तो? स्वास्थय टमाटर तक सिमित है? फूल आए, नहीं आए? फल आएँगे या नहीं आएँगे?
या स्वास्थ्य का मतलब, इससे आगे भी बहुत कुछ है? ऐसे-ऐसे पेड़-पौधे, तो सिर्फ आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं, की आपका वातावरण या माहौल या इकोसिस्टम कितना सही है, एक स्वस्थ ज़िंदगी के लिए? और कितना नहीं? और भी बहुत से पेड़-पौधे होंगे आपके आसपास, जो बहुत कुछ बता रहे हैं, बिमारियों के बारे में? रिश्तों की खटास या मिठास के बारे में? और खुशहाल या बदहाल ज़िंदगी या मौतों तक के बारे में? संभव है क्या? पेड़-पौधे इतना कुछ बता पाएँ? या आसपास के पशु और पक्षी या दूसरे जीव-जंतु भी?
जो मुझे समझ आया, अगर आपके यहाँ राजनीती आपके लिए सही नहीं है तो? वैसे राजनीती सही किसके लिए होती है?
चलो इसे यूँ भी समझ सकते हैं, आप जितना अपने घर पर रहते हैं या उस पर ध्यान देते हैं, उतना ही आपका घर सही रहेगा। जितना वहाँ नहीं रहते, उतना ही कबाड़? शायद नहीं। फिर तो कितनी ही दुनियाँ घर से दूर नौकरी करती है, उनका क्या? शायद ये कह सकते हैं की जितना अपने घर को सँभालते हैं या उसकी देखभाल करते हैं, उतना ही सही वो घर रहेगा। जैसे कोई भी माली कितना देखभाल कर रहा है या कितना जानकार है, ये उसके देखभाल वाले बगीचे को देखकर ही बताया जा सकता है। वो कहते हैं ना, की जिस बगीचे का या खेत का कोई माली नहीं होता, वही सबसे पहले उजड़ते हैं। जिनकी जितनी ज्यादा सुरक्षा और देखभाल रहती है, वो उतने ही ज्यादा फलते-फूलते हैं। बहुत बार आपात परिस्थितियों में भी? देखभाल पर बाद में आएँगे, पहले सुरक्षा को समझें?
आपके घर की सुरक्षा कितनी है? ऐसे ही जैसे किसी भी खेत या बगीचे की? खुरापाती, नुकसान पहुँचाने वाले तत्वों से? जीव हैं, तो बिमारियों से? प्रदूषण वाले वातावरण से? भीड़-भाड़ से? एक खास दूरी या हर किसी का अपना सुरक्षित दायरा बहुत जरुरी होता है, किसी भी तरह के विकास या वृद्धि के लिए।
पीछे जैसे घरों के डिज़ाइन और किसी भी वक़्त की पॉलिटिक्स के डिज़ाइन की बात हुई। वैसे ही पेड़-पौधों के डिज़ाइन की या खाने-पीने से सम्बंधित खाद्य पदार्थों की? या शायद खाने-पीने से भी थोड़ा आगे, किसी भी तरह के पेड़-पौधों या पशु-पक्षियों की? पेड़-पौधों से ही शुरु करते हैं। मुझे थोड़ी बहुत बागवानी का शौक है। तो यूनिवर्सिटी के घर या आसपास के पेड़-पौधों से आते-जाते एक तरह का संवाद होता ही रहता था। पेड़-पौधों से संवाद? हाँ। इंसानों की आपसी बातचीत के द्वारा। कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे घर या गली से आते-जाते कुत्तों या गायों से? यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर यूँ लगता है, जैसे सभी को बागवानी का शौक होता है, थोड़ा-बहुत ही सही या दिखावे मात्र के लिए। आप कहेंगे की यहाँ तो फुर्सत ही नहीं होती। ऐसा नहीं है, शायद आसपास भी प्रभावित करता है। गाँवों में भी देखा है की जिन घरों में छोटा-मोटा बगीचा होता है, वो अकेले उस घर में नहीं होता, आसपास और भी मिलेंगे। ऐसे जैसे कहीं-कहीं सिर्फ गमलों के पौधों के शौक? या कहीं-कहीं सिर्फ सीमेंट, ईंटो-पथ्थरों के शौक, जैसे पेड़-पौधे तो आसपास दिखने भी नहीं चाहिएँ? मगर ऐसे घरों के आसपास किन्हीं खाली जगहों पे झाँको। कहीं जहरीला कुछ तो नहीं उग रहा? या एलर्जी वाला? या खामखाँ की बीमारी देने वाला? या शायद सिर्फ ऐसे से जानवरों या जीव जंतुओं के घर? ये सीधे-सीधे या उल्टे-सीधे, आपके घर की सुरक्षा का दायरा है। अब वो दायरा कितना पास है और कितना दूर, ये तो आप खुद देखें। एक जैसे खिड़की या दरवाजे के एकदम बाहर? या घर से बाहर निकल इधर या उधर, जहाँ से आप शायद सुबह-श्याम गुजरते हों? या शायद और थोड़ा दूर? गाँव या शहरों से बाहर के मौहल्ले जैसे? या ऐसे मौहल्लों या कॉलोनियों में कभी-कभी घरों के पीछे वाली जगहें या आजु-बाजू वाली जगहें?
आसान भाषा और कुछ शब्दों में कहें, तो सब आर्थिक स्तर पर निर्भर करता है?
आर्थिक स्तर बढ़ता जाता है तो लोगबाग सिर्फ अपने घर का ही नहीं, बल्की आसपास का भी ख्याल रखने लग जाते हैं? और उसी के साथ-साथ सुरक्षा का दायरा भी बढ़ता जाता है और आपात परिस्तिथियोँ से निपटने के सँसाधन भी। उस बढे हुए दायरे में राजे-महाराजे मध्य में होते हैं? और उनसे आगे जितना दूर जाते, जाते हैं, उतने ही असुरक्षित दायरे? क्यूँकि, बाकी सब उन्हें ही बचाने के लिए तो काम करते हैं और जीते-मरते हैं? कहने मात्र के लोकतंत्रों में ये सब आसानी से दिखता नहीं, गुप्त रुप से चलता है। जिन समाजों में जितना ज्यादा अमीर और गरीब में फर्क है, उतना ही ज्यादा वहाँ पर ये वाला नियम काम करता है। और उतने ही ज्यादा भेद-भाव और क्रूरता से।
अँधेरे और रौशनी से ही समझें?
सोचो आप, कैसे? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट से।
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