आदमी, पैसा, संसाधन तुम्हारे हैं।
उनका प्रयोग या दुरुपयोग, वो कर रहे हैं या करवा रहे हैं।
वो कौन और क्यों?
क्यूँकि, तुम भेझे से पैदल हो।
जैसे एक बहुत ही छोटा-सा उदहारण
ये मशीन कौन है? Show, Don't Tell?
जो मुझे समझ आया
जो कुछ भी कहीं टूटफूट रहा है, वो सिर्फ मशीन या कोई निर्जीव सामान नहीं है। कहीं ना कहीं कोई जीव है और शायद इंसान है। अगर टूटफूट के बाद ठीक हो रहा है तो सही। नहीं तो जानने की जरुरत है, की ये अदृशय घात कहाँ है? अगर पता चलता है तो सही, आप उसे ठीक करने की दिशा में कदम उठा सकते हैं। अगर नहीं पता चलता तो?
इस या उस पार्टी की खास Alter Egos को समझने की कोशिश करें? Alter Egos मतलब? Alteration या प्रतिबिम्ब जैसे या मुखौटा जैसे या किसी के बारे में अपनी ही तरह की घड़ाई? जो उस इंसान जैसी-सी भी हो सकती है और उससे बहुत दूर या एकदम विपरीत भी। जैसे कोई पार्टी किसी का मुखौटा बनाए और वो कहे, ये उसका मुखौटा है। जैसे वैक्स म्यूजियम में नेताओं या अभिनेताओं के मुखौटे।
या फिर कोई पार्टी, कोई खास तरह का मुखौटा तैयार करे किसी के लिए, अपनी सतरंज की चालों में गोटी चलने के लिए। तो? वो चाल है। आप नहीं है। या वो इंसान नहीं है, जिसके बारे में वो बोल रहे हैं। यहाँ वो उसे मात्र एक मोहरा बना खेलेंगे। और अपनी राजनीती की रोटियाँ सेकेंगे। वो उस इंसान को अपने अनुसार alter करने की कोशिश कर रहे हैं। ठीक ऐसे जैसे, टेलर कपड़ों को alter करता है। मगर ये महज़ कपड़ों की alteration नहीं है। ये अल्टरेशन इंसान के सॉफ्टवेयर की अल्टरेशन के साथ शुरू होती है। इंसान का सॉफ्टवेयर, मतलब दिमाग। सारा खेल ही दिमागी है। सॉफ्टवेयर के साथ-साथ हार्डवेयर में अल्टरेशन शुरू कर देते हैं या हो जाती है। सोशल कल्चर मीडिया लैब यही है। सोशल इंजीनियरिंग का अहम हिस्सा। बिमारियों, मौतों और रिश्तों की तोड़फोड़ में इसकी अहम भुमिका है।
अब अगर आप पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं या नौकरी कर रहे हैं तो चीज़ें उन्हीं सब के आसपास घूमेंगी। मगर, अगर आप छोटी-मोटी खेती या मजदूरी कर रहे हैं। या और कोई छोटा-मोटा काम शायद। या ये सब भी ना करके कुछ भी नहीं कर रहे? तो?
एक उदहारण लेते हैं
मान लो मैंने अपने भाई को कुछ कपड़े दिलवाए। वो लेकर घर आ गया। जब आप घर आए तो देखा उसने अब भी फटे-पुराने से या जो आपने दिलवाए थे, उससे कहीं भद्दे कपड़े डाले हुए हैं। आप कई बार ऐसा ही होते हुए देखते हैं। और एक दिन, ऐसे ही पूछ लेते हैं की तेरे पास कपड़े नहीं हैं? ये गंदे से कहाँ से उठाए हुए हैं? जवाब मिलेगा। ये इसके पास, वो उसके पास। या हमने एक-दूसरे से बदल लिए। या तुझे पता ही नहीं कपड़े कहाँ से खरीदते हैं। खामखाँ के ब्रांडों के चक्कर में लूटती रहती है। इतने में तो मैं दिल्ली के फलाना-धमकाना मार्केट से ये-ये ले आऊँ। और पैसे भी बचा लाऊँ।
और आप सोचें, क्या अज़ीब प्राणी है। जब ऐसे ही, इतने से पैसे बचाने का शौक है, तो मेरे क्यों खर्च करवाता है? थोड़े से पैसे ले जाया कर और यही थेक्ली से चीथड़े लाया कर। या शायद वो सही भी कह रहा हो। मगर उसके लिए दिल्ली भी क्यों जाना? उससे कहीं बेहतर और कहीं सस्ते रोहतक के किला रोड़ मिल जाएँगे। बात सिर्फ ब्रांडों की नहीं या आपस में कपड़े बदलने तक भी नहीं। यहाँ और ही तरह की हेराफेरी हो रही थी। ये वो रॉबिनहुड नहीं था, जो अमीरों से लूटकर गरीबों को दे रहा था। बल्की, यहाँ तो कोई अमीर था ही नहीं। ये गरीब और बदलने वाले? शायद थोड़े से ज्यादा ठीक-ठाक या और भी गरीब। बात इस वाली अदला बदली की थी ही नहीं।
इसी दौरान ईधर-उधर काफी कुछ पढ़ने को मिलता है। उसके साथ-साथ कुछ खास तरह के ड्रामे भी। तब तक ये अलग-अलग पार्टियों का alter ego घड़ने वाला concept आसपास भी नहीं पता था। Alter Ego बहुत जबरदस्त घुमाऊ-फिराऊ धँधा है। Alter Ego जैसे तेरी हेकड़ी निकाल दूँगा। या तेरा अस्तित्व ही मिटा दूँगा। या तुझे जिस पर फक्र है, वो ego है, मैं उसको ही तहस-नहश कर दूँगा। राजनीती के इन खास creations को जानने समझने के लिए बहुत कुछ जानना जरुरी है।
जैसे?
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