्रिल्ला युद्धों-सी ज्यादा है। जिसमें टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।
रितू भाभी का केस ऐसा ही है। अभी इसी महीने जिस लड़की की मौत हुई, वो भी ऐसा ही है। और पिछले महीने दादी की मौत भी। सब अड़ोस-पड़ोस या कुनबा ही। मगर एक ही घर या कुनबा या गली-मौहल्ला होते हुए भी, स्टीकर अलग-अलग पार्टियों के जैसे। ये इधर से उठा या उठी और वो उधर से। जितना मुझे समझ आया है, संसार भर में ऐसे ही चल रहा है। और ये सब मौतों या बिमारियों तक ही सिमित नहीं है। बल्की, रिस्ते-नाते, शादी-ब्याह, लिखाई-पढ़ाई, नौकरी या व्यवसाय सब पर लागू होता है।
एक के साथ अच्छा होता है, तो वो भी सिर्फ एक के साथ नहीं होता। यहाँ-वहाँ बहुत जगह होता है। तो आपको बुरा करने या करवाने वालों के साथ चलना है या अच्छा करवाने वालों के साथ? इन दोनों में गतवाड़े और किताबवाड़े जैसा-सा ही फर्क है। थोड़ा और जानने की कौशिश करते हैं आगे।
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