मान लो कहीं कोई आत्महत्या हुई हो और कहीं किसी आर्टिकल में कुछ-कुछ ऐसा पढ़ने को मिले, 70% कृत्रिम (synthetic) और 30% मारा-मारी (enforced)।
भला ऐसे पर्सेंटेज कैसे निकाली जा सकती है? वो भी किसी आत्महत्या या मौत के केस में? शायद ठीक ऐसे ही, जैसे, बिमारियों के कारणों या कारकों की? जब बिमारियों की बात होती है तो पहला प्र्शन होता है की समस्या क्या है? उसके बाद आता है समस्या आँखों से दिखाई दे रही है, जैसे चोट या सिर्फ अनुभव हो रही है, जैसे कोई भी दर्द? दिखाई दे रही है तो समाधान थोड़ा आसान हो जाता है? और दिखाई नहीं दे रही तो उसके पीछे कारण क्या हो सकते हैं? वैसे तो जो दिखाई दे रहा हो, कारण या कारक उसके पीछे भी अक्सर छुपे हुए ही होते हैं और जानने जरुरी होते हैं। बहुत-सी बिमारियों के पीछे एक जैसे से ही कारण होते हैं। बहुत बार तो सिर्फ आपके आसपास के वातावरण या माहौल को जानकार ही बताया जा सकता है की क्या हो सकता है।
माहौल क्या है? के बारे में जानना और आपके बारे में जानना या किसी भी तरह की बीमारी के बारे में जानना ही, ईलाज को काफी आसान बना देता है। आप किसी भी समस्या के बारे में जितना जानते हैं, उसका समाधान भी उतना ही आसान हो जाता है। ऐसे ही, अगर किसी गलत मंशा वाले इंसान को आपके बारे में जितना पता होता है, उतना ही आसान आपको नुकसान पहुँचाना या ख़त्म करना हो जाता है। राजनीती अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है। जितनी ज्यादा मारकाट राजनैतिक कुर्सियों को लेकर होगी, उतना ही ज्यादा उसका असर वहाँ के समाज पर होगा। राजनीती में अगर पैसे से कुर्सियों की खरीद-परोख्त होगी, तो ऐसी राजनीती इंसानों तक को खरीद-परोख्त करने योग्य वस्तु बनाकर छोड़ देगी।
खरीद-परोख्त से भी आगे क्या है?
मान लो दो सेनाएँ हैं। और दोनों के पास सँसाधन हैं। ऐसे ससांधन, जिनके दम पर वो मनचाहा माहौल घड़ सकते हैं। मनचाहा माहौल घड़ना? और मनचाहे रोबॉट बनाना? क्या सच में इतना आसान है? लैब में तो है?
मगर लैब का साइज अगर 7-करोड़ के पार हो तो? 7-करोड़ तो इंसान हैं सिर्फ। उनसे कहीं ज्यादा जनसंख्याँ दूसरे जीवों की है। और फिर निर्जीव भी तो चाहिएँ, माहौल घड़ने के लिए। क्यूँकि, कोई भी लैब सिर्फ experimental material से नहीं बनती। जिस पर अनुसंधान करना है, या जिनको अपने अनुसार चलाना है, उनके लिए सिस्टम तो थ्योरी के अनुसार घड़ना पड़ेगा। Stackable and Movable Units? बड़े साइज या नंबर को छोटे-छोटे सिस्टम में बाँट कर, ऐसा संभव हो पा रहा है। चलते-फिरते इंसान, या चलते-फिरते मानव रोबॉट? छोटी-छोटी सी कोलोनियाँ या गाँव या मौहल्ले, ये सब जानने, समझने और सच में आँखों के सामने होते देखने के लिए सही हैं।
तो 70% पर जो हुआ वो आत्महत्या थी क्या? ठीक ऐसे ही जैसे, और कितनी ही मौतें ?
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