Thorns and Fools or Flowers?
Blacks and Whites?
Confusion and Realities?
Love and Hate?
If you cannot convince then confuse?
इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी एमर्जेन्सी?
आपकी नशबंदी कर दी। लो ये हरियाली ओढ़ लो या पहन लो? और जनसँख्या कंट्रोल के नाम पर गरीब लोगों का या परिवार के परिवारों का खात्मा? उनके अपनों या आसपास वालों को ही साथ में लेकर?
नशबंदी से खात्मा हो जाता है क्या?
हाँ। अगर आपको बच्चा गोद लेना या और कोई तरीके पता ना हों तो परिवार के मतलब के नाम पर या कोई ठीक-ठाक ज़िंदगी के नाम पर? या शायद ये राजदरबारी साम्राज्यवादी समझ से आगे, इंसान की ज़िंदगी के और कोई मायने ही ना हों?
सुना है की आज भी साम्राज्यवाद मधुमख्खी के छत्ते वाले कॉन्सेप्ट पर आगे बढ़ता है? इंसानी मधुमख्खियोँ के छत्ते? जहाँ एक रानी होती है और बाकी सब उसके सेवक और सेविकाएँ? क्या हो यही सब अगर आम से लोगों के दिमाग में भी घुसेड़ने की कोशिश की जाए? बाकी सब बहन, भाइयों का सफाया कॉन्सेप्ट? सुना है यहाँ-वहाँ सालों, दशकों या सदियों से गुप्त रुप से थोंपा हुआ आज तक चल रहा है? हकीकत तो जानकार ज्यादा जाने।
या अमेरिकन ट्रम्प और कमला हर्रिस लड़ाई (गोरा-काला)?
घने गोरे बणे हॉन्डें सैं। गोरे भगा क आड़े हिडम्बा धर दो। बावली-बूच सैं। सालें क समझ थोड़े-ए आवेगा, अक नाश कितनी ढाला ठाया जा सके सै। उन गौबर पाथन आलें न पकड़ों, वें बढ़िया करवावेंगे यो साँग भी, और वो साँग भी।
सिर्फ संसाधनों पर कब्ज़ा नहीं, बल्की एसिड अटैक से भी आगे बढ़कर तोड़फोड़?
इसका जवाब आपको भी शायद यही मिलेगा की राजनीती में या किसी भी समाज में, जिस किसी विषय, वस्तु का ज्यादा दिखावा हो रहा हो। मान के चलो हकीकत उसके विपरीत ही मिलेगी। जैसे कन्याओं या देवियों को पूजने वाला समाज या राजनीतिक पार्टी? गाएँ बचाओ, अरे नहीं, बेटी बचाओ वाले पोस्टर्स लगाने वाले, या गाने, गाने वाले लोग? या चीनी, गुड़-शक्कर से मीठे लोग? अब सबको तो एक लाठी से नहीं हाँका जा सकता, मगर, ज्यादातर ऐसे समाज के हाल कुछ-कुछ ऐसे ही मिलेंगे? जो वो गाते, सुनाते या दिखाते हैं, उसके विपरीत?
ऐसा भी नहीं है की ये सिर्फ किसी एक के साथ या किसी एक ही परिवार के साथ हो रहा हो। मगर करने के तरीके इतने खतरनाक हैं की आपको खुद से प्रश्न करने पड़ जाएँ, आप कौन हैं? और कब से? और कैसे?
आप कौन हैं? कब से? और कैसे?
ये प्रश्न किसी को खुद से ही क्यों करने पड़ें?
आप शायद उस माहौल में पले-बढ़े हैं, जहाँ दोस्त बनाते वक़्त या खाना खाते वक़्त या किसी से भी कोई काम करवाते वक़्त आपने कभी सोचा ही नहीं की उसकी जाति क्या है? धर्म क्या है? मजहब क्या है? दिखता या दिखती कैसी है? सबसे बड़ी बात, इन्हीं बातों पर कई बार कुछ घर या आसपास के बड़ों तक से बहस तक हुई हैं। फिर अब क्या हुआ? ऐसा क्यों?
लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब से किसी पर या किसी परिवार पर कुछ जबरदस्ती थोंपना या थोंपने की कोशिश करना, उस पर इलज़ाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करना या अपने कीचड़ से भेझे के स्टीकर चिपकाने की कोशिश करना? तो अंजाम क्या होगा? या वापस किस तरह के प्रसाद की उम्मीद करते हैं आप?
लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब में ये जाति, धर्म, काला या गोरा कहाँ से आ गया? या कैसे वाद-विवाद का विषय हो गया?
ये शायद कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे कहना, की किसी को लाइट या गहरे रंग ही पसंद क्यों है? तड़क-भड़क क्यों नहीं? बच्चों से रंग पसंद क्यों हैं? बुजर्गों वाले क्यों नहीं? और भी कितने ही ऐसे से विषय, या पसंद ना पसंद हो सकती हैं। हालाँकि, इन सबको भी बदला जा सकता है। या कहना चाहिए की बदला जा रहा है, यहाँ-वहाँ। कैसे? सर्विलांस एब्यूज और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी के दुरुपयोग से। वो भी ऐसे, की सामने वाले को समझ ही ना आए की हो क्या रहा है और कैसे। बाजारवाद की बहुत बड़ी वजह है ये। कम्पनियाँ अपने गंदे से गंदे उत्पाद तक बेचने के लिए इस सबका प्रयोग कहो या दुरुपयोग करती हैं। एक छोटा-सा उदहारण लें?
चलो अगली पोस्ट में।
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