Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Enforcements?
इंसानों के भी मालिक होते हैं? ठीक ऐसे जैसे, ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? या शायद नौकरी के भी? दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार या लक्ष्यद्वीप ऐसा-सा ही साँग है? और भी ऐसे-ऐसे से कितनी ही तरह के इधर के या उधर के कोड हैं।
थोड़ा पीछे चलते हैं, या दादर नगर वाली हवेली से थोड़ा आगे लक्ष्य की तरफ?
या शायद Mistaken Identity Crisis? आप जो हैं, उस पर थोंपी हुई अपनी-अपनी किस्म की मोहरें? अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा? अलग-अलग वक़्त पर, अपने-अपने कोढ़ वाली कुर्सियाँ पाने के लिए? अपनी-अपनी स्वार्थ सीधी के लिए? इससे आगे कुछ भी नहीं?
जैसे अगर आप कोई केस एक नंबर पर शुरु करते हैं तो उसका अंत कितने नंबर पर होगा? अंत? समाधान नहीं? मुझे तो यही नहीं समझ आया की न्याय-न्याय करके, आप किसी भी इंसान पर कितनी तरह के स्टीकर चिपका सकते हैं? अगर न्याय का ये जहाँ सच में इतना न्यायविद होता, तो अंत तो 29 पर ज्यादा भला नहीं था? उससे आगे, उसे ऐसे-वैसे या कैसे भी क्यों घसीटा गया? वो भी जहाँ पर so-called experiments का स्तर गिरता जाए? क्यूँकि, राजनीती में गिरावट की कोई लिमिट नहीं है। और आम इंसान उसे भुगत नहीं पाता। इसीलिए अंत हो जाता है। ऐसे, वैसे या कैसे भी। ऐसे में कोई भी आम इंसान क्या कहेगा? अब और फालतू स्टिकर नहीं। इन फालतू के नंबरों से बेहतर है की अपने सारे स्टीकर इक्क्ठा करो और कहो all । बहुत हो गए इस तरह के और उस तरह के एक्सपेरिमेंट्स और स्टीकर।
अगर आप इनकी या उनकी मोहरों को मान लेते हैं, तो क्या होगा? वही जो हो रहा है। जहाँ सही हो रहा है, वो तो चलो सही है। मगर जहाँ गलत हो रहा है? अब सही और गलत दोनों को देखना और समझना पड़ेगा?
घर के नंबरों को ही समझने की कोशिश करो। आपके घर के बाहर जो नंबर प्लेट लगाई हुई हैं, उनपे और क्या लिखा है? नंबर के इलावा? या कुछ भी नहीं लिखा? वो नंबर प्लेट कब लगी आपके घर की चौखट या दरवाजे पर? उससे पहले भी कोई थी क्या? अगर हाँ, तो याद है उसका नंबर? अब वो किसके घर के बाहर लगी है? उनके घर के बाहर पहले क्या थी? ये अदल-बदल क्या है? घर के नंबर भला ऐसे भी बदलते हैं क्या? शहरों का तो पता नहीं गाँवों में शायद? जहाँ लोगों को यही नहीं पता होता, की ये क्या लगा के जा रहे हैं और क्यों? चोरी और लूट बोलते हैं इसे? या शायद धोखाधड़ी भी? या सिर्फ एक्सपेरिमेंट कहना बेहतर रहेगा? और मीटरों के नंबर बाहर दिवारों पे लिखने का मतलब? कहीं-कहीं तो रीडिंग तक? और आजकल ये नए मीटर, क्या कुछ खास है इनमें? किसी के घर के अंदर और किसी के घर के बाहर?
इनका आपके पिन कोड या गाँव के कोड से कोई खास लेना-देना? जितने ज्यादा IDs, उतना ही ज्यादा अपनी ही तरह का कंट्रोल आम लोगों पर, अलग-अलग पार्टियों का। आपका हर किस्म का पहचान पत्र, एक तरह के जाल-तंत्र का हिस्सा है, जो पैदाइशी आपको इस जाल-तंत्र का रोबॉट बनाने में सहायता करता है। इसलिए ज्यादातर अनचाहे से पहचान पत्र खत्म होने चाहिए।
किसे और क्यों जरुरत है किसी भी पहचान पत्र की?
कहाँ-कहाँ और किसलिए जरुरत है, किसी भी पहचान पत्र की?
क्या उसके बिना काम नहीं चल सकता? अगर चल सकता है तो उसे जारी करना या उसका जरुरी होना बंद होना चाहिए।
शायद नाम, माँ-बाप का नाम और पता काफी है। उससे आगे जितने भी पहचान पत्र हैं, वो गैर जरुरी हैं। हर घर का पता होना चाहिए। फिर वो गाँव ही क्यों, चाहे झुग्गी-झोपड़ी ही क्यों ना हो। एक घर का पता ना होने से 10-10 या 20-20 साल पहले आए हुए या जबरदस्ती लाए हुए जैसे लोगबाग तक, कितनी ही सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं?
हरियाणा ही में ही कितनी ही औरतें हैं ऐसी? जो शादी के नाम पर दूसरे राज्यों से लाई गई हैं। ज्यादातर खरीद-परोख्त? जिनके बच्चे तक हैं। मगर वहाँ का अपना ऐसा कोई पहचान पत्र नहीं, जिससे वो वहाँ की छोटी-मोटी सुविधाएँ तक ले सकें? ये इतने सारे पहचान-पत्रों की बजाय, अगर एक सोशल-सिक्योरिटी जैसा कोई पहचान-पत्र पैदाइशी दे दिया जाए, तो कम से कम, एक ही देश में तो इतना भेद-भाव ना हो। भेद-भाव सिर्फ इस बात से की आप पैदा कहाँ हुए हैं? किस तबके या राज्य में हुए हैं? ऐसी औरतों के पास कोई भी प्रमाण पत्र तक कहाँ होंगे? वो खुद अपनी मर्जी से थोड़े ही आई होंगी? बेच दिया गया होगा उन्हें? उनके अपनों द्वारा?
"हैप्पी भाग जाएगी"
ये फिल्म का टाइटल थोड़ा गड़बड़ नहीं है? कहीं किसी साउथ इंडियन ने तो नहीं रखा ये टाइटल? क्यूँकि, उन्हें गा, गी, ता, ती में भेद करने में थोड़ी मुश्किल होती है शायद? जैसे जाएगी या जाएगा? आएगी या आएगा? आती है या जाती है?
वैसे हमारे यहाँ हैप्पी लड़की का नाम है। जिसका आसाम से कोई नाता नहीं है? जैसे मोनी का पंजाब से? ये यहाँ से आती है? वो वहाँ जाती है या जाता है? पता नहीं कौन? कहाँ? और कैसे-कैसे? और भी जाने कैसे-कैसे किस्से कहानियाँ? और कितनी ही तरह के कोड?
वैसे हमारे यहाँ हैप्पी काम करने कब आएगी और कब नहीं, ये कौन बताता है? लेबर कंट्रोल सैल? किधर वाली? हैप्पी ही नहीं कोई भी लेबर।
लेबर कंट्रोल के साथ-साथ और क्या कुछ कंट्रोल करती है राजनीती?
हाउस हैल्प?
ऑफिस हैल्प?
और लाइफ हैल्प तक?
इन सहायताओं की बंद होने या जबरदस्ती जैसे कर देने की भी अपनी ही तरह की कहानीयां है। सबसे बड़ी बात, इस सबको बंद करने या करवाने में जिस आम इंसान की सहायता ली जाती है, वही या उसका आसपास इसे किसी ना किसी रुप में भुगतता भी है।
बहुत-सी मौतों के राज ऐसे भी हो सकते हैं क्या? जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है? जैसे पीने या प्रयोग करने लायक पानी तक पर इधर या उधर का कंट्रोल? या कहना चाहिए की राजनीतिक गुंडों का कंट्रोल?
ऐसा ही कुछ फिर बाकी खाने के सामान पर भी लागू होता है?
और मौतों के राज कैसे-कैसे? इसे जानते हैं, आगे आने वाली पोस्ट में।
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