किताबवाड़े से: लेखन, पत्र और पात्र
कुछ रौचक किस्से- कहानियाँ, अपने बुजर्गों के किताबवाड़े से। इधर-उधर, बड़े-बड़े लोग, अपने पुरखों के फरहे निकालते हैं और सोशल मीडिया पे रख देते हैं। अपनी सम्पनता की धरोहर के रुप में? अगर यही धरोहर है, तो थोड़ी-बहुत तो ये हमारे पास भी है। जाने कैसे बची हुई? क्यूँकि, हमारे बच्चे किसी बुजर्ग के जाने के बाद ऐसी धरोहर नहीं, बल्की ज़मीन-जायदाद के कागज, कॉपी या सोना-चाँदी या प्रॉपर्टी जैसा ही कुछ संभाल कर रखते हैं। और उसपे भी झगड़ते ही रहते हैं, ताउम्र जैसे। बजाय की ऐसा कुछ खुद भी कमाने के। एक-आध, थोड़ा आगे निकल, वो सब बेच भी देते हैं शायद? बाकी को वो, जाने कहाँ चलता कर देते हैं? उसमें से थोड़ा-बहुत, बचा-कुचा, उसकी कद्र करने वालों को मिल जाता है, बेक़द्र-सा पड़ा हुआ कहीं। रुचियाँ अपनी-अपनी? पसंद अपनी-अपनी?
आपके दादा, पापा, चाचा-ताऊ, मामा-नाना वैगरह क्या बात करते होंगे आपस में? वो भी पत्रों के माध्यम से? यहाँ से दादी-माँ, चाची-ताई, मामी-नानी वैगरह के पत्रों की कोई बात क्यों नहीं है? शायद वो इतनी पढ़ी-लिखी नहीं रही होंगी? या ऐसा कोई शौक नहीं रहा होगा? एक झलक उस वक़्त की, जिसे हमने या तो देखा ही नहीं, क्यूँकि, बाद में पैदा हुए। या बहुत छोटे रहे होंगे। जैसे कोई चाचा-ताऊ या मामा-बुआ के लड़के आपस में बात करते होंगे, तो क्या लिखेंगे? निर्भर करता है, कैसे समाज या माहौल में रहते हैं और क्या करते हैं? भाषा क्या रही होगी? हिंदी, इंग्लिश के साथ-साथ, उर्दू और पंजाबी भी शायद? डिग्रीयाँ कैसी और कहाँ से होंगी? पत्रों पर टिकट कैसे होंगे? कोई बेटा घर छोड़ गया या कहीं मर गया शायद, तो किसी बाप ने कहाँ-कहाँ धक्के खाए होंगे? उस वक़्त के कितने ही लोगों को अपने जन्मदिन या शादी की सालगिरह तक पता नहीं होंगी। मगर कहीं न कहीं, इन्हीं पत्रों में शायद उनके भी जवाब होंगे?
उस वक़्त के पाकिस्तान वाले पंजाब से लेकर, बॉम्बे (मुंबई अब), कोचीन, विशाखापटनम और विज़ाग (या दोनों एक ही हैं?) तक हिस्सों से, आम आदमी की ज़िंदगियों को बयाँ करते कुछ किस्से-कहानी, इन पत्रों की ज़ुबानी। वैसे तो ये थोड़े-बहुत पहले भी पढ़े हुए थे। मगर, अब शायद थोड़ा और कोड वाले इस जहाँ को और इसके ज़िंदगियों पर प्रभावों को समझने के लिए फिर से उठा लिए। तो अबसे आपको कहीं-कहीं इनसे सम्बंधित पोस्ट भी मिलेंगी।
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