अगर किसी बच्चे के पास पैसे ना हों, तो वो 12वीं से आगे की पढ़ाई कैसे करेगा?
क्या?
अगर किसी बच्चे के पास पैसे ना हों, तो वो 12वीं से आगे की पढ़ाई कैसे करेगा?
अगर बच्चा पढ़ना चाहता है तो उसे कहीं न कहीं से तो पैसे मिल ही जाएँगे।
कहाँ से?
उसके घर वाले देंगे।
अगर घर वाले ना हों तो या उनके पास पैसे ना हों तो?
कोई न कोई तो देगा ही। नहीं तो स्कॉलरशिप होती हैं। Crowd Funding होती है। और बहुत तरीके होते हैं।
तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो?
ऐसे ही।
आपके पैसे बुआ देंगे।
नहीं, मैं तो किसी और के बारे में सोच रही थी। क्या पता किसी के घर वाले 12 वीं के बाद पढ़ाना ही ना चाहें।
ये तो बड़ी समस्या हो सकती है।
वैसे तो कितने ही बच्चे हैं ऐसे, जिनके बारे में हमें सोचने की जरुरत है। किसी भी सभ्य समाज को सोचने की जरुरत है। भला बच्चों तक के दिमाग में ऐसे ख्याल ही क्यों आएँ? वो फिर किसी का भी बच्चा हो।
जबकि आपको समझ आ रहा है की क्यों पूछ रहा है ये सब, ये बच्चा।
Insecurity पैदा करना, बातों ही बातों में, यहाँ-वहाँ से। ये सब स्कूल में भी हो सकता है और उसके बाहर भी। घर में भी हो सकता है, उन प्रोग्राम्स के द्वारा, जो वो टीवी पर देख रहा है। या शायद आसपास कहीं से सुनकर भी। अमेरिकन ट्रम्प-हर्रिस यही राजनीती है। भारतीय कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी भी यही कर रही है। या यूँ भी कह सकते हैं की किसी भी देश की राजनीती आम लोगों को ऐसे ही अपने कब्ज़े में करके, उन्हें अपने गुलाम बना रहे हैं।
तो क्या राजनीती लोगों को गुलाम बनाने का खेल है?
गुमराह करके गुलाम बनाने का खेल, बेहतर होगा कहना?
जब राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, हर सँसाधन पर अपना कंट्रोल करना चाहें तो क्या कहेंगे उसे? फिर इंसान तो सबसे बड़ा सँसाधन है। राजनीती को नहीं आता, संसाधनों का सदुपयोग करना? राजनीती को आता है, संसाधनों का दुरुपयोग करना? तो जो भी राजनीतिक पार्टी जीत रही है, मान के चलो की कहीं न कहीं उसने लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा कैसे पैदा की जाए का मंत्र ढूँढ लिया है? इसी असुरक्षा की भावना को अपना हथियार बना वो राजनीती कर रहे हैं? तुम्हारे पास ये नहीं है, हम देंगे? शायद आपका ही आपसे छिनकर? और बन्दर बाँट की तरह सिर्फ रुंगा देंगे? बाकी सब खुद खा जाएँगे?
और वो करेंगे ऐसे जैसे, आपको असुरक्षा की भावना नहीं दे रहे, बल्की सुरक्षा की भावना या कवच दे रहे हैं? अब उन्होंने आपको असुरक्षित कैसे बनाया है, ये थोड़े ही आपको दिखाया या बताया है? वो तो गुप्त-गुप्त तरीके से करते हैं। बाँटो, फूट डालो और काटो?
या शायद कहीं किन्हीं देशों में इसके अपवाद भी हैं? क्यूँकि, असुरक्षा की भावना पैदा करके आप बहुत वक़्त कुर्सियों पर नहीं टिक सकते। एक न एक दिन लोगों को समझ आना ही है की आप क्या कर रहे हैं।
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