Saturday, July 27, 2024

मेरी किताबों की दुनियाँ

आधी अधूरी-सी पढ़ी किताबें? या कवर देखकर, समझने की कोशिश की किसी किताब को, और पन्ने पलटकर रख दी गई किताबें? कभी शायद वक़्त नहीं था, उस विषय को पढ़ने का तो कभी शायद रुची? फिर कुछ ऐसी किताबें या विषय भी हैं, जो एक बार नहीं, बल्की कई बार पढ़े? जाने क्या रह गया था या समझ नहीं आया था एक बार में, उनमें? फिर कुछ-एक ऐसी भी किताबें जो जितनी बार पढ़ी, उतना ही कुछ नया मिला जैसे पढ़ने को? बहुत-सी शायद ऐसी भी किताबें, जो किताबों से नहीं, बल्की, उनके लेखकों के दूसरी तरह के मीडिया से ज्यादा पढ़ी और समझी? जैसे ब्लॉग्स से या खबरों से या लेक्चर्स या और छोटे-मोटे वीडियो से? 

बहुत-सी किताबों को या विषयों को पढ़ने या समझने का मतलब, सिर्फ थ्योरी नहीं होता, बल्की प्रैक्टिकल होता है। ये किसी प्रैक्टिकल ने ऐसे और इतने अच्छे-से नहीं समझाया, जितना केस स्टडीज़ ने। कैंपस क्राइम सीरीज़ तो सिर्फ एक छोटा-सा ट्रेलर था। 

वो फिर चाहे एक तरफ माँ का Gall Bladder Stone ऑपरेशन रहा हो, तो दूसरी तरफ December 2019, एग्जाम फ्रॉड। मेरा अपना March 2020 backside terrible pain और हॉस्पिटल में टैस्टिंग के नाम पे kidney stone है या gall bladder stone है, जैसे ड्रामे। उसपे दूध की थैली से निकला जैसे सोडा, जिसमें कोई स्मैल नहीं और कोई खास स्वाद में फर्क नहीं देख, मेरा रोहतक से नौ दो ग्यारह होना हो, अपने गाँव। और कोरोना की शुरुवात जैसे। सही बात है, आप इतना कुछ कैसे सिद्ध कर पाएँगे? पागल नहीं तो क्या कहलाएँगे? सबसे बड़ी बात, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी रिकॉर्डिंग्स, बड़े-बड़े लोगों के पास होने के बावजूद। फिर ऐसे-ऐसे पागलों पे देशद्रोह भी चलता है? ऐसे-ऐसे Mentally Sound (?) लोगों को या so-called officers को आप क्या कहेंगे? वो तो सब कुछ IRONED OUT कर देंगे? 

वैसे, इस IRONED OUT का सही मतलब क्या है? वैसे तो एक ही शब्द के कितने ही मतलब हो सकते हैं। जैसे एक पहले वाली पोस्ट में पढ़ा जैसे? और कुछ और सामने आए, जैसे?   

आयरन खत्म कर, मारना जैसे?

या ANEAMIA कर मौत तक पहुँचाना जैसे? लो जी, एक और कोड आ गया, ANEAMIA   

या?

मार-पीट कर यूनिवर्सिटी से ही नफरत करवाना जैसे? की ऐसे माहौल को छोड़, वो खुद ही भाग जाए?

या PRESSED OUT जैसे? Pressed को Processed भी लिख सकते हैं?    

इतना कुछ सिर्फ थ्योरी वाली किताबों से कहाँ समझ आता है? उसके लिए आपको ईधर-उधर, आसपास, बहुत-कुछ, देखना-सुनना और समझना पड़ता है। कभी समझ आ जाता है। कभी-कभी शायद दिक्कत भी होती है, समझने में। मगर रिसर्च या केस स्टडीज़ की किताबें, शायद ऐसे ही छपती हैं। जितने बड़े एक्सपर्ट, उतनी ही, गूढ़-सी कहानियाँ जैसे। कुछ ऐसी-सी किताबें पढ़ी हैं। जो अपने आप में केस स्टडीज़ हैं या केस स्टडीज़ जैसी-सी ही हैं। साइंस, टेक्नोलॉजी, मीडिया, कल्चर का मिश्रण, सब साथ-साथ चलता है। Highly Interdisciplinary दुनियाँ में हैं हम। फिर कुछ कविताओं की या बच्चों की किताबें भी हैं, जिन्हें शौक कह सकते हैं आप। जब कुछ खास पढ़ने-लिखने का मन ना हो, तो उन्हें उठा लो। तो कहाँ से शुरू करें? केस स्टडीज़ से? कविताओं से? या बच्चों जैसी-सी किताबों से?    

Friday, July 26, 2024

Internet of Things (IOT), Grey Colour NEO and Ghost Robotics

Internet of Things (IOT) क्या है? 

कैसे काम करता है?

क्या-क्या काम करता है?  

क्या ये घर की लाइट और इससे जुड़े ज्यादातर घर, ऑफिस या फैक्टरियों के इंस्ट्रूमेंटस या व्हीकल्स को इंटरनेट की मदद से दुनियाँ के किसी भी कोने में बैठकर कंट्रोल कर सकता है? या करता है? अगर हाँ? तो किस हद तक?

आपके घर का AC सर्विस के बाद, अगर ठंडा करने की बजाय गर्म करने लगे, तो क्या गड़बड़ हो सकती है?

ठीक करवाने के बाद, अगर और ज्यादा गर्मी करने लगे तो?

यही छोटी-मोटी कोई हेरफेर? 

ऐसे ही, अगर लाइट ठीक करवाने पे या थोड़े बहुत कोई नए स्विच लगवाने पे, आपका इलेक्ट्रीशियन अगर कोई अनचाहा स्विच भी बदल जाए? जैसे मेन स्विच? पहले पुराने जमाने का कोई सफेद सिंगल एंकर कंपनी का शायद, और बाद में कोई डबल grey colour का NEO लगा जाए? कोई खास फर्क नहीं पड़ता शायद? ये कंपनी हो या वो? बिजली वाले को शायद लगा होगा, लगे हाथों ये भी कर देना चाहिए? आपको भी कोई खास फर्क नहीं लगा। हाँ। किसी की ट्विटर वाल पे कुछ देख-पढ़कर, कोई शक जरुर हुआ। उसके कुछ वक़्त बाद, आपने वो स्विच बदलवा दिया। सब ठीक? लेकिन कुछ तारों के हेरफेर भी थे शायद, वो तो नहीं करवाए। अब इलेक्ट्रिसिटी का ABC नहीं पता, तो वो भी क्या फर्क पड़ता है? क्या फालतू के चक्करों में पड़ना? 

पीछे कूलर की जलने की काफी प्रॉब्लम आ रही थी। पर वो शायद सिर्फ यहाँ नहीं थी। लाइट फलेक्टुअट होना, बार-बार आना या जाना भी एक वजह हो सकता है। जो गाँवों में खासकर आम होता है। शिव इलेक्ट्रीशियन, बॉस वाटर पम्प, उसपे सॉफ्ट लाइन कूलर का भी कोई कनैक्शन हो सकता है?  

इस सब में Internet of Things (IOT) का क्या लेना-देना? हो सकता है क्या? पता नहीं। 

चलो छोड़ो, आओ थोड़ा IOT को समझने से पहले, एक रोबॉट से मिलते हैं। 

Ghost Robotics कम्पनी का नाम है। 

जिसके पास कई तरह के रौचक रोबॉट हैं। 

जो सीधे सपाट रोड पे ही नहीं बल्की पानी और बर्फ पे भी मस्त चलते हैं। 

Quadruped Unmanned Ground Vehicle (Q-UGV)  



इसका नया अवतार NEO है। 

ये मैं एक ब्लॉग पढ़ती हूँ, पिछले कई सालों से, वहाँ से पढ़ने को मिला। 2014 में जब मैंने H #16, Type-3 की शिकायत की थी यहाँ-वहाँ, उसके बाद खासतौर पे पढ़ना शुरू किया था, ऐसे-ऐसे विषयों के बारे में।     

“NEO can enter a potentially dangerous environment to provide video and audio feedback to the officers before entry and allow them to communicate with those in that environment,” Huffman said, according to the transcript. “NEO carries an onboard computer and antenna array that will allow officers the ability to create a ‘denial-of-service’ (DoS) event to disable ‘Internet of Things’ devices that could potentially cause harm while entry is made.”

Bruce Schneier, Public Interest Technologist, Harvard Kennedy School

जो कुछ ऊप्पर लिखा है, उनका आपस में कोई सम्बन्ध हो सकता है? ये सब आप सोचो। जानने की कोशिश करते हैं आगे, की इंसान रुपी मशीन और इंसान द्वारा बनाई गई मशीनों में कितना फर्क है? रोबॉटिक्स इंसान का और इंसान रोबॉट्स का अवतार हो सकता है क्या? या ऐसा तो दुनियाँ भर में हो रहा है। ये सामान्तर घढ़ाईयोँ में एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं क्या? या ये भी बहुत पहले से हो रहा है?

जैसे एक NEO, Ghost Robotics कंपनी का, तो दूसरा डिज़ाइन, ये घर में बिजली वाला मेन स्विच बदलने वाला? और भी कितने ही ऐसे-ऐसे सामान्तर डिज़ाइन या घढ़ाईयाँ यहाँ-वहाँ, लोगों की असली ज़िंदगियों में। इनमें से किसी का एक दूसरे से कोई नाता नहीं। सोशल स्तर भी बहुत ही असामान्य। एक तरफ रोबॉट्स बनाने वाली कम्पनियाँ और अपने-अपने फील्ड के बेहतर एक्सपर्ट्स, तो दूसरी तरफ? तिनका तक ईधर से उधर होने पर, भड़कने वाले अंजान-अज्ञान लोग। ज्यादातर कम पढ़े-लिखे और मिडिल लोअर या गरीबी के आसपास लोग। अपनी अलग ही दुनियाँ में, जिन्हें कैसे भी और किसी भी नाम पे भड़का दो। कितना आसान है ना, ऐसे लोगों को रोबॉट बनाना? फिर आधी-अधूरी जानकारी तो, अच्छे-खासे पढ़े-लिखों को बना देती है। और यही गैप, इंसान द्वारा इंसान के शोषण के रुप में, जहाँ भर में हो रहा है, राजनीतिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा।   

Thursday, July 25, 2024

Jammers, Radio Control (RC), Frequency Controls and Remote (IOT)

दूसरी भाषा में, दूसरे शब्दों में, घुमाऊ-फिराऊ, या फिर सीधे-सीधे भी? उसपे फिट भी हो, आप पर या आपके आसपास पर? आपके हालात पर, उसके कारणों या निवारणों पर। कभी-कभी हकीकत भी हो सकती है। और कभी-कभी, सिर्फ हमें ऐसा लग सकता है या समझ आ सकता है। वो समाधान भी हो सकते हैं। यूँ की यूँ, हकीकत भी या बढ़ा-चढ़ा रुप भी। या उसे किसी और तरफ घुमाना भी। और भी बहुत-कुछ कहा और किया जा सकता है। बातों ही बातों में। आमने-सामने भी और रिमोट कंट्रोल से भी। 

जैसे एक रौचक सी पोस्ट रोबोट डॉग इंटरनेट जैमर 

https://www.schneier.com/blog/archives/2024/07/robot-dog-internet-jammer.html      

आम आदमी को समझाने के लिए कोड की बात करें तो? कुत्ते (रोबॉट) ने, इंटरनेट को बंद किया या बैन किया या जैम किया। कुत्ते को बच्चा चाहिए और वो इंटरनेट से पैदा नहीं हो सकता। अब कुत्ता यहाँ रोबोट है। मशीन है। या फौजी है। क्यूँकि, युद्ध के फौजी भी मशीन ही होते हैं। 

इसे शायद यूँ भी समझ सकते हैं 

1. R O B O T 

2. D O G 

3. I N- T  E  R  N -E T 

4. J A  M M  E  R 

हालाँकि, कोड के हिसाब से तो कितनी ही तरह से लिखा जा सकता है और कितने ही मतलब हो सकते हैं। यहाँ सिर्फ आम आदमी की समझ के लिए है। कोई नाम हो सकता है, जगह का या स्थान का। कोई ग्रेडिंग हो सकती है। जैसे ABCD और कोई Block करना हो सकता है। जैसे R या M

इन सबके लिए आम आदमी को कहीं भी धकेला जा सकता है। खदेड़ा जा सकता है। हॉस्पिटल पहुँचाया जा सकता है। या दुनियाँ से ही उठाया भी जा सकता है। जैसे OXYGEN ख़त्म हो गई। और किसी R वाले या वालों को किसी खास तारीख, खास समय पर, खास जगह पहुँचाकर, खास तरीके से उठा देना। इनमें से ये खास तरीकों से इतना कुछ आम-आदमी की जानकारी के बिना होता है। कौन करवाता है, अहम है? या कहना चाहिए करवाते हैं। कैसे? उससे भी ज्यादा अहम है। इसे मानव रोबॉट बनाना बोलते हैं। 

जैसे?

Sunday, July 21, 2024

University Campuses

Location, does it matter? If yes, then how much?

Stunning locations. Beautiful large campuses. Impressive infrastructure. And what people are doing inside those campuses? They are a reflection of the society, they are surrounded by? Or they are something beyond those socities, they are surrounded by? But why am I talking about University Campuses? What could be my interest there?


Sunday, July 14, 2024

Learn and Earn?

Hack The Fall ?

Hackthon ?

Paths Co Op?

SharkTanks?

Learn and Earn? 

और भी कितनी ही तरह के प्रोग्राम और नाम हो सकते हैं? अलग-अलग पार्टियों या देशों के हिसाब-किताब के। फिर वो अमेरका के गलियारों में हों, यूरोप के या खास-म-खास ब्रिटिश लेन में। बड़ी-बड़ी इमारतें और बड़े-बड़े प्रोग्राम, सिर्फ लोगों का शोषण या दोहन करके तो नहीं होंगे? कुछ तो खास होगा, इससे आगे भी? नहीं तो हमारे यहाँ क्यों नहीं है, ये सब? 21 वीं सदी में भी, हम कौन-सा रोना रो रहे हैं?   

शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे गरीबी सदियों की, या शायद भेझे से लंजु-पंजू लोगों की? और देन? उनके सिस्टम की या कर्ता-धर्ताओं की? एक ऐसा सिस्टम या ऐसे कर्ता-धर्ता, जो चाहते हैं की लोग पढ़लिखकर भी उनके कशीदे पढ़ें? उनके गलत को गलत ना कहें? उनकी छत्र-छाया (आग उगलती धूप बेहतर शब्द होगा शायद?) से आगे कुछ भी ना देखें, सुनें या अनुभव करें?  

क्यूँकि, कभी-कभी कुछ लोगबाग जिसे गैप कहते हैं, वही शायद सबसे बड़ा आगे बढ़ने में रोड़ा दूर करने वाला, टर्निंग पॉइंट भी हो सकता है? क्यूँकि, जब so-called गैप नहीं था, तो कुछ भी छप ही नहीं रहा था। किसी ने बताया ही नहीं, की इसे कोढ़ वाला PhD गैप कहते हैं। जबकी कैसे-कैसे जोकर तक, कैसे-कैसे पेपर छापे बैठे हैं? और कैसे-कैसे लोग, कैसी-कैसी कुर्सियाँ लिए? कोविड-कोरोना के बाद किसी ने कहा, "मैडम अब कम से कम पेपर छापने में दिक्कत नहीं आएगी"। और किसी के लिए, "अब आपको USA ग्रीन कार्ड आसानी से मिल जाएगा"। शायद उन्हें मालूम नहीं था, की अब वो कौन से पेपर छापेगी? होता है शायद, कभी-कभी? या शायद अक्सर? खासकर, जब आप दूसरे की दुनियाँ या ज़िन्दगी को भी अपने अनुसार धकेलने लग जाओ? और सामने वाले को बिना जाने या सुने धकेलते चले जाओ? और बस धकेलते चले जाओ। सामने वाला चाहे, ऐसा-ऐसा भला चाहने वालों के भले को, दम घुटने की हद तक झेल रहा हो।  

हमारा सिस्टम और राजनीती आम लोगों के साथ यही कर रहा है। मुझे ऐसा लगा। उन सिस्टम बनाने वाले महानों, या राजनीती वालों को ऐसा क्यों नहीं लगता? सोचकर देखो की आप जितना कर रहे हैं, उससे कहीं कम में शायद, लोगों का ज्यादा भला कर सकते हों? और वो खुद आपके लिए भी, फायदे का सौदा हो? या हो सकता है, मैं अभी सिस्टम या राजनीती को उतना नहीं जानती? कुछ एक उदाहरण लें, आगे कुछ पोस्टस में?