राजनीती और उम्मीद?
किसी भी सरकार के बदलने से कितना फर्क पड़ता है?
क्या कोई ऐसी राजनीतीक पार्टी है, जो सच बोलने लगो या थोड़ी बहुत ही सही बुराई करने लगो उनके गलत कामों की और वो आपको ब्लॉक ना करे? और कुछ नहीं तो, इंटरनेट ही भगा देंगे या सिगनल।
जैसे गब्बर कहे, "कितनी पोस्ट्स हैं हमारे खिलाफ?"
ये नहीं कहेंगे, हमारे कारनामों के खिलाफ।
"इससे पहले वो और ऐसा कुछ और फेंके, जाओ उसे बंद करवा के आओ।"
और लो जी, गब्बर के आदमी क्या करेंगे?
इंटरनेट बंद और सिगनल आउट।
या फिर और भी हैं जो चुपके-चुपके, चोरी-छुपे डाँट जाते हैं। जैसे आप कहें, इन्होंने तो पीटा था और उनका सोशल मीडिया indirectly, आपको कोई धमकी तक दे जाए। या ये कहता नज़र आए, हाँ! तो क्या कर लिया तूने?
और आप सोचते ही रह जाएँ, क्या हैं ये? जनता को दिखाएँ, जैसे आपके साथ और चोरी-छुपे कहते नज़र आएँ, तो क्या कर लिया तूने?
अब कोई क्या करेगा भला? अब तुम कोई नेता तो हो नहीं, जो रैलियाँ करते फिरोगे। वैसे नेता लोग रैलियाँ क्यों करते हैं? अपनी भोली-भाली जनता को बहकाने के लिए?
क्या हो, अगर रैलियों की बजाय, अलग-अलग पार्टियों के नेता, एक ही मंच पर हों और वहाँ बताएँ, की किसने क्या-क्या किया है? या कौन क्या-क्या कर रहा है? जनता को सुनाने या दिखाने के लिए या उनसे संवाद के लिए, स्क्रीन लगा दें, उनके मोहल्लों के कम्युनिटी सेन्टर पर। और उन मोहल्लों के ही कामों को बताएँ, की उन्होंने वहाँ क्या-क्या किया है? ताकी जनता भी बता सके की क्या किया है और क्या नहीं।
इतना सारा पैसा, जो इलेक्शन के नाम पर और जाने किस-किस की और कैसी-कैसी रैलियाँ पीटने के लिए निकालने में लगाते हैं, वही आम लोगों के so-called विकास पर खर्च हो जाय। कितना पैसा तो बर्बाद करते हैं, ये लोग इलेक्शन के नाम पर? आप क्या कहते हैं? सबसे बड़ी बात, वो ज्यादातर का अपना भी नहीं होता।
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