जैसे चौटाला परिवार की या कहो देवीलाल के परिवार की राजनीतिक जंग है, वैसे ही दो और लालों की। वैसे चौटाला परिवार का गौत्र तो शायद सिहाग है? फिर ये चौटाला लगाने के पीछे की कहानी क्या है? शायद कहीं पढ़ने-सुनने को मिले, तो उस पर भी आएँगे आगे।
मगर अभी दूसरे राजनीतिक परिवारों को जानते हैं
रोहतक और राजनीती के बारे में कभी सुना था की यहाँ से प्रदेश की ही नहीं, बल्की, देश की राजनीती को दशा और दिशा मिलती है। ये उन दिनों की बात है, जब राजनीती का abc नहीं पता था और ना ही आज की तरह इसे जानने-समझने की कोई उत्सुकता थी। अब तो जो समझ आता है वो ये, की सिर्फ देश की ही नहीं, बल्की, दुनियाँ भर की राजनीती को शायद प्रभावित करता है, ये छोटा-सा जिला। दिल्ली के पास होने का राज शायद?
रोहतक और हुड्डा ( राजनीती के चौधरी जैसे?)
पहले मैं मदीना (दांगी) और रोहतक (हुड्डा) की कांग्रेस को अलग-अलग देखती थी। मगर, राजनीती में शायद ना कुछ साथ होता और ना ही अलग। सिर्फ महत्वाकांक्षाएँ और जरुरतें होती हैं। यहाँ ना कोई अपना होता और ना ही पराया। आपकी पार्टी तभी तक आपकी अपनी है, जब उसे आपने बनाया हुआ है और आप ही चला रहे हैं। नहीं तो, जितने ज्यादा शेयर-हॉल्डर, उतनी ही ज्यादा खीँच-तान। अब दीपेंदर हुड्डा है ही इकलौता, तो क्या दरार और क्या रार? या शायद है भी? शायद इसीलिए भूपेंदर हुड्डा को बहन-बेटियों को मनाना पड़ रहा है? या शायद, मुझे राजनीती की अभी उतनी समझ नहीं।
ऐसे ही जैसे पहले मारपीट-राजनीती, चौटाला या दांगी जैसे लोगों की राजनीती को ही मानती थी। 2019 के बाद काफी कुछ, कुछ-एक कांग्रेस के सोशल मीडिया पे भी हज़म होने जैसा नहीं था। खासकर, दीपेंदर हुड्डा के। खैर। 2019 में एक तरफ वोट डालने जाना छोड़ा। तो दूसरी तरफ, इलेक्शन क्या हैं? इन्हें कौन और कहाँ लड़ता है? EVM या बैलट पेपर का रोल क्या है? इन सब प्रश्नों के उत्तर भी अजीबोग़रीब मिले। परिणाम वाले दिन भी, वोट पड़ते हैं क्या? वो भी उस वक़्त, जब परिणाम TV चैनलों पर Live चल रहा हो?
परिणाम TV चैनलों पर Live?
ये क्या बला है? आप स्क्रीन पर परिणाम देखते और सुनते हैं? और परिणाम बताने वालों तक वो परिणाम कैसे पहुँचता है?
फ़ोन? सैटलाइट? केबल? इंटरनेट?
इलेक्शन करवाता कौन है? इलेक्शन कमिशन कौन है? कहीं भटक तो नहीं गए हम, अपने विषय से? रोहतक, राजनीती का गढ़? रोहतक राजनीती मतलब? हुड्डा?
ज़मीनो के हेरफेर और हुड्डा और चौटाला का उनसे सम्बन्ध? मुद्दा है क्या ये भी कोई?
नौकरियाँ और हुड्डा या चौटाला का सम्बन्ध? बीजेपी ने तो सुना है किसी को ऐसा कुछ दिया ही नहीं। सिर्फ लेने का काम किया है? हुड्डा और चौटाला के भी अजीबोगरीब-से जुबानी-युद्ध होते हैं, इन नौकरियों पर। नौकरियाँ पार्टियों की होती हैं क्या? जो करते हैं, उनकी नहीं? और नौकरी का मतलब, सिर्फ कागजों तक होता है? उसके बाहर कुछ और ही चलता है? मतलब, जो कुछ उस नौकरी को करने लायक माहौल के बारे में लिखा होता है, उसका कोई अर्थ ही नहीं होता? यही नहीं, कहीं कोई पार्टी इलेक्शन भी ऐसे ही मुद्दे के साथ तो नहीं लड़ रही, की हम आएँगे तो, ये साफ़, वो साफ़? इतनी खतरनाक धमकियाँ, बनने से पहले ही? साम, दाम, दंड, भेद, सब जायज़ है? डर का माहौल तो पहले ही घड़ रहे हैं आप? बाद में तो ऐसा कुछ हो गया तो, खानदान के खानदान खाएँगे? डरा-डरा के लोगों को अपनी साइड करते हो? Hang on guys, hang on. ऐसे में तो बैलेंस बहुत जरुरी है।
मारपीट की राजनीती और हुड्डा, चौटाला या बीजेपी का सम्बन्ध? सभी बराबर हैं क्या? या कोई कम तो कोई खूँखार जैसे?
सोचो, ज़मीन पार्टियों की? पैसा, नौकरियाँ पार्टियों के? तो उनमें काम करने वाले? वो भी पार्टियों की प्रॉपर्टी जैसे? कंपनियाँ और राजनीतिक पार्टियाँ, और इंसानों का उनका महज़ नौकर होना? मतलब, Human Robotication. बाजार के भी हाल यही बताए। हालाँकि, अभी उसकी समझ थोड़ी कम है।
इन लालों से और हुड्डा से अलग एक और राजनीतिक किरदार सुना है, हरि याणा की राजनीती में घुसने की फिराक में है? कौन है ये? "मैं बिजली मुफ्त कर दूँगा और आपका बिजली का बिल जीरो।" पहुँचो जी, आप भी पँहुचो। छोटे से राज्य में, पहले ही दंगल कम है शायद?
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