Alteration?
या
Alterations?
या Manipulations better word I guess?
ऐसे ही जैसे
Alter Ego?
या
Alter Egos?
ये alterations या manipulations जाने क्यों समाज के ऊप्पर वाले तबके से लेकर, आखिरी तबके तक जैसे मिलती-जुलती सी लगती हैं। उस ऊप्पर वाले तबके के पास इन सबसे निपटने के लिए सँसाधन हैं, तो उन्हें उतनी मुश्किल नहीं होती, जितनी जितना समाज के नीचे वाले तबकों को। इसीलिए वहाँ सिर्फ फाइल-फाइल चलता है या कहानियों तक के हादसे रहते हैं। मगर नीचे वाले तबकों में ज़िंदगियाँ ही खल्लास हो जाती हैं।
चलो कुछ एक alter egos के उदाहरण लें? कुछ पैदाईशी ऊप्पर के तबके के लोग। कुछ अपनी मेहनत के दम पर बढ़े हुए। तो कुछ? शायद, कहीं किसी स्तर से आगे बढ़ने से पहले ही खत्म कर दिए गए। हालातों ने? इन सबके बीच में भी कितनी ही तरह के उदाहरण हो सकते हैं।
राजनीती
राहुल गाँधी
पोलिटिकल अफेयर्स या राजनेताओं की पर्सनल ज़िंदगी से सम्बंधित अफवाहें तक, क्या आम लोगों की ज़िंदगियों को भी प्रभावित कर सकते हैं? या कर रहे हैं? अगर हाँ, तो कैसे?
वैसे तो किसी की भी पर्सनल ज़िंदगी को नोंचना-खरोचना शायद किसी सभ्य इंसान का तो काम नहीं हो सकता। मगर मुद्दा अगर आम लोगों से सम्बंधित बिमारियों और मौतों तक को जानना या समझना हो, तो शायद जरुरी हो जाता है। कितना सच और कितना झूठ? ये तो कहना मुश्किल है?
गूगल की गूगली क्या कहती है?
थोड़े अलग शब्दों के हेरफेर में कुछ एक मूवीज भी दी सर्च रिजल्ट्स में गूगल बाबा ने।
Veroni ka Decides to Die 2009
Veroni ca 2017
Veroni ka 2021
वैसे मैंने ये नाम या ऐसा-सा कुछ किसके प्रोफाइल पे पढ़ा था? मनीष सिंह?
और आजकल अफवाहें या? उस लड़की की सुरत कहीं मिलती है?
कोई लेना-देना? या मीडिया creations?
और ये कुछ स्पैम?
खामखाँ तोड़जोड़ जैसे? कहीं का पथ्थर, कहीं का रोड़ा, भानूमती ने कुनबा जोड़ा जैसे, वाली बात?
या हकीकत? क्यूँकि 31-जुलाई के बाद से वो स्पैम नहीं आई। कोई खास वजह?
विनेश फौगाट
वैसे तो मैं ना राजनीती और ना ही खेलों के आसपास। मगर इस केस ने जरुर थोड़ा ध्यान अपनी तरफ खिंचा। क्या था ये?
छोटा सा किस्सा: जब मुझे ऐसे, वैसे, कैसे भी केसों की ना कोई समझ थी, और ना ही अता-पता। यूनिवर्सिटी एलुमनी मीट थी। और किन्हीं अवॉर्ड्स के विजेताओं के नाम देखकर समझ ही नहीं आया की हमारे प्रोफ़ कितने पार्शियल हो सकते हैं? लाइफ साइंसेज से एक ऐसा ही नाम देखकर, पता नहीं कितने ही सीनियर्स और बैचमेटस और जूनियर्स ही नहीं, बल्की स्टूडेंट्स तक के नाम गिना दिए थे उस वक़्त, जिसको अवॉर्ड दिया जा रहा था उससे बेहतर।
वक़्त के साथ समझ आया की अवॉर्ड्स कैसे मिलते हैं। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे कुर्सियाँ, नौकरियाँ या रिसर्च पेपर्स और संस्थाओँ या जर्नल्स की ग्रेडिंग तक। ऐसा नहीं है की उनमें कुछ नहीं होता। बल्की कहना चाहिए की उन अवॉर्ड्स के लायक खासकर होता है, शायद? अब आपको कोढ़ ना पता हो तो क्या? कोढ़ का मतलब ही गड़बड़ घौटाले? हद तो तब हो गई, जब किसी इंस्पेक्शन के दौरान, मैं भी यूनिवर्सिटी के कुछ टीचर्स के साथ किसी लैब में थी और एक सर ने कुछ हिंट दिया। मानो कह रहे हों, ये पेपर नम्बर्स और प्रॉजेक्ट्स कुछ कह रहे हैं।
उससे भी खास, अभी कुछ एक साल पहले, "पता चला, अभी तक पेपर क्यों नहीं पब्लिश हुए? अब हो जाएँगे। "
अब? चाहिएँ क्या मुझे? वैसे ही, जैसे तब चाहिएँ थे?
वैसे silver मैडल का मतलब शायद यही है -- हनुमान गद्दा?
और 100 g wt?
छोरी बाल त छोटे करवा लिए मैडल के चक्कर मैं, इब थोड़ा सेहत का भी ध्यान राखिये।
बीमारी का प्रतीक बताए ये। ना त घर की खेती है, फेर बढ़ा लिए।
"EDITING" या हूबहू बनाने की कोशिशों में हुलिया भी बदलने की कोशिशें होती हैं। बहाने और तरीके कितने भी हो सकते हैं।
इससे नीचे वाले तबकों के लिए बस इतना ही, जब तक अपने आज के हालातों से आगे निकलने लायक नहीं बनोगे, ऐसे ही गाजर-मूली से लूटते-कूटते और खत्म होते रहोगे। इंसान कम से कम, इतना काबिल तो होना ही चाहिए की कुछ भी हो जाए, तो भी, उस स्थिति से बाहर निकलने लायक बचा रहे। ज़िंदगी यही है। और शायद कुछ उन्हें निकालने वाले भी चाहिएँ ?
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