About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, July 28, 2024

उकसावे? माहौल? और राजनीती? 1

आप जो करते हैं, क्या वो खुद ही करते हैं? या आपसे कोई करवा रहे हैं? अद्रश्य कोई? अद्रश्य होते हुए भी, जो बहुत अद्रश्य ना हों? कौन हैं ये, अद्रश्य? सुरँगे, राजनीतिक पार्टियों की?

कोई कहीं पढ़ाई-लिखाई और किताबों की बातें करे और कहीं वक़्त-बेवक़्त, हुक्कों की महफ़िल सजने लग जाएँ? ये सब अपने आप हो रहा है? आप खुद पुरे होशो हवास में कर रहे हैं ना? या आपसे करवाया जा रहा है? कहकर या गुप्त तरीके से, किन्हीं राजनीतिक पार्टीयों द्वारा? ज्ञान, विज्ञान, टेक्नोलॉजी और सर्विलांस एब्यूज, इन सबमें अहम है। जो जितना ज्यादा, अंजान-अज्ञान और भोला है, उसे उतनी ही आसानी से, मानव रोबॉट बनाया जा सकता है।      

मान लो, कहीं कोई शर्त लगी हुई हैं, किन्हीं लड़कियों को पटाने की या उनसे कुछ करवाने की, जैसे अक्सर रैगिंग में होता था, सीनियर्स द्वारा। 

और समान्तर सामाजिक घड़ाईयाँ: कहीं कोई, आपको कोई कबूतरबाज़ी सीखा रहे हैं? या पतंग उड़वा रहे हैं? या fishing करना सीखा रहे हैं? या ऐसे-ऐसे वयव्सायों में लगा रहे हैं? ये सब आप खुद कर रहे हैं? या आपसे कोई करवा रहे हैं? मगर खुद अद्रश्य होकर?

कहीं कोई कुछ गाने या म्यूजिक वैगरह सुन रहे हैं, 

और समान्तर सामाजिक घड़ाईयाँ: कहीं और जगह आपको कोई बोतल थमा रहे हैं या ड्रग्स? अरे नहीं, आप तो वो सब खुद अपनी मर्ज़ी से कर रहे हैं ना? या कोई राजनीतिक पार्टियाँ, अद्रश्य तरीके से धकेल रही हैं?

कहीं कोई छोटी-मोटी रैगिंग से आगे निकल, जुआ खेल रहे हैं, आदमियों को गौटियों-सा ईधर से उधर धकेल रहे हैं। सट्टा बाजार संग, सत्ताएँ बदल रहे हैं। और आप? 

और समान्तर सामाजिक घड़ाईयाँ: सिर्फ, कबूतरबाज़ी या पतंगबाज़ी या फिशिंग से आगे निकल, दाँव लगाने लगे हैं? जीतने-हारने लगे हैं? घर के लिए या किन्हीं खास कामों के लिए, जो थोड़े से पैसे थे, उन्हें भी? या शायद कुछ जीत भी रहे हैं और अभी तक तो मस्त हैं? इसके आगे? कहीं लोगों को ही दाँव पे तो नहीं लगाने लग जाओगे? घर-बार जमीनें तो नहीं गँवाने लग जाओगे? वैसे, ये सब आप खुद ही कर रहे हैं ना? पूरे होशो-हवास में? कहीं कोई अद्रश्य, राजनीतिक सुरँगे तो नहीं करवा रही? इन सुरँगों के कारनामों का बहुत ही छोटा-सा उदाहरण, अभी सुनील की ज़मीन का है। और? हूबहू, यूनिवर्सिटी की घर के रेंट की कहानी। कुछ लोगों के नाम और कारनामे भी हूबहू? 

हकीकत? समाज के प्रहरियों से पूछ लेते हैं  

सब कुछ दुनियाँ भर के शासन-प्रसाशन, पुलिस, इंटेलिजेंस, खुफिया-तंत्र, सेनाओं और पत्रकारों की रिकॉर्डिंग के बावजूद हो रहा है ना? ये समाज कौन घड़ रहा है? 

जैसे NEO सर्विलांस और रोबॉटिक्स? जितनी ज्यादा किसी भी मशीन के बारे में जानकारी, उतना ही आसान है, उसे अपने अनुसार चलाना। इंसान भी एक मशीन ही है। बस थोड़ा-सा अभी तक इंसान द्वारा बनाई गई मशीनों से ज्यादा दिमाग है। मगर, जहाँ उसे प्रयोग करने वाले होते हैं, वहाँ। शराब के नशे में या ड्रग्स के नशे में तो दिमाग वैसे ही आधा-अधूरा सा काम करता है। उसपे अगर कुछ खास तरह के जानकारों द्वारा, कुछ और खास खिला-पिला दिया जाए तो? बल्ले-बल्ले, किसकी? जुर्म करने वालों की। नहीं? यही हो रहा है ना, समाज में? बिमारियों और मौतों में तो और भी बहुत कुछ, आम आदमी की समझ से बहुत परे।                                         

No comments: