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Tuesday, September 24, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 53

आओ थोड़ा अपने नेताओं को जानने की कोशिश करें। 

"हूबहू-हूबहू, कॉपी-कॉपी करती रहती है और शकुंतला खटक नहीं समझ आ रही?" 

ये क्या था? ऐसे तो --

केजरीवाल नवरात्रों में घर छोड़ेंगे?  

मोदी USA यात्रा पर?

दुष्यंत चौटाला बच्चोँ के साथ खेलते हुए मैदान में?

बड़े हुड्डा, कुछ बहन-बेटियों को मनाने में वयस्त?

और ?

कुछ दिनों पहले कोई संवाद या इंटरव्यू सुन रही थी किसी नेता का। नया-नया शौक पैदा हुआ है, नेताओं को और उनके मुद्दों को जानने का।  

बुआ ये कैसी आवाज़ है?

बड़ी मस्त-सी चाल है। बहुत दिनों बाद सुनी। और बुआ-बेटी बारजे से नीचे देखते हुए। 

                                                     टगबग-टगबग? सुना, सुना-सा है ना?   

मासूम से 


"भारती का घोड़ा" जा रहा था?
या?
गाएँ, भैंस, साँड़, बैल, कुत्ते, बिल्ली तक ही सीमित क्यों रहें ड्रामे?
तो, ये लो एक और जानवर, घोड़ा।   

ठीक ऐसे ही जैसे, किसी की चौपाल सज रही है, हरे-भरे खेतों के बीच। तो किसी की अस्तबल के आसपास। किसी की स्टूडियो में और पीछे स्क्रीन पर शो गाड़ियों का। किसी की अपने घर या ऑफिस और किसी की गाड़ियों की रैली के रुप में। 

और भी कितने ही रुप-स्वरुप हैं, इलेक्शंस में वोट माँगने के अलग-अलग नेताओं के, अलग-अलग पार्टियों के। ठीक ऐसे ही जैसे, खास-म-खास उनके चिन्ह या झंडे? गाड़ियों की या जानवरों की किस्में या कम्पनियाँ, उनके रंग-रुप या Configrations, उनके नंबर या खास IDs, और कहाँ-कहाँ पर लगी हुई हैं? और भी अहम, वो कब, किस वक़्त, किसके या किनके साथ और कहाँ-कहाँ से गुजर रहे हैं? आपका माहौल क्या है, वो इन सबसे पता चलता है।

उस माहौल का आप पर या आसपास की ज़िंदगियों पर प्रभाव क्या पड़ता है या पड़ेगा? सब इसी में छुपा है। क्यूँकि, एक तो आप खुद एक सिस्टम हैं। ठीक ऐसे जैसे, किसी भी मशीन का कोई सिस्टम होता है, उसे चलाने का या ठीक-ठाक रखने का या खराब करने का या तोड़फोड़ करने का। उसपे, आपके आसपास के सिस्टम या कहो, माहौल मिलकर एक बड़ा सिस्टम बनाते हैं। जिसका सीधा-सीधा प्रभाव आप पर पड़ता है। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो सीधे-सीधे या गुप्त रुप से धकाया हुआ होता है, इन्हीं पार्टियों का, इसी सिस्टम का। 

जैसे, मान लो ये एक तस्वीर है    
क्या आप बता सकते हैं, की ये क्या है?     
           

  तस्वीरें नहीं, पहेलियाँ जैसे, "बूझो तो जाने?"  

लोगों को ड्रामों में तो उलझा दिया गया है, चाहे उनकी जानकारी से या अज्ञानता से। मगर उन ड्रामों के दुस्प्रभावों को बताए बिना। इसका किस तरह का असर, कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों पर हो सकता है या होगा? ऐसी-सी ही, कुछ और तस्वीरों को जानने की कोशिश करते हैं आगे।       

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