Mistaken Identity Crisis
क्या है पहचान धूमिल करना या धूमिल करने की कोशिश करना? कौन कर रहा है या कर रहे हैं ये सब?
मोदी का वो भाषण सुना है, "घर में घुस कर मारेंगे?" क्या ये सिर्फ मोदी के प्रवचन हैं? या सभी पार्टियाँ यही तो नहीं खेल रही हैं? वो सिर्फ आपके घरों में ही नहीं घुसी हुई, बल्की आपके दिमागों को भी कंट्रोल कर रही हैं। Pros and Cons: Bio-Chem-Physio-Psycho and Electric Warfare
कैसे?
Once upon a time friend कहो या batchmate, जो आर्मी में हैं। उनके बड़े भाई भी आर्मी में हैं। और सबसे बड़े मीडिया। जितना मैं जानती हूँ, वो अपने माँ बाप को भी अच्छे से रखते थे और तीनों भाई भी शायद कोई खास मनमुटाव नहीं रखते बल्की मिलजुलके ही रहते हैं। गलत तो नहीं कहा? ये आम आदमियों या मिडल क्लास जनमानस का घर है? खाते-पीते आम आदमी? क्या हो अगर इन्हें हम अदानी और मोदी से जोड़कर देखने लगें? ये तो इक्कट्ठा रहते हैं, खुद को एक कहते हैं, सब हज़म करने के लिए? यहाँ शायद लोगों को यकीन भी हो जाएगा? मगर केस तो mistaken identity ही कहलाएगा ना? कहाँ मोदी अडानी और कहाँ कोई मिडल क्लास परिवार?
अब ऐसा ही कुछ हम एक ऐसे घर वाले बहन-भाइयों से जोड़ते हैं, जिनमें सिर्फ एक ठीक-ठाक नौकरी करती थी और उसी खाते-पीते मिडल क्लास श्रेणी में रख सकते हैं। एक भाई-भाभी जैसे-तैसे अपना ठीक-ठाक गुजारा कर रहे थे। मगर जाने क्यों किन्हीं लोगों को हज़म नहीं हुआ। मोदी की तरह घर घुसे और उजाड़ दिया। एक और भाई जो पीता था, उसको दो बोतल देके अपने कब्ज़े धर लिया, जितना भी उनसे हो पाया। अब ये भाई गॉंव रहते हैं तो आसपास भी ऐसा-सा होगा। थोड़ा कम या थोड़ा ज्यादा? वो मोदी बीजेपी घर घुसा या आनन्द, हुडा-कोंग्रेस या अरविन्द केजरीवाल, आम आदमी पार्टी, या कोई और राजनीतिक पार्टी, रिसर्च का विषय हो सकता है? या शायद सभी पार्टियाँ ऐसे-ऐसे घरों में भी घुसने की कोशिश करती हैं? क्यों? क्या मिलता है, उन्हें वहाँ से? और घुस के उन्होंने क्या मचाया या अभी तक रुके नहीं हैं? क्या हो, अगर इस घर को मोदी-अडानी से जोड़कर कारनामे शुरु हो जाएँ? या ऐसे ही किसी भी आम आदमी के घर? क्यूँकि आसपास का भी कुछ-कुछ ऐसा-सा है?
मोदी-अडानी का कुछ नहीं बिगड़ना। किसी टाटा-बिरला या जिंदल का भी नहीं बिगड़ना। ऊप्पर वाले खाते-पीते घर का भी कुछ नहीं बिगड़ना। मगर ऐसे-ऐसे डाँवाडोल घर किधर भी खिसकाए जा सकते हैं। कुछ एक आसपास जो घर बिल्कुल ख़त्म हो चुके, उन्हें भी ऐसे ही रिसर्च का विषय बनाया जा सकता है। सिर्फ खिसकाए नहीं जा सकते, बल्की बिल्कुल ख़त्म भी किए जा सकते हैं। ऐसा ही कुछ चल रहा है या कोशिशें हो रही हैं। Mistaken Identity Crisis कह सकते हैं इसे? एक जो थोड़ा ठीक-ठाक था, उसे उस नौकरी से लूट-कूट-पीट के निकाला जा चुका। या शायद उनके शब्दों में कहें तो, वो खुद ही रिजाइन कर चुकी? तकरीब साढ़े तीन साल पहले? मगर अब तक उसे धेला नहीं दिया गया है। क्यों? सबकुछ खाके, वो अपने नाम करेंगे?
सोचो किया कैसे है? वो पागल हो गई थी, बंद लैब्स के ताले खोलकर फोटो लेने लगी थी? पड़ोस के खाली पड़े घर तक को साफ़ करवा रही थी तो कहीं मीटर चैक कर रही थी और फोटो ले रही थी? उसपर नौकरी करने लायक नहीं बची थी? अब ऐसे इंसान को धेला देकर भी क्या करेंगे? भाई-भाभी को कुछ आसपास के ठीक-ठाक घरों ने कहना शुरू कर दिया था, सबका खा गया। और आपको समझ ना आए, दो मेहनत करने वाले मियाँ-बीबी भला किसका खाएँगे? अब पीने वाले को तो कहना ही क्या। अरे नहीं, अब वो पीना छोड़ चुका, बिना किसी deaddiction सेंटर गए? है ना गज़ब? या जादू? इसके लिए शायद food adulterants को जानना समझना पड़ेगा?
तीनों बहन-भाइयों को यहाँ पहुँचाकर भी वो चाह रहे हैं, नहीं, लगातार कोशिश कर रहे हैं, की उन्हें और बाँटे और काँटे?
क्या चल रहा है Mr. Vice Chancellor? या कहना चाहिए MDU Authorities? किसी की कोई फाइल एक ही टेबल पर कितना वक़्त रह सकती है? पिछले डेढ़ साल से तो सुना है, academic branch, teaching, deputy registrar की टेबल पर पड़ी है। क्या VC या रजिस्ट्रार के इशारे के बिना संभव है ये?
अरे, अपने convenience के हिसाब से देंगे, ऐसी भी क्या जल्दी है? कुछ एक चिंटू-पिंटू शायद, ऐसा कुछ भी तो नहीं कह रहे?
सोचो क्या फायदा है उन्हें ऐसा करके? और इसे आदमखोर होना नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे?
यहाँ आसपास ही जब मैंने निगाह दौड़ाई, तो पता चला की कुछ ख़त्म हुए घरों की कहानियाँ भी उतनी ही रौचक हैं, जितनी आगे बढ़ने वाले घरों की। दोनों को ही जानना बहुत जरुरी है शायद।
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