Cult Politics? धर्म के नाम पर धर्मान्धता?
होलिका दहन (7.3.2023)
क्या हो अगर होली की बजाय दिवाली पर ऐसा कुछ हो? और वो भी शिव के जय-जयकारों के साथ? और तारीख, महीना, साल और वक़्त? इस सबके साथ-साथ ट्रैक्टर, ट्रॉली की टाइप, उनपर लिखा हुआ? उनको चलाने या उनमें बैठे लोगों और कर्म-काँड (हवन ट्रॉली में ?) के नाम वैगरह भी जान लो। कोड-सा चलता है जैसे सब? मगर, अब की बार दूसरी गली? अब की दिवाली ऐसा कुछ हुआ क्या? Cult Politics? धर्म के नाम पर धर्मान्धता?
जिन्हें मालूम ही नहीं की उनके साथ ये हो क्या रहा है? यही नहीं, इन्हें लगता है की ये सब खुद ही कर रहे हैं? ठीक ऐसे, जैसे कैंपस क्राइम सीरीज? मगर वहाँ झूठ, धोखाधड़ी, फाइल्स, प्रोजेक्ट्स या ज्यादा से ज्यादा किसी को यूनिवर्सिटी से ही उखाड़ फेंकने की थी। या शायद था तो उससे आगे भी, एतियातों या आगाह करने वालों ने यहाँ-वहाँ बचा लिया? हाँ। उसके दुर्गामी प्रभाव जरुर रह गए और मोहर रुपी निशान भी। मगर यहाँ गाँव में? ऐसे से ही सामान्तर केस, मगर, आदमी ही निगल लिए जाते हैं? और मरता कौन है? आम आदमी? जनमानस? ईधर भी और उधर भी? वो भी जानकारी और सुविधाओं के अभाव में? कैसे? उसपे भी आएँगे आगे की पोस्ट्स में।
फिर से पढ़ें, भाभी की मौत के बाद वाली होली के बाद हुआ साँग। अब क्या ऐसी-सी ही पोस्ट, दिवाली के नाम पर लिखना?
बचपन से बहुत बार होलिका दहन देखा या ज्यादातर सुना। बहुत सालों बाद, अबकी बार जो देखा, वो होलिका दहन के नाम पर एक डरावना-सा सांग था। किसी मंदिर के नाम पे कोई राजनीतिक तांडव जैसे। आगे ट्रैक्टर, पीछे ट्रॉली। ट्रॉली में आग की लपटें ऐसे जैसे -- (some assisted murder).
(I will write with time about that in details, how that happened? Rather must say kinda enforced by creating such conditions? And creations of such conditions are not that difficult by experts of political designs and political fights. Common people must be aware about such things to stop them). Read somewhere some term about that I guess, Cult Politics? Sinister designs, by twisting or altering, manipulative ways to represent something contrary?
उन लपटों से पहले आसमान में धुएँ का कहर, सामने गली से ऐसे गुजर रहा था, जैसे लीलता जा रहा हो, गली दर गली, धुआँ ही धुआँ।
कहते हैं, किसी समाज को, वहाँ के जनमानस को, उनकी खुशहाली या समस्याओं को जानना है तो उनके रीति-रिवाज़ों को जानना बहुत जरूरी है। रीति-रिवाज़ बताते हैं वो समाज अपने जनमानस को कैसे जोड़ता है या तोड़ता है। ऐसे ही, शायद जानना जरुरी है उन रीति-रिवाज़ों में आते बदलाओं को -- क्यूँकि वो बदलाव आईना होते हैं उस बदलते समाज का, भले के लिए या बुरे के लिए। बदलाव आगे बढाते हैं या पिछड़ा बनाते हैं? औरतोँ को, बच्चोँ को, समाज के कमज़ोर तबके को शशक्त करते हैं या दबाते हैं?
No comments:
Post a Comment