About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, July 28, 2024

गुड़ का गोबर, और गोबर का गुड़ जैसे?

मेरे घर से निकल? 

ऐसे शब्द, ज्यादातर गरीब और कम पढ़े-लिखे तबकों में ज्यादा सुनने, देखने को मिलते हैं। पढ़े-लिखे और समर्द्ध इलाकों में नहीं। क्यूँकि, वहाँ सबके पास कम से कम, इतना-सा तो होता ही होगा? वैसे भी, ऐसी-ऐसी, छोटी-मोटी सी लडाईयाँ, छोटे-मोटे लोगों के यहाँ ही ज्यादा होती हैं। बड़े लोगों के यहाँ, ऐसी-ऐसी, आम-सी जरुरतों के लिए नहीं, बल्की किन्हीं खास वर्चस्वों या अहमों की लड़ाईयाँ होती होंगी। जैसे कुर्सियों की, सत्ताओं की। वहाँ तो लोगों के पास घर भी एक नहीं, बल्की कई होते हैं। और घर के हर इंसान के नाम होते हैं। अच्छे-अच्छे शहरों और देशों में होते हैं।  

इनमें से किसका देश ज्यादा विकसित है?

भारत? BHARAT? इंडिया? या INDIA? वैसे आप कौन-से वाले भारत में रहते हैं? जो अपने आपको विकसित कहते हैं, वहाँ वालों को तो ऐसा कुछ, शायद ही कभी देखने-सुनने को मिलता होगा? जैसे, "मेरे घर से निकल"? या मिलता है? शायद, जिन्होंने रेंट पे दिए हों, वहाँ हो सकता है? 

या शायद सरकारी मकान वालों को भी? वहाँ भी कहीं, ऐसा कुछ देखने-सुनने को मिलता है क्या? भारत जैसे देश में शायद? बड़े साहबों के बच्चे, किन्हीं गरीबों द्वारा ऐसा कहलवा सकते हैं? क्यूँकि, so called बड़े लोग, आपको शायद ही कभी ऐसे केसों में आमने-सामने मिलें। हाँ। दूर बहुत दूर बैठे जरुर, वो सब कर रहे होंगे या देखते-सुनते होंगे। वो भी लाइव, उसी वक़्त, अगर चाहें तो। या रिकॉर्डिंग्स बाद में, अपनी सुविधा अनुसार।    

और पुस्तैनी जमीनों पे? यहाँ भाई, बहन को कहते मिल सकते हैं? माँ या बेटी को भी? और शायद बीवी को भी? या शायद, कमजोर भाइयों को भी? सिर्फ कह नहीं सकते, बल्की ऐसी सब जगहों पे मार-पिट भी सकते होंगे? वैसे भी, मेरे महान "यत्र पूज्यन्ते नारी, रमन्ते तत्र देवता" वाले देश में तो? थोड़ा गलत लिख दिया शायद? 

गूगल बाबा से पूछें?    


घणी पेल गया, लाग्या यो तो?
आप क्या कहते हैं? 
  
कोई आपपे पहली बार हाथ उठाए, तो माफ़ कर देना चाहिए। है ना? दूसरी बार उठाए, तो सावधान हो जाना चाहिए और थोड़ी बहुत उसकी भरपाई भी होनी चाहिए। जिसे आदत हो या जल्दी भड़कने वाला इंसान हो? या हमारे यहाँ तो चलता है सब, जैसे? वो आपके सामने ऐसे-ऐसे उदहारण पेश करेंगे, जैसे यहाँ औरतें तो खासकर, रोज ही पीटती हों। और उनके अधिकार वैगरह कुछ नहीं होते। जो होता है, या तो So-called मर्दो का या जिसकी लाठी, उसकी भैंस? फिर बड़ा क्या और छोटा क्या?
  
आप क्या कहते हैं? ऐसे केसों में, अपना हिस्सा अलग करो और अपने-अपने रस्ते खुश रहो? या माफ़ी माँग ले, तो जाने दो? खासकर, जब कुछ हो ही ना? नहीं तो, इनका कुछ नहीं सुधरना?

ये पढ़ाई-लिखाई छोड़कर, कौन से झमेलों में आ गए हम? गुड़ का गोबर, और गोबर का गुड़ जैसे? यही एकेडेमिक्स कहलाता है शायद?  

आजकल तारीख पता है क्या चल रही है? कल क्या थी? और आज? और कल? सामान्तर घड़ाईयाँ या राजनीती के खेलों की लड़ाईयाँ, इन सबके खास आसपास घूमती हैं। खेल के कोढों के हिसाब-किताब से भड़कावे और उकसावे होते हैं और उन्हीं के हिसाब-किताब से सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ी जाती हैं। कैंपस क्राइम सीरीज से लेकर, सामाजिक घड़ाइयों तक के यही हाल हैं। ये सब ये भी बताते हैं, की आम आदमी को खासकर, राजनीती और बड़ी-बड़ी कंपनियों ने कैसे और किस कदर अपना गुलाम (मानव रोबॉट्स) बनाया हुआ है।          

उकसावे? माहौल? और राजनीती? 2

सिर्फ उकसावे ऐसा करवाते हैं? या राजनीती भी माहौल बनाती है, लोगों के आसपास का? राजनीती की सुरँगों के राज यही हैं? 

जिन्हें हुक्का थमा रहे हो, उन्हें उनके लायक किताबें थमाने की कोशिश की क्या? या ऐसा कोई उनके लिए विकल्प, आपके जहन में ही नहीं आया? ऐसे-ऐसे विकल्प, तो सिर्फ अपनों के लिए हैं? या उनके लिए सिर्फ, जिनमें आप का फायदा हो?  

और ये खास-उकसावों वाले, उस पर ये भी बोलते हैं, की पसंद-नापसंद तो सामने वाले की है, खेल या राजनीती हमारी सही । मतलब, ऐसे खिलाड़ियों के पास या ऐसे बेचारे भोले-भाले राजनीती वालों के पास, अपनी जनता के लिए ढंग के विकल्प ही नहीं हैं? बोतलें थमाने के, ड्रग्स सप्लाई के या हथियारों तक पहुँचाने के और हादसे करवाने के? उससे भी बड़ी बात, law and enforcement ऐसे केसों में क्या करता है, जिसको सिर्फ भनक ही नहीं, बल्की खबर तक पहले से होती है, की ऐसा होने वाला है या हो सकता है? या करवाया जा रहा है? 

राजनीती ऐसे जैसे, 

आप टाँग तुड़वाए पड़े हों। और कहीं, आपके आसपास कुनबे तक के बच्चों को पढ़ाया गया हो, वो तो Live-in थी? और आपको वो सब पता चले, उस हादसे के सालों बाद। क्यूँकि, आपने उस आसपास को जानना अभी शुरू किया है, जब वहाँ रहना पड़ा। नहीं तो ऐसी-ऐसी पढाईयों की खबर भी ना होती। और क्या हो अगर कोई सच में live-in रह रहा हो? हाय-तौबा मच जाएगी? इतने सालों बाद भी, यहाँ बदला बहुत कुछ नहीं। या शायद जो कुछ बदल जाता है, वो वापस गाँवों की तरफ आता ही नहीं। इसीलिए, इतने घर खाली होते जा रहे हैं?      

ऐसे जैसे, कहीं बोला गया हो किसी को, Run for cover और वो आपके बारे में इसके या उसके बहाने जैसे, बोलते नज़र आएं, "हे शंकर क्यां क छोरी भाज गी"। वो दादी-ताई, जो छोटे बालों वाली बच्ची को परकटी बोल सकते हैं, ऐसे-ऐसे स्मार्ट बच्चों की ऐसी-ऐसी स्मार्ट गपशप को कैसे लेते होंगे? यही मौहल्ला क्लिनिक चला रखे थे क्या, कुछ बड़े लोगों ने? कुछ इधर की पार्टी वालों ने, और कुछ उधर की पार्टी वालों ने?

ऐसे जैसे, स्कूल बनाने की बात हुई तो, "यो तो थारी ज़मीन खा जागी"। और भड़काने वाले जिन बेचारों को ये तक नहीं मालूम, की उसने तो उनकी बच्ची को पैदाइश से पहले ही unofficially गोद लिया हुआ है। और भड़कने वालों को ये तक ना समझ आए, ये ज़मीन लेके जाएगी कहाँ? ना शादी की हुई, ना बच्चा। जो है वो भी तुम्हारा। और मान भी लिया जाए, तो क्या वो तुम्हारी ज़मीन खाना कहलाएगा? या उसका अपना हिस्सा लेना, जो आज तक इन इलाकों की लड़कियाँ, भाई-बंधी में छोड़ देती हैं। ऐसे-ऐसे नालायकों के पास तो छोड़ना नहीं चाहिए शायद?     

ऐसी-ऐसी कितनी ही, contradictory-सी कहानियाँ भरी पड़ी हैं यहाँ। कैसे भला? कुछ तो लोगों के पास, कुछ खास करने-धरने को होता नहीं। यहाँ-वहाँ की गॉसिप से अच्छा टाइम पास हो जाता होगा। काफी कुछ राजनीतिक तड़के होते हैं। जैसे जिन बच्चों को live-in जैसी कहानियाँ सुनाई गई होंगी, उन्हें इनके कोढ़ और live-in या out, checked in या chacked out जैसे कोढों के मतलब थोड़े ही बताए होंगे। इन बेचारों के live-in तो शायद, दुनियाँ के आरपार, एक छोर से दूसरे छोर पे हो जाते हैं, बैठे बिठाए। Checked in, checked out, एक एयरपोर्ट से, दूसरे एयरपोर्ट तक के सफर में हो जाते होंगे, उड़ते-उड़ते ही? ऐसे कोड बताते, तो सारी परतें ना खुल जाएँ की ये राजनीतिक पार्टियाँ खेल क्या रही हैं? और तुम क्यों और कैसे उनके हिस्से बने हुए हो? तुम्हारे अपने यहाँ ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे हादसों के बारे में कब, किसने बताया? अगर नहीं तो क्यों नहीं? खासकर, जिनके बारे में आम आदमी को पता होना चाहिए, बिमारियाँ और मौतें। वो भी राजनीती के कोढों की धकेली हुई। कुछ ज्यादा समझदार, पढ़े-लिखे, उसपे कढ़े, कहीं ऐसे-ऐसे केसों में, पूरे घर को ही तो तबाह के चक्कर में नहीं लगे हुए?   

उकसावे? माहौल? और राजनीती? 1

आप जो करते हैं, क्या वो खुद ही करते हैं? या आपसे कोई करवा रहे हैं? अद्रश्य कोई? अद्रश्य होते हुए भी, जो बहुत अद्रश्य ना हों? कौन हैं ये, अद्रश्य? सुरँगे, राजनीतिक पार्टियों की?

कोई कहीं पढ़ाई-लिखाई और किताबों की बातें करे और कहीं वक़्त-बेवक़्त, हुक्कों की महफ़िल सजने लग जाएँ? ये सब अपने आप हो रहा है? आप खुद पुरे होशो हवास में कर रहे हैं ना? या आपसे करवाया जा रहा है? कहकर या गुप्त तरीके से, किन्हीं राजनीतिक पार्टीयों द्वारा? ज्ञान, विज्ञान, टेक्नोलॉजी और सर्विलांस एब्यूज, इन सबमें अहम है। जो जितना ज्यादा, अंजान-अज्ञान और भोला है, उसे उतनी ही आसानी से, मानव रोबॉट बनाया जा सकता है।      

मान लो, कहीं कोई शर्त लगी हुई हैं, किन्हीं लड़कियों को पटाने की या उनसे कुछ करवाने की, जैसे अक्सर रैगिंग में होता था, सीनियर्स द्वारा। 

और समान्तर सामाजिक घड़ाईयाँ: कहीं कोई, आपको कोई कबूतरबाज़ी सीखा रहे हैं? या पतंग उड़वा रहे हैं? या fishing करना सीखा रहे हैं? या ऐसे-ऐसे वयव्सायों में लगा रहे हैं? ये सब आप खुद कर रहे हैं? या आपसे कोई करवा रहे हैं? मगर खुद अद्रश्य होकर?

कहीं कोई कुछ गाने या म्यूजिक वैगरह सुन रहे हैं, 

और समान्तर सामाजिक घड़ाईयाँ: कहीं और जगह आपको कोई बोतल थमा रहे हैं या ड्रग्स? अरे नहीं, आप तो वो सब खुद अपनी मर्ज़ी से कर रहे हैं ना? या कोई राजनीतिक पार्टियाँ, अद्रश्य तरीके से धकेल रही हैं?

कहीं कोई छोटी-मोटी रैगिंग से आगे निकल, जुआ खेल रहे हैं, आदमियों को गौटियों-सा ईधर से उधर धकेल रहे हैं। सट्टा बाजार संग, सत्ताएँ बदल रहे हैं। और आप? 

और समान्तर सामाजिक घड़ाईयाँ: सिर्फ, कबूतरबाज़ी या पतंगबाज़ी या फिशिंग से आगे निकल, दाँव लगाने लगे हैं? जीतने-हारने लगे हैं? घर के लिए या किन्हीं खास कामों के लिए, जो थोड़े से पैसे थे, उन्हें भी? या शायद कुछ जीत भी रहे हैं और अभी तक तो मस्त हैं? इसके आगे? कहीं लोगों को ही दाँव पे तो नहीं लगाने लग जाओगे? घर-बार जमीनें तो नहीं गँवाने लग जाओगे? वैसे, ये सब आप खुद ही कर रहे हैं ना? पूरे होशो-हवास में? कहीं कोई अद्रश्य, राजनीतिक सुरँगे तो नहीं करवा रही? इन सुरँगों के कारनामों का बहुत ही छोटा-सा उदाहरण, अभी सुनील की ज़मीन का है। और? हूबहू, यूनिवर्सिटी की घर के रेंट की कहानी। कुछ लोगों के नाम और कारनामे भी हूबहू? 

हकीकत? समाज के प्रहरियों से पूछ लेते हैं  

सब कुछ दुनियाँ भर के शासन-प्रसाशन, पुलिस, इंटेलिजेंस, खुफिया-तंत्र, सेनाओं और पत्रकारों की रिकॉर्डिंग के बावजूद हो रहा है ना? ये समाज कौन घड़ रहा है? 

जैसे NEO सर्विलांस और रोबॉटिक्स? जितनी ज्यादा किसी भी मशीन के बारे में जानकारी, उतना ही आसान है, उसे अपने अनुसार चलाना। इंसान भी एक मशीन ही है। बस थोड़ा-सा अभी तक इंसान द्वारा बनाई गई मशीनों से ज्यादा दिमाग है। मगर, जहाँ उसे प्रयोग करने वाले होते हैं, वहाँ। शराब के नशे में या ड्रग्स के नशे में तो दिमाग वैसे ही आधा-अधूरा सा काम करता है। उसपे अगर कुछ खास तरह के जानकारों द्वारा, कुछ और खास खिला-पिला दिया जाए तो? बल्ले-बल्ले, किसकी? जुर्म करने वालों की। नहीं? यही हो रहा है ना, समाज में? बिमारियों और मौतों में तो और भी बहुत कुछ, आम आदमी की समझ से बहुत परे।                                         

Saturday, July 27, 2024

मेरी किताबों की दुनियाँ

आधी अधूरी-सी पढ़ी किताबें? या कवर देखकर, समझने की कोशिश की किसी किताब को, और पन्ने पलटकर रख दी गई किताबें? कभी शायद वक़्त नहीं था, उस विषय को पढ़ने का तो कभी शायद रुची? फिर कुछ ऐसी किताबें या विषय भी हैं, जो एक बार नहीं, बल्की कई बार पढ़े? जाने क्या रह गया था या समझ नहीं आया था एक बार में, उनमें? फिर कुछ-एक ऐसी भी किताबें जो जितनी बार पढ़ी, उतना ही कुछ नया मिला जैसे पढ़ने को? बहुत-सी शायद ऐसी भी किताबें, जो किताबों से नहीं, बल्की, उनके लेखकों के दूसरी तरह के मीडिया से ज्यादा पढ़ी और समझी? जैसे ब्लॉग्स से या खबरों से या लेक्चर्स या और छोटे-मोटे वीडियो से? 

बहुत-सी किताबों को या विषयों को पढ़ने या समझने का मतलब, सिर्फ थ्योरी नहीं होता, बल्की प्रैक्टिकल होता है। ये किसी प्रैक्टिकल ने ऐसे और इतने अच्छे-से नहीं समझाया, जितना केस स्टडीज़ ने। कैंपस क्राइम सीरीज़ तो सिर्फ एक छोटा-सा ट्रेलर था। 

वो फिर चाहे एक तरफ माँ का Gall Bladder Stone ऑपरेशन रहा हो, तो दूसरी तरफ December 2019, एग्जाम फ्रॉड। मेरा अपना March 2020 backside terrible pain और हॉस्पिटल में टैस्टिंग के नाम पे kidney stone है या gall bladder stone है, जैसे ड्रामे। उसपे दूध की थैली से निकला जैसे सोडा, जिसमें कोई स्मैल नहीं और कोई खास स्वाद में फर्क नहीं देख, मेरा रोहतक से नौ दो ग्यारह होना हो, अपने गाँव। और कोरोना की शुरुवात जैसे। सही बात है, आप इतना कुछ कैसे सिद्ध कर पाएँगे? पागल नहीं तो क्या कहलाएँगे? सबसे बड़ी बात, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी रिकॉर्डिंग्स, बड़े-बड़े लोगों के पास होने के बावजूद। फिर ऐसे-ऐसे पागलों पे देशद्रोह भी चलता है? ऐसे-ऐसे Mentally Sound (?) लोगों को या so-called officers को आप क्या कहेंगे? वो तो सब कुछ IRONED OUT कर देंगे? 

वैसे, इस IRONED OUT का सही मतलब क्या है? वैसे तो एक ही शब्द के कितने ही मतलब हो सकते हैं। जैसे एक पहले वाली पोस्ट में पढ़ा जैसे? और कुछ और सामने आए, जैसे?   

आयरन खत्म कर, मारना जैसे?

या ANEAMIA कर मौत तक पहुँचाना जैसे? लो जी, एक और कोड आ गया, ANEAMIA   

या?

मार-पीट कर यूनिवर्सिटी से ही नफरत करवाना जैसे? की ऐसे माहौल को छोड़, वो खुद ही भाग जाए?

या PRESSED OUT जैसे? Pressed को Processed भी लिख सकते हैं?    

इतना कुछ सिर्फ थ्योरी वाली किताबों से कहाँ समझ आता है? उसके लिए आपको ईधर-उधर, आसपास, बहुत-कुछ, देखना-सुनना और समझना पड़ता है। कभी समझ आ जाता है। कभी-कभी शायद दिक्कत भी होती है, समझने में। मगर रिसर्च या केस स्टडीज़ की किताबें, शायद ऐसे ही छपती हैं। जितने बड़े एक्सपर्ट, उतनी ही, गूढ़-सी कहानियाँ जैसे। कुछ ऐसी-सी किताबें पढ़ी हैं। जो अपने आप में केस स्टडीज़ हैं या केस स्टडीज़ जैसी-सी ही हैं। साइंस, टेक्नोलॉजी, मीडिया, कल्चर का मिश्रण, सब साथ-साथ चलता है। Highly Interdisciplinary दुनियाँ में हैं हम। फिर कुछ कविताओं की या बच्चों की किताबें भी हैं, जिन्हें शौक कह सकते हैं आप। जब कुछ खास पढ़ने-लिखने का मन ना हो, तो उन्हें उठा लो। तो कहाँ से शुरू करें? केस स्टडीज़ से? कविताओं से? या बच्चों जैसी-सी किताबों से?    

गुनाह को पनाह या उकसावा?

गुनाह को पनाह?

या गुनाह को उकसावा?

या क्या चल रहा है ये? 

कुछ तो है,

जो पिछले कुछ वक़्त से चल रहा है। 

ऐसा-सा ही कुछ रितु की मौत से पहले और बाद में चला था, शायद। तब आदमी और थे। अब और हैं। मगर, वक़्त-बेवक़्त हुक्का महफ़िलें वही है। पैसे आने वाले हैं, की सुगबुगाहट तब थी। और शायद थोड़ी-बहुत फिर से है। गाँव से निकालने वाले अद्रश्य ना होते हुए भी, अद्रश्य जैसे तब थे। फिर से हैं? पैसे भी कितने? किन बेचारों को दिक्कत है, इन थोड़े से पैसों से भी? और कौन हैं, जिन्होंने रोक रखे हैं? या उससे आगे भी कोई साँग है, जो रचने की कोशिशें हो रही हैं?   

या किताबें और पढ़ने-लिखने की बातें चलते ही, गँवारों के यहाँ वक़्त-बेवक़्त होक्के चलने लगते हैं? और घर या आसपास की औरतें परेशान। मगर, अहम है की ये सब करवाते कौन हैं? या जैसे हम सोचते हैं, की दुनियाँ अपने आप ही करती है? करवाएगा या करवाएँगे कौन?          

Friday, July 26, 2024

Internet of Things (IOT), Grey Colour NEO and Ghost Robotics

Internet of Things (IOT) क्या है? 

कैसे काम करता है?

क्या-क्या काम करता है?  

क्या ये घर की लाइट और इससे जुड़े ज्यादातर घर, ऑफिस या फैक्टरियों के इंस्ट्रूमेंटस या व्हीकल्स को इंटरनेट की मदद से दुनियाँ के किसी भी कोने में बैठकर कंट्रोल कर सकता है? या करता है? अगर हाँ? तो किस हद तक?

आपके घर का AC सर्विस के बाद, अगर ठंडा करने की बजाय गर्म करने लगे, तो क्या गड़बड़ हो सकती है?

ठीक करवाने के बाद, अगर और ज्यादा गर्मी करने लगे तो?

यही छोटी-मोटी कोई हेरफेर? 

ऐसे ही, अगर लाइट ठीक करवाने पे या थोड़े बहुत कोई नए स्विच लगवाने पे, आपका इलेक्ट्रीशियन अगर कोई अनचाहा स्विच भी बदल जाए? जैसे मेन स्विच? पहले पुराने जमाने का कोई सफेद सिंगल एंकर कंपनी का शायद, और बाद में कोई डबल grey colour का NEO लगा जाए? कोई खास फर्क नहीं पड़ता शायद? ये कंपनी हो या वो? बिजली वाले को शायद लगा होगा, लगे हाथों ये भी कर देना चाहिए? आपको भी कोई खास फर्क नहीं लगा। हाँ। किसी की ट्विटर वाल पे कुछ देख-पढ़कर, कोई शक जरुर हुआ। उसके कुछ वक़्त बाद, आपने वो स्विच बदलवा दिया। सब ठीक? लेकिन कुछ तारों के हेरफेर भी थे शायद, वो तो नहीं करवाए। अब इलेक्ट्रिसिटी का ABC नहीं पता, तो वो भी क्या फर्क पड़ता है? क्या फालतू के चक्करों में पड़ना? 

पीछे कूलर की जलने की काफी प्रॉब्लम आ रही थी। पर वो शायद सिर्फ यहाँ नहीं थी। लाइट फलेक्टुअट होना, बार-बार आना या जाना भी एक वजह हो सकता है। जो गाँवों में खासकर आम होता है। शिव इलेक्ट्रीशियन, बॉस वाटर पम्प, उसपे सॉफ्ट लाइन कूलर का भी कोई कनैक्शन हो सकता है?  

इस सब में Internet of Things (IOT) का क्या लेना-देना? हो सकता है क्या? पता नहीं। 

चलो छोड़ो, आओ थोड़ा IOT को समझने से पहले, एक रोबॉट से मिलते हैं। 

Ghost Robotics कम्पनी का नाम है। 

जिसके पास कई तरह के रौचक रोबॉट हैं। 

जो सीधे सपाट रोड पे ही नहीं बल्की पानी और बर्फ पे भी मस्त चलते हैं। 

Quadruped Unmanned Ground Vehicle (Q-UGV)  



इसका नया अवतार NEO है। 

ये मैं एक ब्लॉग पढ़ती हूँ, पिछले कई सालों से, वहाँ से पढ़ने को मिला। 2014 में जब मैंने H #16, Type-3 की शिकायत की थी यहाँ-वहाँ, उसके बाद खासतौर पे पढ़ना शुरू किया था, ऐसे-ऐसे विषयों के बारे में।     

“NEO can enter a potentially dangerous environment to provide video and audio feedback to the officers before entry and allow them to communicate with those in that environment,” Huffman said, according to the transcript. “NEO carries an onboard computer and antenna array that will allow officers the ability to create a ‘denial-of-service’ (DoS) event to disable ‘Internet of Things’ devices that could potentially cause harm while entry is made.”

Bruce Schneier, Public Interest Technologist, Harvard Kennedy School

जो कुछ ऊप्पर लिखा है, उनका आपस में कोई सम्बन्ध हो सकता है? ये सब आप सोचो। जानने की कोशिश करते हैं आगे, की इंसान रुपी मशीन और इंसान द्वारा बनाई गई मशीनों में कितना फर्क है? रोबॉटिक्स इंसान का और इंसान रोबॉट्स का अवतार हो सकता है क्या? या ऐसा तो दुनियाँ भर में हो रहा है। ये सामान्तर घढ़ाईयोँ में एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं क्या? या ये भी बहुत पहले से हो रहा है?

जैसे एक NEO, Ghost Robotics कंपनी का, तो दूसरा डिज़ाइन, ये घर में बिजली वाला मेन स्विच बदलने वाला? और भी कितने ही ऐसे-ऐसे सामान्तर डिज़ाइन या घढ़ाईयाँ यहाँ-वहाँ, लोगों की असली ज़िंदगियों में। इनमें से किसी का एक दूसरे से कोई नाता नहीं। सोशल स्तर भी बहुत ही असामान्य। एक तरफ रोबॉट्स बनाने वाली कम्पनियाँ और अपने-अपने फील्ड के बेहतर एक्सपर्ट्स, तो दूसरी तरफ? तिनका तक ईधर से उधर होने पर, भड़कने वाले अंजान-अज्ञान लोग। ज्यादातर कम पढ़े-लिखे और मिडिल लोअर या गरीबी के आसपास लोग। अपनी अलग ही दुनियाँ में, जिन्हें कैसे भी और किसी भी नाम पे भड़का दो। कितना आसान है ना, ऐसे लोगों को रोबॉट बनाना? फिर आधी-अधूरी जानकारी तो, अच्छे-खासे पढ़े-लिखों को बना देती है। और यही गैप, इंसान द्वारा इंसान के शोषण के रुप में, जहाँ भर में हो रहा है, राजनीतिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा।   

Thursday, July 25, 2024

कोड के हिसाब-किताबों की दुनियाँ ?

देश से ही शुरु करें ?

BHARAT से या INDIA से?

क्या फर्क पड़ जाएगा? एक ही तो बात है?

या BHARAT के अक्षर अलग हैं? और INDIA के अलग? या कुछ भी नहीं मिलता, सब कुछ अलग है? फिर कोड की दुनियाँ में तो, एक अक्षर भी इधर या उधर करने से बहुत कुछ बदल जाता है। अक्षर ही क्यों? यहाँ तो कोमा, बिंदी जैसे भी, कुछ का कुछ बना देते हैं। 

देशों की राजनीतिक बोर्डर भी फिर तो शायद कुछ और ही हैं? राजनीती कैसे बदलती है, इन सीमाओं को? अलग-अलग पार्टी की भी अलग-अलग सीमा होंगी फिर तो? या कम से कम वहाँ तो सहमती होगी? या वहाँ भी यही घमासान है? अच्छा, कहाँ-कहाँ की सीमाएँ शाँत हैं और कहाँ-कहाँ की नहीं? कितना वो सही में शाँत हैं? और कितना सिर्फ मीडिया में? ऐसे ही कितना वो सही में अशाँत हैं, और कितना महज़ मीडिया में?         

चलो BHARAT चलें? या INDIA? कैसा सा-है भारत? या BHARAT? और INDIA? या इंडिया?

ऐसा है इंडिया या INDIA? 


और ऐसा है भारत या BHARAT?

ये तस्वीरें गूगल से गूगली हुई हैं 

बूझो तो जानें जैसे?
या दोनों तस्वीरों में 10-15 अंतर ढूंढों जैसे?

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? 2

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? या मुझे खबरें कहाँ से मिलती हैं? 

वो भी इतना अलग-थलग (isolated) होने के बावजूद)?  

अलग-थलग? पता नहीं। वक़्त और परिस्तिथियों के साथ, आपके संपर्क और सोशल-सर्कल, शायद थोड़ा-बहुत बदलता रहता है। बहुत ज्यादा नहीं, शायद।   

बहुत-सी खबरें, बहुत ही indirect होती हैं। जैसे कहीं दूर कुछ चल रहा हो और कुछ वक़्त बाद ऐसा लगने लगे, ऐसा ही कुछ-कुछ यहाँ तो नहीं शुरू हो गया? या शायद जो कहीं बहुत कम है, उसका बढ़ा-चढ़ा रुप? या बिगड़ा-स्वरुप? ये लगना या अहसास होना, की शायद ऐसा कुछ चल रहा है? या कुछ तो कहीं गड़बड़ घोटाला है? एक के बाद एक, जैसे कोई सीरीज बनती जाए, तो हूबहू-सी घड़ाईयाँ समझ आने लगती हैं। उस पर अगर आपको Protein Structure Prediction या PCR या Genetic Engineering कैसे होती है, के abc पता हों, तो शायद उतना मुश्किल नहीं होता समझना, जितना किसी भी अज्ञान या अंजान इंसान के लिए हो सकता है। 

जैसे नीचे दी गई ज्यादातर सूचनाएँ, यहाँ-वहाँ से ली गई हैं। कोई ऑफिस, कोई घर, कोई इधर उधर का सोशल सर्कल, कोई दूर कहीं किसी यूनिवर्सिटी का पेज या source कुछ और भी हो सकता है। जैसे किसी का कोई फ़ोन कॉल किसी के पास, या किसी कंपनी या प्रोडक्ट के नाम पे आपके पास। हो सकता है की उस वक़्त आपको ना फ़ोन करने वाले के बारे में और ना ही दी गई या सुनी या देखी गई सुचना के बारे में कुछ पता हो। मगर कुछ वक़्त बाद कुछ और देखकर या  सुनकर लगे, की कहीं न कहीं, ये तो यहाँ या वहाँ मिलती-जुलती सी खबर है? ये यहाँ और वो वहाँ? या शायद ये और ये एक दूसरे से? तो मान के चलो, की वो मिलती हैं। कहीं न कहीं, कोई सन्दर्भ है। अब उस सन्दर्भ को जानने के लिए, आपको उन अलग-अलग सूचनाओं की जितनी जानकारी है, उतना ही उनसे मिलती-जुलती, हूबहू-सी लगने वाली खबर की जानकारी होगी। वो हूबहू सी घड़ाईयाँ, आसपास भी हो सकती हैं और दुनियाँ के किसी और कौने में भी।  



















कैसे? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट में। 

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? 1

What Media I Consume?

मीडिया में मेरे हिसाब से तो बहुत कुछ आता है। मीडिया, मेरे लिए शायद वो इकोलॉजी है, जो हमारे जीवन को किसी भी प्रकार के जीव-निर्जीव के सम्पर्क में, जाने या अंजाने आने पर, या आसपास के समाज के बदलावों से भी प्रभावित करता है। जैसे माइक्रोलैब मीडिया, सूक्ष्म जीवों को। मगर यहाँ मैंने उसे नाम दे दिया है, सोशल माइक्रोलैब मीडिया कल्चर। लैब मैक्रो (बहुत बड़ी) है, मगर उसे समझने के लिए सुक्ष्म स्तर अहम है।      

जो कुछ भी मैं लिखती हूँ, वो इसी मीडिया से आता है। सामाजिक किस्से-कहानियाँ खासकर, राजनितिक पार्टियों द्वारा, ज़िंदगियों या समाज के साथ हकीकत में धकेले गए तमाशों से।  

पढ़ती क्या हूँ?  

कुछ एक अपने-अपने विषयों के एक्सपर्ट्स के पर्सनल ब्लोग्स (blogs)। कई के बारे में आप पहले भी किन्हीं पोस्ट में पढ़ चुके होंगे। जैसे, 

Schneier on Security  https://www.schneier.com/

Security Affairs https://securityaffairs.com/ 

कुछ यूनिवर्सिटी के Blogs, Nordic Region, Europe से खासकर।  जिन्हें पढ़कर ऐसा लगे, की ये आपसे कुछ कहना चाह रहे हैं शायद, या कुछ खास शेयर कर रहे हैं। 

कुछ एक न्यूज़ चैनल्स, ज्यादातर इंडियन। कुछ एक वही जो अहम है, जिन्हें ज्यादातर भारतीय पढ़ते हैं। ईधर के, उधर के, किधर के भी पढ़ लेती हूँ या देख लेती हूँ। पसंद कौन-कौन से हैं? कोई भी नहीं? थोड़ा-सा ज्यादा हो गया शायद? मोदी भक्ती वाले बिलकुल पसंद नहीं। हाँ। वहाँ भी बहुत कुछ पढ़ने लायक और समझने लायक जरुर होता है। जैसे एक तरफ, कोई भी पार्टी, मीडिया के द्वारा अपना एजेंडा सैट कैसे करते हैं? और जनमानष के दिमाग में कैसे घुसते हैं? तो कुछ में खास आर्टिकल्स या आज का विचार जैसा कुछ होता है। जो भड़ाम-भड़ाम या ख़ालिश एजेंडे से परे या एजेंडा होते हुए भी, मानसिक शांति देने वाला होता है या सोचने पर मजबूर करने वाला। कुछ एक के आर्टिकल्स, आपके आसपास के वातावरण के बारे में या चल रहे घटनाक्रमों के बारे में काफी कुछ बता या दिखा रहे होते हैं। कुछ एक फ़ौज, पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां, सिविल एरिया में रहकर या बहुत दूर होते हुए भी, काम कैसे करती हैं, के बारे में काफी कुछ बताते हैं। कुछ एक, राजनीती पार्टियों की शाखाओं जैसी पहुँच, आम आदमी तक और उनके द्वारा अपने प्रभाव या घुसपैठ के बारे में भी लिखते हैं।            

दुनियाँ जहाँ की यूनिवर्सिटी के वैब पेज, मीडिया, मीडिया टेक्नोलॉजी खासकर, या बायो से सम्बंधित डिपार्टमेंट्स के बारे में। जो थोड़ा बहुत जाना-पहचाना सा और अपना-सा एरिया लगता है। 

ये जानने की कोशिश की, क्या दुनियाँ की किसी भी यूनिवर्सिटी के वेब पेज या प्रोजेक्ट में ऐसा कुछ भी मिलेगा, की कोरोना-कोविड-पंडामिक एक राजनितिक बीमारी थी? और कोई भी बीमारी, राजनितिक थोंपी हुई या धकाई हुई हो सकती है? सीधा-सीधा तो ऐसा कुछ नहीं मिला। मगर, ज्यादातर बीमारियाँ हैं ही राजनीती या इकोसिस्टम की धकाई हुई, ये जरुर समझ आया। और वो इकोसिस्टम, वहाँ का राजनितिक सिस्टम बनाता है। कुछ बिमारियों पर, किसी खास वक़्त, राजनीती के खास तड़के और  कुर्सियों की मारा-मारी है। उसे तुम कैसे देख या पढ़ पाओगे, सीधे-सीधे ऑनलाइन? ऑनलाइन जहाँ तो है ही, किसी भी देश के गवर्न्मेंट के कंट्रोल में। वो फिर अपने ही कांड़ों पर मोहर क्यों लगाएंगे? वो आपको सिर्फ वो दिखाएँगे या सुनाएँगे, जो कुछ भी वो दिखाना या सुनाना चाहते हैं। न उससे कम और न उससे ज्यादा।  

मोदी या बीजेपी से नफ़रत क्यों?

वैसे तो मुझे राजनीती ही पसंद नहीं। फिर कोई भी पार्टी हो, फर्क क्या पड़ता है? या बहुत वक़्त बाद समझ आया, की बहुत पड़ता है। 

कोई पार्टी या नेता काँड करे और आपको इसलिए जेल भेझ दे, की आप ऐसा सच बोल रहे हैं, जो उसके काँडो को उधेड़ रहा है? तो क्या भक्ति करेंगे, ऐसे नेता या पार्टी की? 

उसपे अगर मोदी को फॉलो करोगे तो पता चलेगा, इसका बॉलीवुड से और फिल्मों से कुछ ज्यादा ही गहरा नाता है? क्या इसे कुछ और ना आता है? अब बॉलीवुड वालों का तो काम है, फिल्में बनाना। एक PM का उससे क्या काम है? अपनी समझ से बाहर है।  

मुझे पढ़े-लिखे और समाज का भला करने वाले नेता पसंद हैं। नेता-अभिनेता नहीं। तो कुछ पढ़े-लिखे या लिखाई-पढ़ाई से जुड़े नेताओं के सोशल पेज भी फॉलो कर लेती हूँ। वो सोशल पेज, फिर से किसी सोशल मीडिया कल्चर से अवगत कराते मिलते हैं। जैसे हुडा और यूनिवर्सिटी या शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान। गड़बड़ घौटाले समझने हैं, तो उनके ख़ास प्रोजेक्ट्स और टेक्नोलॉजी। जैसे रोहतक की SUPVA से लख्मीचंद (LAKHMICHAND) बनी यूनिवर्सिटी। हर शब्द एक कोड होता है। वो किस नंबर पर है या उसके साथ वाले शब्द कौन-कौन से हैं या दूर वाले कौन से, और कितनी दूर? किस राजनीतिक पार्टी के दौर में कोई भी प्रोजेक्ट आया या इंस्टिट्यूट बना? और वो इंस्टिट्यूट किस विषय से जुड़ा है? उस वक्त की राजनीती के बारे में बताता है। उसका बदला नाम या रुप-स्वरुप या उसमें आए बदलाव, उस बदलाव के वक़्त की राजनीती या पार्टी के बारे में काफी कुछ बताते हैं। 

अब lakhmi कोड का patrol crime से क्या connection? और वो कहेंगे, की किसी कुत्ती के ज़ख्मों पे डालने के लिए पैट्रॉल बोतल, पियकड़ को लख्मी आलायां ने दी थी। करवाया उन्होंने और नाम किसी का? वैसे शब्द या भाषा, वहाँ के सभ्य (?) समाज के बारे में भी काफी कुछ बताता है। Social Tales of Social Engineering, इस पार्टी की या उस पार्टी की? और उनका किसी या किन्हीं इंस्टीटूट्स में छुपे, प्रोजेक्ट्स या टेक्नोलॉजी से लेना-देना? ठीक ऐसे ही बिमारियों का और उनके लक्षणों का भी। ये सोशल मीडिया पेजेज से समझ आया है। 

संकेतों या बिल्डिंग्स के नक़्शों या कुछ और छुपे कोढों को समझना हो, तो शायद, शशि थरूर का सोशल पेज भी काफी कुछ बता सकता है। और इंटरेक्शन का मीडिया, बिलकुल डायरेक्ट नहीं है। कहीं पूछो, की तुम इन सबको जानते हो या ये तुम्हें जानते हैं? मैं इन्हें या ये मुझे उतना ही जानते हैं, जितना आपको। ज्यादातर आम आदमी को। ऐसे ही पढ़ना चाहो या समझना चाहो, तो वो आप भी कर सकते हैं। उसके लिए आपको किसी को जानने या मिलने की जरुरत नहीं है। एकदम indirect, वैसे ही जैसे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले या CJI खास एकेडेमिक्स इंटरेक्शन प्रोग्राम्स। या कहो ऐसे, जैसे हम कितने ही लेखकों की किताबें पढ़ते हैं, मगर मिलते शायद ही कभी हैं।   

अब वो सोशल मीडिया पेज आप-पार्टी के किसी नेता का भी हो सकता है और कांग्रेस के भी। JJP का भी हो सकता है और कहीं महाराष्ट्र की शिवसेना की आपसी लड़ाई से सम्बंधित आर्टिकल्स भी। महाराष्ट्र की शिवसेना की लड़ाई के आर्टिकल्स तो और भी आगे बहुत कुछ बताते हैं। भगवान कैसे और क्यों बनते हैं? उन्हें कौन बनाता है? उस समाज में किसी वक़्त आए या कहो लाए गए रीती-रिवाज़ों के बदलावों से उनका क्या सम्बन्ध है? ऐसे ही जैसे, JJP का ऑनलाइन लाइब्रेरी प्रोग्राम या शमशानों के रखरखाव में क्या योगदान है? GRAVEYARDS? और आगे, उसका कैसे प्रयोग या दुरुपयोग हो सकता है?  

वैसे ट्रायल के दौरान किसी को जेल क्यों? बेल क्यों नहीं? या ट्रायल के दौरान ही, कोई कितना वक़्त जेल में गुजारेगा? ऐसा या ऐसे क्या जुर्म हैं? अब आम आदमियों की तो बात ही क्या करें। ये आप पार्टी के नेताओं के साथ क्या चल रहा है? फिर मोदी के साथ क्या होना चाहिए? वैसे मैं किसी बदले की राजनीती के पक्ष में नहीं हूँ। मगर, सोचने की बात तो है। मोदी जी, है की नहीं? सोचने की बात? या मन की बात?

काफी लिख दिया शायद। अब मत कहना की जो लिखती हूँ या जहाँ से आईडिया या प्रोम्प्ट या ख़बरें मिलती हैं, उनके रेफेरेंस नहीं देती। और डिटेल में फिर कभी किसी और पोस्ट में।   

राजनीती? सिस्टम? बीमारियाँ? और मौतें?

राजनीती मतलब साम, दाम, दंड, भेद 

जैसे मान लो, रितु को 1 FEBRUARY 2023 को PGI रोहतक से उठा दिया। 

बीमारी क्या थी? कब से शुरू हुई थी?   

कब-कब, कहाँ-कहाँ ईलाज चला? क्या ईलाज किया गया? दवाईयाँ, उनके नाम, कंपनी, बैड नंबर, कमरा नंबर, डॉक्टर, हॉस्पिटल नाम, तारीखें और साल, सब अहम है। और कहाँ से, कैसे और कब उठाया गया? उन सबके नाम, नंबर, तारीख, साल, दवाईयों के नाम या किसी खास दवाई की कमी।  कैसे, कब और क्यों हुई? आम आदमी को कुछ नहीं पता होता। बड़े-बड़े डॉक्टरों तक को नहीं होता। फिर किसे होता है? वो अहम है। और कोड के रुप में इतना कुछ, ऐसे कैसे मैच कर सकता है? वो सिस्टम है। जो सुना, पता नहीं कब से कुर्सियों की मारा-मारी वालों ने ऐसे ही धकेला हुआ है।       

                          जैसे, अगर मैं बोलूँ की इस पोस्ट का सीधा-सीधा संबंध, रितु की मौत से है। 


कैसा संबंध? जिसके प्रोफाइल से ये पोस्ट ली है, वो तो सिर हो जाएगा मेरे। बात भी सही है। कुछ भी बैगर हाथ-पैर के, कहीं से भी जोड़ देती हूँ ना? 

कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे                  

AC Heating 

Cooler Fires 

Electricity Control 

Internet of Things 

God of Small Things 

छठ या छठा 

सत्ता या सट्टा

सतरहवीं या तेरहवीं हिन्दुओँ में, 

या 13 नंबर अंग्रेजों का, 

या 10वीं, 12वीं देसियों की, 

या खाट आला भगवान खाटू, 

भांग आला भगवान शिव, 

धतूरे आला लीलू, शिव, 

मंगल, हनुमान 

या मलंग महाकाल या कृष्ण 

पढ़ा-लिखा उसपे कढ़ा, राम या रावण

और भी जाने क्या-क्या 

जैसे मैं बोलूँ, इसका संबंध भी इन्हीं सब से है       


कैसे?

जैसे 
खाटू का झंडा लठ से उतार के, इस रैलिंग पे बीच में
और दोनों तरफ जीरो 
और झंडे वाला लठ?
सैटेलाइट के पीछे 
 सैटेलाइट की फ्रेक्वेंसी को क्या, कौन और कैसे पकड़ रहा है?
वैसे सैटेलाइट क्या-क्या काम आता है? 
   

उससे भी अहम 
 सैटेलाइट किस कंपनी का है?
और भी अहम, ये झंडा यहाँ, ऐसे किसने और किस तारीख को टांगा? 

लाइट जलने पे ये नजारा और भी खास होता है। बाथरुम के खास डिज़ाइन से निकली लाइट, इस ग्रीन शीट पे अपनी ही तरह की जीरो गढ़ती है। और कभी-कभी, खास किस्म की लाइट वाला बल्ब भी जैसे, कमाल का डिज़ाइन बनाता है। और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे नज़ारे, इधर-उधर भरे पड़े हैं। ये इस पार्टी के, तो वो उस पार्टी के।  

इतने में ही कितना कुछ आ गया ना? धर्म-अधर्म? रीति-रिवाज़? और राजनीती के हिसाब से, उन धर्मों या रीती-रिवाज़ों की रैली पीटना जैसे? आम आदमी को ना सिर्फ भावनाओं में बहाना, बल्की इन सबके सहारे भड़काना भी। उससे भी आगे, आम आदमी की ज़िंदगियों को इन सबमें गूंथकर, जरुरत के हिसाब के पकवानों और इंसानों के हिसाब से आटा तैयार करना जैसे। और अपनी-अपनी पार्टी के हिसाब-किताब के रोबोट बनाना और उन्हें रिमोट-कंट्रोल सा हाँकना, गोटी चलना जैसे। उससे भी अहम, जिसपे आम आदमी शायद ही कभी ध्यान देता है, ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग या दुरुपयोग, ये सब  बनाने के लिए। क्यूँकि, वो भावनाओं और भड़काओं से आगे ही नहीं सोच पाता।            

आम आदमी का इन सबसे क्या लेना-देना?
उसे शायद इन सबका ABC भी ना पता हो। 

राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, ऐसे ही लोगों पे राज करती हैं। उनकी ज़िंदगियों को तोड़ती-मरोड़ती हैं या अपने अनुसार चलाती हैं। उसमें रीती-रिवाज़ क्या, धर्म-अधर्म क्या, हर तरह का ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी प्रयोग या दुरुपयोग होता है। रोबोटों और इंसानों में इतना-सा ही फर्क है। इंसान, कितनी ही तरह से भावनाओं में बहाकर अपने काबू में किए जा सकते हैं। रोबोटों को सिर्फ कहा या बताया गया काम करना होता है, भावनाओं से परे। जब लोगों को बहुत-सी चीज़ें या तथ्य पता नहीं होते, तो वो भी इन राजनीतिक पार्टियों के लिए रोबोटों-सा ही काम करते हैं।   

Jammers, Radio Control (RC), Frequency Controls and Remote (IOT)

दूसरी भाषा में, दूसरे शब्दों में, घुमाऊ-फिराऊ, या फिर सीधे-सीधे भी? उसपे फिट भी हो, आप पर या आपके आसपास पर? आपके हालात पर, उसके कारणों या निवारणों पर। कभी-कभी हकीकत भी हो सकती है। और कभी-कभी, सिर्फ हमें ऐसा लग सकता है या समझ आ सकता है। वो समाधान भी हो सकते हैं। यूँ की यूँ, हकीकत भी या बढ़ा-चढ़ा रुप भी। या उसे किसी और तरफ घुमाना भी। और भी बहुत-कुछ कहा और किया जा सकता है। बातों ही बातों में। आमने-सामने भी और रिमोट कंट्रोल से भी। 

जैसे एक रौचक सी पोस्ट रोबोट डॉग इंटरनेट जैमर 

https://www.schneier.com/blog/archives/2024/07/robot-dog-internet-jammer.html      

आम आदमी को समझाने के लिए कोड की बात करें तो? कुत्ते (रोबॉट) ने, इंटरनेट को बंद किया या बैन किया या जैम किया। कुत्ते को बच्चा चाहिए और वो इंटरनेट से पैदा नहीं हो सकता। अब कुत्ता यहाँ रोबोट है। मशीन है। या फौजी है। क्यूँकि, युद्ध के फौजी भी मशीन ही होते हैं। 

इसे शायद यूँ भी समझ सकते हैं 

1. R O B O T 

2. D O G 

3. I N- T  E  R  N -E T 

4. J A  M M  E  R 

हालाँकि, कोड के हिसाब से तो कितनी ही तरह से लिखा जा सकता है और कितने ही मतलब हो सकते हैं। यहाँ सिर्फ आम आदमी की समझ के लिए है। कोई नाम हो सकता है, जगह का या स्थान का। कोई ग्रेडिंग हो सकती है। जैसे ABCD और कोई Block करना हो सकता है। जैसे R या M

इन सबके लिए आम आदमी को कहीं भी धकेला जा सकता है। खदेड़ा जा सकता है। हॉस्पिटल पहुँचाया जा सकता है। या दुनियाँ से ही उठाया भी जा सकता है। जैसे OXYGEN ख़त्म हो गई। और किसी R वाले या वालों को किसी खास तारीख, खास समय पर, खास जगह पहुँचाकर, खास तरीके से उठा देना। इनमें से ये खास तरीकों से इतना कुछ आम-आदमी की जानकारी के बिना होता है। कौन करवाता है, अहम है? या कहना चाहिए करवाते हैं। कैसे? उससे भी ज्यादा अहम है। इसे मानव रोबॉट बनाना बोलते हैं। 

जैसे?

निपुण लोग ?

निपुण लोग, Nippon के शेयर खरीदते हैं लगता है? सोचो आपको कुछ ना लेना हो, ना खरीदना हो, ना करना हो, किसी रस्ते ना जाना हो, तो क्या आप वो सब करेंगे? या कोई आपसे करवा देगा और आपको पता भी नहीं चलेगा की ऐसा हुआ है? या आपको पता भी चल जाएगा की ऐसा नहीं हुआ, आपने नहीं किया। आपने नहीं खरीदा। आप वहाँ गए ही नहीं। तो?

किसने खरीदा?

किसने किया?

और कौन गया उस रस्ते? क्यूँकि, सबूत ऐसा बता रहे हैं। 

आओ निपुण लोगों के Nippon के शेयर से जानने की कोशिश करते हैं। 

सत्ता या सिस्टम कैसे काम करता है, उसके लिए सट्टा बाजार समझना बहुत जरुरी है। पढ़ा कहीं ये। तो सोचा, चलो इसे भी पढ़ लेते हैं थोड़ा बहुत। मगर ना तो रुची पैदा हुई और ना ही पढ़ने का मन किया। सीधी सी बात, अगर रुची ही नहीं होगी किसी विषय में तो पढोगे क्या खाक? ऐसे में ऑनलाइन कुछ प्रोम्प्ट आते हैं और आप एक वेबसाइट पे पहुँचते हैं, ICICI की वेबसाइट के जरिए। वहाँ थोड़ा बहुत पढ़कर कुछ शेयर लेने का मन बनता है। और दो शेयर ले लेते हैं। मगर जाने क्यों लगता है, की शायद ये वो शेयर नहीं हैं, जिनपे आपने क्लिक किया। तो एक और लेकर देख लो, पता चल जाएगा। और आप उन्हीं शेयर के आसपास एक और शेयर पे क्लिक कर देते हैं। वेबसाइट रिफ्रेश हो जाती है अपने आप। मगर अब जो सामने हैं, वो कोई और ही शेयर हैं। आपको उनमें से नहीं लेना। फिर से पीछे वाले शेयर पे जाओ। मगर फिर से वही रिपीट होता है। आपको समझ तो आ गया की गड़बड़ चल रहा है। मगर छोटे मोटे रिस्क आप ले लेते हैं। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? वो थोड़े से पैसे ही जाएँगे ना? यही सोचकर उन्हीं में से किसी एक को लेने का मन बना लेते हैं। मगर ये क्या? उनमें से भी क्लीक उसपे नहीं हो रहा, जिसपे आपने करने का सोचा है। सिर्फ सोचा है, क्लीक किया नहीं है। और देखते ही देखते, कहीं क्लीक भी हो गया और शेयर भी खरीदा गया। और आपके अकॉउंट से पैसे भी कट गए। मगर, आपने तो वो शेयर लिया ही नहीं। 

फिर आप सोचें की इसे डिलीट मार, जबरदस्ती है, ऐसा कुछ लेना जो आपने लिया ही नहीं। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? वो थोड़े से पैसे गए। जाने दे। नहीं चाहिए, तो नहीं चाहिए। मगर फिर, वो शेयर कहीं दिखाई ही नहीं देते। जादू? या ट्रिक? या धोखाधड़ी? चाहे कितनी भी छोटी। मगर क्यों? हालाँकि कई बार उनके मेल जरुर आते हैं। 

ऐसे निपुण लोग? या कलाकार लोग, बहुत बार करते हैं। वेबसाइट के किसी खास हिस्से को ब्लॉक करना। जैसे, आपको कोई जानकारी चाहिए, उस जानकारी पे क्लिक ही नहीं होगा या तो वो दिखाई ही देना बंद हो जाएगी। या cursor अपने आप, यहाँ-वहाँ भागने लगेगा और किसी और जगह अपने आप क्लिक हो जाएगा। वहाँ रोचक-सी जानकारी मिलेगी, पढ़ो उसे। जैसे जबरदस्ती? अब पता नहीं ऐसे  लोगों  को निपुण बोलते हैं, स्मार्ट या धोखेबाज़? ये तो चलो, ऑनलाइन है। जहाँ ऐसा कुछ आसानी से संभव है। 

क्या ऐसा हकीकत की ज़िंदगी में संभव है? या हो रहा है? या कहना चाहिए की, बड़े स्तर पर हो रहा है? बीमारियाँ, उनमें से एक हैं। उनके इलावा भी, आपकी ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, हर स्तर पे। मगर कैसे? उससे भी अहम, आपको तो उसकी भनक तक नहीं। सारा खेल यही है, भनक तक ना लगने देना। शक तक ना होने देना। ऐसा कुछ आपके दिमाग में आ गया तो आप सतर्क हो जाएँगे और सामने वाले का काम उतना आसान नहीं रहेगा।                                                        

Tuesday, July 23, 2024

आपात परिस्थियों से कैसे निपटें?

कभी आपने सोचा है की आप जहाँ रहते हैं, वो जगह कितनी सुरक्षित है? किसी खास परिस्तिथि में, वहाँ से निकलने के कौन-कौन से रास्ते हैं? मुख्य द्वार के इलावा?

आपको फर्स्ट-ऐड जैसा, थोड़ा-बहुत ज्ञान है क्या?

कुछ बच्चे खासकर या बुजुर्ग डरते हैं, कभी-कभी, छोटी-छोटी सी भी परिस्तिथियों से। उनका वो डर, कैसे निकाला जाए? कई बार खामखाँ के डरावे भी उत्पन कर दिए जाते हैं। जिनसे, शाँत रहकर कैसे निपटा जाए? कई बार बहुत ही छोटी-मोटी सी, खानपान की लापरवाहियाँ बड़ी दिक्कत जैसी दिखने लगती हैं, या बना दी जाती हैं, उनको कैसे समझा जाए? ये सब सिर्फ स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी तक का ज्ञान या सावधानियाँ ना रह जाएँ, इसलिए आम आदमी को भी इससे अवगत कराने की जरुरत है।          

    

शिव धतुरा या खाटू झंडुलीला?

कुछ लोग जानना चाह रहे थे की मैं कौन-सी किताबें पढ़ती हूँ, वो कहीं नहीं लिखा। लिखा है ना। मैं कहाँ से और क्या-क्या पढ़ती हूँ, वाली पोस्ट में।  या तो science और technology को जानने-समझने की कोशिश होती है। या केस स्टडीज़ होती हैं। उसके साथ-साथ, ज्यादातर आसपास की ज़िंदगियों के, प्रैक्टिकल से अनुभवों को जानने-समझने की कोशिशें भी होती हैं।  

जैसे मान लो शिव-भांग और सांग-धतूरा या खाटू-झंडुलीला क्या है, को जानना हो, तो क्या पढ़ेंगे आप?

वैसे ही जैसे, 

J. C.  J. D.  

EXIT 

What to do in case of earthquake? 

Stairs से जाना है या lift से?   

US जाना है या CANADA? EUROPE में क्या कमी है? 

घर क्यों नहीं रहना? ये बिजली वालों ने क्या मचाया हुआ है, घर पे?

बच्चों को ही नहीं, बल्की बड़ों को भी ट्रैंनिंग दें, की आग लग जाए या ऐसी कोई आपदा आ जाए और आप कहीं अंदर फंसे हों, तो सुरक्षित बाहर कैसे निकलें? और भी      

ऐसी-तैसी डेमोक्रैसी?

 मुझे जाने क्यों ऐसा लगा, पता नहीं ये सिर्फ मेरा भर्म है या हकीकत? ये पढ़ने वालों पे छोड़ देते हैं। 

मैं कोर्ट में, अभी 20 जुलाई को, उस J. D.  J. C. वाले कमरे के बाहर, जब EARTHQUAKE आए, तो क्या करें और EXIT के संकेत समेत, उस जगह को समझने की कोशिश कर रही थी। 

तो कहीं J  IN  D में दीपेंदर हूडा कोई सभा संबोधित कर रहे थे, शायद? 

ठीक ऐसे ही जैसे  

चुनाव से पहले दुष्यंत चौटाला ने कोई खास इंटरव्यू दिया था, किसी पत्रकार रुबिका लियाकत को? गाड़ियों का काफ़िला और इंटरव्यू? और पत्रकार महोदया, खुद गाडी भी ड्राइव कर रही थी। आखिर में उन्होंने कहा, इलैक्शन के बाद मिलना होगा? पत्रकार महोदया, उसके बाद जाने क्यों भूल गई शायद? एक और इंटरव्यू लेना था, क्या मैडम? 


क्या हमारी राजनीती ऐसे चलती है? 

वैसे तो मैं stand up commedies कम ही देखती सुनती हूँ। 
क्यूँकि बहुत कुछ too much होता है और abusive भी। 
पर कभी-कभी, कहीं न कहीं, यूँ लगता है की यही तो चल रहा शायद? 
भारत के इलेक्शन्स ऐसे होते हैं? 
ये कहीं इसी को तो ED नहीं बोलते? 

ये EC कोई इलेक्शन कमीशन है या Executive Committee, University? 
EC से फाइल पास होने पे, यूनिवर्सिटी के पास कोई ED भी होती है क्या? 
जो फाइल पे कुंडली मार के बैठ जाए?  


  और भगवान हमारे? 
अयोध्या-फ़ैजाबाद पे 2-BHK तक के ही भगवान हैं? 
कौन से वाले भगवान हैं ये? शिव? राम? कृष्ण? या? 

ठीक ऐसे जैसे हम बोलें, ऐसी-तैसी डेमोक्रैसी? 
भगवानों को भी रहने को जगह चाहिए और जो इंसान इनकी धोक मारते हैं उन्हें?
अरे, वही तो इनके मंदिरों का चंदा देते हैं? फिर ये कैसे भगवान?    

आदमी की जान की कीमत बस इतनी-सी?

अगर मार्च 2020 के उस पहले हफ्ते में मैं बिना किसी शक हॉस्पिटल ईलाज कराने जाती, तो क्या कुछ हो सकता था मेरे साथ?  

Quarantine and Barrack No 5? Kinda House Arrest? जेल से निकलने पर 10 5 पहुँचों? आगे के तमाशे वहाँ दिखाएँगे? ऑफिस के किसी खास स्टोर का कोड (नंबर) था ये। और यहाँ गाँव के पते में, पता नहीं कब से और किसने चेपा हुआ है? भाजपा आने के बाद हुआ है या कांग्रेस ने ही लगा दिया था। क्यूँकि, शुरू से तो है नहीं।    

ऐसे ही, इतने महीनों तक माँ क्या खा-पी रही थी? और उनके ऑपरेशन के वक़्त क्या ड्रामा चल रहा था? 

ठीक वैसे, जैसे बुआ रौशनी गए? 

विजय दांगी को उस दिन कोई रोशन लाल उठा ले गया था, जेल? किन-किन लोगों के साथ? बुआ को कौन रोशनलाल या कौन-सी टीम उठा ले गई? कौन-से वाली जेल? क्या वो अब वापस आएँगे कभी?     

ठीक ऐसे ही, ताऊ रणवीर को उठा दिया गया? कौन-सी और कैसी OXYGEN ख़त्म हो गई थी? 

ठीक ऐसे जैसे, रितु को? यहाँ क्या ख़त्म हो गया था? OXYGEN? या SLOWLY BUT STEADLY TOWARDS DEATH जैसा कुछ पहले से ही चल रहा था? जो मुझे अब समझ आ रहा है? जिसे आमजन समझ ही नहीं पाते? OXYGEN ख़त्म होना तो जैसे ताबूत में आखिरी कील था?      

ठीक ऐसे जैसे, उसके fetuses का अबोरशंस किया किया?

ठीक ऐसे जैसे, अभी पीछे दादी कैंसर से उठा दिए?

कुछ-कुछ वैसे ही जैसे, दादा या चाचा की खास तारीखें थी? और उनके आसपास के घटनाकर्म?  

ठीक ऐसे जैसे, संदीप दांगी के पापा को लकवा था?

ठीक ऐसे जैसे, कश्मीर दादा को और उनके बेटे सोनू (योगेश) को?

ठीक ऐसे जैसे, बुआ सावित्री को?

ठीक ऐसे जैसे, सीमा दहिया को हुआ था, भाजपा आते ही? Hooda के खास हैं वो। 

ठीक ऐसे जैसे, माँ जाने के बाद गुड़िया को पीलिया हुआ?

मतलब, छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बीमारियाँ, राजनीतिक कोढों का हिस्सा हैं?  

ये कैसा और कौंन-सा खेल, ये राजनीतिक पार्टियाँ खेल रही हैं, आम आदमी के साथ?

और ये तो सिर्फ कुछ केस बताए हैं। सारी दुनियाँ का यही हाल है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा।  

क्या इन सबके वीडियो हैं आपके पास? या किसी की भी बीमारी या मौत के? छुपे हुए या वायरल? किसी भी फॉर्म में? उनके रहस्य भी तो पता चलें दुनियाँ को। उन्हें क्यों छुपाना चाहते हैं आप? और उनके सुराग तक देने वालों को जेल या मौत या निकलो देश से? किसका देश है ये? गुंडों या आदमखोरों का? या आम आदमी का भी कोई हक़ है इसपे?      

जो ये पार्टियाँ खेल रही हैं, क्या वो सच में सिर्फ कुछ रिश्तों की टैस्टिंग या up-down है? या वो सब तो सिर्फ बहाना है?  समाज को अपनी गोटियाँ बनाकर, उनकी ज़िंदगियों को मानव रोबॉट-सा अपने अनुसार चलाना और सत्ता के लिए उनका दोहन करना ही अहम है?   

इस fact all में और भी ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे प्रश्न हो सकते हैं। नहीं? 

Fact All?

Sirs Or Ma'ams?

Lord Or Ladies?

Or LGBTQ+?

Or whatever you feel suits you?

I signed somewhere on some paper, but could not understand much of this 

"CRM-M-226-2024 Vs. State of Haryana and another"

Vs. State of Haryana? 

What does it mean? इसकी detail कहाँ मिलेंगी? 

And another? 

The way, I could understand your coded world, "Ironed Out?" seems highly dubious and sinister in  design? I maybe wrong, that's why question mark. Jargons or actual meaning of words, alongwith intention should  be clear to the concerned person. Or to whom you ask to sign somewhere, I guess? पर इस खेल में ऐसा नहीं है। 

यहाँ कुछ ज्यादा ही भले लोग, भोले-भाले, अंजान-अज्ञान लोगों के घरों में पहुँचे, पेड़-पौधों को कहीं Pigplant बोलते हैं। तो कहीं flowers of cementary or graveyard. जिस दिन ये graveyard वाली किताब पढ़ी थी, हद से ज्यादा नफरत हो गई थी, ऐसे-ऐसे लोगों से। कुछ से वो नफरत पहले से ही थी।   

Is this something like?

Do you have a daugher?

Not Sure

What kind of character are you? Not Sure? What does mean that? What kind of answer was that? What kind of intentions this person had? What was he hiding, while answering to some of my questions?

The same way, these signature on these two papers? या ये कुछ अलग हैं? EXIT? J.C.  J. D.? कौन-सा रूट है ये? इन हस्ताक्षरों के बाद क्या किसी को उसकी सेविंग मिल रही है? आज़ाद है वो? फिर चाहे गाँव रहे या बाहर? या अभी भी राह में रोड़े हैं? बड़े लोग बताएँगे, आप क्या कर सकते हैं और क्या नहीं? कहाँ रह सकते हैं और कहाँ नहीं? Like Kapil Sibal said somewhere, "You have been empowered by some parties and ......". 

Kinda, आप सामने वाले से पूछे बिना, अपने ही तरह की empowerment करें, और अपने ही तरह की जेलें ईजाद करें। आम आदमी का क्या है? सब पावर या एम्पॉवर वालों का है? आम आदमी है, उनके पैर की जूती? यही ना?                  

क्या आप सामने वाले को साफ़ बता रहे हैं, की लफड़ा क्या है? और जो कुछ लिखा है, उसका असली मतलब क्या है?   

On that, as far as I know, Intelectual Property Right has some specific definition and cannot be taken over illegally? A person who try to do that comes under crime. Though, what he did was not crime in any common person's sense. But as per coded non-sense, that was? Intentions were criminal. On that, ghumao-abhiyan was underway. 

Most Important and to be noted: 

Before that, what was the relation there? 

Why she had stopped talking to him, years back? 

How many years, she had not even an idea, where was he living? What was he doing? What propelled her to talk back?     

Go before that day to the day, when that person asked some book, I purchased online. What he wanted to do? What was my reply? Where was I? Why I did not give that book? As far as I remember, I never ever said no to anyone for a book. On that such a book, I did not feel like even to read? For whatever reasons.  

What was happening? The case is not about one day, but whole Process? What was that process? या कहना चाहिए, What is this process? बोले तो, process ही punishment है? किस तरह की punishment है ये? और किस गुनाह में? कब तक पूरी होगी ये punishment? आखिरी साँस तक? फिर आपमें और खंडकाधारी कंगारुओं में अंतर क्या है? कौन-से तालिबानी एरिया से हैं, आप?  

हमारे अनुसार काम नहीं करोगे, तो? तुम्हारे हर संसांधन पे ताला लगा दिया जाएगा? और उसी process का हिस्सा, बाकी आदमियों को भी उस process के तहत खा जाएँगे? यही हुआ ना? दादी के बाद, अगला नंबर किसका है?     

An expert of so many years, decades rather, can fool someone, who still wanted to know, what the hell was happening? And how this coded drama work happens?

या शायद धन्यवाद करना चाहिए बताने या समझाने वालों का, की ये सब चल क्या रहा है? और ये सिस्टम काम कैसे करता है? मगर, अब प्रश्न ये है की ऐसे करता है, तो क्यों करता है? इस "घप्पन में छप्पन" वाले उल्टे-सीधे सिस्टम को सीधा करने के तरीके क्या हैं? और आम आदमी क्यों इसका हिस्सा बना हुआ है? या शायद कहना चाहिए, की जबरदस्ती बनाया हुआ है। पढ़ी-लिखी और उसपे कढ़ी हुई सेनाओं ने, मानव रोबोट्स जैसे?         

मार्च 2020 के पहले हफ्ते में ये दर्द क्या था? और कैसे हुआ? या किया गया? वो कॉफी या खाना कब खाया था? या उससे पहले या बाद में ऐसा कुछ खिलाया या पिलाया गया? किसने और कहाँ?   

https://politicaldiseasescovidcorona19.blogspot.com/2022/10/gall-bladder-stone-and-covid-relation.html  

Political Diseases ब्लॉग पे अक्टूबर 2022 की कुछ पोस्ट्स पढ़ने लायक हैं शायद? 

ये कैसा खेल या राजनीती है?

 "घर किराए पे दिया हुआ है। ना किराया दे रहे हैं और ना ही घर खाली कर रहे हैं। हॉकी लेकर आए हुए हैं, घर खाली करवाने। "   

ये हॉकी लेकर रेंट वालों के पीछे कब से पड़े हुए हो?

दिल्ली टाइम्स?

यहाँ MDU में भी, तुम्हारी ही हॉकी का राज चल रहा है क्या? 

या यहाँ कोई और महान हैं, जिन्होंने सरकारी मकानों तक को अपना प्राइवेट लिमिटेड बना लिया है?

ये कैसा खेल या राजनीती है, जिसमें कोई किसी की डिग्री अपने नाम कर लेता है? और कोई किसी की नौकरी? और कोई किसी की बैंक सेविंग पे कुंडली मार बैठ जाता है? और कोई किसी का ऑनलाइन संसार कंट्रोल कर रहा है? तो कोई ऑफलाइन या हकीकत की ज़िंदगी? कोई रिश्तों की रे-रे माटी कर रहा है तो कोई शरीर की ही? ना हुई बीमारियाँ या मौत की नींद तक सुलाकर? और जिनके साथ ये सब हो रहा है, उन्हें खबर तक नहीं, की उनके साथ ऐसा हो रहा है?  

क्या कहा जाए इन सबको? मानव रोबोट्स बनाने वाली सेनाएँ? या आदमखोर लोग?     

Sunday, July 21, 2024

University Campuses

Location, does it matter? If yes, then how much?

Stunning locations. Beautiful large campuses. Impressive infrastructure. And what people are doing inside those campuses? They are a reflection of the society, they are surrounded by? Or they are something beyond those socities, they are surrounded by? But why am I talking about University Campuses? What could be my interest there?


Friday, July 19, 2024

नीम केस और गुप्त ज्ञान?

ये साथ वाले घर में, दादी के यहाँ अमरुद पे अमरुद क्यों नहीं लगते?

कुछ-कुछ ऐसे जैसे, मेरे MDU वाले H#30, Type-4 में पीछे के लॉन में वो अमरुद को क्या कैंसर जैसा हो रखा है? जिसे उन्होंने कहा, काट दिया। ट्रिम करना, जाने कबसे काटना हो गया? वैसे, अब वहाँ के पेड़-पौधों के क्या हाल हैं? खासकर, उस कैंसर युक्त जैसे-से, अमरुद के?    

या छोटे गुलाब की बेल garage पे तो ओवरफ्लो हो रही थी। मगर, जब उसी का implant उस नीले ड्रम में, दूसरे कमरे की साइड लगाई तो फूल ही नहीं आए? ऐसा क्यों? कौन से हॉर्मोन्स ग्रोथ हॉर्मोन्स होते हैं? और कौन से फल-फूल से संबंधित? कोई खास तरह के STOPPERS भी होते हैं क्या? जो ग्रोथ रोक देते हैं। या फल या फूल रोक देते हैं? और उनसे कैसे निपटा जा सकता है?  

कुछ-कुछ ऐसे, जैसे कोई आपके खरगोश को Alpha Amylase antibody Production का बोलकर, Alpha Amylase Inhibitor का इंजेक्शन लगा दे? क्या होगा? खरगोश मर जाएगा? रो लो बैठकर, सर ने मेरा पैट मार दिया, वो लैब एनिमल नहीं था। जाने या अनजाने ऐसे ही, इस अजीबोगरीब राजनीती के खेल में, बाकी जीवों के साथ है। उसमें इंसान, पेड़-पौधे और जानवर सब आते हैं।        

ठीक ऐसे जैसे, रजिस्ट्रार सर ने जब वो 29 नंबर छोड़ा तो वो आम का पेड़ पहले साल तो आमों से लद रहा था। मगर, अगले साल जैसे, सिर्फ़ भोंर हो, मगर फल कहीं खो गया? और ईलाज करने पे फिर से आ गया?

ठीक ऐसे जैसे, bougainvillea की वो पीछे वाले लॉन में बेल, जो 16 नंबर में तरुण माली ने लगायी थी? या मैं ही लाई थी? जिसे 30 में भी implant करवाया था, पीछे वाले लॉन में ही, रोज़ गार्डन की दिवार के साथ। क्या झूम रही थी, वहाँ भी वो। मगर, ये रोज़ गार्डन में कौन उससे छेड़-छाड़ कर जाता था? कभी ईधर खिसकाना, कभी उधर खिसकाना और कभी यहाँ से तोड़ जाना, तो कभी वहाँ से? मगर जब उसी बेल को आगे वाले लॉन में लगाया, तब तो हद ही हो गई।  देखने के लिए ही लगाया था की इसके साथ यहाँ क्या होगा? वो भी एक जगह नहीं, बल्की दो जगह। 29 वाली दिवार के साथ वाली को VITILIGO हो गया? ऐसा कुछ होता है क्या पेड़ों में? और मेन गेट के पास वाली? इसे दिवार के अंदर ही रखो, बाहर मत करो? या छत पर उप्पर मत चढ़ाओ? क्यों भई? क्या पता मुझे बाहर ही लगानी हो? या अंदर लगा के, बाहर कोई डिज़ाइन देना हो? या छत पे चढ़ा कर कोई डिज़ाइन तैयार करना हो? Ma'am, these are colonial designs. कहाँ सुना था ये? Standard Rose Plant, जब पहली बार H#16, में लगाने शुरू किए थे? 

गुलाब का Plant भी होता है? 

और किसी ने बोला, बेल भी होती है। 

"और भी ज्यादा जानना है तो कोई colonial trip बनाओ?" ऐसी सी ही एक दो किताबें तो MDU से ही छापनी थी। अब जाने कहाँ से छपेंगी? शायद इस साल के अंत तक? 

ठीक ऐसे जैसे? 

तुमने नीम काट दिया? वो भी पड़ोस का? इतना बड़ा गुनाह? Lord या Lady? Sir या ma'am? या जो भी सम्बोधन suitable लगे 

काटने और trim करने में फर्क होता है। ऐसे ही जैसे, दिन और रात का। अपने घर में बैठे भूचाल से पेड़ को, जिसकी ज्यादातर जड़ें पड़ोस में हों, अपने समय और संसाधनों का प्रयोग कर ट्रिम करना गुनाह नहीं, गुनहगारों से जैसे-तैसे निपटना कहलाता है शायद?

वो काम, जिसके यूनिवर्सिटी के हर एम्प्लॉई की सैलरी से पैसे कटते है, मेंटेनेंस के नाम पर। जिसके लिए हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट अलग से ईजाद किया हुआ है। क्या वो सिर्फ, वहाँ के लिए है, जहाँ बड़े लोग चाहें? खैर, अब उस घर में ना मैं रहती और उस पड़ोस में ना वो वाले पडोसी। काफी कुछ बदल गया है, बहुत जगह।     

वैसे नीम का पेड़ और सुनील का क्या कनेक्शन है? पीछे सुनील की ज़मीन हड़प कर, जो इस दो डंग के प्लाट में कोठड़े का खास बढ़ा हुआ डिज़ाइन बना है या जबरदस्ती जैसे बनाया गया है, उसका इस केस से क्या सम्बन्ध हो सकता है?

नीम वहाँ है, नीम यहाँ है। कोई सुनील (sir) वहाँ है और कोई सुनील यहाँ है। वो सुनील भी पीता है शायद? और ये भी। वो बहुत मोटा है। ये उसका एकदम से उल्टा है। उससे भी घर वाले परेशान हैं, शायद? और इससे तो हैं ही, खासकर, जब पीने का दौर चलता है। 31, किसी ने बताया, मेरा घर है ये। अच्छा? जिसका पिन कॉड मगर 13 से शुरू होता है? और 30 से?

वैसे ये अजीबोगरीब जानकारी का सिलसिला कहाँ से शुरू हुआ था? यूनिवर्सिटी फैकल्टी रेजिडेंस घुसते ही H#16 से। ये अशोका के पौधे अन्दर नहीं लगाने, इन्हें बाहर लगाओ। और आप सोचने लगें, ये कौन हैं? जान ना पहचान और इतने अधिकार से पेल रहे हैं? फिर तो ऐसे कई लोगों से सामना हुआ, जिनकी पेड़-पौधों की जानकारी जानकर लगे, तुम तो कहीं नहीं टिकते। बच्चे हो इनके सामने। पेड़-पौधों की जानकारी, सामान्य वाली नहीं, बल्की थोड़ी अजीबोगरीब असामान्य और उसपे गुप्त-गुप्त भी।  

कुछ-कुछ वैसे ही जैसे, H#30 से पक्षियों और कुत्तों की थोड़ी बहुत जानकारी का सिलसिला। और गाँव आकर?

TIDE OVER CLIMATE   

जिसके पीछे का गुप्त ज्ञान, इतना गुप्त ना होते हुए भी, कितना गुप्त है? जो होता है, वो दिखता नहीं। और जो दिखता है? वो होता भी है? और नहीं भी? कुछ-कुछ, वैसे ही, जैसे बिमारियाँ और मौतें? इनमें बहुत कुछ, बहुत बड़ा या गूढ़ नहीं है। थोड़ी बहुत हॉर्मोन्स, केमिकल्स और फिजियोलॉजी जैसी जानकारी है, तो काफी कुछ से बचा भी जा सकता है। और आसपास को कुछ हद तक बचाया भी जा सकता है। 

जैसे कोरोना के दौरान, कोई केमिस्ट्री के प्रोफ बोलें, 27 डिग्री पर कोरोना ब्लाह, ब्लाह, ब्लाह 

और आप सोचने लगें, ये सर को क्या हो गया है? ये कौन-सी माइक्रो का ज्ञान पेल रहे हैं?

और फिर भाई और कोई कजिन पेलते मिलें, हमें भी कोरोना हो गया है। और आपको लगे, जिस हॉस्पिटल के डर से आप भाग आए, ये उस मौत के कुएँ में जाना चाहते हैं?           

ऐसे-ऐसे ज्ञान पे भी कहीं कोई किताबें, सीरियल्स या मूवीज होंगी कहीं? Reference Please.         

Interestingly-controlled living beings?

होर्मोन्स पढ़े हैं क्या आपने?

आदमियों वाले ?

जानवरों वाले? 

या पेड़-पौधों वाले? 

क्या करते हैं वो सब?

जीवन की अलग-अलग स्टेज पर, अलग-अलग तरह के होर्मोन्स, अलग-अलग तरह से शरीर में उत्तपन होते हैं। सही वक़्त पर सही मात्रा में हों, तो काम के होते हैं। मगर, गलत वक़्त पर, या गलत मात्रा में हों तो? Slow Poision, जैसा काम भी कर सकते हैं। बीमारियाँ भी पैदा करते हैं। और वक़्त रहते, अगर उनसे उपजे लक्षणों का या विपरीत प्रभावों का सही से ईलाज ना किया जाए, तो ज़िंदगी के लिए भी खतरा हो सकते हैं। उसके अलावा, बहुत से सामाजिक खतरों की वजह भी। 

अगर आपको इंसानो की बायोलॉजी के बारे में कोई खास जानकारी ना भी हो, तो भी अपने आसपास के पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं से आप बहुत कुछ जान सकते हैं। 

जैसे की?  

ये नीली चिड़िया, तार पे इन्हीं कुछ घरों के आसपास क्यों बैठती है?

और ये कबूतरों के डेरे? गुटड़-गुं  कहीं? कहीं जैसे, आसमानी रेस के घोड़े। आसमानी रेस के घोड़े? या? हनुमानी, मँगल के जुआरी?

ये चील, किन्हीं खास 18 को ही चमगादड़ खाने आती है क्या? या मेरा उसे देखने का coincidence ही ऐसा रहा है?

इधर-उधर के निराले नज़ारे देख, मैंने अभी प्रश्न किया नहीं, की ये जीव-जंतुओं की भी ऐसे परेड कैसे करवाते होंगे? और ये विराज, रोटी का टुकड़ा लेकर गाय के आगे-आगे भागते हुए, गली से बाहर करता हुआ क्या दिखा रहा है? 

और ये तो हो गई हद, Tide Over Climate जैसे? ईधर ये मौसी के और ढमालों के "चेन्नई एयरपोर्ट वाले कुत्ते" (?)  और उधर वो पहाड़ों वाले हस्कीज़, "काकी" से आगे निकल "कुकड़ी बन जागी" बोल रहे हों जैसे? Too Much na? 

बाल बुद्धि? मारना बाछड़ा जैसे? जिसे नहीं मालूम की जो खाना दे, कम से कम उसे तो नहीं मारते। 

बैल बुद्धि? खागड़-गाएँ के जोड़े, कहीं ऐसी गाएँ, तो कहीं वैसी गाएँ। कहीं ऐसे खागड़, तो कहीं वैसे खागड़। कैसी-कैसी किस्में और कैसे-कैसे दिन (तारीखें)। कहीं युवा, तो कहीं बुजुर्ग? 

ठीक ऐसे जैसे?

जैसे आप सोचो। मेरा तो इसपे कोई सीरीज का मन है। Interestingly-controlled living beings? पिछले कई महीने से खास निगाह है इनपे। वैसे तो ये सिलसिला, H#30 से ही शुरू हो गया था।   

बैल, बाल से परे

 बैल, बाल से परे 

अंजान-अज्ञान लोगों के 

मानसिक धुर्वीकरण से परे,

आम आदमी को,  

इस बैल या बाल के   

ज्ञान-विज्ञान से अवगत कराने की जरुरत है। 

जिनमें उलझाकर आमजन को 

ये राजनीती वाले अपना उल्लू-सीधा करते हैं। 

ऐसे घुमाओं-फिराओं को 

सीधा-सहज कर, उनकी भाषा में बताने की जरुरत है। 

कैसे भला? 

आप सोचो तब तक। आते हैं इस पर भी। 

    

Wednesday, July 17, 2024

Mental Certificate and Arrest Warrant Warning?

ऐसी-वैसी धमकियाँ देना गलत बात। Mental Certificate and Arrest Warrant Warning? दोनों एक साथ चल सकते हैं क्या? 

यूनिवर्सिटी ने 2021 में resignation accept कर लिया। वो भी क्या कुछ लिखकर? 



In such condition, she is not able to teach? Such condition? Mental Condition? Or University's mental and violent environment?  

तो आप ऐसे इंसान को कोई फिंनसियल सुपोर्ट करने की बजाय, उसकी सेविंग पे ही कुंडली मारके बैठ जाते हैं?  क्या किया उसके बाद उसके साथ आपने? 3 साल हो गए resignation भी accept किए हुए? वापस joining तो नहीं करवा ली? नहीं? यही ना? 

तो सेविंग तो अब तक उसके खाते में पहुँच चुकी होंगी? नहीं? क्यों? 

अब कैसे-कैसे तो केसों में फँसाया हुआ है, उसे? उसका वकील आपने किया हुआ है? कोई वकील है, उसके पास? उसके पैसे आप देते हो? उसे पता भी है, की इन कोर्टों में क्या चलता है? वकील ऐसा है, जो हर बार बोलता है, यहाँ कोरे पन्नों पे हस्ताक्षर कर जाओ? और केस, सब सबुत होते हुए भी, सामने वाले की झोली में डाल देता है? किसका वकील है ये? opposite पार्टी का? यूनिवर्सिटी और ये मिले हुए हैं क्या? या भाई चारा चलता है, राजनीतिक पार्टियों का? लालू जैसे चारा खा जाते हैं। और मुलायम जैसे कह देते हैं, लड़को से गलतियाँ हो जाती हैं। अब बताओ, वो सारी ज़िंदगी भुगतें उन गलतियों को? ये तो यहाँ लड़कियों को भुगतना चाहिए, ऐसे भी और वैसे भी?        

अगर किसी की, किसी mental कंडीशन की वजह से उसे नौकरी से कूट, पीट कर हटाया जा सकता है? तो उन्हीं mental कंडीशन में उसके खिलाफ आलतू-फालतू केस भी किए जा सकते हैं? और Arrest Warrant Warning भी दी जा सकती है? जय हो अमृत काल की? दोनों एक साथ चल सकते हैं क्या?  

और ये केजरीवाल जैसों को कब तक जेल में सड़ाओगे? यहाँ तो मोदी को होना चाहिए। नहीं? ये बुरा है, तो वो तो शक्कर बताया? इसीलिए मरती है बेटा तू। इधर वालों को भी बुरा बताती है, और उधर वालों को भी। अरे नहीं, उधर वालों को तो शक्कर बताया किसी ने?                           

Courting A Date?

Lord or Lady?

Ma'am or Sir?

Or whatever it is, you feel a better form of that.

कहीं पढ़ा की अगर ऑनलाइन काम चल सकता है, तो खामखाँ में कोर्ट्स में भीड़ ना करें। पहले ही वहाँ बहुत भीड़ होती है। वैसे भी, ये आम आदमी के लिए भी अच्छा है। जो काम घर बैठे हो सकता है, उसके लिए क्यों खामखाँ के धक्के खाना या औरों को खिलाना? उसपे बेरोजगार लोग, जो बड़े लोगों ने हर तरह से साफ़ कर दिए हैं, फिर चाहे वो, उनके आदमियों को खाना हो या बैंकों या जमीनों पे ताले जड़ना या उन्हें हड़पना। उसपे ऑनलाइन जॉब पे भी रोड़े अटकाना जैसे। तो क्या करेंगे वो? 

आप ऐसे जुर्म के हवाले हों, जहाँ अपना CV तक सही से टाइप नहीं कर सकते? आपको यही नहीं मालूम की आपने जो CV या कवर लेटर कहीं अटैच किया है, वहाँ जा क्या रहा है? कैसे और कहाँ से कमाएँगे? पढ़े-लिखे काबिल लोग, कब तक कटोरा लिए B.ED करवाने वालों के हवाले रहेंगे? ये बीएड है या बिस्तर, ये हम जैसों से बेहतर तो आपको पता होगा। और ये BED करवाने वाले भी कौन? खुद कितने पढ़े-लिखे हैं वो? और घर बैठे कितना कमा लेते हैं? ऐसे ही ये अपने आपको खास-म-खास PhD डिग्रीधारी कोड वाले का है। किसकी डिग्रीयों को अपने नाम किए घुमते हैं ये? ठीक ऐसे जैसे, किसी और की नौकरी के फरहे अपने नाम करने वाले? मेरी डिग्री मेरी अपनी मेहनत की हैं। मेरा इंटरव्यू भी किसी और ने नहीं दिया। जिस हिसाब से रिकॉर्डिंग्स हैं, उस हिसाब से तो बड़े-बड़े लोगों के पास या जजों के पास भी, उसकी रिकॉर्डिंग तक होगी। एक बार सुन कर तो देखो। मैंने कोई अँगूठा नहीं लगाया। पढ़े लिखे इंसान की तरह हस्ताक्षर मिलेंगे। ये अपहरण करके, जेल में भेझकर किसकी नौकरी चली जाएगी का ड्रामा चल रहा था, अभी तक पल्ले नहीं पड़ा है। और क्यों जबरदस्ती हस्ताक्षर की बजाय अँगूठा लगवाया जा रहा था या फिंगरप्रिंट्स लिए जा रहे थे? मुझसे बेहतर ये भी शायद आप जैसे ज्यादा जानने समझने वालों को मालूम होगा। बुरा ही नहीं, बल्की बहुत बुरा लगता है, जब जिस नौकरी के लायक, जिनकी डिग्रीयाँ या क्वालिफिकेशन तक ना हो, ऐसे बच्चों या जूनियर्स भाई-बँधो से indirectly कहलवाया जाए, मेरा घर खाली कर। जैसे सरकारी नौकरियाँ और सरकारी घर भी, बड़े लोगों के नालायक बच्चों तक के जैसे प्राइवेट लिमिटेड हों।            

XYZ के जो स्टीकर या 1, 2, 3, 4 जैसे जो बेहुदा टैग, गाएँ-भैंसों या कुत्ते-बिल्लियों की तरह लगा दिए गए हैं, उनसे मुक्ति कब मिलेगी? या जैसे चौराहों पे खड़े गँवार-जाहिल लोग, लड़कियों को आते-जाते तंग करते हैं, ऐसे-ऐसों को और कैसे-कैसों को वो हर जगह और सारी ज़िंदगी झेलते रहेंगे? चाहे इनमें से किस से और कब उस इंसान ने आखिरी बार बात की थी या कब मिली थी, उसे जैसे सदियाँ बीत चुकी हों। उसे ये तक मालूम ना हो, इनमें से कौन स्टीकर ज़िंदा है या मर चुका। कहाँ है, क्या कर रहा है? कैसे है, तो बहुत दूर की बातें हैं फिर। मेरा कोर्ट में जाना कोर्ट में जाना नहीं होता। बल्की एक ऐसे वकील से मिलना होता है, जो मेरा नहीं, मेरे से दूसरी पार्टी का वकील है। इसलिए सब सबूत होते हुए भी केस हार जाता है। उससे बेहतर तो अपनी वकालत मैं खुद कर सकती हूँ। यही सब देख समझकर, कहीं जज को बोला था, मेरे पास वकील नहीं है। मुझे वकील चाहिए। मेरा सब लूटकर, ऐसे कोरे पन्नो पर हस्ताक्षर कब तक करवाते रहेंगे? 

कोरोना के शुरू होने से भी पहले की बात है ये 


ये प्रदीप नाम के गुंडे की घड़ाई उसके बाद की है। उस दिन के बाद से, कहाँ गुल गया ये? और क्यों? 

ये K या N से क्या लेना-देना है, इसका? 

पिछले 20-25 सालों से यही तो खेल रहे हैं। जुआरी लोग? ईधर भी और उधर भी?    

 I am NO VIP  

Neither belong to any XYZ 

मेरे रिश्ते ना फाइलों के हवाले हैं, ना कोर्टों के और ना स्टीकरों के। मेरे लिए वो लोग ज्यादा अहमियत रखते हैं, जिनसे मैं रेगुलर बात करती हूँ या जिनके पास रहती हूँ। हकीकत की दुनियाँ को भुलाकर, ये बेहूदा राजनीती, लोगों को कहाँ धकेल रही है? एक दिन आकर, अगले दस-बीस साल राजनीती के सहारे सुर्खियाँ पाकर, कोई कहाँ किसी की ज़िंदगी में टिक सकता है? हाँ। उन ज़िंदगियों का गोबर जरुर निकाल सकता है। और उनके आसपास का भी। ज़िंदगियों को सवांरना भगोड़ों या राजनीती के पिल्लों के वश की बात कहाँ?  

थोड़ा ज्यादा हो गया शायद?

धन्यवाद। 

Tuesday, July 16, 2024

बिमारियाँ और पॉलीटिकल या सिस्टम कोड?

अक्सर वो हमारे घर आते थे, माँ के पास। थोड़ी देर गपियाते और फिर वापस चले जाते। मैं अक्सर हँसती थी, दादी-बहु मिलके किसकी चुगली कर रहे हो। और वो बोलते, अपने घर की बातें खत्म हों, तो दुनियाँ की बात करें। और जब कभी पूछती, "वैसे आप एक दूसरे के क्या लगते हो?" तो माँ की पितस, बोलते थे वो। मगर उम्र में माँ से छोटे थे। मेरे हिसाब से तो बड़ा मीठा बोलते थे। मगर, जब घर आकर रहने लगी तो पता चला, मेरी जानकारी से दूर भी कोई दुनियाँ बस्ती है यहाँ। रिश्तों के उतार-चढ़ाव, छोटी-मोटी खटपट, और मीठी भाषा से दूर, कोई खास भाषा भी है यहाँ की। जिसे आप तभी जान-समझ सकते हैं, जब आप वहाँ रहने लगते हैं। उससे भी ज्यादा शायद, जब वहाँ को जानना-समझना शुरू करते हैं। 

इस जानने-समझने का खास उद्देश्य, कोड के संसार को थोड़ा और जानना-समझना था। और उससे जुड़े लोगों की ज़िंदगियों के उतार-चढ़ाओं को समझना। ये सब है तो दुनियाँ के या कहो आम लोगों के हित के लिए। मगर, जाने क्यों, बड़े लोगों ने यहाँ भी दिक्क़तें खड़ा करना शुरू कर दिया था। शायद, राजनीती और सिस्टम के कर्त्ता-धर्ता नहीं चाहते, की आम लोगों को भी खबर हो, की वो उन्हें और उनकी ज़िंदगियों को कैसे गोटियों से पेल रहे हैं। माँ का ऑपरेशन और उस वक़्त चले ड्रामे, ऑफिसियल 2019 DECEMBER, Exam Fraud और उसके बाद MARCH 2020, COVID CORONA। इस दौरान देखा-समझा गया राजनीतिक मौतों का ताँडव। भला कोई कैसे पचा सकता है, इतना कुछ?

कोरोना के खत्म होने के बाद जो कुछ देखा-समझा, वो ये, की ये तो निरन्तर चल रहा है। बिन रुके, बिन थके जैसे। राजनीती है, तो बेवजह की कुर्सियों की लड़ाई है। ठीक सुना आपने, बेवजह की। आम आदमी के किसी काम की नहीं है, ये राजनीती। सिवाय उसे अपना गुलाम बनाने के या गोटियों-सा चलने के। राजनीती को विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ समझना बहुत जरुरी है। सिर्फ पढ़े-लिखों के लिए ही जरुरी नहीं है ये। बल्की, कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी। तो शायद, काफी बेवक़्त की बीमारियों या मौतों से बचा जा सकता है। 

पथ्थरी, पीलिया और कैंसर। इनका आपस में क्या सम्बन्ध है? हो सकता है कोई? या शायद, nerves problems, BP या paralysis? कैसे पढ़ते हैं, या समझते हैं इन्हें आप? दर्द से? दुख, तकलीफ से? या पढ़े लिखे हैं और थोड़ा बहुत बिमारियों को समझते हैं और उनके लक्षणों से, कारणों से?

कहीं मेरी तरह तो नहीं? दर्द, तकलीफ आपको है और आप जानने-समझने की कोशिश, किसी और बीमार को कब खिसकायेंगे या ठीक कर घर पहुंचाएंगे, को जानना-समझना चाह रहे हैं? पीछे पथ्थरियों और लकवों की शिकायत वाले आसपास काफी सुनने-देखने को मिल रहे थे। उनमें से कुछ बच गए, कुछ लपेटे गए। उसके बाद ऐसे ही कैंसर के किस्से-कहानी, सुनने-देखने को मिले। अभी आसपास, जिससे कई मौतें सुनने-देखने को मिली हैं। ऐसे ही एक कल, यानी 15-07-2024 को घर-कुनबे से, ये दादी भी। कोई खास बुजुर्ग नहीं थे। यही कोई 60 के आसपास।  

मात्र छह महीने पहले पथ्थरी की शिकायत। फिर पीलिया और फिर 4th stage कैंसर। सुना है डॉक्टरों ने बता भी दिया था, की 2-महीने से ज्यादा नहीं जियेंगे?

मेरे लिए ये सब मौतें उतनी ही संदिघ्द हैं, जितना कोरोना था। कोड जानने-समझने वाले, इन सबको कैसे समझते हैं? डॉक्टरों और मैडिकल से जुड़े लोगों के लिए, कोड वाले संसार को जानना-समझना शायद उतना ही जरुरी है, जितना की मैडिकल की पढ़ाई।                        

सबसे अहम

आपके मैडिकल या बिमारियों से जुड़े दस्तावेज और पेपर्स हैं। उन्हें संभाल कर रखो। पता नहीं कहाँ, आपके या आपके बच्चोँ के कहीं काम आ जाएँ। पहले ये सब जैनेटिक्स पढ़ने-लिखने वाले बोलते थे। और अब? पॉलीटिकल या सिस्टम कोड की समझ वाले?                     

Insult to Life, Insult to Death

राजनीती इसी का नाम है?

  

Monday, July 15, 2024

देखी जागी

एक अंग्रेज बालक "Whatever is going to happen, will happen. Wheather, we worry or not."

ठेठ हरियान्वी, "देखी जागी।"    

तो इतना भी क्या दिमाग पे लेना? 

Sunday, July 14, 2024

Learn and Earn?

Hack The Fall ?

Hackthon ?

Paths Co Op?

SharkTanks?

Learn and Earn? 

और भी कितनी ही तरह के प्रोग्राम और नाम हो सकते हैं? अलग-अलग पार्टियों या देशों के हिसाब-किताब के। फिर वो अमेरका के गलियारों में हों, यूरोप के या खास-म-खास ब्रिटिश लेन में। बड़ी-बड़ी इमारतें और बड़े-बड़े प्रोग्राम, सिर्फ लोगों का शोषण या दोहन करके तो नहीं होंगे? कुछ तो खास होगा, इससे आगे भी? नहीं तो हमारे यहाँ क्यों नहीं है, ये सब? 21 वीं सदी में भी, हम कौन-सा रोना रो रहे हैं?   

शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे गरीबी सदियों की, या शायद भेझे से लंजु-पंजू लोगों की? और देन? उनके सिस्टम की या कर्ता-धर्ताओं की? एक ऐसा सिस्टम या ऐसे कर्ता-धर्ता, जो चाहते हैं की लोग पढ़लिखकर भी उनके कशीदे पढ़ें? उनके गलत को गलत ना कहें? उनकी छत्र-छाया (आग उगलती धूप बेहतर शब्द होगा शायद?) से आगे कुछ भी ना देखें, सुनें या अनुभव करें?  

क्यूँकि, कभी-कभी कुछ लोगबाग जिसे गैप कहते हैं, वही शायद सबसे बड़ा आगे बढ़ने में रोड़ा दूर करने वाला, टर्निंग पॉइंट भी हो सकता है? क्यूँकि, जब so-called गैप नहीं था, तो कुछ भी छप ही नहीं रहा था। किसी ने बताया ही नहीं, की इसे कोढ़ वाला PhD गैप कहते हैं। जबकी कैसे-कैसे जोकर तक, कैसे-कैसे पेपर छापे बैठे हैं? और कैसे-कैसे लोग, कैसी-कैसी कुर्सियाँ लिए? कोविड-कोरोना के बाद किसी ने कहा, "मैडम अब कम से कम पेपर छापने में दिक्कत नहीं आएगी"। और किसी के लिए, "अब आपको USA ग्रीन कार्ड आसानी से मिल जाएगा"। शायद उन्हें मालूम नहीं था, की अब वो कौन से पेपर छापेगी? होता है शायद, कभी-कभी? या शायद अक्सर? खासकर, जब आप दूसरे की दुनियाँ या ज़िन्दगी को भी अपने अनुसार धकेलने लग जाओ? और सामने वाले को बिना जाने या सुने धकेलते चले जाओ? और बस धकेलते चले जाओ। सामने वाला चाहे, ऐसा-ऐसा भला चाहने वालों के भले को, दम घुटने की हद तक झेल रहा हो।  

हमारा सिस्टम और राजनीती आम लोगों के साथ यही कर रहा है। मुझे ऐसा लगा। उन सिस्टम बनाने वाले महानों, या राजनीती वालों को ऐसा क्यों नहीं लगता? सोचकर देखो की आप जितना कर रहे हैं, उससे कहीं कम में शायद, लोगों का ज्यादा भला कर सकते हों? और वो खुद आपके लिए भी, फायदे का सौदा हो? या हो सकता है, मैं अभी सिस्टम या राजनीती को उतना नहीं जानती? कुछ एक उदाहरण लें, आगे कुछ पोस्टस में?     

Friday, July 12, 2024

कोड और पहेलियाँ-सी बुझना

बाहर से सुरक्षित आ गए, और घर में ही धरे गए।  Do you understand the meaning of that?

ये उन दिनों की बात है, जब लोगों ने नई-नई, पहेलियाँ-सी बुझना शुरू किया था। तब तक बहुत कुछ मालूम नहीं था। तब तक ये तक नहीं मालूम था, ये कौन से और कैसे वर्ल्ड वॉर की बातें थी। क्यूँकि, इतना वक़्त मैं बाहर रही ही नहीं। दो महीने से भी कम वक़्त में इंडिया वापस थी। उन दो महीने में मेरी जानकारी के अनुसार, वहाँ कुछ खास नहीं घटा। ये कुछ-कुछ ऐसे था, जैसे कोई नया-नया घर की दहलीज़ से बाहर कदम रखे और homesick feel करने लगे। Homesickness? वो भी वो इंसान, जो उस वक़्त तक ज़िंदगी का ज्यादातर वक़्त हॉस्टल रहा हो। और ऐसे विषय में PhD कर रहा हो, जिन्हें अक्सर ये कहा जाता हो, Life Sciences वालों को तो, 12 में से 13 महीने हॉस्टल चाहिए।

ये तो कोड पढ़ाने वालों ने जब पढ़ाना शुरू किया, तब पता चला, की खतरों के भी संकेत होते हैं, कोड होते हैं। और वो हमारे आसपास ही मँडराते चलते हैं। जैसे अपने ही शहर में, अपनी ही यूनिवर्सिटी में भी हॉस्टल और इंटरनेशनल हॉस्टल, अलग बला है। यूनिवर्सिटी के अंदर और बाहर का मतलब एकदम अलग है। इन्हीं संकेतों ने कहीं बचाया, तो कहीं फुड़वाया भी। वो भी आपकी अपनी यूनिवर्सिटी के अंदर ही। जब आपको लगा, यूनिवर्सिटी में भला ऐसा क्या खतरा। जबकी चेतावनी कई दिन पहले आ चुकी थी, मगर जगह का नाम नहीं था। क्यूँकि, आपने संकेत या कोड, सही से नहीं पढ़े या समझे। ऐसे तो दुनियाँ में कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है। किसी के लिए भी नहीं। 

या शायद दुनियाँ की हर सुरक्षित जगह सुरक्षित है, सबके लिए। थोड़ी कम या थोड़ी ज्यादा। और दुनियाँ की हर असुरक्षित जगह खतरनाक है, ज्यादातर आम लोगों के लिए। खुद असुरक्षित लोग ही, दूसरों की सुरक्षा को खतरा होते हैं। वो भी ज्यादातर ऐसे लोगों की सुरक्षा को, जिनसे उन्हें कोई खतरा नहीं होता। जैसे की बीमारियाँ? ज्यादातर बीमारियों से बचने के तरीके होते हैं और ज्यादातर का इलाज भी है। और ज्यादातर बीमारियाँ अज्ञानता की वजह से हैं।  

Wednesday, July 10, 2024

Social Tales of Social Engineering (New Blog Address)

Rhythms of Life will be back to its life, away from crime, politics and so called system. All badaam-badaam posts, have a new address now Social Tales of Social Engineering

Or you can copy paste the given link --   https://socialtalesofsocialengineering.blogspot.com/


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You can check posts there or check the links give below --

2.2.2024

बैंको और जमीनों के अजीबोगरीब किस्से-कहानियाँ (Social Tales of Social Engineering) 8


or copy paste given link
https://socialtalesofsocialengineering.blogspot.com/2024/02/social-tales-of-social-engineering-8.html

2.2.2024

बैंको और जमीनों के अजीबोगरीब किस्से-कहानियाँ (Social Tales of Social Engineering) 9


or copy paste given link
https://socialtalesofsocialengineering.blogspot.com/2024/02/social-tales-of-social-engineering-9.html

I had shifted posts to other blogs earlier also, due to this "too much effect" of cases or posts, like in case of Raaz: Fiction, Illusion or High Tech Crime?. Or in case of Political Diseases or Poems. So it's same in this case also.