About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Wednesday, December 25, 2024

How Was The Year 2024?

कैसा रहा ये साल? क्या है आपका हाल? 

ये वो साल था जब लिखना और इंटरनेट ही जैसे एकमात्र सहारा था, बाहर की दुनियाँ से इंटरैक्शन का। फोन तकरीबन बंद था जैसे। चल रहा था शायद कुछ अजीबोगरीब सन्देश या कॉल्स सुनने के लिए। कुछ कोड से जैसे ईधर के, और कुछ उधर के? और कुछ खामखाँ भी। 

इतने सालोँ बाद कार गुल थी ऐसे, जैसे, दुनियाँ ही थम-सी गई हो? कार हमें सच में Independent बनाती है या शायद काफी हद तक Dependent भी?

एक तरफ "Reflections" के लिए वक़्त था तो दूसरी तरफ कुछ अजीबोगरीब बावलीबूचों के कारनामों से निकला, "महारे बावली बूचां के अड्डे अर घणे श्याणे?" चाहें तो खीझ सकते हैं और चाहें तो हँस सकते हैं? Refelections से पहले शायद "दादा जी का छोटा-सा खजाना" किताब बन निकले? जिसके साथ लगता है, काफी छेड़-छाड़ हुई है। क्यों? ऐसा क्या खास था उनमें? कुछ जो मुझे पता है और कुछ शायद ही कभी पता चले। क्यूँकि, उनके ज्यादातर पत्र मैं पढ़ती थी। जब घर होती तो पढ़वाते ही मुझसे थे, खासकर हिंदी वाले। ये कुछ कहाँ से आ टपके? और एक-आध जो उनकी मर्त्यु के बाद भी मेरे पास था, वो कहाँ और कैसे गुल गए? पता नहीं। ऐसा तो कोई बहुत खास भी नहीं था उनमें। या शायद इधर-उधर हिंट आ चुके? 

वैसे पापा से सम्बंधित सिर्फ एक ही पत्र पढ़ा था मैंने, दादा जी के रहते। वो भी उनकी अलमीरा की सफाई करते वक़्त मेरे हाथ लग गया था इसलिए। कुछ बहुत पुराने हैं, मेरे जन्म से भी पहले के तो शायद कभी सामने नहीं आए। दुबके पड़े थे जैसे, इस, उस डायरी में। उनसे कुछ लोग शायद अपने जन्मदिन या आसपास के कुछ इवेंट्स जान पाए, जिन्हें आज तक नहीं पता?

बाकी जो पहले से लिखने वाले प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वो तो वक़्त लेंगे। क्यूँकि, वो सिर्फ Reflections, यादें या खीझने की बजाए, satire जैसा विषय नहीं हैं।

इतने बुरे के बीच शायद, कुछ आसपास के लिए अच्छा भी रहा? बहुत सालों से ठहरी-सी या मरते-मरते बचती-सी ज़िंदगियाँ, शायद फिर से चल निकलें? उम्मीद पे दुनियाँ कायम है। ऐसी-सी ही कुछ ज़िंदगियाँ, आपको किसी भी हाल में जैसे प्रेरित करती नज़र आती हैं। कह रही हों जैसे, और कुछ ना हो सके तो थोड़ा-बहुत हमारे लिए ही कर दो। और जो शायद आप कर भी सकते हैं। शायद कोई छोटा-मोटा प्रोजेक्ट ही?   

आपका कैसा रहा ये साल? Merry XMAS & Happy New Year!

Monday, December 9, 2024

मंदिर अहम है ना मस्जिद अहम है

मंदिर अहम है ना मस्जिद अहम है 

जहाँ मन को शांती मिले वो जगह अहम है 

गुरु द्वारे अहम हैं, ना गिरजे अहम हैं 

जहाँ भूखे की भूख मिटे, 

ठिठुरते को कपड़े मिलें  

ताप में जलते को ठंडक 

बेघर को छत मिले 

क्रूरों के बीच दयालु 

बेगानों से घिरे को अपनापन, ऐसी जगह अहम है।  


ना भिखारी बनाने वाले अड्डे अहम हैं 

ना अज्ञानता का पाठ पढ़ाने वाले 

ना पीट-पीट कर रुंगा-सा दान करने वाले 

ना बंधक बना, रोजगार का नाटक करने वाले 

ना सीधे से दिखने वाले पेपरों पर हस्ताक्षर करवा 

या कोरे पन्नो पर येन-केन-प्रकारेण हस्ताक्षर ले 

कोढों की जाल नगरी में उलझाने वाले  

सभ्य समाज में भला इनकी जगह?

कहाँ और कैसे? क्यों और किसके लिए है?

Sunday, December 1, 2024

Enforced Murder?

कोई भूख से कैसे मर सकता है? अगर हट्टा-कट्टा और स्वस्थ है तो? हाँ शायद, न्यूट्रिशन की कमी से जरुर मर सकता है? मगर थोड़ी-सी भी न्यूट्रिशन की जानकारी हो तो शायद नहीं? शायद? 

लोग बिमारियों से मरते होंगे? शायद जबरदस्ती जैसे थोंपी हुई बिमारियों से? या मार-पिटाई से? या उससे उपजे दर्द या तकलीफों से? खासकर अगर वक़्त पर ईलाज न हो तो? शायद? 

और कितने तरीकों से मर सकते हैं लोग? या शायद मारे जा सकते हैं?

गुप्त तरीकों से मार कर, आत्महत्या दिखाई जा सकती है? जैसे पीछे 70% केस, पहले से बताकर किया गया? मगर हकीकत में करने वालों ने (राजनीतिक पार्टियाँ) उसका माहौल कैसे इज़ाद किया होगा? आम आदमी को कैसे समझ आएगा ये सब? क्यूँकि, जो यहाँ दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं?      

जैसे कोरोना के दौरान कितने ही लोगों को आदमखोरों ने मौत के घाट उतार दिया? वो भी दुनियाँ भर में। वो दिखा क्या?

चलो, आपको एक और मौत दिखाते हैं। उसकी मौत, जिसको आप यहाँ पढ़ते आ रहे हैं? वो मौत आत्महत्या होगी? या खून? इन्हीं खुँखारों द्वारा, जो इधर-उधर से लोगों को किसी ना किसी बहाने उठा रहे हैं। मगर वहाँ आपको क्या दिख रहा है? यहाँ देखने की कोशिश कीजिए। शायद कुछ समझ आए। 

विजय 4 बीजेपी?

जय कांग्रेस? विजय कांग्रेस?

आम आदमी की विजय?

जय JJP? विजय JJP?

और भी कुछ लिख सकते हैं? विजय या जीत तो हर किसी को चाहिए। ऐसे या वैसे, जैसे भी चाहिए। उसके लिए चाहे आदमियों को खाना पड़े? कुछ भी, कैसे भी, जैसे भी जोड़ना, तोड़ना या मड़ोड़ना पड़े? इन सब पार्टियों के जीत हासिल करने के अपने-अपने खास तरह के नंबर हैं या कहो की कोढ़ हैं, abcd हैं। सब पार्टियाँ उसी के लिए माहौल बनाने की कोशिश करती हैं। जी, माहौल बनाने की कोशिश करती हैं। वो माहौल अगर आदमियों को खाकर भी बने, तो इन्हें परहेज नहीं। उसी माहौल बनाने में वो घरों के, ऑफिसों के माहौल बिगाड़ देते हैं, अपने-अपने अनुसार। 

जैसे अगर किसी को, किसी यूनिवर्सिटी ने पढ़ाने के लिए रखा है, टीचर की पोस्ट पर। तो वे उसे पढ़ाने के इलावा और ढेरों तरह की अनाप-शनाप फाइलें पकड़ा सकते हैं। अगर वो उनके अनुसार काम ना करे तो तरीके हैं, उसे यूनिवर्सिटी से उखाड़ फेंकने के। 

ये विजय 4 बीजेपी, वाली पार्टी का 75 वाले अमृतकाल का हिस्सा हो सकता है। जहाँ B को घर बैठे जैसे, B (ED) के लिए 75000 का दान चाहिए? घर बैठे अहम है यहाँ। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे रजिस्ट्रार बोले, मैडम आपके पैसे मिलने में 5-7 दिन लगेंगे? उस मैडम को यूनिवर्सिटी से खदेड़ने के बाद। और वो 5-7 दिन मौत से पहले नहीं आते? मौत के बाद, सब किसी B का है, क्यूँकि ED उस आदमी को खा जाएगी।         

ये जय कांग्रेस? विजय कांग्रेस? इनका कोई 1, 3, 4 का हिसाब-किताब है शायद? इनके अनुसार आप अब भारत में काम नहीं कर सकते? कितने लाचार हैं? ये पीछे बारिश वाली नौटँकी इन्हीं की थी क्या? आप रजिस्ट्रार ऑफिस के वेटिंग रुम बैठे हैं और बारिश के साथ-साथ कोई ड्रामा चलता है। ऐसी-ऐसी नौटंकियाँ, देखने और झेलने के बावजूद, आप जाना चाहेंगे ऐसे-ऐसे ऑफिस? 

आम आदमी की विजय, के नंबरों के हिसाब-किताब से तो? आप बसों में मार्शल लग सकते हो या सफाई कर्मचारी शायद?   

जय JJP? विजय JJP? इनके नंबरों के हिसाब-किताब से आप नौकरी ही नहीं कर सकते, भारत में? हाँ, कोई अपना काम कर सकते हो, वो भी गाँवों में? 

ऐसे ही और पार्टियों के हिसाब-किताब होंगे?   

तो माहौल कहाँ तक पहुँचा बनते-बनते? या इन राजनीतिक पार्टियों द्वारा बनाते-बनाते? 

EC वाली स्टेज आपको पार करवाई जा चुकी है, 2021 में। ED तैयार बैठी है निगलने के लिए? अभी तक यूनिवर्सिटी द्वारा पैसे ना देने का बस इतना-सा खेल है? आप कोई और नौकरी भी नहीं कर सकते, ऑनलाइन भी नहीं। वहाँ के माहौल पर भी टाइट कंट्रोल है। वहाँ पे भी खास तरह के ड्रामे हैं। 

अपना कुछ आप शुरु ना कर सकें, स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर कब्जे की और यूनिवर्सिटी वाली सेविंग पर कुंडली मारने की कहानी यही है। उसके लिए क्या कुछ माहौल बनाए इन पार्टियों ने? भाभी को खा गए। 

रायगढ़ धँधा? इंस्टेंट क्लिक लोन, YONO Fraud? जिसका मतलब था, इधर लोन खाते में और उधर नौकरी खत्म। और आपको लगा, आप पढ़ने-लिखने के लिए ले रहे हैं? हेरफेरियाँ, हेरफेरियोँ में माहिर लोगों की। चलो, ये तो छोटा-सा लोन था।  

चलो वो सब भी आया गया हुआ। कम से कम बचा-खुचा पैसा तो मिले। ऐसे कैसे? अभी आखिरी कील नहीं ठोंकेंगे ताबूत में अपने जाहिलनामे की?

माहौल?  

पानी के नाम पर पीने या प्रयोग करने लायक पानी नहीं है । 

खाने के नाम पर खाना नहीं है। चल रहा है, जैसे-तैसे। 

बीमार हो जाओ तो, दवाई नहीं। 

रहने को घर नहीं और पहनने को कपड़े नहीं। रह रहें हैं जैसे-तैसे। चल रहा है काम चीथड़ों में। 

"महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?" में कुछ-कुछ झलक मिल सकती है, इस सबकी की, की ये राजनीतिक पार्टियाँ माहौल कैसे घड़ती हैं?    

तो कितना चलेगा कोई ऐसे माहौल में? बाहर अभी कहीं जाना नहीं। अब ED के वेश्यावर्ती के धंधे वाले जाल में नहीं फँसोगे, तो कोई न कोई रस्ता तो ढूँढेंगे ना ठिकाने लगाने का? तो घड़ दिया माहौल?  

गर्मियों में बिजली, AC और गर्मी या कूलर में आग लगने का तमाशा चल रहा था। तो कुछ वक़्त पहले? धूंध और acidic air? बिमार करो और मारो। माहौल ऐसा घड़ दो, की छोटी से छोटी बीमारी ले निकले। जो होता है वो दिखता नहीं, और जो दिखता है वो होता नहीं?     

नौकरी से खदेड़ने के बाद, यूनिवर्सिटी सेविंग का क्या किस्सा-कहानी चल रहा है? जाने?  

तो Enforced Resignation के बाद Enforced Murder? और इसके लिए उन्हें आपके पास चलके नहीं आना पड़ता, ये सब वो दूर बैठे-बैठे ही कर देते हैं।  

Saturday, November 30, 2024

What the hell is this eco nomy?

Wonder, if eco nomy and PAN card are also cooperative modelling to fit into bigger designs of political system? -- to fit the rich people? Not the poor ones?

जाने क्यों मुझे अपने PAN card को पढ़ कर ऐसे लगा? उसके नंबर ही जैसे सीधा-सीधा कंट्रोल कहीं और बता रहे हैं। 

कहीं पढ़ा की राजनीतिक पार्टियाँ सिस्टम डिज़ाइन करती हैं। जिनमें अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरह के चैक पॉइंट हैं। पार्टियाँ इन चैक पॉइंट्स के जरिए, लोगों को कंट्रोल करती हैं। एक तरफ जहाँ मानव सँसाधन हैं। तो दूसरी तरफ IDs सबसे बड़ा कंट्रोल का तरीका हैं। कोढ़ के सिस्टम में ये IDs बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। भारत में आधार कार्ड  और PAN card, IDs में सबसे महत्वपूर्ण हैं। उसके साथ आपकी जन्म की तारीख और नाम।  

किसी भी महत्वपूर्ण ID में कम से कम एक शब्द या नंबर आपके अपने नाम का पहला शब्द या आपके जन्म का कोई खास नंबर जरुर होना चाहिए। 

कैसे डिज़ाइन करती हैं ये महत्वपूर्ण ID देने वाली एजेंसीयाँ, इनके नंबर या कोड? 

Friday, November 29, 2024

Time to get rid of aadhar

Time to get rid of aadhar. Aadhar is exploitation, without information, without consent, the worst way possible. This is dh of Hydra? Who needs it? And why? By this way common people become the subject of abuse by political parties, directly or indirectly.

The worse, even childrens are at risk of exploitation and possible abuses by birth. I wonder, for what purpose, it was invented? What was the intention behind this invention?


Sunday, October 20, 2024

ईधर-उधर, उधर-ईधर? किधर?

कुछ कदम कहीं ठहरे से 

तो कुछ कदम प्रवाह में हैं? 

कुछ जमीन पे ना आसमां पे 

कुछ शायद मझधार में हैं? 

बिछड़े हुए बिछड़े नहीं हैं, 

पाए हुओं को ना पाया हुआ।  


जाने कहाँ खोए हुए? 

इतिहास भी हैं, और 

कुछ परतों के उधड़ने से, 

जिज्ञासा का विषय भी हैं। 

वो परतें जिनपे ताले भी हैं? 

नाम भर मात्र शायद अब 

और जैसे खुले दरबार भी हैं? 


शिकार की घात वाला प्राणी, 

शिकार करता है, अपना पेट भरने को। 

खुद डरा हुआ इंसान डराता है 

निडर कब घुड़खी दिखाता है?

वो तो है बंदरों का काम 

या साँप जैसे, खुद डरा शैतान?


आभार उनका भी, आभार इनका भी 

ये भी कुछ दिखा रहे हैं और वो भी? 

ये भी कुछ समझा रहे हैं और वो भी? 

रस्ते इधर भी हैं और शायद उधर भी? 

जाना किधर है?

कदम दिखें किधर भी, ठहराव इधर है? 

Monday, September 9, 2024

Today's Dhamaal

 I sent a mail today to university.

                                                   In response? I got some interesting mails.

(Rare happenings)


10 special effects?

To know the truth of these mails, which seems fake, I called  these offices.

No-one was there to pick the calls?

When something like that happened in the past?
"Mara" special call and drama, the day, I filed PIL in Supreme Court regarding murders of common people, corona times.
And what kidos call that? 
IPL? As they don't know the truth of many mishappenings in their own homes?
People are so stupid that they cannot even differentiate between PIL and IPL?
Wanna know about that "Mara" special call and drama? Maybe, some other post.

It's Joining Back

Release My Saving Or It's Joining Back?

उस मेल के बाद भी बात होती रही concerned file holders से। 

अकादमिक ब्रांच, टीचिंग। 

संगीता मैम, फाइल क्लियर हो गई क्या? एक साल से ऊप्पर तो फाइल शायद आपकी ही टेबल पर है?

जब वो कहें की एक दो-दिन में क्लियर हो जाएगी, तो यूनिवर्सिटी कोई बारिश का ड्रामा चलाएगी। जी यूनिवर्सिटी। पीछे केजरीवाल की बेल होनी थी। तारीख़ क्या थी? तारीख़ पे तारीख़ चल रहा यहाँ भी। अपनी तो समझ से बाहर है। किसी को आए तो बताना?

उस दिन या उसके अगले दिन फाइल क्लियर होनी थी। मगर, नहीं हुई। क्या? बेल या फाइल? दोनों ही। अब कोई पूछे की ये किसी टीचर की बचत की फाइल का, केजरीवाल की बेल से क्या लेना-देना? खैर! मैं उसके बाद यूनिवर्सिटी गई और क्या हुआ?

Academic Branch

संगीता मैम कहाँ हैं? 

कोई एम्प्लोयी: मैडम वो तो डीन के वहाँ मिटिंग में गए हैं। 

कब तक आएँगे?

पता नहीं 

और मैं थैंक यू बोलकर डीन ऑफिस आ गई। 

डीन असिस्टेंट रुम: अंदर कोई मीटिंग चल रही है?

अभी शुरु नहीं हुई है मैडम। शुरु होने ही वाली है। 

संगीता मैम हैं वहाँ, ऐकडेमिक से?

शायद हैं। 

एक बार बोल दो, की विजय दांगी मिलने आई हुई हैं। 

मैम, मीटिंग शुरु हो गई। 

कितनी देर चलेगी, कुछ आईडिया है? 

जी, पता नहीं। 

कौन-कौन हैं मीटिंग में?

राहुल ऋषि सर, गिल सर। और भी कई हैं। 

एजेंडा क्या है?

स्टूडेंट से रिलेटेड ही है, कोई। 

और आप थैंक यू बोलकर यहाँ से भी आगे बढे। थोड़ी देर इधर-उधर गप्पे हाँक के, रजिस्ट्रार ऑफिस के वेटिंग रुम में बैठ गए, जो डीन ऑफिस के साथ ही है। 

मोबाइल की बैटरी भाग गई। अभी तो 10% दिखा रहा था? खैर, साथ में ही चार्ज होने के लिए रख दिया। 

उधर एक फीमेल सिक्योरिटी गार्ड और दो बन्दे और बैठे हैं, जिन्हें मैं नहीं जानती। 

उनसे पूछा तो एक ने बताया, ड्राइवर परमिंदर दलाल? और दूसरा भी ड्राइवर, देवेंदर हूडा। एक प्रोफेसर राहुल ऋषि का और दूसरा प्रोफ़ेसर गिल का?

इसी दौरान थोड़ी बहुत फीमेल गार्ड से भी बात होती है, जिसे मैं पहले से जानती हूँ, नीम केस और एक दो मीटिंग के दौरान थोड़ी बहुत बात हो रखी थी, मनीषा।

बाहर से तेज-तेज आवाज़ आ रही हैं। स्टूडेंट्स का कोई प्रोटैस्ट चल रहा है, शायद? 

मीटिंग भी उसी सन्दर्भ में है क्या?

पता नहीं, मैडम। 

थोड़ी देर बाद दो और लेडी आकर फीमेल गार्ड से बात करने लगती हैं। और शायद यही बताती हैं की बाहर तो बारिश हो रही है। जिसकी आवाज़ अंदर तक आ रही थी। क्यूँकि, इन ऑफिस के बीच, फाइबर कवरिंग है शायद? जिसपे बारिश पड़ते ही बहुत तेज आवाज़ होती है। 

इन सबके बीच, मैं कुछ मीडिया वालों की खबरें पढ़ रही थी, मोबाइल पे।    

गार्ड्स अपना खाना खा रही थी। 

लंच ब्रेक ख़त्म हुआ और मैं वापस ऐकडेमिक ब्रांच। 

संगीता मैम से पूछा, फाइल फाइनेंस ऑफिस पहुँची की नहीं?  

मैडम, अभी एक-दो दिन और लगेंगे। 

अब क्या रह गया?

आपने वो मेल नहीं किया उन्हें (GB को), आपका रेंट माफ़ कर दें। 

अरे मैडम, आपको पहले भी तो बोला, कटने दो और फाइल आगे बढ़ाओ। 

मैडम, मैं तो आपके भले के लिए ही कह रही हूँ। 

वो GB वाले वो गुंडे हैं, जो भाभी की मौत के बाद, मेरे रेजिडेंस के रेंट का फरहा, मेरे नॉमिनी को भेझते हैं। जैसे की मैं मर गई हों। 

मैडम, क्या जाता है, एक मेल से काम हो जाए तो। 

मुझे अच्छा नहीं लग रहा कोई ऐसी रिक्वेस्ट करना। वो भी किनसे? जो आदमखोरों की तरह, भाभी की मौत के बाद, मेरे रेंट का फरहा, मेरे नॉमिनी को भेझे? कैसी बेहूदा और भद्दी नौटंकियाँ हैं ये? इंसानियत कहाँ है? और फिर इतने थोड़े-से पैसे के लिए, ऐसे लोगों को रिक्वेस्ट करना?

मैडम देख लो, हो सके तो, कर देना मेल। 

आप ऐसे ही जाने दो इस फाइल को प्लीज। वैसे भी बहुत लेट हो चुकी ये फाइल।    

अभी कहीं और मुझे नौकरी करनी नहीं। अपना ही कोई प्रोजेक्ट करना है और मुझे पैसों की जरुरत है। 

कितनी अजीब बात है ना, की आप अपने ही पैसों के लिए धक्के खा रहे हैं? मन में सोचते हुए, मैं वहाँ से आ गई। क्या तारीख थी, उस दिन? 21. 08. 2024?

पहले वो यूनिवर्सिटी में आपकी नौकरी हराम करते हैं। हर जगह रोड़े अटकाते हैं। मार-कूट के वहाँ से निकालते हैं। और फिर घर पे अर्थियाँ उठाते हैं। ज़मीन-ज़ायदाद या किसी की थोड़ी बहुत बचत को भी हड़पने के चक्कर में लग जाते हैं?

एक तरफ आम आदमी और एक तरफ बड़े लोग? एक निम्न मध्य वर्ग को वो बिल्कुल मिट्टी में मिलाने का काम करते हैं। कोई पता तो करे, की इस कोरोना नाम के फर्जीवाड़े के बाद, कैसे-कैसे लोगों की प्रॉपर्टीज़ में अचानक कितना उछाल आया है या बढ़ी हैं? और किनकी उन्होंने बिल्कुल ही जैसे साफ़ कर दी? 

इसी से आपको समझ आ जाएगा की ये ज़मीनों या प्रॉपर्टी के धंधों के पीछे छुपी असली कहानी क्या है? हर केस में, समाज के ऊप्पर वाला वर्ग मार सबसे कम खाता है और फायदा हमेशा सबसे ज्यादा। उससे जैसे-जैसे, नीचे वाले वर्ग पे जाते जाओगे, पता चलेगा की वो वर्ग उतना ही ज्यादा भुगतान करता है। 

अब तो मुझे अपनी नौकरी भी चाहिए और मेरा रेजिडेंस भी। धँधाकर्मियों ने हर चीज़ को अपने बाप की प्राइवेट लिमिटेड बना लिया है। फिर वो सरकारी क्या और प्राइवेट क्या? ये कैसे लोग कुर्सियों पे बैठे हैं? जो कहते हैं, यहाँ शिक्षा का या रिसर्च का माहौल देना, हमारा काम नहीं या हमारे वश में नहीं। इतनी सिक्योरिटी वाली जगह पे, कायरों की तरह मिलजुलकर एक महिला को पीटना या पिटवाना इनका काम है? वो है जो इनके वश में है? उसी के लिए तो ये कुर्सियां मिलती हैं इन्हें? 

और इन्हीं पढ़े-लिखे और कढ़े शातिरों ने हमारे बच्चे-बड़े सब उलझा रखे हैं, अपने जालों में। सामान्तर घड़ाईयों द्वारा। वो कुछ उल्टा-पुल्टा कहलवायेंगे या करवाएंगे भी इन्हीं से। और फिर उसकी मार भी इन्हीं को देंगे। कैसे? आते हैं उसपे भी आगे पोस्ट्स में। 

जैसे कोई कहे, इसकी नौकरी छुडवानी है। 

और कोई कहे रेजिडेंस छुड़वाना है। 

कोई कहे बचत का आना नहीं मिलने देना या मिलना। 

और लम्बी लिस्ट है। जिनसे ये ऐसी-ऐसी कमेंटरी कहलवाई या करवाई, उन्हीं का इतना कुछ खा गए ये सामान्तर घड़ाईयों वाले, की जिसकी ज़िंदगी भर भरपाई नहीं हो सकती। सोचो, आपसे या आपके आसपास ही ऐसा कुछ किन-किन से कहलवाया गया या करवाने की कोशिशें हुई? और कैसे कहलवाया या करवाया? तरीके? और अंजाम? आप सोचो अभी। पढ़ेंगे को मिलेगा आगे।

Release My Saving Or It's Joining Back?

2021 में Resignation Accept हुआ। उससे पहले क्या चल रहा था? सबको नहीं तो बहुतों को मालूम है अभी तो शायद। कैंपस क्राइम सीरीज पढ़ने वालों को खासकर।  

 इधर-उधर से सलाह आने लगी, Resignation की बजाय छुट्टी ले लो। मेरा मन भी कोई खास पढ़ाई का था, तो वो भी लिख दिया। और कैंपस क्राइम सीरीज पब्लिश करना शुरु कर दिया। 6 महीने बाद GB (General Branch) वालों ने परेशान करना शुरू कर दिया। रेंट ज्यादा लगेगा, रेजिडेंस छोड़ दो। मेरा कहीं और ठिकाना ही नहीं था। अपना कोई घर लिया नहीं हुआ था और बाहर रहने का मन नहीं था। तो लिख दिया, काट लेना जो बने। कुछ वक़्त बाद उन्होंने और ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया। और ये GB पता है कौन है? Big Boss Houses के ठेकेदार? इनका काम ठीक-ठाक रहने लायक घर देना होता है, एम्प्लॉयीज को। और कोई कंप्लेन हो तो ठीक करना। इन्होंने जो किया है, अगर सही से करवाई हो तो ये ज़िंदगी भर जेल में सड़ें।   

खैर, मैंने माहौल को देखते हुए, कहीं बाहर रहने की बजाय, घर का रुख कर लिया। महाभारत, यहाँ भी नहीं रुकी, बल्की कुछ ज्यादा ही बढ़ गई और इस राजनीतिक पार्टियों की महाभारत ने लोगों को खाना शुरू कर दिया। इस सबके दौरान भी corresspondence होती रही। 

यूनिवर्सिटी ने ना तो जॉइनिंग दी और ना ही पैसा। मना भी नहीं किया। क्या कहके करते? हाँ, इधर-उधर से जरुर कहलवाया की कुछ नहीं बचा हुआ तुम्हारा। कुछ यूनिवर्सिटी को अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी समझने वालों ने? मगर unofficial या इधर-उधर के बुजर्गों के कहने का क्या? यूनिवर्सिटी ने सिर्फ बहाने पे बहाने दिए। फाइल यहाँ है। फाइल वहाँ है। कभी ये समस्या है, तो कभी वो समस्या है। जो समझ आया, वो ये की समस्या कुछ नहीं है। गुंडागर्दी है। उसी गुंडागर्दी ने पर्सनल और प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी की राह में रोड़े अटकाए हुए हैं। कुछ साल पहले तक कुछ शक थे, बिमारियों पे, मौतों पे। धीरे-धीरे वो शक हकीकत का आईना भी दिखाने लगे। और एक बहुत-ही बेहुदा और घटिया, गुप्त-सिस्टम को भी। ये पीछे जो यूनिवर्सिटी को मेल की, वो है। 

Sunday, August 25, 2024

कुछ हल्का-फुल्का हो जाए?

 हल्का-फुल्का?

"मेरे पापा ने मुझे स्कूल में जमा करा दिया", ये किसी कवि को कहीं सुना था शायद? 

आगे थोड़ा जमाबंदी से  

और कहा अबसे आपकी बंदी (बंधी पढ़ें?) है ये। 

तो नाम पड़ा होगा, जमाबंदी?

कितनी जमाबन्दियाँ हैं आपके आसपास?  

Landrecords की एक ऑफिसियल वेबसाइट है jamabandi.nic.in   

jamabandi? पे जाके आप अपनी जमाबंदी की nakal (हूबहू कॉपी) ले सकते हैं।   

और ये DSNakal क्या है?  दुशाषन या दुर्योधन नकल जैसे? 

और इसी jamabandi की वेबसाइट से आप अपनी जमीन का mut (वैसे हिंदी में इस शब्द को क्या कहेंगे?  स्टेटस भी पता कर सकते हैं।  

वैसे Mutation शब्द? के मायने कुछ-कुछ वैसे ही हैं, जैसे Biological Mutations?   

https://jamabandi.nic.in/DSNakal/CheckMutStatus

Query 

Deed 

Cadastral Map ऐसी-सी ही कुछ और रोचक जानकारी भी है इस वेबसाइट पर। उसपे फिर कभी :)

Friday, August 16, 2024

आजादी दिवस? गोली या गोला दिवस?

Independence Day?

मुझे तो आज़ादी और बेड़ियों का मतलब समझ, 2019 में ही आ गया था। तारीख क्या थी? और महीना? उसके बाद, उसी महीने में अगले साल कुछ खास था? खैर। इस दौरान जो दुनियाँ देखी, मुझे लगता है दूर से ही सही, वो एक बार तो जरुर सबको देखनी चाहिए। क्यों? अगर आप रिसर्च को खास समझते हैं तो शायद अपने पेपरों को ही या तो रद्दी के हवाले कर देंगे। या उनमें थोड़ा-बहुत तो जरुर कुछ और बेहतर करने का सोचेंगे। मगर रिसर्च ही क्यों?

आओ कुछ-एक भाषण सुनें।    

रौचक भाषण, अगर जाती से परे थोड़ा देखें तो?



मुझे नेता-वेता या राहुल गाँधी कोई खास पसंद नहीं। मगर, एक-दो सत्यपाल मलिक के भाषण सुने हैं। काफी रौचक होते हैं। कुछ एक पॉइंट्स खासतौर पर जानने लायक। थोड़े बहुत मानने लायक भी शायद। जैसे इस भाषण में शिक्षा को लेकर। 
शिक्षा पे जीतना ध्यान दोगे, उतना ही आगे बढ़ोगे। जीतना इससे दूर जाओगे, उतना ही पिछड़ते जाओगे। ये मैंने जोड़ दिया।   

"गोली अगर आए, तो उसका जवाब गोले से देना"

गोली से आप क्या समझते हैं? 

और गोले से?

हमारे मौलड़ जवाब कैसे देंगे? हथियारों से? और फिर?

ज्यादा पढ़े और उसपे कढ़े हुए लोग कैसे देंगे?    

गोली के बारे में बात बाद में। पहले गोला समझें थोड़ा?

गूगल बाबा से पूछें?  

AI (Artificial Intelligence) कभी-कभी बड़े रोचक परिणाम देती है।  
जैसे किसी साइड की तरफ से कोड-डिकोड में सहायता? 
कैसे पढ़ेंगे इस तस्वीर को आप?

आपके आसपास कोई गोले बेचने आता है क्या?
या गोली बेचने?
गोली तो शायद आप दूकान से लाते हैं? Pharma या Medicine Shop? 
आपके आसपास किन-किन की हैं, वो दुकानें?
एक ही दवाई अलग-अलग दूकान से लेकर देखो। 
किसी या किन्हीं ऐसी दवाईयों में कुछ फर्क मिलता है क्या?

ऐसे ही नारियल पानी कहाँ मिलता है?
या पानी वाला नारियल? 
या किससे मिलता है?
और वो देने वाले कहाँ से लाते हैं?
 
और गोला?
आपके आसपास आता है कोई बेचने?
कौन? कहाँ से? 
एक गोले के कितने टुकड़े करता है?
और कितने में मिलता है?
पूरा गोला कितने का और एक टुकड़ा कितने का?
और पानी वाला नारियल कितने का?
सूखे गोले में और पानी वाले नारियल में क्या फर्क है?
बिमारियों से जोड़कर देखो।     

ये सब जानकर? अब ऊप्पर वाली गूगल की गूगली वाली तस्वीर को समझने की कोशिश करो। शायद कुछ खास बिमारियों के किस्से-कहानी समझ आ जाएँ? सम्भव है? कोशिश तो करके देखो। आप जो कोई खाना या पानी ले रहे हैं, बिमारियों के काफी राज उन्हीं में छिपे हैं। उसके बाद दवाईयों या हॉस्पिटल तक जाते हो, तो बाकी कोड वहाँ मिल जाएँगे। 

उससे भी आगे, अगर कभी पहुँचना पड़े तो? जब तक बहुत सारे कोड और उनके मतलब ना पता हों, तो बहुत कुछ जानना तो मुश्किल है। मगर, खास तेहरवीं तक के वक़्त में, अगर कोई नेता या अभिनेता आ फटके, तो तारीख और वक़्त अपने आप काफी कुछ गा रहा होगा। कहीं-कहीं तो शायद ऐसा लगेगा, की इस साँप के डंक का दिन आज का है? ये साँत्वना देने आया है या अपने किन्हीं कांडों पे मोहर ठोकने जैसे? अजीब लग रहा है, ये सब पढ़कर? मगर राजनीति के इस धंधे में कुछ ऐसा-सा ही बताया। और बहुत बार तो जरुरी नहीं की नेता तक को कुछ ऐसा पता हो। क्यूँकि, वो महज़ एक proxy भी हो सकता है, किसी तरफ के किसी खास किरदार की। वो भी उसकी अपनी जानकारी के बिना। 

चलो आपने In Depen Dence का गोला या गोली फेंक ली हो, तो अगले भाषण या शायद किसी इंटरव्यू को देखें? सुने? और थोड़ा समझने की कोशिश करें?   

Saturday, August 10, 2024

किताबवाड़ा, बैठक या गतवाड़ा?

मतलब, जमवाड़ा? जमघट? किताबों का? 

मगर, राजनीती ने उसकी दुर्दशा करके यूँ लगता है, जैसे, गतवाड़ा बना दिया हो। बहुतों को शायद गतवाड़ा क्या होता है, यही नही मालूम होगा। हरियाणा और आसपास के राज्यों में, गरीब लोग गाएँ-भैंसों के गोबर के उपले बनाते हैं। वो भी हाथ से। फिर, उन उपलों को सूखा कर, स्टोर करते हैं। गरीब हैं, तो स्टोर करने तक को कोई जगह नहीं होगी, जहाँ उन्हें बारिश से बचाया जा सके। तो उपलों को खास तरकीब से तहों पे तहें रख कर, बाहर से गोबर से लेप देते हैं। उसे गतवाड़ा कहते हैं। ये गोबर से बने उपले, गैस की जगह प्रयोग होते हैं। गतवाड़े को ठेठ हरियाणवी में बटोड़ा और उपलों को गोसे भी कहते हैं।  

एक कहावत भी है, अगर कोई कुछ ढंग का बोलने की बजाय या दिखाने या समझाने की बजाय, या करने की बजाय, अगर फालतू की बकवास करे तो? हरियाणा में उसे "नरा बटोड़ा स। बटोड़े मैं त गोसे ए लकड़ेंगे।" भी बोला जाता है। राजनीती के अपमानकर्ताओं के कुछ ऐसे से ही हाल बताए। ये, ईधर के अपमानकर्ता और वो उधर के। इन हालातों को सुधारने के थोड़े शालीन तरीके भी हैं। 

जैसे, गतवाड़े अगर किताबवाड़े हो जाएँ? तो क्या निकलेगा उनमें से? तो चलो मेरे देश के खास-म-खास महान नेताओ, और कुछ नहीं तो अपने-अपने नाम से या खास अपनों के नाम से ही सही, कुछ एक किताबवाड़े ही बनवा दो? जहाँ से "फुक्कन जोगे", "अपमानकर्ता गोसे", नहीं, ज्ञान-विज्ञान के पिटारे निकलेंगे, किताबों के रुप में। और आसपास के बच्चों, बड़ों या बुजर्गों को इक्क्ठे बैठने के लिए या आपसी संवाद के लिए, या कुछ नया या पुराना सीखने के लिए, न सिर्फ जगह मिलेंगी, बल्की समाज का थोड़ा स्तर भी बेहतर होगा। उन्हें किताबवाड़े की जगह बैठक भी बोल सकते हैं। जहाँ हुक्के, ताशों या तू-तू, मैं-मैं की बजाय, थोड़ा बेहतर तरीके से संवाद हो। वैसे, जिनके पास थोड़ी बड़ी बैठकें हैं या जो अपनी बैठकों को खास समझते हैं, वो भी उन्हें कोई खास नाम देकर, ऐसा कुछ बना सकते हैं। 

ऐसे ही शायद, जैसे भगतों या शहीदों के नाम पर सिर्फ पथ्थरों की मूर्तियाँ घड़ने के, वहाँ ऐसा कुछ भी हो? तो शायद लोगों को ऐसी जगहें ज्यादा बेहतर लगेंगी।    

"चलती-फिरती गाड़ी, कबाड़ की। लाओ, जिस किसी माता-बहन ने कबाड़ बेचना है। कबाड़ लाओ और नकद पैसे लो। चलती-फिरती गाडी कबाड़ की।" अब ये क्या है?

किताबों पे या इनके आसपास के विषयों पे, जब कुछ ऐसा लिखा जाता है, तो जाने क्यों, बाहर कोई ऐसा-सा बंदा जा रहा होता है। या फिर, "काटड़ा बेच लो।"  कुछ भी जैसे? है ना :) 

Friday, August 9, 2024

Revolving around base is our system?

What kind of base is that?

आधार केन्द्रित? मूल? जिसपे ब्याज भी लगता है? और जिसका टैक्स भी कटता है? और? अगर आप इनके अनुसार ना चले, तो टैक्स भी भारी-भरकम लगता है।     

जहाँ पढ़ने वालों को क्लासों से, लैब्स से बाहर निकालने की कोशिश होती हैं। पढ़ाई-लिखाई या कैरियर ओरिएंटेड लोगों को प्रोफ़ेशनल जोन से ही बाहर धकेलने की कोशिशें होती हैं। जाने कौन-से मैट पे और कैसे-कैसे तरीकों से? जैसे, उस खास किस्म के मैट के बिना ज़िंदगी ही ख़त्म है। उसके बिना कुछ नहीं ज़िंदगी में। जैसे कुछ लोगों के हिसाब-किताब से एक उम्र तक शादी नहीं की, तो आपकी ज़िंदगी में है ही क्या? जैसे जिन्होंने शादी कर ली, उन्हीं की ज़िंदगी में सब है। शायद थोड़े से ज्यादा झमेले? और जो सारी उम्र ना करें, वो तो बिलकुल ही ख़त्म होंगे? अब किसी की शादी हो गई और बच्चे नहीं हुए या पैदा नहीं कर रहे, तो उन ज़िंदगियों में कुछ नहीं है? एक दकियानुशी दायरे में कैद सोच, जो चाहे की सब उनके दायरे वाली कैदों के हवाले रहें। उनके खास टैस्टिंग वाली लैब्स के टैस्ट से गुजरें। नहीं तो --- 

और इन खास सोच वालों के हिसाब-किताब से ना ही इन ज़िंदगियों को कुछ चाहिए। जो है वो सब उनके हिसाब-किताब वाली ज़िंदगियों को अवार्ड होना चाहिए। ऐसे लोगों को देख-सुनकर या झेलकर समझ ही नहीं आता, की तानाशाही के कितने रुप हो सकते हैं? क्यों कोई किसी के जबरदस्ती के स्टीकर उठाए घूमें? और क्यों सबकी ज़िंदगियाँ, इन खास वाले ठेकेदारों के हिसाब-किताब से चलें? 

हिसाब-किताब? बेबी को बेस पसंद है, वाले? या 

"जब वो मैट पे कुस्ती लड़ रहे थे, तो ये विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।"

--पे तो हमारी राजनीतिक पार्टियों की पॉलिसी चलती हैं?   

बताओ ऐसे-ऐसे हमारे युवा नेता, खास बाहर से पढ़े-लिखे, क्या और कितना देंगे समाज को? प्रश्न हैं, ऐसे-ऐसे कुछ अपने खास नेताओं के लिए। वो फिर इस पार्टी के हों या उस पार्टी के। ये खास "बेस पसंद सिस्टम" या "खास टच पैड सिस्टम", बाहर निकल पाएगा क्या, 23rd पेअर सैक्स क्रोमोजोम से ? महज़ XY के हॉर्मोन्स से? 44 क्रोमोजोम और भी हैं। ठीक ऐसे जैसे, इन खास जुआ खेलने वाले वर्ग के। सारे समाज को क्यों घसीटते हो वहाँ? ये कम पढ़ी-लिखी या तकरीबन अनपढ़ माएँ, चाचियाँ, ताई या दादियाँ, कैसे-कैसे पानी के खेल खेलते हो इनके साथ आप? और तो क्या कहें भाईचारे वाले इन नेताओं को, "गलत बात"। आप समाज को आगे बढ़ाने और उठाने के लिए हैं, ना की यूँ गिराने के लिए। 

ऐसे तो नेता को "अपमानकर्ता" से संबोधित करना पड़ेगा। फिर राजनीती के लिए सही शब्द क्या होगा ? "Insult to life, insult to death", के लिए एक हिंदी या हरियान्वी शब्द?                            

माहौल (Culture Media)

माहौल कैसे प्रभावित करता है, किसी भी जीव को? उसकी ग्रोथ को या ज़िंदगी को?
छोटे-छोटे से उदहारण लेते हैं। 

आवाज़ें आ रही हैं कहीं से। किसी छोटी-सी बच्ची पे डाँट पड़ रही है शायद। 
गँवारपठ्ठे: हरामजादी, कुत्ती, सारा साल तो खेलती हाँडी, ईब बैठ क रोवै स, जब कल सर प पेपर है। ब्लाह, ब्लाह,
स्कूल के बच्चों पे इतना प्रेशर? और ये जुबान तो आम है यहाँ। 

थोड़ी देर बाद बच्चा सुबकते हुए: मरुँगी मैं। मेरे को नहीं जीना। मरुँगी मैं। 
क्या हुआ? सिलेबस पूरा नहीं हुआ ना? खेलने चले गए, मना करने के बावजूद?
पापा ले गए खेत, घुमाने। 
पापा ले गए या आप खुद गए? 

रोना बंद करो अब और लो पानी पीओ। क्या खाना है? 
गुस्से में: कुछ नहीं खाना। मरना है मेरे को। मैं भी .......  मर जाती तो ब्लाह ब्लाह ब्लाह 
ओह हो। इतना गुस्सा? इतने छोटे-से बच्चे में? पेपरों की वजह से भी कोई मरता है? ये अब गए, तो कल फिर आ जाएँगे। आज नहीं हुआ, तो कल हो जाएगा। 
चुप करो। वक़्त नहीं है, मेरे पास। 
बाप रे। अभी तो बहुत वक़्त है आपके पास। पूरी ज़िंदगी है। 
नहीं है। मरना है मुझे। 
बकवास बंद करो, नहीं तो 
नहीं तो क्या 
बैठ के पढ़ते हैं। 
नहीं होगा। सारा सिलेबस पड़ा है। 
अरे दिखाओ तो, मुझे भी पता है। इत्ता-सा तो सिलेबस है। 
इत्ता-सा?
हाँ। बस 2-4 घंटे में हो जाएगा। 
2-4 घंटे में?
हाँ। और अभी तो हमारे पास पूरी रात है। 
मैं जाग लूंगी?
मैं जगा दूंगी। 
नींद आई तो?
नहीं आएगी। नींद भगाने के तरीके होते हैं। 
अभी किताब खोलो 
और 12. 00 - 12. 30 तक सिलेबस निपट गया, समझो। 
(बच्चों का सिलेबस ही कितना होता है? मगर, बच्चों के लिए तो वही पहाड़ होगा, अगर वक़्त कम होगा या समझ नहीं आएगा तो। )    
जाओ अब सो जाओ। बाकी सुबह उठकर पढ़ लेना। मैं जगा दूंगी। 
और पेपर के बाद बच्चा, पेपर अच्छा हो गया, अच्छा हो गया, करता आ रहा है। 
 
और एक हमारी माँ करती थी। 
माँ, सुबह उठा दियो। पेपर देने जाना है। 
पेपर तेरा है या मेरा? देके आना हो तो उठ लियो।  
:)

या फिर लेट तक जाग रहे हो और कोई थोड़ा बहुत शोर हो गया।  
भाईरोई, पड़े न पड़न दे। किसे और क भी लाइट जले स? अक तू अ घणी पढ़ाकू स? 
या 
इन पोथ्यां न त बिगाड़ दी। कम पढे ए, सही रहवे ए। 
मतलब, यहाँ आजतक पढ़ाई पे खतरे हैं। बहाना कुछ भी हो सकता है। 
 
इन लोगों ने देखा ही नहीं की दुनियाँ कितना-कितना पढ़ती है। और उनकी ज़िंदगियाँ मस्त हैं। कम से कम, यहाँ वाली औरतों जैसे हालात तो नहीं हैं। बोल चाल का तरीका, रहन-सहन का तरीका, सुख-सुविधाएँ, समझाने का तरीका या प्रेशर को बढ़ाने का, सिर्फ शब्दों ही शब्दों में या घटाने का, बहुत असर करता है ज़िंदगी पे। और भी कितनी ही छोटी-मोटी सी रोजमर्रा की बातें, ज़िंदगी को आगे बढ़ाने में या पीछे धकेलने में कितना तो योगदान देती हैं। तभी तो आप जो होते हैं, आपके बच्चे भी ज्यादातर वहीं तक रह जाते हैं। उससे आगे, उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। और उस मेहनत को अक्सर ये माहौल, आगे बढ़ाने की बजाय, पीछे धकेलता मिलेगा। 

ड्राफ्ट में पड़ी थी ये पोस्ट। कुछ महीने पहले की बात है। मगर जाने क्यों, पोस्ट करने का मन नहीं था। ऐसे ही जैसे कितना कुछ हम लिखते हैं, मगर सब पोस्ट कहाँ करते हैं? यूँ ही, छोटी-छोटी सी बातें समझ के। यही छोटी-छोटी सी बातें, कभी-कभी कितना कुछ बिगाड़ कर जाती हैं?            

Sunday, August 4, 2024

मगर कैसे?

Rhythms of Life 4th अगस्त 2011 पोस्ट, ब्लॉग्स के organization, clutter, declutter में कहीं और गई।   
आज ही के दिन कोई इंसान इस घर से गया था। जो इस घर का न होकर भी, अपने घर से ज्यादा इस घर का था। कोई बात ही नहीं थी। मेरे पास आया , स्टडी टेबल और कुर्सी दे गया। उन दिनों मै सैक्टर-14 रहती थी। घर पे भी ऐसी ही कुछ, कहानियाँ थी। मगर, ऐसी कहानियों के पीछे छिपे रहस्यों को जानना, बहुत मुश्किल भी नहीं होता शायद।  

अरविंद केजरीवाल रैली और किसान हादसा : ऐसे केसों को जानना शायद थोड़ा बहुत मुश्किल हो ? शायद ?

ऐसा-सा ही कुछ ये भी शायद?

Generally, मैं स्पैम मेल्स नहीं खोलती। उसपे gmail तो वैसे भी yahoo से कम ही प्रयोग होता है। मगर जब भी खुलता है, तो ज्यादातर स्पैम बिना पढ़े डिलीट होती हैं। शायद यही होना भी चाहिए।

 
मगर, जाने क्यों कल जब कई दिन बाद चैक किया तो स्पैम मेल्स पे निगाह ठहर गई जैसे। इमेल्स भी पीछे की तारीख में होती हैं क्या, स्पैम ही सही? या महज coincidence जैसे? या कुछ नहीं मिलता-जुलता? या मिलता भी है और नहीं भी शायद? मगर कैसे? यहाँ-वहाँ , जाने कहाँ-कहाँ, सब जैसे साथ-साथ सा ही होता है? मगर कैसे? ये अहम है। 
Cleartax ने ?

Micromaagemet upto what level ?

अपडेट नहीं करोगे तो ?

 Somewhat like, "do so and so", ELSE  

धमकियाँ जैसे? या डरावे जैसे?

ऐसा ही कुछ है इस जुए के राजनीतिक धंधे में। और अपनी इन धमकियों या डरावों को कायम रखने के लिए ये पार्टियाँ कितनी ही तरह के साम, दाम, दंड, और भेद अपनाती हैं। 

पहले भी लिखा किसी पोस्ट में, हर अपडेट, हर इंसान के लिए सही नहीं होता। और ना ही जरुरी। हाँ। अपडेट लाने वालों के लिए जरुर होता है। नहीं तो, उनके नए-नए उत्पाद कैसे बिकेंगे? और कैसे उनके व्यवसाय या धंधे आगे बढ़ेंगे? नए-नए अपडेट या उत्पाद बाजार में लाने का मतलब ही, पुरानों को ठिकाने लगाना होता है। और जरुरी भी नहीं, की नया पुराने से बेहतर ही हो। या उस बेहतर में ऐसा कुछ भी, जिसकी आपको जरुरत तक हो। जैसे पीछे भाभी गए, तो अपराधीक मानसिकता वालों ने उनके लैपटॉप का ना सिर्फ विंडो उड़ा दिया। बल्की, उसमें ऐसा कुछ भी कर दिया, जिससे, जिसे मुश्किल से विंडो दुबारा इंस्टॉल करने तक का ही ज्ञान हो, कम से कम, वो उसे फिर से ना ठीक कर पाए।  

बिमारियों, इंसानों और रिश्तों के साथ भी ऐसा-सा ही है।            

Sunday, July 28, 2024

गुड़ का गोबर, और गोबर का गुड़ जैसे?

मेरे घर से निकल? 

ऐसे शब्द, ज्यादातर गरीब और कम पढ़े-लिखे तबकों में ज्यादा सुनने, देखने को मिलते हैं। पढ़े-लिखे और समर्द्ध इलाकों में नहीं। क्यूँकि, वहाँ सबके पास कम से कम, इतना-सा तो होता ही होगा? वैसे भी, ऐसी-ऐसी, छोटी-मोटी सी लडाईयाँ, छोटे-मोटे लोगों के यहाँ ही ज्यादा होती हैं। बड़े लोगों के यहाँ, ऐसी-ऐसी, आम-सी जरुरतों के लिए नहीं, बल्की किन्हीं खास वर्चस्वों या अहमों की लड़ाईयाँ होती होंगी। जैसे कुर्सियों की, सत्ताओं की। वहाँ तो लोगों के पास घर भी एक नहीं, बल्की कई होते हैं। और घर के हर इंसान के नाम होते हैं। अच्छे-अच्छे शहरों और देशों में होते हैं।  

इनमें से किसका देश ज्यादा विकसित है?

भारत? BHARAT? इंडिया? या INDIA? वैसे आप कौन-से वाले भारत में रहते हैं? जो अपने आपको विकसित कहते हैं, वहाँ वालों को तो ऐसा कुछ, शायद ही कभी देखने-सुनने को मिलता होगा? जैसे, "मेरे घर से निकल"? या मिलता है? शायद, जिन्होंने रेंट पे दिए हों, वहाँ हो सकता है? 

या शायद सरकारी मकान वालों को भी? वहाँ भी कहीं, ऐसा कुछ देखने-सुनने को मिलता है क्या? भारत जैसे देश में शायद? बड़े साहबों के बच्चे, किन्हीं गरीबों द्वारा ऐसा कहलवा सकते हैं? क्यूँकि, so called बड़े लोग, आपको शायद ही कभी ऐसे केसों में आमने-सामने मिलें। हाँ। दूर बहुत दूर बैठे जरुर, वो सब कर रहे होंगे या देखते-सुनते होंगे। वो भी लाइव, उसी वक़्त, अगर चाहें तो। या रिकॉर्डिंग्स बाद में, अपनी सुविधा अनुसार।    

और पुस्तैनी जमीनों पे? यहाँ भाई, बहन को कहते मिल सकते हैं? माँ या बेटी को भी? और शायद बीवी को भी? या शायद, कमजोर भाइयों को भी? सिर्फ कह नहीं सकते, बल्की ऐसी सब जगहों पे मार-पिट भी सकते होंगे? वैसे भी, मेरे महान "यत्र पूज्यन्ते नारी, रमन्ते तत्र देवता" वाले देश में तो? थोड़ा गलत लिख दिया शायद? 

गूगल बाबा से पूछें?    


घणी पेल गया, लाग्या यो तो?
आप क्या कहते हैं? 
  
कोई आपपे पहली बार हाथ उठाए, तो माफ़ कर देना चाहिए। है ना? दूसरी बार उठाए, तो सावधान हो जाना चाहिए और थोड़ी बहुत उसकी भरपाई भी होनी चाहिए। जिसे आदत हो या जल्दी भड़कने वाला इंसान हो? या हमारे यहाँ तो चलता है सब, जैसे? वो आपके सामने ऐसे-ऐसे उदहारण पेश करेंगे, जैसे यहाँ औरतें तो खासकर, रोज ही पीटती हों। और उनके अधिकार वैगरह कुछ नहीं होते। जो होता है, या तो So-called मर्दो का या जिसकी लाठी, उसकी भैंस? फिर बड़ा क्या और छोटा क्या?
  
आप क्या कहते हैं? ऐसे केसों में, अपना हिस्सा अलग करो और अपने-अपने रस्ते खुश रहो? या माफ़ी माँग ले, तो जाने दो? खासकर, जब कुछ हो ही ना? नहीं तो, इनका कुछ नहीं सुधरना?

ये पढ़ाई-लिखाई छोड़कर, कौन से झमेलों में आ गए हम? गुड़ का गोबर, और गोबर का गुड़ जैसे? यही एकेडेमिक्स कहलाता है शायद?  

आजकल तारीख पता है क्या चल रही है? कल क्या थी? और आज? और कल? सामान्तर घड़ाईयाँ या राजनीती के खेलों की लड़ाईयाँ, इन सबके खास आसपास घूमती हैं। खेल के कोढों के हिसाब-किताब से भड़कावे और उकसावे होते हैं और उन्हीं के हिसाब-किताब से सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ी जाती हैं। कैंपस क्राइम सीरीज से लेकर, सामाजिक घड़ाइयों तक के यही हाल हैं। ये सब ये भी बताते हैं, की आम आदमी को खासकर, राजनीती और बड़ी-बड़ी कंपनियों ने कैसे और किस कदर अपना गुलाम (मानव रोबॉट्स) बनाया हुआ है।          

उकसावे? माहौल? और राजनीती? 2

सिर्फ उकसावे ऐसा करवाते हैं? या राजनीती भी माहौल बनाती है, लोगों के आसपास का? राजनीती की सुरँगों के राज यही हैं? 

जिन्हें हुक्का थमा रहे हो, उन्हें उनके लायक किताबें थमाने की कोशिश की क्या? या ऐसा कोई उनके लिए विकल्प, आपके जहन में ही नहीं आया? ऐसे-ऐसे विकल्प, तो सिर्फ अपनों के लिए हैं? या उनके लिए सिर्फ, जिनमें आप का फायदा हो?  

और ये खास-उकसावों वाले, उस पर ये भी बोलते हैं, की पसंद-नापसंद तो सामने वाले की है, खेल या राजनीती हमारी सही । मतलब, ऐसे खिलाड़ियों के पास या ऐसे बेचारे भोले-भाले राजनीती वालों के पास, अपनी जनता के लिए ढंग के विकल्प ही नहीं हैं? बोतलें थमाने के, ड्रग्स सप्लाई के या हथियारों तक पहुँचाने के और हादसे करवाने के? उससे भी बड़ी बात, law and enforcement ऐसे केसों में क्या करता है, जिसको सिर्फ भनक ही नहीं, बल्की खबर तक पहले से होती है, की ऐसा होने वाला है या हो सकता है? या करवाया जा रहा है? 

राजनीती ऐसे जैसे, 

आप टाँग तुड़वाए पड़े हों। और कहीं, आपके आसपास कुनबे तक के बच्चों को पढ़ाया गया हो, वो तो Live-in थी? और आपको वो सब पता चले, उस हादसे के सालों बाद। क्यूँकि, आपने उस आसपास को जानना अभी शुरू किया है, जब वहाँ रहना पड़ा। नहीं तो ऐसी-ऐसी पढाईयों की खबर भी ना होती। और क्या हो अगर कोई सच में live-in रह रहा हो? हाय-तौबा मच जाएगी? इतने सालों बाद भी, यहाँ बदला बहुत कुछ नहीं। या शायद जो कुछ बदल जाता है, वो वापस गाँवों की तरफ आता ही नहीं। इसीलिए, इतने घर खाली होते जा रहे हैं?      

ऐसे जैसे, कहीं बोला गया हो किसी को, Run for cover और वो आपके बारे में इसके या उसके बहाने जैसे, बोलते नज़र आएं, "हे शंकर क्यां क छोरी भाज गी"। वो दादी-ताई, जो छोटे बालों वाली बच्ची को परकटी बोल सकते हैं, ऐसे-ऐसे स्मार्ट बच्चों की ऐसी-ऐसी स्मार्ट गपशप को कैसे लेते होंगे? यही मौहल्ला क्लिनिक चला रखे थे क्या, कुछ बड़े लोगों ने? कुछ इधर की पार्टी वालों ने, और कुछ उधर की पार्टी वालों ने?

ऐसे जैसे, स्कूल बनाने की बात हुई तो, "यो तो थारी ज़मीन खा जागी"। और भड़काने वाले जिन बेचारों को ये तक नहीं मालूम, की उसने तो उनकी बच्ची को पैदाइश से पहले ही unofficially गोद लिया हुआ है। और भड़कने वालों को ये तक ना समझ आए, ये ज़मीन लेके जाएगी कहाँ? ना शादी की हुई, ना बच्चा। जो है वो भी तुम्हारा। और मान भी लिया जाए, तो क्या वो तुम्हारी ज़मीन खाना कहलाएगा? या उसका अपना हिस्सा लेना, जो आज तक इन इलाकों की लड़कियाँ, भाई-बंधी में छोड़ देती हैं। ऐसे-ऐसे नालायकों के पास तो छोड़ना नहीं चाहिए शायद?     

ऐसी-ऐसी कितनी ही, contradictory-सी कहानियाँ भरी पड़ी हैं यहाँ। कैसे भला? कुछ तो लोगों के पास, कुछ खास करने-धरने को होता नहीं। यहाँ-वहाँ की गॉसिप से अच्छा टाइम पास हो जाता होगा। काफी कुछ राजनीतिक तड़के होते हैं। जैसे जिन बच्चों को live-in जैसी कहानियाँ सुनाई गई होंगी, उन्हें इनके कोढ़ और live-in या out, checked in या chacked out जैसे कोढों के मतलब थोड़े ही बताए होंगे। इन बेचारों के live-in तो शायद, दुनियाँ के आरपार, एक छोर से दूसरे छोर पे हो जाते हैं, बैठे बिठाए। Checked in, checked out, एक एयरपोर्ट से, दूसरे एयरपोर्ट तक के सफर में हो जाते होंगे, उड़ते-उड़ते ही? ऐसे कोड बताते, तो सारी परतें ना खुल जाएँ की ये राजनीतिक पार्टियाँ खेल क्या रही हैं? और तुम क्यों और कैसे उनके हिस्से बने हुए हो? तुम्हारे अपने यहाँ ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे हादसों के बारे में कब, किसने बताया? अगर नहीं तो क्यों नहीं? खासकर, जिनके बारे में आम आदमी को पता होना चाहिए, बिमारियाँ और मौतें। वो भी राजनीती के कोढों की धकेली हुई। कुछ ज्यादा समझदार, पढ़े-लिखे, उसपे कढ़े, कहीं ऐसे-ऐसे केसों में, पूरे घर को ही तो तबाह के चक्कर में नहीं लगे हुए?   

Saturday, July 27, 2024

मेरी किताबों की दुनियाँ

आधी अधूरी-सी पढ़ी किताबें? या कवर देखकर, समझने की कोशिश की किसी किताब को, और पन्ने पलटकर रख दी गई किताबें? कभी शायद वक़्त नहीं था, उस विषय को पढ़ने का तो कभी शायद रुची? फिर कुछ ऐसी किताबें या विषय भी हैं, जो एक बार नहीं, बल्की कई बार पढ़े? जाने क्या रह गया था या समझ नहीं आया था एक बार में, उनमें? फिर कुछ-एक ऐसी भी किताबें जो जितनी बार पढ़ी, उतना ही कुछ नया मिला जैसे पढ़ने को? बहुत-सी शायद ऐसी भी किताबें, जो किताबों से नहीं, बल्की, उनके लेखकों के दूसरी तरह के मीडिया से ज्यादा पढ़ी और समझी? जैसे ब्लॉग्स से या खबरों से या लेक्चर्स या और छोटे-मोटे वीडियो से? 

बहुत-सी किताबों को या विषयों को पढ़ने या समझने का मतलब, सिर्फ थ्योरी नहीं होता, बल्की प्रैक्टिकल होता है। ये किसी प्रैक्टिकल ने ऐसे और इतने अच्छे-से नहीं समझाया, जितना केस स्टडीज़ ने। कैंपस क्राइम सीरीज़ तो सिर्फ एक छोटा-सा ट्रेलर था। 

वो फिर चाहे एक तरफ माँ का Gall Bladder Stone ऑपरेशन रहा हो, तो दूसरी तरफ December 2019, एग्जाम फ्रॉड। मेरा अपना March 2020 backside terrible pain और हॉस्पिटल में टैस्टिंग के नाम पे kidney stone है या gall bladder stone है, जैसे ड्रामे। उसपे दूध की थैली से निकला जैसे सोडा, जिसमें कोई स्मैल नहीं और कोई खास स्वाद में फर्क नहीं देख, मेरा रोहतक से नौ दो ग्यारह होना हो, अपने गाँव। और कोरोना की शुरुवात जैसे। सही बात है, आप इतना कुछ कैसे सिद्ध कर पाएँगे? पागल नहीं तो क्या कहलाएँगे? सबसे बड़ी बात, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी रिकॉर्डिंग्स, बड़े-बड़े लोगों के पास होने के बावजूद। फिर ऐसे-ऐसे पागलों पे देशद्रोह भी चलता है? ऐसे-ऐसे Mentally Sound (?) लोगों को या so-called officers को आप क्या कहेंगे? वो तो सब कुछ IRONED OUT कर देंगे? 

वैसे, इस IRONED OUT का सही मतलब क्या है? वैसे तो एक ही शब्द के कितने ही मतलब हो सकते हैं। जैसे एक पहले वाली पोस्ट में पढ़ा जैसे? और कुछ और सामने आए, जैसे?   

आयरन खत्म कर, मारना जैसे?

या ANEAMIA कर मौत तक पहुँचाना जैसे? लो जी, एक और कोड आ गया, ANEAMIA   

या?

मार-पीट कर यूनिवर्सिटी से ही नफरत करवाना जैसे? की ऐसे माहौल को छोड़, वो खुद ही भाग जाए?

या PRESSED OUT जैसे? Pressed को Processed भी लिख सकते हैं?    

इतना कुछ सिर्फ थ्योरी वाली किताबों से कहाँ समझ आता है? उसके लिए आपको ईधर-उधर, आसपास, बहुत-कुछ, देखना-सुनना और समझना पड़ता है। कभी समझ आ जाता है। कभी-कभी शायद दिक्कत भी होती है, समझने में। मगर रिसर्च या केस स्टडीज़ की किताबें, शायद ऐसे ही छपती हैं। जितने बड़े एक्सपर्ट, उतनी ही, गूढ़-सी कहानियाँ जैसे। कुछ ऐसी-सी किताबें पढ़ी हैं। जो अपने आप में केस स्टडीज़ हैं या केस स्टडीज़ जैसी-सी ही हैं। साइंस, टेक्नोलॉजी, मीडिया, कल्चर का मिश्रण, सब साथ-साथ चलता है। Highly Interdisciplinary दुनियाँ में हैं हम। फिर कुछ कविताओं की या बच्चों की किताबें भी हैं, जिन्हें शौक कह सकते हैं आप। जब कुछ खास पढ़ने-लिखने का मन ना हो, तो उन्हें उठा लो। तो कहाँ से शुरू करें? केस स्टडीज़ से? कविताओं से? या बच्चों जैसी-सी किताबों से?    

गुनाह को पनाह या उकसावा?

गुनाह को पनाह?

या गुनाह को उकसावा?

या क्या चल रहा है ये? 

कुछ तो है,

जो पिछले कुछ वक़्त से चल रहा है। 

ऐसा-सा ही कुछ रितु की मौत से पहले और बाद में चला था, शायद। तब आदमी और थे। अब और हैं। मगर, वक़्त-बेवक़्त हुक्का महफ़िलें वही है। पैसे आने वाले हैं, की सुगबुगाहट तब थी। और शायद थोड़ी-बहुत फिर से है। गाँव से निकालने वाले अद्रश्य ना होते हुए भी, अद्रश्य जैसे तब थे। फिर से हैं? पैसे भी कितने? किन बेचारों को दिक्कत है, इन थोड़े से पैसों से भी? और कौन हैं, जिन्होंने रोक रखे हैं? या उससे आगे भी कोई साँग है, जो रचने की कोशिशें हो रही हैं?   

या किताबें और पढ़ने-लिखने की बातें चलते ही, गँवारों के यहाँ वक़्त-बेवक़्त होक्के चलने लगते हैं? और घर या आसपास की औरतें परेशान। मगर, अहम है की ये सब करवाते कौन हैं? या जैसे हम सोचते हैं, की दुनियाँ अपने आप ही करती है? करवाएगा या करवाएँगे कौन?          

Friday, July 26, 2024

Internet of Things (IOT), Grey Colour NEO and Ghost Robotics

Internet of Things (IOT) क्या है? 

कैसे काम करता है?

क्या-क्या काम करता है?  

क्या ये घर की लाइट और इससे जुड़े ज्यादातर घर, ऑफिस या फैक्टरियों के इंस्ट्रूमेंटस या व्हीकल्स को इंटरनेट की मदद से दुनियाँ के किसी भी कोने में बैठकर कंट्रोल कर सकता है? या करता है? अगर हाँ? तो किस हद तक?

आपके घर का AC सर्विस के बाद, अगर ठंडा करने की बजाय गर्म करने लगे, तो क्या गड़बड़ हो सकती है?

ठीक करवाने के बाद, अगर और ज्यादा गर्मी करने लगे तो?

यही छोटी-मोटी कोई हेरफेर? 

ऐसे ही, अगर लाइट ठीक करवाने पे या थोड़े बहुत कोई नए स्विच लगवाने पे, आपका इलेक्ट्रीशियन अगर कोई अनचाहा स्विच भी बदल जाए? जैसे मेन स्विच? पहले पुराने जमाने का कोई सफेद सिंगल एंकर कंपनी का शायद, और बाद में कोई डबल grey colour का NEO लगा जाए? कोई खास फर्क नहीं पड़ता शायद? ये कंपनी हो या वो? बिजली वाले को शायद लगा होगा, लगे हाथों ये भी कर देना चाहिए? आपको भी कोई खास फर्क नहीं लगा। हाँ। किसी की ट्विटर वाल पे कुछ देख-पढ़कर, कोई शक जरुर हुआ। उसके कुछ वक़्त बाद, आपने वो स्विच बदलवा दिया। सब ठीक? लेकिन कुछ तारों के हेरफेर भी थे शायद, वो तो नहीं करवाए। अब इलेक्ट्रिसिटी का ABC नहीं पता, तो वो भी क्या फर्क पड़ता है? क्या फालतू के चक्करों में पड़ना? 

पीछे कूलर की जलने की काफी प्रॉब्लम आ रही थी। पर वो शायद सिर्फ यहाँ नहीं थी। लाइट फलेक्टुअट होना, बार-बार आना या जाना भी एक वजह हो सकता है। जो गाँवों में खासकर आम होता है। शिव इलेक्ट्रीशियन, बॉस वाटर पम्प, उसपे सॉफ्ट लाइन कूलर का भी कोई कनैक्शन हो सकता है?  

इस सब में Internet of Things (IOT) का क्या लेना-देना? हो सकता है क्या? पता नहीं। 

चलो छोड़ो, आओ थोड़ा IOT को समझने से पहले, एक रोबॉट से मिलते हैं। 

Ghost Robotics कम्पनी का नाम है। 

जिसके पास कई तरह के रौचक रोबॉट हैं। 

जो सीधे सपाट रोड पे ही नहीं बल्की पानी और बर्फ पे भी मस्त चलते हैं। 

Quadruped Unmanned Ground Vehicle (Q-UGV)  



इसका नया अवतार NEO है। 

ये मैं एक ब्लॉग पढ़ती हूँ, पिछले कई सालों से, वहाँ से पढ़ने को मिला। 2014 में जब मैंने H #16, Type-3 की शिकायत की थी यहाँ-वहाँ, उसके बाद खासतौर पे पढ़ना शुरू किया था, ऐसे-ऐसे विषयों के बारे में।     

“NEO can enter a potentially dangerous environment to provide video and audio feedback to the officers before entry and allow them to communicate with those in that environment,” Huffman said, according to the transcript. “NEO carries an onboard computer and antenna array that will allow officers the ability to create a ‘denial-of-service’ (DoS) event to disable ‘Internet of Things’ devices that could potentially cause harm while entry is made.”

Bruce Schneier, Public Interest Technologist, Harvard Kennedy School

जो कुछ ऊप्पर लिखा है, उनका आपस में कोई सम्बन्ध हो सकता है? ये सब आप सोचो। जानने की कोशिश करते हैं आगे, की इंसान रुपी मशीन और इंसान द्वारा बनाई गई मशीनों में कितना फर्क है? रोबॉटिक्स इंसान का और इंसान रोबॉट्स का अवतार हो सकता है क्या? या ऐसा तो दुनियाँ भर में हो रहा है। ये सामान्तर घढ़ाईयोँ में एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं क्या? या ये भी बहुत पहले से हो रहा है?

जैसे एक NEO, Ghost Robotics कंपनी का, तो दूसरा डिज़ाइन, ये घर में बिजली वाला मेन स्विच बदलने वाला? और भी कितने ही ऐसे-ऐसे सामान्तर डिज़ाइन या घढ़ाईयाँ यहाँ-वहाँ, लोगों की असली ज़िंदगियों में। इनमें से किसी का एक दूसरे से कोई नाता नहीं। सोशल स्तर भी बहुत ही असामान्य। एक तरफ रोबॉट्स बनाने वाली कम्पनियाँ और अपने-अपने फील्ड के बेहतर एक्सपर्ट्स, तो दूसरी तरफ? तिनका तक ईधर से उधर होने पर, भड़कने वाले अंजान-अज्ञान लोग। ज्यादातर कम पढ़े-लिखे और मिडिल लोअर या गरीबी के आसपास लोग। अपनी अलग ही दुनियाँ में, जिन्हें कैसे भी और किसी भी नाम पे भड़का दो। कितना आसान है ना, ऐसे लोगों को रोबॉट बनाना? फिर आधी-अधूरी जानकारी तो, अच्छे-खासे पढ़े-लिखों को बना देती है। और यही गैप, इंसान द्वारा इंसान के शोषण के रुप में, जहाँ भर में हो रहा है, राजनीतिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा।   

Thursday, July 25, 2024

कोड के हिसाब-किताबों की दुनियाँ ?

देश से ही शुरु करें ?

BHARAT से या INDIA से?

क्या फर्क पड़ जाएगा? एक ही तो बात है?

या BHARAT के अक्षर अलग हैं? और INDIA के अलग? या कुछ भी नहीं मिलता, सब कुछ अलग है? फिर कोड की दुनियाँ में तो, एक अक्षर भी इधर या उधर करने से बहुत कुछ बदल जाता है। अक्षर ही क्यों? यहाँ तो कोमा, बिंदी जैसे भी, कुछ का कुछ बना देते हैं। 

देशों की राजनीतिक बोर्डर भी फिर तो शायद कुछ और ही हैं? राजनीती कैसे बदलती है, इन सीमाओं को? अलग-अलग पार्टी की भी अलग-अलग सीमा होंगी फिर तो? या कम से कम वहाँ तो सहमती होगी? या वहाँ भी यही घमासान है? अच्छा, कहाँ-कहाँ की सीमाएँ शाँत हैं और कहाँ-कहाँ की नहीं? कितना वो सही में शाँत हैं? और कितना सिर्फ मीडिया में? ऐसे ही कितना वो सही में अशाँत हैं, और कितना महज़ मीडिया में?         

चलो BHARAT चलें? या INDIA? कैसा सा-है भारत? या BHARAT? और INDIA? या इंडिया?

ऐसा है इंडिया या INDIA? 


और ऐसा है भारत या BHARAT?

ये तस्वीरें गूगल से गूगली हुई हैं 

बूझो तो जानें जैसे?
या दोनों तस्वीरों में 10-15 अंतर ढूंढों जैसे?

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? 2

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? या मुझे खबरें कहाँ से मिलती हैं? 

वो भी इतना अलग-थलग (isolated) होने के बावजूद)?  

अलग-थलग? पता नहीं। वक़्त और परिस्तिथियों के साथ, आपके संपर्क और सोशल-सर्कल, शायद थोड़ा-बहुत बदलता रहता है। बहुत ज्यादा नहीं, शायद।   

बहुत-सी खबरें, बहुत ही indirect होती हैं। जैसे कहीं दूर कुछ चल रहा हो और कुछ वक़्त बाद ऐसा लगने लगे, ऐसा ही कुछ-कुछ यहाँ तो नहीं शुरू हो गया? या शायद जो कहीं बहुत कम है, उसका बढ़ा-चढ़ा रुप? या बिगड़ा-स्वरुप? ये लगना या अहसास होना, की शायद ऐसा कुछ चल रहा है? या कुछ तो कहीं गड़बड़ घोटाला है? एक के बाद एक, जैसे कोई सीरीज बनती जाए, तो हूबहू-सी घड़ाईयाँ समझ आने लगती हैं। उस पर अगर आपको Protein Structure Prediction या PCR या Genetic Engineering कैसे होती है, के abc पता हों, तो शायद उतना मुश्किल नहीं होता समझना, जितना किसी भी अज्ञान या अंजान इंसान के लिए हो सकता है। 

जैसे नीचे दी गई ज्यादातर सूचनाएँ, यहाँ-वहाँ से ली गई हैं। कोई ऑफिस, कोई घर, कोई इधर उधर का सोशल सर्कल, कोई दूर कहीं किसी यूनिवर्सिटी का पेज या source कुछ और भी हो सकता है। जैसे किसी का कोई फ़ोन कॉल किसी के पास, या किसी कंपनी या प्रोडक्ट के नाम पे आपके पास। हो सकता है की उस वक़्त आपको ना फ़ोन करने वाले के बारे में और ना ही दी गई या सुनी या देखी गई सुचना के बारे में कुछ पता हो। मगर कुछ वक़्त बाद कुछ और देखकर या  सुनकर लगे, की कहीं न कहीं, ये तो यहाँ या वहाँ मिलती-जुलती सी खबर है? ये यहाँ और वो वहाँ? या शायद ये और ये एक दूसरे से? तो मान के चलो, की वो मिलती हैं। कहीं न कहीं, कोई सन्दर्भ है। अब उस सन्दर्भ को जानने के लिए, आपको उन अलग-अलग सूचनाओं की जितनी जानकारी है, उतना ही उनसे मिलती-जुलती, हूबहू-सी लगने वाली खबर की जानकारी होगी। वो हूबहू सी घड़ाईयाँ, आसपास भी हो सकती हैं और दुनियाँ के किसी और कौने में भी।  



















कैसे? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट में। 

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? 1

What Media I Consume?

मीडिया में मेरे हिसाब से तो बहुत कुछ आता है। मीडिया, मेरे लिए शायद वो इकोलॉजी है, जो हमारे जीवन को किसी भी प्रकार के जीव-निर्जीव के सम्पर्क में, जाने या अंजाने आने पर, या आसपास के समाज के बदलावों से भी प्रभावित करता है। जैसे माइक्रोलैब मीडिया, सूक्ष्म जीवों को। मगर यहाँ मैंने उसे नाम दे दिया है, सोशल माइक्रोलैब मीडिया कल्चर। लैब मैक्रो (बहुत बड़ी) है, मगर उसे समझने के लिए सुक्ष्म स्तर अहम है।      

जो कुछ भी मैं लिखती हूँ, वो इसी मीडिया से आता है। सामाजिक किस्से-कहानियाँ खासकर, राजनितिक पार्टियों द्वारा, ज़िंदगियों या समाज के साथ हकीकत में धकेले गए तमाशों से।  

पढ़ती क्या हूँ?  

कुछ एक अपने-अपने विषयों के एक्सपर्ट्स के पर्सनल ब्लोग्स (blogs)। कई के बारे में आप पहले भी किन्हीं पोस्ट में पढ़ चुके होंगे। जैसे, 

Schneier on Security  https://www.schneier.com/

Security Affairs https://securityaffairs.com/ 

कुछ यूनिवर्सिटी के Blogs, Nordic Region, Europe से खासकर।  जिन्हें पढ़कर ऐसा लगे, की ये आपसे कुछ कहना चाह रहे हैं शायद, या कुछ खास शेयर कर रहे हैं। 

कुछ एक न्यूज़ चैनल्स, ज्यादातर इंडियन। कुछ एक वही जो अहम है, जिन्हें ज्यादातर भारतीय पढ़ते हैं। ईधर के, उधर के, किधर के भी पढ़ लेती हूँ या देख लेती हूँ। पसंद कौन-कौन से हैं? कोई भी नहीं? थोड़ा-सा ज्यादा हो गया शायद? मोदी भक्ती वाले बिलकुल पसंद नहीं। हाँ। वहाँ भी बहुत कुछ पढ़ने लायक और समझने लायक जरुर होता है। जैसे एक तरफ, कोई भी पार्टी, मीडिया के द्वारा अपना एजेंडा सैट कैसे करते हैं? और जनमानष के दिमाग में कैसे घुसते हैं? तो कुछ में खास आर्टिकल्स या आज का विचार जैसा कुछ होता है। जो भड़ाम-भड़ाम या ख़ालिश एजेंडे से परे या एजेंडा होते हुए भी, मानसिक शांति देने वाला होता है या सोचने पर मजबूर करने वाला। कुछ एक के आर्टिकल्स, आपके आसपास के वातावरण के बारे में या चल रहे घटनाक्रमों के बारे में काफी कुछ बता या दिखा रहे होते हैं। कुछ एक फ़ौज, पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां, सिविल एरिया में रहकर या बहुत दूर होते हुए भी, काम कैसे करती हैं, के बारे में काफी कुछ बताते हैं। कुछ एक, राजनीती पार्टियों की शाखाओं जैसी पहुँच, आम आदमी तक और उनके द्वारा अपने प्रभाव या घुसपैठ के बारे में भी लिखते हैं।            

दुनियाँ जहाँ की यूनिवर्सिटी के वैब पेज, मीडिया, मीडिया टेक्नोलॉजी खासकर, या बायो से सम्बंधित डिपार्टमेंट्स के बारे में। जो थोड़ा बहुत जाना-पहचाना सा और अपना-सा एरिया लगता है। 

ये जानने की कोशिश की, क्या दुनियाँ की किसी भी यूनिवर्सिटी के वेब पेज या प्रोजेक्ट में ऐसा कुछ भी मिलेगा, की कोरोना-कोविड-पंडामिक एक राजनितिक बीमारी थी? और कोई भी बीमारी, राजनितिक थोंपी हुई या धकाई हुई हो सकती है? सीधा-सीधा तो ऐसा कुछ नहीं मिला। मगर, ज्यादातर बीमारियाँ हैं ही राजनीती या इकोसिस्टम की धकाई हुई, ये जरुर समझ आया। और वो इकोसिस्टम, वहाँ का राजनितिक सिस्टम बनाता है। कुछ बिमारियों पर, किसी खास वक़्त, राजनीती के खास तड़के और  कुर्सियों की मारा-मारी है। उसे तुम कैसे देख या पढ़ पाओगे, सीधे-सीधे ऑनलाइन? ऑनलाइन जहाँ तो है ही, किसी भी देश के गवर्न्मेंट के कंट्रोल में। वो फिर अपने ही कांड़ों पर मोहर क्यों लगाएंगे? वो आपको सिर्फ वो दिखाएँगे या सुनाएँगे, जो कुछ भी वो दिखाना या सुनाना चाहते हैं। न उससे कम और न उससे ज्यादा।  

मोदी या बीजेपी से नफ़रत क्यों?

वैसे तो मुझे राजनीती ही पसंद नहीं। फिर कोई भी पार्टी हो, फर्क क्या पड़ता है? या बहुत वक़्त बाद समझ आया, की बहुत पड़ता है। 

कोई पार्टी या नेता काँड करे और आपको इसलिए जेल भेझ दे, की आप ऐसा सच बोल रहे हैं, जो उसके काँडो को उधेड़ रहा है? तो क्या भक्ति करेंगे, ऐसे नेता या पार्टी की? 

उसपे अगर मोदी को फॉलो करोगे तो पता चलेगा, इसका बॉलीवुड से और फिल्मों से कुछ ज्यादा ही गहरा नाता है? क्या इसे कुछ और ना आता है? अब बॉलीवुड वालों का तो काम है, फिल्में बनाना। एक PM का उससे क्या काम है? अपनी समझ से बाहर है।  

मुझे पढ़े-लिखे और समाज का भला करने वाले नेता पसंद हैं। नेता-अभिनेता नहीं। तो कुछ पढ़े-लिखे या लिखाई-पढ़ाई से जुड़े नेताओं के सोशल पेज भी फॉलो कर लेती हूँ। वो सोशल पेज, फिर से किसी सोशल मीडिया कल्चर से अवगत कराते मिलते हैं। जैसे हुडा और यूनिवर्सिटी या शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान। गड़बड़ घौटाले समझने हैं, तो उनके ख़ास प्रोजेक्ट्स और टेक्नोलॉजी। जैसे रोहतक की SUPVA से लख्मीचंद (LAKHMICHAND) बनी यूनिवर्सिटी। हर शब्द एक कोड होता है। वो किस नंबर पर है या उसके साथ वाले शब्द कौन-कौन से हैं या दूर वाले कौन से, और कितनी दूर? किस राजनीतिक पार्टी के दौर में कोई भी प्रोजेक्ट आया या इंस्टिट्यूट बना? और वो इंस्टिट्यूट किस विषय से जुड़ा है? उस वक्त की राजनीती के बारे में बताता है। उसका बदला नाम या रुप-स्वरुप या उसमें आए बदलाव, उस बदलाव के वक़्त की राजनीती या पार्टी के बारे में काफी कुछ बताते हैं। 

अब lakhmi कोड का patrol crime से क्या connection? और वो कहेंगे, की किसी कुत्ती के ज़ख्मों पे डालने के लिए पैट्रॉल बोतल, पियकड़ को लख्मी आलायां ने दी थी। करवाया उन्होंने और नाम किसी का? वैसे शब्द या भाषा, वहाँ के सभ्य (?) समाज के बारे में भी काफी कुछ बताता है। Social Tales of Social Engineering, इस पार्टी की या उस पार्टी की? और उनका किसी या किन्हीं इंस्टीटूट्स में छुपे, प्रोजेक्ट्स या टेक्नोलॉजी से लेना-देना? ठीक ऐसे ही बिमारियों का और उनके लक्षणों का भी। ये सोशल मीडिया पेजेज से समझ आया है। 

संकेतों या बिल्डिंग्स के नक़्शों या कुछ और छुपे कोढों को समझना हो, तो शायद, शशि थरूर का सोशल पेज भी काफी कुछ बता सकता है। और इंटरेक्शन का मीडिया, बिलकुल डायरेक्ट नहीं है। कहीं पूछो, की तुम इन सबको जानते हो या ये तुम्हें जानते हैं? मैं इन्हें या ये मुझे उतना ही जानते हैं, जितना आपको। ज्यादातर आम आदमी को। ऐसे ही पढ़ना चाहो या समझना चाहो, तो वो आप भी कर सकते हैं। उसके लिए आपको किसी को जानने या मिलने की जरुरत नहीं है। एकदम indirect, वैसे ही जैसे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले या CJI खास एकेडेमिक्स इंटरेक्शन प्रोग्राम्स। या कहो ऐसे, जैसे हम कितने ही लेखकों की किताबें पढ़ते हैं, मगर मिलते शायद ही कभी हैं।   

अब वो सोशल मीडिया पेज आप-पार्टी के किसी नेता का भी हो सकता है और कांग्रेस के भी। JJP का भी हो सकता है और कहीं महाराष्ट्र की शिवसेना की आपसी लड़ाई से सम्बंधित आर्टिकल्स भी। महाराष्ट्र की शिवसेना की लड़ाई के आर्टिकल्स तो और भी आगे बहुत कुछ बताते हैं। भगवान कैसे और क्यों बनते हैं? उन्हें कौन बनाता है? उस समाज में किसी वक़्त आए या कहो लाए गए रीती-रिवाज़ों के बदलावों से उनका क्या सम्बन्ध है? ऐसे ही जैसे, JJP का ऑनलाइन लाइब्रेरी प्रोग्राम या शमशानों के रखरखाव में क्या योगदान है? GRAVEYARDS? और आगे, उसका कैसे प्रयोग या दुरुपयोग हो सकता है?  

वैसे ट्रायल के दौरान किसी को जेल क्यों? बेल क्यों नहीं? या ट्रायल के दौरान ही, कोई कितना वक़्त जेल में गुजारेगा? ऐसा या ऐसे क्या जुर्म हैं? अब आम आदमियों की तो बात ही क्या करें। ये आप पार्टी के नेताओं के साथ क्या चल रहा है? फिर मोदी के साथ क्या होना चाहिए? वैसे मैं किसी बदले की राजनीती के पक्ष में नहीं हूँ। मगर, सोचने की बात तो है। मोदी जी, है की नहीं? सोचने की बात? या मन की बात?

काफी लिख दिया शायद। अब मत कहना की जो लिखती हूँ या जहाँ से आईडिया या प्रोम्प्ट या ख़बरें मिलती हैं, उनके रेफेरेंस नहीं देती। और डिटेल में फिर कभी किसी और पोस्ट में।   

राजनीती? सिस्टम? बीमारियाँ? और मौतें?

राजनीती मतलब साम, दाम, दंड, भेद 

जैसे मान लो, रितु को 1 FEBRUARY 2023 को PGI रोहतक से उठा दिया। 

बीमारी क्या थी? कब से शुरू हुई थी?   

कब-कब, कहाँ-कहाँ ईलाज चला? क्या ईलाज किया गया? दवाईयाँ, उनके नाम, कंपनी, बैड नंबर, कमरा नंबर, डॉक्टर, हॉस्पिटल नाम, तारीखें और साल, सब अहम है। और कहाँ से, कैसे और कब उठाया गया? उन सबके नाम, नंबर, तारीख, साल, दवाईयों के नाम या किसी खास दवाई की कमी।  कैसे, कब और क्यों हुई? आम आदमी को कुछ नहीं पता होता। बड़े-बड़े डॉक्टरों तक को नहीं होता। फिर किसे होता है? वो अहम है। और कोड के रुप में इतना कुछ, ऐसे कैसे मैच कर सकता है? वो सिस्टम है। जो सुना, पता नहीं कब से कुर्सियों की मारा-मारी वालों ने ऐसे ही धकेला हुआ है।       

                          जैसे, अगर मैं बोलूँ की इस पोस्ट का सीधा-सीधा संबंध, रितु की मौत से है। 


कैसा संबंध? जिसके प्रोफाइल से ये पोस्ट ली है, वो तो सिर हो जाएगा मेरे। बात भी सही है। कुछ भी बैगर हाथ-पैर के, कहीं से भी जोड़ देती हूँ ना? 

कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे                  

AC Heating 

Cooler Fires 

Electricity Control 

Internet of Things 

God of Small Things 

छठ या छठा 

सत्ता या सट्टा

सतरहवीं या तेरहवीं हिन्दुओँ में, 

या 13 नंबर अंग्रेजों का, 

या 10वीं, 12वीं देसियों की, 

या खाट आला भगवान खाटू, 

भांग आला भगवान शिव, 

धतूरे आला लीलू, शिव, 

मंगल, हनुमान 

या मलंग महाकाल या कृष्ण 

पढ़ा-लिखा उसपे कढ़ा, राम या रावण

और भी जाने क्या-क्या 

जैसे मैं बोलूँ, इसका संबंध भी इन्हीं सब से है       


कैसे?

जैसे 
खाटू का झंडा लठ से उतार के, इस रैलिंग पे बीच में
और दोनों तरफ जीरो 
और झंडे वाला लठ?
सैटेलाइट के पीछे 
 सैटेलाइट की फ्रेक्वेंसी को क्या, कौन और कैसे पकड़ रहा है?
वैसे सैटेलाइट क्या-क्या काम आता है? 
   

उससे भी अहम 
 सैटेलाइट किस कंपनी का है?
और भी अहम, ये झंडा यहाँ, ऐसे किसने और किस तारीख को टांगा? 

लाइट जलने पे ये नजारा और भी खास होता है। बाथरुम के खास डिज़ाइन से निकली लाइट, इस ग्रीन शीट पे अपनी ही तरह की जीरो गढ़ती है। और कभी-कभी, खास किस्म की लाइट वाला बल्ब भी जैसे, कमाल का डिज़ाइन बनाता है। और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे नज़ारे, इधर-उधर भरे पड़े हैं। ये इस पार्टी के, तो वो उस पार्टी के।  

इतने में ही कितना कुछ आ गया ना? धर्म-अधर्म? रीति-रिवाज़? और राजनीती के हिसाब से, उन धर्मों या रीती-रिवाज़ों की रैली पीटना जैसे? आम आदमी को ना सिर्फ भावनाओं में बहाना, बल्की इन सबके सहारे भड़काना भी। उससे भी आगे, आम आदमी की ज़िंदगियों को इन सबमें गूंथकर, जरुरत के हिसाब के पकवानों और इंसानों के हिसाब से आटा तैयार करना जैसे। और अपनी-अपनी पार्टी के हिसाब-किताब के रोबोट बनाना और उन्हें रिमोट-कंट्रोल सा हाँकना, गोटी चलना जैसे। उससे भी अहम, जिसपे आम आदमी शायद ही कभी ध्यान देता है, ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग या दुरुपयोग, ये सब  बनाने के लिए। क्यूँकि, वो भावनाओं और भड़काओं से आगे ही नहीं सोच पाता।            

आम आदमी का इन सबसे क्या लेना-देना?
उसे शायद इन सबका ABC भी ना पता हो। 

राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, ऐसे ही लोगों पे राज करती हैं। उनकी ज़िंदगियों को तोड़ती-मरोड़ती हैं या अपने अनुसार चलाती हैं। उसमें रीती-रिवाज़ क्या, धर्म-अधर्म क्या, हर तरह का ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी प्रयोग या दुरुपयोग होता है। रोबोटों और इंसानों में इतना-सा ही फर्क है। इंसान, कितनी ही तरह से भावनाओं में बहाकर अपने काबू में किए जा सकते हैं। रोबोटों को सिर्फ कहा या बताया गया काम करना होता है, भावनाओं से परे। जब लोगों को बहुत-सी चीज़ें या तथ्य पता नहीं होते, तो वो भी इन राजनीतिक पार्टियों के लिए रोबोटों-सा ही काम करते हैं।   

Jammers, Radio Control (RC), Frequency Controls and Remote (IOT)

दूसरी भाषा में, दूसरे शब्दों में, घुमाऊ-फिराऊ, या फिर सीधे-सीधे भी? उसपे फिट भी हो, आप पर या आपके आसपास पर? आपके हालात पर, उसके कारणों या निवारणों पर। कभी-कभी हकीकत भी हो सकती है। और कभी-कभी, सिर्फ हमें ऐसा लग सकता है या समझ आ सकता है। वो समाधान भी हो सकते हैं। यूँ की यूँ, हकीकत भी या बढ़ा-चढ़ा रुप भी। या उसे किसी और तरफ घुमाना भी। और भी बहुत-कुछ कहा और किया जा सकता है। बातों ही बातों में। आमने-सामने भी और रिमोट कंट्रोल से भी। 

जैसे एक रौचक सी पोस्ट रोबोट डॉग इंटरनेट जैमर 

https://www.schneier.com/blog/archives/2024/07/robot-dog-internet-jammer.html      

आम आदमी को समझाने के लिए कोड की बात करें तो? कुत्ते (रोबॉट) ने, इंटरनेट को बंद किया या बैन किया या जैम किया। कुत्ते को बच्चा चाहिए और वो इंटरनेट से पैदा नहीं हो सकता। अब कुत्ता यहाँ रोबोट है। मशीन है। या फौजी है। क्यूँकि, युद्ध के फौजी भी मशीन ही होते हैं। 

इसे शायद यूँ भी समझ सकते हैं 

1. R O B O T 

2. D O G 

3. I N- T  E  R  N -E T 

4. J A  M M  E  R 

हालाँकि, कोड के हिसाब से तो कितनी ही तरह से लिखा जा सकता है और कितने ही मतलब हो सकते हैं। यहाँ सिर्फ आम आदमी की समझ के लिए है। कोई नाम हो सकता है, जगह का या स्थान का। कोई ग्रेडिंग हो सकती है। जैसे ABCD और कोई Block करना हो सकता है। जैसे R या M

इन सबके लिए आम आदमी को कहीं भी धकेला जा सकता है। खदेड़ा जा सकता है। हॉस्पिटल पहुँचाया जा सकता है। या दुनियाँ से ही उठाया भी जा सकता है। जैसे OXYGEN ख़त्म हो गई। और किसी R वाले या वालों को किसी खास तारीख, खास समय पर, खास जगह पहुँचाकर, खास तरीके से उठा देना। इनमें से ये खास तरीकों से इतना कुछ आम-आदमी की जानकारी के बिना होता है। कौन करवाता है, अहम है? या कहना चाहिए करवाते हैं। कैसे? उससे भी ज्यादा अहम है। इसे मानव रोबॉट बनाना बोलते हैं। 

जैसे?

निपुण लोग ?

निपुण लोग, Nippon के शेयर खरीदते हैं लगता है? सोचो आपको कुछ ना लेना हो, ना खरीदना हो, ना करना हो, किसी रस्ते ना जाना हो, तो क्या आप वो सब करेंगे? या कोई आपसे करवा देगा और आपको पता भी नहीं चलेगा की ऐसा हुआ है? या आपको पता भी चल जाएगा की ऐसा नहीं हुआ, आपने नहीं किया। आपने नहीं खरीदा। आप वहाँ गए ही नहीं। तो?

किसने खरीदा?

किसने किया?

और कौन गया उस रस्ते? क्यूँकि, सबूत ऐसा बता रहे हैं। 

आओ निपुण लोगों के Nippon के शेयर से जानने की कोशिश करते हैं। 

सत्ता या सिस्टम कैसे काम करता है, उसके लिए सट्टा बाजार समझना बहुत जरुरी है। पढ़ा कहीं ये। तो सोचा, चलो इसे भी पढ़ लेते हैं थोड़ा बहुत। मगर ना तो रुची पैदा हुई और ना ही पढ़ने का मन किया। सीधी सी बात, अगर रुची ही नहीं होगी किसी विषय में तो पढोगे क्या खाक? ऐसे में ऑनलाइन कुछ प्रोम्प्ट आते हैं और आप एक वेबसाइट पे पहुँचते हैं, ICICI की वेबसाइट के जरिए। वहाँ थोड़ा बहुत पढ़कर कुछ शेयर लेने का मन बनता है। और दो शेयर ले लेते हैं। मगर जाने क्यों लगता है, की शायद ये वो शेयर नहीं हैं, जिनपे आपने क्लिक किया। तो एक और लेकर देख लो, पता चल जाएगा। और आप उन्हीं शेयर के आसपास एक और शेयर पे क्लिक कर देते हैं। वेबसाइट रिफ्रेश हो जाती है अपने आप। मगर अब जो सामने हैं, वो कोई और ही शेयर हैं। आपको उनमें से नहीं लेना। फिर से पीछे वाले शेयर पे जाओ। मगर फिर से वही रिपीट होता है। आपको समझ तो आ गया की गड़बड़ चल रहा है। मगर छोटे मोटे रिस्क आप ले लेते हैं। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? वो थोड़े से पैसे ही जाएँगे ना? यही सोचकर उन्हीं में से किसी एक को लेने का मन बना लेते हैं। मगर ये क्या? उनमें से भी क्लीक उसपे नहीं हो रहा, जिसपे आपने करने का सोचा है। सिर्फ सोचा है, क्लीक किया नहीं है। और देखते ही देखते, कहीं क्लीक भी हो गया और शेयर भी खरीदा गया। और आपके अकॉउंट से पैसे भी कट गए। मगर, आपने तो वो शेयर लिया ही नहीं। 

फिर आप सोचें की इसे डिलीट मार, जबरदस्ती है, ऐसा कुछ लेना जो आपने लिया ही नहीं। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? वो थोड़े से पैसे गए। जाने दे। नहीं चाहिए, तो नहीं चाहिए। मगर फिर, वो शेयर कहीं दिखाई ही नहीं देते। जादू? या ट्रिक? या धोखाधड़ी? चाहे कितनी भी छोटी। मगर क्यों? हालाँकि कई बार उनके मेल जरुर आते हैं। 

ऐसे निपुण लोग? या कलाकार लोग, बहुत बार करते हैं। वेबसाइट के किसी खास हिस्से को ब्लॉक करना। जैसे, आपको कोई जानकारी चाहिए, उस जानकारी पे क्लिक ही नहीं होगा या तो वो दिखाई ही देना बंद हो जाएगी। या cursor अपने आप, यहाँ-वहाँ भागने लगेगा और किसी और जगह अपने आप क्लिक हो जाएगा। वहाँ रोचक-सी जानकारी मिलेगी, पढ़ो उसे। जैसे जबरदस्ती? अब पता नहीं ऐसे  लोगों  को निपुण बोलते हैं, स्मार्ट या धोखेबाज़? ये तो चलो, ऑनलाइन है। जहाँ ऐसा कुछ आसानी से संभव है। 

क्या ऐसा हकीकत की ज़िंदगी में संभव है? या हो रहा है? या कहना चाहिए की, बड़े स्तर पर हो रहा है? बीमारियाँ, उनमें से एक हैं। उनके इलावा भी, आपकी ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, हर स्तर पे। मगर कैसे? उससे भी अहम, आपको तो उसकी भनक तक नहीं। सारा खेल यही है, भनक तक ना लगने देना। शक तक ना होने देना। ऐसा कुछ आपके दिमाग में आ गया तो आप सतर्क हो जाएँगे और सामने वाले का काम उतना आसान नहीं रहेगा।