आप जो कुछ भी देख, सुन या समझ सकते हैं, उस सबमें ज्ञान-विज्ञान है। कोई न कोई तर्क है, सिद्धांत है। उस तर्क या सिद्धांत के अनुसार, अगर आप टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके, किसी भी तरह का फायदा ले सकते हैं, तो वो सफलता है। अगर नहीं तो असफलता है। यही ना? नहीं, ये आपकी मंशा पर निर्भर करता है। उस जानकारी या ज्ञान-विज्ञान के अनुसार, अगर आप अच्छा करना चाहते हैं, तो अच्छा हो जाएगा। और बुरा करना चाहते हैं, तो बुरा। खासकर, अगर आपको कोई रोकने वाला नहीं है तो। या आप ज्यादा ताकतवर हैं तो। बड़े-बड़े उदाहरणों की बजाय, आम आदमी की रोजमर्रा की ज़िंदगी से ही कुछ उदाहरण लेते हैं।
जैसे खाना बनाना, पेड़-पौधों की खेती करना, कपड़े बुनना या सिलना, घर बनाना, जूते-चप्पल बनाना, शहद की खेती या व्यवसाय करना, बिमारियों को होने से रोकना, होने पर जानना-समझना और ईलाज करना। ये सब तो इंसान कब से कर रहा है? सदियों पुराने काम हैं। वक़्त के साथ, इन सबके बारे में जैसे-जैसे जानकारी बढ़ती गई, वैसे-वैसे उदपादन, और सुख-सुविधाएँ भी। और उसी के साथ-साथ बीमारियाँ और विपदाएँ भी। जानकारी के साथ ही दोनों का लेना-देना है। एक तरफ उत्पादन, तो दूसरी तरफ मारक क्षमताएँ, एक तरफ सुख-सुविधाएँ, तो दूसरी तरफ बीमारियाँ, एक तरफ ज़िंदगी का आसान होना, तो दूसरी तरफ मुश्किलें। मगर, हर जगह एक जैसा नहीं है। जहाँ जानकारी का अभाव जितना ज्यादा होगा, बुरे असर भी उतने ही ज्यादा होंगे। जहाँ जितनी ज्यादा जानकारी होगी, वहाँ बुरे प्रभावों से बचाव भी उतना ही ज्यादा होगा।
Social Engineering या मानव रॉबोट बनाने में इस सबकी अहम भूमिका है।
तो आगे आते हैं इन सबपर उदाहरणों के साथ, आपकी रसोई या खेतीबाड़ी से ही शुरू करके। करते हैं जानने की कोशिश, की राजनीती और बाजार कैसे आपकी ज़िंदगी का हर पहलू, आपकी जानकारी के बिना ही घड़ रहा है। और आदमी को रॉबोट बना रहा है।
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